04 मई 2009
इस बार खाने के सामान के दामों में बढ़ोतरी वास्तविक
नई दिल्ली : खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है और इस बार यह वास्तविक है। पिछले साल सट्टेबाजों और पंटरों के खेले गए खेल की वजह से उपभोक्ताओं को इन वस्तुओं के लिए ज्यादा रकम चुकानी पड़ी थी। लेकिन इस बार पूरे सीन में सट्टेबाज और पंटर कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतों में इस बार की बढ़ोतरी की वजह निश्चित तौर पर मैं , आप और बाजार के सख्त फंडामेंटल ही हैं। साफतौर पर यह कोई सुखद स्थिति नहीं है। कीमतें तब बढ़ती हैं जब कुछ वस्तुओं के पीछे ही ज्यादातर लोग भागते हैं। खाद्य पदार्थों को कुछ ऐसी ही वस्तुओं के तौर पर जाना जाता है जिनके पीछे हर आदमी दौड़ लगाता है। मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस इंडस्ट्रीज में पैदा हुई मंदी के बावजूद लोग अब भी भोजन करते हैं , यद्यपि लोग सस्ते से सस्ते विकल्प की तलाश करते हैं। अनाज , दालों , फलों और सब्जियों , कुकिंग तेल , नमक , शक्कर , दूध और अंडों की मांग पहले की तरह से ऊंचे स्तर पर मौजूद है। निश्चित तौर पर लोगों की खरीद क्षमता एक बड़ी चुनौती है। इसी वजह से किसी भी खाद्य वस्तु की कीमत में आने वाली जरा सी कमी इसकी मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी पैदा कर देती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुकिंग तेल है जहां कीमतों में आई थोड़ी सी तेजी ने आयात में 30 फीसदी का उछाल पैदा किया है। इसके बावजूद लोग इन परिस्थितियों से जूझने की कोशिश कर रहे हैं। इसे साफतौर पर इस तरह से देखा जा सकता है कि किस तरह से एक परिवार 30 रुपए प्रति किलो के स्तर पर चीनी खरीदता है या सात रुपए प्रति किलो पर एक तरबूज की खरीदारी करता है। दरअसल , इससे भारतीय उपभोक्ताओं के अपनी मनौवैज्ञानिक बाधाओं के पार करने का पता चलता है। खाद्य उत्पादों की मांग में लगातार तेजी बनी हुई है जबकि इसकी सप्लाई में कोई इजाफा देखने को नहीं मिल रहा है। ऊंची लागत और गिरते उत्पादन से खाद्य आपूर्ति में अवरोध बना हुआ है और इससे बाजार में मौजूद पदार्थ ज्यादा महंगे होते जा रहे हैं। किसानों के पास पूंजी नहीं है , कर्ज न के बराबर है और खेतों की हालत खराब बनी हुई है , ऐसे में उत्पादन में बढ़ोतरी के आसार काफी कम ही नजर आ रहे हैं। फलों और सब्जियों की कीमतों में उछाल की एक अहम वजह गांवों में खेतिहर मजदूरों की लागत में हुई बढ़ोतरी है लेकिन इस तथ्य को समझ पाने में शहरी उपभोक्ता तकरीबन असफल हैं। लोगों में एक आम धारणा यह बनी हुई है कि ऊंची कीमतों की वजह सरकार की तय की गई ऊंची न्यूनतम समर्थन कीमत ( एमएसपी ) है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बेहतर जमीन , तकनीक , कर्ज और बाजार तक पहुंच जैसे अतिरिक्त फायदों से हटकर क्या किसान केवल एमएसपी के सहारे टिक सकता है। ऊंची एमएसपी खेती में फायदे की गारंटी नहीं है। यह केवल एक भत्ते की तरह से है। (ET Hindi)
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