कुल पेज दृश्य

04 मई 2009

धुंधली पड़ रही है एल्युमिनियम की चमक

धातु एल्युमिनियम पर दूसरे बेस मेटल कॉपर के मुकाबले बाजार के उतार - चढ़ाव का काफी कम असर दिखाई देता है। फरवरी की शुरुआत से ही जहां दूसरी औद्योगिक धातुओं की कीमतों में 30 से 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है , वहीं एल्युमिनियम कीमतों में केवल 20 फीसदी का ही इजाफा हुआ है। धातुओं की कीमतों में हाल में आए उछाल की अहम वजह चीनी रिजर्व ब्यूरो द्वारा इनकी भारी खरीदारी किया जाना रहा है। इस सरकारी संस्था के बारे में माना जा रहा है कि इस कमोडिटी का काफी कम भाव पर भारी स्टॉक कर लिया है। मार्च 2009 में चीन के एल्युमिनियम आयात में साल - दर - साल आधार पर 65 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। लगातार हो रही ओवरसप्लाई की वजह से इंवेंटरी स्तर में तेज उछाल आया है। साथ ही मांग में कमी देखी जा रही है। खासतौर पर ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर में एल्युमिनियम की मांग में काफी कमी आई है। इन तमाम वजहों से आने वाली तिमाहियों में इसकी कीमतों में बढ़ोतरी के कम होने की आशंका है। हालांकि माना जा रहा है कि ग्लोबल शेयर बाजारों में सुधार आने से दूसरी धातुओं की कीमतों में तेजी पैदा हो सकती है। एल्युमिनियम की डिमांड बड़े स्तर पर ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर से आती है। इसके बाद पैकेजिंग , बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर से एल्युमिनियम की सबसे ज्यादा मांग आती है। विकसित देशों में हाउसिंग की स्थिति के अभी कमजोर बने रहने और ग्लोबल ऑटोमोबाइल बिक्री में तेज गिरावट से एल्युमिनियम की मांग में मजबूती पैदा नहीं हो पा रही है। इसके अलावा अमेरिकी मासिक ऑटोमोबाइल ( इसमें घरेलू और आयातित कार और ट्रक शामिल हैं ) बिक्री पिछले साल सितंबर में पिछले 16 साल में पहली बार 10 लाख के स्तर से नीचे गिर गई थी। हालांकि अमेरिका में ऑटो बिक्री में साल 2006 से ही गिरावट देखी जा रही है , लेकिन इसमें तेज गिरावट का सिलसिला साल 2008 से शुरू हो गया है। साल 2008 में ऑटो बिक्री में 18 फीसदी की गिरावट देखी गई , जो इससे पहले के दो साल में औसतन दो फीसदी रही थी। इसी तरह से , दुनिया के सबसे बड़े ऑटो निर्यातक जापान से होने वाले निर्यात में भी गिरावट आई है। साल 2007-08 के बीच जापान से ऑटो निर्यात में औसत रूप से तीन फीसदी का इजाफा रहा है जबकि साल 2008 में इसमें 0.5 फीसदी की गिरावट आई है। इस साल जनवरी - फरवरी में निर्यात गिरावट बढ़कर 18 फीसदी की औसत मासिक गिरावट पर आ गई है। पिछले चार साल में एल्युमिनियम खपत में इसके उत्पादन के मुकाबले गिरावट आई है। रिफाइंड एल्युमिनियम के इस्तेमाल में 6.5 फीसदी सीएजीआर दर्ज की गई है , जबकि उत्पादन में 7.5 फीसदी की सीएजीआर दर्ज की गई है। साथ ही मांग के मुकाबले सप्लाई के ज्यादा होने की वजह से एल्युमिनियम की ग्लोबल इंवेंटरी इस वक्त 35 लाख टन के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर चली गई है। अब तक एल्युमिनियम के उत्पादन में कटौती का स्तर करीब 25 लाख टन रहा है। चीन में हुए हालिया घटनाक्रम ने एल्युमिनियम की ओवरसप्लाई की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। पहले चीनी सरकार ज्यादा ऊर्जा खपत वाली एल्युमिनियम इंडस्ट्री के विकास के विरोध में थी। हालांकि , आर्थिक मंदी को देखते हुए चीनी सरकार ने न केवल एल्युमिनियम उत्पादों पर लगे एक्सपोर्ट टैक्स को 15 फीसदी से कम कर पांच फीसदी कर दिया बल्कि उत्पादकों को एनर्जी सब्सिडी देने का भी फैसला किया। इस वजह से चीनी कारोबारियों ने दोबारा अपने उत्पादन को शुरू कर दिया। दूसरी ओर , दुनिया में एल्युमिनियम की सबसे ज्यादा खपत करने वाले चीन में साल 2008 में इसकी सप्लाई केवल आठ फीसदी बढ़ी है , जबकि इससे पिछले तीन सालों में चीन में एल्युमिनियम की मांग में करीब 25 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। (ET Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: