19 मई 2009
अनाज के बढ़ते स्टॉक पर करना होगा गौर
नई दिल्ली- नई सरकार को अनाज प्रबंधन के क्षेत्र में काफी काम करना होगा। सरप्लस स्टॉक, खास तौर से गेहूं के, का इस्तेमाल करने के बारे में उसे कोई न कोई नीति तय करनी होगी। इन दिनों भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास भारी मात्रा में गेहूं का सरप्लस स्टॉक है। 1 अप्रैल को एफसीआई के पास न्यूनतम जरूरत से तीन गुना ज्यादा गेहूं का स्टॉक था। एफसीआई को अपने पास कम से कम 40 लाख टन गेहूं बतौर बफर स्टॉक रखना होता है। सरकार इस अतिरिक्त माल को निकालने के लिए कुछ उपाय कर सकती है। इनमें निर्यात में सब्सिडी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए गेहूं की ज्यादा से ज्यादा बिक्री आदि शामिल हो सकते हैं। साथ ही बफर स्टॉक को लेकर नई नीतियां भी बनाई जा सकती है। आम तौर पर सरकारें अपने कार्यकाल के पहले हिस्से में पीडीएस को बहुत अधिक महत्व नहीं देते। ऐसा वे चुनावों के समय फायदा उठाने के मद्देनजर करते हैं। अब अपनी नई पारी में सरकार चाहे तो बफर स्टॉक की क्षमता को 20 लाख टन और बढ़ाने के बारे में कदम उठा सकती है। ऐसा लंबी अवधि की रणनीति तय करने के लिए किया जा सकता है। असल में अनाज का भंडारण तय सीमा से ज्यादा हो रहा है और कीमतें कम हो रही हैं। फिलहाल गेहंू का स्टॉक 134 लाख टन है। इस साल 780 लाख टन का गेहूं का उत्पादन और होना है। गेहूं के 1,080 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुकाबले दिल्ली में कीमतें गिरकर 1,020 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच चुकी हैं, जबकि से यूपी में यह 930 रुपए प्रति क्विंटल है। इस बीच गेहूं के रखरखाव का खर्च बढ़ते चला जा रहा है। इसके रखरखाव पर एक साल में प्रति टन 2,400 रुपए लगता है। हर महीने यह प्रति टन 200 रुपए बढ़ता चला जा रहा है। इसके साथ गेहूं की गुणवत्ता भी लगातार गिर रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो यह केवल चारे के लायक रह जाएगा। अभी खाद्य सब्सिडी 50 हजार करोड़ रुपए के आसपास है। इसलिए नई सरकार को कुछ न कुछ उपाय करना ही होगा। पूरी दुनिया में भी गेहूं का स्टॉक बढ़ता ही चला जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय अनाज परिषद (आईजीसी) के अनुमान के मुताबिक 8 सालों में यह सबसे ज्यादा होने वाला है। इसके कारण कीमतें कम हो रही हैं। निर्यात में घाटा हो रहा है। कांडला या मुंदा बंदरगाह में भारतीय गेहूं की प्रति टन कीमत 250 से 280 डॉलर है। जबकि अच्छी गुणवत्ता का गेहूं प्रति टन 185 से 220 डॉलर प्रति टन बिकता है। जबरदस्त स्टॉक और इसके प्रति निर्यातकों की अरुचि के चलते कमोडिटी बाजार के नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने ढाई साल से फ्यूचर ट्रेडिंग पर लगी रोक को हटा लिया है। हालांकि चावल, उड़द और तुअर पर लगी रोक अभी बरकरार है। चावल का स्टॉक भी अभी सरप्लस है। 1 अप्रैल को 216 लाख टन का स्टॉक था। जबकि बफर नियमों के मुताबिक यह 112 लाख टन होना चाहिए। (ET Hindi)
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