18 मई 2009
दुनिया भर में चाय के लिए भारत पर नजर
कोलकाता- जनवरी से मार्च के बीच दुनिया भर में चाय की 5.5 करोड़ किलोग्राम की कमी से भारतीय चाय इंडस्ट्री के पास रूस, ईरान, मिस्त्र और पाकिस्तान से चाय की मांग में तेजी आ रही है। उत्पादन में सबसे ज्यादा कमी श्रीलंका में देखने को मिल रही है जहां इस दौरान करीब 3.4 करोड़ किग्रा चाय की कमी आई। साल 2009 के तीन महीनों में भारत में 80 लाख किलो चाय की कमी हुई है, जबकि केन्या और जिम्बाब्वे जैसे देशों में इस दौरान 50 लाख किलो चाय का नुकसान झेलना पड़ा है। मैकलॉयड रसेल के प्रबंध निदेशक आदित्य खेतान ने ईटी को बताया, 'ग्लोबल बाजारों से आ रही रिपोर्टों के मुताबिक, अप्रैल तक चाय की कमी के 9 करोड़ से 10 करोड़ किलो के दायरे में रहने की संभावना है। केन्या, भारत और श्रीलंका जैसे चाय का उत्पादन करने वाले अहम देशों को खराब मौसम की वजह से चाय की कम पैदावार का सामना करना पड़ा है। कम उत्पादन से पूरी दुनिया में चाय की कीमतों में तेजी आई है।' मैकलॉयड रसेल दुनिया की सबसे बड़ी इंटीग्रेटेड चाय कंपनी है, जिसका उत्पादन आधार आठ करोड़ किलो सालाना है। चाय की कीमतों में 20-25 रुपए प्रति किलो की तेजी आई है। हालांकि पैकेट चाय बनाने वालों पर इसका असर मई के बाद पता चलेगा क्योंकि इनके पास अगले दो महीने के लिए भंडार मौजूद हैं। पिछले कुछ हफ्तों में मौसम में सुधार आने की वजह से भारतीय चाय उत्पादकों के पास अंतरराष्ट्रीय बाजारों से पूछताछ आ रही है। असम ऑर्थोडॉक्स चाय का उत्पादन भी शुरू हो चुका है। इस चाय का निर्यात प्रमुख रूप से ईरान को होता है। खेतान ने कहा, 'चाय कीमतों में तेजी आने से काफी हड़कंप मचा हुआ है। तकरीबन सात साल बाद चाय की कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। साल 1999-2000 के बाद से ही चाय उत्पादन की लागत में प्रति किलो 35 रुपए की तेजी आई है, जबकि कीमतों में 40 रुपए प्रति किलो की गिरावट आई है। हमारी लागत का करीब 70 फीसदी हिस्सा फिक्स्ड है। चाय खरीदारों ने साल-दर-साल इसकी कीमतों में गिरावट आने पर कभी आवाज नहीं उठाई।' खेतान के मुताबिक, अगर जुलाई से अक्टूबर के बीच चाय उत्पादन में बढ़ोतरी होती है तो चाय कीमतों में कुछ स्थिरता आ सकती है। खेतान ने कहा, 'हमें लग रहा है कि जुलाई के बाद चाय उत्पादन में इजाफा होगा। इससे चाय कीमतों में पांच रुपए प्रति किलो की गिरावट आ सकती है। कीमतों में कमी आने से कंपनियों को नुकसान से निकलने में मदद मिलेगी। साथ ही कंपनियां दोबारा बागानों में निवेश कर बेहतर क्वालिटी की चाय का उत्पादन कर सकेंगी।' (ET Hindi)
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