नई दिल्ली October 15, 2008
बीटी कपास देसी कपास के मुकाबले कम मजबूत है। ऐसा कोई किसान या जेनेटिक्ली मोडिफॉयड बीज के विरोधी नहीं कह रहे हैं।
इस बात का खुलासा कपास से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी जांच के बाद की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जांच के दौरान लंबाई एवं मोटाई में समानता के बावजूद देसी एवं बीटी कपास की मजबूती में काफी फर्क पाया गया। जाहिर है बीटी से बने धागे देसी कपास से बने धागे के मुकाबले कमजोर होंगे और इसका असर कपड़ों की गुणवत्ता पर भी पड़ना लाजिमी है।कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक कपास की मजबूती को ग्राम परटेक्स में मापते है। किसी कपास का ग्राम परटेक्स जितना अधिक होगा उसकी मजबूती ही उतनी अधिक होगी। वैज्ञानिकों ने बताया कि जिस कपास का ग्राम परटेक्स 20 तक होता है उसे कमजोर कपास माना जाता है।जबकि जिनका ग्राम परटेक्स 24 या इससे अधिक होता है उसे मजबूत कपास की श्रेणी में रखा जाता है। कपास अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक ने बताया कि जांच के दौरान देसी कपास का ग्राम परटेक्स 25 से भी ऊपर पाया गया। हालांकि कई जगहों का देसी कपास कमजोर भी पाया गया।लेकिन किसी भी बीटी कपास का ग्राम परटेक्स 23 से ऊपर नहीं गया।मुंबई स्थित माटुंगा अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मात्र 5 फीसदी बीटी कपास का ग्राम परटेक्स 23 से ऊपर रहा। बाकी सब इससे नीचे की श्रेणी में ही पाए गए। उनका कहना है कि कमजोर किस्म के कपास से धागे की मजबूती में भी कमी आएगी जिससे कपड़ों की गुणवत्ता पर भी फर्क पड़ेगा।हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि इन दिनों अमेरिका एवं चीन में भी बीटी कपास का इस्तेमाल हो रहा है इसलिए भारत के कपड़ा निर्यात कारोबार पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।जानकारों के मुताबिक इस साल देश भर में 90 फीसदी इलाकों में बीटी कपास की बुवाई की गयी है।लेकिन आधिकारिक तौर पर 60 फीसदी इलाकों में ही बीटी कॉटन की बुवाई की गयी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बीटी कपास की अधिकता के कारण इस साल पिछले साल के मुकाबले 350 लाख बेल्स (1 बेल = 170 किलोग्राम) कपास के उत्पादन की संभावना है। पिछले साल यह उत्पादन 310 लाख बेल्स था। देश के कुछ भागों में कपास की पिकिंग शुरू हो गयी है। लेकिन नवंबर से जनवरी के बीच यह पिकिंग अपने चरम पर होता है। (BS Hindi)
16 अक्तूबर 2008
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