नई दिल्ली October 24, 2008
शेयर बाजार की तरह आम कारोबारियों का कारोबार भी गिर चुका है। फर्क सिर्फ इतना है कि शेयर बाजार की गिरावट को अंकों के पैमाने पर मापा जा रहा है तो आम बाजार की गिरावट को फीसदी या रुपये में।
हाल इतना बुरा है कि मुंबई बाजार का सूचकांक 21,000 की ऊंचाई से घटकर 9,000 अंक तक पहुंच चुका है तो आम बाजार में कारोबारी गतिविधियां 30-35 फीसदी कम हो गई हैं। जाहिर है, सटोरियों के साथ कारोबारियों के घर में भी इस दिवाली में कम रोशनी होगी।कारोबारियों का कहना है कि ग्राहकों के पास माल खरीदने को पैसे नहीं है तो उनके पास माल मंगाने के लिए। मेवा बाजार से लेकर रंग-रोगन तक या फिर लोहे से लेकर ऑटोपाट्र्स तक, हर जगह कारोबार में पिछले साल के मुकाबले 30-40 फीसदी की नरमी है॥आलम यह है कि छूट देने के बाद भी सामानों की बिक्री में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। ऑटोमोबाइल पाट्र्स के विक्रेता नरेंद्र मदान कहते हैं कि पहले अगर उन्हें नगदी की जरूरत होती थी तो वे माल पर 2 फीसदी की छूट दे देते थे जिससे माल तुरंत निकल जाता था। लेकिन इस बार 5 फीसदी की छूट भी काम नहीं आ रही है। ऑटो पाट्र्स की बिक्री पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी तक गिर चुकी है।रंग-रोगन का हाल तो और भी ज्यादा बुरा है। पेंट के थोक व्यापारी लखन जैन कहते हैं कि दीपावली के 15 दिन पहले तो सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती थी, लेकिन इस साल तो खरीदारी 50 फीसदी तक गिर गया है। मानो कोई अपने घर में सफेदी ही नहीं करवा रहा।मेवा और किराना बाजारों की हालत कमोबेश ऐसी ही है। मेवे के कारोबार में 25-30 फीसदी की गिरावट आ चुकी है तो किराने में 20 फीसदी की।किराना कमेटी के प्रधान प्रेम कुमार अरोड़ा कहते हैं, ''मेवे में 100 रुपये प्रति किलो की तेजी से बिक्री बिल्कुल ही गिर गई है पर इस गिरावट के पीछे मंदी और बाजार में नगदी की किल्लत भी है। '' मसाला के थोक कारोबारी और किराना कमेटी के अधिकारी ललित गुप्ता कहते हैं कि सभी वर्गों की ओर से खरीदारी में कमी हुई है चाहे वह नौकरी पेशा हो या कारोबारी। मसाले की बिक्री के बारे में उन्होंने बताया कि इस मौसम में मसाले का कारोबार यूं ही गिर जाता है लेकिन मंदी की वजह से पिछले साल के मुकाबले इसके कारोबार में 35 फीसदी की कमी हो चुकी है। कपड़े के कारोबारियों का हाल और भी बुरा है। पहले कपास की मार और अब मंदी की। कपड़ा व्यापारी विजय पाल कहते हैं कि हर आदमी पहले खाने का, फिर रहने का और अंत में कपड़े का इंतजाम करता है। पहले कीमत में बढ़ोतरी के कारण कारोबार कम रहा तो अब बाजार से खरीदार ही गायब हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का तो दावा है कि कारोबार में 40 फीसदी की गिरावट हो चुकी है। अब तक सरकार नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 2.5 फीसदी की कटौती कर चुकी है, लेकिन नगदी का प्रवाह बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा।स्थिति पहले जैसी ही संकटपूर्ण है। बैंक कारोबारियों को माल खरीदने के लिए पैसे देने से अब भी इनकार कर रहे हैं। खंडेलवाल का आरोप है कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की घोषणा सिर्फ कागजी है लिहाजा नकदी के मसले पर बैंकों की भूमिका की जांच होनी चाहिए। (BS Hindi)
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