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31 अक्टूबर 2008

काली मिर्च की मांग सुस्त और आपूर्ति भी!

कोच्चि October 30, 2008
काली मिर्च के कारोबार में इस समय एक मजेदार चीज देखा जा रहा है। अभी इसका निर्यात जहां भंडार की कमी के चलते सुस्त पड़ चुका है, वहीं इसकी कीमत में भी खासी कमी हुई है।
होना तो यह चाहिए था कि आपूर्ति घटने से इसकी कीमत में वृद्धि हो जाती पर हो इसके उल्टा रहा है। कारोबारियों के मुताबिक, इस घटना की मुख्य वजह आर्थिक मंदी है जिसके चलते मांग में खासी कमी हो गई है। गौरतलब है कि इस समय देश में काली मिर्च का भंडार मुश्किल से 6,000 टन है जिसमें से 3,000 टन गोदामों में जमा है। हालांकि, निर्यातकों की ओर से लंबित पड़े विदेशी अनुबंधों का निपटान जोरों पर है।आशंका जताई जा रही है कि भारत के काली मिर्च निर्यात में रुकावट पैदा हो जाएगी। इसकी वजह काली मिर्च का अपर्याप्त भंडार होना है। आर्थिक मंदी के असर से विदेशों में इसकी मांग कम हो गई है जिसके चलते वायदा बाजार में इसका कारोबार सुस्त हो गया है। कोच्चि स्थित निर्यातकों ने भी पुष्टि की कि दिसंबर के बाद देश से काली मिर्च का निर्यात लगभग ठप ही पड़ जाता है। उनके मुताबिक, इस समय देश में काली मिर्च का भंडार बहुत ही कम है। इतना कि इससे केवल अगले दो महीने के लिए विदेशी और घरेलू मांग की पूर्ति हो सके। सामान्यत: देश में इस महत्वपूर्ण मसाले का सीजन दिसंबर से शुरू होता है लेकिन इस बार इसमें 3 से 4 हफ्ते और देर होने की उम्मीद है। प्रतिकूल मौसम के चलते केरल और तमिलनाडु में इसकी बुआई प्रभावित हुई है। आशंका है इसके चलते आगामी सीजन में काली मिर्च के कुल उत्पादन में तकरीबन 40 फीसदी की कमी हो सकती है। इस समय केवल कर्नाटक से ही काली मिर्च की आपूर्ति हो रही है। निर्यातकों का एक तबका मानता है कि अब केरल को पछाड़कर कर्नाटक काली मिर्च उत्पादन में पहला स्थान हासिल कर लेगा। इडुक्की और वायनाड जिले के काली मिर्च उत्पादकों ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि असमय बरसात के चलते फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। इसके चलते उत्पादन में खासी कमी की गुंजाइश है।अनुमान है कि इस बार काली मिर्च का उत्पादन पिछले एक दशक में सबसे कम हो सकता है। किसानों ने बताया कि फसल की हार्वेस्टिंग जनवरी से शुरू होगी और उम्मीद है कि बाजार में इसकी सतत आपूर्ति तभी से बरकरार रह पाएगी। एक निर्यातक के मुताबिक, अमेरिकी आयातकों की नजर जनवरी से शुरू होने जा रहे अगले सीजन पर है। उन्हें लगता है कि जनवरी के बाद कम से कम अगले दो महीनों तक काली मिर्च की आपूर्ति निर्बाध रहेगी। इस निर्यातक के मुताबिक, अभी का समय खरीदारी के लिहाज से सही समय है। फिलहाल इंडोनेशिया छोड़ सभी उत्पादक देशों में काली मिर्च की कीमत काफी नीचे चल रही है। एमजी-1 किस्म की कीमत 2,400 डॉलर तक लुढ़ककर 2,550 डॉलर प्रति टन पर चल रही है।काली मिर्च के कारोबार से जुड़ी मजेदार चीज तो यह कि इसकी आपूर्ति पिछले 4 से 5 हफ्तों से मंद तो है ही इसका पूरा कारोबार भी मंद पड़ा है। इसकी वजह पूरी दुनिया में फैला आर्थिक मंदी का साया है जिसने अमेरिकी और यूरोपीय देशों में मसाले की मांग गिरा दी है। अप्रैल की तुलना में सितंबर में काली मिर्च के निर्यात में 33 फीसदी की कमी हो चुकी है। अप्रैल में इसका निर्यात जहां 19,165 टन था वहीं सितंबर में यह महज 12,750 टन ही रह गया। इसके चलते निर्यात से होने वाली आय भी 279 करोड़ रुपये से घटकर महज 216 करोड़ रुपये रह गई। (BS Hindi)

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