27 अक्टूबर 2008
मेटल है लंबे वक्त के निवेश का विकल्प
वैश्विक आर्थिक संकट के बाद पैदा हालात में दुनिया भर के शेयर बाजारों में सभी इंडेक्स में जबरदस्त गिरावट रही। इस समय यह तय कर पाना खासा मुश्किल हो रहा है कि किस इंडेक्स में पैसा लगाना बेहतर होगा या कम जोखिम भरा रहेगा। बंबई स्टॉक एक्सचेंज के मेटल इंडेक्स में भी गिरावट का ही माहौल रहा है। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि फिलहाल मेटल में निवेश करने से परहेज रखना ही बेहतर होगा। फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई निवेशक मेटल इंडेक्स में निवेश करना चाहता है तो लंबी अवधि के लिए ही निवेश कर। इस समय बड़ी-बड़ी मेटल कंपनियों के शेयर धरातल पर हैं। बड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतें भी खासी कम हो चुकी हैं। ऐसे में आप लंबी अवधि निवेश के नजरिए से बड़ी मेटल कंपनियों के स्टॉक को अपने पोर्टफोलियो में जोड़ सकते हैं।इस साल जनवरी के बाद से इस्पात कंपनियों के शेयर आधे से भी कम दाम पर आ गए हैं। दुनिया भर में छाई मंदी के माहौल में बीएसई मेटल इंडेक्स में 75 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट हो चुकी है। इस साल के दौरान टाटा स्टील, सेल, जेएसडब्ल्यू, इस्पात इंडस्ट्रीस और भूषण स्टील जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयरों के दाम करीब 80 फीसदी तक टूट चुके हैं। पिछले सप्ताह शुक्रवार को टाटा स्टील पिछले एक साल के 930 रुपये से गिरकर 178.30 रुपये, सेल 287.55 रुपये से कम होकर 74.75 रुपये, जेएसडब्ल्यू 1016 रुपये से टूटकर 205.35 रुपये, इस्पात इंडस्ट्रीस 85 रुपये से लुढ़ककर 10.80 रुपये और इस्पात के सेकेंड्री उत्पादों बनाने वाली कंपनी भुषण स्टील के शेयर एक साल पहले के 1670 रुपये से टूटकर 555.05 रुपये पर कारोबार किए। पूर मेटल इंडेक्स की बात करें तो इस साल चार जनवरी को 20296.51 अंकों से गिरकर 24 अक्टूबर को यह 4393.88 अंक पर रह गया है। महज दस महीनों में करीब 15903 अंकों की गिरावट हो चुकी है। ऐसे में लोगों का इस्पात कंपनियों के शेयरों में निवेश के प्रति हिचकिचाहट लाजमी है। जर्जर हो चुकी इस्पात कंपनियां अब सरकार से मदद की गुहार लगाई है और सरकार भी इन कंपनियों के प्रति सकारात्मक दिख रही है। यानी सरकारी नीतियों से आने वाले दिनों में इस्पात कंपनियों और उनके शेयरों को राहत मिल सकती है। हालांकि इस दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने जहां सीआरआर दर में ढाई फीसदी की कटौती किया है। वहीं रपो रट को भी एक फीसदी घटाया है। लेकिन इसके बावजूद पिछले महज एक सप्ताह के दौरान मेटल इंडेक्स करीब 20 फीसदी तक टूटा है। स्टॉक एनॉलिस्ट अंकित अजमेरी के मुताबिक खपत वाले क्षेत्रों से इस्पात की मांग में आई कमी की वजह से कंपनियों पर उत्पादों की कीमतें घटाने का दबाव बढ़ा है। पिछले महज दो महीनों में घरलू कंपनियां अपने उत्पादों के दाम करीब 20 फीसदी घटा चुकी हैं। इस साल जनवरी के बाद से रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों की हालत बदहाल है। जिसका असर इस्पात कंपनियों पर भी पड़ा रहा है। उन्होंने बताया कि बाजार के लिहाज इन कंपनियों के शेयरों में जल्दी सुधार की गुजाइश कम है। ऐसे में घरलू कंपनियां इस्पात के आयात को प्रतिबंधतित करने और निर्यात शुल्क में कटौती की मांग की हैं। दरअसल वैव्श्रिक बाजारों में इस्पात सस्ता होने की वजह से निर्माण और इंफ्रास्टक्चर कंपनियां इस्पात के आयात पर जोर दे रही हैं। पिछले महज तीन महीनों के दौरान अंतराष्ट्रीय बाजारों में इस्पात उत्पादों के दाम 50 फीसदी से ज्यादा टूट चुके हैं। लिहाजा घरलू बाजार में इस्पात का आयात बढ़ रहा है। पिछले साल करीब 60 लाख टन इस्पात उत्पादों का आयात हुआ था। जबकि इस साल 80 लाख टन से ज्यादा आयात होलने की उम्मीद है। आयातित इस्पात उत्पादों के दाम तुलनात्मक रुप से 10-15 फीसदी सस्ता होने की वजह से इस साल सितंबर तक आयात में करीब 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि निर्यात के साथ घरलू इस्पात कंपनियों की मांग मेंकमी आई है। कंपनियों की मांग को देखते हुए सरकार टीएमटी और स्ट्रक्चरल उत्पादों के आयात पर भी 14 फीसदी डयूटी लगाने पर विचार कर रही है। उल्लेखनीय है कि इस साल मई में घरलू बाजरों में भाव बढ़ने की वजह से सरकार ने इस्पात के आयात को जहां सस्ता की थी। वहीं इस्पात के विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर करीब 5-15 फीसदी का शुल्क लगाया था। जिसे बदले हालात में हटाने की मांग की गई है। कंपनियों का मानना है कि आयातित इस्पात किसी हालत में 800 डॉलर प्रति टन से नीचे नहीे बैठना चाहिए। जबकि विदेशी कंपनिंया 600 डॉलर प्रति टन के भाव बेचने को तैयार हैं। जानकारों का मानना है कि हाल फिलहाल में इस सेक्टर को अब सरकारी नीतियां ही एक मात्र सहारा हैं। उधर केंद्र सरकार ने भी कंपनियों की मांग को गंभीरता से लिया है। इस सप्ताह सरकार कुछ कदम उठा सकती है। बहरहाल मौजूदा हालात को देखते हुए सस्ते इस्पात शेयरों में लॉग टर्म के लिए निवेश किया जा सकता है। (Business Bhaskar)
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