कोच्चि October 29, 2008
वर्तमान वैश्विक वित्तीय उठापटक के कारण समुद्री खाद्य पदार्थों (सी फूड) के निर्यात से जुड़ा उद्योग भी गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है।
आयात करने वाले प्रमुख देशों द्वारा माल कम मंगवाने, माल-भाड़ा दरों में वृध्दि तथा बिजली, पैकेजिंग तथा बर्फ आदि जैसे अन्य लागत-मूल्यों में बढ़ोतरी होने के कारण हाल के दिनों में निर्यातकों की चिंताएं बढ़ी हैं। वैश्विक आर्थिक संकट का तत्काल असर शायद समुद्री उत्पादों के निर्यात के क्षेत्र पर पड़ा है। निर्यातकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले कुछ महीनों में निर्यात के परिमाण में आई कमी और ऑर्डर रद्द किए जाने से इस उद्योग की आशाओं पर पानी फिर गया है।भारत से भेजे जाने वाले प्राय: हर केंद्र तक के माल-भाड़ों में 15 से 30 फीसदी या डॉलर के रूप में उससे कहीं अधिक की बढ़ोतरी हुई है। प्रमुख आयातक केंद्र जैसे अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान फ्रोजेन झींगा, फ्रोजेन मछली तथा समुद्रफेनी जैसे निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों की दरों पर फिर से बातचीत शरू कर दी है। साल 2008-09 की पहली तिमाही में समुद्री उत्पादों के निर्यात में मामूली 1.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 1,02,767 टन रहा जिसकी कीमत 1,542.72 करोड़ रुपये थी। रुपये के हिसाब से देखा जाए तो बढ़ोतरी 2.45 प्रतिशत की रही जबकि डॉलर के रूप में यह वृध्दि 5.26 प्रतिशत (3,801.1 लाख डॉलर) रही। साल 2006-07 में भारत का सी फूड निर्यात सर्वाधिक रहा। इस अवधि में 6,12,641 टन सीफूड की निर्यात किया गया जिसकी कीमत 8,363.53 करोड़ रुपये थी। लेकिन इसके अगले साल परिमाण में 11.58 प्रतिशत की गिरावट हुई और कीमतों में 8.88 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। कुल निर्यात 5,41,701 टन रहा और इसकी कीमत 7,620.92 करोड़ रुपये रही।अग्रणी निर्यातकों के अनुसार इस साल कई कारणों से निर्यात में आने वाली कमी काफी गंभीर होगी। उनका मानना है कि पहली तिमाही में निर्यात में हुई मामूली वृध्दि कोई खास उत्साहजनक नहीं है क्योंकि अगस्त के बाद से विदेशी बाजारों में काफी बदलाव आया है। शहर के एक निर्यातक ने कहा, 'सी फूड उद्योग के लिए यह पिछले दो दशकों का सबसे कठिन समय साबित हो सकता है क्योंकि डॉलर में मजबूती जैसे सकारात्मक कारण उद्योग के सामने सीमित हैं।' जापान के अलावा भारतीय सी फूड के सभी महत्वपूर्ण बाजारों ने अप्रैल से जून की अवधि के दौरान अपनी हिस्सेदारी में कमी की है।जापान की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत से बढ़ कर 22 प्रतिशत हो गई जबकि अमेरिका का 13 प्रतिशत से घट कर 10 प्रतिशत, यूरोपियन यूनियन का 35 प्रतिशत से घट कर 34 प्रतिशत और चीन की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत से कम होकर 11 प्रतिशत हो गई।यद्यपि फ्रोजेन झिंगा भारत से निर्यात किया जाने वाला प्रमुख उत्पाद बना रहा लेकिन पिछले वित्त वर्ष में कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 52 प्रतिशत से घट कर 42 प्रतिशत हो गई। फ्रोजेन समुद्रफेनी के मामले में पिछले साल 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई जबकि फ्रोजेन मछलियों की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से घट कर 14 प्रतिशत तथा कट्ल फिश की 10 प्रतिशत से कम होकर 6 प्रतिशत हो गई। समुद्री उत्पादों के निर्यात के मामले में पहले स्थान पर आने वाले कोच्चि की जगह पिपावाव ने ले ली। (BS Hindi)
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