नई दिल्ली October 27, 2008
इस्पात की अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने के बाद सरकार इसके आयात और निर्यात शुल्कों में फेरबदल करने का मन बना रही है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि घरेलू इस्पात कंपनियों को सुरक्षित करने के लिए जहां इस्पात के आयात पर 10 फीसदी का शुल्क लग सकता है, वहीं इस्पात के कुछ उत्पादों से निर्यात शुल्क हटाया जा सकता है।आर्थिक मंदी के दौर में मांग घटने से इस्पात भंडार में हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर निर्माताओं की परेशानी बढ़ गई है।लिहाजा सरकार इसका निर्यात बढ़ाने के उपाय तलाश रही है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस्पात मंत्रालय से रॉलबैक की अनुमति मिल गई है। उम्मीद है कि अगले सात दिन में अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। आयात शुल्क थोपे जाने के प्रस्ताव पर फिलहाल विचार-विमर्श जारी है। क्योंकि आयातित इस्पात का लैंडिग मूल्य घरेलू इस्पात की तुलना में 10 से 15 फीसदी सस्ता पड़ रहा है। अधिकारी ने बताया कि इस बारे में जल्द ही कोई फैसला ले लिया जाएगा। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में इस्पात की कीमतें बढ़ जाने से परेशान उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए इस्पात पर से 5 फीसदी का आयात शुल्क हटा लिया गया था।इस्पात उद्योग के अधिकारियों ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि सितंबर से अक्टूबर के दौरान विदेशों में हुए इस्पात के ज्यादातर अनुबंध घरेलू बाजार की तुलना में काफी सस्ते रहे। आशंका है कि अगले तीन महीनों में जब इन अनुबंधित सौदों की देश में डिलीवरी होगी तब घरेलू इस्पात उद्योग की हालत काफी बुरी हो जाएगी। सितंबर से अब तक इस्पात की कीमतें करीब 10 फीसदी गिर चुकी है। टाटा स्टील को उम्मीद है कि अगले दो महीनों में यह और 10 फीसदी गिरेगी।मालूम हो कि 10 मई को सरकार ने महंगाई कम करने की कोशिशों के तहत निर्यात हतोत्साहित करने के लिए इस्पात और इस्पात उत्पादों पर लगने वाले शुल्क को 5 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया गया था। इसके एक महीने बाद तय किया गया कि फ्लैट उत्पादों पर निर्यात शुल्क को खत्म कर दिया जाए जबकि लॉन्ग उत्पादों पर निर्यात शुल्क 10 की बजाय 15 फीसदी कर दिया गया।परिणाम यह हुआ कि अप्रैल से सितंबर के बीच निर्यात तेजी से घटा और आयात तेजी से बढ़ा। जेएसडब्ल्यू जैसी इस्पात कंपनियों ने तय किया कि घरेलू उद्योगों के हित में निर्यात अनुबंधों में कटौती कर दी जाए। हालांकि इस दौरान इस्पात की घरेलू मांग भी खासी सुस्त हुई है।इस्पात कारोबार से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग घटने से सभी इस्पात कंपनियों का भंडार तेजी से बढ़ा है। ऐसे में क्षमता का दोहन करने और कीमतों में कमी को लेकर भारी दबाव है। टाटा स्टील ने अभी हाल ही में कहा था कि ट्रकों और बसों की मांग घटी है जबकि कार जैसे दूसरे हल्के वाहनों की मांग जस की तस बनी हुई है। अधिकारी के मुताबिक, घरेलू इस्पात निर्माता प्रति टन इस्पात की कीमत 800 डॉलर ऑफर कर रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय निर्माता महज 600 से 700 डॉलर की दर से ही इस्पात बेच रहे हैं। घरेलू कंपनियों की उत्पादन लागत भी इससे कहीं अधिक है। (BS Hindi)
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