29 अक्टूबर 2008
भाव गिरने के बावजूद राशन पर मिलता रहेगा खाद्य तेल
खाद्य तेलों के दामों में भारी गिरावट के बावजूद सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए खाद्य तेलों के वितरण की योजना को बंद नहीं करेंगी। खाद्य तेलों के आसमान छूते दामों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार ने अगस्त में यह योजना शुरू की थी। अपने उच्चतम स्तर से खाद्य तेलों के दाम 75-78 फीसदी तक गिर गये हैं। नाफेड के महानिदेशक यू. के. एस. चौहान ने बताया कि इस योजना को बंद करने का फिलहाल कोई विचार नहीं है। अभी तक सरकार की ओर से इस तरह का कोई फैसला नहीं लिया गया है। योजना के अनुसार खाद्य तेलों का पीडीएस के जरिये वितरण अगले साल मार्च तक जारी रखा जायेगा। इस योजना के अनुसार केंद्र सरकार को दस लाख टन सोया और पाम तेल का वितरण आयातित दाम से पंद्रह रुपये कम दाम पर करना है। इसके लिए केंद्र सरकार की चार एजेंसियों नाफेड, एमएमटीसी, एसटीसी और पीईसी को खाद्य तेलों के आयात की जिम्मेदारी दी है। दामों में भारी गिरावट को देखते हुए राज्यों की ओर से इस योजना के अंतर्गत खाद्य तेलों की मांग नहीं हो रही है। साथ ही पहले उन्होंने जो मांग की थी, उसको भी वे नहीं ले रहे हैं।जिससे इन एजेंसियों के पास आयातित तेल का स्टॉक बढ़ गया है। इस साल मार्च में खाद्य तेलों के दाम उच्चतम स्तर पर थे। उसके बाद से वैश्विक बाजारों के साथ ही घरेलू बाजार में भी इनके दाम लगातार कम हो रहे है। इस साल मार्च में पाम तेल के दाम 1400 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए थे जो इस समय कम होकर 280 डॉलर प्रति टन पर है। साथ ही इसी अवधि में सोया तेल के दाम 1700 डॉलर प्रति टन से कम होकर 400 डॉलर पर पहुंच गये है। इसके बावजूद सरकार इस योजना को बंद करने पर कोई विचार नहीं कर रही है। घरेलू बाजार में जारी भारी गिरावट के चलते सोयाबीन के दाम काफी कम हो गये हैं। इसी समय किसान अपनी फसल को बेचने के लिए मंडियों में आते है।इस स्थिति को देखते हुए सरकार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क लगाने पर विचार कर रही है। इस साल अप्रैल में सरकार ने कच्चे खाद्य तेलों में आयात शुल्क को पूरी तरह समाप्त कर दिया था। साथ ही रिफाइंड खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम करके 7.5 फीसदी कर दिया था। दीपक इंटरप्राइजेज के मैनेजिंग पार्टनर गोविंद भाई का मानना है कि घरेलू दामों में जारी गिरावट को रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार कम से कम चालीस फीसदी आयात शुल्क लगाए। इसके बाद ही देश में तिलहन के किसानों को बेहतर दाम मिल सकेगें। (Business Bhaskar>)
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