हैदराबाद October 21, 2008
वैश्विक आर्थिक मंदी की मार से कृषि जिंसों का वायदा कारोबार भी अछूता नहीं रहेगा। वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन बी सी खटुआ ने ऐसी आशंका जताते हुए कहा कि इनके कारोबार में तकरीबन 50 फीसदी की कमी हो सकती है।
खटुआ ने बताया कि 2006-07 में कृषि उत्पादों का कुल कारोबार 13 लाख करोड़ रहा था पर इस साल आशंका है कि यह 6.5 लाख करोड़ तक सिमट जाएगा। खटुआ ने एक बार फिर उम्मीद जताई कि सरकार निलंबित कृषि जिंसों के कारोबार को जल्द ही दुबारा शुरू कर सकती है। इसकी वजह उन्होंने इन जिंसों की कीमतों में हुई उल्लेखनीय कमी को बताया। उन्होंने कहा कि कीमतों में कमी का ये हाल है कि अभी गेहूं की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चली गई है। गौरतलब है कि रबर, चना, सोयाबीन तेल, आलू, गेहूं, चावल, अरहर और उड़द की कीमतों में खासी बढ़ोतरी के चलते इनका वायदा कारोबार निलंबित कर दिया गया है। देश के कुल वायदा कारोबार में सर्राफा उत्पादों की हिस्सेदारी 42 और कृषि उत्पादों की 23 फीसदी की होती है। खटुआ ने कहा कि वायदा कारोबार में निजी इक्विटी फंडों को उतरने की इजाजत नहीं मिलेगी। इसकी बजाय संस्थागत निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रमुख वित्तीय संस्थाओं, बैंकों, म्युचुअल फंडों और संस्थागत निवेशकों की भागीदारी की अनुमति न होने के चलते इस समय बाजार में तरलता की कमी हो गयी है। खटुआ के मुताबिक, म्युचुअल फंड जैसे कमोडिटी फंड को अनुमति देने के लिए प्राथमिक काम पूरा हो चुका है। फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट में संशोधन होते ही इसकी अनुमति मिल जाएगी। ऊर्जा और धातु कंपनियों की शिकायत रही है कि सभी पेट्रोलियम उत्पादों के वायदा अनुबंध भारतीय बाजारों में मौजूद नहीं हैं जिसके कारण उन्हें दिक्कतें होती हैं। (BS Hindi)
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