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21 अक्टूबर 2008

मंदी की मार से कराह रहा है लौह अयस्क उद्योग

October 20, 2008
विश्व के एक तिहाई इस्पात का उत्पादन और खपत करने वाले चीन का महत्व भारतीय लौह अयस्क उत्पादकों के लिए काफी बढ़ गया है। पिछले साल का ही उदाहरण लें।
पिछले साल देश में कुल 20.7 करोड़ टन अयस्क का उत्पादन हुआ जिसमें से करीब 10 करोड़ टन का विदेशों में निर्यात किया गया। अकेले चीन ने ही करीब 8 करोड़ टन अयस्क भारत से आयात किए। इस तरह पिछले साल देश के कुल अयस्क निर्यात का करीब 80 फीसदी अकेले चीन को निर्यात किया गया।घरेलू अयस्क उत्पादकों की शिकायत है कि सरकार ने जून में बगैर स्थिति का आकलन किए हुए अयस्क के निर्यात पर पहले से चले आ रहे निश्चित लेवी की बजाय 15 फीसदी का निर्यात शुल्क थोप दिया। इससे भारत की तुलना में ऑस्ट्रेलिया का अयस्क कहीं ज्यादा सस्ता हो गया। परिणाम यह हुआ कि भारत का लौह अयस्क उद्योग चीन जैसे क्लाइंट से हाथ धो बैठा। इस्पात उत्पादकों का कहना है कि भारत सरकार निर्यात शुल्क के असर से या तो अनजान रही या इसे जानबूझकर नजरअंदाज किया। उल्लेखनीय है कि तब से चीन का अयस्क आयात भारत की तुलना में ऑस्ट्रेलिया से लगातार बढ़ रहा है।सरकार के इस फैसले का बचाव करते हुए कहा गया कि देश में महंगाई की ऊंची दर को नियंत्रित करने के लिए सरकार पर काफी दबाव था। गौरतलब है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इस्पात का भारांक काफी होता है जिससे उपभोक्ताओं का एक बड़ा तबका प्रभावित होता है। उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए जरूरी था कि इस्पात की कीमतें कम हो। और कीमतें कम करने के लिए घरेलू बाजार में अयस्क की आपूर्ति बढ़ाना जरूरी था। घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए ही सरकार ने अयस्क पर निर्यात शुल्क थोप दिया। महंगाई कम करने के लिए ही अयस्क और इस्पात के निर्यात में अड़चनें खड़ी की गयी या इसे कम लाभप्रद बनाया गया। दूसरी ओर, इस्पात के आयात को ज्यादा आसान और सस्ता बनाया गया। जून में लौह अयस्क के निर्यात पर शुल्क थोपते वक्त सरकार को बल्कि किसी को भी अंदाजा नहीं था कि अगले चार महीनों में पूरी दुनिया का आर्थिक माहौल इतनी तेजी से और इतना बदल जाएगा। फिलहाल केवल इस्पात ही नहीं बल्कि तमाम क्षेत्रों में मांग घटी है जिसके चलते उत्पादों की कीमतें नीचे की ओर लुढ़क रही हैं।लौह अयस्क पर निर्यात शुल्क लगाए जाने के खिलाफ रहे खान सचिव शांतनु कौंसुल का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल खनिज के निर्यात से होने वाली औसत आय कम हो सकती है। उन्होंने बताया कि पिछले साल अयस्क के निर्यात से औसतन 130 डॉलर प्रति टन का मुनाफा हुआ था पर अनुमान है कि इस साल मुनाफा गिरकर 80 डॉलर प्रति टन रह जाएगा।एमएमटीसी अध्यक्ष संजीव बत्रा ने बताया कि दिसंबर 2007 में प्रति टन अयस्क के निर्यात से जहां 150 डॉलर का मुनाफा हो रहा था वहीं वर्तमान में यह घटकर इसकी आधी रह गयी है। अयस्क का निर्यात सितंबर महीने में 30.7 लाख टन रहा जबकि पिछले महीने की तुलना में यह करीब 26 फीसदी कम था।हालांकि खान और इस्पात मंत्रालय के अधिकारियों की राय कुछ और है। उनका कहना है कि अयस्क के निर्यात पर लगे शुल्क के जारी रहने के बावजूद इसके निर्यात पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ने वाला। भले ही इस्पात का वैश्विक परिदृश्य कितना ही चिंताजनक क्यों न हो जाए। चिंता की बात है खान मंत्रालय के कुछ लोगों का मानना है कि इस साल लौह अयस्क का निर्यात 4 करोड़ टन से भी नीचे जा सकता है। जानकारों का मानना है कि यदि ऐसा हुआ तो इसका असर केवल निर्यातकों के बैलेंसशीट पर ही नहीं पडेग़ा। खान उद्योग में काम करने वाले मजदूरों की आर्थिक स्थिति पर इसका असर पड़ने की बात कही जा रही है। सुदूर क्षेत्रों के लोगों की आजीविका का स्रोत ये खनन गतिविधियां ही हैं जिसके गड़बड़ाने पर लोगों की हालत खराब होना तय है। (BS Hindi)

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