लखनऊ October 24, 2008
खाद की कमी की खबरों के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया है कि उन्हें पहले से ही डीएपी का भंडारण करने की कोई जरूरत नहीं है।
राज्य सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार मार्च में गन्ने की होने वाली बुआई तक डीएपी की उपलब्धता सुनिश्चित की है। इस आश्वासन के बावजूद डीएपी खाद के प्रयोग को हतोत्साहित करने का प्रदेश सरकार का अभियान अब भी जारी है। इस दिशा में रबी की बुआई से ऐन पहले सरकार ने 6.52 लाख किसानों के खेतों की मिट्टी जांच कर उन्हें बताया है कि डीएपी के इस्तेमाल के अनेक दुष्परिणाम हैं। उत्तर प्रदेश के कृषि निदेशक राजित राम वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डीएपी की कहीं कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार से बातचीत कर खाद की उपलब्धता बनाए रखने का भरोसा ले लिया गया है। वर्मा के मुताबिक, अकेले अक्टूबर माह में ही किसानों को 2.5 लाख टन डीएपी मिल जाएगी जबकि मार्च तक प्रदेश में 10.5 लाख टन डीएपी उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि डीएपी के कृत्रिम संकट का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है। कृषि निदेशक के मुताबिक, राज्य में इस साल कुल 9.5 लाख टन डीएपी की मांग है जबकि लोगों को इससे अधिक 10.5 लाख टन खाद मिल सकेगी।गौरतलब है कि डीएपी के संभावित संकट को देखते हुए किसानों ने अभी से ही इसकी जमाखोरी शुरू कर दी है। वर्मा के मुताबिक, डीएपी खाद ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक ही इस्तेमाल में लाना चाहिए। उसके बाद खाद बेकार हो जाती है। वर्मा ने बताया कि किसानों को बुआई के बाद तो डीएपी का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। गोंडा जिले के किसान और साधन सहकारी समिति के अधिकारी करण सिंह ने भी इस बात का समर्थन करते हुए बताया कि किसानों को पहले जैविक खाद को ही अपनाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर किसान लघु और सीमांत हैं जो कि उपज बढ़ाने के लिए डीएपी जैसी खादों का सहारा लेते हैं। उत्तर प्रदेश किसान नर्सरी संघ के शिवसरन ने बताया कि डीएपी खेतों में पूरी तरह घुलती नहीं है जिसके चलते हर साल किसान इसकी खपत बढ़ाते जा रहे हैं। (BS Hindi)
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