सवाल-जवाब : दोराब ई. मिस्त्री, निदेशक, गोदरेज इंटरनैशनल
बीएस संवाददाता / October 24, 2008
वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट से देश का तेल-तिलहन कारोबार भी अछूता नहीं रहा है। हाल यह है कि तिलहन की कीमतें लगातार जमीन की ओर जा रही हैं।
इस मुद्दे पर गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक और खाद्य तेल कारोबार से जुड़े दोराब ई. मिस्त्री से बिजनेस स्टैंडर्ड ने बात की। मिस्त्री ने कहा कि सरकार को किसाानों के हित में चाहिए कि वह खाद्य तेलों के आयात पर लगे शुल्क को बढ़ा दे ताकि इसकी कीमतों को और गिरने से रोका जा सके। प्रमुख अंश :तिलहन की कम कीमत का मिलों पर क्या असर पड़ने वाला है?मेरा मानना है कि पेराई का आगामी सीजन मिलों और कारोबारियों के लिए मुश्किल रहने वाला है। मिलों की ओर से मांग कमजोर है और तिलहन की कीमतें भी कम हैं। आयातित तेल के मूल्य में भी कमी देखने को मिल रही है। ऐसे में मिलों के लिए ये मुमकिन नहीं कि वह किसानों को तिलहन की ऊंची कीमत अदा कर सके। दूसरी ओर, कम कीमत पर तिलहनों की बिक्री के लिए किसान तैयार नहीं हो रहे।कीमतों में कमी के मद्देनजर सरकार को क्या कदम उठाना चाहिए?खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने और सार्वजनिक इकाइयों की ओर से किया जा रहा तेल का आयात रोकने के सिवाय सरकार के सामने कोई और विकल्प नहीं है। सरकार को यह तय करना होगा कि आयात शुल्क 10 फीसदी होगा या 30 फीसदी।आशंका है कि भारत में तिलहन की नई फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास दाम मिलेगा। ऐसे में किसानों के बीच आक्रोश पनपने का भय है। सरकार को कदम उठाने चाहिए ताकि किसानों की उम्मीदें न टूटे। रबी सीजन में तिलहन का रकबा बढ़ाने के लिए ये कदम उठाने जरूरी हैं। आने वाले दिनों में खाद्य तेलों की कीमत का क्या हाल रहेगा?खाद्य तेलों की कीमत मुख्य रूप से दुनिया की आर्थिक हालत और मांग पर निर्भर करेगी। फिलहाल इसकी मांग काफी कम है। यदि अगले महीने भर में मांग न बढ़ी तो कीमतों में कमी आना तय है। दूसरा कारक नाइमेक्स क्रूड ऑयल वायदा होगा। उम्मीद है कि केवल बायोडीजल सेक्टर से ही कच्चे तेल की ताजा मांग उभरेगी और बायोडीजल के लिए खाद्य तेलों की मांग कच्चे तेल की कीमतों पर ही निर्भर करेगी। तीसरी चीज पाम तेल का उत्पादन है। नवंबर में कच्चे पाम तेल में कमी होने की उम्मीद है और इन सब चीजों से ही तय होगा कि खाद्य तेलों की कीमतें क्या रहेगी।भारत में पाम तेल की मौजूदा तस्वीर क्या रहने वाली है?पाम तेल के कई कारोबारियों और आयातकों ने काफी बड़े पैमाने पर पाम तेल में निवेश कर लिया था। उन्हें लगता था कि इसमें निवेश सुरक्षित रहेगा पर ऐसा हुआ नहीं।इसके लिए सरकार भी दोषी है क्योंकि उसने वायदा कारोबार में निवेश का मौका प्रतिबंध के जरिए कारोबारियों से छीन लिया। ऐसे में इनके पास विकल्प के ज्यादा मौके नहीं बच गये। भारत में कारोबार और उद्योग में हमारी तरक्की सरकारी सहायता के बगैर ही हुई है। वायदा कारोबार पर प्रतिबंध के चलते कृषि जिंसों की महंगाई दर पर अंकुश लगा है, इसका अब तक कोई प्रमाण नहीं है। दूसरी ओर वायदा कारोबार नदारद रहने से डिफॉल्ट के मामले में बढ़ोतरी ही हुई है। एक अच्छे वायदा बाजार के लिए जरूरी है कि उसके साथ खिलवाड़ करने की नीति सरकार की प्राथमिकता सूची में न हो।(B S Hindi)
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