नई दिल्ली October 15, 2008
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान एवं मिल मालिक दोनों ही इन दिनों असमंजस में है। किसान को यह पता नहीं कि उन्हें किस दर से गन्ने की कीमत मिलने जा रही है, तो मिल मालिकों के सामने यह साफ नहीं है कि उन्हें गन्ने का भुगतान किस हिसाब से करना है।
उत्तर प्रदेश की अधिकतर मिलों में पेराई की तैयारी पूरी हो चुकी है और कई मिलें तो इस सप्ताह से पेराई शुरू भी करने वाली हैं, लेकिन प्रदेश सरकार ने अब तक गन्ने के सरकारी मूल्य की घोषणा नहीं की है। दिलचस्प बात यह है कि सरकार की तरफ से मिलों के लिए गन्ने का कोटा तय कर दिया गया है।उत्तर प्रदेश के मिल मालिकों ने बताया कि गन्ने का सरकारी मूल्य तय होने में अभी कम से कम एक माह और लगेगा।तब तक वे किसानों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मूल्य के हिसाब से भुगतान कर सकते हैं और प्रदेश सरकार से मूल्य तय होने पर दोनों मूल्य में जो अंतर होगा उसका भुगतान बाद में कर दिया जाएगा। किसानों का कहना है कि उन्हें कम से कम 160 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने का भुगतान मिलना चाहिए।पिछले साल प्रदेश सरकार ने 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की कीमत तय की थी, लेकिन यह मामला हाई कोर्ट से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने 115 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने का भुगतान करने का फैसला दिया। कोर्ट में मामला लंबित होने के कारण गन्ना किसानों को भुगतान में देरी हुई। इस कारण अधिकतर किसानों ने इस साल गन्ने की जगह धान की बुआई करना उचित समझा। किसान नेता के मुताबिक भुगतान दर तय होने में देरी होने से किसानों के हौसले पस्त होते हैं। मिल मालिकों के पास किसानों को भुगतान में देरी करने का आसान बहाना मिल जाता है। (BS Hindi)
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