20 अक्टूबर 2008
कॉपर में जारी रह सकती है गिरावट
वैव्श्रिक मंदी के कारण अगले साल भी कॉपर के भावों में कोई बड़ी तेजी की संभावना नहीं है। वैव्श्रिक मंदी के माहौल में खपत वाले क्षेत्रों की माग में आई कमी की वजह से दुनिया सहित भारतीय बाजारों में भी कॉपर की कीमतों में गिरावट हुई है। पिछले महज एक महीने के दौरान वैव्श्रिक और घरलू हाजिर और वायदा दोनों ही बाजारों में कॉपर के भावों में करीब 19-22 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। दरअसल घरलू मेटल बाजार अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से चलता है। आर्थिक तंगी की वजह से दुनिया भर में भवन निर्माण, बुनियादी ढांचा, इलेकट्रीकल्स और दूसर औद्योगिक क्षेत्र की विकास की रफतार में कमी आई है। जिसका असर कॉपर की मांग पर देखा जा रहा है। मांग कम होने से पिछले तीन महीनों के दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज सहित चीन में शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज और भारत में मल्टी कमोडिटी एक्सवचेंज में भी कॉपर के भाव करीब 45 फीसदी तक टूट चुकें हैं। चुकी आने वाले दिनों में खपत वाले क्षेत्रों की दशा सुधरने की उम्मीद कम है, लिहाजा कॉपर के भाव नरम रहे सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वैश्विक कॉपर उत्पादन में अमरीका की भागीदारी 41 फीसदी, यूरोप की 21 फीसदी और एशिया की 31 फीसदी है। इन सभी जगहों पर कॉपर की मांग में भारी कमी आई है। जानकारों का मानना है कि वर्ष 2009 में भी अमरीका और यूरोप में कॉपर की खपत घटेगी। एशिया में कॉपर का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक चीन है लेकिन सितंबर में कॉपर के आयात में 46 फीसदी की गिरावट देखी गई है। चीन में कॉपर की मांग में आने भी सुधार होने की संभावना नहीं है। इस साल तीन महई को लंदन मेटल एक्सचेंज में कॉपर का भाव 8990 डॉलर प्रति टन के अब तक के उज्जा स्तर पर कारोबार किया था। हालांकि पिछले सप्ताह निचले स्तरों पर मांग निकलने की वजह से लंदन में कॉपर के भाव 3.4 फीसदी बढ़कर 4880 डॉलर प्रति टन दर्ज किए गए। कोमेक्स में कॉपर के भाव दिसंबर डिलीवरी के भाव 4.5 फीसदी बढ़कर 2.1795 डॉलर प्रति पौंड हो गए। घरलू बाजार में एमसीएक्स में नवंबर का भाव करीब 243.55 रुपए किलो पर बंद हुआ। वहीं फरवरी वायदा भाव 241.70 रुपए किलो रहा। मुंम्बई में हाजिर बाजार में सप्ताहांत कॉपर के भाव 233.90 रुपए किलो पर बंद हुए। वायदा सौदों की बात करें तो इस महीने में कॉपर के वायदा भावों में 19 से 20 फीसदी की गिरावट आ गई है। हाजिर में भी पिछले तीन महीने के दौरान कॉपर 27 फीसदी तक सस्ता हो गया है। गौरतलब है कि कॉपर में यह गिरावट दीपावली सीजन के बावजूद आई है। कॉपर के भावों में ताजा गिरावट का एक कारण डॉलर का रुपए के मुकाबले मजबूत होना भी माना जा रहा है। कॉपर दुनिया की उन तीन प्रमुख धातुओं में जिसकी खपत ज्यादा होती है। कॉपर को बिजली का सबसे बढिया कंडक्टर माना जाता है। इस कारण कॉपर का उपयोग भवनों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके अलावा वाहन उद्योग और दूरसंचार क्षेत्र में भी कॉपर का उपयोग बढ़ा है। भारत में कॉपर का उपयोग बर्तनों में भी खूब किया जाता है।रियल एस्टेट और दूरसंचार क्षेत्रों कॉपर की खपत है। (Business Bhaskar)
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