मुंबई October 03, 2008
खर-पतवार के बेहतर प्रबंधन, समय पर बीजों की बुआई और मॉनसून के अनुकूल होने के परिणामस्वरूप इस साल सोयाबीन के उत्पादन में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इंदौर सिथत सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार खरीफ सीजन में सोयाबीन उत्पादन प्रति हेक्टेयर बढ़ कर 1,124 किलोग्राम हो सकता है जबकि पिछले वर्ष यह 1,070 किलोग्राम था। अनुमानित उत्पादन पिछले दो सालों में 21.25 प्रतिशत के स्थिर विकास को प्रदर्शित करता है। सोया प्रसंस्करण से जुड़े बड़े कॉर्पोरेट घरानों और औद्योगिक एसोसिएशन द्वारा किसानों को फसलों के रख-रखाव संबंधी शिक्षा उपलब्ध कराई गई थी।
अधिक उत्पादन का श्रेय सरकार, किसानों और औद्योगिक इकाइयों द्वारा फसलों के प्रशंसनीय प्रबंधन को भी जाता है। कीटों के आक्रमण को फैलने से रोकने के लिए इनने त्वरित कार्रवाई की थी।
मध्य अगस्त के दौरान सोयाबीन की शुरुआती फसल पर एक खतरनाक कीट ‘सेमी लूपर कैटरपिलर’ का आक्रमण हुआ था और यह 35,000 हेक्टेयर में फैल गया था। मध्य प्रदेश के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य महाराष्ट्र का चंदरपुर इससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ था। 4,000 से 5,000 हेक्टेयर इससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। लेकिन स्थानीय किसानों और प्रतिनिधि इकाइयों द्वारा समय पर उठाए गए कदम से इस कीट के आक्रमण को नियंत्रित किया जा सका।
शुरू में बोई गई फसल का अंकुरन अच्छा था। बहुत छारेटे क्षेत्र में कीटों के आक्रमण की खबर थी जिसे समय पर कीटनाशकों के छिड़काव के द्वारा नियंत्रित कर लिया गया था। इस प्रकार, कीटों तथा खर-पतवार प्रबंधन कुल मिला कर बढ़िया था।
नर्मदा घाटी के क्षेत्र के एक छोटे हिस्से के येलो मौजेक वायरस से प्रभावित होने की खबर आई थी। सितंबर महीने में दोबारा बारिश होने से मिट्टी को आदर्श नमी मिली जो बेहतर उत्पादकता के लिए आवश्यक होती है। कुल फसल के 30 प्रतिशत का उत्पादन महाराष्ट्र में होता है और उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश के बाद इसका स्थान आता है। मध्य प्रदेश में कुल फसल के 35 प्रतिशत का उत्पादन किया जाता है।
सोपा द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक उत्पादन में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी संभव है और यह 1,081.76 लाख टन हो सकता है तो पिछले वर्ष के 947.34 लाख टन से अधिक है। इन आकलनों के आधार पर देखा जाए तो साल 2008 में सोयाबीन का कुल उत्पादन रेकॉर्ड स्तर को छू सकता है।
सोयाबीन के कुल उत्पादन क्षेत्र में 8.76 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है जिसकी वजह संभवतः पिछले वर्ष खाद्य तेलों की कीमतों का अधिक रहना है। किसानों ने कपास और गन्ने की खेती करने की जगह तिलहन की खेती का रुख किया है। इसमें सोयाबीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इसके अतिरिक्त निर्यात बाजार में सोयाबीन की खली की बढ़ती मांगों को देखते हुए किसानों ने इस बार अधिक क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की है। इस खरीफ सीजन में 96.242 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती की गई है जबकि पिछले वर्ष यह 88.496 लाख हेक्टेयर और साल 2006 में 77.162 लाख हेक्टेयर था।
इस साल अप्रैल से अगस्त महीने के दौरान सोयाबीन की खली के निर्यात में 195.40 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 16 लाख टन रहा जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 5,40,144 टन था। तेल वर्ष (अक्टूबर से सितंबर के दौरान) 48.1 लाख टन सोयाबीन की खली का निर्यात किया गया जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 33 लाख टन था । इसमें 45.93 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें