31 मई 2010
टर्की की फसल से पहले ही जीरा पर दबाव
टर्की, सीरिया में जीर की नई फसल आने से पहले ही भारत से निर्यात मांग कम हो गई है। भारत के मुकाबले इन देशों से करीब 150 डॉलर प्रति टन कम भाव पर अग्रिम निर्यात सौदे हो रहे हैं। निर्यात मांग कम होने से स्टॉकिस्टों की खरीद में भी कमी आ गई है। हालांकि चालू सीजन में जीर का घरेलू उत्पादन पिछले साल से करीब दो लाख बोरी (प्रति बोरी 55 किलो) कम है। लेकिन निर्यात और घरेलू मांग कम होने से आगामी दिनों में इसकी मौजूदा कीमतों में चार-पांच फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। जैब्स प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरक्टर एस. शाह ने बताया कि सीरिया में नई फसल की छिटपुट आवक तो शुरू हो गई है लेकिन आवक का दबाव जून के अंत में बनेगा। उधर टर्की में भी जीर की नई फसल जुलाई में आएगी। इन देशों के निर्यातकों ने 2300 डॉलर प्रति टन की दर से अग्रिम सौदे भी करने शुरू कर दिए हैं। जबकि भारतीय जीर का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2,450 डॉलर प्रति टन (एफओबी) है। इसीलिए भारत से निर्यात मांग कम हो गई है। उन्होंने बताया कि सीरिया में जीर की नई फसल का उत्पादन करीब 30-35 हजार टन, टर्की में 15-20 हजार टन और चीन में 10-15 हजार टन होने की संभावना है। हालांकि इन देशों में उत्पादन की सही तस्वीर जून-जुलाई में ही आएगी। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त 2009-10 के पहले ख्ख् माह (अप्रैल से फरवरी) के दौरान भारत से जीर के निर्यात में 14 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान कुल निर्यात घटकर 42,500 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 49,500 टन जीर का निर्यात हुआ था। मैसर्स हनुमान प्रसाद पीयूष कुमार के प्रोपराइटर वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि जीर में मांग कमजोर होने से हाजिर में कीमतों में नरमी आई है। शनिवार को ऊंझा मंडी में जीर का भाव घटकर 11,500 से 11,600 रुपये प्रति `िंटल रह गया। चालू फसल सीजन में देश में जीर का उत्पादन पिछले साल के 28 लाख बोरी के बराबर ही बैठने की संभावना है, जो पिछले साल के मुकाबले दो लाख बोरी कम है। ऊंझा मंडी में दैनिक आवक करीब पांच हजार बोरियों की हो रही है। अभी तक मंडी में केवल तीन-चार लाख बोरी का ही स्टॉक हुआ है इसके अलावा वायदा में करीब छह-सात लाख बोरी का स्टॉक है। वायदा बाजार में स्टॉक ज्यादा है इसीलिए निवेशकों की मुनाफावसूली आने से जीर की मौजूदा कीमतों में मंदे की संभावना है। (बिज़नस बह्स्कर....आर अस राणा)
कमोडिटी ट्रैकर
निर्यात मांग कमजोर होने से ग्वार गम और ग्वार की कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। इस समय उत्पादक मंडियों में करीब 35-40 लाख बोरी ग्वार और करीब 90 हजार टन ग्वार गम का स्टॉक बचा हुआ है। यूरोप में आर्थिक संकट के कारण से ग्वार गम की निर्यात मांग घट गई है तथा चीन और अमेरिका की मांग में भी कमी आई है। अच्छी बारिश की संभावना से ग्वार चूरी और कोरमा की मांग भी कमजोर है। ऐसे में आगामी दिनों में ग्वार और ग्वार गम की मौजूदा कीमतों में मंदा आने की संभावना है। निवेशकों की मुनाफावसूली आने से पिछले चार-पांच दिनों में एनसीडीईएक्स पर ग्वार और गम की कीमतों में क्रमश: 4 और 3.7 फीसदी का मंदा आया है। एनसीडीईएक्स पर जून महीने के वायदा अनुबंध में ग्वार के दाम 26 मई को 2,408 रुपये और ग्वार गम के भाव 5,192 रुपये प्रति क्विंटल थे। शनिवार को जून महीने के वायदा अनुबंध में ग्वार के दाम घटकर 2,308 रुपये और ग्वार गम के 4,998 रुपये प्रति क्ंिटल रह गए। घरेलू बाजार में ग्वार की नई फसल की बुवाई जून-जुलाई में होगी। मौसम विभाग सामान्य मानसून की भविष्यवाणाी कर रहा है इसीलिए ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में मंदे का रुख बनना शुरू हो गया है। अप्रैल और मई में हमार यहां से करीब 50 हजार टन ग्वार गम का निर्यात हुआ है तथा इस दौरान करीब 10-12 हजार टन ग्वार गम की घरेलू खपत हुई। यूरोप में आर्थिक संकट के कारण चालू महीने में नए सौदों में कमी आई है, साथ ही अमेरिका और चीन की मांग भी पहले की तुलना में कम हुई है। जबकि घरेलू बाजार में ग्वार और ग्वार गम का स्टॉक अच्छा है। प्रमुख उत्पादक राज्यों राजस्थान और हरियाणा की मंडियों में इस समय 35-40 लाख बोरी ग्वार का स्टॉक बचा हुआ है। मिलों के पास भी ग्वार गम का स्टॉक करीब 90 हजार टन का है। अंतरराष्ट्रीय मांग में कमी को देखते हुए अक्टूबर में आने वाली नई फसल तक ग्वार गम का निर्यात घटकर 70 से 75 हजार टन ही होने की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में मंदे की उम्मीद है। एपीडा द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008-09 में देश से ग्वार उत्पादों के निर्यात में 22.4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 258,567 टन का हुआ था। जोधपुर में ग्वार के प्लांट डिलीवरी भाव घटकर 2,380 रुपये और ग्वार गम के 5,100 रुपये प्रति `िंटल रह गए। पिछले तीन-चार दिनों में इसकी कीमतों में क्रमश: 100 और 200 रुपये प्रति `िंटल का मंदा आया है। इस समय राजस्थान में मिलों में ग्वार की क्रशिंग बंद हो चुकी है। केवल हरियाणा की कुछ मिलें ही चल रही हैं। बारिश अच्छी होने से हर चार की उपलब्धता बनने के बाद चूरी और कोरमा की मांग भी कम हो जाएगी है। जिससे ग्वार और गम की कीमतों में मंदा आएगा। इस समय कोरमा का भाव 1,060 रुपये और चूरी का भाव 850 रुपये प्रति 75 किलो है।rana@businessbhaskar.netबात पते कीयूरोप में आर्थिक संकट के कारण से ग्वार गम की निर्यात मांग घट गई है तथा चीन और अमेरिका की मांग में भी कमी आई है। अच्छी बारिश की संभावना से ग्वार चूरी और कोरमा की मांग भी कमजोर है। (बिज़नस भास्कर....आर अस रना)
आसान होगा यूरिया आयात
अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते सरकार इसके आयात को डि-कैनालाइज कर सकती है। इस समय एसटीसी, एमएमटीसी और आईपीएल को यूरिया आयात की इजाजत है। डीएपी और एमओपी जैसे उर्वरकों और उनके कच्चे माल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में जो गिरावट आई है उसके चलते सरकार इन पर सब्सिडी घटा सकती है या फिर इनका उत्पादन और बिक्री करने वाली कंपनियों पर किसानों के लिए कीमतें घटाने का दबाव बढ़ा सकती है। उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक दोनों ही मोर्चो पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।इस समय देश में यूरिया का आयात 265 डॉलर की कीमत (सीआईएफ) पर किया जा सकता है। रुपये और डॉलर की मौजूदा विनिमय दर पर यह कीमत 12,455 रुपये प्रति टन बैठती है। इस पर पांच फीसदी का आयात शुल्क और बैगिंग पर दूसर खर्च जोड़ने पर आयातित कीमत करीब 14,000 रुपये प्रति टन बैठती है। जबकि इस समय देश में यूरिया की उत्पादन लागत गैस आधारित संयंत्रों में 9,000 रुपये से 11000 रुपये टन आती है। फ्यूल ऑयल व नाफ्था आधारित संयंत्रों में यूरिया की उत्पादन लागत 15,000 रुपये से 20,000 रुपये प्रति टन की आ रही है। करीब 35 लाख टन यूरिया का उत्पादन नाफ्था और फ्यूल ऑयल का इस्तेमाल करने वाली इकाइयां कर रही हैं। उक्त सूत्र का कहना है कि इस स्थिति में यूरिया के उत्पादन की बजाय इसका आयात बेहतर विकल्प है। यही वजह है कि वित्त मंत्रालय आयात को डि-कैनालाइज करने पर जोर दे रहा है। यह कदम यूरिया को पूरी तरह नियंत्रणमुक्त करने का काम भी आसान करगा। मंत्रालय का मानना है कि ऐसे में तीन सरकारी एजेंसियों के अलावा यूरिया उत्पादन करने वाली इकाइयों को भी आयात या उत्पादन का विकल्प दे देना चाहिए। इस समय यूरिया का आयात केवल सरकारी कंपनियां एमएमटीसी, एसटीसी और इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीेएल) ही कर सकती हैं।फरवरी में यूरिया की आयातित कीमत 340 डॉलर प्रति टन चल रही थी और उसके बाद से अब यह घटकर 265 डॉलर प्रति टन पर आ गई है। इसके पहले अगस्त, 2008 में इसकी आयातित कीमत 850 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। ऐसी स्थिति में इसका आयात व्यावसायिक रूप से संभव नहीं था। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान उर्वरकों पर सब्सिडी काफी बढ़ गई थी। लेकिन मौजूदा स्थिति यूरिया आयात को डि-कैनालाइज करने के लिए सही समय है। सब्सिडी कम करने में भी इससे मदद मिलेगी। उद्योग भी इस बात से सहमत है। कंपनियों का कहना है कि अपना वितरण नेटवर्क होने से हम सरकारी आयातक एजेंसियों से बेहतर स्थिति में हैं। कांप्लेक्स उर्वरकों के लिए आयातित यूरिया का उपयोग करने वाली कंपनियां भी इसका आयात कर सकेंगी। असल में सरकार ने मार्च में न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के तहत चालू साल 2010-11 के लिए जो सब्सिडी तय की थी उसके मुकाबले यूरिया और डीएपी की आयातित कीमत काफी कम रह गई है। आयातित मूल्य का जो आधार उस समय रखा गया था कीमतें उससे काफी कम हैं। उर्वरक विभाग ने 16 मार्च को यह दरें तय की थी। इसके तहत नाइट्रोजन के लिए सब्सिडी दर 23।22 रुपये किलो, फास्फोरस के लिए 26.27 रुपये किलो, पोटाश के लिए 24.48 रुपये किलो और सल्फर के लिए 1.78 रुपये किलो थी। इस आधार पर डीएपी उत्पादकों के लिए केंद्र 16,268 रुपये प्रति टन और एमओपी के लिए 14,692 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रहा है। सब्सिडी तय करते समय सरकार ने आयातित उर्वरकों की कीमत में यूरिया के लिए 310 डॉलर प्रति टन, डीएपी के लिए 500 डॉलर प्रति टन, एमओपी के लिए 370 डॉलर प्रति टन और सल्फर के लिए 190 डॉलर प्रति टन की कीमत को आधार बनाया था। यह कीमत आंक ने के लिए रुपया-डॉलर विनिमय दर 46 रुपये प्रति डॉलर रखी गई थी। इस समय यूरिया की आयातित कीमत 260 से 265 डॉलर प्रति टन, डीएपी की 465 से 470 डॉलर प्रति टन और सल्फर की आयातित कीमत 165 डॉलर प्रति टन रह गई है। उक्त अधिकारी का कहना है कि इसके चलते इन उर्वरकों पर सब्सिडी घटाने या कीमत में कटौती का पुख्ता आधार बनता है। लेकिन एनबीएस दरं पूर साल 2010-11 के लिए हैं, ऐसे में स्थिति बहुत साफ नहीं है। (बिज़नस भास्कर)
29 मई 2010
कमोडिटी- इस सप्ताह
कमोडिटी- इस सप्ताहग्लोबल मार्केटदुनिया के सबसे बड़े निर्यातक वियतनाम में इस साल सिर्फ 90 हजार काली मिर्च का उत्पादन होने की संभावना है। खराब मौसम और रोग के कारण 20 फीसदी उत्पादन घट सकता है। वहां से चालू वर्ष के पहले चार माह में 13 करोड़ डॉलर की 43 हजार टन काली मिर्च का निर्यात गिया गया। मूल्य के लिहाज से निर्यात 39।5 फीसदी और मात्रा के लिहाज से 9.6 फीसदी ज्यादा रहा।अमेरिका ने वर्ष 2009 के दौरान 65,855 टन काली मिर्च का आयात किया। जबकि वर्ष 2008 में 64,789 टन काली मिर्च का आयात किया गया था।इंडोनेशिया में चालू वर्ष के दौरान अल नीनो के प्रभाव से चालू वर्ष में काली मिर्च उत्पादन 30-35 फीसदी घट सकता है। ब्राजील में भी प्रतिकूल मौसम के कारण उत्पादन में 30 से 40 फीसदी तक की कमी आने का अनुमान है।घरेलू बाजारभारत से बीते वित्त वर्ष के दौरान काली मिर्च का निर्यात काफी कम रहा। इसके विपरीत आयात काफी ज्यादा रहा। कोच्चि पोर्ट से निर्यात 17,366 टन से घटकर 16,517 टन रह गया। दूसरी ओर काली मिर्च आयात 10,800 टन से बढ़कर 25,350 टन तक पहुंच गया।भारत में काली मिर्च का सालान औसत उपभोग करीब 40,000 टन रहता है जबकि औसत उत्पादन 55,000 टन प्रति वर्ष रहता है। दूसरी ओर दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक वियतनाम में 120,000 टन उत्पादन रहता है जबकि घरेलू खपत 3,500 टन रहती है।मौजूता सीजन में ताजा संकेतों के अनुसार भारत में उत्पादन थोड़ा बढ़कर 55,000 टन के आसपास रहने की संभावना है।भावी दिशाअगले पखवाड़े के दौरान वियतनाम में नई फसल आने की संभावना है।इंडोनेशिया और ब्राजील में स्टॉक के अनुसार काली मिर्च के मूल्य की दिशा तय होगी। इंडोनेशिया और वियतनाम से निर्यात बढ़ने का अनुमान है।देश में मानसून आगे बढ़ रहा है और अच्छा बारिश होने की संभावना है।घरेलू सप्लाई के अनुसार काली मिर्च के मूल्य को दिशा मिलेगी। श्रीलंका से काली मिर्च का आयात होने की संभावना है।मूल्य संभावनाघरेलू बाजार में काली मिर्च के वायदा बाजार में भाव 16,200 से 17700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहने की उम्मीद है। (बिज़नस भास्कर)
आम निर्यात आठ फीसदी बढ़ने की संभावना
दुनिया के सबसे बड़े आम उत्पादक देश भारत से चालू सीजन में आमों का निर्यात 8।5 फीसदी बढ़कर 90 हजार टन तक पहुंचने की संभावना है। एग्री-निर्यात प्रमोशन संगठन एपीडा के अनुसार मध्य-पूर्व से आम की मांग अच्छी निकल रही है।एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा मार्केटिंग वर्ष 2010-11 के दौरान आमों का निर्यात बढ़कर 90 हजार टन से ज्यादा हो सकता है। मध्य-पूर्वी देशों से जोरदार मांग निकल रही है। इसके बावजूद भारत से आमों का निर्यात कुल उत्पादन के मुकाबले एक फीसदी से भी कम रहेगा। देश में हर साल करीब 125 लाख टन आमों का उत्पादन होता है। पिछले साल भारत से 83 हजार टन आमों का निर्यात हुआ था। यह निर्यात मध्य-पूर्व के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन को किया गया। देश में आम का सीजन मार्च से जुलाई तक चलता है। भारत से मुख्य रूप से अलफांसो आम का निर्यात किया जाता है। इस किस्म के आम का सीजन मार्च के अंत में शुरू होता है। एपीडा दशहरी आम का निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में उगाए जाने वाले दशहरी आम की मांग बढ़ने की काफी संभावना है क्योंकि इसे ज्योग्रफीकल इंडीकेशन (जीआई) पेटेंट मिल गया है। दशहरी आम की बाजार में सप्लाई अगले सप्ताह शुरू होने की संभावना है। एपीडा उत्तर प्रदेश में निर्यातकों और बागान मालिकों के साथ बैठक करके फल की क्वालिटी सुनिश्चित करने और परिवहन और रखरखाव संबंधी समस्याएं दूर करने की कोशिश करगा। चूंकि हवाई मार्ग से निर्यात काफी खर्चीला साबित होता है, इसलिए एपीडा पिछले साल से समुद्री मार्ग से ही आमों के सुरक्षित निर्यात की कोशिश कर रहा है। इससे निर्यातकों को बेहतर मार्जिन मिल सकेगा। एपीडा परीक्षण के तौर पर अगले सप्ताह समुद्री मार्ग से 72 टन आम निर्यात करने की योजना बना रहा है। (बिसनेस भास्कर)
इस साल दूध उत्पादन बढ़ने की जगी आस
नई दिल्ली May 29, 2010
मॉनसून के बेहतर रहने और किसानों को उनकी मेहनत का बेहतर प्रतिफल मिलने से इस साल देश में दुग्ध उत्पादों और दूध का अतिरिक्त उत्पादन देखने को मिल सकता है। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, जहां 1080 लाख टन से ज्यादा दूध का उत्पादन होता है।
प्रतिदिन 18 लाख लीटर दूख का कारोबार करने वाली चेन्नई की कंपनी हटसन एग्रो के प्रबंध निदेशक आरसी चंद्रमोगन ने कहा, 'इस साल दुग्ध उत्पादन ज्यादा रहने की उम्मीद है, क्योंकि देश के किसानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं। महाराष्ट्र में पहले ही जरूरत से ज्यादा दूध का उत्पादन होने लगा है। अगले 2-3 महीनों में उत्तर भारत के राज्यों में भी दूध का उत्पादन जरूरत से ज्यादा होगा। अगर एक बार ऐसा हो जाता है तो देश को अतिरिक्त उत्पादन के उपभोग को लेकर चिंता करनी पड़ेगी।'
मौसम विभाग ने अप्रैल 2010 के अंत में अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि देश में बारिश लंबी अवधि के औसत के मुताबिक 98 प्रतिशत होने की संभावना है। पिछले साल मॉनसून सामान्य से 22 प्रतिशत कम था, जिसकी वजह से दूध की उपलब्धता में कमी आई थी।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र में दूध का उत्पादन इतना हो रहा है कि खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इसके पहले डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों द्वारा दूध इकट्ठा किए जाने के चलते कमी नजर आ रही थी और वे कीमतों में लगातार बढ़ोतरी कर रही थीं।
पिछले 2 साल के दौरान ज्यादातर राज्यों में दूध के दाम में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। उत्तरी भारत में प्रसंस्करणकर्ता भैंस का दूध किसानों से 25-26 रुपये प्रति किलो के भाव खरीद रहे हैं। कृष्णा ब्रांड केनाम से दूध की बिक्री करने वाली भोले बाबा डेयरी इंडस्ट्रीज के निदेशक जितेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'जाड़े के समय में आपूर्ति अच्छी थी और स्टॉक भी बेहतर था। इसके चलते स्किम्ड मिल्क पाउडर की कीमतों में स्थिरता बनी रही।'
चंद्रमोगन ने कहा कि अगर दूध के उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी होती है तब भी इसका प्रभाव व्यापक होगा। उन्होंने कहा, 'अगर अतिरिक्त दूध का प्रसंस्करण किया जाता है, तो तैयार उत्पादों जैसे स्किम्ड मिल्क पाउडर और मक्खन की आपूर्ति बढ़ेगी। इसका असर प्रसंस्करण इकाइयों के मुनाफे पर पड़ेगा और वे दूध के कम दाम देने को मजबूर होंगी।'
गर्मी के मौसम की मांग शुरू हो गई है, लेकिन दूध पाउडर की कीमतों में तेजी नहीं आई है। चंद्रमोगन ने कहा- आइस्क्रीम और दुग्ध आधारित पेय बनाने के लिए गर्मियों में दूध पाउडर की मांग बहुत ज्यादा होती है। इस समय कीमतें 135-140 रुपये प्रति किलो पर स्थिर बनी हुई हैं।
उद्योग जगत के अन्य जानकार भी इसका समर्थन करते हैं और उनका कहना है कि देश से 3-4 महीने बाद दूध का निर्यात करना पड़ सकता है। एक दुग्ध प्रसंस्करणकर्ता ने कहा कि हम योजना बना रहे हैं कि हमारे संगठन इंडियन डेयरी एसोसिएशन में एक प्रतिनिधिमंडल हो, जो दुग्ध उत्पादों के निर्यात की संभावनाओं की तलाश करे। अभी दूध की कीमत ज्यादा होने की वजह से हम वैश्विक रूप से कारोबार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं। (बीएस हिंदी)
मॉनसून के बेहतर रहने और किसानों को उनकी मेहनत का बेहतर प्रतिफल मिलने से इस साल देश में दुग्ध उत्पादों और दूध का अतिरिक्त उत्पादन देखने को मिल सकता है। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, जहां 1080 लाख टन से ज्यादा दूध का उत्पादन होता है।
प्रतिदिन 18 लाख लीटर दूख का कारोबार करने वाली चेन्नई की कंपनी हटसन एग्रो के प्रबंध निदेशक आरसी चंद्रमोगन ने कहा, 'इस साल दुग्ध उत्पादन ज्यादा रहने की उम्मीद है, क्योंकि देश के किसानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं। महाराष्ट्र में पहले ही जरूरत से ज्यादा दूध का उत्पादन होने लगा है। अगले 2-3 महीनों में उत्तर भारत के राज्यों में भी दूध का उत्पादन जरूरत से ज्यादा होगा। अगर एक बार ऐसा हो जाता है तो देश को अतिरिक्त उत्पादन के उपभोग को लेकर चिंता करनी पड़ेगी।'
मौसम विभाग ने अप्रैल 2010 के अंत में अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि देश में बारिश लंबी अवधि के औसत के मुताबिक 98 प्रतिशत होने की संभावना है। पिछले साल मॉनसून सामान्य से 22 प्रतिशत कम था, जिसकी वजह से दूध की उपलब्धता में कमी आई थी।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र में दूध का उत्पादन इतना हो रहा है कि खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इसके पहले डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों द्वारा दूध इकट्ठा किए जाने के चलते कमी नजर आ रही थी और वे कीमतों में लगातार बढ़ोतरी कर रही थीं।
पिछले 2 साल के दौरान ज्यादातर राज्यों में दूध के दाम में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। उत्तरी भारत में प्रसंस्करणकर्ता भैंस का दूध किसानों से 25-26 रुपये प्रति किलो के भाव खरीद रहे हैं। कृष्णा ब्रांड केनाम से दूध की बिक्री करने वाली भोले बाबा डेयरी इंडस्ट्रीज के निदेशक जितेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'जाड़े के समय में आपूर्ति अच्छी थी और स्टॉक भी बेहतर था। इसके चलते स्किम्ड मिल्क पाउडर की कीमतों में स्थिरता बनी रही।'
चंद्रमोगन ने कहा कि अगर दूध के उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी होती है तब भी इसका प्रभाव व्यापक होगा। उन्होंने कहा, 'अगर अतिरिक्त दूध का प्रसंस्करण किया जाता है, तो तैयार उत्पादों जैसे स्किम्ड मिल्क पाउडर और मक्खन की आपूर्ति बढ़ेगी। इसका असर प्रसंस्करण इकाइयों के मुनाफे पर पड़ेगा और वे दूध के कम दाम देने को मजबूर होंगी।'
गर्मी के मौसम की मांग शुरू हो गई है, लेकिन दूध पाउडर की कीमतों में तेजी नहीं आई है। चंद्रमोगन ने कहा- आइस्क्रीम और दुग्ध आधारित पेय बनाने के लिए गर्मियों में दूध पाउडर की मांग बहुत ज्यादा होती है। इस समय कीमतें 135-140 रुपये प्रति किलो पर स्थिर बनी हुई हैं।
उद्योग जगत के अन्य जानकार भी इसका समर्थन करते हैं और उनका कहना है कि देश से 3-4 महीने बाद दूध का निर्यात करना पड़ सकता है। एक दुग्ध प्रसंस्करणकर्ता ने कहा कि हम योजना बना रहे हैं कि हमारे संगठन इंडियन डेयरी एसोसिएशन में एक प्रतिनिधिमंडल हो, जो दुग्ध उत्पादों के निर्यात की संभावनाओं की तलाश करे। अभी दूध की कीमत ज्यादा होने की वजह से हम वैश्विक रूप से कारोबार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं। (बीएस हिंदी)
28 मई 2010
अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज को मिला तीन माह का समय
फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने कोटक समूह द्वारा प्रवर्तित अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज (एसीई) को नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज की मान्यता के लिए शर्ते पूरी करने के वास्ते तीन माह का और समय दिया है। एसीई अभी रीजनल एक्सचेंज के रूप में काम कर रहा है। देश में अभी चार नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज और 19 रीजनल कमोडिटी एक्सचेंज काम कर रहे हैं।एफएमसी ने पहले एसीई को एक साल का समय दिया था। 13 मई को समाप्त हुई इस अवधि में उसे नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज की मान्यता के लिए सभी आवश्यक शर्ते और बुनियादी ढांचा तैयार करना था। कमोडिटी की डीमैट ट्रेडिंग के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करने के अलावा 100 करोड़ रुपये नेटवर्थ होना आवश्यक है।एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल ने बताया कि कमीशन ने एसीई को तीन माह का समय और दिया है। इस तरह उसे अब 13 अगस्त तक सभी शर्ते पूरी करनी हैं। एसीई ने एफएमसी को नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज की मान्यता देने के लिए आवेदन किया था।कमोडिटी की डीमैट ट्रेडिंग के अलावा कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना, वर्तमान रिंग आधारित आवाज लगाकर ट्रेडिंग करने के स्थान पर ऑनलाइन स्क्रीन आधारित ट्रेडिंग और देशभर में विभिन्न कमोडिटी की डिलीवरी के लिए केंद्र बनाना मुख्य शर्ते हैं। इस बीच एफएमसी ने एसीई को चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफीसर के रूप में दिलीप भाटिया को नियुक्त करने की अनुमति दे दी है। इस समय एसीई कैस्टर सीड में कारोबार करता है। मई के पहले पखवाड़े में इस एक्सचेंज में 30 टन कैस्टर सीड का कारोबार हुआ। (बिज़नस भास्कर)
धान का एमएसपी 50 रुपये बढ़ने की संभावना
धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 50 रुपये की बढ़ोतरी होने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के एक वष्ठि अधिकारी के अनुसार खरीफ विपणन सीजन 2010-11 के लिए सामान्य धान का एमएसपी 950 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये और ए-ग्रेड धान का एमएसपी 980 रुपये से बढ़ाकर 1,030 रुपये प्रति `िंटल किया जा सकता है। कृषि सचिव पी. के. बसु ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खरीफ फसलों के एमएसपी जून महीने के मध्य में घोषित किए जा सकते हैं। इससे किसानों को फसलों की बुवाई के बार में फैसला करने में मदद मिलेगी। पिछले साल खरीफ फसलों का एमएसपी अगस्त के अंतिम पखवाड़े में घोषित किया गया था। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में मौसम अनुकूल रहा तो देश में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में देश में चावल का 893.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2008-09 के 991.8 लाख टन से कम था। पिछले साल खरीफ सीजन में मौसम प्रतिकूल होने के कारण उत्पादन में कमी आई थी। बसु ने बताया कि देश में बीज, खाद और कीटनाशक दवाओं की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में है। किसानों को इनकी कमी नहीं होने दी जाएगी। इसके अलावा सरकार 2010 में दलहन, तिलहन और धान के प्रति हैक्टेयर पैदावार में बढ़ोतरी के लिए किसानों को उच्च क्वालिटी के बीज उपलब्ध करा रही है। चालू खरीफ सीजन में अभी तक धान की बुवाई 3.14 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। इसके अलावा दलहनों की बुवाई 0.467 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि के 0.255 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। गन्ने की बुवाई भी पिछले साल के 38.38 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 42.85 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। उन्होंने कहा कि देश में खपत के मुकाबले दलहन और तिलहनों के उत्पादन में कमी के कारण ही हमें अपनी जरूरत की आवश्यकताओं के लिए भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि सरकार दलहन और तिलहनों के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है तथा अगले साल दलहनों का उत्पादन बढ़ाकर 150 लाख टन करने का लक्ष्य है। कृषि मंत्रालय जारी तीसर अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में दलहनों का उत्पादन 147.7 लाख टन होने का अनुमान है। बसु ने बताया कि पिछले दो साल से देश में चीनी के उत्पादन का अनुमान सही नहीं लग पाया था। इसीलिए सरकार इस बार फसल संबंधी आंकड़े जुटाने के लिए काफी गंभीर प्रयास कर रही है और इसके लिए राज्यों से बराबर संपर्क में है।बात पते कीखरीद सीजन के लिए बीज, खाद और कीटनाशक दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी। दलहन, तिलहन और धान की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को उच्च क्वालिटी के बीज दिए जाएंगे। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
27 मई 2010
सोने की मांग घटी
मुंबई May 26, 2010
चालू साल की पहली तिमाही में सोने की मांग में जोरदार कमी आई है। पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में 2010 की पहली तिमाही में सोने की मांग 25 प्रतिशत कम रह गई।
जनवरी-मार्च 2009 में सोने की कुल वैश्विक मांग 1017 टन से घटकर 2010 की समान तिमाही में 760.2 टन रह गई। निवेश मांग 69 प्रतिशत गिरकर 609.5 टन से 186.3 टन पर आ गई। बहरहाल इस दौरान आभूषण की मांग ने सोने की इज्जत बचा ली और इस दौरान मांग में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
बुधवार को जारी वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक मांग में गिरावट के बावजूद उम्मीद है कि 2010 में सोने की मांग बेहतर बनी रहेगी। काउंसिल ने कहा है कि सोने की मांग खासतौर पर आभूषण सेग्मेंट में है। भारत और चीन में 2010 में इसकी मांग बेहतर बनी रहेगी। इसको यूरोप और अमेरिका में निवेशकों का भी समर्थन मिलेगा, क्योंकि यूरोप में आर्थिक अस्थिरता अभी भी बरकरार है।
सोने की मांग की धारणा पर जारी डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट के मुताबिक आभूषण की मांग बने रहने के कारण भारत और चीन में सोने की मांग तेज रहेगी। 2010 की पहली तिमाही में भारत के बाजारों का प्रदर्शन सबसे बढ़िया रहा, जहां कुल उपभोक्ता मांग में 698 प्रतिशत की तेजी हुई और पिछले साल की तुलना में खपत बढ़कर 193.5 टन पर पहुंच गई।
पिछले साल भारत में सोने की मांग तुलनात्मक रूप से कम थी, क्योंकि भारतीय मुद्रा के हिसाब से सोने की खरीदारी महंगी थी। चीन में मांग तुलनात्मक रूप से कम रही और 2010 की पहली तिमाही में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 105.2 टन हो गई।
बहरहाल, डब्ल्यूजीसी ने कहा कि चालू साल की दूसरी तिमाही में मांग में सुधार आएगी। यूनान के आर्थिक संकट के भय से यूरोप में सोने के सिक्कों, बार और गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) की अच्छी खरीदारी हो रही है। इसके आंकड़े दूसरी तिमाही के आंकड़ों में नजर आएंगे। (बीएस हिंदी)
चालू साल की पहली तिमाही में सोने की मांग में जोरदार कमी आई है। पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में 2010 की पहली तिमाही में सोने की मांग 25 प्रतिशत कम रह गई।
जनवरी-मार्च 2009 में सोने की कुल वैश्विक मांग 1017 टन से घटकर 2010 की समान तिमाही में 760.2 टन रह गई। निवेश मांग 69 प्रतिशत गिरकर 609.5 टन से 186.3 टन पर आ गई। बहरहाल इस दौरान आभूषण की मांग ने सोने की इज्जत बचा ली और इस दौरान मांग में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
बुधवार को जारी वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक मांग में गिरावट के बावजूद उम्मीद है कि 2010 में सोने की मांग बेहतर बनी रहेगी। काउंसिल ने कहा है कि सोने की मांग खासतौर पर आभूषण सेग्मेंट में है। भारत और चीन में 2010 में इसकी मांग बेहतर बनी रहेगी। इसको यूरोप और अमेरिका में निवेशकों का भी समर्थन मिलेगा, क्योंकि यूरोप में आर्थिक अस्थिरता अभी भी बरकरार है।
सोने की मांग की धारणा पर जारी डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट के मुताबिक आभूषण की मांग बने रहने के कारण भारत और चीन में सोने की मांग तेज रहेगी। 2010 की पहली तिमाही में भारत के बाजारों का प्रदर्शन सबसे बढ़िया रहा, जहां कुल उपभोक्ता मांग में 698 प्रतिशत की तेजी हुई और पिछले साल की तुलना में खपत बढ़कर 193.5 टन पर पहुंच गई।
पिछले साल भारत में सोने की मांग तुलनात्मक रूप से कम थी, क्योंकि भारतीय मुद्रा के हिसाब से सोने की खरीदारी महंगी थी। चीन में मांग तुलनात्मक रूप से कम रही और 2010 की पहली तिमाही में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 105.2 टन हो गई।
बहरहाल, डब्ल्यूजीसी ने कहा कि चालू साल की दूसरी तिमाही में मांग में सुधार आएगी। यूनान के आर्थिक संकट के भय से यूरोप में सोने के सिक्कों, बार और गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) की अच्छी खरीदारी हो रही है। इसके आंकड़े दूसरी तिमाही के आंकड़ों में नजर आएंगे। (बीएस हिंदी)
देश में प्याज के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना
देश में इस साल प्याज का उत्पादन बढ़कर 95 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है। हालांकि सप्लाई बढ़ने के कारण मूल्य में ज्यादा गिरावट आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि उत्पादन लागत में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है। नेशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अतिरिक्त निदेशक सतीश भोंडे ने बताया कि चालू सीजन 2009-10 में प्याज का उत्पादन बढ़कर 95 लाख टन तक पहुंच सकता है जबकि पिछले साल 85 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। प्याज उत्पादन विकास के लिए काम करने वाले एनएचआरडीएफ के अधिकारी ने बताया कि इस साल प्याज की प्रति हैक्टेयर पैदावार प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में 13 फीसदी बढ़कर 16-17 टन तक पहुंच सकती है। पिछले साल औसतन 15 टन प्रति हैक्टेयर पैदावार रही थी। खेती की तकनीक अपनाने और बेहतर सिंचाई के कारण पैदावार में वृद्धि होने की उम्मीद है जबकि प्याज का बुवाई रकबा पिछले साल के बराबर करीब 5।5 लाख हैक्टेयर रहेगा।उन्होंने बताया कि पैदावार बढ़ने के बावजूद प्याज के दाम ज्यादा घटने की गुंजाइश नहीं है। किसान कम दामों पर बिक्री करने के बजाय स्टॉक करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं जिससे थोक दाम घटने की संभावना नहीं है। प्याज उत्पादन की लागत बढ़ने के कारण किसान कम दाम पर बिक्री नहीं कर रहे हैं। एनएचआरडीएफ के आंकड़ों के अनुसार एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी महाराष्ट्र के लासलगांव में प्याज के दाम इन दिनों करीब 6-7 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। गर्मियों की रबी सीजन वाली प्याज की कटाई करीब पूरी हो चुकी है। इस सीजन में 60 फीसदी प्याज उत्पादन होता है। रबी सीजन में 45 लाख टन उत्पादन होने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर)
निर्यात में छूट से कॉटन मूल्य रिकॉर्ड स्तर पर
कॉटन निर्यात पर लगी पाबंदी में ढील दिए जाने के कारण इसके दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। बुधवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 29,900 से 30,300 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) हो गया। सरकार ने 24 मई को अधिसूचना जारी करके कपास के निर्यातकों को निर्यात अधिकृत प्रमाण पत्र (ईएआरसी) के आधार पर पहले से पंजीकृत सौदों के शिपमेंट अनुमति दे दी है।इस छूट के बाद 11.83 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन का निर्यात होगा। इतनी बड़ी मात्रा में कॉटन के शिपमेंट की संभावना से ही कीमतों में तेजी की लहर आ गई। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि सरकार द्वारा निर्यातकों को निर्यात अधिकृत प्रमाण पत्र (ईएआरसी) के तहत पंजीकृत हो चुके सौदों के निर्यात की अनुमति दे दी गई है। इसी वजह से तेजी को बल मिल रहा है।वैसे भी घरेलू बाजार में कपास का बकाया स्टॉक पिछले साल की तुलना में कम रहेगा। उन्होंने बताया कि ईएआरसी के तहत निर्यात की अनुमति दिए जाने से 11.83 लाख गांठ के लटके निर्यात सौदों के शिपमेंट का रास्ता साफ हो गया है। सरकार ने 19 अप्रैल को कॉटन निर्यात के नए सौदों का पंजीकरण निलंबित कर दिया था। उस समय से 11.83 लाख गांठ के सौदे अटके पड़े थे क्योंकि इनका पंजीकरण तो हो गया था लेकिन शिपमेंट नहीं हो पाया था। ताजा अधिसूचना के तहत ईएआरसी के आधार पर इन सौदों का शिपमेंट किया जा सकेगा। टैक्सटाइल कमिश्नर ऑफिस इनकी शिपमेंट की अनुमति देने के लिए ईएआरसी जारी करेगा।वैसे मौजूदा सीजन के दौरान अक्टूबर से अप्रैल (रोक लगने तक) के दौरान भारत से निर्यात के लिए कुल 85.41 लाख गांठ के सौदे पंजीकृत हुए थे। इसमें से 73.58 लाख गांठ कॉटन का शिपमेंट हो गया था। पिछले साल पूर सीजन (अक्टूबर-08 से सितंबर-09) के दौरान कुल शिपमेंट मात्र 35.14 लाख गांठ की ही हुई थी। जबकि इस दौरान निर्यात सौदे 37.52 लाख गांठ के पंजीकृत हुए थे। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू सीजन में देश में कपास का उत्पादन करीब 304 लाख गांठ होने की संभावना है। देश की सालाना खपत और निर्यात को मिलाकर नई फसल के समय करीब 53 लाख गांठ का स्टॉक बचने की संभावना है जो पिछले साल के मुकाबले करीब 18 लाख गांठ कम है। कपास के ऊंचे भाव को देखते हुए चालू सीजन में कपास की बुवाई बढ़ने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
बड़े उपभोक्ताओं की चीनी स्टॉक लिमिट हटाई जाए : उद्योग
चीनी उद्योग ने कहा है कि कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, कन्फेक्शनरी निर्माताओं पर लागू स्टॉक लिमिट में दी गई छूट से चीनी की मांग में कोई इजाफा नहीं हुआ है। इस वजह से इन बड़े उपभोक्ताओं पर स्टॉक लिमिट पूरी तरह हटाई जानी चाहिए।इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डिप्टी डायरक्टर जनरल एम। एन. राव ने कहा कि इस समय भारतीय चीनी मिलों के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है क्योंकि आयातित चीनी के लिए कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं है। घरेलू चीनी पर स्टॉक लिमिट लागू होने के कारण बड़े उपभोक्ता चीनी आयात करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने बड़े उपभोक्ताओं के लिए स्टॉक लिमिट में छूट दे दी थी। वे 10 दिन के बजाय 15 दिन की खपत के बराबर चीनी स्टॉक कर सकते हैं। पिछले साल अगस्त में बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण लगाने के लिए सरकार ने बड़े उपभोक्ताओं पर स्टॉक लिमिट लगाई थी। बड़े उपभोक्ता देश की कुल खपत में 60 फीसदी से ज्यादा चीनी का उपयोग करते हैं।इस्मा और नेशनल फेडरशन ऑफ कोआपरटिव शुगर फेडरशन (एनएफसीएसएफ) ने सरकार से मांग की है कि बड़े उपभोक्ताओं पर लागू स्टॉक लिमिट पूरी तरह हटाई जानी चाहिए, जिससे चीनी के मूल्य की गिरावट रोकी जा सके। चीनी का मूल्य अपने रिकॉर्ड स्तर करीब 50 रुपये से करीब तीस फीसदी गिरकर 30-32 रुपये प्रति किलो रह गया है। चीनी का रिकॉर्ड भाव जनवरी मध्य तक रहा था। उद्योग स्टॉक लिमिट हटाने के अलावा व्हाइट शुगर के आयात पर शुल्क लगाने की भी मांग कर रहा है। फिलहाल डयूटी फ्री चीनी दिसंबर तक आयात करने की अनुमति है।तर्कस्टॉक लिमिट में छूट से नहीं बढ़ी मांगआयातित चीनी पर लिमिट न होने से नुकसान (बिज़नस भास्कर)
यूरोपीय संकट गहराने से बेसमेटल्स में तेज गिरावट
यूरोपीय देशों में आर्थिक संकट गहराने से बेसमेटल्स की मांग हल्की पड़ने की चिंता पैदा हो गई है। इसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में मेटल्स के मूल्य में भारी गिरावट दर्ज की गई। विदेशी गिरावट आने की वजह से घरलू बाजार में इन मेटल्स के दाम गिर गए।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में दो दिनों के दौरान तीन माह डिलीवरी कॉपर के दाम 6800 डॉलर से घटकर 6700 डॉलर प्रति टन, अल्यूमीनियम के दाम 2050 डॉलर से घटकर 2000 डॉलर, निकिल के दाम 21650 डॉलर से घटकर 21150 डॉलर और लेड के दाम 1820 डॉलर से घटकर 1750 डॉलर प्रति टन रह गए। वहीं घरलू बाजार में कॉपर के दाम 10 रुपये घटकर 345 रुपये, अल्यूमीनियम के दाम पांच रुपये घटकर 100 रुपये और निकिल के दाम 1150 रुपये से घटकर 1050 रुपये प्रति किलो आ गए हैं। पिछले एक माह में मेटल की कीमतों में 15 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है।दिल्ली स्थित नीलकंठ मेटल ट्रेडिंग कंपनी के मालिक दीपक अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि यूरोपीय देशों में संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में मेटल की कीमतों में कमी आई है। इस वजह से घरलू बाजार में भी कॉपर, अल्यूमीनियम, निकिल और लेड के दाम घटे हैं। उनका कहना है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में मेटल की मांग अभी भी ठीक चल रही है। जानकारों का कहना है कि यूरोपीय देशों में आर्थिक संकट के चलते चीन ने कॉपर, अल्यूमीनियम की खरीदारी कम कर दी है। अप्रैल महीने में अल्यूमीनियम के आयात में दो फीसदी और कॉपर के आयात में चार फीसदी की कमी आई। वहीं भारी स्टॉक की वजह से चीन अल्यूमीनियम का भारी मात्रा में निर्यात कर रहा है। अप्रैल के दौरान चीन से अल्यूमीनियम का निर्यात 114 फीसदी बढ़कर 92,256 टन हो गया। दिल्ली के मेटल कारोबारी सुरश चंद गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय हालात के मद्देनजर आने वाले दिनों में इसकी कीमतों और गिरावट के आसार हैं। लेकिन मुनाफावसूली के चलते कीमतों में सुधार की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। मालूम हो कि चालू वर्ष के शुरूआत से ही रियल एस्टेट और ऑटो सेक्टर में भारी मांग के चलते मेटल की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन ग्रीस के आर्थिक संकट के बाद इनकी कीमतों में तेजी थम गई।बात पते कीयूरोप संकट से मेटल सस्ता हुआ है। इससे घरलू बाजार में भी कॉपर, अल्यूमीनियम, निकिल और लेड के दाम घटे हैं। भारत में मेटल की मांग अभी भी ठीक चल रही है। (बिज़नस भास्कर.)
सोना अब 19000 को छूने के लिए बेताब
नई दिल्ली सोने का भाव अब 19,000 रुपये का शिखर छूने को बेताब है। दिल्ली सराफा बाजार में सोने की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। बुधवार को दिल्ली में इसके भाव 270 रुपये की तेजी के साथ 18,950 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस दौरान सोने के भाव 14 डॉलर की तेजी के साथ 1,215 डॉलर प्रति औंस को छू गए। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि विदेशी बाजार में तेजी आने से ही भारत में भी सोने की कीमतें बढ़ रही हैं। हालांकि, बुधवार को ऊंचे दाम पर सोने की खरीद कमजोर रही है। दिल्ली सराफा बाजार में पिछले दो दिनों में सोना 550 रुपये प्रति दस ग्राम की बढ़त हासिल कर चुका है। 24 मई को दिल्ली में सोने का भाव 18,400 रुपये प्रति दस ग्राम था जो बुधवार को बढ़कर 18,950 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस दौरान सोने में करीब 31 डॉलर की तेजी दर्ज की गई है। 24 मई को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का दाम 1184 डॉलर प्रति औंस था। (बिज़नस भास्कर)
26 मई 2010
यूरो क्षेत्र के संकट से जिंस बाजार में चौतरफा मंदी
लंदन/मुंबई May 25, 2010
तांबे सहित सभी जिंसों और औद्योगिक कीमती धातुओं में मंगलवार को तेज गिरावट देखी गई। इसकी प्रमुख वजह यूरो क्षेत्र का ऋण संकट है। यूरोप संकट ने विकास दर से संबंधित चिंताएं बढ़ा दी हैं।
कर्ज के संकट की वजह से हर क्षेत्र पर असर पड़ा। येन के मुकाबले यूरो 8.5 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। वहीं वैश्विक इक्विटी बाजार में तेज गिरावट दर्ज की गई। डॉलर के हिसाब से बैंकों की उधारी लागत बढ़ गई।
जिंस बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरक र 68 डॉलर से नीचे पहुंच गईं। तांबे में 3 प्रतिशत की गिरावट आई। प्लैटिनम और पैलेडियम की कीमतें फरवरी के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गईं। निवेशकों को भय है कि आर्थिक सुधार पर अब दबाव बढ़ गया है।
लंदन की आर्मस्ट्रांग इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के मैनेजिंग पार्टनर पैट्रिक आर्मस्ट्रांग ने कहा, 'यह सब कुछ यूरो के आसपास चल रहा है, यूरो क्षेत्र में जोखिम बढ़ा है।' उन्होंने कहा कि अब वे सोने और चांदी में पोजिशन ले रहे हैं।
यूनान और कुछ और यूरो जोन की अर्थव्यवस्थाओं के लिए 10 खरब डॉलर केराहत पैकेज का खास असर नहीं पड़ा। निवेशकों ने यूरो पर हमला जारी रखा है, जिसकी वजह से सुरक्षित समझी जा रही संपत्तियों, डॉलर, येन और सोने के दाम में तेज बढ़ोतरी जारी है।
आर्मस्ट्रांग ने अमेरिका के कोषागार पर भी चिंता जताई है। उसका कहना है कि ब्याज दरें अप्रैल 2009 के बाद से उच्चतम स्तर पर चली गई हैं। इसकी वजह से विकास को लेकर चिंता बढ़ी है। अमेरिका, दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि अगला धमाका अमेरिका में हो सकता है। अब अमेरिका ज्यादा सुरक्षित नहीं रहा, क्योंकि उसका वित्तीय घाटा 10 प्रतिशत है और 2014 तक कर्ज और जीडीपी का अनुपात उस स्तर पर पहुंच जाएगा, जिस स्तर पर इस समय यूनान है।'
भारत में भी औद्योगिक जिंसों के वायदा बाजार में मंदी का रुख रहा। वैश्विक बाजारों में कमजोर संकेतों से कारोबारियों द्वारा उठाव कम किए जाने से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में तांबा वायदा में 2.60 रुपये अथवा 0.80 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।
नवंबर सौदा 2.60 रुपये अथवा 0.80 फीसदी की गिरावट के साथ 321.70 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 22,549 लॉट के लिए कारोबार हुआ। अगस्त सौदा 2.50 रुपये अथवा 0.77 फीसदी की गिरावट के साथ 323.60 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 3,261 लाट के लिए कारोबार हुआ।
निकल वायदा का मई सौदा 13 रुपये अथवा 1.25 फीसदी की गिरावट के साथ 1,026.10 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 9,234 लॉट के लिए कारोबार हुआ। जून सौदा भी 12.20 रुपये अथवा 1.17 फीसदी की गिरावट के साथ 1,027.50 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 2,976 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
एमसीएक्स में सीसा वायदा का मई सौदा 1.15 रुपये अथवा 1.35 फीसदी की गिरावट के साथ 83.75 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 6,587 लॉट के लिए कारोबार हुआ। जून सौदा 1.05 रुपये अथवा 1.22 फीसदी की गिरावट के साथ 84.85 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 2,788 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
सोने में चमक जारी
जब निवेश के अन्य विकल्प असुरक्षित हो रहे हैं, सोने की चमक बढ़ रही है। निवेशक इसे सुरक्षा के लिहाज से स्वर्ग मान रहे हैं। कॉमर्जबैंक ने अपने ग्राहकों को लिखे एक नोट में कहा है, 'कीमतों में इस तेजी को सोने की बढ़ती मांग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है कि यह निवेशकों के लिए स्वर्ग की तरह सुरक्षित है। यूरो क्षेत्र के ऋण संकट से तेजी को और बल मिल रहा है।'
हाजिर बाजार में सोने की कीमतें 1189.30 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गईं, जो पिछले सप्ताह के 4.4 प्रतिशत की गिरावट के बाद की 1 प्रतिशत की तेजी के साथ ऊपर चल रहा है। हाल में इसकी कीमतें 1248.95 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर चली गई थीं।
वहीं कारोबारियों द्वारा अपना स्टॉक बढ़ाए जाने के कारण मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में आज सोना वायदा में 122 रुपये तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। एमसीएक्स में सोना वायदा का अक्टूबर सौदा 122 रुपये अथवा 0.67 फीसदी के सुधार के साथ 18,409 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। इसमें 560 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
इसी प्रकार इसका जून सौदा भी 144 रुपये अथवा 0.63 फीसदी की तेजी के साथ 18,279 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। इसमें 13,978 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
कच्चा तेल लुढ़का
तेल 68 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चला गया। निवेशक इसे जोखिम भरी संपत्ति मान रहे हैं, क्योंकि शेयर बाजारों में वैश्विक गिरावट है। इसकी कीमतें 8 महीने के निचले स्तर पर चली गई हैं।
अमेरिकी क्रूड 2.36 डॉलर गिरकर 67.86 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि इसके पहले के तीन सत्र में 70 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर पर था। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 2.36 डॉलर गिरकर 68.81 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं।
वैश्विक गिरावट का असर भारत में भी देखा गया। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में कच्चे तेल वायदा का सितंबर सौदा 36 रुपये अथवा 1.03 फीसदी की गिरावट के साथ 3,472 रुपये प्रति बैरल पर आ गया। इसमें 256 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
इसी प्रकार इसका जून सौदा 16 रुपये अथवा 0।48 फीसदी की गिरावट के साथ 3,283 रुपये प्रति बैरल पर आ गया। इसमें 25,966 लॉट के लिए कारोबार हुआ। (बीएस हिंदी)
तांबे सहित सभी जिंसों और औद्योगिक कीमती धातुओं में मंगलवार को तेज गिरावट देखी गई। इसकी प्रमुख वजह यूरो क्षेत्र का ऋण संकट है। यूरोप संकट ने विकास दर से संबंधित चिंताएं बढ़ा दी हैं।
कर्ज के संकट की वजह से हर क्षेत्र पर असर पड़ा। येन के मुकाबले यूरो 8.5 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। वहीं वैश्विक इक्विटी बाजार में तेज गिरावट दर्ज की गई। डॉलर के हिसाब से बैंकों की उधारी लागत बढ़ गई।
जिंस बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरक र 68 डॉलर से नीचे पहुंच गईं। तांबे में 3 प्रतिशत की गिरावट आई। प्लैटिनम और पैलेडियम की कीमतें फरवरी के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गईं। निवेशकों को भय है कि आर्थिक सुधार पर अब दबाव बढ़ गया है।
लंदन की आर्मस्ट्रांग इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के मैनेजिंग पार्टनर पैट्रिक आर्मस्ट्रांग ने कहा, 'यह सब कुछ यूरो के आसपास चल रहा है, यूरो क्षेत्र में जोखिम बढ़ा है।' उन्होंने कहा कि अब वे सोने और चांदी में पोजिशन ले रहे हैं।
यूनान और कुछ और यूरो जोन की अर्थव्यवस्थाओं के लिए 10 खरब डॉलर केराहत पैकेज का खास असर नहीं पड़ा। निवेशकों ने यूरो पर हमला जारी रखा है, जिसकी वजह से सुरक्षित समझी जा रही संपत्तियों, डॉलर, येन और सोने के दाम में तेज बढ़ोतरी जारी है।
आर्मस्ट्रांग ने अमेरिका के कोषागार पर भी चिंता जताई है। उसका कहना है कि ब्याज दरें अप्रैल 2009 के बाद से उच्चतम स्तर पर चली गई हैं। इसकी वजह से विकास को लेकर चिंता बढ़ी है। अमेरिका, दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि अगला धमाका अमेरिका में हो सकता है। अब अमेरिका ज्यादा सुरक्षित नहीं रहा, क्योंकि उसका वित्तीय घाटा 10 प्रतिशत है और 2014 तक कर्ज और जीडीपी का अनुपात उस स्तर पर पहुंच जाएगा, जिस स्तर पर इस समय यूनान है।'
भारत में भी औद्योगिक जिंसों के वायदा बाजार में मंदी का रुख रहा। वैश्विक बाजारों में कमजोर संकेतों से कारोबारियों द्वारा उठाव कम किए जाने से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में तांबा वायदा में 2.60 रुपये अथवा 0.80 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।
नवंबर सौदा 2.60 रुपये अथवा 0.80 फीसदी की गिरावट के साथ 321.70 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 22,549 लॉट के लिए कारोबार हुआ। अगस्त सौदा 2.50 रुपये अथवा 0.77 फीसदी की गिरावट के साथ 323.60 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 3,261 लाट के लिए कारोबार हुआ।
निकल वायदा का मई सौदा 13 रुपये अथवा 1.25 फीसदी की गिरावट के साथ 1,026.10 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 9,234 लॉट के लिए कारोबार हुआ। जून सौदा भी 12.20 रुपये अथवा 1.17 फीसदी की गिरावट के साथ 1,027.50 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 2,976 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
एमसीएक्स में सीसा वायदा का मई सौदा 1.15 रुपये अथवा 1.35 फीसदी की गिरावट के साथ 83.75 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 6,587 लॉट के लिए कारोबार हुआ। जून सौदा 1.05 रुपये अथवा 1.22 फीसदी की गिरावट के साथ 84.85 रुपये प्रति किलो पर आ गया। इसमें 2,788 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
सोने में चमक जारी
जब निवेश के अन्य विकल्प असुरक्षित हो रहे हैं, सोने की चमक बढ़ रही है। निवेशक इसे सुरक्षा के लिहाज से स्वर्ग मान रहे हैं। कॉमर्जबैंक ने अपने ग्राहकों को लिखे एक नोट में कहा है, 'कीमतों में इस तेजी को सोने की बढ़ती मांग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है कि यह निवेशकों के लिए स्वर्ग की तरह सुरक्षित है। यूरो क्षेत्र के ऋण संकट से तेजी को और बल मिल रहा है।'
हाजिर बाजार में सोने की कीमतें 1189.30 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गईं, जो पिछले सप्ताह के 4.4 प्रतिशत की गिरावट के बाद की 1 प्रतिशत की तेजी के साथ ऊपर चल रहा है। हाल में इसकी कीमतें 1248.95 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर चली गई थीं।
वहीं कारोबारियों द्वारा अपना स्टॉक बढ़ाए जाने के कारण मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में आज सोना वायदा में 122 रुपये तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। एमसीएक्स में सोना वायदा का अक्टूबर सौदा 122 रुपये अथवा 0.67 फीसदी के सुधार के साथ 18,409 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। इसमें 560 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
इसी प्रकार इसका जून सौदा भी 144 रुपये अथवा 0.63 फीसदी की तेजी के साथ 18,279 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। इसमें 13,978 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
कच्चा तेल लुढ़का
तेल 68 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चला गया। निवेशक इसे जोखिम भरी संपत्ति मान रहे हैं, क्योंकि शेयर बाजारों में वैश्विक गिरावट है। इसकी कीमतें 8 महीने के निचले स्तर पर चली गई हैं।
अमेरिकी क्रूड 2.36 डॉलर गिरकर 67.86 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि इसके पहले के तीन सत्र में 70 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर पर था। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 2.36 डॉलर गिरकर 68.81 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं।
वैश्विक गिरावट का असर भारत में भी देखा गया। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में कच्चे तेल वायदा का सितंबर सौदा 36 रुपये अथवा 1.03 फीसदी की गिरावट के साथ 3,472 रुपये प्रति बैरल पर आ गया। इसमें 256 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
इसी प्रकार इसका जून सौदा 16 रुपये अथवा 0।48 फीसदी की गिरावट के साथ 3,283 रुपये प्रति बैरल पर आ गया। इसमें 25,966 लॉट के लिए कारोबार हुआ। (बीएस हिंदी)
जून से टायर चढ़ेगा जेब पर
नई दिल्ली May 25, 2010
टायर एक बार फिर महंगे होने जा रहे हैं। कच्चे माल की कीमत में 27-28 फीसदी बढ़ोतरी का असर ग्राहकों पर डालते हुए टायर कंपनियां जून में टायरों के दाम 3-4 फीसदी बढ़ाएंगी। पिछले 6 महीनों में टायरों की कीमतों में यह चौथा इजाफा होगा।
जे के टायर्स के उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक रघुपति सिंघानिया ने बताया कि लागत में इजाफा होने के कारण उनकी कंपनी जून में 3-4 फीसदी दाम बढ़ा सकती है। इस महीने की शुरुआत में अपोलो टायर्स ने भी टायरों के दाम 4 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की थी।
इससे पहले टायर कंपनियों ने अप्रैल में 2-4 फीसदी दाम बढ़ाए थे। अपोलो और जे के टायर्स ने कहा कि उन्हें लागत की बराबरी करने के लिए टायरों की कीमत में 15-20 फीसदी इजाफा करना पड़ेगा लेकिन ग्राहक यह बढ़ोतरी सहन नहीं कर पाएंगे।
मार्च तिमाही में रबर के दाम में 18-20 फीसदी बढ़े, जबकि इस दौरान टायरों के दाम में कंपनियों ने 6-8 फीसदी इजाफा ही किया। लागत बढ़ने का असर कंपनियों के मुनाफा मार्जिन पर भी पड़ा। पिछली कुछ तिमाहियों में वाहनों की बिक्री बढ़ने और देसी कंपनियों द्वारा मांग पूरी नहीं कर पाने के कारण टायरों के आयात में भी तेजी आई है। (बीएस हिंदी)
टायर एक बार फिर महंगे होने जा रहे हैं। कच्चे माल की कीमत में 27-28 फीसदी बढ़ोतरी का असर ग्राहकों पर डालते हुए टायर कंपनियां जून में टायरों के दाम 3-4 फीसदी बढ़ाएंगी। पिछले 6 महीनों में टायरों की कीमतों में यह चौथा इजाफा होगा।
जे के टायर्स के उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक रघुपति सिंघानिया ने बताया कि लागत में इजाफा होने के कारण उनकी कंपनी जून में 3-4 फीसदी दाम बढ़ा सकती है। इस महीने की शुरुआत में अपोलो टायर्स ने भी टायरों के दाम 4 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की थी।
इससे पहले टायर कंपनियों ने अप्रैल में 2-4 फीसदी दाम बढ़ाए थे। अपोलो और जे के टायर्स ने कहा कि उन्हें लागत की बराबरी करने के लिए टायरों की कीमत में 15-20 फीसदी इजाफा करना पड़ेगा लेकिन ग्राहक यह बढ़ोतरी सहन नहीं कर पाएंगे।
मार्च तिमाही में रबर के दाम में 18-20 फीसदी बढ़े, जबकि इस दौरान टायरों के दाम में कंपनियों ने 6-8 फीसदी इजाफा ही किया। लागत बढ़ने का असर कंपनियों के मुनाफा मार्जिन पर भी पड़ा। पिछली कुछ तिमाहियों में वाहनों की बिक्री बढ़ने और देसी कंपनियों द्वारा मांग पूरी नहीं कर पाने के कारण टायरों के आयात में भी तेजी आई है। (बीएस हिंदी)
नए शिखर पर चमका सोना
मुंबई May 25, 2010
गिरावट के बीच सोने का जलवा रिकॉर्ड पर पहुंच गया।
निवेशकों ने इस धातु को ऐसे माहौल में निवेश के लिहाज से सबसे महफूज माना, इसलिए सोने ने भी देसी बाजार में 18,660 रुपये प्रति 10 ग्राम का रिकॉर्ड छू लिया।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का हाजिर भाव 1,189।3 डॉलर प्रति औंस पहुंच गया। पिछले महीने इसने 1,248.95 डॉलर प्रति औंस का आंकड़ा छुआ था। (बीएस हिंदी)
गिरावट के बीच सोने का जलवा रिकॉर्ड पर पहुंच गया।
निवेशकों ने इस धातु को ऐसे माहौल में निवेश के लिहाज से सबसे महफूज माना, इसलिए सोने ने भी देसी बाजार में 18,660 रुपये प्रति 10 ग्राम का रिकॉर्ड छू लिया।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का हाजिर भाव 1,189।3 डॉलर प्रति औंस पहुंच गया। पिछले महीने इसने 1,248.95 डॉलर प्रति औंस का आंकड़ा छुआ था। (बीएस हिंदी)
जिंस, रुपये का निकला तेल
मुंबई May 25, 2010
घबराहट भरे माहौल के बीच रुपये की हालत भी पतली हो गई। एशिया में दक्षिण कोरिया के वोन के बाद सबसे बुरा हालत रुपये का ही रहा।
दिन में तकरीबन 1.5 फीसदी लुढ़ककर यह 47.705 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। दिन में एक वक्त तो यह 47.745 तक गिर गया था, जो पिछले साल 5 अक्टूबर के बाद से इसका सबसे निचला स्तर था। रुपये ने इस महीने 7 फीसदी की गिरावट झेली है।
यूरो भी तकरीबन 1।5 फीसदी लुढ़ककर 1.2189 प्रति डॉलर रह गया। कच्चे तेल का भाव फरवरी के बाद से पहली बार 68 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आया। अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार में तांबा भी 3 फीसदी गिर गया और प्लेटिनम भी फरवरी के बाद से सबसे नीचे आ गया। (बीएस हिंदी)
घबराहट भरे माहौल के बीच रुपये की हालत भी पतली हो गई। एशिया में दक्षिण कोरिया के वोन के बाद सबसे बुरा हालत रुपये का ही रहा।
दिन में तकरीबन 1.5 फीसदी लुढ़ककर यह 47.705 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। दिन में एक वक्त तो यह 47.745 तक गिर गया था, जो पिछले साल 5 अक्टूबर के बाद से इसका सबसे निचला स्तर था। रुपये ने इस महीने 7 फीसदी की गिरावट झेली है।
यूरो भी तकरीबन 1।5 फीसदी लुढ़ककर 1.2189 प्रति डॉलर रह गया। कच्चे तेल का भाव फरवरी के बाद से पहली बार 68 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आया। अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार में तांबा भी 3 फीसदी गिर गया और प्लेटिनम भी फरवरी के बाद से सबसे नीचे आ गया। (बीएस हिंदी)
मध्य प्रदेश के गेहूं की घटी मांग
भोपाल May 25, 2010
मध्य प्रदेश में उत्पादित गेहूं की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गेहूं की मांग बढ़ रही है।
इस वर्ष प्रदेश के अधिकतर निजी आटा मिल मालिक और एफएमसीजी कंपनियां मध्य प्रदेश से गेहूं और आटा न खरीदकर पड़ोसी राज्यों से खरीदारी कर रही हैं। इसका कारण प्रदेश के गेहूं का अन्य राज्यों की तुलना में 100 रुपये से लेकर 300 रुपये तक महंगा होना बताया जा रहा है।
इस समय खासतौर से प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं की मांग में 50 से 60 फीसदी तेजी दर्ज की गयी है। मध्य प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1200 रुपये प्रति क्विंटल है। इसमें प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को दिया जा रहा 100 रुपये बोनस भी शामिल है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल है।
साथ ही प्रदेश में होने वाले शरबती जैसे विशेष किस्म के गेहूं के मूल्य में भी वृद्धि जारी है। ऐसे में प्रदेश के अधिकतर आटा मिल मालिकों को प्रदेश के बाहर से गेहूं खरीदना सस्ता पड़ रहा है। पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीदने पर मालिकों को माल ढुलाई के बाद भी प्रति क्विंटल 100 रुपये से 200 रुपये की बचत हो रही है।
ऐसे में मिल मालिक मध्य प्रदेश की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीद रहे हैं। प्राइवेट एफएमसीजी कंपनियों ने भी इस वर्ष प्रदेश के गेहूं की कम खरीद की है। खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के आंकड़ों के अनुसार, आईटीसी कंपनी ने पिछले वर्ष प्रदेश से 2 लाख टन गेहूं का उपार्जन किया था जबकि इस वर्ष कंपनी ने प्रदेश से गेहूं का उपार्जन केवल 60000 टन तक ही सीमित कर दिया है।
आईटीसी कंपनी गेहूं का प्रयोग कर आशीर्वाद, सनफीस्ट, किचेन ऑफ इंडिया जैसे उत्पादों का निर्माण करती है। इसके अलावा कारगिल कंपनी ने भी पिछले वर्ष के 65 हजार टन के गेहूं उपार्जन की तुलना में इस वर्ष 25 हजार टन कम गेहूं का उपार्जन किया है। कारगिल ने प्रदेश से इस वर्ष केवल 40 हजार टन गेहूं ही खरीदा है।
भारतीय खाद्य निगम के गुणवत्ता नियंत्रण प्रबंधक कमलजीत सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य सबसे पहले किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना है न कि व्यापारियों को। इसी कारण से किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जा रहा है। दूसरे राज्यों से प्रदेश में गेहूं को मंगाये जाने से रोकने के लिए सरकार ने अभी कोई विशेष नीति नहीं बना रही है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में गेहूं की लोक-1 और शरबती जैसी अधिक प्रोटीन वाली किस्म का अधिक उत्पादन होता है। इसमें से शरबती गेहूं का प्रयोग एफएमसीजी कंपनियां अधिकतर पास्ता और आटा ब्रेड बनाने के लिए करती हैं। हालाकि इस वर्ष कंपनियों ने इसकी खरीद को कम किया है।
बी. जी. फूड प्रोडेक्टस (ग्वालियर) के विक्रय प्रबंधक बलवीर सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं और आटे को भारी मात्रा में आयात करके लाया जा रहा है। मध्य प्रदेश की कुल आवश्यकता का लगभग 50 से 60 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश से पूरा किया जा रहा है।
इसका कारण मिल मालिकों को कम दाम में उत्पाद उपलब्ध हो जाना है। इसी के चलते व्यापारी और मिल मालिक प्रतिक्विंटल गेहूं पर 100 से 200 रुपये का लाभ कमा रहे हैं। इस संबंध में नीमच स्थित आदित्य एक्सट्रेक्शन के महेश तिवारी ने बताया सरकार द्वारा किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं पर बोनस दिये जाने से मांग में कमी दर्ज की गयी है।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान से सस्ते दाम पर मांग की पूर्ति की जा रही है। मध्य प्रदेश में आटे की कुल मांग की 15 से 30 फीसदी पूर्ति उत्तर प्रदेश से हो रही है। हालांकि गेहूं के मामले में ये दर दोगुनी से भी अधिक है। (बीएस हिंदी)
मध्य प्रदेश में उत्पादित गेहूं की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गेहूं की मांग बढ़ रही है।
इस वर्ष प्रदेश के अधिकतर निजी आटा मिल मालिक और एफएमसीजी कंपनियां मध्य प्रदेश से गेहूं और आटा न खरीदकर पड़ोसी राज्यों से खरीदारी कर रही हैं। इसका कारण प्रदेश के गेहूं का अन्य राज्यों की तुलना में 100 रुपये से लेकर 300 रुपये तक महंगा होना बताया जा रहा है।
इस समय खासतौर से प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं की मांग में 50 से 60 फीसदी तेजी दर्ज की गयी है। मध्य प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1200 रुपये प्रति क्विंटल है। इसमें प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को दिया जा रहा 100 रुपये बोनस भी शामिल है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल है।
साथ ही प्रदेश में होने वाले शरबती जैसे विशेष किस्म के गेहूं के मूल्य में भी वृद्धि जारी है। ऐसे में प्रदेश के अधिकतर आटा मिल मालिकों को प्रदेश के बाहर से गेहूं खरीदना सस्ता पड़ रहा है। पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीदने पर मालिकों को माल ढुलाई के बाद भी प्रति क्विंटल 100 रुपये से 200 रुपये की बचत हो रही है।
ऐसे में मिल मालिक मध्य प्रदेश की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीद रहे हैं। प्राइवेट एफएमसीजी कंपनियों ने भी इस वर्ष प्रदेश के गेहूं की कम खरीद की है। खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के आंकड़ों के अनुसार, आईटीसी कंपनी ने पिछले वर्ष प्रदेश से 2 लाख टन गेहूं का उपार्जन किया था जबकि इस वर्ष कंपनी ने प्रदेश से गेहूं का उपार्जन केवल 60000 टन तक ही सीमित कर दिया है।
आईटीसी कंपनी गेहूं का प्रयोग कर आशीर्वाद, सनफीस्ट, किचेन ऑफ इंडिया जैसे उत्पादों का निर्माण करती है। इसके अलावा कारगिल कंपनी ने भी पिछले वर्ष के 65 हजार टन के गेहूं उपार्जन की तुलना में इस वर्ष 25 हजार टन कम गेहूं का उपार्जन किया है। कारगिल ने प्रदेश से इस वर्ष केवल 40 हजार टन गेहूं ही खरीदा है।
भारतीय खाद्य निगम के गुणवत्ता नियंत्रण प्रबंधक कमलजीत सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य सबसे पहले किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना है न कि व्यापारियों को। इसी कारण से किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जा रहा है। दूसरे राज्यों से प्रदेश में गेहूं को मंगाये जाने से रोकने के लिए सरकार ने अभी कोई विशेष नीति नहीं बना रही है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में गेहूं की लोक-1 और शरबती जैसी अधिक प्रोटीन वाली किस्म का अधिक उत्पादन होता है। इसमें से शरबती गेहूं का प्रयोग एफएमसीजी कंपनियां अधिकतर पास्ता और आटा ब्रेड बनाने के लिए करती हैं। हालाकि इस वर्ष कंपनियों ने इसकी खरीद को कम किया है।
बी. जी. फूड प्रोडेक्टस (ग्वालियर) के विक्रय प्रबंधक बलवीर सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं और आटे को भारी मात्रा में आयात करके लाया जा रहा है। मध्य प्रदेश की कुल आवश्यकता का लगभग 50 से 60 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश से पूरा किया जा रहा है।
इसका कारण मिल मालिकों को कम दाम में उत्पाद उपलब्ध हो जाना है। इसी के चलते व्यापारी और मिल मालिक प्रतिक्विंटल गेहूं पर 100 से 200 रुपये का लाभ कमा रहे हैं। इस संबंध में नीमच स्थित आदित्य एक्सट्रेक्शन के महेश तिवारी ने बताया सरकार द्वारा किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं पर बोनस दिये जाने से मांग में कमी दर्ज की गयी है।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान से सस्ते दाम पर मांग की पूर्ति की जा रही है। मध्य प्रदेश में आटे की कुल मांग की 15 से 30 फीसदी पूर्ति उत्तर प्रदेश से हो रही है। हालांकि गेहूं के मामले में ये दर दोगुनी से भी अधिक है। (बीएस हिंदी)
विदेशी तेजी से 8फीसदी चढ़ी काली मिर्च
अंतरराष्ट्रीय बाजार में काली मिर्च की कीमतों में तेजी आने से पिछले एक सप्ताह में नीलामी केंद्रों पर इसके भाव में आठ फीसदी की तेजी आई है। कोच्चि में नीलामी केंद्रों पर एमजी-1 काली मिर्च के भाव बढ़कर करीब 17,300 रुपये प्रति `िंटल हो गए। वियतनाम की बिकवाली कम आने से विदेशी बाजार में काली मिर्च की कीमतों में पिछले डेढ़ महीने में करीब 100 डॉलर प्रति टन की तेजी आ चुकी है। इंडोनेशिया और ब्राजील में नई फसल की आवक जुलाई में बनेगी, तब तक इसकी कीमतों में तेजी बनी रहने की संभावना है। बंगलुरू के काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बिजनेस भास्कर को बताया कि वितयतनाम ने चालू साल के पहले चार महीनों में करीब 43,000 टन काली मिर्च की बिक्री की है। चूंकि वियतनाम में प्रतिकूल मौसम से काली मिर्च का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी घटकर 90,000 टन ही होने का अनुमान है। इसलिए वियतनाम के निर्यातकों ने बिकवाली पहले की तुलना में घटा दी है। जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले डेढ़ महीने में करीब 100 डॉलर प्रति टन की तेजी आ चुकी है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय काली मिर्च का भाव 3,950 डॉलर और वियतनाम की काली मिर्च का भाव 3,750 डॉलर प्रति टन हो गया है। उधर इंडोनेशिया और ब्राजील में काली मिर्च की नई फसल की आवक जुलाई में बनेगी तथा इन देशों के पास बकाया स्टॉक कम है। ऐसे में जून में काली मिर्च के दाम तेज ही बने रहने की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2009-10 के (अप्रैल से फरवरी) के दौरान निर्यात में 23 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान कुल निर्यात घटकर 17,760 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 23,100 टन का निर्यात हुआ था। भारत के मुकाबले वियतनाम का भाव कम होने से भारत से निर्यात कम हो रहा है। केदारनाथ संस के डायरक्टर अजय अग्रवाल ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में नीलामी केंद्रों पर एम-जी वन काली मिर्च की कीमतों में 1,300 रुपये प्रति `िंटल की तेजी आ चुकी है। घरलू बाजार में कीमतों में आई तेजी के असर से वायदा में भी दाम बढ़े हैं। एनसीडीईएक्स पर जून महीने के वायदा अनुबंध में पिछले एक सप्ताह में करीब 3।6 फीसदी की तेजी आई है। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि वायदा में निवेशकों की खरीद से कीमतों में तेजी आई है। उद्योग सूत्रों के अनुसार चालू सीजन में घरेलू पैदावार पिछले साल के 45,000 टन से घटकर 40,000 टन ही होने का अनुमान है। उधर इंटरनेशनल पिपर कम्युनिटी (आईपीसी) के ताजा अनुमान के अनुसार विश्व में काली मिर्च के उत्पादन में 9,000 टन की कमी आकर कुल उत्पादन 279,650 टन होने की संभावना है। उत्पादन में कमी आने का प्रमुख कारण प्रमुख उत्पादक देशों में मौसम प्रतिकूल होना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
चाय का उत्पादन बढ़ने से थोक मूल्य में आई कमी
चाय का उत्पादन बढ़ने के कारण इसकी थोक कीमतों में गिरावट आने लगी है। इसके कारण महंगी चाय से परशान उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद बनी है। इस माह चाय के दाम नीलामी और थोक कारोबार में सात फीसदी तक घट चुके हैं। लेकिन अभी फुटकर खासकर पैक बंद चाय के दाम अभी घटे नहीं हैं। कारोबारियों के मुताबिक आगे इसकी कीमतांे में और गिरावट आ सकती है। चाय उत्पादक इलाकों कोलकाता में इसके दाम 113 रुपये से घटकर 105 रुपये, गुवाहाटी में 110 रुपये से घटकर 100 रुपये, सिलीगुडी में 112 रुपये से घटकर 98 रुपये और कुन्नूर में 68 रुपये से घटकर 60 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। वहीं दिल्ली में असम चाय के दाम 10 से 15 रुपये घटकर 130-150 रुपये और कुन्नूर चाय के दाम 10 रुपये घटकर 70-90 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। इंडियन टी एसोसिएशन के डायरक्टर कमल वाहिदी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चाय उत्पादन बढ़ने की वजह से इसकी कीमतों में गिरावट आने लगी है। थोक में इसके दाम सात फीसदी तक घट चुके हैं। उनका कहना है कि नवंबर और दिसंबर के दौरान चाय उत्पादक इलाकों में अच्छी बारिश हुई थी। इससे चाय बागानों को खासा फायदा हुआ और चाय पत्तियों का विकास तेज हो गया। इसका असर यह रहा कि चाय का उत्पादन पहले तीन माह के दौरान करीब 15 फीसदी बढ़ गया। भारतीय चाय बोर्ड के अनुसार जनवरी-मार्च में 9.40 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ है। पिछली समान अवधि में यह आंकड़ा 8.18 करोड़ किलो पर था। दिल्ली के चाय कारोबारी राकेश तायल के अनुसार नई सप्लाई से चाय की कीमतों में कमी आई है। आने वाले दिनों में चाय की कीमतों में और नरमी के आसार हैं। कमल वाहिदी का कहना है कि देश में 60 फीसदी से अधिक चाय का उत्पादन जुलाई-सितंबर के दौरान होता है। ऐसे में आने वाले महीनों में उत्पादन और बढ़ सकता है। इससे दाम और घट सकते हैं। जानकारों के मुताबिक जुलाई के बाद चाय कंपनियां भी ब्रांडेड चाय के दाम घटा सकती हैं। मालूम हो कि पिछले साल मौसम अनुकूल न रहने के कारण सीजन के शुरूआती महीनों में चाय के उत्पादन में गिरावट आई थी जिससे इसके दाम काफी बढ़ गए थे। हालांकि बाद में उत्पादन सुधरने से कैलेंडर वर्ष 2009 के दौरान चाय उत्पादन दो फीसदी घटकर 97.90 करोड़ किलो रहा। लेकिन चाय के नीलामी भाव करीब 22 फीसदी और खुदरा बाजार में इसके दाम 30 फीसदी से अधिक बढ़ गए।बात पते कीदेश में 60फीसदी से अधिक चाय का उत्पादन जुलाई-सितंबर के दौरान होता है। ऐसे में आने वाले महीनों में उत्पादन और बढ़ सकता है। जुलाई के बाद कंपनियां भी ब्रांडेड चाय के दाम घटा सकती हैं। (बिज़नस भास्कर....)
संकट में निखरा सोना
यूरोप में कर्ज संकट गहराने से विदेशी बाजार में सोने के भाव में उथल-पुथल के बीच तेजी आ रही है। इससे घरेलू बाजार में भी इसके दाम बढ़ रहे हैं। पिछले दो माह में वायदा बाजार के मुकाबले हाजिर में निवेशकों को सोने ने ज्यादा रिटर्न दिया है। पिछले दो महीने में हाजिर बाजार में निवेशकों को 12.3 फीसदी रिटर्न मिला, जबकि इस दौरान वायदा बाजार में निवेशकों को मात्र 10.7 फीसदी रिटर्न मिला। इस तरह यूरोप संकट से सोने में पैसा लगाने वालों को फायदा हो रहा है। सोने का भाव मंगलवार को दिल्ली में बढ़कर 18,680 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। घरेलू बाजार में ब्याह-शादियों के कारण गहनों की मांग बढ़ने से भी इसकी तेजी को बल मिला। दिल्ली बुलियन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी. के. गोयल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने से ही घरेलू बाजार में सोने में तेजी आई है। एक अप्रैल को दिल्ली सराफा बाजार में सोने का भाव 16,630 रुपये प्रति दस ग्राम था जो मंगलवार को बढ़कर 18,680 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। घरेलू बाजार में ब्याह-शादियों का सीजन चल रहा है जिससे गहनों की मांग अच्छी होने से भी सोने की तेजी को बल मिल रहा है। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले दो महीने में सोने में 6.6 फीसदी की तेजी आई है। एक अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1,120 डॉलर प्रति औंस था जबकि मंगलवार को इसका भाव बढ़कर 1,195 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया।एंजिल कमोडिटी के बुलियन विशेषज्ञ अनुज गुप्ता ने बताया कि निवेशकों की मांग बढ़ने से वायदा बाजार के मुकाबले हाजिर में सोने की कीमतें ज्यादा बढ़ी हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में पहली अप्रैल को जून महीने के वायदा अनुबंध में सोने का भाव 16,428 रुपये प्रति दस ग्राम था, जबकि मंगलवार को जून महीने के वायदा अनुबंध में 18,190 रुपये प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखा गया। वायदा में इस दौरान सोने की कीमतों में 1,762 रुपये प्रति दस ग्राम की बढ़त देखी गई।वहीं, हाजिर बाजार में इस दौरान सोने में 2,050 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी दर्ज की गई। हालांकि हाजिर बाजार में ज्वेलरी खरीदने पर निवेशकों का रिटर्न कम रह सकता है क्योंकि ज्वेलरी पर मेकिंग चार्ज और अन्य खर्च भी देने पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दो महीने में चांदी में हाजिर बाजार में निवेशकों को मात्र छह फीसदी रिटर्न मिला है। चांदी का भाव पहली अप्रैल को 27,300 रुपये प्रति किलो था जो मंगलवार को बढ़कर 28,950 रुपये प्रति किलो हो गया।उधर मुंबई बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरश हुंडिया ने बताया कि चालू वर्ष के पहले चार महीनों (जनवरी से अप्रैल) के दौरान भारत में सोने के आयात में 58.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस दौरान देश में सोने का आयात बढ़कर 114.8 टन हो चुका है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में मात्र 72.3 टन सोने का ही आयात हुआ था। मुंबई बाजार में मंगलवार को सोने का भाव बढ़कर 18560 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया, जबकि चांदी का भाव 29380 रुपये प्रति किलो रहा। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
25 मई 2010
दुनिया भर में मक्का उत्पादन बढ़ने का अनुमान
इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल (आईजीसी) का अनुमान है कि अगले सीजन 2010-11 के दौरान विश्व भर में मक्का का उत्पादन बढ़कर 82।2 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। आईजीसी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, मेक्सिको और अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने की संभावना है। पिछले सीजन में 80.7 करोड़ टन मक्का का उत्पादन हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले सीजन में उत्पादन करीब 1.5 करोड़ टन बढ़ने की संभावना है। लेकिन मांग के मुकाबले सप्लाई कम ही रहने की संभावना है क्योंकि अगले सीजन में पूर विश्व में 82.6 करोड़ टन मक्का की मांग होने की उम्मीद है। पिछले साल में खपत 81.2 करोड़ टन रही थी। रिपोर्ट के अनुसार मक्का का बुवाई एरिया करीब एक फीसदी बढ़कर 15.61 करोड़ हैक्टेयर रहने का अनुमान है। कई उत्पादक देशों में मौसम अनुकूल रहने के कारण पैदावार में वृद्धि होने के आसार हैं लेकिन मांग में ज्यादा बढ़ोतरी होने से कुल सप्लाई सीमित ही रहेगी। इससे मूल्यों में तेजी बने रहने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर)
ऊंचे तापमान से कपास की बुवाई लेट
असामान्य रूप से काफी ऊंचा तापमान होने के कारण मध्य प्रदेश में कपास की बुवाई प्रभावित हो रही है। राज्य में कपास की शुरूआती बुवाई में कमी आई है। मानसून से पहले बोई जाने वाली कपास का एरिया पिछले साल के मुकाबले काफी कम है।राज्य के निमाण क्षेत्र में कपास की बुवाई अक्षय तृतीया के बाद ही शुरू हो जाती है। किंतु इस साल असामान्य रूप से काफी ऊंचे तापमान और बिजली की भारी कटौती के चलते सिंचाई न कर पाने के कारण किसानों ने अभी तक बुवाई शुरू नहीं की है। किसान तापमान घटने का इंतजार कर रहे है। तापमान घटने पर मिट्ट्ी की नमी ज्यादा समय तक बनी रहेगी। सेंधवा के किसान समर विजय सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि तापमान काफी ज्यादा है। इसके अलावा बिजली भी नहीं मिल रही है। जिसके चलते खेतों में पानी पहुंचाने में काफी परशानी हो रही है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 7-8 घंटे ही बिजली सप्लाई हो रही है। इसको देखते हुए किसानों ने बुवाई को कुछ समय के लिए टाल दिया है। वे इंतजार कर रहे है कि ताममान में कुछ गिरावट आए। निमाण क्षेत्र में तापमान भ्त्त डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। अगले कुछ दिनों में इसमें और बढ़ोतरी की संभावना व्यक्त की जा रही है। दूसरी ओर बिजली की कमी के चलते किसान खेतों में पर्याप्त पानी नहीं पहुंचा पा रहे है। डीजल पंपों से जो लोग पानी दे सकते है, उन्हें ऊंचे तामपान के कारण मिट्टी में बुवाई के योग्य नमी बनाये रखने में परशानी आ रही है। इसको देखते हुए किसानों ने अभी बुवाई शुरू नहीं की है। मध्य प्रदेश के निमाण क्षेत्र में ही कपास की पैदावार होती है। यहां के खंडवा, खरगौन, बेतिया और सेंधवा मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। इन क्षेत्र के 9म् फीसदी से ज्यादा हिस्से में बीटी कॉटन के बीजों का ही उपयोग किया जाता है। पिछले साल किसानों को मिले कपास के बेहतर दामों को देखते हुए इस साल इसके बुवाई क्षेत्रफल में करीब ख्क् फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले साल मध्य प्रदेश में म्.8त्त लाख हैक्टेयर में कपास की बुवाई हुई थी। जिसके बाद प्रदेश में कपास का उत्पादन ख्9-फ्क् लाख गांठ तक पहुंचने का अनुमान है। (बिज़नस भास्कर)
महाराष्ट्र में खरीफ फसल पर संकट के बादल
पुणे : करीब दो साल कृषि उत्पादन में कमी के बाद के बाद महाराष्ट्र सामान्य खरीफ फसल के लिए तैयार हो रहा है, लेकिन श्रमिकों की कमी ने किसानों को नई मुश्किल में डाल दिया है। कम मजदूर होने की वजह से न केवल कृषि गतिविधियों पर असर पड़ रहा है बल्कि फर्टिलाइजर का डिस्ट्रीब्यूशन भी गड़बड़ा गया है। महाराष्ट्र के कृषि सचिव नानासाहेब पाटिल ने कहा, 'आगामी खरीफ के लिए हमारे पास उर्वरकों की पर्याप्त सप्लाई है, लेकिन श्रमिकों की उपलब्धता यह तय करेगी कि राज्य के अलग-अलग कोने में इसका वितरण सही वक्त पर हो पाएगा या नहीं।' उन्होंने जोर दिया कि राज्य सरकार को श्रम संबंधी मुद्दों के निपटारे के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत होगी। शहरों में ऑर्गेनिक सब्जियां पहुंचाने वाले किसान नामदेव माली ने कहा कि उनके सामने खड़ा सबसे बड़ी दिक्कत श्रमिकों की है।
उन्होंने कहा, 'अपने कृषि उत्पादों की पैकेजिंग के लिए हमारे गांवों में खाली जमीन पड़ी है, लेकिन इसके लिए मजदूर नहीं मिल रहे। इसके उलट शहरों में मजदूर तो मिल रहे हैं, लेकिन जगह मिलनी मुश्किल है।' कृषि श्रमिकों की भारी कमी है या फिर वे काफी महंगे हैं। किसानों को ज्यादा मजदूरी का भुगतान करना पड़ता है, ऐसे में उनकी लागत बढ़ती जाती है। अप्रैल में सांगली जिले में 7500 टन फटिर्लाइजर श्रमिकों के विरोध की वजह से लौटा दिया गया था। देश में सबसे अधिक प्याज का उत्पादन करने वाले नासिक जिले में बीते दो साल के दौरान मजदूरों और कारोबारियों ने पांच बार हड़ताल की है। इन्हीं वजहों से जिले में बीते दो साल में 18 दिन ट्रेडिंग निलंबित हो चुकी है। संघार एक्सपोर्ट्स के मालिक दानिश शाह ने कहा, 'नासिक में एपीएमसी बंद होने की वजह से प्याज की सप्लाई पर असर पड़ा है, जबकि हमारे ग्रेडिंग और पैकिंग सेंटर पर प्याज की कीमतें भी प्रभावित हुई हैं।' यह कंपनी देश के सबसे बड़े प्याज निर्यातकों में से एक है। बीते दो साल में श्रमिकों की कमी सब्जियों की सप्लाई में गिरावट और उनकी ऊंची कीमतों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। मजदूरों की कमी और ऊंची दिहाड़ी की वजह से न केवल लागत बढ़ी है, बल्कि किसानों को दूसरे विकल्पों पर भी गौर करने पर मजबूर कर दिया है। माना जाता है कि नरेगा की वजह से खेती से जुड़ी मजदूरी में इजाफा हुआ है। (ई टी हिंदी)
उन्होंने कहा, 'अपने कृषि उत्पादों की पैकेजिंग के लिए हमारे गांवों में खाली जमीन पड़ी है, लेकिन इसके लिए मजदूर नहीं मिल रहे। इसके उलट शहरों में मजदूर तो मिल रहे हैं, लेकिन जगह मिलनी मुश्किल है।' कृषि श्रमिकों की भारी कमी है या फिर वे काफी महंगे हैं। किसानों को ज्यादा मजदूरी का भुगतान करना पड़ता है, ऐसे में उनकी लागत बढ़ती जाती है। अप्रैल में सांगली जिले में 7500 टन फटिर्लाइजर श्रमिकों के विरोध की वजह से लौटा दिया गया था। देश में सबसे अधिक प्याज का उत्पादन करने वाले नासिक जिले में बीते दो साल के दौरान मजदूरों और कारोबारियों ने पांच बार हड़ताल की है। इन्हीं वजहों से जिले में बीते दो साल में 18 दिन ट्रेडिंग निलंबित हो चुकी है। संघार एक्सपोर्ट्स के मालिक दानिश शाह ने कहा, 'नासिक में एपीएमसी बंद होने की वजह से प्याज की सप्लाई पर असर पड़ा है, जबकि हमारे ग्रेडिंग और पैकिंग सेंटर पर प्याज की कीमतें भी प्रभावित हुई हैं।' यह कंपनी देश के सबसे बड़े प्याज निर्यातकों में से एक है। बीते दो साल में श्रमिकों की कमी सब्जियों की सप्लाई में गिरावट और उनकी ऊंची कीमतों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। मजदूरों की कमी और ऊंची दिहाड़ी की वजह से न केवल लागत बढ़ी है, बल्कि किसानों को दूसरे विकल्पों पर भी गौर करने पर मजबूर कर दिया है। माना जाता है कि नरेगा की वजह से खेती से जुड़ी मजदूरी में इजाफा हुआ है। (ई टी हिंदी)
केंद्र-राज्य कर शक्ति : संतुलन की राह पर
May 24, 2010
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अप्रैल 2011 से लागू करने के अपने वादे को पूरा करने में सरकार के सामने राज्य की वित्तीय स्वायत्तता और संतुलन एक चुनौती बनी हुई है जिसे सरकार पूरी कोशिशों के साथ दूर करने में लगी हुई है।
प्रस्तावित जीएसटी का मुख्य बिंदु केंद्र और राज्यों के करों के बीच मौजूदा असंतुलन को दूर करना और एक समान बाजार विकसित करना है। संसद में वित्त मंत्री के एक हालिया वक्तव्य में कहा गया है कि जीएसटी लागू होने के शुरुआती वर्षों में केंद्र राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई करने का इच्छुक है।
केंद्र सरकार समान सीमा रेखा, समान छूट सूची और विचलन रोकने के लिए समान व्यवस्था के लिए राजी है। इससे संतुलित जीएसटी व्यवस्था को लेकर केंद्र की इच्छाशक्ति नजर आती है। हालांकि, राज्यों को लगता है कि यह ताल-मेल उनके कर अधिकारों के लिए बाधक है और वे अपने सामाजिक और आर्थिक नीतिगत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ हद तक नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं।
जीएसटी को लागू करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की जरूरत है और सरकार इस मसले को हल करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। इस संबंध में तेरहवें वित्त आयोग (टीएफसी) ने संविधान के पहले के अनुच्छेद 278 के समान राज्यों और केंद्र के बीच एक कर समझौते के आधार पर जीएसटी मॉडल तैयार करने की संभावना का सुझाव दिया है।
कर लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र के कानून बनाने की शक्ति इस समझौते की शर्तों की विषय वस्तु होगी। विकल्प के तौर पर, चौथी सूची लाने के लिए संविधान में संशोधन पर विचार किया जा रहा है जो केंद्र और राज्यों को जीएसटी लगाने और वसूल करने की समान शक्ति देगा।
इन दोनों विकल्पों के साथ जो मुख्य समस्या है वह यह है कि दोनों में अप्रत्यक्ष कर लेने के राज्यों के अधिकार सीमित होंगे। मतभेदों को दूर करने और एक राय बनाने का एक तरीका संतुलित जीएसटी लाना हो सकता है जिसमें राज्यों को कुछ पूरक कर लगाने की इजाजत हो।
मसलन, तंबाकू, पेट्रोलियम या किसी भी दूसरे उत्पाद पर पूरक उत्पाद कर लगाने का अधिकार है ताकि सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। टीएफसी की ओर से प्रस्तावित संवैधनिक इकाई वित्त मंत्रियों की समिति जीएसटी की शुरुआती संरचना में किसी भी तरह के बदलाव का निर्णय लेने के लिए उत्तरदायी होगी।
साथ ही अगर राज्य कोई पूरक कर लगाना चाहता है, तो इसका मूल्यांकन करना भी इस समिति की जिम्मेदारी होगी। पूरक कर के मूल्यांकन की शर्त या तो भारतीय बाजार के लिए कर की उपयुक्तता या फिर जीएसटी की संरचना पर कोई समानांतर असर होगी। कनाडा में कर वसूली के संबंध में केंद्र-राज्य समझौते में इस व्यवस्था को शामिल किया गया है और इसने अच्छे से काम भी किया है।
बिना किसी चूक की जीएसटी व्यवस्था मे किसी कसर की उम्मीद नहीं है। हालांकि, अगर पूरक कर लगाने का अधिकार राज्यों को आवश्यक राहत देता है और हितों के बीच का नाजुक संतुलन हासिल करता है, तो इससे मिलने वाला आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण होगा और आदर्श संरचना में सुधार होगा। (बीएस हिंदी)
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अप्रैल 2011 से लागू करने के अपने वादे को पूरा करने में सरकार के सामने राज्य की वित्तीय स्वायत्तता और संतुलन एक चुनौती बनी हुई है जिसे सरकार पूरी कोशिशों के साथ दूर करने में लगी हुई है।
प्रस्तावित जीएसटी का मुख्य बिंदु केंद्र और राज्यों के करों के बीच मौजूदा असंतुलन को दूर करना और एक समान बाजार विकसित करना है। संसद में वित्त मंत्री के एक हालिया वक्तव्य में कहा गया है कि जीएसटी लागू होने के शुरुआती वर्षों में केंद्र राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई करने का इच्छुक है।
केंद्र सरकार समान सीमा रेखा, समान छूट सूची और विचलन रोकने के लिए समान व्यवस्था के लिए राजी है। इससे संतुलित जीएसटी व्यवस्था को लेकर केंद्र की इच्छाशक्ति नजर आती है। हालांकि, राज्यों को लगता है कि यह ताल-मेल उनके कर अधिकारों के लिए बाधक है और वे अपने सामाजिक और आर्थिक नीतिगत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ हद तक नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं।
जीएसटी को लागू करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की जरूरत है और सरकार इस मसले को हल करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। इस संबंध में तेरहवें वित्त आयोग (टीएफसी) ने संविधान के पहले के अनुच्छेद 278 के समान राज्यों और केंद्र के बीच एक कर समझौते के आधार पर जीएसटी मॉडल तैयार करने की संभावना का सुझाव दिया है।
कर लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र के कानून बनाने की शक्ति इस समझौते की शर्तों की विषय वस्तु होगी। विकल्प के तौर पर, चौथी सूची लाने के लिए संविधान में संशोधन पर विचार किया जा रहा है जो केंद्र और राज्यों को जीएसटी लगाने और वसूल करने की समान शक्ति देगा।
इन दोनों विकल्पों के साथ जो मुख्य समस्या है वह यह है कि दोनों में अप्रत्यक्ष कर लेने के राज्यों के अधिकार सीमित होंगे। मतभेदों को दूर करने और एक राय बनाने का एक तरीका संतुलित जीएसटी लाना हो सकता है जिसमें राज्यों को कुछ पूरक कर लगाने की इजाजत हो।
मसलन, तंबाकू, पेट्रोलियम या किसी भी दूसरे उत्पाद पर पूरक उत्पाद कर लगाने का अधिकार है ताकि सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। टीएफसी की ओर से प्रस्तावित संवैधनिक इकाई वित्त मंत्रियों की समिति जीएसटी की शुरुआती संरचना में किसी भी तरह के बदलाव का निर्णय लेने के लिए उत्तरदायी होगी।
साथ ही अगर राज्य कोई पूरक कर लगाना चाहता है, तो इसका मूल्यांकन करना भी इस समिति की जिम्मेदारी होगी। पूरक कर के मूल्यांकन की शर्त या तो भारतीय बाजार के लिए कर की उपयुक्तता या फिर जीएसटी की संरचना पर कोई समानांतर असर होगी। कनाडा में कर वसूली के संबंध में केंद्र-राज्य समझौते में इस व्यवस्था को शामिल किया गया है और इसने अच्छे से काम भी किया है।
बिना किसी चूक की जीएसटी व्यवस्था मे किसी कसर की उम्मीद नहीं है। हालांकि, अगर पूरक कर लगाने का अधिकार राज्यों को आवश्यक राहत देता है और हितों के बीच का नाजुक संतुलन हासिल करता है, तो इससे मिलने वाला आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण होगा और आदर्श संरचना में सुधार होगा। (बीएस हिंदी)
खरीफ में घट सकती है तिलहन की बुआई
मुंबई May 24, 2010
भारत में बड़ी मात्रा में तिलहन अभी पेराई के लिए बचा है। साथ ही तिलहन और खाद्य तेल की कीमतें भी घट रही हैं। इसकी वजह से किसान खरीफ सत्र में तिलहन की बुआई से मुंह मोड़ सकते हैं।
कैपिटल लाइन के एक अध्ययन के मुताबिक अभी भी पेराई के लिए 145 लाख टन तिलहन पड़ा हुआ है। इसके अलावा राइस ब्रान भी बड़ी मात्रा में है। अगर स्थानीय बीज के प्रसंस्करण को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो खरीफ सत्र में तिलहन की बुआई पर असर पड़ सकता है।
इसके लिए वनस्पति तेल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी करनी होगी या 4 साल के लिए बेस रेट तय करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो अग्रिम स्टॉक खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के आंकड़ों के मुताबिक 1 मई 2010 को खाद्य तेल का स्टॉक विभिन्न बंदरगाहों पर अनुमानित रूप से 575,000 टन है।
इसमें क्रूड पाम ऑयल 355,000 टन, आरबीडी पामोलीन 90,000 टन, सोयाबीन तेल 65,000 टन और सूरजमुखी तेल 65,000 टन है। इसके अलावा 6,50,000 टन के सौदे और हुए हैं। इस तरह से 1 मई 2010 को कुल स्टॉक 1,225,000 टन के करीब होगा, जो देश के 1 माह की जरूरतों के बराबर है।
इसके साथ ही सोयाबीन की कीमतें मई 2009 के 26,000 रुपये प्रति टन से गिरकर इस समय 18,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई हैं। साथ ही तिल के तेल की कीमतें 62,000 रुपये प्रति टन से गिरकर 51,000 रुपये प्रति टन पर आ गई हैं।
एसईए के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा- तिलहन की कीमतें इस समय बहुत कम हैं और पेराई के लिए बहुत ज्यादा स्टॉक है। इसके परिणामस्वरूप अगर किसानों के पास कोई दूसरा विकल्प होगा तो वे तिलहन की बुआई नहीं करेंगे, वे कपास या किसी अन्य फसल की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े पाम आयल उत्पादक देश मलेशिया में उत्पादन का कमजोर मौसम खत्म हो चुका है, जिसकी वजह से कीमतें गिर रही हैं। इसके साथ ही उम्मीद है कि ब्राजील, अमेरिका और अर्जेंटीना में सोयाबीन की फसल बेहतर होगी, जो इसके बड़े उत्पादक देश हैं। इसका कीमतों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि चीन और भारत में मांग कम है।
कैपिटल लाइंस के विश्लेषण में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों के वायदा कारोबार में 18 प्रतिशत की गिरावट मई महीने के कारोबार में आई है। वहीं रिफाइंड ब्लीच्ड ऐंड डियोडोराइज्ड (आरबीडी) पाम ऑयल की कीमतें भी अप्रैल में गिरी हैं। सोयाबीन तेल में भी गिरावट बहुत ज्यादा रही है।
आरबीडी पाम ऑयल की कीमतें 5.11 प्रतिशत गिरकर अप्रैल 2010 में 391.96 रुपये प्रति 10 किलो रह गईं, जबकि अप्रैल 2009 में इसकी कीमतें 413.08 रुपये प्रति 10 किलो थीं।
ज्यादा स्टॉक और कीमतों में गिरावट का पड़ेगा असर
कैपिटल लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी घरेलू बाजार में पेराई के लिए पड़ा है 145 लाख टन तिलहनपिछले एक साल से तेल की कीमतों में लगातार हो रही है गिरावटज्यादा उत्पादन के चलते वैश्विक बाजार में नरमी (बीएस हिंदी)
भारत में बड़ी मात्रा में तिलहन अभी पेराई के लिए बचा है। साथ ही तिलहन और खाद्य तेल की कीमतें भी घट रही हैं। इसकी वजह से किसान खरीफ सत्र में तिलहन की बुआई से मुंह मोड़ सकते हैं।
कैपिटल लाइन के एक अध्ययन के मुताबिक अभी भी पेराई के लिए 145 लाख टन तिलहन पड़ा हुआ है। इसके अलावा राइस ब्रान भी बड़ी मात्रा में है। अगर स्थानीय बीज के प्रसंस्करण को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो खरीफ सत्र में तिलहन की बुआई पर असर पड़ सकता है।
इसके लिए वनस्पति तेल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी करनी होगी या 4 साल के लिए बेस रेट तय करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो अग्रिम स्टॉक खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के आंकड़ों के मुताबिक 1 मई 2010 को खाद्य तेल का स्टॉक विभिन्न बंदरगाहों पर अनुमानित रूप से 575,000 टन है।
इसमें क्रूड पाम ऑयल 355,000 टन, आरबीडी पामोलीन 90,000 टन, सोयाबीन तेल 65,000 टन और सूरजमुखी तेल 65,000 टन है। इसके अलावा 6,50,000 टन के सौदे और हुए हैं। इस तरह से 1 मई 2010 को कुल स्टॉक 1,225,000 टन के करीब होगा, जो देश के 1 माह की जरूरतों के बराबर है।
इसके साथ ही सोयाबीन की कीमतें मई 2009 के 26,000 रुपये प्रति टन से गिरकर इस समय 18,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई हैं। साथ ही तिल के तेल की कीमतें 62,000 रुपये प्रति टन से गिरकर 51,000 रुपये प्रति टन पर आ गई हैं।
एसईए के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा- तिलहन की कीमतें इस समय बहुत कम हैं और पेराई के लिए बहुत ज्यादा स्टॉक है। इसके परिणामस्वरूप अगर किसानों के पास कोई दूसरा विकल्प होगा तो वे तिलहन की बुआई नहीं करेंगे, वे कपास या किसी अन्य फसल की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े पाम आयल उत्पादक देश मलेशिया में उत्पादन का कमजोर मौसम खत्म हो चुका है, जिसकी वजह से कीमतें गिर रही हैं। इसके साथ ही उम्मीद है कि ब्राजील, अमेरिका और अर्जेंटीना में सोयाबीन की फसल बेहतर होगी, जो इसके बड़े उत्पादक देश हैं। इसका कीमतों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि चीन और भारत में मांग कम है।
कैपिटल लाइंस के विश्लेषण में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों के वायदा कारोबार में 18 प्रतिशत की गिरावट मई महीने के कारोबार में आई है। वहीं रिफाइंड ब्लीच्ड ऐंड डियोडोराइज्ड (आरबीडी) पाम ऑयल की कीमतें भी अप्रैल में गिरी हैं। सोयाबीन तेल में भी गिरावट बहुत ज्यादा रही है।
आरबीडी पाम ऑयल की कीमतें 5.11 प्रतिशत गिरकर अप्रैल 2010 में 391.96 रुपये प्रति 10 किलो रह गईं, जबकि अप्रैल 2009 में इसकी कीमतें 413.08 रुपये प्रति 10 किलो थीं।
ज्यादा स्टॉक और कीमतों में गिरावट का पड़ेगा असर
कैपिटल लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी घरेलू बाजार में पेराई के लिए पड़ा है 145 लाख टन तिलहनपिछले एक साल से तेल की कीमतों में लगातार हो रही है गिरावटज्यादा उत्पादन के चलते वैश्विक बाजार में नरमी (बीएस हिंदी)
24 मई 2010
सस्ता माल बेचने वालों का है नया दौर
नई दिल्ली : पिछले एक साल में दुनिया भर के बड़े कमोडिटी डीलरों के कारोबार पर तगड़ा झटका लगा है। ये कारोबारी कमोडिटी को प्रोसेस और रिफाइंड कर दुनिया भर के बाजारों में बेचते थे। ये कंपनियां पैकिंग और दूसरे वैल्यू एडिशन के बदले ग्राहकों से अच्छी कीमत वसूलती थीं। हालांकि पिछले साल से ग्राहक कंपनियों पर भारी पड़ रहे हैं। एक वक्त तक इन कंपनियों को रोकने वाला कोई नहीं था। हालांकि चीन और भारत में इनकी पुरानी रणनीति काम नहीं आई। दरअसल, भारत और चीन को कमोडिटी रॉ फॉर्म में चाहिए। वे इनमें वैल्यू एडिशन नहीं चाहते। सॉफ्ट कमोडिटी मैन्युफैक्चरिंग में इस्तेमाल की जा रही है। हार्ड कमोडिटी (मिनरल और मेटल) और एनर्जी की मांग चीन और भारत में शहरों, फैक्ट्री और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ ही बढ़ रही है। चीन इस वक्त दुनिया का करीब आधा आयरन ओर खरीदता है। साथ ही यह मेटल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है। इसके अलावा यह दुनिया के कुल सोयाबीन का 40 फीसदी और आधा पोर्क का इस्तेमाल करता है। भारत पाम ऑयल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। बल्क और जैसा है वैसा ही यह ग्राहकों का नया मंत्र है। और ग्राहक हमेशा सही होते हैं। खासतौर पर ऐसे वक्त जब दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी इन दोनों देशों में रह रही हो। भारत और चीन जैसे बाजारों में इन कंपनियों को बड़ा बाजार तो दिख रहा है, लेकिन यहां महंगे वैल्यू एडेड प्रोडक्ट बेचना आसान नहीं है। ऐसी कंपनियां जो अब तक अमीर देशों के ग्राहकों को तकनीक और लग्जरी सामान बेच रही थीं, उनके लिए भारत और चीन जैसे बाजारों में यह काम चुनौती भरा बन गया है। इन कंपनियों के सामने समस्या आ गई है कि या तो वे 5,000 डॉलर सालाना से नीचे गुजर-बसर करने वाले 45 करोड़ परिवारों के बड़े बाजार की सस्ते उत्पादों की मांग को पूरा करें या अपने धंधे को इन देशों से समेट लें। हमारे जैसे लोग इस तरह के महंगे उत्पाद नहीं चाहते हैं। हम ऐसे उत्पाद और सेवाएं चाहते हैं, जो सस्ती हों। हम कई चीजों का स्वाद पहली बार चख रहे होते हैं, ऐसे में हम इनका केवल इस्तेमाल कर देखना चाहते हैं। साथ ही हम ऐसे उत्पाद चाहते हैं जो कि कठिन परिस्थितियों में भी लंबे वक्त तक सही-सलामत बने रहें। हम शुद्धता, प्रदूषण और स्वास्थ्य मानकों की ज्यादा परवाह नहीं करते, जिनका सीधा मतलब उत्पाद के महंगे होने से है। हालांकि हम बेहतरीन डिजाइन की गई चीजों को इस्तेमाल करना चाहते हैं। अच्छा दिखना अब केवल अमीरों का शौक नहीं रह गया है। ऐसे ब्रांड जो सस्ते, आसान और टिकाऊ हैं, उनके लिए हमारे जैसे करोड़ों ग्राहक बांहें खोलकर खड़े हैं। पिछले साल, दुनिया की करीब एक चौथाई मध्यवर्गीय आबादी एशिया प्रशांत देशों में थी। 20 साल में यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी हो जाएगा। मोबाइल फोन, घर, कार और पिज्जा से लेकर कुकिंग तेल, होटल, जूते और चॉकलेट हमें सब कुछ चाहिए, मगर वह सस्ता होना चाहिए। ऐसे ब्रांड जो कि यह सोचते हैं कि वे अब भी अमेरिका या यूरोप या जापान में माल बेच रहे हैं, उन्हें अपनी इस आदत की महंगी कीमत चुकानी पड़ रही है। भारत में ही ऐसे ब्रांड जो अब तक केवल अमीर वर्ग को लक्ष्य बनाकर चल रहे थे, उन्होंने भी अब दूसरे वर्गों के लिहाज से खुद को ढालना शुरू कर दिया है। ऐसा करना इन कंपनियों के लिए कठिन है क्योंकि कच्चे माल की लागत बढ़ रही है लेकिन इन्हें कीमतों को कम रखना है। ब्रांड नाम इन ग्राहकों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे अहम बात यह है कि अगर आप चीन या भारत की आबादी को सामान बेचने की कला सीख जाते हैं तो आप दूसरी किसी भी जगह ज्यादा माल बेच पाने में खुद को समर्थ पाएंगे। विकसित देशों की मंदी की शिकार आबादी भी खरीदारी के अब पुराने ढर्रे पर लौट रही है। नया स्टेटस सिंबल अब सरलता से और वास्तविकता से रूबरू होकर जीने का है। साथ ही गरीबी का मतलब है समझदारी और स्थायित्व भरा जीवनयापन। पिछले 18 महीने में ग्लोबल कारोबार में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। एक तो मांग में बदलाव आया है। साथ ही मांग के तरीके में भी बदलाव आया है। विकसित देशों में मांग घटी है जबकि उभरते हुए देशों में मांग तेजी से बढ़ी है। साथ ही खरीदारों का एक नया वर्ग भी तेजी से उभर कर सामने आया है। (ई टी हिंदी)
चीनी सेक्टर पर सरकारी नियंत्रण खत्म करने की मांग
नई दिल्ली : चीनी उत्पादन से जुड़े संशोधित अनुमान में इस साल और अगले वर्ष प्रोडक्शन ज्यादा रहने की उम्मीद जताई गई है, जिसके बाद कमोडिटी के दामों में गिरावट आनी शुरू हो गई है और चीनी उद्योग नियंत्रण खत्म करने को लेकर आक्रामक कोशिश कर रहा है। हालांकि, उद्योग बाजार से जुड़ी प्राइसिंग और नियंत्रण को पूरी तरह खत्म करना चाहता है, लेकिन उसने सरकार से चीनी मिलों के बीच गन्ने के खेतों में 15 किलोमीटर के फासले से जुड़ी प्रक्रिया जारी रखने को कहा है, ताकि आंतरिक तौर पर उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना न करना पड़े। नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) और इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए), दोनों ने फरवरी के बाद खाद्य मंत्रालय को सुझाव दिया था कि यह सेक्टरवार डीकंट्रोल पर आगे कदम बढ़ाने और उद्योग पर लगी तमाम तरह की पाबंदियां हटाने का माकूल वक्त है। उस वक्त चीनी के दाम 50 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर से टूटकर 35 रुपए प्रति किलोग्राम पर आ गए थे। मामले की जानकारी रखने वाले मंत्रालय के एक अधिकारी ने ईटी से कहा, 'प्रभावी रूप से वे उद्योग को डीकंट्रोल से मिलने वाला फायदा चाहते हैं।' मवाना शुगर्स के प्रबंध निदेशक सुनील ककरिया ने ईटी से कहा, 'नियंत्रण हटाने का सबसे अच्छा वक्त अभी है। यह चीनी की कीमतों में गिरावट आने से जुड़े चक्र की शुरुआत है और इस वक्त सरकार पर भी दबाव काफी कम है। आज, मैं गन्ने से भी कम दाम पर चीनी बेच रहा हूं, क्योंकि गन्ने की औसत कीमत 245 रुपए प्रति क्विंटल है।' उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'किसान के पास अपना गन्ना उसे बेचने की आजादी मिलनी चाहिए, जो उसे सबसे बेहतर दाम दे।' बीएचएल के सीईओ कुशाग्र बजाज उद्योग के डीकंट्रोल और गन्ने के रकबा का आरक्षण खत्म करने के बारे में खुले बाजार का फलसफा रखते हैं, जबकि आईएसएमए और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ज्यादा सतर्क रुख अपना रहे हैं। हालांकि, आईएसएमए में शामिल दूसरे लोगों को डर है कि अगर गन्ना खेती का क्षेत्र आरक्षित न रखा गया तो सभी के हाथ खुल सकते हैं। इसके बाद गन्ने को लेकर मिलों के बीच जबरदस्त प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है। गन्ना खेती के लिए आरक्षित क्षेत्र के मुद्दे पर उद्योग के भीतर कायम भारी मतभेदों से सरकार भी वाकिफ है, जिसने पिछली बार उद्योग के सामने संकट खड़ा होने के वक्त 5,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का आर्थिक राहत पैकेज दिया था। सेक्टर एक और बड़ी गिरावट के लिए तैयार नहीं दिख रहा। (ई टी हिंदी)
यूपी की चीनी में 'बकाया' की चींटी
लखनऊ May 22, 2010
चीनी के लगातार घटते भाव और थोक बाजार में सुस्त पड़ी मांग ने उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की हालत खराब कर दी है। इन वजहों से 2009-10 के पेराई सत्र में मिलों पर गन्ना किसानों का तकरीबन 900 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया हो गया है।
दरअसल चीनी के थोक भाव 4,700-4,800 रुपये प्रति क्विंटल के चरम से उतरकर अब महज 2,800 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। इसकी वजह से बैंकों ने भी मिलों की नकद ऋण सीमा कम कर दी है। यही वजह है कि मिलों के पास नकदी का टोटा होने लगा है।
इसके अलावा जिस वक्त चीनी के भाव आसमान छू रहे थे और उसी स्तर पर भाव बने रहने का अनुमान था, उस वक्त चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को तकरीबन 300 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से भुगतान किया था। गन्ने की किल्लत की मारी चीनी मिलें 165 रुपये प्रति क्विंटल के राज्य समर्थित मूल्य पर 135 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने से भी नहीं चूकीं।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक बिड़ला, मोदी, बलरामपुर, धामपुर और त्रिवेणी समूह समेत तमाम चीनी कंपनियों और चीनी मिलों को यह बकाया निपटाने में कम से कम डेढ़ महीने का वक्त लगेगा।
चीनी उद्योग के एक प्रवक्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग को पेराई के सत्र की शुरुआत में ही कच्ची चीनी के आयात का खामियाजा भुगताना पड़ा। राज्य सरकार ने शुरुआत में इस चीनी के प्रसंस्करण की इजाजत नहीं दी और बंदरगाहों पर इन्हें रखने के एवज में मिलों को कई महीने तक शुल्क देना पड़ा। अब बाजार में चीनी की मांग घटी है।'
प्रवक्ता ने कहा, 'हम बकाया निपटा रहे हैं और इसमें तकरीबन 1 महीना लग जाएगा। किसान और गन्ना समितियां हालात समझ रहे हैं।' हालिया चीनी सीजन में यूपी की चीनी मिलों ने किसानों को 13,000 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड भुगतान किया था।
प्रवक्ता ने कहा, '2009-10 में जितना भुगतान हुआ था, अगले सीजन में शायद ही हो पाए क्योंकि गन्ने का रकबा और पैदावार दोनों में ही अच्छा खासा इजाफा होना तय है। ऐसे में अगले सीजन में बोनस दिया जाना बहुत मुश्किल होगा।'
इस बार राज्य की 128 चीनी मिलों ने तकरीबन 51.62 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था। अगले सत्र में गन्ने का रकबा 20 फीसदी बढ़कर 21.5 लाख हेक्टेअर होने का अनुमान है। इस बार गन्ने का कुल रकबा 17.9 लाख हेक्टेअर था, जबकि पिछले साल यह 21.4 लाख हेक्टेअर था।
...गन्ने से लग गई तगड़ी मार
चीनी मिलों ने लिया 300 रु। क्विंटल गन्ना तब से अब तक 2,000 रु. प्रति क्विं. गिरी चीनी खस्ताहाल चीनी मिलों पर किसानों का तगड़ा बकाया (बीएस हिंदी)
चीनी के लगातार घटते भाव और थोक बाजार में सुस्त पड़ी मांग ने उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की हालत खराब कर दी है। इन वजहों से 2009-10 के पेराई सत्र में मिलों पर गन्ना किसानों का तकरीबन 900 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया हो गया है।
दरअसल चीनी के थोक भाव 4,700-4,800 रुपये प्रति क्विंटल के चरम से उतरकर अब महज 2,800 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। इसकी वजह से बैंकों ने भी मिलों की नकद ऋण सीमा कम कर दी है। यही वजह है कि मिलों के पास नकदी का टोटा होने लगा है।
इसके अलावा जिस वक्त चीनी के भाव आसमान छू रहे थे और उसी स्तर पर भाव बने रहने का अनुमान था, उस वक्त चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को तकरीबन 300 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से भुगतान किया था। गन्ने की किल्लत की मारी चीनी मिलें 165 रुपये प्रति क्विंटल के राज्य समर्थित मूल्य पर 135 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने से भी नहीं चूकीं।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक बिड़ला, मोदी, बलरामपुर, धामपुर और त्रिवेणी समूह समेत तमाम चीनी कंपनियों और चीनी मिलों को यह बकाया निपटाने में कम से कम डेढ़ महीने का वक्त लगेगा।
चीनी उद्योग के एक प्रवक्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग को पेराई के सत्र की शुरुआत में ही कच्ची चीनी के आयात का खामियाजा भुगताना पड़ा। राज्य सरकार ने शुरुआत में इस चीनी के प्रसंस्करण की इजाजत नहीं दी और बंदरगाहों पर इन्हें रखने के एवज में मिलों को कई महीने तक शुल्क देना पड़ा। अब बाजार में चीनी की मांग घटी है।'
प्रवक्ता ने कहा, 'हम बकाया निपटा रहे हैं और इसमें तकरीबन 1 महीना लग जाएगा। किसान और गन्ना समितियां हालात समझ रहे हैं।' हालिया चीनी सीजन में यूपी की चीनी मिलों ने किसानों को 13,000 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड भुगतान किया था।
प्रवक्ता ने कहा, '2009-10 में जितना भुगतान हुआ था, अगले सीजन में शायद ही हो पाए क्योंकि गन्ने का रकबा और पैदावार दोनों में ही अच्छा खासा इजाफा होना तय है। ऐसे में अगले सीजन में बोनस दिया जाना बहुत मुश्किल होगा।'
इस बार राज्य की 128 चीनी मिलों ने तकरीबन 51.62 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था। अगले सत्र में गन्ने का रकबा 20 फीसदी बढ़कर 21.5 लाख हेक्टेअर होने का अनुमान है। इस बार गन्ने का कुल रकबा 17.9 लाख हेक्टेअर था, जबकि पिछले साल यह 21.4 लाख हेक्टेअर था।
...गन्ने से लग गई तगड़ी मार
चीनी मिलों ने लिया 300 रु। क्विंटल गन्ना तब से अब तक 2,000 रु. प्रति क्विं. गिरी चीनी खस्ताहाल चीनी मिलों पर किसानों का तगड़ा बकाया (बीएस हिंदी)
गरम हुआ मसाला बाजार
मुंबई May 22, 2010
अनाज, फलों और सब्जियों के बाद मसालों का बाजार भी गर्म हो गया है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में इसकी हिस्सेदारी नगण्य है, जिसके चलते इस सेक्टर पर सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है। कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं की जेब जरूर हल्की हो रही है।
पिछले पांच महीने में हल्दी और इलायची सहित तमाम मसाले पहुंच से बाहर जा चुके हैं। घनिए और जीरे की कीमतें भी अब बढ़ने लगी हैं और कीमतों में आई कमी से इन्हें निजात मिल रही है। जानकारों का मानना है कि जीरा और धनिया की कीमतें भी आने वाले सप्ताहों के दौरान बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी।
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। इसकी वजह है कि इस साल उत्पादन में गिरावट के अनुमान आ रहे हैं। इस सत्र में हल्दी का उत्पादन 42-43 लाख बोरी (एक बोरी 80 किलो) रहने का अनुमान है, जबकि पिछले सत्र में उत्पादन 49-50 लाख बोरी था। भारत में हल्दी की वार्षिक खपत 45-46 लाख टन है।
आंध्र प्रदेश में फसल होने की खबर से भी कारोबारियों की धारणा पर असर पड़ा और उन्होंने आने वाले महीनों में अच्छे दाम मिलने की वजह से हल्दी की जमाखोरी की। हाजिर बाजार का हाल देखें तो सांगली में इस साल हल्दी की कीमतों में 60 प्रतिशत की तेजी आ चुकी है।
कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह हल्दी की कमी को बताते हुए सांगली के श्री हलद व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष शरद शाह ने कहा कि चालू सत्र के अंत में इसकी कीमतें 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। हल्दी की बुआई जून और अगस्त के बीच होती है, जबकि फसल दिसंबर और मार्च में तैयार होती है।
विश्लेषकों का अनुमान है कि मॉनसून के सामान्य रहने पर हल्दी की बुआई का क्षेत्रफल कम से कम 35 से 40 प्रतिशत बढ़ सकता है। शाह ने कहा, 'पिछले साल की शुरुआत में जब हाजिर बाजार में हल्दी की कीमतें 150 रुपये किलो पर पहुंच गई थीं, तो वायदा बाजार में दाम कम थे। ऐसे में या तो हाजिर बाजार में कीमतें कम होतीं या वायदा बाजार में कीमतें बढ़तीं।'
भारत में इलायची का उत्पादन अनुमान से कम होने वजह से पिछले एक साल में कीमतें दोगुनी हो गई हैं। कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह विदेशी मांग भी है। मुंबई के इलायची के एक बड़े निर्यातक मूलराज रूपारेल ने कहा, 'हमने जिस दाम पर इलायची की बिक्री की, विदेशी खरीदारों ने माल उठा लिया। इसका मतलब यह है कि खरीदार पूरे सत्र के दौरान कीमतों के बजाय उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगे रहे और पूरे सत्र के दौरान कीमतों में तेजी बनी रही।'
इलायची की औसत किस्म की कीमतें इस समय 1300 रुपये प्रति किलो हैं, जबकि एक साल पहले इसकी बिक्री 650-700 रुपये प्रति किलो के भाव हुई। भारत का कुल निर्यात इस साल तेजी से बढ़कर 2000 टन हो गया, जो एक साल पहले 1500 टन था। भारत में इलायची की सालाना घरेलू खपत 11,000-12,000 टन है। घरेलू मांग को ग्वाटेमाला से निर्यात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
बहरहाल धनिए की कीमतें इस समय 30 रुपये प्रति किलो हैं, जिसमें इस साल 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि इसकी कीमतों में भी तेजी के आसार हैं और उम्मीद की जा रही है कि दीपावली तक इसकी कीमतें 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। कोटा (राजस्थान) के रामसूरज-जुगलकिशोर के साझेदार रामसूरज अग्रवाल ने कहा कि स्टॉकिस्टों के पास धनिया बहुत कम मात्रा में है।
ऊंझा के जीरा के प्रमुख कारोबारी प्रवीण पटेल ने कहा कि इसकी कीमतें साल के अंत तक 150 रुपये प्रति किलो तक जा सकती हैं। वर्तमान में जीरे का कारोबार 120 रुपये प्रति किलो के भाव हो रहा है। इस जिंस की कीमतें चालू साल के दौरान 3-4 रुपये प्रति किलो कम हुई हैं।
मुंबई की ट्रेडिंग फर्म कोटक कमोडिटी सर्विसेज की मसाला विश्लेषक सुधा आचार्य ने कहा कि आने वाले महीनों में मिर्च की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। पिछले साल खरीफ की फसलों में आई गिरावट की भरपाई रबी के मौसम में हुए ज्यादा उत्पादन से हो गई है। काली मिर्च की आपूर्ति कम हुई है। घरेलू और विदेशी बाजारों में इसकी मांग ज्यादा है।
मसाले हुए बजट से बाहर
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हुईंइस साल हल्दी का रकबा बढ़ने की उम्मीदइलायची की कीमतें 1 साल में दोगुनी, विदेशी खरीदारों ने पसंद कियाधनिया और जीरा स्थिर, भविष्य में कीमतों में तेजी के आसार (बीएस हिंदी)
अनाज, फलों और सब्जियों के बाद मसालों का बाजार भी गर्म हो गया है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में इसकी हिस्सेदारी नगण्य है, जिसके चलते इस सेक्टर पर सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है। कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं की जेब जरूर हल्की हो रही है।
पिछले पांच महीने में हल्दी और इलायची सहित तमाम मसाले पहुंच से बाहर जा चुके हैं। घनिए और जीरे की कीमतें भी अब बढ़ने लगी हैं और कीमतों में आई कमी से इन्हें निजात मिल रही है। जानकारों का मानना है कि जीरा और धनिया की कीमतें भी आने वाले सप्ताहों के दौरान बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी।
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। इसकी वजह है कि इस साल उत्पादन में गिरावट के अनुमान आ रहे हैं। इस सत्र में हल्दी का उत्पादन 42-43 लाख बोरी (एक बोरी 80 किलो) रहने का अनुमान है, जबकि पिछले सत्र में उत्पादन 49-50 लाख बोरी था। भारत में हल्दी की वार्षिक खपत 45-46 लाख टन है।
आंध्र प्रदेश में फसल होने की खबर से भी कारोबारियों की धारणा पर असर पड़ा और उन्होंने आने वाले महीनों में अच्छे दाम मिलने की वजह से हल्दी की जमाखोरी की। हाजिर बाजार का हाल देखें तो सांगली में इस साल हल्दी की कीमतों में 60 प्रतिशत की तेजी आ चुकी है।
कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह हल्दी की कमी को बताते हुए सांगली के श्री हलद व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष शरद शाह ने कहा कि चालू सत्र के अंत में इसकी कीमतें 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। हल्दी की बुआई जून और अगस्त के बीच होती है, जबकि फसल दिसंबर और मार्च में तैयार होती है।
विश्लेषकों का अनुमान है कि मॉनसून के सामान्य रहने पर हल्दी की बुआई का क्षेत्रफल कम से कम 35 से 40 प्रतिशत बढ़ सकता है। शाह ने कहा, 'पिछले साल की शुरुआत में जब हाजिर बाजार में हल्दी की कीमतें 150 रुपये किलो पर पहुंच गई थीं, तो वायदा बाजार में दाम कम थे। ऐसे में या तो हाजिर बाजार में कीमतें कम होतीं या वायदा बाजार में कीमतें बढ़तीं।'
भारत में इलायची का उत्पादन अनुमान से कम होने वजह से पिछले एक साल में कीमतें दोगुनी हो गई हैं। कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह विदेशी मांग भी है। मुंबई के इलायची के एक बड़े निर्यातक मूलराज रूपारेल ने कहा, 'हमने जिस दाम पर इलायची की बिक्री की, विदेशी खरीदारों ने माल उठा लिया। इसका मतलब यह है कि खरीदार पूरे सत्र के दौरान कीमतों के बजाय उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगे रहे और पूरे सत्र के दौरान कीमतों में तेजी बनी रही।'
इलायची की औसत किस्म की कीमतें इस समय 1300 रुपये प्रति किलो हैं, जबकि एक साल पहले इसकी बिक्री 650-700 रुपये प्रति किलो के भाव हुई। भारत का कुल निर्यात इस साल तेजी से बढ़कर 2000 टन हो गया, जो एक साल पहले 1500 टन था। भारत में इलायची की सालाना घरेलू खपत 11,000-12,000 टन है। घरेलू मांग को ग्वाटेमाला से निर्यात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
बहरहाल धनिए की कीमतें इस समय 30 रुपये प्रति किलो हैं, जिसमें इस साल 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि इसकी कीमतों में भी तेजी के आसार हैं और उम्मीद की जा रही है कि दीपावली तक इसकी कीमतें 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। कोटा (राजस्थान) के रामसूरज-जुगलकिशोर के साझेदार रामसूरज अग्रवाल ने कहा कि स्टॉकिस्टों के पास धनिया बहुत कम मात्रा में है।
ऊंझा के जीरा के प्रमुख कारोबारी प्रवीण पटेल ने कहा कि इसकी कीमतें साल के अंत तक 150 रुपये प्रति किलो तक जा सकती हैं। वर्तमान में जीरे का कारोबार 120 रुपये प्रति किलो के भाव हो रहा है। इस जिंस की कीमतें चालू साल के दौरान 3-4 रुपये प्रति किलो कम हुई हैं।
मुंबई की ट्रेडिंग फर्म कोटक कमोडिटी सर्विसेज की मसाला विश्लेषक सुधा आचार्य ने कहा कि आने वाले महीनों में मिर्च की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। पिछले साल खरीफ की फसलों में आई गिरावट की भरपाई रबी के मौसम में हुए ज्यादा उत्पादन से हो गई है। काली मिर्च की आपूर्ति कम हुई है। घरेलू और विदेशी बाजारों में इसकी मांग ज्यादा है।
मसाले हुए बजट से बाहर
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हुईंइस साल हल्दी का रकबा बढ़ने की उम्मीदइलायची की कीमतें 1 साल में दोगुनी, विदेशी खरीदारों ने पसंद कियाधनिया और जीरा स्थिर, भविष्य में कीमतों में तेजी के आसार (बीएस हिंदी)
विदेशों में छाया एमपी का डॉलर चना
भोपाल May 22, 2010
मध्य प्रदेश के डॉलर चने की विदेशों में मांग पिछले वर्षों की तुलना में अधिक दर्ज की गई है।
इस वर्ष मांग पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 60 से 70 फीसदी बढ़ी हुई है। इसका प्रमुख कारण प्रदेश में डॉलर चने के उत्पादन में बढ़ोतरी को बताया जा रहा है। उत्पादन बढ़ने से पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष डॉलर चने के मूल्य में भी प्रति क्विंटल लगभग 1000 रुपये की कमी देखी जा रही है।
कमी के चलते इस वर्ष डॉलर चने का मूल्य 3600-3800 रुपये ही रह गया है, जोकि पिछले वर्ष 4700-4800 रुपये था। उल्लेखनीय है प्रदेश के डॉलर चने का भारी मात्रा में विदेशों में निर्यात किया जाता है। निर्यात किये जाने वाले देशों में पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और कई खाड़ी देश प्रमुख हैं।
इन सभी देशों को डॉलर चने के अन्य निर्यातक देशों की तुलना में भारत से सस्ते दाम में डॉलर चना उपलब्ध हो जाता है। इस वर्ष भी डॉलर चने के प्रदेश में सस्ते होने के कारण आयातक देशों की मांग बढ़ी हुयी है। इसके चलते इस वर्ष डॉलर चने का विदेशों में आयात लगभग 6500-7500 कंटेनर हो गया है जोकि पिछले वर्ष लगभग 4000-4500 कंटेनर था।
प्रत्येक कंटेनर में 240 क्विंटल का होता है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश का लगभग 65 से 70 फीसदी डॉलर चना उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। प्रदेश में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उौन में अधिक मात्रा में डॉलर चने के उत्पादक क्षेत्र हैं। इस वर्ष प्रदेश में डॉलर चने का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 40 से 45 फीसदी अधिक हुआ है।
पिछले वर्ष जहां डॉलर चने का प्रदेश में उत्पादन 2.5 लाख टन के आस-पास था वहीं इस वर्ष उत्पादन बढ़कर लगभग 3.5 से 4 लाख टन तक पहुंच गया है। हालाकि उत्पादन के बढ़ने से प्रदेश में इस वर्ष आयात किये जाने वाले डॉलर चने के मूल्य में कमी आई है। इसके चलते प्रति क्विंटल डॉलर चने में लगभग 1000 रुपये की कमी देखी जा रही है। मूल्य में कमी को भी आयात बढ़ने का एक कारण माना जा रहा है।
इस संबंध में इंद्रप्रस्थ फूड लिमिटेड (देवास) के मालिक और डॉलर चने के वितरक दिलीप अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस वर्ष प्रदेश के डॉलर चने की विदेशी मांग में काफी उछाल देखी जा रही है। मांग में तेजी का कारण प्रदेश में डॉलर चने का सस्ता होना है।
हांलाकि सरकार की ओर से बहुत अधिक सहायता नहीं दी जा रही है। सरकार की तरफ से डॉलर चने पर 2.20 फीसदी मंडी कर लगाया जा रहा है। सरकार अगर इस कर को खत्म कर दे तो डॉलर चने की विदेशी मांग में और बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
इस संबंध में इंदौर के डॉलर चने के कारोबारी सुरेंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि डॉलर चने की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है। देश ही नहीं विदेशों में भी इसका काफी मात्रा में आयात किया जा रहा है।
हालाकि सरकार द्वारा विशेष कृषि उपज योजना के तहत आयात इंसेंटिव कम कर देने से भविष्य में आयात में कमी आ सकती है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने विशेष कृषि उपज योजना के तहत आयात इंसेंटिव को 5 फीसदी से घटाकर 2.5 फीसदी कर दिया है।
मध्यप्रदेश के डॉलर चने की मांग 60-70 फीसदी बढ़ी
उत्पादन में भी 40-45 फीसदी हुई बढ़ोतरीउत्पादन बढ़ने से भाव में 1,000 रुपये प्रति क्ंविटल की आई कमीदेश में डॉलर चने के कुल उत्पादन का 65-70 फीसदी एमपी से आता है पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और खाड़ी देशों को होता है चने का निर्यात (बीएस हिंदी)
मध्य प्रदेश के डॉलर चने की विदेशों में मांग पिछले वर्षों की तुलना में अधिक दर्ज की गई है।
इस वर्ष मांग पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 60 से 70 फीसदी बढ़ी हुई है। इसका प्रमुख कारण प्रदेश में डॉलर चने के उत्पादन में बढ़ोतरी को बताया जा रहा है। उत्पादन बढ़ने से पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष डॉलर चने के मूल्य में भी प्रति क्विंटल लगभग 1000 रुपये की कमी देखी जा रही है।
कमी के चलते इस वर्ष डॉलर चने का मूल्य 3600-3800 रुपये ही रह गया है, जोकि पिछले वर्ष 4700-4800 रुपये था। उल्लेखनीय है प्रदेश के डॉलर चने का भारी मात्रा में विदेशों में निर्यात किया जाता है। निर्यात किये जाने वाले देशों में पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और कई खाड़ी देश प्रमुख हैं।
इन सभी देशों को डॉलर चने के अन्य निर्यातक देशों की तुलना में भारत से सस्ते दाम में डॉलर चना उपलब्ध हो जाता है। इस वर्ष भी डॉलर चने के प्रदेश में सस्ते होने के कारण आयातक देशों की मांग बढ़ी हुयी है। इसके चलते इस वर्ष डॉलर चने का विदेशों में आयात लगभग 6500-7500 कंटेनर हो गया है जोकि पिछले वर्ष लगभग 4000-4500 कंटेनर था।
प्रत्येक कंटेनर में 240 क्विंटल का होता है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश का लगभग 65 से 70 फीसदी डॉलर चना उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। प्रदेश में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उौन में अधिक मात्रा में डॉलर चने के उत्पादक क्षेत्र हैं। इस वर्ष प्रदेश में डॉलर चने का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 40 से 45 फीसदी अधिक हुआ है।
पिछले वर्ष जहां डॉलर चने का प्रदेश में उत्पादन 2.5 लाख टन के आस-पास था वहीं इस वर्ष उत्पादन बढ़कर लगभग 3.5 से 4 लाख टन तक पहुंच गया है। हालाकि उत्पादन के बढ़ने से प्रदेश में इस वर्ष आयात किये जाने वाले डॉलर चने के मूल्य में कमी आई है। इसके चलते प्रति क्विंटल डॉलर चने में लगभग 1000 रुपये की कमी देखी जा रही है। मूल्य में कमी को भी आयात बढ़ने का एक कारण माना जा रहा है।
इस संबंध में इंद्रप्रस्थ फूड लिमिटेड (देवास) के मालिक और डॉलर चने के वितरक दिलीप अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस वर्ष प्रदेश के डॉलर चने की विदेशी मांग में काफी उछाल देखी जा रही है। मांग में तेजी का कारण प्रदेश में डॉलर चने का सस्ता होना है।
हांलाकि सरकार की ओर से बहुत अधिक सहायता नहीं दी जा रही है। सरकार की तरफ से डॉलर चने पर 2.20 फीसदी मंडी कर लगाया जा रहा है। सरकार अगर इस कर को खत्म कर दे तो डॉलर चने की विदेशी मांग में और बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
इस संबंध में इंदौर के डॉलर चने के कारोबारी सुरेंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि डॉलर चने की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है। देश ही नहीं विदेशों में भी इसका काफी मात्रा में आयात किया जा रहा है।
हालाकि सरकार द्वारा विशेष कृषि उपज योजना के तहत आयात इंसेंटिव कम कर देने से भविष्य में आयात में कमी आ सकती है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने विशेष कृषि उपज योजना के तहत आयात इंसेंटिव को 5 फीसदी से घटाकर 2.5 फीसदी कर दिया है।
मध्यप्रदेश के डॉलर चने की मांग 60-70 फीसदी बढ़ी
उत्पादन में भी 40-45 फीसदी हुई बढ़ोतरीउत्पादन बढ़ने से भाव में 1,000 रुपये प्रति क्ंविटल की आई कमीदेश में डॉलर चने के कुल उत्पादन का 65-70 फीसदी एमपी से आता है पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और खाड़ी देशों को होता है चने का निर्यात (बीएस हिंदी)
कारोबार के खेत में गाड़ा हल का फल
नई दिल्ली May 24, 2010
दिन गए जब किसान केवल हल चलाने और फसल काटकर उसे बेचने में मशगूल रहता था।
अब तो किसान भी कारोबारी बन रहे हैं और उत्तर भारत में हजारों किसानों की जिंदगी में यह बदलाव नई दिल्ली का भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी पूसा इंस्टीटयूट ला रहा है। यह संस्थान किसानों को अपने यहां विकसित हुई फसलों के बीज उगाने का काम दे रहा है।
अनाज उगाने वालों को एक खास कार्यक्रम के तहत बड़े पैमाने पर बीज उगाने के शानदार कारोबार का हिस्सा बनाया जा रहा है। इससे किसानों की आमदनी में ही इजाफा नहीं हुआ है, बेहतर किस्म के बीज भी आराम से उपलब्ध हो रहे हैं।
संस्थान के निदेशक एच एस गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'नए और अच्छे बीजों के इस्तेमाल से फसल की पैदावार आम तौर पर 20 से 30 फीसदी बढ़ जाती है। बीज उगाने वाले किसानों को भी 1 लाख रुपये प्रति हेक्टेअर तक का शुद्ध मुनाफा मिलता है।'
यह अनूठा कार्यक्रम पहले दिल्ली के आसपास के इलाकों में ही सीमित था, लेकिन अब दायरा लांघकर यह हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दूसरे इलाकों में भी पहुंच गया है। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक अच्छे बीज पैदा करने के लिए जरूरी सबक किसानों को पढ़ाते हैं।
डॉ. गुप्ता ने बताया, 'किसानों से इसके एवज में कुछ नहीं लिया जा रहा है। हां, जो निजी कंपनियां पूसा की किस्मों के बीज का कारोबार करती हैं, उनसे कुछ रकम और रॉयल्टी वसूली जाती है। बीज उगाने में किसानों को शामिल करने का मकसद तकनीक को फैलाना और बेहतरीन पूसा बीज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराना है।'
ऐसे कई किसानों ने तो छोटे उद्यम या सहकारी संस्थाएं ही शुरू कर दी हैं। हरियाणा के करनाल और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और गाजियाबाद में ऐसे उद्यम चालू हो गए हैं और यह चलन तेज हो रहा है। ऐसे हरेक उद्यम में हर साल गेहूं और धान के 300 से 500 क्विंटल बीज उगाए जा रहे हैं और आसपास के किसानों को बेचे जा रहे हैं। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक दिल्ली परिसर में ही इन बीजों की जांच करते हैं।
इस कार्यक्रम की मदद से पूसा किस्मों के बीजों का उत्पादन 2005-06 के 5,000 क्विंटल से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 11,000 क्विंटल से भी ज्यादा हो गया। इनमें से तकरीबन आधा उत्पादन ये किसान ही कर रहे हैं।
मुनाफे के बीज
पूसा इंस्टीटयूट की मदद से किसान उद्यम या सहकारी संगठन के तहत खेतों में बेहतरीन किस्म के बीज उगा रहे हैं, जिनकी बिक्री के ज़रिये उन्हें हो रहा है सालाना लाखों रुपये का मुनाफा (बीएस हिंदी)
दिन गए जब किसान केवल हल चलाने और फसल काटकर उसे बेचने में मशगूल रहता था।
अब तो किसान भी कारोबारी बन रहे हैं और उत्तर भारत में हजारों किसानों की जिंदगी में यह बदलाव नई दिल्ली का भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी पूसा इंस्टीटयूट ला रहा है। यह संस्थान किसानों को अपने यहां विकसित हुई फसलों के बीज उगाने का काम दे रहा है।
अनाज उगाने वालों को एक खास कार्यक्रम के तहत बड़े पैमाने पर बीज उगाने के शानदार कारोबार का हिस्सा बनाया जा रहा है। इससे किसानों की आमदनी में ही इजाफा नहीं हुआ है, बेहतर किस्म के बीज भी आराम से उपलब्ध हो रहे हैं।
संस्थान के निदेशक एच एस गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'नए और अच्छे बीजों के इस्तेमाल से फसल की पैदावार आम तौर पर 20 से 30 फीसदी बढ़ जाती है। बीज उगाने वाले किसानों को भी 1 लाख रुपये प्रति हेक्टेअर तक का शुद्ध मुनाफा मिलता है।'
यह अनूठा कार्यक्रम पहले दिल्ली के आसपास के इलाकों में ही सीमित था, लेकिन अब दायरा लांघकर यह हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दूसरे इलाकों में भी पहुंच गया है। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक अच्छे बीज पैदा करने के लिए जरूरी सबक किसानों को पढ़ाते हैं।
डॉ. गुप्ता ने बताया, 'किसानों से इसके एवज में कुछ नहीं लिया जा रहा है। हां, जो निजी कंपनियां पूसा की किस्मों के बीज का कारोबार करती हैं, उनसे कुछ रकम और रॉयल्टी वसूली जाती है। बीज उगाने में किसानों को शामिल करने का मकसद तकनीक को फैलाना और बेहतरीन पूसा बीज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराना है।'
ऐसे कई किसानों ने तो छोटे उद्यम या सहकारी संस्थाएं ही शुरू कर दी हैं। हरियाणा के करनाल और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और गाजियाबाद में ऐसे उद्यम चालू हो गए हैं और यह चलन तेज हो रहा है। ऐसे हरेक उद्यम में हर साल गेहूं और धान के 300 से 500 क्विंटल बीज उगाए जा रहे हैं और आसपास के किसानों को बेचे जा रहे हैं। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक दिल्ली परिसर में ही इन बीजों की जांच करते हैं।
इस कार्यक्रम की मदद से पूसा किस्मों के बीजों का उत्पादन 2005-06 के 5,000 क्विंटल से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 11,000 क्विंटल से भी ज्यादा हो गया। इनमें से तकरीबन आधा उत्पादन ये किसान ही कर रहे हैं।
मुनाफे के बीज
पूसा इंस्टीटयूट की मदद से किसान उद्यम या सहकारी संगठन के तहत खेतों में बेहतरीन किस्म के बीज उगा रहे हैं, जिनकी बिक्री के ज़रिये उन्हें हो रहा है सालाना लाखों रुपये का मुनाफा (बीएस हिंदी)
'जीएम फूड में सार्वजनिक निवेश की जरूरत'
नई दिल्ली May 24, 2010
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जीन प्रसंस्कृत बीटी बैगन को लेकर चौतरफा विरोध के मद्देनजर कहा है कि कृषि के लिए व्यापक स्तर पर सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम की जरूरत है ताकि निजी क्षेत्र के एकाधिकार को समाप्त किया जा सके।
उन्होंने एक समारोह में कहा- मुझे लगता है कि बीज मुद्दे के कारण क्रियात्मक क्षेत्र में विशेषकर जीन स्तर पर प्रसंस्कृत (जीएम) कृषि में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश लोगों का विश्वास बहाल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हम नहीं चाहते कि जीएम खाद्य का मसला निजी एकाधिकार के रूप में खत्म हो।
वैज्ञानिकों के समुदाय के बीच एकराय नहीं होने का तर्क पेश करते हुए रमेश ने फरवरी में बीटी बैगन को सार्वजनिक खपत के लिए जारी किए जाने पर स्थगनादेश जारी किया था। उन्होंने कहा कि यदि इसमें सार्वजनिक धन लगाया गया होता तो देश अमेरिकी फर्म मोनसैंटो को कड़ी टक्कर दे सकता था।
अमेरिकी कंपनी भारतीय कंपनी माहिको के जरिए जीएम खाद्य को प्रोत्साहन दे रही है। बीटी बैगन एक जीएम सब्जी है जिसमें बैक्टेरियम बेसिलस थुरेन्जिएनसिस से क्राय-वन-एसी जीन डाला गया है जो पौधे को विभिन्न प्रकार के रोगों और कीटों का अवरोधक बनाता है। प्रस्तावित जैव-प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकार जैव विविधता के रखरखाव और उसके संरक्षण की ओर ध्यान देगा। (बी स हिंदी)
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जीन प्रसंस्कृत बीटी बैगन को लेकर चौतरफा विरोध के मद्देनजर कहा है कि कृषि के लिए व्यापक स्तर पर सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम की जरूरत है ताकि निजी क्षेत्र के एकाधिकार को समाप्त किया जा सके।
उन्होंने एक समारोह में कहा- मुझे लगता है कि बीज मुद्दे के कारण क्रियात्मक क्षेत्र में विशेषकर जीन स्तर पर प्रसंस्कृत (जीएम) कृषि में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश लोगों का विश्वास बहाल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हम नहीं चाहते कि जीएम खाद्य का मसला निजी एकाधिकार के रूप में खत्म हो।
वैज्ञानिकों के समुदाय के बीच एकराय नहीं होने का तर्क पेश करते हुए रमेश ने फरवरी में बीटी बैगन को सार्वजनिक खपत के लिए जारी किए जाने पर स्थगनादेश जारी किया था। उन्होंने कहा कि यदि इसमें सार्वजनिक धन लगाया गया होता तो देश अमेरिकी फर्म मोनसैंटो को कड़ी टक्कर दे सकता था।
अमेरिकी कंपनी भारतीय कंपनी माहिको के जरिए जीएम खाद्य को प्रोत्साहन दे रही है। बीटी बैगन एक जीएम सब्जी है जिसमें बैक्टेरियम बेसिलस थुरेन्जिएनसिस से क्राय-वन-एसी जीन डाला गया है जो पौधे को विभिन्न प्रकार के रोगों और कीटों का अवरोधक बनाता है। प्रस्तावित जैव-प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकार जैव विविधता के रखरखाव और उसके संरक्षण की ओर ध्यान देगा। (बी स हिंदी)
कपास के बढ़े दाम से डेनिम कंपनियां हलकान
अहमदाबाद May 24, 2010
डेनिम कपड़े बनाने वालों पर भी अब कपास की बढ़ रही कीमतों का असर होने वाला है।
कच्चेमाल की ज्यादा लागत के चलते डेनिम कंपनियों का मुनाफा घट रहा है क्योंकि ये उपभोक्ताओं पर बढ़ती लागत का पूरा भार एक ही बार में डाल नहीं पा रही हैं। हालांकि, डेनिम कंपनियां अप्रैल की शुरुआत से अब तक 10-15 फीसदी कीमतें बढ़ा चुकी हैं।
डेनिम कंपनियां डेनिम कपड़े बनाने के लिए मुख्य रूप से शॉर्ट स्टेपल कॉटन (12 मिलीमीटर से 24 मिलीमीटर लंबाई के रेशे) का इस्तेमाल करती हैं। कच्चेमाल की लागत का करीब 50 फीसदी इसमें खर्च होता है।
शॉर्ट स्टेपल किस्म कल्याण वी-797 की कीमत करीब 25 फीसदी बढ़ चुकी है। मौजूदा सत्र की शुरुआत में इसकी कीमत जहां 17,000 रुपये प्रति कैंडी (356 किलो) थी, अब 21,000 रुपये प्रति कैंडी हो गई है।
आरवी डेनिम ऐंड एक्सपोर्ट लिमिटेड के चेयरमैन विनोद अरोड़ा का कहना है, 'कच्चेमाल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से लागत खर्च 12-15 फीसदी तक बढ़ गए हैं और इसका असर मुनाफे पर होगा।'
अरविंद लिमिटेड के मुख्य वित्तीय अधिकारी जयेश शाह विनोद अरोड़ा की बातों का समर्थन करते हुए कहते हैं, 'डेनिम की मांग काफी ज्यादा है। हालांकि, कपास की कीमतों में अभूतपूर्व उछाल और उससे भी ज्यादा सूत के बढ़े दामों से मुनाफे पर दबाव बना हुआ है।'
प्रमुख डेनिम कंपनियां जैसे आरवी, के जी डेनिम, नंदन एक्जिम और जिंदल वर्ल्डवाइड बढ़ी लागत का पूरा भार कपड़े के खरीदारों पर टालने में सफल नहीं हो पाए हैं। मसलन, के जी डेनिम जो सालाना 200 लाख मीटर डेनिम का उत्पादन करती है, अपने कपड़ा ग्राहकों को खुश रखने और बढ़ रही लागतों के बीच फंसी है।
हालांकि कंपनी ने कपड़े की कीमतों में 15-20 फीसदी बढ़ोतरी कर ऊंची लागतों के भार को कम करने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी इसे मुनाफे में 10 फीसदी का नुकसान हो रहा है। ज्यादातर डेनिम निर्माताओं ने कपड़े के दाम बढ़ाए हैं। आरवी डेनिम के चेयरमैन ने कहा, 'डेनिम कपड़े कीमतें 84-86 रुपये से 93-95 रुपये प्रति मीटर तक बढ़ गई है।'
इसी तरह, के जी डेनिम ने कपड़े के दाम पिछले एक महीने में 90-100 रुपये से बढ़ाकर 110-115 रुपये प्रति मीटर कर दिया है। हालांकि, इस तरह का कदम दोहराना काफी जोखिम भरा होगा। के जी डेनिम के एक सूत्र के मुताबिक, 'डेनिम की कीमतों में दोबारा वृद्धि के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। के जी डेनिम के साथ पूरा डेनिम उद्योग कीमतों में 15-25 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है।
कपास और कपास सूत के दाम पिछली दो तिमाहियों में क्रमश: 25 फीसदी और 30-35 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। लिहाजा अभी भी लागतों में 10 फीसदी की अतिरिक्त बढ़त बचती है जिसकी भरपाई मुनाफा घटाकर की जा रही है।
चीन में कपास की फसल खराब होने और पाकिस्तान की ओर से कपास निर्यात पर 15 फीसदी निर्यात शुल्क लगाए जाने की वजह से घरेलू कपास और सूत उत्पादक ही सम्पूर्ण मांग को पूरा कर रहे हैं। घरेलू के साथ-साथ विदेशी कपड़ा खरीदार और परिधान निर्माता इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि अंतिम उपभोक्ता कीमत वृद्धि का पूरा भार उठा सकते हैं।
अहमदाबाद के चिरिपल समूह की डेनिम इकाई नंदन एक्जिम के कार्यकारी अधिकारी दीपक चिरिपल का कहना है, 'कपड़ा खरीदार अंतिम उत्पादों की कीमतें बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। अगर डेनिम निर्माता उन्हें ज्यादा दाम चुकाने के लिए बाध्य करते हैं, तो वे दूसरे देशों में दूसरे विकल्प तलाश सकते हैं जो भारतीय डेनिम कपड़ा निर्माताओं के लिए नुकसानदेह होगा। लिहाजा, डेनिम निर्माताओं के मुनाफे पर 10 फीसदी की मार पड़ रही है।
कच्चे माल के दाम बढ़ने से मुनाफे में आई कमी
कच्चे माल के दाम बढ़ने से लागत खर्च में 12-15 प्रतिशत की बढ़ोतरीडेनिम कंपनियां अप्रैल की शुरुआत से अब तक बढ़ा चुकी हैं 10-15 प्रतिशत दामबढ़ी हुई लागत का पूरा बोझ ग्राहकों पर नहीं डाल सकी हैं कंपनियां, मुनाफे में 10 प्रतिशत की कमी (बीएस हिंदी)
डेनिम कपड़े बनाने वालों पर भी अब कपास की बढ़ रही कीमतों का असर होने वाला है।
कच्चेमाल की ज्यादा लागत के चलते डेनिम कंपनियों का मुनाफा घट रहा है क्योंकि ये उपभोक्ताओं पर बढ़ती लागत का पूरा भार एक ही बार में डाल नहीं पा रही हैं। हालांकि, डेनिम कंपनियां अप्रैल की शुरुआत से अब तक 10-15 फीसदी कीमतें बढ़ा चुकी हैं।
डेनिम कंपनियां डेनिम कपड़े बनाने के लिए मुख्य रूप से शॉर्ट स्टेपल कॉटन (12 मिलीमीटर से 24 मिलीमीटर लंबाई के रेशे) का इस्तेमाल करती हैं। कच्चेमाल की लागत का करीब 50 फीसदी इसमें खर्च होता है।
शॉर्ट स्टेपल किस्म कल्याण वी-797 की कीमत करीब 25 फीसदी बढ़ चुकी है। मौजूदा सत्र की शुरुआत में इसकी कीमत जहां 17,000 रुपये प्रति कैंडी (356 किलो) थी, अब 21,000 रुपये प्रति कैंडी हो गई है।
आरवी डेनिम ऐंड एक्सपोर्ट लिमिटेड के चेयरमैन विनोद अरोड़ा का कहना है, 'कच्चेमाल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से लागत खर्च 12-15 फीसदी तक बढ़ गए हैं और इसका असर मुनाफे पर होगा।'
अरविंद लिमिटेड के मुख्य वित्तीय अधिकारी जयेश शाह विनोद अरोड़ा की बातों का समर्थन करते हुए कहते हैं, 'डेनिम की मांग काफी ज्यादा है। हालांकि, कपास की कीमतों में अभूतपूर्व उछाल और उससे भी ज्यादा सूत के बढ़े दामों से मुनाफे पर दबाव बना हुआ है।'
प्रमुख डेनिम कंपनियां जैसे आरवी, के जी डेनिम, नंदन एक्जिम और जिंदल वर्ल्डवाइड बढ़ी लागत का पूरा भार कपड़े के खरीदारों पर टालने में सफल नहीं हो पाए हैं। मसलन, के जी डेनिम जो सालाना 200 लाख मीटर डेनिम का उत्पादन करती है, अपने कपड़ा ग्राहकों को खुश रखने और बढ़ रही लागतों के बीच फंसी है।
हालांकि कंपनी ने कपड़े की कीमतों में 15-20 फीसदी बढ़ोतरी कर ऊंची लागतों के भार को कम करने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी इसे मुनाफे में 10 फीसदी का नुकसान हो रहा है। ज्यादातर डेनिम निर्माताओं ने कपड़े के दाम बढ़ाए हैं। आरवी डेनिम के चेयरमैन ने कहा, 'डेनिम कपड़े कीमतें 84-86 रुपये से 93-95 रुपये प्रति मीटर तक बढ़ गई है।'
इसी तरह, के जी डेनिम ने कपड़े के दाम पिछले एक महीने में 90-100 रुपये से बढ़ाकर 110-115 रुपये प्रति मीटर कर दिया है। हालांकि, इस तरह का कदम दोहराना काफी जोखिम भरा होगा। के जी डेनिम के एक सूत्र के मुताबिक, 'डेनिम की कीमतों में दोबारा वृद्धि के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। के जी डेनिम के साथ पूरा डेनिम उद्योग कीमतों में 15-25 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है।
कपास और कपास सूत के दाम पिछली दो तिमाहियों में क्रमश: 25 फीसदी और 30-35 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। लिहाजा अभी भी लागतों में 10 फीसदी की अतिरिक्त बढ़त बचती है जिसकी भरपाई मुनाफा घटाकर की जा रही है।
चीन में कपास की फसल खराब होने और पाकिस्तान की ओर से कपास निर्यात पर 15 फीसदी निर्यात शुल्क लगाए जाने की वजह से घरेलू कपास और सूत उत्पादक ही सम्पूर्ण मांग को पूरा कर रहे हैं। घरेलू के साथ-साथ विदेशी कपड़ा खरीदार और परिधान निर्माता इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि अंतिम उपभोक्ता कीमत वृद्धि का पूरा भार उठा सकते हैं।
अहमदाबाद के चिरिपल समूह की डेनिम इकाई नंदन एक्जिम के कार्यकारी अधिकारी दीपक चिरिपल का कहना है, 'कपड़ा खरीदार अंतिम उत्पादों की कीमतें बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। अगर डेनिम निर्माता उन्हें ज्यादा दाम चुकाने के लिए बाध्य करते हैं, तो वे दूसरे देशों में दूसरे विकल्प तलाश सकते हैं जो भारतीय डेनिम कपड़ा निर्माताओं के लिए नुकसानदेह होगा। लिहाजा, डेनिम निर्माताओं के मुनाफे पर 10 फीसदी की मार पड़ रही है।
कच्चे माल के दाम बढ़ने से मुनाफे में आई कमी
कच्चे माल के दाम बढ़ने से लागत खर्च में 12-15 प्रतिशत की बढ़ोतरीडेनिम कंपनियां अप्रैल की शुरुआत से अब तक बढ़ा चुकी हैं 10-15 प्रतिशत दामबढ़ी हुई लागत का पूरा बोझ ग्राहकों पर नहीं डाल सकी हैं कंपनियां, मुनाफे में 10 प्रतिशत की कमी (बीएस हिंदी)
कृषि उत्पादकता बढ़ाना जरूरी-मनमोहन
प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने सोमवार को कहा कि देश में 10 प्रतिशत की उच्च आर्थिक आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिए पूरे निश्चय के साथ कृषि उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास जरूरी है।सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी दूसरी पारी के एक वर्ष पूरा होने पर यहाँ आयोजित राष्ट्रीय संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हमारा मध्यावधिक लक्ष्य प्रति वर्ष 10 फीसद की वृद्धि दर हासिल करना है। मैं समझता हूँ कि अपनी बचत और निवेश की दर को देखते हुए इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। पर इसके लिए सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाना होगा, कृषि में उत्पादकता बढ़ानी होगी और विनिर्माण क्षेत्र को नई ताकत और प्रोत्साहन देना होगा।भारत की आबादी का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर है, लेकिन राष्ट्रीय उत्पादन में इसका योगदान 20 प्रतिशत से भी कम है।सिंह ने कहा कि कृषि एवं बुनियादी ढाँचे के विस्तार में आ रही मुख्य बाधाओं पर ध्यान देने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों की जरूरत है जिन्हें निवेश बढ़ाकर प्रोत्साहन देना होगा। उन्होंने कहा कि हमने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिन पर सरकार लगातार ध्यान देगी। वित्त वर्ष 2009- 10 में कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में दो प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि इसी दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7।2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।संप्रग सरकार ने किसानों के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि के साथ साथ कृषि ऋण को भी बढ़ाकर लगभग तीन लाख करोड़ रुपए करने और 70000 करोड़ रुपए की कृषि ऋण माफी और छूट जैसी योजनाएँ लागू की हैं।सरकार ने 10वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र की वृद्धि 4 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा था पर कम उत्पादकता और कृषि आधारभूत ढाँचे की कमी के कारण यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता। (वेबदुनिया)
कमोडिटी ट्रैकर
मेंथा की नई फसल की पैदावार में कमी की आशंका से स्टॉकिस्टों की खरीद बढ़ गई है। जिससे पिछले दस-बारह दिनों में घरेलू बाजार में मेंथा तेल की कीमतों में 2।2 फीसदी की तेजी आकर भाव 772 रुपये प्रति किलो हो गए। वायदा बाजार में भी इस दौरान कीमतों में दो फीसदी की तेजी आकर जून महीने के वायदा अनुबंध के भाव 687 रुपये प्रति किलो हो गए। नई फसल की पैदावार में करीब 18 फीसदी की कमी आने की आशंका है तथा इस समय निर्यातकों की मांग भी अच्छी बनी हुई है। इसलिए मौजूदा कीमतों में और भी तेजी के आसार हैं। लेकिन जून के आखिर में नई आवक शुरू जाएगी। ऐसे में जुलाई में मेंथा तेल की कीमतों में गिरावट बनने की संभावना है। पिछले साल देश में मेंथा तेल का उत्पादन करीब 32 हजार टन हुआ था जबकि नई फसल के उत्पादन में 6 हजार टन की कमी आकर कुल उत्पादन 26 हजार टन ही होने की आशंका है। माना जा रहा है कि पिछले साल किसानों को कम भाव मिला था जिसकी वजह से इस बार मेंथा की बुवाई ही कम क्षेत्रफल में की गई है। पिछले साल नई फसल के समय मेंथा तेल का भाव 580-590 रुपये प्रति किलो था। हालांकि अभी तक उत्पादक क्षेत्रों में मौसम फसल के अनुकूल बना हुआ है। निर्यातकों के साथ घरेलू फार्मा कंपनियों की मांग बढ़ने से दस-बारह दिनों में मेंथा तेल की कीमतों में 17 रुपये की तेजी आकर भाव 772 रुपये प्रति किलो हो गए। इस दौरान क्रिस्टल बोल्ड के दाम बढ़कर 860-870 रुपये प्रति किलो हो गए। नई फसल की आवक जून महीने के अंतिम सप्ताह में बनेगी तथा जुलाई में आवक का दबाव बनेगा। ऐसे में जून में तो तेजी जारी रहने की ही संभावना है लेकिन जुलाई में आवक का दबाव बनने पर भाव घट सकते हैं। इस समय स्टॉकिस्टों की बिकवाली घटने से उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक घटकर मात्र 70-80 ड्रम (एक ड्रम-180 किलो) की रह गई है।अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड का दाम बढ़कर 20 से 20.50 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) हो गया जबकि चार अप्रैल को इसका भाव 16-16.50 डॉलर प्रति किलो था। इस समय निर्यातकों की अच्छी मांग बनी हुई है। हालांकि वित्त वर्ष 2009-10 के पहले ग्यारह महीनों में निर्यात में 18 फीसदी की कमी आई थी। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2009-10 के (अप्रैल से फरवरी) के दौरान मेंथा उत्पादों का निर्यात घटकर 15,425 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 18,850 टन का निर्यात हुआ था। मालूम हो कि मसाला बोर्ड ने वर्ष 2009-10 में निर्यात का लक्ष्य 22,000 टन का रखा था। निवेशकों की खरीद बढ़ने से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर जून महीने के वायदा अनुबंध में पिछले बारह दिनों में दो फीसदी की तेजी आई है। 10 मई को जून महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेल का भाव 674 रुपये था जोकि शनिवार को बढ़कर 687 रुपये प्रति किलो हो गया।- आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.netबात पते कीनिर्यातकों की मांग भी अच्छी बनी हुई है। बीते वित्त वर्ष के 11 माह में मेंथा उत्पादों का निर्यात 18,850 टन से घटकर 15,425 टन रह गया जबकि भारतीय मसाला बोर्ड ने चालू वित्त वर्ष में 22,000 टन निर्यात का लक्ष्य रखा है। (बिज़नस भास्कर)
क्रूड सस्ता होने से घट सकते हैं सिंथेटिक यार्न के दाम
सिंथेटिक यार्न की सप्लाई कम होने के कारण इसके दाम आठ फीसदी तक बढ़ चुके हैं। कारोबारियों के मुताबिक बिजली कटौती की वजह से इसका उत्पादन घटने से सप्लाई में कमी आई है। उनके मुताबिक आने वाले दिनों में क्रूड ऑयल के दाम घटने से यार्न की कीमतों में गिरावट आ सकती है। बाजार में सिंथेटिक यार्न में एक माह के दौरान पॉलिएस्टर यार्न 2x42 के दाम 145 रुपये से बढ़कर 158 रुपये, 3x56 के दाम 162 रुपये से बढ़कर 173 रुपये हो गए हैं। वहीं पीपी यार्न-800 डेनियर के दाम 105 रुपये और 1200 डेनियर के दाम 110 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। रुई मंडी ट्रेडर्स एसोसिएशन के चैयरमेन और मैसर्स गर्ग ब्रदर्स के मालिक केवल कुमार गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बाजार में सिंथेटिक यार्न की सप्लाई कम हो रही है। इस वजह से दो माह के दौरान इनकी कीमतों में 12 रुपये प्रति किलो बढ़ोतरी हो चुकी है। उनका कहना है कि सिंथेटिक यार्न बनाने में उपयोग होने वाले फाइबर के दाम तीन रुपये बढ़कर 73 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इस वजह से इसकी कीमतों में तेजी आई है। बाजार में सिंथेटिक यार्न की सप्लाई कम होने की वजह बिजली कटौती के कारण उत्पादन कम होना है। इसके अलावा बीते दिनों में कॉटन यार्न की निर्यात मांग बढ़ने के कारण निर्माताओं ने सिंथेटिक यार्न बनाने की बजाय कॉटन यार्न में अधिक रुचि दिखाई थी। इससे भी बाजार में इसकी सप्लाई घटी है। कारोबारियों के मुताबिक इन दिनों इसकी मांग ठीक चल रही है। यार्न कारोबारी संजय जैन का कहना है कि सिंथेटिक यार्न का उपयोग कंबल, सिलाई और बुनाई कार्य आदि में होता है। इससे बने उत्पादों की खपत सर्दियों में अधिक होती है। इसलिए इन दिनों इनके निर्माण के लिए सिंथेटिक यार्न की मांग अच्छी चल रही है। उधर, कारोबारियों के मुताबिक इसके मूल्यों में आने वाले दिनों में कमी आ सकती है। गर्ग का कहना है कि बीते दिनों में क्रूड ऑयल के दाम 85 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 69 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चले गए हैं। इसका असर आने वाले दिनों में इसकी कीमतों पर पड़ सकता है। इसके मूल्यों में कमी आने की संभावना है। देश में सिंथेटिक यार्न बनाने वाली इंडोरामा सिंथेटिक इंडिया लिमिटेड और रिलायंस प्रमुख है।प्रभावबिजली की कटौती होने से यार्न उत्पादन में कमी के कारण सप्लाई घटीपिछले दो माह में सिंथेटिक यार्न के दाम ख्फ् रुपये किलो बढ़े (बिज़नस भास्कर)
विदेशी तेजी से फिर दालें होने लगी महंगी
आयात महंगा होने से दलहन की कीमतों में फिर से उबाल आना शुरू हो गया हैं। फुटकर में मूंग दाल के दाम बढ़कर 100-103 रुपये, उड़द दाल का 85 से 87 रुपये, अरहर दाल का 72 से 75 रुपये और मसूर दाल का भाव 50 से 55 रुपये प्रति किलो हो गया है। म्यांमार के निर्यातकों ने पिछले दस-पंद्रह दिनों में उड़द एसक्यू, लेमन अरहर और पेडीसेवा मूंग की कीमतों में 100 से 150 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी कर दी है। इससे घरलू बाजार में दालों के दाम 400 से 500 रुपये प्रति `िंटल तक बढ़ गए हैं। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरक्टर चंद्रशेखर एस. नाडर ने बताया कि म्यांमार के निर्यातकों द्वारा भाव बढ़ा देने से घरलू बाजार में दलहन की कीमतें बढ़ रही हैं। हालांकि घरलू बाजार में दालों की मांग कमजोर है लेकिन स्टॉकिस्टों की सक्रियता से तेजी को बल मिला है। उड़द एफएक्यू और एसक्यू की कीमतों में पिछले दस-बारह दिनों में 150 डॉलर की तेजी आकर भाव 1,150-1,200 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। इसी तरह से लेमन अरहर दाल की कीमतों में 100 डॉलर की तेजी आकर भाव 1,200 डॉलर और मूंग पेडीसेवा की कीमतों में 125 डॉलर की तेजी आकर भाव 1,500 डॉलर प्रति टन हो गए।भारत में मूंग के उत्पादन में भारी कमी आई है जबकि उड़द की आवक केवल विजयवाड़ा में ही हो रही है। अरहर की आवक भी उत्पादक मंडियों में कम हो रही है। इसीलिए म्यांमार के निर्यातक भाव बढ़ाकर बोल रहे हैं। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी तीसर अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में दलहन का 147.7 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है। जबकि देश में दालों की सालाना खपत करीब 170-180 लाख टन की होती है। इसीलिए हमें करीब 25 से 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार सरकारी कंपनियों एमएमटीसी, एसटीसी, पीईसी और नेफेड ने लगभग 5.84 लाख टन दलहन आयात के सौदे किए हैं तथा इसमें से 5.79 लाख टन दालें भारत आ चुकी है। उड़द, अरहर और मूंग का ज्यादातर आयात म्यांमार से किया जा रहा है तथा भारत में कम पैदावार के कारण वहां के निर्यातक भाव बढ़ा रहे हैं। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के डायरक्टर एस. बी. बंदेवार ने बताया कि घरेलू बाजार में मूंग की कीमतों में पिछले दस दिनों में 400 रुपये की तेजी आकर भाव 7,000 रुपये प्रति `िंटल हो गए। पिछले डेढ़ महीने में इसकी कीमतों में करीब 2,000 रुपये प्रति `िंटल की तेजी आ चुकी है। वर्ष 2009-10 में मूंग के उत्पादन घटकर मात्र 7.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2008-09 में इसका उत्पादन 10.4 लाख टन का हुआ था। उड़द की कीमतों में पिछले पंद्रह दिनों में करीब 500 रुपये की तेजी आकर भाव 5,600-5,800 रुपये और अरहर की कीमतों में 300 रुपये की तेजी आकर भाव 4200-4500 रुपये प्रति `िंटल हो गए। उन्होंने बताया कि आमतौर पर देसी अरहर के मुकाबले आयातित लेमन अरहर सस्ती बिकती थी लेकिन इस बार आयातित अरहर देसी के मुकाबले ऊंचे दाम पर बिक रही है। बात पते कीम्यांमार के निर्यातकों ने उड़द एसक्यू, लेमन अरहर और मूंग की कीमतों में 100 से 150 डॉलर प्रति टन की वृद्धि की है। इससे बाजार में दाम 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गए हैं। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
20 मई 2010
बड़े चीनी उपभोक्ताओं के लिए स्टॉक रियायत लागू
सरकार ने बड़े चीनी उपभोक्ताओं जैसे कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम, बिस्कुट और कन्फेक्शनरी निर्माताओं को अपनी 15 दिन की खपत के बराबर चीनी स्टॉक करने की अनुमति दे दी है। सरकार ने इस रियायत के लिए अधिसूचना जारी कर दी। अभी उपभोक्ता उद्योग अपनी खपत के लिए दस दिन की चीनी स्टॉक कर सकती हैं।इस संबंध में पूछने पर एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि चीनी स्टॉक संबंधी छूट उपभोक्ता उद्योगों को देने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। यह अधिसूचना 21 मई को लागू होगी और अगले 90 दिन तक प्रभावी रहेगी। चालू सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़ने और मूल्य तेजी से घटने के कारण सरकार ने यह फैसला किया है। चीनी के मूल्य नियंत्रित होने के बाद सरकार अपने उन सभी उपायों में बदलाव कर रही है, जो चीनी की तेजी रोकने के लिए उठाए गए थे। सरकार ने मई में मिलों को कोटा की चीनी संबंधित माह के अंत तक बेचने की छूट दे दी थी। इससे पहले उन्हें 15 दिन का निर्धारित कोटा बेचना पड़ता था। दूसरी ओर नाफेड ने 10 हजार टन तैयार चीनी आयात करने के लिए बिड आमंत्रित की हैं। सहकारी क्षेत्र के इस संगठन ने देश में चीनी की सुलभता बढ़ाने के लिए यह टेंडर जारी किया है। यह आयातित चीनी घरलू बाजार में अगस्त के बाद सुलभ कराई जाएगी। इसकी डिलीवरी अगस्त में ली जाएगी। कंपनियां चीनी आयात के लिए 28 मई तक बिड भर सकती हैं। (बिज़नस भास्कर)
गेहूं के निर्यात पर लगी रोक हटाने पर विचार
सरकार ने आज कहा है कि वह तीन साल से गेहू निर्यात पर लगी रोक हटाने पर विचार कर रही है। इस साल गोदामों में गेहूं का रिकॉर्ड स्टॉक जमा होने के कारण सरकार रोक हटाने के बार में सोच सकती है।केंद्रीय पूल में रिकॉर्ड गेहूं स्टॉक होने के कारण निर्यात की अनुमति के सवाल पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वाणिज्य मंत्री राहुल खुल्लर ने कहा कि इस मसले पर विचार किया जा रहा है। सरकार ने 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। उस साल सरकार को बफर स्टॉक आवश्यकता पूरी करने के लिए गेहूं का आयात करना पड़ा था। वर्ष 2009-10 के दौरान दुनिया के दूसर सबसे उत्पादक देश भारत में 809।8 लाख टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 806.8 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।पिछले अप्रैल से शुरू हुए मार्केटिंग सीजन के दौरान देश में 219.7 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हो चुकी है। जबकि पिछले साल समान अवधि में 228.4 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। इस तरह चालू सीजन में गेहूं खरीद चार फीसदी कम है। पिछले साल 254 लाख टन गेहूं की रिकॉर्ड खरीद की गई थी। खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने इस महीने के शुरू में कहा था कि चालू सीजन में 245-250 लाख टन गेहूं की खरीद होने की संभावना है। गेहूं की खरीद इस साल मामूली तौर पर भले ही कम हो लेकिन केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक बफर नियमों से कई गुना ज्यादा है। यही वजह है कि सरकार निर्यात पर रोक हटाने पर विचार कर रही है। हालांकि गेहूं के निर्यात पर अभी रोक लगी हुई है। लेकिन सरकार ने राजनयिक माध्यम से सीमित मात्रा में गेहूं पड़ोसी और अफ्रीकी देशों को निर्यात करने की अनुमति दी है। (बिज़नस भास्कर)
काली मिर्च में तेजी के आसार
कोच्चि May 18, 2010
काली मिर्च के वैश्विक बाजार में आने वाले सप्ताह में तेजी आ सकती है। इसकी वजह यह है कि वियतनाम के आपूर्तिकर्ता स्टॉक को निकालने की जल्दबाजी में नहीं हैं।
केरल की ही तरह से वियतनाम के किसान भी मसालों का स्टॉक जमा कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जून-जुलाई में कीमतों में तेजी आएगी और उस समय बिक्री से बेहतर मुनाफा होगा। हाल के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वियतनाम ने पहले ही मई के मध्य के लिए 50,000 टन से ज्यादा माल की शिपिंग कर दी है।
बड़े निर्यातकों और प्रसंस्करणकर्ताओं के पास इस समय करीब 10,000 टन का स्टॉक है, जिसकी बिक्री यूरोप और अमेरिका के उपभोक्ताओं को की गई है। इसके अलावा शेष 40,000 टन माल किसानों के पास है।
काली मिर्च की वैश्विक मांग की ज्यादातर आपूर्ति वियतनाम से होती है। इसे देखते हुए किसानों के माल बेचने के तरीके में बदलाव का व्यापक असर होने की उम्मीद है। इस समय वियतनाम के कारोबारी बड़े पैमाने पर बिक्री के मूड में नहीं हैं, जैसा कि 2 सप्ताह पहले था। वहां पर एएसटीए ग्रेड की काली मिर्च की कीमतें 3600-3700 डॉलर प्रति टन हैं।
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वियतनाम में कुल उत्पादन 1,00,000 से 1,10,000 टन के बीच है। इसकी वजह से इंडोनेशिया में फसल तैयार होने तक वैश्विक उपभोक्ता वियतनाम पर निर्भर हैं।
उम्मीद की जा रही है कि इंडोनेशिया की फसल जुलाई-अगस्त में बाजार में आ जाएगी। इसके साथ ही इंडोनेशिया के पास स्टॉक भी कम है और वे काली मिर्च की बिक्री 3600 से 3650 डॉलर प्रति टन के भाव कर रहे हैं। ब्राजील भी कारोबार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है और 2009 में वहां कुल 5,000 टन का स्टॉक था। वे भी 3650-3700 डॉलर प्रति टन के भाव कारोबार कर रहे हैं।
इस समय बाजार में एक ही संकट- यूरोप के बाजारों का आर्थिक संकट है, जिसकी वजह से यूरोप से खरीदारी प्रभावित हो रही है। साथ ही अमेरिकी खरीदार भी आक्रामक रूप से खरीदारी नहीं कर रहे हैं। लेकिन इंडोनेशिया और ब्राजील में फसल में देरी और कम स्टॉक रहने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि आने वाले सप्ताहों में काली मिर्च की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी।
भारत में कीमतें 3775 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर हैं, क्योंकि यहां पर स्थानीय मांग बहुत ज्यादा है। यहां स्थानीय मांग कर्नाटक से पूरी होती है, क्योंकि केरल से आपूर्ति कम है। इस साल राज्य से ज्यादा मात्रा में काली मिर्च बाजार में नहीं आई है, क्योंकि किसानों ने बाद में ज्यादा कीमतों की उम्मीद में माल रोक रखा है।
यहां के उत्पादकों को उम्मीद है कि कीमतें जल्द ही 20,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच जाएंगी। वे बड़ी उत्सुकता से इसका इंतजार कर रहे हैं। इस तरह से देखें तो घरेलू बाजार में आपूर्ति की स्थिति कमजोर है और इसकी वजह से कीमतों में तेजी है। वैश्विक स्तर पर स्टॉक में कमी से यह संकेत मिल रहा है कि आने वाले सप्ताहों के दौरान कीमतों में तेजी आएगी।
वैश्विक बाजार में कम है स्टॉक
वियतनाम के आपूर्तिकर्ता स्टॉक निकालने की जल्दबाजी में नहींकाली मिर्च की वैश्विक मांग में ज्यादा हिस्सेदारी वियतनाम की, लेकिन जरूरतों को देखते हुए माल की आपूर्ति नहींइंडोनेशिया की फसल जुलाई-अगस्त तक बाजार में पहुंचने की उम्मीदभारत में घरेलू मांग ज्यादा होने की वजह से कीमतों में तेजी, किसान माल बेचने की जल्दबाजी में नहीं (बीएस हिंदी)
काली मिर्च के वैश्विक बाजार में आने वाले सप्ताह में तेजी आ सकती है। इसकी वजह यह है कि वियतनाम के आपूर्तिकर्ता स्टॉक को निकालने की जल्दबाजी में नहीं हैं।
केरल की ही तरह से वियतनाम के किसान भी मसालों का स्टॉक जमा कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जून-जुलाई में कीमतों में तेजी आएगी और उस समय बिक्री से बेहतर मुनाफा होगा। हाल के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वियतनाम ने पहले ही मई के मध्य के लिए 50,000 टन से ज्यादा माल की शिपिंग कर दी है।
बड़े निर्यातकों और प्रसंस्करणकर्ताओं के पास इस समय करीब 10,000 टन का स्टॉक है, जिसकी बिक्री यूरोप और अमेरिका के उपभोक्ताओं को की गई है। इसके अलावा शेष 40,000 टन माल किसानों के पास है।
काली मिर्च की वैश्विक मांग की ज्यादातर आपूर्ति वियतनाम से होती है। इसे देखते हुए किसानों के माल बेचने के तरीके में बदलाव का व्यापक असर होने की उम्मीद है। इस समय वियतनाम के कारोबारी बड़े पैमाने पर बिक्री के मूड में नहीं हैं, जैसा कि 2 सप्ताह पहले था। वहां पर एएसटीए ग्रेड की काली मिर्च की कीमतें 3600-3700 डॉलर प्रति टन हैं।
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वियतनाम में कुल उत्पादन 1,00,000 से 1,10,000 टन के बीच है। इसकी वजह से इंडोनेशिया में फसल तैयार होने तक वैश्विक उपभोक्ता वियतनाम पर निर्भर हैं।
उम्मीद की जा रही है कि इंडोनेशिया की फसल जुलाई-अगस्त में बाजार में आ जाएगी। इसके साथ ही इंडोनेशिया के पास स्टॉक भी कम है और वे काली मिर्च की बिक्री 3600 से 3650 डॉलर प्रति टन के भाव कर रहे हैं। ब्राजील भी कारोबार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है और 2009 में वहां कुल 5,000 टन का स्टॉक था। वे भी 3650-3700 डॉलर प्रति टन के भाव कारोबार कर रहे हैं।
इस समय बाजार में एक ही संकट- यूरोप के बाजारों का आर्थिक संकट है, जिसकी वजह से यूरोप से खरीदारी प्रभावित हो रही है। साथ ही अमेरिकी खरीदार भी आक्रामक रूप से खरीदारी नहीं कर रहे हैं। लेकिन इंडोनेशिया और ब्राजील में फसल में देरी और कम स्टॉक रहने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि आने वाले सप्ताहों में काली मिर्च की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी।
भारत में कीमतें 3775 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर हैं, क्योंकि यहां पर स्थानीय मांग बहुत ज्यादा है। यहां स्थानीय मांग कर्नाटक से पूरी होती है, क्योंकि केरल से आपूर्ति कम है। इस साल राज्य से ज्यादा मात्रा में काली मिर्च बाजार में नहीं आई है, क्योंकि किसानों ने बाद में ज्यादा कीमतों की उम्मीद में माल रोक रखा है।
यहां के उत्पादकों को उम्मीद है कि कीमतें जल्द ही 20,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच जाएंगी। वे बड़ी उत्सुकता से इसका इंतजार कर रहे हैं। इस तरह से देखें तो घरेलू बाजार में आपूर्ति की स्थिति कमजोर है और इसकी वजह से कीमतों में तेजी है। वैश्विक स्तर पर स्टॉक में कमी से यह संकेत मिल रहा है कि आने वाले सप्ताहों के दौरान कीमतों में तेजी आएगी।
वैश्विक बाजार में कम है स्टॉक
वियतनाम के आपूर्तिकर्ता स्टॉक निकालने की जल्दबाजी में नहींकाली मिर्च की वैश्विक मांग में ज्यादा हिस्सेदारी वियतनाम की, लेकिन जरूरतों को देखते हुए माल की आपूर्ति नहींइंडोनेशिया की फसल जुलाई-अगस्त तक बाजार में पहुंचने की उम्मीदभारत में घरेलू मांग ज्यादा होने की वजह से कीमतों में तेजी, किसान माल बेचने की जल्दबाजी में नहीं (बीएस हिंदी)
लंबे समय से स्थिर हैं सोयाबीन के दाम
मुंबई May 20, 2010
बाजार में मांग न के बराबर होने के बावजूद सोयाबीन और सोया खली की कीमतें पिछले एक महीने से स्थिर बनी हुई हैं, जबकि मांग कम होने की वजह से कीमतों में भारी गिरावट होने का अनुमान लगाया जाता रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की मुख्य वजह डॉलर में आ रही मजबूती को माना जा रहा है। डॉलर की चाल को देखते हुए कारोबारी थोड़ी और मजबूती का इंतजार कर रहे हैं जिससे मुनाफे का बटुआ आसानी से भरा जा सके। सोयाबीन का कारोबार 19 अप्रैल 2010 को प्रति क्विंटल 1930 रुपये के हिसाब हुआ।
बाजार में मांग न होने के बावजूद एक महीने बाद 19 मई को 1924 रुपये प्रति क्विंटल पर सोयाबीन बना हुआ है। यही हाल सोयाखली का है। 19 अप्रैल को 16,500 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली सोया खली 19 मई को महज 200 रुपये की गिरावट केसाथ 16,300 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार कर रही है। जबकि अप्रैल महीने में खली के निर्यात में करीबन 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ घरेलू बाजार में भी सोया तेल और सोया खली की मांग में कमी दिखाई दे रही है। बाजार के नियामानुसार मांग न होने पर कीमतों में गिरावट होना तय माना जाता है, लेकिन यहां मांग होने के बाद भी कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, क्योंकि इस कीमत पर कोई अपना माल बेचना नहीं चाह रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की वजह बताते हुए शेयरखान कमोडिटी के हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि दरअसल कारोबारियों को लग रहा है कि मौजूदा वैश्विक हालातों को देखते हुए डॉलर में अभी और मजबूती आएगी। डॉलर की मजबूती का फायदा उनको भी मिलेगा। इसलिए सोया कारोबारी बाजार में माल उतारने की अपेक्षा गोदामों में जमा करना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं।
कारोबारियों के नक्शेकदम पर चलते हुए किसान भी वर्तमान भाव पर बिक्री करना घाटे का सौदा मान रहे हैं। इसीलिए घरेलू मंडियों में भी इस समय आवक बहुत कम है, जबकि इस साल सोयाबीन की पैदावार अच्छी बताई जा रही है।
मेहुल कहते हैं कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल करीबन 85 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ है,जो पिछले साल की अपेक्षा अधिक है। इसके बावजूद बाजार में आवक की कमी होना दो बातों को दर्शाता है या तो उत्पादन का सरकारी अनुमान गलत है या फिर इस दर पर किसान अपना माल बेचना नहीं चाह रहे हैं। गौरतलब है कि घरेलू खपत करीबन 30 लाख टन ही है।
सोयाखली के निर्यात में कमी की वजह कारोबारी वर्तमान कीमत को मान रहे हैं। परिचालन मार्जिन में कमी होने के कारण सोयाबीन क्रशिंग में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा सोयाबीन की आवक भी कमजोर है जिसका सीधा असर निर्यात पर दिखाई पड़ रहा है।
सोया निर्यातकों का कहना है कि वर्तमान वैश्विक हालतों को देखते हुए साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि डॉलर की कीमत 48 रुपये तक पहुंच सकती है जिसका फायदा उनको भी मिलेगा। इस समय अमेरिका और ब्राजील से आने वाली खली भारत की अपेक्षा सस्ती है जिसके चलते इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में माल बेचना भारतीय कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा है।
अंतरराष्ट्रीय हलचल और मांग को देखते हुए फिलहाल कुछ दिन माल को रोककर रखना ही समझदारी का काम है। (बीएस हींदी)
बाजार में मांग न के बराबर होने के बावजूद सोयाबीन और सोया खली की कीमतें पिछले एक महीने से स्थिर बनी हुई हैं, जबकि मांग कम होने की वजह से कीमतों में भारी गिरावट होने का अनुमान लगाया जाता रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की मुख्य वजह डॉलर में आ रही मजबूती को माना जा रहा है। डॉलर की चाल को देखते हुए कारोबारी थोड़ी और मजबूती का इंतजार कर रहे हैं जिससे मुनाफे का बटुआ आसानी से भरा जा सके। सोयाबीन का कारोबार 19 अप्रैल 2010 को प्रति क्विंटल 1930 रुपये के हिसाब हुआ।
बाजार में मांग न होने के बावजूद एक महीने बाद 19 मई को 1924 रुपये प्रति क्विंटल पर सोयाबीन बना हुआ है। यही हाल सोयाखली का है। 19 अप्रैल को 16,500 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली सोया खली 19 मई को महज 200 रुपये की गिरावट केसाथ 16,300 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार कर रही है। जबकि अप्रैल महीने में खली के निर्यात में करीबन 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ घरेलू बाजार में भी सोया तेल और सोया खली की मांग में कमी दिखाई दे रही है। बाजार के नियामानुसार मांग न होने पर कीमतों में गिरावट होना तय माना जाता है, लेकिन यहां मांग होने के बाद भी कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, क्योंकि इस कीमत पर कोई अपना माल बेचना नहीं चाह रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की वजह बताते हुए शेयरखान कमोडिटी के हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि दरअसल कारोबारियों को लग रहा है कि मौजूदा वैश्विक हालातों को देखते हुए डॉलर में अभी और मजबूती आएगी। डॉलर की मजबूती का फायदा उनको भी मिलेगा। इसलिए सोया कारोबारी बाजार में माल उतारने की अपेक्षा गोदामों में जमा करना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं।
कारोबारियों के नक्शेकदम पर चलते हुए किसान भी वर्तमान भाव पर बिक्री करना घाटे का सौदा मान रहे हैं। इसीलिए घरेलू मंडियों में भी इस समय आवक बहुत कम है, जबकि इस साल सोयाबीन की पैदावार अच्छी बताई जा रही है।
मेहुल कहते हैं कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल करीबन 85 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ है,जो पिछले साल की अपेक्षा अधिक है। इसके बावजूद बाजार में आवक की कमी होना दो बातों को दर्शाता है या तो उत्पादन का सरकारी अनुमान गलत है या फिर इस दर पर किसान अपना माल बेचना नहीं चाह रहे हैं। गौरतलब है कि घरेलू खपत करीबन 30 लाख टन ही है।
सोयाखली के निर्यात में कमी की वजह कारोबारी वर्तमान कीमत को मान रहे हैं। परिचालन मार्जिन में कमी होने के कारण सोयाबीन क्रशिंग में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा सोयाबीन की आवक भी कमजोर है जिसका सीधा असर निर्यात पर दिखाई पड़ रहा है।
सोया निर्यातकों का कहना है कि वर्तमान वैश्विक हालतों को देखते हुए साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि डॉलर की कीमत 48 रुपये तक पहुंच सकती है जिसका फायदा उनको भी मिलेगा। इस समय अमेरिका और ब्राजील से आने वाली खली भारत की अपेक्षा सस्ती है जिसके चलते इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में माल बेचना भारतीय कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा है।
अंतरराष्ट्रीय हलचल और मांग को देखते हुए फिलहाल कुछ दिन माल को रोककर रखना ही समझदारी का काम है। (बीएस हींदी)
हाजिर बाजार पर नहीं होगा जिंसों में मंदी का असर
मुंबई/कोलकाता May 20, 2010
यूरो क्षेत्र में चल रही वित्तीय मुश्किलों और सट्टा कारोबार को रोकने के लिए जर्मनी के फैसले से बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में ज्यादातर मेटल शेयर 4-6 फीसदी की गिरावट पर रहे और कच्चे तेल की कीमतें पिछले सात महीने के निचले स्तर 68 डॉलर पर आ गईं।
गिरावट का यह क्रम कब थमेगा, नहीं कहा जा सकता। हालांकि ज्यादातर जानकारों का मानना है कि जिंसों की मांग में मजबूती बनी है। यूरोपीय देशों में ऋण संकट के सामने आने से इस वित्त वर्ष की शुरुआत से अब तक जिंसों के भाव 10-20 फीसदी गिर चुके हैं।
लंदन के नेटिक्सिस बैंक समूह कंपनी के नेटिक्सिस कमोडिटी बाजारों ने जानकारी दी, 'यूरोप में ऋण संकट और चीन में मौद्रिक सख्ती के बावजूद वैश्विक विकास के संकेत हाल के महीनों में मजबूत बने रहे हैं। आर्थिक विकास के समेकित आंकड़ों से अब भी विकास में तेजी के संकेत मिलते हैं। उभरते बाजारों और चीन को छोड़कर कई ओईसीडी देशों में विकास दर बढ़त पर है क्योंकि वैश्विक आर्थिक स्थिति सामान्य होने लगी है।'
नाल्को में वित्तीय निदेशक बी एल बागरा ने कहा, 'वित्तीय संस्थाओं की ओर से वायदा बाजार में लॉन्ग पोजीशन खत्म किए गए हैं और इससे एलएमई में धातु के मूल्य में गिरावट आई है। हमें लगता है कि एक दो महीनों में कीमतों में वापसी आ सकती है।'
हालांकि, बाजारों के रुझान पर यूरो क्षेत्र में वित्तीय संकट से प्रभावित हो रहे हैं। बाजार की धारणा पर चाइना बैंकिंग रेगुलेटरी कमीशन के ब्यूरो की ओर से शुक्रवार को की गई घोषणा का भी असर हुआ है। घोषणा के मुताबिक बैंकों को यह निर्देश दिया गया है कि स्थानीय सरकार से सहायता प्राप्त नई निवेश इकाइयों और मौजूदा निवेश माध्यमों की नई परियोजनाओं को दिए जाने वाले कर्जों पर कड़ा नियंत्रण रखें।
पॉलिमर और पेट्रोकेमिकल सेगमेंट में भी अप्रैल के बाद से कीमतों में गिरावट आई है। मैक ग्रॉ हिल्स के खंड प्लेट्स द्वारा तैयार ग्लोबल पेट्रोकेमिकल्स इंडेक्स अप्रैल की शुरुआत में 1262.4 अंकों से खिसककर पिछले सप्ताहांत 1164.6 अंकों पर आ गया।
प्लेट्स, यूरोप के प्रबंध निदेशक इलाना डीजेलाल ने कहा, 'यूरो क्षेत्र में पेट्रोकेमिकल्स और पॉलिमर की मांग पर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ है। ज्यादातर परिशोधन इकाइयां 85-90 फीसदी और कुछ तो 100 फीसदी क्षमता पर परिचालन कर रही हैं। ऋण संकट ने इन उत्पादों की उपयोग मांग पर असर नहीं डाला है और इनके उपयोगकर्तों में काई दहशत नहीं है।'
इन अनिश्चितताओं और कीमतों पर इसनके असर के बावजूद बारक्लेज कमोडिटी रिपोर्ट कहती है कि बाजारों की कमजोर स्थिति की वजह से तात्कालिक प्रभाव के रूप में कुछ असर है। एलएमई के भंडारों के रुझान मौजूदा समय में समर्थन में हैं। ज्यादातर मिश्र धातुओं के शेयरों में पिछले हफ्ते में गिरावट आई है।
यूरोप और अमेरिका के हाजिर बाजार अब भी इस साल के उच्चतम स्तरों पर बंद हुए हैं। प्रीमियम से हाजिर बाजार में मांग में मजबूती के संकेत मिलते हैं। जैसे कि एल्युमीनियम के लिए यूरोपीय प्रीमियम दशक के अपने सर्वोत्तम स्तर पर है क्योंकि ऊंची माग और बड़े सौदे की वजह से हाजिर बाजर में काफी खींच-तान चल रही है।
हिंदुस्तान कॉपर के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक शकील अहमद ने कहा, 'यूरोप के संकट से तांबे की कीमतों पर बहुत ज्यादा असर होने की उम्मीद नहीं है। चीन तांबे का सबसे बड़ा और अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। यूरोप में जितने तांबे का उत्पादन होता है वह उसका खुद ही इस्तेमाल कर लेता है। लिहाजा यूरोपीय संकट से लंबे समय के लिए कोई असर होने की संभावना नहीं है।'
लेकिन, बाजार भावना पर जरूर असर हुआ है। तांबे की कीमतें 8,000 डॉलर के आस पास चल रही थीं जो अब 6,500 रुपये तक गिर चुकी हैं। चीन में मौद्रिक नीति में सख्ती का असर भी कीमतों पर हुआ है।
यूरोप के ऋण संकट से एक्सचेंजों में पिट रहे हैं जिंस
बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में ज्यादातर धातुओं में 4-6 फीसदी की गिरावट रहीकच्चे तेल की कीमतें 7 माह के न्यूनतम स्तर- 68 डॉलर प्रति बैरल परजानकारों का मानना है कि 1-2 महीनों में आ सकती है कीमतों में तेजीज्यादातर परिशोधन इकाइयों का काम तेज (बी स हिंदी)
यूरो क्षेत्र में चल रही वित्तीय मुश्किलों और सट्टा कारोबार को रोकने के लिए जर्मनी के फैसले से बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में ज्यादातर मेटल शेयर 4-6 फीसदी की गिरावट पर रहे और कच्चे तेल की कीमतें पिछले सात महीने के निचले स्तर 68 डॉलर पर आ गईं।
गिरावट का यह क्रम कब थमेगा, नहीं कहा जा सकता। हालांकि ज्यादातर जानकारों का मानना है कि जिंसों की मांग में मजबूती बनी है। यूरोपीय देशों में ऋण संकट के सामने आने से इस वित्त वर्ष की शुरुआत से अब तक जिंसों के भाव 10-20 फीसदी गिर चुके हैं।
लंदन के नेटिक्सिस बैंक समूह कंपनी के नेटिक्सिस कमोडिटी बाजारों ने जानकारी दी, 'यूरोप में ऋण संकट और चीन में मौद्रिक सख्ती के बावजूद वैश्विक विकास के संकेत हाल के महीनों में मजबूत बने रहे हैं। आर्थिक विकास के समेकित आंकड़ों से अब भी विकास में तेजी के संकेत मिलते हैं। उभरते बाजारों और चीन को छोड़कर कई ओईसीडी देशों में विकास दर बढ़त पर है क्योंकि वैश्विक आर्थिक स्थिति सामान्य होने लगी है।'
नाल्को में वित्तीय निदेशक बी एल बागरा ने कहा, 'वित्तीय संस्थाओं की ओर से वायदा बाजार में लॉन्ग पोजीशन खत्म किए गए हैं और इससे एलएमई में धातु के मूल्य में गिरावट आई है। हमें लगता है कि एक दो महीनों में कीमतों में वापसी आ सकती है।'
हालांकि, बाजारों के रुझान पर यूरो क्षेत्र में वित्तीय संकट से प्रभावित हो रहे हैं। बाजार की धारणा पर चाइना बैंकिंग रेगुलेटरी कमीशन के ब्यूरो की ओर से शुक्रवार को की गई घोषणा का भी असर हुआ है। घोषणा के मुताबिक बैंकों को यह निर्देश दिया गया है कि स्थानीय सरकार से सहायता प्राप्त नई निवेश इकाइयों और मौजूदा निवेश माध्यमों की नई परियोजनाओं को दिए जाने वाले कर्जों पर कड़ा नियंत्रण रखें।
पॉलिमर और पेट्रोकेमिकल सेगमेंट में भी अप्रैल के बाद से कीमतों में गिरावट आई है। मैक ग्रॉ हिल्स के खंड प्लेट्स द्वारा तैयार ग्लोबल पेट्रोकेमिकल्स इंडेक्स अप्रैल की शुरुआत में 1262.4 अंकों से खिसककर पिछले सप्ताहांत 1164.6 अंकों पर आ गया।
प्लेट्स, यूरोप के प्रबंध निदेशक इलाना डीजेलाल ने कहा, 'यूरो क्षेत्र में पेट्रोकेमिकल्स और पॉलिमर की मांग पर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ है। ज्यादातर परिशोधन इकाइयां 85-90 फीसदी और कुछ तो 100 फीसदी क्षमता पर परिचालन कर रही हैं। ऋण संकट ने इन उत्पादों की उपयोग मांग पर असर नहीं डाला है और इनके उपयोगकर्तों में काई दहशत नहीं है।'
इन अनिश्चितताओं और कीमतों पर इसनके असर के बावजूद बारक्लेज कमोडिटी रिपोर्ट कहती है कि बाजारों की कमजोर स्थिति की वजह से तात्कालिक प्रभाव के रूप में कुछ असर है। एलएमई के भंडारों के रुझान मौजूदा समय में समर्थन में हैं। ज्यादातर मिश्र धातुओं के शेयरों में पिछले हफ्ते में गिरावट आई है।
यूरोप और अमेरिका के हाजिर बाजार अब भी इस साल के उच्चतम स्तरों पर बंद हुए हैं। प्रीमियम से हाजिर बाजार में मांग में मजबूती के संकेत मिलते हैं। जैसे कि एल्युमीनियम के लिए यूरोपीय प्रीमियम दशक के अपने सर्वोत्तम स्तर पर है क्योंकि ऊंची माग और बड़े सौदे की वजह से हाजिर बाजर में काफी खींच-तान चल रही है।
हिंदुस्तान कॉपर के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक शकील अहमद ने कहा, 'यूरोप के संकट से तांबे की कीमतों पर बहुत ज्यादा असर होने की उम्मीद नहीं है। चीन तांबे का सबसे बड़ा और अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। यूरोप में जितने तांबे का उत्पादन होता है वह उसका खुद ही इस्तेमाल कर लेता है। लिहाजा यूरोपीय संकट से लंबे समय के लिए कोई असर होने की संभावना नहीं है।'
लेकिन, बाजार भावना पर जरूर असर हुआ है। तांबे की कीमतें 8,000 डॉलर के आस पास चल रही थीं जो अब 6,500 रुपये तक गिर चुकी हैं। चीन में मौद्रिक नीति में सख्ती का असर भी कीमतों पर हुआ है।
यूरोप के ऋण संकट से एक्सचेंजों में पिट रहे हैं जिंस
बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में ज्यादातर धातुओं में 4-6 फीसदी की गिरावट रहीकच्चे तेल की कीमतें 7 माह के न्यूनतम स्तर- 68 डॉलर प्रति बैरल परजानकारों का मानना है कि 1-2 महीनों में आ सकती है कीमतों में तेजीज्यादातर परिशोधन इकाइयों का काम तेज (बी स हिंदी)
17 मई 2010
अक्षय तृतीया पर और दमका सोना
आकर्षक नजारा महंगा होने के बावजूद लोगों ने जमकर की खरीदारी रविवार के दिन सराफा बाजार रहे खुले, बैंकों ने भी खोलीं अपनी शाखाएं चंडीगढ़ और पंजाब में बिक्री 40फीसदी बढ़ी गहनों की बिक्री वैल्यू के हिसाब से बढ़ गई, पर वाल्यूम में रही कम भोपाल में ऑटोमोबाइल के लिए बेहतर, पर ज्वेलरी में सामान्य रहा यह त्योहार जयपुर में इस मौके पर सोने का कारोबार इस साल रहा उम्मीद से कम महंगा होने के बावजूद सोने की दमक फीकी नहीं पड़ रही है। रविवार को अक्षय तृतीया के अवसर पर तो नजारा और भी आकर्षक रहा। लोगों ने स्वर्णाभूषणों और सिक्कों की जमकर खरीदारी की। चंडीगढ़ और पंजाब के ज्वेलर्स ने अपनी बिक्री में आम दिनों की तुलना में 30 से 40 फीसदी की जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की। वहीं, 24 कैरट खरा सोना बचने में बैंकांे का सिक्का खूब चला। रविवार को छुट्टी का दिन होने के बावजूद एसबीआई, बैंक ऑफ इंडिया और एचडीएफसी बैंक ने सोने के सिक्के बेचने के लिए अपनी कई शाखाएं खोलीं। अक्षय तृतीया के अवसर पर सोने के सिक्कों पर एक फीसदी की छूट देने वाले एसबीआई चंडीगढ़ सर्किल के मुख्य महाप्रबंधक एसके सहगल ने बताया कि सर्किल में उनके बैंक की 29 शाखाएं रविवार के दिन खोली गईं। वहीं, अमूमन रविवार को बंद रहने वाले चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के तमाम सराफा बाजार भी खुले रहे। अक्षय तृतीया के मौके को भुनाने में केवल तनिष्क, गीतांजली और नक्षत्र जैसे बड़े ज्वेलरी ब्रांड ही नहीं, बल्कि बिग बाजार जैसे रिटेल स्टोर भी आगे रहे। अक्षय तृतीया के दिन 22 कैरट हालमार्क स्वर्णाभूषणों पर प्रति ग्राम 100 रुपये की छूट देने वाले बिग बाजार जीरकपुर के बिक्री प्रमुख गुरपाल सिंह के मुताबिक आम दिनों की तुलना मंे उनके यहां सोने की बिक्री में तकरीबन 500 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चंडीगढ़ स्थित न्यू जयपुरिया ज्वेलर्स के दीपक गुप्ता कहते हैं कि अक्सर धनतेरस पर सोने-चांदी की खरीदारी को शुभ मानने वाले चंडीगढ़ और पंजाब के लोगों का रुझान पहली बार अक्षय तृतीया पर सोने की खरीदारी की ओर बढ़ा है। उनके मुताबिक अक्षय तृतीया के दिन उनके यहां आम दिनों की तुलना मंे स्वर्णाभूषणांे की बिक्री 30 से 40 फीसदी बढ़ी है। उधर, बैंक ऑफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनके यहां 5 और 8 ग्राम के सिक्कों की जमकर बिक्री हुई। वहीं, 20 और 50 ग्राम के सिक्कों के लिए बहुत कम खरीदार आए। जहां तक देश की राजधानी का सवाल है, सोने का भाव ऊंचा होने के कारण अक्षय तृतीया पर गहनों की बिक्री वैल्यू के हिसाब से तो बढ़ गई, लेकिन वाल्यूम के हिसाब से कम रही। पिछले साल अक्षय तृतीया पर सोने का भाव 14,700 रुपये प्रति दस ग्राम था, जबकि इस बार भाव 18,300 रुपये प्रति दस ग्राम है। इसलिए ग्राहकों ने कम वजन वाले गहनों की ज्यादा खरीदारी की। दिल्ली बुलियन एंड ज्वेलर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि सोने का भाव पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले तकरीबन 3,600 रुपये प्रति दस ग्राम ज्यादा होने का असर गहनों की बिक्री पर देखा गया।इसलिए सोने के गहनों की बिक्री अक्षय तृतीया के अवसर पर वैल्यू के हिसाब से ज्यादा हुई है, लेकिन अगर मात्रा यानी वाल्यूम में देखें तो पिछले साल से कम रही है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी ट्रेड फेडरशन (जीजेएफ) के चैयरमैन विनोद हायाग्रीव ने बताया कि अक्षय तृतीया पर सोने के गहनों की बिक्री में पिछले साल के मुकाबले करीब 30-35 फीसदी की खासी बढ़ोतरी हुई है। सोने में तेजी के रुख के कारण ग्राहक कम वजन के गहनों की खरीद ज्यादा कर रहे हैं, इसलिए ज्वेलर्स भी आकर्षक मॉडलों में कम वजह के गहने ज्यादा बना रहे हैं। गीतांजलि समूह की जनरल मैनेजर (मार्केटिंग) शारदा उनियाल ने बताया कि अक्षय तृतीया पर हमने अपने ग्राहकों के लिए के लिए सोने के सिक्कों की नई रेंज स्वर्ण मुद्रिका के नाम से बाजार में उतारी थी। इससे हमारी बिक्री बढ़ी है। हमने डायमंड के आधे से दो कैरट के वजन वाले नक्षत्र डायमंड को गुडलक के नाम से पहली बार बाजार में उतारा। ग्राहकों ने इसकी भी जमकर खरीदारी की है। हालांकि, वास्तविक आंकड़े एक-दो दिन बाद ही मिल पाएंगे। तनिष्क के उपाध्यक्ष संदीप कुलहल्ली ने बताया, अक्षय तृतीया पर गहनों की खरीद में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है। अक्षय तृतीया समृद्धि और उज्जावल भविष्य का त्यौहार है। इस अवसर पर हमने अपने ग्राहकों के लिए गहनों की बनवायी पर 25 फीसदी तक की छूट दे रखी थी जिससे सोने की ऊंची कीमतों से उन्हें थोड़ी राहत मिली। अगर बात भोपाल की करें तो खरीदारी के लिहाज से शुभ मानी जाने वाली अक्षय तृतीया जहां ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए बेहतर रही, वहीं सोने में ग्राहकी सामान्य रही। ऑटोबाइल सेक्टर में वाहनों की आपूर्ति करना शोरूम संचालकों के लिए भारी पड़ गया जिसके चलते भोपाल में कई मॉडलों की बुकिंग करनी पड़ी। टाटा मोटर्स की अधिकृत डीलर मेकमोहन मोटर्स के एमडी प्रगति अग्रवाल ने कहा कि रविवार को हमने 40 मॉडलों की बिक्री की। कुछ मॉडल स्टॉक में न होने के कारण हमें बुकिंग करनी पड़ी। वहीं, मारुति के डीलर माय कार के संचालक सौरभ गर्ग ने कहा, अक्षय तृतीया के लिए पहले से ही काफी बुकिंग थी। हमने भोपाल में 75 गाड़ियों और इंदौर के शोरूम पर 55 गाड़ियों की बिक्री की। हीरो होंडा के डीलर वरण्यम मोटर्स के संचालक विशाल जोहरी ने कहा कि अक्षय तृतीया के लिए बुकिंग पहले से थी। रविवार की शाम सात बजे तक हम 85 गाड़ियों की बिक्री कर पाए हैं। सांघी बजाज के प्रबंधक भूपेंद्र गुर्जर ने कहा कि हमने 150 वाहनों की बिक्री की। पल्सर ब्रांड न होने के कारण करीब 30 गाड़ियों की बुकिंग करनी पड़ी। वहीं, अग्रवाल ज्वेलर्स के संचालक जय मोहन अग्रवाल ने कहा कि ज्वेलरी मार्केट ग्राहकी के हिसाब से सामान्य रही। ज्यादातर बिक्री मंगलसूत्र और सोने की चेन की हुई। उधर, जयपुर में अक्षय तृतीया के अबूझ मुहूर्त के बावजूद इस साल सोने का कारोबार उम्मीद से कम रहा। वहीं, कारोबार कमजोर रहने की आशंका के मद्देनजर शहर में सर्राफा की लगभग 10 फीसदी दुकानें ही खुलीं। सर्राफा ट्रेडर्स कमेटी के अध्यक्ष रामेश्वर गोयल ने बताया कि पहले ज्यादातर व्यवसायियों ने रविवार को अवकाश के मद्देनजर दुकान नहीं खोलने का मन बना लिया था। इस वजह से ज्यादातर सर्राफा कारोबारियों ने दुकानें बंद रखीं। सर्राफा व्यवसायी नंदकिशोर मेघराज ने बताया कि इस साल अक्षय तृतीया को कारोबार पिछले वर्ष की तुलना में कम रहा। एक अन्य व्यवसायी मुरारीलाल मौसूण ने बताया कि रविवार का दिन होने की वजह से भी कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ा, क्योंकि आमतौर पर रविवार को दुकानें बंद रहती हैं। इस भ्रम की वजह से लोग घरों से खरीदारी के लिए नहीं निकले। सर्राफा व्यवसायी मोनिका अग्रवाल ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो से अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का चलन बढ़ा है, लेकिन इस साल कारोबार उम्मीद से बहुत कम रहा है। उल्लेखनीय है कि जयपुर के सर्राफा व्यवसायियों ने अक्षय तृतीया पर सोने की बिक्री बढ़ाने के लिए कोई स्कीम भी नहीं चलाई थी।(इनपुट : चंडीगढ़ से हरीश मानव, दिल्ली से आर।एस.राणा, भोपाल से धर्मेन्द्र ¨सह भदौरिया और जयपुर से प्रमोद कुमार शर्मा) (बिज़नस भास्कर)
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