नई दिल्ली। गरीबों को इस साल सस्ता अनाज मुहैया कराने का सरकारी वादा वायदा ही रह गया। राजकोषीय घाटे पर काबू पाने की जल्दी और खाद्यान्न उत्पादन की खस्ताहाल स्थिति के चलते गरीबों को तीन रुपये किलो अनाज देने की योजना कम से कम सालभर और लटक गई है।
वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने बजट में सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को नजरअंदाज ही कर दिया। खाद्य मंत्रालय अभी तक खाद्य सुरक्षा अधिनियम का मसौदा भी तैयार नहीं कर पाया है। अगले वित्त वर्ष के लिए खाद्य सब्सिडी के तौर पर लगभग 55 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।
चालू वित्त वर्ष के दौरान खाद्य सब्सिडी 72 हजार करोड़ रुपये पहुंच चुकी है। खाद्य सब्सिडी बिल में यह कटौती राजकोषीय घाटे पर काबू पाने के लिए जरूरी है लेकिन इसका साफ मतलब है कि सरकार गरीबों को हर महीने 35 किलो अनाज देने के लिए अलग से कोई राशि नहीं दे रही है। दोबारा सत्ता में लौटी संप्रंग सरकार ने अपने एक सौ दिनों में गरीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने का वायदा किया था। खाद्य सुरक्षा अधिनियम का खाका तैयार करने के लिए दिग्गज मंत्रियों के समूह की मेहनत भी रंग न ला सकी। सातवें आसमान पर पहुंची मंहगाई ने सरकार के राजनीतिक मंसूबे पर पानी फेर दिया।
वित्त मंत्रालय पहले ही खाद्य सब्सिडी के बोझ से दबा जा रहा है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान से सब्सिडी के और अधिक बढ़ने का खतरा है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बजट से पहले उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह की बैठक में मोटा-मोटा खाका तैयार कर लिया गया। इसका पूरा मसौदा बनाने में दो महीने का समय और लगेगा। इसके बाद मसौदा कानूनी पहलुओं की जाच के लिए विधि मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। वहा से मसौदा लौटने पर इसे मंत्रियों के समूह को अंतिम मंजूरी के लिए सौंप दिया जाएगा।
कैबिनेट की हरी झडी के बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा। वहा भी इसे आसानी से मान लेने की संभावना नहीं है। मसौदा स्थाई समिति को सौंपा जा सकता है। मसौदे को इस लंबी यात्रा को पूरा करने में सालभर बीत जाना तय है। (दैनिक जागरण)
03 मार्च 2010
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