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03 जून 2009

खाद्य कीमतों में उछाल की आशंकाओं को लगा विराम

नई दिल्ली- एक हफ्ते तक अस्थाई तौर पर रुकने के बाद मानसून में आई रफ्तार ने खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी आने की शंकाओं पर विराम लगा दिया है। सोमवार को देश के मौसम विभाग ने कहा है कि मानसून कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में आगे बढ़ रहा है। कृषि कमोडिटी विश्लेषक कह रहे थे कि अगर मानसून के आगे बढ़ने की रफ्तार कुछ दिन और थमी रहती तो इससे खरीफ फसल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती थी। कार्वी कॉमटेड के मुख्य एनालिस्ट हरीश गलीपेली के मुताबिक, 'मानसून के आगे बढ़ने में और देरी से जमीन तैयार करने और दूसरी कृषि गतिविधियों पर असर पड़ सकता था। ऐसे में खरीफ की फसल की कीमतों में तेजी आती।' खरीफ फसल की पैदावार के लिए मानसूनी बारिश सबसे अहम मानी जाती है। साथ ही देश के कुल कृषि उत्पादन में खरीफ फसल की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी रहती है। खरीफ फसल की बुआई जून के दूसरे हफ्ते में शुरू होती है। खरीफ फसल की अच्छी पैदावार ग्रामीण इलाकों में मांग को बढ़ाती है। ग्रामीण मांग को घरेलू अर्थव्यवस्था की रफ्तार के लिए अहम कारक माना जाता है। विश्लेषकों का मानना है कि ग्रामीण मांग में मजबूती का रहने से ही भारत दूसरे देशों के मुकाबले मंदी के दौर में भी बेहतर प्रदर्शन कर सका है। मानसूनी बारिश में और देरी होने का खाद्य कीमतों की महंगाई पर असर पड़ता। इस साल जनवरी के शुरू में दस साल के उच्चतम स्तर 11.64 फीसदी पर पहुंचने के बाद खाद्य पदार्थों की सालाना महंगाई दर घटकर आठ फीसदी पर आ गई है। कंज्यूमर प्राइस इंफ्लेशन (उपभोक्ता कीमत मुदास्फीति) इस साल के शुरुआत के दहाई अंक के आंकड़े से निकलकर अप्रैल में गिरकर 8.5 फीसदी पर आ गया है। खरीफ उत्पादन को मजबूत रखने के अलावा वक्त पर आए मानसून से सर्दियों में होने वाली मक्के, सोयाबीन, चना, मसूर और अरहर जैसी फसलों की पैदावार में भी मदद मिलती है। इन फसलों की मानसून के गुजरने के बाद बुआई की जाती है। शेयरखान में कमोडिटी रिसर्च एनालिस्ट मेहुल अग्रवाल के मुताबिक मानसून के सही वक्त पर होने की वजह से कृषि कमोडिटी की कीमतें निचले स्तर पर बनी रहेंगी साथ ही इससे किसानों को भी कोई नुकसान नहीं होगा। अग्रवाल के मुताबिक, 'खाद्य पदार्थों की कीमतों के कम स्तर पर होने से किसानों की आमदनी पर कोई चोट नहीं पहुंचेगी, क्योंकि फसलों का उत्पादन काफी ज्यादा होगा। इससे कम कीमतों का असर खत्म हो जाएगा। मांग, आपूर्ति और ऊंची कीमतों के होने से मांग में कमी आने जैसे कारक अपना योगदान देंगे।' (ET Hindi)

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