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11 जून 2009

सीमेंट उद्योग ने मांगी मालभाड़े में छूट

मुंबई June 10, 2009
घरेलू सीमेंट उद्योग ने सीमेंट के निर्यात पर मालभाड़े में 50 प्रतिशत सब्सिडी दिए जाने की मांग की है।
जुलाई में आने वाले बजट में सीमेंट और क्लिंकर के निर्यात पर यह छूट इसलिए मांगी है, जिससे इनकी कीमतें तर्कसंगत रह सकें। सीमेंट के ज्यादातर संयंत्र देश के भीतरी इलाकों में स्थित हैं और सीमेंट एक क्षेत्रीय जिंस है जिसके चलते मालभाड़ा बढ़ जाता है।
इसके चलते केवल तटीय इलाकों के संयंत्रों से ही निर्यात करना तर्कसंगत रह जाता है। इस मांग का महत्व इसलिए है कि यह उद्योग अपनी क्षमता में बहुत ज्यादा विस्तार कर रहा है। उद्योग जगत के विश्लेषकों का कहना है कि अगर सब्सिडी दी जाती है तो निर्यात बाजार में यह उद्योग अधिक योगदान देने में सक्षम हो सकेगा। खासकर इस उद्योग की पहुंच पश्चिम एशियाई देशों के बाजार तक हो सकेगा।
इस उद्योग ने पिछले तीन साल में 9.7 प्रतिशत की औसत वृध्दि दर हासिल की है। उम्मीद की जा रही है कि वित्त वर्ष 10 में उद्योग की क्षमता में 450 लाख टन की बढ़ोतरी हो जाएगी, जिसके बाद कुल उत्पादन क्षमता बढ़कर 2600 लाख टन प्रति वर्ष हो जाएगी। इसके साथ ही सीमेंट उद्योग ने कर ढांचे को फिर से निर्धारित किए जाने की मांग की है, क्योंकि सीमेंट ही निर्माण कार्य में काम आने वाली जिंस है, जिस पर सबसे ज्यादा कर लिया जाता है।
सीमेंट पर लगने वाले उत्पाद शुल्क का ढांचा बहुत ही जटिल है, जिसे सरल और तर्कसंगत बनाए जाने की जरूरत है। बजट पूर्व दिए गए अपने ज्ञापन में सीमेंट उद्योग ने कहा है कि सीमेंट पर उत्पाद शुल्क की दरें एकसमान होनी चाहिए। उद्योग का विचार है कि सीमेंट पर लगने वाले कर पर लेवी सीमेंट की अधिकतम खुदरा मूल्य का 12 प्रतिशत किया जा सकता है।
वर्तमान में सीमेंट पर लगने वाले कर के तीन सेट हैं। अगर सीमेंट का खुदरा बिक्री मूल्य 190 रुपये प्रति 50 किलो की बोरी से कम है तो उत्पाद शुल्क 230 रुपये प्रति टन लगता है। अगर सीमेंट 190 रुपये प्रति बोरी से अधिक मूल्य पर खुदरा बाजार में बेचा जाता है तो बिक्री मूल्य का 8 प्रतिशत उत्पाद शुल्क के रूप में लिया जाता है।
संस्थागत बिक्री की दशा में बिक्री मूल्य का 8 प्रतिशत या 230 रुपये प्रति टन, जो भी ज्यादा हो, के हिसाब से कर लिया जाता है। उद्योग जगत की यह भी मांग है कि सीमेंट को मूल्यवर्धित कर (वैट) के मामले में स्टील के स्तर पर लाना चाहिए।
सीमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन द्वारा वित्त मंत्रालय को भेजे गए वक्तव्य में कहा गया है, 'निर्माण गतिविधियों में स्टील और सीमेंट दोनों समान महत्व रखते हैं। स्टील पर जहां 4 प्रतिशत वैट लगता है, वहीं सीमेंट और क्लिंकर पर 12.5 प्रतिशत वैट लिया जाता है।'
सीमेंट उद्योग की निर्भरता आयातित कोयले और पेट कोक पर है, क्योंकि कोयले की आपूर्ति कम है। इनके अलावा सीमेंट उद्योग में कच्चे माल के रूप में काम आने वाले जिप्सम के आयात पर भी 5 प्रतिशत आयात शुल्क लिया जाता है। दिलचस्प है कि तैयार माल, सीमेंट के आयात पर कोई कर नहीं लिया जाता।
उद्योग जगत ने सीमेंट उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के आयात को करमुक्त किए जाने की मांग की है, जिससे आयातित सीमेंट की कीमत की तुलना में इसके घरेलू उत्पादन की लागत ज्यादा न होने पाए।
इसके साथ ही थर्मल पावर प्लांट फ्लाई ऐश की आपूर्ति के लिए भी सीमेंट इकाइयों से पैसे लेते हैं। सीमेंट उद्योग ने मांग की है कि प्रदूषण रोकने की इकाई होने के चलते सीमेंट उद्योग को फ्लाई ऐश की आपूर्ति मुफ्त की जानी चाहिए। घरेलू सीमेंट निर्माता कुल फ्लाई ऐश के उत्पादन के 25 प्रतिशत हिस्से की खपत करते हैं।
बजट में चाहिए
सीमेंट के निर्यात में माल भाड़े में 50 फीसदी सब्सिडी लगे समान उत्पाद शुल्कसीमेंट पर वैट घटाकर 4 प्रतिशत किया जाएफ्लाई ऐश की आपूर्ति मुफ्त की जाएलाइमस्टोन पर रॉयल्टी कम की जाए (BS Hindi)

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