नई दिल्ली- पिछले कुछ हफ्तों में आलू और प्याज दोनों की कीमतों में तेजी आई है। इनकी कीमतों में तेजी न केवल सुपरमार्केट में देखी जा रही है बल्कि सामान्य सब्जी वाले के यहां भी आलू, प्याज महंगे हो गए हैं। इनकी कीमतें 15 रुपए प्रति किलो से शुरू हो रही हैं और इनमें गिरावट आने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। अब सवाल यह है कि क्या आपको इन पर इतनी ज्यादा कीमत देनी चाहिए? भारत दुनिया में प्याज उत्पादन के लिहाज से दूसरे नंबर पर है। साथ ही इस साल देश में प्याज की रिकॉर्ड खेती की गई है। अब अगर आलू की बात करें तो भारत इसका उत्पादन करने के मामले में पहले नंबर पर है। अगर देश में प्याज और आलू की इतनी ज्यादा खेती होती है तो इसकी सप्लाई जा कहां रही है? तो भारी उत्पादन होने के बावजूद लोग इन दोनों कमोडिटी के लिए इतनी ज्यादा कीमत क्यों चुका रहे हैं? सबसे पहले आलू की बात करते हैं। सूखे मौसम और गर्मी के कारण इस साल जनवरी में बाजार में आने वाली आलू की फसल में 15 फीसदी की कमी आई है। उत्तर प्रदेश में सर्दी के अपेक्षाकृत गर्म मौसम के कारण आलू की फसल में गिरावट देखी गई है। आलू उत्पादन में दूसरे नंबर पर रहने वाले पश्चिम बंगाल में खराब बारिश और बीमारी की वजह से आलू उत्पादन कम रहा है। इसके अलावा कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी आलू उत्पादन को झटका लगा है।
पूरे देश की मंडियों में आलू की बिक्री नौ रुपए प्रति किलो से कम पर नहीं हो रही है। ट्रांसपोर्ट और दूसरे शुल्कों के हिसाब से एक नियम यह है कि आलू की रीटेल कीमत इसकी मंडी में कीमत के दोगुने पर रहती है। बाजार के जानकारों के मुताबिक ऐसे में 15 रुपए प्रति किलो के स्तर पर आलू की कीमत को ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। संकट में फंसे ग्राहकों के लिए बड़ा प्रश्न यह है कि क्या आने वाले वक्त में आलू की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं। इसका जवाब कर्नाटक और महाराष्ट्र में गर्मियों में होने वाली आलू की फसल पर निर्भर करता है। शुरुआती कारोबारी रिपोर्टों से पता चल रहा है कि कर्नाटक में किसान इस साल आलू के मुकाबले अदरक की फसल को ज्यादा तरजीह दे सकते हैं क्योंकि किसानों को आलू उपजाने में ज्यादा जोखिम नजर आ रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र में बारिश की स्थिति दूसरा कारक होगी जो कि वहां आलू की फसल को निर्धारित करेगी। एक बार बाजार को गर्मियों में होने वाली आलू फसल की पैदावार कम होने का भरोसा हो गया तो इसकी रीटेल कीमतों में त्योहारों के सीजन के दौरान तेजी शुरू हो जाएगी। और अगर किसी भी वजह से दिसंबर की शुरुआत में पंजाब के होशियारपुर और हिमाचल प्रदेश के ऊना में होने वाली आलू की फसल भी कम हुई तो आलू कारोबारियों के लिए लूट मचाने का मौका पैदा हो जाएगा। आलू कीमतों में उछाल का एक और अहम कारण हरी सब्जियों की कीमतों में चल रहा तेजी का रुख है। जब हरी सब्जियां महंगी होती हैं तो आलू की मांग में इजाफा होता है और इससे आलू की कीमतों में तेजी पैदा होती है। ऐसे में कारोबारी ऊंची मांग और कम सप्लाई का फायदा उठाकर मुनाफा बटोरने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा चिप्स और स्नैक्स में इस्तेमाल होने वाले विशेष आलू की कीमतों में भी तेजी का रुख जारी है। 20 रुपए प्रति किलो से ऊपर के स्तर पर इसके खरीदारों की संख्या काफी कम हो गई है और केवल बड़े ब्रांड ही इसकी खरीद कर पा रहे हैं। ग्राहकों के लिए सौभाग्य से आलू के गोदामों में इसे रखने के लिए कम जगह होने से कीमतों पर लगाम लगने की उम्मीद है। बाजार में पंटर चाहे जितनी भी कोशिश कर लें लेकिन अक्टूबर के बाद कोल्ड स्टोर मालिक इन्हें खाली करेंगे। ऐसे में तब कीमतों में गिरावट आएगी। बाजार में मांग और सप्लाई में मौजूद अंतर आलू को महंगा बना रहा है। दूसरी ओर निर्यात में तेजी से प्याज कारोबार में सेंटीमेंट मजबूत हो रहा है और इसकी कीमतें पिछले छह महीने में 40 फीसदी ऊपर चली गई हैं। यह सत्य है कि साल 2008-09 के पहले 10 महीने में प्याज का निर्यात 60 फीसदी ऊपर चढ़ा है। हालांकि निर्यात में बढ़ोतरी ही घरेलू बाजार में प्याज की रीटेल कीमतों को चढ़ाने की वजह है, यह कहना जरा मुश्किल है। प्याज की पैदावार साल में तीन बार होती है। मानसून के दौरान, सर्दियों में और गमिर्यों में। मुंबई के कारोबारियों के मुताबिक सर्दियों में प्याज की अच्छी पैदावार हुई है और वासी बाजार में इसकी कीमत पांच रुपए प्रति किलो पर चल रही है। इसके अलावा बड़ी तादाद में प्याज कोल्ड स्टोरों में भी रखी हुई है। सप्लाई के बेहतर होने के बावजूद बाजार में प्याज 15 रुपए प्रति किलो के स्तर पर चल रही है। (ET Hindi)
08 जून 2009
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