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09 जून 2009

आयात की आपाधापी से सस्ता हुआ खाद्य तेल

नई दिल्ली- पिछले कुछ महीनों से रसोई का बजट बढ़ाने वाले खाद्य तेल की गरमी अचानक गायब हो गई है। आम उपभोक्ताओं को राहत की ऐसी खुराक पाने का मौका कभी-कभार ही मिलता है। अमूमन ऐसा नहीं होता है जब कोई इंडस्ट्री आम ग्राहक को राहत देने की बात सोचे। इसलिए जब इन दिनों ग्राहकों को यह मौका मिला है तो उन्हें इसका पूरा फायदा उठाना चाहिए। आम कारोबारियों की तरह खाद्य तेल उद्योग के महारथियों ने भी ग्राहकों की राह आसान करने की योजना नहीं बनाई थी बल्कि वे तो इससे उल्टा ही कर रहे थे। और उनके ऐसा करने का कारण था मुनाफे का लालच और डर। इस साल मार्च और अप्रैल में खाद्य तेल की कीमतें इतनी ज्यादा थीं कि उस वक्त हर कारोबारी और रिफाइनर इस बात को लेकर उत्साहित था कि आयातित तेल से वह जोरदार मुनाफा कमा सकता है। कुआलालंपुर एक्सचेंज में पाम तेल की बढ़ी कीमतों से संकेत उभर रहे थे कि दुनिया में तेल की तंगी होने वाली है। इसके साथ ही कारोबारियों को इस बात का भी डर था कि नई सरकार खाद्य तेल पर फिर आयात शुल्क थोपेगी। हाल में खाद्य तेल से आयात शुल्क हटाया गया है। अगर शुल्क मुक्त पाम तेल का आयात होता है और बाद में इस पर भारी शुल्क लगाया जाता तो कारोबारियों को तगड़ा मुनाफा होगा। यही वे कारण थे कि सभी की आयात में दिलचस्पी होने लगी। इसी का नतीजा था कि साल दर साल के आधार पर अप्रैल में आयात में 110 फीसदी तेजी दर्ज की गई। देश की तीन सबसे बड़ी रिफाइनरी रुचि सोया, अदानी विल्मर और लिबर्टी ऑयल्स से लेकर दिल्ली के कई छोटे कारोबारी तक, जो अब तक दाल का आयात करते थे, उन्होंने भी पाम तेल आयात में किस्मत आजमाने का फैसला किया। ऐसे माहौल में हर कारोबारी की दिलचस्पी आयात में बढ़ गई। दस लोगों ने अपने-अपने लिए 1,000 टन तेल की बुकिंग की। वहीं दूसरी तरफ रुचि सोया जून में 1,50,000 टन खाद्य तेल आयात करेगी, जो पिछले से 70 फीसदी ज्यादा है। मौजूदा हालत काफी हास्यास्पद हो गई है। अचानक देश के बंदरगाहों के टैंकर खाद्य तेल से भर गए जबकि कोई उसे छूना तक नहीं चाहता। कंपनियों ने गर्मी के मौसम में इतने बड़े पैमाने पर खाद्य तेल का आयात किया जबकि इस मौसम में ग्राहक तेल का कम से कम इस्तेमाल करना चाहता है। अप्रैल में कारोबारियों में थोड़ा उत्साह दिखा क्योंकि चुनाव रैली, नतीजों और शादियों की पार्टियों में लोगों ने जमकर बाहर खाना खाया। हालांकि, अब जबकि शादी और चुनावी पार्टियां खत्म हो चुकी हैं तो खाद्य तेल की मांग गर्मी के मौसम में रहने वाली सामान्य मांग के स्तर तक आ गई है। मई में यह अपने निचले स्तर पर आ गई। जून में मांग और कम रहेगी। जुलाई में तेल कंपनियों को राहत मिल सकती है क्योंकि बारिश के मौसम में घरों में एकबार फिर पकौड़े और कचौडि़यां खाने का चलन बढ़ेगा। (ET Hindi)

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