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01 जून 2009

कोऑपरेटिव ऋण व्यवस्था के प्रति सरकार गंभीर

अल्पावधि सहकारी ऋण व्यवस्था के पुनर्गठन के तहत केंद्र सरकार अभी तक 7,600 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है। अभी तक 25 राज्यों ने इस योजना का लाभ उठाया है। दीर्घावधि सहकारी ऋण व्यवस्था के पुनर्गठन को लेकर भी सरकार गंभीर है और इसे लागू करने का प्लान तैयार कर लिया गया है। मनमोहन सरकार के सौ दिन के एजेंडे या फिर बजट में इसकी घोषणा हो सकती है।दरअसल कृषि और ग्रामीण विकास यूपीए सरकार के एजेंडे में ऊपर है। इसीलिए प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों पर अमल करते हुए उसने अल्पावधि सहकारी ऋण व्यवस्था के पुनर्गठन (शॉर्ट टर्म कोऑपरेटिव क्रेडिट रीस्ट्रक्चरिंग) योजना लागू की थी। इस पुनर्गठन के तहत कुल 13,500 करोड़ का पैकेज बना। इसमें से 9,500 करोड़ रुपये केंद्र सरकार को देने हैं और बाकी राशि राज्यों को जारी करनी है।योजना के तहत यह तय हुआ कि राज्य सरकारें अपने यहां चलने वाली कृषि सहकारी समितियों की ऑडिटिंग कराएंगी। उसके बाद केंद्र सरकार पैसे जारी करेगी। साथ में राज्यों को भी पैसे देने थे। वित्त मंत्रालय के एक शीर्षस्थ अधिकारी के मुताबिक केंद्र सरकार इस योजना के तहत अभी तक 7,600 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है। इस तरह केंद्र को अब बाकी बचे 1,900 करोड़ रुपये ही जारी करने हैं। उक्त अधिकारी के मुताबिक 25 राज्यों में इस योजना के तहत या तो काम चल रहा है या वह पूरा होने के करीब है। जैसे मध्य प्रदेश में 4,529 में से 4,526 कृषि सहकारी समितियों की ऑडिटिंग पूरी कर ली गई है। इसके बाद नाबार्ड ने इनके लिए करीब 700 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता जारी की है।ग्रामीण इलाकों, खासकर किसानों के लिए ऋण व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए सरकार ने यह योजना लागू की थी। जिन राज्यों को इस योजना से सबसे ज्यादा फायदा हुआ है, उनमें पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र शामिल हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश, केरल और गोवा इस योजना से सहमत नहीं हैं और उन्होंने अपने यहां इसे लागू नहीं किया है। जहां तक दीर्घावधि सहकारी ऋण व्यवस्था के पुनर्गठन की बात है, तो वित्त मंत्रालय के उक्त सूत्र के मुताबिक सरकार ने इसके लिए भी योजना तैयार कर ली है। कृषि और ग्रामीण विकास के प्रति मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लांग टर्म कोऑपरेटिव क्रेडिट रीस्ट्रक्चरिंग को केंद्र की सौ दिन की विशेष योजना में स्थान मिल सकता है। सूत्र के मुताबिक अगर सौ दिन की योजना में इसे जगह नहीं मिली तो बजट में इसकी घोषणा तय मानी जा सकती है।उल्लेखनीय है कि कम अवधि वाले सहकारी ऋणों में खास तौर पर फसल ऋण आते हैं। लंबी अवधि वाले सहकारी ऋणों में ट्यूबवेल, ट्रैक्टर आदि के लिए दिए जाने वाले लोन शामिल होते हैं।पिछली यूपीए सरकार के वित्त राज्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने राज्यसभा में इसी साल फरवरी में घोषणा की थी कि सरकार सहकारी बैंकों की क्रेडिट रीस्ट्रक्चरिंग को लेकर गंभीर है और इसीलिए वह इन बैंकों की कॉरपोरेट रीस्ट्रक्चरिंग कर रही है। (Business Bhaskar)

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