राजकोट 05 05, 2009
इलेक्ट्रॉनिक कांटा मशीन के बाजार में प्रवेश करने और सरकारी सहायता के अभाव में गुजरात की यांत्रिक कांटा मशीन का बाजार अब मरने की स्थिति पर पहुंच गया है।
100 साल पुरानी इस इंडस्ट्री में यांत्रिक कांटा मशीन बनने की शुरूआत 1905 में हुई थी। बीसवीं सदी के अंत और इक्कीसवीं सदी के शुरूआत में यह देश की एकमात्र इंड़स्ट्री थी जहां से पूरे देश को यांत्रिक कांटा तराजू की आपूर्ति की जाती थी।
पर जैसे-जैसे इलैक्ट्रॉनिक कांटा मशीन ने बाजार में अपना पैर फैलाना शुरू किया वैसे ही सावरकुंडला स्थित इस इंडस्ट्री का एकाधिकार समाप्त होता गया। सावरकुंडला कांटा मशीन मैन्यूफैक्चरर एसोसिएशन के अध्ययक्ष जेंतीभाई मकवाना का कहना है 'पहले सावरकुंडला इंडस्ट्री यांत्रिक कांटा मशीन बनाने वाली अकेली इंडस्ट्री थी। पर अब इलेक्ट्रॉनिक कांटा मशीन के बाजार में प्रवेश करने से इसका एकाधिकार खत्म हो गया है। '
पांच साल पहले यांत्रिक कांटा मशीन की 300 से 350 छोटी इकाइयां काम करती थीं पर अब केवल 100 -125 इकाइ ही काम करने योग्य बची हैं। बाकि इकाइयां बंद हो गई और इसकेनिर्माता या तो खेती के औजार बनाने में लग गए या उन्होंने कोई और व्यापार शुरू कर लिया है। उनमें से कुछ ने इलेक्ट्रॉनिक कांटा मशीन बनाना शुरू कर दिया है।
यांत्रिक कांटा मशीन में लगभग 10,000 से भी ज्यादा कामगार हैं और इसकी वार्षिक आमदनी 150 से 175 करोड़ रुपये है जो पिछले पांच साल के 600 से 700 करोड़ रुपये के मुकाबले बहुत कम है।
सावरकुंडला चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री (एससीसीआई) के पूर्व सचिव भूपेश भाई मेहता का कहना है कि इस इंडस्ट्री पर मंदी का कोई खास असर नहीं पड़ा क्योंकि यह ज्यादातर घरेलू बाजार की मांग को पूरा करता है। पर इंडस्ट्री को सरकार से काफी मदद की जरूरत है खासकर कम दर पर बिजली और जिंदा रहने के लिए जरूरी मदद की आवश्यकता है।
अकूरी उद्योग के मालिक बकुलभाई चूडासमा का कहना है 'इलेक्ट्रॉनिक कांटा मशीन के बावजूद सावरकुंडला कांटा मशीन अच्छा काम कर सकती है क्योंकि यहीं से कांटा मशीन बनने की शुरूआत हुई है। पर दिक्कत यह है कि अब इसका एकाधिकार खत्म हो गया है।' (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें