कोलकाता October 03, 2008
देश के पुराने एक्सचेंजों में से एक ईस्ट इंडिया जूट एंड हेस्सियन एक्सचेंज (ईआईजेएचई) को दुबारा खड़ा करने की कोशिशें नाकाम हो गई हैं। कोलकाता में एक्सचेंज की 51वीं आमसभा के खत्म होने के बाद जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि इस एक्सचेंज को जिंदा करने के जो प्रयास किए जा रहे थे वह नाकाम रहे हैं। यह जानकारी एक्सचेंज के अध्यक्ष अरुण कुमार सेठ ने दी।
सेठ ने बताया कि कारोबार में गिरावट और कई समस्याओं के चलते एक्सचेंज का काम-काज ठप हो चुका है। यही नहीं एक्सचेंज खुद को ऑनलाइन उपलब्ध कराने में नाकाम रहा है। सेठ ने कहा कि एक्सचेंज जूट के वायदा कारोबार का संचालन भी करा पाने में नाकाम रहा है। उनके शब्दों में, ‘वायदा कारोबार के मानदंड बदल चुके हैं।’ इस एक्सचेंज में वायदा कारोबार पिछले पांच साल में लगभग खत्म हो गया है। फिलहाल यहां मुट्ठीभर के वायदा अनुबंध ही संचालित हो रहे हैं। 2004 में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज और एनसीडीईएक्स ने कच्चे जूट का वायदा कारोबार शुरु किया जिसके चलते इस एक्सचेंज से बड़े पैमाने पर कारोबारियों का पलायन उन एक्सचेंजों की ओर हो गया। हाल ये है कि अभी यहां 80 की बजाय महज 8 ‘रिंग मेंबर’ ही रह गए हैं।
1963 से 1993 के बीच देश में वायदा कारोबार प्रतिबंधित रहा इसके बावजूद यहां जूट का वायदा कारोबार होता रहा। 1952 से 2004 के बीच तो यह एक्सचेंज जूट के संगठित कारोबार का इकलौता संचालक रहा। इस दौरान एक्सचेंज में जूट का वायदा कारोबार फलता-फूलता रहा। 1997 में तो इसके कारोबार में बूम की स्थिति रही। 1999 में इस एक्सचेंज के सामने समस्याएं तब उत्पन्न हुई जब फरवरी 1999 में इसका कारोबार निलंबित कर दिया गया। अगस्त महीने में इसे फिर से बहाल कर दिया गया। इसके बाद कीमतों में अस्थिरता के कई दौर आए। प्रतिद्वंद्वी जूट कंपनियों की शह पर इसके रिंग मेंबरों के बीच गुट बन गए। 2003 नवंबर में वायदा बाजार आयोग के पास गई शिकायत के बाद एफएमसी ने फरवरी 2004 से यहां कारोबार बंद कर दिया गया। 2004 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने देश में कच्चे जूट समेत कई जिंसों के वायदा कारोबार को अनुमति दे दी। 2006 से एक बार फिर ईआईजेएचई में कच्चे जूट के कारोबार को अनुमति दी गई लेकिन दूसरे एक्सचेंजों द्वारा गति पा लिए जाने से यह एक्सचेंज फिर कभी अपनी वह पुरानी रवानी पाने में नाकाम रहा। (BS Hindi)
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