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01 अक्तूबर 2008

पहले बर्फखाना,फिर आजादपुर,अब टीकरी कलां

राजधानी दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल, बर्फखाना और घंटाघर के बीच एक फल-सब्जी मंडी हुआ करती थी। दिल्ली और आसपास के गांवों के किसान बैलगाड़ियों और तांगे से यहां माल लेकर आते थे। उन दिनों आवक कम थी तो ग्राहक भी कम थे। लेकिन आज तो इस मंडी की बात ही कुछ और है।सेब व्यापारी मीठाराम कृपलानी चार दशकों से इस बाजार के रूप को बदलते हुए देख रहे हैं। वह बताते हैं, ग्राहकी बढ़ी तो आवक भी बढ़ने लगी। बैलगाड़ी की जगह ट्रकों ने ले ली। तांगे की जगह टेम्पो आ गए। पड़ोसी राज्यों से माल यहां आने लगा। रेलवे स्टेशन करीब होने के कारण व्यापारी रेल से भी दूसरे राज्यों से फल और सब्जियां मंगाने लगे। धीरे-धीरे मंडी में कारोबार बढ़ने लगने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि लगभग पूरे भारत से यहां फल-सब्जी की आवक होने लगी और खरीदार भी पूरे देश से आने लगे। देखते ही देखते आजादपुर फल एवं सब्जी मंडी एशिया में नम्बर वन हो गई। यहां आपको बेमौसमी फल और सब्जियां भी आसानी से मिल जाएंगी। विदेशी फल भी आप यहां से खरीद सकते हैं। कैलिफोर्निया का रॉयल सेब और चीन का फूजी सेब यहां आसानी से मिल जाता है। यहां से फल-सब्जियों का निर्यात भी होता है। वर्तमान में यहां कश्मीर से रोजाना करीब 1000 ट्रक सेब की आवक हो रही है। मीठाराम जितने ही पुराने एक और व्यापारी हैं राजकुमार भाटिया। मौसमी का बिजनेस करते हैं और इन दिनों कृषि विपणन समिति के सदस्य भी हैं। भाटिया बताते हैं कि 1968 में मंडी की जगह बदलने का सिलसिला शुरू हुआ। सेब की बिक्री 1972 में आजादपुर में होने लगी। फिर 1976 में पूरी फल-सब्जी मंडी आजादपुर में आ गई। तब आजादपुर राजधानी का एक छोर हुआ करता था। आसपास कोई बस्ती नहीं थी। वहां मंडी के लिए 30 एकड़ जमीन दी गई। यहीं रेलवे स्टेशन के करीब केला गोदाम बनाए गए। फिर डीडीए ने दुकान बनाकर व्यापारियों को आवंटित की। वर्ष 2002-03 में मंडी का नाम बदलकर किसान नेता चौधरी हीरा सिंह के नाम पर रख दिया गया।इस समय मंडी में 438 छोटी और 828 बड़ी दुकानें हैं। यहां करीब 50 तरह के फल और 68 तरह की सब्जियों की आवक पूरे साल होती है। मंडी में रोजाना करीब साढ़े चार हजार किसान आते हैं, जिनके ठहरने के लिए एक किसान भवन बनाया गया है। हालांकि इसका आकार अभी छोटा है और यहां 92 किसान ही ठहर सकते हैं। मंडी में इस समय सात कोल्ड स्टोरेज हैं। व्यापारियों के 40 कोल्ड स्टोरेज कुंडली बार्डर पर हैं।राजकुमार भाटिया ने बताया कि पहले मंडी की जमीन का बड़ा इलाका खाली पड़ा रहता था। बाद में फलों की बोली के लिए सराय पीपल थला में नया शेड बनाया गया। इस समय मंडी के पास करीब 88 एकड़ जगह है लेकिन रोजाना लगभग 4500 ट्रकों और टेम्पो की आवाजाही होने से जगही की तंगी हो गई है। इसलिए अब एक बार फिर मंडी का स्थान बदलने की कवायद की जा रही है। डीडीए ने बाहरी दिल्ली के टीकरी कलां में करीब 70 एकड़ जमीन इसके लिए चिन्हित की है। व्यापारियों को यह बहुत कम लग रहा है। भाटिया के मुताबिक मास्टर प्लान 2021 के आधार पर नई मंडी का कवर्ड एरिया पुरानी मंडी से भी कम हो जाएगा। उनका मानना है कि मंडी के लिए कम से कम 100 एकड़ जगह होनी चाहिए। उनका तो यहां तक कहना है कि जिस तेजी से दिल्ली की आबादी बढ़ रही है, भविष्य में इतनी जमीन भी कहीं कम न पड़ जाए। उनका अंदाज-ए-बयां कुछ इस तरह था- पहले बर्फ खाना, फिर आजादपुर, अब टीकरी कलां, आगे राम जाने.. (Business Bhaskar......R S Rana)

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