30 अगस्त 2010
बढ़ सकता हैं खाद्य तेलों का मूल्य
त्यौहारी मांग बढऩे से खाद्य तेलों की कीमतों में पांच से दस फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है। आयातित खाद्य तेलों क्रूड पाम ऑयल और आरबीडी पामोलीन के दाम चालू महीने में क्रमश: 16.1 फीसदी और 17.7 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। हालांकि जुलाई में खाद्य तेलों का आयात बढ़ा था लेकिन आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी से अगस्त में आयात कम होने का अनुमान है। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि अगले सप्ताह से खाद्य तेलों में त्यौहारी मांग निकलनी शुरू हो जाएगी। इसीलिए मौजूदा कीमतों में पांच से दस फीसदी का सुधार आ सकता है। जयपुर में सरसों तेल का दाम करीब 520 रुपये प्रति 10 किलो चल रहा है। जबकि इंदौर में सोयाबीन रिफाइंड तेल का दाम 495 रुपये, हरियाणा में बिनौला तेल का भाव 465 रुपये, कांडला बंदरगाह पर क्रूड पाम तेल का भाव 415 रुपये, आरबीडी पॉमोलिन का भाव 450 रुपये और गुजरात में मूंगफली तेल का भाव 830 रुपये प्रति दस किलो है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू महीने में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। आयातित क्रूड पाम तेल का भाव पहली जुलाई को 775 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) मुंबई पहुंच था जो इस समय बढ़कर 900 डॉलर प्रति टन हो गया है। इसी तरह से आरबीडी पॉमोलीन का भाव पहली जुलाई को 815 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) मुबई पहुंच था, जो इस समय बढ़कर 960 डॉलर प्रति टन हो गया है। साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि पहले की तुलना में बंदरगाह पर खाद्य तेलों का स्टॉक कम हुआ है। हालांकि चालू खरीफ में तिलहनों की बुवाई बढ़ी है लेकिन अभी नई फसल आने में करीब दो महीने का समय शेष है। आयातित खाद्य तेल चूंकि महंगे पड़ रहे हैं इसलिए घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के दाम बढऩे की संभावना है। एसईए के अनुसार पहली अगस्त को बंदरगाहों पर खाद्य तेलों का स्टॉक करीब 6.35 लाख टन का बचा हुआ था। चालू तेल वर्ष के पहले नौ महीनों (नवंबर-09 से जुलाई-10) के खाद्य तेलों के आयात में एक फीसदी की कमी आकर कुल आयात 63.38 लाख टन रहा। जुलाई महीने में देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर लगभग आठ लाख टन का हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के 5.96 टन से 34 फीसदी ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष के मई और जून में आयात में कमी आई थी। मई में आयात 7.51 लाख टन से घटकर 5.58 लाख टन और जून में 7.80 लाख टन से घटकर 7.32 लाख टन का ही हुआ था। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई रिपोर्ट के अनुसार चालू खरीफ में तिलहनों की बुवाई पिछले साल के 159.27 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 164.99 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। (Business Bhaskar....aar as raana)
निर्यात मांग कम होने से हल्दी में गिरावट का रुख
निर्यातकों के साथ घरेलू मसाला निर्माताओं की मांग घटने से हल्दी की कीमतों में गिरावट का रुख बना हुआ है। वायदा बाजार पखवाड़े भर में हल्दी के दाम आठ फीसदी और हाजिर में 3.2 फीसदी घटे हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निर्यात 11 फीसदी घटा है। वैसे भी चालू सीजन में हल्दी की बुवाई में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में इसकी मौजूदा कीमतों में और भी चार-पांच फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। टर्मरिक मर्चेंट्स एसोसिएशन के सदस्य एस. सी. गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में हल्दी किसानों ने ऊंचे भाव को देखते हुए बुवाई ज्यादा की है। प्रमुख उत्पादक राज्यों में हल्दी के बुवाई क्षेत्रफल में करीब 25' की बढ़ोतरी का अनुमान है। हालांकि उत्पादक मंडियों में पुराना स्टॉक केवल 15 लाख बोरी (प्रति बोरी 70 किलो) का ही बेचा हुआ है। लेकिन निर्यातकों के साथ ही घरेलू मसाला निर्माताओं की मांग कमजोर होने से गिरावट को बल मिला है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हल्दी का निर्यात 11 फीसदी घटा है। अप्रैल-मई महीने में देश से हल्दी का निर्यात 10,350 टन का हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के 9,625 टन से ज्यादा था। निजामाबाद मंडी के थोक कारोबारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि कमजोर मांग से पिछले पंद्रह दिनों में हल्दी की कीमतों में करीब 500 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आया है। निजामाबाद मंडी में भाव घटकर गुरुवार को 15,000 रुपये और इरोड मंडी में 15,500 से 15,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि निजामाबाद मंडी में दैनिक आवक केवल 500 से 700 बोरी की ही हो रही है। लेकिन इरोड़ में दैनिक आवक करीब 5000 बोरी की हो रही है।थोक व्यापारी डूंगरचंद ने बताया कि उत्पादक मंडियों में केवल 15-16 लाख बोरी का ही स्टॉक बचा हुआ है। हालांकि बुवाई में बढ़ोतरी हुई है लेकिन नई फसल की आवक जनवरी-फरवरी में बनेगी। नई फसल की आवक बनने में करीब छह महीने का समय शेष है। निर्यात और घरेलू मांग को मिलाकर करीब हर महीने करीब 2.5 लाख बोरी की खपत होती है। इसलिए मौजूदा कीमतों में 500-700 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने के बाद नीचे भावों में फिर से स्टॉकिस्टों की खरीद निकलने की संभावना है। वायदा बाजार एनसीडीईएक्स पर अगस्त महीने के वायदा अनुंबध में पिछले पंद्रह दिनों में करीब 8 फीसदी की गिरावट आई है। 22 जुलाई को अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में हल्दी का भाव 15,118 रुपये प्रति क्विंटल था जो गुरुवार को घटकर 13,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।बात पते कीमंडियों में हल्दी के मौजूदा कीमतों में 500-700 रुपये प्रति क्विंटल की और गिरावट आ सकती है। लेकिन बाद में नीचे भावों में फिर से स्टॉकिस्टों की खरीद निकलने की संभावना है। (Business Bhaskar)
ग्वार उत्पादन एक करोड़ बोरी
चालू वित्त वर्ष में ग्वार गम के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2009-10 में ग्वार गम का 2.18 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हुआ था। जबकि चालू वित्त वर्ष में ग्वार गम का निर्यात बढ़कर 2.40 लाख टन से ज्यादा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में अमेरिका, यूरोप और चीन की मांग बढऩे की संभावना है। ग्वार गम निर्यात में भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। वर्ष 2008-09 में देश से ग्वार गम का 2.58 लाख टन का रिकार्ड निर्यात हुआ था जबकि 2007-08 में करीब 2.11 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हुआ था। जोधपुर स्थित वसुंधरा ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर मोहन लाल ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों (अप्रैल से जुलाई) के दौरान करीब 75 हजार टन गम का निर्यात हा चुका है। ग्वार गम के निर्यात में सितंबर के बाद तेजी आती है। चालू सीजन में चूंकि देश में ग्वार की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है तथा प्रमुख उत्पादक राज्यों राजस्थान और हरियाणा में मौसम भी फसल के अनुकूल है। ऐसे में ग्वार का उत्पादन भी बढ़कर एक करोड़ बोरी तक पहुंचने की संभावना है। मालूम हो कि पिछले साल प्रतिकूल मौसम से ग्वार का उत्पादन घटकर 35-40 लाख बोरी का ही हुआ था। राजस्थान में ग्वार की बुवाई बढ़कर 30 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि राज्य सरकार ने 27 लाख हैक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया था। जयभारत गम एंड केमिकल के निदेशक रविंद्र केडिय़ा ने बताया कि चालू महीन में ग्वार की कीमतों में करीब 300 रुपये और गम की कीमतों में 700 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। जोधपुर मंडी में ग्वार का भाव घटकर 2125 रुपये और गम का भाव 4700 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। ग्वार चूरी का भाव 775 रुपये और कोरमा का भाव 930-935 रुपये प्रति 75 किलो चल रहा है। उन्होंने बताया कि इस समय ग्वार का मात्र 10 से 15 लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है जबकि नई फसल आने में करीब डेढ़ महीने का समय शेष है। इसीलिए गिरावट का दौर रुकने की संभावना है।बात पते कीइस समय ग्वार का मात्र 10 से 15 लाख बोरी का स्टॉक बचा है जबकि नई फसल आने में करीब डेढ़ महीने का समय शेष है। इसीलिए गिरावट का दौर रुकने की संभावना है। (Business Bhaskar....aar as raana)
ब्रोकिंग हाऊस भी दे रहें हैं छूट
नई दिल्ली निवेशकों को लुभाने के लिए कमोडिटी ब्रोकर हाऊस ब्रोकरेज में कमी के साथ ही ओवर लिमिट की छूट भी दे रहे हैं। कमोडिटी में निवेश करने वाले ग्राहकों से सामान्यत: कमोडिटी हाऊस तीन से पांच पैसे प्रति 100 रुपये की दर से ब्रोकरेज लेते हैं। लेकिन ज्यादा मात्रा में कारोबार करने वाले ग्राहकों से प्रति 100 रुपये पर एक से दो पैसे तक की ब्रोकरेज लेने के साथ ही इंटरडे ट्रेडिंग (दैनिक सौदों) पर ओवर लिमिट भी प्रदान कर रहे हैं। आनंद राठी कमोडिटी के असिस्टेंट वाइस प्रेसीडेंट संध्यादीप ने बताया कि जो निवेशक दैनिक सौदे ज्यादा मात्रा में करते हैं उनके लिए कंपनी ब्रोकरेज कम कर देती हैं। वैसे तो कंपनी तीन से पांच पैसे प्रति 100 रुपये की दर से ब्रोकरेज चार्ज करती है। (Business Bhaskar)
बारिश की तेज धार से बुआई की बहार
नई दिल्ली August 29, 2010
पिछले 10 दिनों में बारिश में बढ़ोतरी हुई है और खरीफ की फसल को फायदा पहुंचा है। वहीं कई नदियां उफान पर हैं और इनके आस-पास के इलाकों में लगी फसलों को नुकसान भी हुआ है। अब तक बारिश केलिए तरस रहे पूर्वी भारत में भी बादल खूब बरसे हैं और इस अवधि में यहां सामान्य से 23 फीसदी अधिक पानी बरस चुका है। इसके चलते यह धान की बुआई या अन्य फसलों की बुआई के लिए स्थितियां सुधर गई हैं क्योंकि बारिश के अभाव में इस इलाके में अब बुआई नहीं हो सकी थी।इस बार यहां हुई बारिश से यह फायदा हुआ है कि सूखे से हुए नुकसान की भरपाई भी इस बारिश से हो रही है। देश में मौसमी बारिश की स्थिति अच्छी है और 28 अगस्त तक यह सामान्य से केवल 2 फीसदी ही कम थी। पूरे देश में इस बार खरीफ फसलों की स्थिति ठीक हैं। देश में कुल खरीफ रकबे का 90 फीसदी, लगभग 9.5 हेक्टैयर रकबा 26 अगस्त तक क्रॉप कवर के अंतर्गत लाया जा चुका है। यह पिछले साल के मुकाबले 80 लाख हेक्टेयर अधिक है। देश में इस बार हर फसल के रकबे में बढ़ोतरी हुई है इनमे धान, मोटे अनाज और दालें मुख्य हैं। इनमे से प्रत्येक रकबे में 20 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। इस बार देश में फसलों की स्थिति अच्छी है और कीट और बीमारियां भी सामान्य से कम हैं।पंजाब में पहले बोया गया कपास आने लगा है। कपास की कीमतों में 8.5 फीसदी का उछाल है और उत्पादन भी अच्छा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के चलते घरेलू और निर्यात बाजार में कपास की मांग बढ़ रही है, और इसकी कीमतों में इजाफा हुआ है। अगस्त के आखिरी सप्ताह में हुई बारिश के चलते देश के 81 प्रमुख जलाशयों के जल स्तर में तेज बढ़ोतरी हुई है। यह 26 अगस्त को बढ़कर 82.793 अरब घन मीटर हो गया। पिछले साल के मुकाबले इसमें 31 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह दीर्घकालिक औसत से मात्र 2 फीसदी कम है। हालांकि अभी भी देश के उन 36 बांधों में पानी का स्तर चिंताजनक है जहां जल विद्युत इकाइयां भी हैं। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार इनमे से 23 बांधों में जलस्तर अभी भी सामान्य से कम है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 27 अगस्त को बताया कि सितंबर में सामान्य से 15 फीसदी अधिक बारिश होने की संभावना है। खरीफ फसलों की बुआई की रिपोर्ट के अनुसार किसानों ने इस बार कम पानी की वजह से तिलहन की बजाय दालों को प्रमुखता दी है। दालों की कीमतों में पिछले साल 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले साल के 90 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस बार 1.1 करोड़ हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई है। जबकि तिलहन फसलों का रकबा पिछले साल के 160 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 165 लाख हेक्टेयर हो गया है।कपास और गन्ने के रकबे में भी कीमत बढऩे की उम्मीदों के चलते बढ़ोतरी हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम में बारिश की कमी के चलते फसलों की बुआई लक्ष्य से पीछे रह गई है। ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है और मुख्य ध्यान झारखंड के कुछ हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल पर है जहां जमीन में नमी की कमी के चलते धान की बुआई प्रभावित हुई है।झारखंड को पूरी तरह से सूखा प्रभावित राज्य घोषित कर दिया गया है लेकिन यहां के सिंहभूमि और सराईकेला इलाकों में धान के 80 फीसदी रकबे में बुआई हो चुकी है और जिस इलाके में बुआई नहीं हो पाई थी वहां हाल ही में हुई बारिश के बाद वैकल्पिक फसलों की बुआई की जाएगी। वैकल्पिक फसलों में उड़द, मूंग, अरहर और मोटे अनाज की बुआई की जाएगी। यही रणनीति पश्चिम बंगाल के लिए भी अपनाई जाएगी जहां 11 जिलों को सूखा प्रभावित घोषित किया जा चुका है। लेकिन हाल ही में यहां भी अच्छी बारिश हुई है। आईसीएआर ने यहां दालों बुआई करने की सिफारिश की है। परिषद ने ऐसे खेतों में भी दालों की बुआई की सिफारिश की है जहां धान बोया जा चुका है क्योंकि यहां लंबे समय तक बारिश न होना एक प्रमुख समस्या है।बिहार के लिए आईसीएआर ने ज्वार, मक्का और चारा फसलों की बुआई की सलाह दी है। इस महीने के अंत तक तिलहन फसलें भी लगाई जा सकती हैं। बाढग़्रस्त इलाकों के किसानों को विशेषज्ञों की सलाह है कि खेतों से पानी निकलने के बाद प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन खाद का छिड़काव करें, इससे फसल को पनपने में मदद मिलेगी। (BS Hindi)
पिछले 10 दिनों में बारिश में बढ़ोतरी हुई है और खरीफ की फसल को फायदा पहुंचा है। वहीं कई नदियां उफान पर हैं और इनके आस-पास के इलाकों में लगी फसलों को नुकसान भी हुआ है। अब तक बारिश केलिए तरस रहे पूर्वी भारत में भी बादल खूब बरसे हैं और इस अवधि में यहां सामान्य से 23 फीसदी अधिक पानी बरस चुका है। इसके चलते यह धान की बुआई या अन्य फसलों की बुआई के लिए स्थितियां सुधर गई हैं क्योंकि बारिश के अभाव में इस इलाके में अब बुआई नहीं हो सकी थी।इस बार यहां हुई बारिश से यह फायदा हुआ है कि सूखे से हुए नुकसान की भरपाई भी इस बारिश से हो रही है। देश में मौसमी बारिश की स्थिति अच्छी है और 28 अगस्त तक यह सामान्य से केवल 2 फीसदी ही कम थी। पूरे देश में इस बार खरीफ फसलों की स्थिति ठीक हैं। देश में कुल खरीफ रकबे का 90 फीसदी, लगभग 9.5 हेक्टैयर रकबा 26 अगस्त तक क्रॉप कवर के अंतर्गत लाया जा चुका है। यह पिछले साल के मुकाबले 80 लाख हेक्टेयर अधिक है। देश में इस बार हर फसल के रकबे में बढ़ोतरी हुई है इनमे धान, मोटे अनाज और दालें मुख्य हैं। इनमे से प्रत्येक रकबे में 20 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। इस बार देश में फसलों की स्थिति अच्छी है और कीट और बीमारियां भी सामान्य से कम हैं।पंजाब में पहले बोया गया कपास आने लगा है। कपास की कीमतों में 8.5 फीसदी का उछाल है और उत्पादन भी अच्छा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के चलते घरेलू और निर्यात बाजार में कपास की मांग बढ़ रही है, और इसकी कीमतों में इजाफा हुआ है। अगस्त के आखिरी सप्ताह में हुई बारिश के चलते देश के 81 प्रमुख जलाशयों के जल स्तर में तेज बढ़ोतरी हुई है। यह 26 अगस्त को बढ़कर 82.793 अरब घन मीटर हो गया। पिछले साल के मुकाबले इसमें 31 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह दीर्घकालिक औसत से मात्र 2 फीसदी कम है। हालांकि अभी भी देश के उन 36 बांधों में पानी का स्तर चिंताजनक है जहां जल विद्युत इकाइयां भी हैं। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार इनमे से 23 बांधों में जलस्तर अभी भी सामान्य से कम है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 27 अगस्त को बताया कि सितंबर में सामान्य से 15 फीसदी अधिक बारिश होने की संभावना है। खरीफ फसलों की बुआई की रिपोर्ट के अनुसार किसानों ने इस बार कम पानी की वजह से तिलहन की बजाय दालों को प्रमुखता दी है। दालों की कीमतों में पिछले साल 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले साल के 90 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस बार 1.1 करोड़ हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई है। जबकि तिलहन फसलों का रकबा पिछले साल के 160 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 165 लाख हेक्टेयर हो गया है।कपास और गन्ने के रकबे में भी कीमत बढऩे की उम्मीदों के चलते बढ़ोतरी हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम में बारिश की कमी के चलते फसलों की बुआई लक्ष्य से पीछे रह गई है। ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है और मुख्य ध्यान झारखंड के कुछ हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल पर है जहां जमीन में नमी की कमी के चलते धान की बुआई प्रभावित हुई है।झारखंड को पूरी तरह से सूखा प्रभावित राज्य घोषित कर दिया गया है लेकिन यहां के सिंहभूमि और सराईकेला इलाकों में धान के 80 फीसदी रकबे में बुआई हो चुकी है और जिस इलाके में बुआई नहीं हो पाई थी वहां हाल ही में हुई बारिश के बाद वैकल्पिक फसलों की बुआई की जाएगी। वैकल्पिक फसलों में उड़द, मूंग, अरहर और मोटे अनाज की बुआई की जाएगी। यही रणनीति पश्चिम बंगाल के लिए भी अपनाई जाएगी जहां 11 जिलों को सूखा प्रभावित घोषित किया जा चुका है। लेकिन हाल ही में यहां भी अच्छी बारिश हुई है। आईसीएआर ने यहां दालों बुआई करने की सिफारिश की है। परिषद ने ऐसे खेतों में भी दालों की बुआई की सिफारिश की है जहां धान बोया जा चुका है क्योंकि यहां लंबे समय तक बारिश न होना एक प्रमुख समस्या है।बिहार के लिए आईसीएआर ने ज्वार, मक्का और चारा फसलों की बुआई की सलाह दी है। इस महीने के अंत तक तिलहन फसलें भी लगाई जा सकती हैं। बाढग़्रस्त इलाकों के किसानों को विशेषज्ञों की सलाह है कि खेतों से पानी निकलने के बाद प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन खाद का छिड़काव करें, इससे फसल को पनपने में मदद मिलेगी। (BS Hindi)
28 अगस्त 2010
भूमि अधिगृहण नीति का अनुसरण करेगा केंद्र
हमारे प्रतिनिधिचंडीगढ़, 26 अगस्त। हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई भूमि अधिग्रहण नीति को लेकर विपक्षी भले ही कितना ही बवाल मचाएं, लेकिन केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की नीति को सही ठहराया है। युवा नेता राहुल गांधी को हरियाणा की नीति इतनी पसंद आई कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से आग्रह कर उन्हें पूरे देश में हरियाणा को अनुसरण करने पर रा•ाी कर लिया। मिर्चपुर के औचक दौरे के बाद आज (27 अगस्त) हरियाणा दौर पर आने से पूर्व राहुल की यह टिप्पणी हरियाणा सरकार की पीठ थपथपाने जैसी है। आज अपने उडीसा दौरे के दौरान भी राहुल ने आदिवासियों के सामने हरियाणा की भूमि अधिग्रहण नीति की सराहना की।हुड्डा सरकार ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पिछले कार्यकाल में कई अहम फैसले लिए थे। विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) के नाम पर जमीन अधिग्रहण करने पर भूमि मालिकों को 33 वर्ष तक रॉयल्टी दिए जाने का फैसला देशभर में अनूठा माना जा रहा है। हरियाणा शहरी संपदा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के लिए 16362.595 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। विभाग द्वारा 31 मार्च, 2010 तक भूमि मालिकों को 4173.66 करोड़ रुपये की राशि का मुआवजा वितरित किया गया।सरकार ने द्वारा राज्य में पुनर्वास एवं पुन:स्थापन नीति लागू की हुई है। इस नीति के तहत अधिगृहीत भूमि के मालिकों एवं विस्थापितों को अधिकतम 350 वर्ग गज़ का आवासीय प्लाट तथा 2.75&2.75 मीटर के वाणिज्यिक बूथ जीवनयापन चलाने के लिए आवंटित किए जाते हैं। इतना ही नहीं, भूमि मालिकों को 33 वर्षों तक 15,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से वार्षिक दी जाती है। इसमें भी 500 रुपये वार्षिक वृद्घि की जा रही है।सरकार ने अब तक 39.51 करोड़ रुपये की राशि वार्षिक के लिए अधिकृत की जा चुकी है, जिसमें से 19.74 करोड़ रुपये की राशि वितरित की जा चुकी है। विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड), टेक्नोलॉजी पार्क तथा टेक्नोलॉजी शहरों के लिए अधिगृहीत की जाने वाली भूमि के मामले में निजी डिवेल्पर द्वारा 33 वर्षों तक 30,000 रुपये प्रति वर्ष प्रति एकड़ के साथ दिया जाएगा जिसमें 1000 रुपये प्रतिवर्ष की बढ़ोतरी होगी। यह राशियां भूमि मुआवजे के अतिरिक्त दी जा रही हैं। (Dainik Tribhun)
27 अगस्त 2010
मसालों का निर्यात 12 प्रतिशत बढ़ा
कोच्चि August 26, 2010
भारत से मसालों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई के दौरान 12 प्रतिशत बढ़कर 193,875 टन हो गया है। मसाला बोर्ड के हाल के आंकड़ों के मुताबिक रुपये में मूल्य के आधार पर निर्यात में 17 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़कर 2,084.96 करोड़ रुपये हो गया है।पिछले साल की समान अवधि के दौरान कुल 172,510 टन मसालों का निर्यात हुआ था, जिसकी कीमत 1775.39 करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान कुल 5,100 करोड़ रुपये के 4,65,000 टन मसालों के निर्यात का लक्ष्य रखा गया था। हाल में किया गया निर्यात कुल लक्ष्य का 42 प्रतिशत (मात्रा के आधार पर) और रुपये में मूल्य के आधार पर 41 प्रतिशत है।सबसे बड़ी उपलब्धि लहसुन के निर्यात में मिली है और इसका निर्यात मात्रा के आधार पर पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 1184 प्रतिशत बढ़ा है। मूल्य के हिसाब से अप्रैल जुलाई अवधि के दौरान लहसुन के निर्यात में 1957 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। अदरक के निर्यात में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले साल की समान तिमाही में हुए 1325 टन निर्यात की तुलना में 128 प्रतिशत बढ़कर 3025 टन हो गया है।सौंफ के निर्यात में मात्रा के आधार पर 47 प्रतिशत और मूल्य के आधार पर 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चालू वित्त वर्ष में पहली बार काली मिर्च के निर्यात में तेजी आई है और मात्रा के आधार पर इसमें 2 प्रतिशत और मूल्य के आधार पर 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबसे बड़ा झटका बड़ी इलायची के निर्यात के मामले में लगा है। पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इसके निर्यात में मात्रा के आधार पर 82 और मूल्य के आधार पर 27 प्रतिशत की गिरावट आई है। (BS Hindi)
भारत से मसालों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई के दौरान 12 प्रतिशत बढ़कर 193,875 टन हो गया है। मसाला बोर्ड के हाल के आंकड़ों के मुताबिक रुपये में मूल्य के आधार पर निर्यात में 17 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़कर 2,084.96 करोड़ रुपये हो गया है।पिछले साल की समान अवधि के दौरान कुल 172,510 टन मसालों का निर्यात हुआ था, जिसकी कीमत 1775.39 करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान कुल 5,100 करोड़ रुपये के 4,65,000 टन मसालों के निर्यात का लक्ष्य रखा गया था। हाल में किया गया निर्यात कुल लक्ष्य का 42 प्रतिशत (मात्रा के आधार पर) और रुपये में मूल्य के आधार पर 41 प्रतिशत है।सबसे बड़ी उपलब्धि लहसुन के निर्यात में मिली है और इसका निर्यात मात्रा के आधार पर पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 1184 प्रतिशत बढ़ा है। मूल्य के हिसाब से अप्रैल जुलाई अवधि के दौरान लहसुन के निर्यात में 1957 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। अदरक के निर्यात में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले साल की समान तिमाही में हुए 1325 टन निर्यात की तुलना में 128 प्रतिशत बढ़कर 3025 टन हो गया है।सौंफ के निर्यात में मात्रा के आधार पर 47 प्रतिशत और मूल्य के आधार पर 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चालू वित्त वर्ष में पहली बार काली मिर्च के निर्यात में तेजी आई है और मात्रा के आधार पर इसमें 2 प्रतिशत और मूल्य के आधार पर 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबसे बड़ा झटका बड़ी इलायची के निर्यात के मामले में लगा है। पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इसके निर्यात में मात्रा के आधार पर 82 और मूल्य के आधार पर 27 प्रतिशत की गिरावट आई है। (BS Hindi)
चांदी अब तक के सर्वोच्च स्तर पर
मुंबई August 26, 2010
चांदी का भाव अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर और सोने का भाव इस मुकाम के करीब चला गया है। कम-से-कम भारतीय बाजार में तो आज यही स्थिति रही। मुंबई में चांदी का भाव 500 रुपये की तेजी के साथ 30,760 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चांदी का कारोबार 19.10 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर हो रहा है। इससे पहले 3 मई 2008 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चांदी का भाव 20.815 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर चला गया था। बहरहाल, घरेलू बाजारों में सोने का भाव आज बुधवार बंद भाव के मुकाबले 55 रुपये की बढ़त के साथ 18,970 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। यह अब तक के सबसे ऊंचे स्तर से केवल 0.70 रुपये कम है। मुंबई के हाजिर बाजार में पिछले 4 दिनों के दौरान चांदी के भाव में 3.41 फीसदी और सोने के भाव 1.25 फीसदी की तेजी आई है।पिछले कुछ दिनों से चांदी की खरीदारी में जबरदस्त तेजी आई है क्योंकि सोने का भाव बढऩे की वजह से चांदी सस्ती नजर आ रही थी और यही वजह रही कि सोमवार से चांदी का भाव सोने के भाव की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ा है। इस दौरान सोने और चांदी की कीमतों का अनुपात 65.06 के स्तर पर आ गया, जो 2 महीने पहले 67 के आस-पास था।वैश्विक स्तर पर डवांडोल आर्थिक हालात की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दोनों धातुओं के भाव में तेजी आई है क्योंकि नाजुक हालात में इन धातुओं में निवेश सुरक्षित माना जाता है।आज सोने और चांदी की कीमतों का अनुपात इसलिए गिरा क्योंकि सोने का भाव अब तक के सबसे ऊंचे स्तर के करीब जा पहुंचा है। पिछले साल 18 जून को सोने का भाव 1,256 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर चला गया था। बर्कलेज की कमोडिटी रिपोर्ट के मुताबिक, 'पिछले कुछ दिनों से निवेश के लिए इस सफेद धातु (चांदी) की खरीदारी बढ़ी है।पिछले 6 कारोबारी सत्रों के दौरान कुल 13,005 टन चांदी का करोबार हुआ, जो एक रिकॉर्ड है।'समाचार एजेंसी 'ब्लूमबर्ग' के मुताबिक इस वर्ष 23 अगस्त से चांदी ने तेजी के मामले में सोने को पछाड़ा हुआ है। इस दौरान चांदी के भाव में 6 फीसदी तेजी दर्ज की जा चुकी है, जबकि इस अवधि में सोने का भाव केवल 1.4 फीसदी बढ़ा है। इसकी वजह यह रही कि निवेशकों को सोने के मुकाबले चांदी सस्ती पड़ रही है।हांग कांग स्थित एबीएन एमरो बैंक एनवी में कमोडिटी के कार्यकारी निदेशक वैलेस एनजी के मुताबिक चांदी इस मामले में अनूठी है कि यह कीमती धातु होने के साथ-साथ औद्योगिक धातु भी है। उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से सोने को निवेश के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है, लेकिन चांदी भी निवेशकों की दूसरी पसंद रही है। हाल की डिलिवरी की चांदी की कीमतें 1.1 प्रतिशत बढ़कर 19.11 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गईं, जो 28 जून के बाद का उच्चतम स्तर है। (BS Hindi)
चांदी का भाव अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर और सोने का भाव इस मुकाम के करीब चला गया है। कम-से-कम भारतीय बाजार में तो आज यही स्थिति रही। मुंबई में चांदी का भाव 500 रुपये की तेजी के साथ 30,760 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चांदी का कारोबार 19.10 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर हो रहा है। इससे पहले 3 मई 2008 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चांदी का भाव 20.815 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर चला गया था। बहरहाल, घरेलू बाजारों में सोने का भाव आज बुधवार बंद भाव के मुकाबले 55 रुपये की बढ़त के साथ 18,970 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। यह अब तक के सबसे ऊंचे स्तर से केवल 0.70 रुपये कम है। मुंबई के हाजिर बाजार में पिछले 4 दिनों के दौरान चांदी के भाव में 3.41 फीसदी और सोने के भाव 1.25 फीसदी की तेजी आई है।पिछले कुछ दिनों से चांदी की खरीदारी में जबरदस्त तेजी आई है क्योंकि सोने का भाव बढऩे की वजह से चांदी सस्ती नजर आ रही थी और यही वजह रही कि सोमवार से चांदी का भाव सोने के भाव की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ा है। इस दौरान सोने और चांदी की कीमतों का अनुपात 65.06 के स्तर पर आ गया, जो 2 महीने पहले 67 के आस-पास था।वैश्विक स्तर पर डवांडोल आर्थिक हालात की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दोनों धातुओं के भाव में तेजी आई है क्योंकि नाजुक हालात में इन धातुओं में निवेश सुरक्षित माना जाता है।आज सोने और चांदी की कीमतों का अनुपात इसलिए गिरा क्योंकि सोने का भाव अब तक के सबसे ऊंचे स्तर के करीब जा पहुंचा है। पिछले साल 18 जून को सोने का भाव 1,256 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर चला गया था। बर्कलेज की कमोडिटी रिपोर्ट के मुताबिक, 'पिछले कुछ दिनों से निवेश के लिए इस सफेद धातु (चांदी) की खरीदारी बढ़ी है।पिछले 6 कारोबारी सत्रों के दौरान कुल 13,005 टन चांदी का करोबार हुआ, जो एक रिकॉर्ड है।'समाचार एजेंसी 'ब्लूमबर्ग' के मुताबिक इस वर्ष 23 अगस्त से चांदी ने तेजी के मामले में सोने को पछाड़ा हुआ है। इस दौरान चांदी के भाव में 6 फीसदी तेजी दर्ज की जा चुकी है, जबकि इस अवधि में सोने का भाव केवल 1.4 फीसदी बढ़ा है। इसकी वजह यह रही कि निवेशकों को सोने के मुकाबले चांदी सस्ती पड़ रही है।हांग कांग स्थित एबीएन एमरो बैंक एनवी में कमोडिटी के कार्यकारी निदेशक वैलेस एनजी के मुताबिक चांदी इस मामले में अनूठी है कि यह कीमती धातु होने के साथ-साथ औद्योगिक धातु भी है। उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से सोने को निवेश के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है, लेकिन चांदी भी निवेशकों की दूसरी पसंद रही है। हाल की डिलिवरी की चांदी की कीमतें 1.1 प्रतिशत बढ़कर 19.11 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गईं, जो 28 जून के बाद का उच्चतम स्तर है। (BS Hindi)
हरियाणा में धान का रकबा बढ़ा
चंडीगढ़ August 26, 2010
हरियाणा में इस वर्ष निर्धारित लक्ष्य से कहीं ज्यादा जमीन में धान की फसल लगाई गई है हालांकि मौसम ज्यादा अनुकूल नहीं था। प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हरियाणा में धान का रकबा निर्धारित लक्ष्य 11.50 लाख हेक्टेयर का स्तर पार कर गया है।इस वर्ष प्रदेश में धान का कुल रकबा 11.53 लाख हेक्टेयर है, जबकि पिछले वर्ष 12.05 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की फसल लगाई गई थी। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि दोबारा रोपाई की वजह से इस वर्ष बासमती धान का रकबा पिछले साल के रकबे की तुलना में 50 फीसदी अधिक 6.25 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है। इससे पहले विभाग ने बासमती एवं सामान्य-दोनों तरह के धान का रकबा समान रहने की उम्मीद जताई थी। इस वर्ष हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में धान का रकबा घटा है। लेकिन, बावजूद इसके कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले महीने बाढ़ की वजह से मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य थोड़ा कम रखा गया था और इसे हासिल कर लेना भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन अधिकारियों के मुताबिक खरीफ फसलों का तकरीबन 1.94 लाख हेक्टेयर रकबा बाढ़ से प्रभवित हुआ था और इस वजह से 95 करोड़ रुपये की फसल बर्बाद हो गई थी। (BS Hindi)
हरियाणा में इस वर्ष निर्धारित लक्ष्य से कहीं ज्यादा जमीन में धान की फसल लगाई गई है हालांकि मौसम ज्यादा अनुकूल नहीं था। प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हरियाणा में धान का रकबा निर्धारित लक्ष्य 11.50 लाख हेक्टेयर का स्तर पार कर गया है।इस वर्ष प्रदेश में धान का कुल रकबा 11.53 लाख हेक्टेयर है, जबकि पिछले वर्ष 12.05 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की फसल लगाई गई थी। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि दोबारा रोपाई की वजह से इस वर्ष बासमती धान का रकबा पिछले साल के रकबे की तुलना में 50 फीसदी अधिक 6.25 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है। इससे पहले विभाग ने बासमती एवं सामान्य-दोनों तरह के धान का रकबा समान रहने की उम्मीद जताई थी। इस वर्ष हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में धान का रकबा घटा है। लेकिन, बावजूद इसके कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले महीने बाढ़ की वजह से मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य थोड़ा कम रखा गया था और इसे हासिल कर लेना भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन अधिकारियों के मुताबिक खरीफ फसलों का तकरीबन 1.94 लाख हेक्टेयर रकबा बाढ़ से प्रभवित हुआ था और इस वजह से 95 करोड़ रुपये की फसल बर्बाद हो गई थी। (BS Hindi)
कपास निर्यात पर होगा मात्रात्मक प्रतिबंध
नई दिल्ली August 26, 2010
सरकार कपास निर्यात के नियमों में ढील देगी, लेकिन देश से बाहर कपास भेजे जाने पर मात्रात्मक प्रतिबंध लागू होगा। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा कि कर मुक्त कपास निर्यात की मात्रा निर्धारित होगी। इसके बारे में फैसला अगले महीने में हो जाएगा, जब कपास के कुल उत्पादन और इसकी मांग के बारे में आकलन कर लिया जाएगा। पिछले सप्ताह सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कपास निर्यात पर प्रतिबंध हटाए जाने की बात कही गई थी। साथ ही यह भी कहा गया था कि 1 अक्टूबर से कपास से निर्यात शुल्क हटा लिया जाएगा। खुल्लर ने कहा, 'कपड़ा मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक 1 सितंबर को होगी। इसमें यह जानकारी ली जाएगी कि इस साल कपास का कितना उत्पादन होगा और कपास की घरेलू मांग कितनी रहेगी। इसके आधार पर हम फैसला करेंगे कि हमारे पास निर्यात के लिए कितनी अतिरिक्त कपास बचती है।'उन्होंने कहा कि सरकार कपास के शुल्क मुक्त निर्यात की मात्रा तय करेगी.. एक बार जब यह सीमा तय हो जाएगी, उसके बाद निर्यात करने पर शुल्क लगेगा। उन्होंने कहा कि निर्यात पर पूंजी सुनिश्चित रहेगी। 'ऑर्डर के मुताबिक निर्यात और घरेलू स्तर पर पर्याप्त उपलब्धत एवं भाव स्थिर बने रहने से परिस्थियां अनुकूल बनी हुई हैं।'सरकार ने इस वर्ष की शुरुआत में कपास को निर्यात के लिए प्रतिबंधित कमोडिटी की सूची में डाल दिया था, ताकि अत्यधिक निर्यात पर लगाम लगाई जाए क्योंकि इस वजह से घरेलू स्तर पर कीमतें बढऩे लगी थीं। निर्यात के लिए प्रतिबंधित सूची में शामिल चीजों के निर्यात के वास्ते विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) से लाइसेंस लेना पड़ता है।गुजरात का बेंचमार्क कपास की किस्म संकर-6 का भाव आज तकरीबन 33,000 रुपये के स्तर पर जा पहुंचा। अगले महीने की डिलीवरी के लिए इसका वायदा भाव 32,500 रुपये रहा। निर्यातक वायदा बाजार में भी कपास की बुकिंग कर रहे हैं।सूत्रों ने यह भी बताया कि कपड़ा मंत्रालय ने इसी महीने की 28 तारीख को एक बैठक बुलाई है, जिसमें कपास निर्यातक और कपड़ा मिलों के प्रतिनिधि स्थिति पर विचार-विमर्श करेंगे। कपास बाजार में अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकारी प्रतिनिधि जब अगले महीने की पहली तारीख को बैठक करेंगे, तो शुरुआती तौर पर कपास निर्यात का कोटा 50 लाख गांठ तक सीमित कर दिया जाएगा और यदि परिस्थियां नहीं सुधरीं, तो यह कोटा 10 लाख गांठ तक भी सीमित किया जा सकता है।अहमदाबाद के एक कपास व्यापारी अरुण दलाल ने कहा, 'ऐसा लग रहा है कि कपास निर्यात के लिए अनुमति देने के मामले में सरकार इस बार सतर्क रवैया अपनाएगी। पिछले वर्ष अत्यधिक निर्यात की वजह से घरेलू स्तर पर भाव बढ़ गए थे और निर्यात रोक दिया गया था।' (BS Hindi)
सरकार कपास निर्यात के नियमों में ढील देगी, लेकिन देश से बाहर कपास भेजे जाने पर मात्रात्मक प्रतिबंध लागू होगा। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा कि कर मुक्त कपास निर्यात की मात्रा निर्धारित होगी। इसके बारे में फैसला अगले महीने में हो जाएगा, जब कपास के कुल उत्पादन और इसकी मांग के बारे में आकलन कर लिया जाएगा। पिछले सप्ताह सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कपास निर्यात पर प्रतिबंध हटाए जाने की बात कही गई थी। साथ ही यह भी कहा गया था कि 1 अक्टूबर से कपास से निर्यात शुल्क हटा लिया जाएगा। खुल्लर ने कहा, 'कपड़ा मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक 1 सितंबर को होगी। इसमें यह जानकारी ली जाएगी कि इस साल कपास का कितना उत्पादन होगा और कपास की घरेलू मांग कितनी रहेगी। इसके आधार पर हम फैसला करेंगे कि हमारे पास निर्यात के लिए कितनी अतिरिक्त कपास बचती है।'उन्होंने कहा कि सरकार कपास के शुल्क मुक्त निर्यात की मात्रा तय करेगी.. एक बार जब यह सीमा तय हो जाएगी, उसके बाद निर्यात करने पर शुल्क लगेगा। उन्होंने कहा कि निर्यात पर पूंजी सुनिश्चित रहेगी। 'ऑर्डर के मुताबिक निर्यात और घरेलू स्तर पर पर्याप्त उपलब्धत एवं भाव स्थिर बने रहने से परिस्थियां अनुकूल बनी हुई हैं।'सरकार ने इस वर्ष की शुरुआत में कपास को निर्यात के लिए प्रतिबंधित कमोडिटी की सूची में डाल दिया था, ताकि अत्यधिक निर्यात पर लगाम लगाई जाए क्योंकि इस वजह से घरेलू स्तर पर कीमतें बढऩे लगी थीं। निर्यात के लिए प्रतिबंधित सूची में शामिल चीजों के निर्यात के वास्ते विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) से लाइसेंस लेना पड़ता है।गुजरात का बेंचमार्क कपास की किस्म संकर-6 का भाव आज तकरीबन 33,000 रुपये के स्तर पर जा पहुंचा। अगले महीने की डिलीवरी के लिए इसका वायदा भाव 32,500 रुपये रहा। निर्यातक वायदा बाजार में भी कपास की बुकिंग कर रहे हैं।सूत्रों ने यह भी बताया कि कपड़ा मंत्रालय ने इसी महीने की 28 तारीख को एक बैठक बुलाई है, जिसमें कपास निर्यातक और कपड़ा मिलों के प्रतिनिधि स्थिति पर विचार-विमर्श करेंगे। कपास बाजार में अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकारी प्रतिनिधि जब अगले महीने की पहली तारीख को बैठक करेंगे, तो शुरुआती तौर पर कपास निर्यात का कोटा 50 लाख गांठ तक सीमित कर दिया जाएगा और यदि परिस्थियां नहीं सुधरीं, तो यह कोटा 10 लाख गांठ तक भी सीमित किया जा सकता है।अहमदाबाद के एक कपास व्यापारी अरुण दलाल ने कहा, 'ऐसा लग रहा है कि कपास निर्यात के लिए अनुमति देने के मामले में सरकार इस बार सतर्क रवैया अपनाएगी। पिछले वर्ष अत्यधिक निर्यात की वजह से घरेलू स्तर पर भाव बढ़ गए थे और निर्यात रोक दिया गया था।' (BS Hindi)
कपास निर्यात की सीमा होगी तय
नई दिल्ली आगामी सीजन में कपास निर्यात के लिए सरकार ने इसकी सीमा तय करने का फैसला किया है। एक सितंबर को यह सीमा तय हो सकती है। वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि सीमा तय करने के दौरान किसान और कपास का इस्तेमाल करने वाले कपड़ा उद्यमी दोनों के हितों का ख्याल रखा जाएगा। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने बताया कि एक सितंबर को कपास निर्यात की सीमा तय करने के लिए कृषि मंत्रालय व कपड़ा मंत्रालय की संयुक्त बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में कृषि मंत्रालय कपास के उत्पादन अनुमान के बारे में विस्तृत जानकारी देगा। वहीं, कपड़ा मंत्रालय कपड़ा उत्पादकों के लिए कपास की अनुमानित जरूरतों के बारे में बताएगा। इस जानकारी के आधार पर यह तय किया जाएगा कि कितनी मात्रा में कपास निर्यात की इजाजत दी जाए। इस निर्यात के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी। इस पर कोई निर्यात शुल्क भी नहीं लगेगा। इस मात्रा के निर्धारण के लिए इस साल के स्टॉक को भी ध्यान में रखा जाएगा। तय मात्रा के निर्यात के बाद निर्यात की इजाजत शुल्क के साथ दी जा सकती है। फिलहाल कपास के निर्यात पर सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है। वाणिज्य सचिव के मुताबिक पिछले साल ग्लोबल स्तर पर कपास की कमी थी। इस कारण कपास की निर्यात कीमत 600-800 रुपये प्रति कैंडी तक अधिक चली गई। कपास की कीमत अधिक होने से यार्न के दाम में भी पिछले साल के मुकाबले 20-30 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस साल 30 जुलाई तक 83 लाख बेल्स (1 बेल में 170 किलोग्राम) का निर्यात किया गया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि तक 35 लाख बेल्स का निर्यात किया गया था। कपास का सीजन एक अक्टूबर से शुरू होता है। (Business Bhaskar)
चांदी ने तोडे रिकॉर्ड
अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई तेजी की बदौलत दिल्ली सराफा बाजार में गुरुवार को चांदी 30,550 रुपये प्रति किलो के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। चांदी में 700 रुपये प्रति किलो की जोरदार तेजी दर्ज की गई। गुरुवार को दिल्ली सराफा बाजार में सोना भी 90 रुपये की और तेजी के साथ 19,200 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर पर पहुंच गया।ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी आने का असर घरेलू बाजार में कीमती धातुओं पर देखा जा रहा है। चांदी का भाव गुरुवार को बढ़कर दिल्ली सराफा बाजार में 30,550 रुपये प्रति किलो के नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। इससे पहले चांदी ने गत 28 जून को 30,200 रुपये प्रति किलो का रिकॉर्ड बनाया था। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी का भाव बढ़कर गुरुवार को 19.20 डॉलर प्रति औंस हो गया। मालूम हो कि पहली अगस्त को इसका भाव विदेशी बाजार में 18.10 डॉलर प्रति औंस था। ऐसे में अकेले चालू महीने में ही इसकी कीमतों में 1.10 डॉलर प्रति औंस की तेजी आ चुकी है। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को सोने की कीमतों में निवेशकों की मुनाफावसूली से तीन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान सोने का भाव घटकर 1237 डॉलर प्रति औंस रह गया, जबकि बुधवार को इसका भाव विदेशी बाजार में 1240 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ था। (Business Bhaskar)
भारतीय कपास ने पाकिस्तान में धूम मचाई
पाकिस्तान की मिलों ने चालू महीने में भारत से कपास की तकरीबन दस लाख गांठों (एक गांठ में 170 किलो) के आयात के लिए अगाऊ सौदे किए हैं। इनकी डिलीवरी नई फसल से नवंबर-दिसंबर में की जाएगी। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि अभी तक निर्यात के लिए भारत से कपास की लगभग 18 से 20 लाख गांठों के अगाऊ सौदे हो चुके हैं। पाकिस्तान में बाढ़ से कपास की फसल को भारी नुकसान हुआ है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार चालू सीजन में पाकिस्तान में कपास का उत्पादन घटकर 1.15 करोड़ गांठ रह जाने का अनुमान है जो 1.40 करोड़ गांठों के सामान्य उत्पादन से करीब 25 लाख गांठ कम है। पाकिस्तान में कॉटन की सालाना खपत करीब 1.50 करोड़ गांठ होने का अनुमान है। राकेश राठी ने बताया कि पाकिस्तान ने आयात सौदे 82 से 85 सेंट प्रति पाउंड की दर से किए हैं। कॉटन निर्यातक संजीव गर्ग ने बताया कि निर्यातकों के साथ घरेलू मिलों की भारी मांग से भी घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी बनी हुई है। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन के दाम बढ़कर गुरुवार को 33,300 से 33,700 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी में 356 किलो) हो गए। मालूम हो कि 21 जुलाई को इसका भाव 29,200 से 29,500 रुपये प्रति कैंडी था। उधर, न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में अक्टूबर वायदा अनुबंध का दाम बढ़कर 88.15 सेंट प्रति पाउंड हो गया जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 23.93 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल की समान अवधि में इसका भाव 64.22 सेंट प्रति पाउंड था। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष डी एन सेठ ने बताया कि सरकार पहली अक्टूबर से कपास निर्यात पर लगी रोक को हटाएगी तथा सितंबर से निर्यात के लिए रजिस्ट्रशन शुरू हो जाएंगे।चालू सीजन में जुलाई तक घरेलू मंडियों में कपास की 294.65 लाख गांठों की आवक हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 288.75 लाख गांठ से से ज्यादा है। चालू सीजन में देश से कपास की 83 लाख गांठों का निर्यात होने का अनुमान है जो पिछले साल के 35 लाख गांठ के दोगुने से भी ज्यादा है। राठी ने बताया कि पिछले साल नई फसल के समय भारत में कॉटन की करीब 71.50 लाख गांठों का स्टॉक बचा हुआ था, लेकिन चालू सीजन में नई फसल के समय बकाया स्टॉक घटकर 30 से 35 लाख गांठ ही रहने की संभावना है। पाकिस्तान के साथ चीन में भी कपास की फसल को नुकसान होने की आशंका है, इसलिए नए सीजन में भारत से कपास की निर्यात मांग बढ़ेगी। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार चालू सीजन में कपास की बुवाई 105.67 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 95.59 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। अभी तक मौसम फसल के अनुकूल रहा है, ऐसे में देश में कपास की पैदावार बढ़कर 3.25 करोड़ गांठ से ज्यादा होने का अनुमान है। (Business Bhaskar...aar as raana)
26 अगस्त 2010
आलू के मूल्य में उथल-पुथल
हाजिर मंडियों और फ्यूचर एक्सचेंजों में आलू के मूल्य में जोरदार उथल-पुथल दिखाई दे रही है। सप्लाई घटने और मांग बढऩे से हाजिर में कीमतों में सुधार आया है। त्यौहारी सीजन में आलू की खपत बढऩे की संभावना है और पाकिस्तान को भी आलू का निर्यात हो रहा है। इसी वजह से तेजी को बल मिला है लेकिन उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरों में आलू का बड़ा स्टॉक रखा है। इसके अलावा हिमाचल और कर्नाटक में भी नए आलू की आवक शुरू हो गई है। इसलिए आलू की यह तेजी ज्यादा दिन टिकने की संभावना नहीं है। हालांकि फिलहाल और सुधार हो सकता है।आजादपुर मंडी की पोटेटो ऑनियन मर्चेंट एसोसिएशन (पोमा) के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश में लागतार बारिश होने से आजादपुर मंडी में आलू की दैनिक आवक घटकर 65-70 ट्रक की रह गई है जबकि चालू महीने के शुरू में आवक 100 से 110 ट्रकों की हो रही थी। उधर हिमाचल से भी मात्र एक-दो ट्रक आलू की ही आवक हो रही है जबकि कर्नाटक से भाड़ा ज्यादा होने के कारण आवक नहीं हो रही है।इसीलिए पिछले एक सप्ताह में दिल्ली में आलू की कीमतों में करीब 25-30 रुपये की तेजी आकर कोल्ड स्टोर के आलू का भाव 140 से 200 रुपये प्रति 50 किलो हो गया। शिमला के आलू का भाव बढ़कर 400 से 500 रुपये और कर्नाटक के आलू का भाव 550 से 600 रुपये प्रति 50 किलो हो गया। आलू के थोक व्यापारी उमेश अग्रवाल ने बताया कि कर्नाटक के आलू की खपत दक्षिण भारत में ही हो जाएगी जबकि पाकिस्तान की मांग आने से हिमाचल के आलू में पंजाब की मांग बढ़ेगी। इसीलिए आगामी दिनों में उत्तर प्रदेश में कोल्ड स्टोर में रखे आलू पर ही ज्यादा निर्भरता रहेगी। आगामी दिनों में त्यौहारी मांग के साथ ही ब्याह-शादियों का सीजन शुरू होने वाला है इसीलिए आलू की मांग में भी बढ़ोतरी होगी। ऐसे में आलू की मौजूदा कीमतों में अभी 40-50 रुपये प्रति क्विंटल का और सुधार आने की संभावना है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में पिछले आठ दिनों में आलू की कीमतों में करीब 10 फीसदी की तेजी आ चुकी है। 18 अगस्त को अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में आलू का भाव 386 रुपये प्रति क्विंटल था जो बुधवार को बढ़कर 424 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। हालांकि मंगलवार को आलू वायदा में निवेशकों की बिकवाली आने से निचला सर्किट लगा था। आगरा कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदर्शन सिंघल ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में आलू की कीमतों में आए सुधार से बिकवाली भी कम हुई है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी सुधार की संभावना है। हालांकि उन्होंने बताया कि चालू सीजन में कोल्ड स्टोर में 3.60 करोड़ कट्टे (प्रति कट्टा 50 किलो) का हुआ था। जबकि पिछले साल 3.20 करोड़ कट्टों का स्टॉक था। पिछले चार महीने में कोल्ड स्टोरों से करीब 35-40 फीसदी आलू की निकासी हो पाई है। ऐसे में भारी स्टॉक के कारण तेजी का दौर कभी भी थम सकता है।बात पते कीयूपी के कोल्ड स्टोरों में आलू का बड़ा स्टॉक रखा है। हिमाचल और कर्नाटक में भी नए आलू की आवक शुरू हो गई है। इसलिए आलू की तेजी ज्यादा दिन टिकने की संभावना नहीं है। (business bhakar)
धातुओं के दाम में आ सकती है और नरमी
नई दिल्ली August 25, 2010
अमेरिका में बिगड़ते आर्थिक हालात और यूरोप में आर्थिक गतिविधियां धीमा पडऩे से धातुओं की कीमतों में नरमी आने लगी है। धातु विश्लेषकों के मुताबिक आने वाले दिनों में धातुओं की कीमतों में और गिरावट आ सकती है। उनके मुताबिक बीते दिनों में धातुओं के दाम काफी बढ़ चुके हैं, इसलिए बाजार में बिकवाली के चलते इनकी कीमतों में गिरावट को बल मिलने की संभावना है। ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठ धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि हाल ही में आए अमेरिका में बेरोजगारी के आंकडों बढ़े है और निर्माण क्षेत्र के विकास की दर भी धीमी है। इसके अलावा यूरोप में आर्थिक हालातों में सुधार की गति धीमी है। इस वजह से धातुओं की कीमतों में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। मंगलवार को लंदन मेटन एक्सचेंज (एलएमई)में तांबा तीन माह अनुबंध दो सप्ताह के उच्चतम स्तर 7461 डॉलर प्रति टन तक जाने के बाद घटकर 7,195 डॉलर प्रति टन पर आ गया, एल्युमीनियम 2,102 डॉलर से घटकर 2,031 डॉलर, सीसा करीब 2,131 डॉलर से घटकर 2,019 डॉलर, निकल 22,275 डॉलर से घटकर 20,750 डॉलर और जस्ता 2,136 डॉलर से घटकर 2,000 डॉलर प्रति टन पर आ गया।वहीं घरेलू बाजार में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मंगलवार पिछले एक सप्ताह के मुकाबले तांबा अगस्त वायदा 341.45 से गिरकर करीब 334.10 रुपये, एल्युमीनियम अगस्त वायदा 98.05 रुपये से घटकर 94.65 रुपये, जस्ता अगस्त वायदा 98.65 रुपये से घटकर 92.45 रुपये, सीसा अगस्त वायदा 98.50 रुपये से घटकर 93.20 रुपये प्रति किलो पर बंद हुआ।बुधवार को भी एमसीएक्स और एलएमई में धातुओं की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। धातुओं की कीमतों के बारे में कमोडिटी इनसाइटडॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने कहा कि बीते दिनों में धातुओं के दाम काफी बढ़ गए हैं, जबकि मांग में कोई खास बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई और मांग अभी भी कमजोर है और चीन ने मौद्रिक नीति कठोर कर दी है। इसका चीन के औद्योगिक उत्पादन पर नकारात्मक असर पडऩे की आशंका है। ऐसे में चीन में धातुओं की मांग कम हो सकती है। शर्मा ने कहा कि ऊंचे भाव पर अब बाजार में मुनाफावसूली देखी जा सकती है, जिससे आने वाले दिनों में धातुओं की कीमतों में और गिरावट आने की संभावना है। इस बारे में शेयरखान कमोडिटीज के धातु विश्लेषक प्रवीण सिंह का कहना है कि जुलाई-सितंबर अवधि के दौरान आमतौर पर धातुओं की मांग कम रहती है। (BS Hindi)
अमेरिका में बिगड़ते आर्थिक हालात और यूरोप में आर्थिक गतिविधियां धीमा पडऩे से धातुओं की कीमतों में नरमी आने लगी है। धातु विश्लेषकों के मुताबिक आने वाले दिनों में धातुओं की कीमतों में और गिरावट आ सकती है। उनके मुताबिक बीते दिनों में धातुओं के दाम काफी बढ़ चुके हैं, इसलिए बाजार में बिकवाली के चलते इनकी कीमतों में गिरावट को बल मिलने की संभावना है। ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठ धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि हाल ही में आए अमेरिका में बेरोजगारी के आंकडों बढ़े है और निर्माण क्षेत्र के विकास की दर भी धीमी है। इसके अलावा यूरोप में आर्थिक हालातों में सुधार की गति धीमी है। इस वजह से धातुओं की कीमतों में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। मंगलवार को लंदन मेटन एक्सचेंज (एलएमई)में तांबा तीन माह अनुबंध दो सप्ताह के उच्चतम स्तर 7461 डॉलर प्रति टन तक जाने के बाद घटकर 7,195 डॉलर प्रति टन पर आ गया, एल्युमीनियम 2,102 डॉलर से घटकर 2,031 डॉलर, सीसा करीब 2,131 डॉलर से घटकर 2,019 डॉलर, निकल 22,275 डॉलर से घटकर 20,750 डॉलर और जस्ता 2,136 डॉलर से घटकर 2,000 डॉलर प्रति टन पर आ गया।वहीं घरेलू बाजार में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मंगलवार पिछले एक सप्ताह के मुकाबले तांबा अगस्त वायदा 341.45 से गिरकर करीब 334.10 रुपये, एल्युमीनियम अगस्त वायदा 98.05 रुपये से घटकर 94.65 रुपये, जस्ता अगस्त वायदा 98.65 रुपये से घटकर 92.45 रुपये, सीसा अगस्त वायदा 98.50 रुपये से घटकर 93.20 रुपये प्रति किलो पर बंद हुआ।बुधवार को भी एमसीएक्स और एलएमई में धातुओं की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। धातुओं की कीमतों के बारे में कमोडिटी इनसाइटडॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने कहा कि बीते दिनों में धातुओं के दाम काफी बढ़ गए हैं, जबकि मांग में कोई खास बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई और मांग अभी भी कमजोर है और चीन ने मौद्रिक नीति कठोर कर दी है। इसका चीन के औद्योगिक उत्पादन पर नकारात्मक असर पडऩे की आशंका है। ऐसे में चीन में धातुओं की मांग कम हो सकती है। शर्मा ने कहा कि ऊंचे भाव पर अब बाजार में मुनाफावसूली देखी जा सकती है, जिससे आने वाले दिनों में धातुओं की कीमतों में और गिरावट आने की संभावना है। इस बारे में शेयरखान कमोडिटीज के धातु विश्लेषक प्रवीण सिंह का कहना है कि जुलाई-सितंबर अवधि के दौरान आमतौर पर धातुओं की मांग कम रहती है। (BS Hindi)
भारी बारिश से फल व सब्जी कारोबार घटा
नई दिल्ली August 25, 2010
भारी बारिश के कारण फल एवं सब्जी कारोबारी परेशान है। कारोबारियों का कहना है कि बारिश के कारण फल एवं सब्जी की आवक में भारी कमी आई है। इसके अलावा काफी मात्रा में इनकी गुणवत्ता खराब हो गई है।खराब गुणवत्ता के चलते इनकी बिक्री कम होने से कारोबार घट रहा है, जिससे कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आवक घटने के बावजूद फल खराब होने से इनकी कीमतों में बढ़ोतरी के बजाय गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दूसरी ओर खुदरा में ग्राहकों को इनके अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं। चैंबर ऑफ आजादपुर फ्रूट एवं वेजिटेबल ट्रेडर्स के अध्यक्ष मीठाराम कृपलानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते चार दिनों से लगातार हो रही बारिश की वजह से मंडी में फल एवं सब्जियों की आवक में भारी कमी आई है।सेब की आवक के बारे में कृपलानी का कहना है कि हिमाचल और कश्मीर से आने वाले सेब से लदे ट्रक रास्ते फसे है। इन ट्रकों को दिल्ली पहुंचने में 8 से 10 दिन लग रहे हैं। इस वजह से मंडी में सेब की आवक 800-900 ट्रको से घटकर 600-700 ट्रक रह गई है। अगले दो-चार दिन में आवक घटकर करीब 450 ट्रक रह जाएगी। आलू-प्याज बिक्रेता संघ के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा का कहना है कि बारिश के कारण सप्ताह भर में आलू की आवक 100-110 ट्रक से घटकर 70-75 ट्रक रह गई है। आजादपुर मंडी के सब्जी कारोबारी बलवीर सिंह भल्ला ने इस बारे में बताया कि बुधवार को मंडी सब्जियों की आवक 50 फीसदी कम रही। मंडी में पानी भरने से अंदर और बाहर जाम की स्थिति बन गई।केला मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव तेजंदर माकन ने कहा कि बारिश के कारण केला की आवक 80-90 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। उनका कहना है कि मौसमी की आवक भी घटी है।उधर, बारिश के कारण फलों खासतौर पर सेब के कारोबार को काफी नुकसान हुआ है। माकन का कहना है कि बारिश के कारण सेब की गुणवत्ता खराब हो गई है, साथ ही इसकी आवक घटी है। ऐसे में सेब के दाम बढऩे चाहिए थे, लेकिन सेब खराब होने के कारण इसकी थोक कीमतें 5 रुपये घटकर 20-45 रुपये प्रति किलो रह गई। इसी तरह केलेे के थोक भाव 200 रुपये घटकर 550-850 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है, लेकिन थोक दाम घटने के बावजूद खुदरा में इनकी कीमतों में कमी नहीं आई है।माकन के मुताबिक खराब गुणवत्ता और आवक मे कमी से कारोबारी कम मात्रा में इनकी बिक्री कर पा रहे है। इसलिए उन्हें नुकसान हो रहा है।सब्जियों की कीमतों के बारे में भल्ला का कहना है कि बारिश के कारण सब्जियों की आवक घटने से इनकी कीमतों में तेजी का रुख है, लेकिन इनकी बिक्री पहले के मुकाबले घट रही है। सब्जी कारोबारी पीएम शर्मा का कहना है कि बारिश के कारण दिल्ली में हाट बाजार नहीं लग पा रहे है। साथ ही जगह-जगह पानी भरने से ठेले वाले भी कम सब्जी बेच पा रहे हैं। इससे सब्जियों के कारोबार में कमी दर्ज की जा रही है। (BS Hindi)
भारी बारिश के कारण फल एवं सब्जी कारोबारी परेशान है। कारोबारियों का कहना है कि बारिश के कारण फल एवं सब्जी की आवक में भारी कमी आई है। इसके अलावा काफी मात्रा में इनकी गुणवत्ता खराब हो गई है।खराब गुणवत्ता के चलते इनकी बिक्री कम होने से कारोबार घट रहा है, जिससे कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आवक घटने के बावजूद फल खराब होने से इनकी कीमतों में बढ़ोतरी के बजाय गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दूसरी ओर खुदरा में ग्राहकों को इनके अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं। चैंबर ऑफ आजादपुर फ्रूट एवं वेजिटेबल ट्रेडर्स के अध्यक्ष मीठाराम कृपलानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते चार दिनों से लगातार हो रही बारिश की वजह से मंडी में फल एवं सब्जियों की आवक में भारी कमी आई है।सेब की आवक के बारे में कृपलानी का कहना है कि हिमाचल और कश्मीर से आने वाले सेब से लदे ट्रक रास्ते फसे है। इन ट्रकों को दिल्ली पहुंचने में 8 से 10 दिन लग रहे हैं। इस वजह से मंडी में सेब की आवक 800-900 ट्रको से घटकर 600-700 ट्रक रह गई है। अगले दो-चार दिन में आवक घटकर करीब 450 ट्रक रह जाएगी। आलू-प्याज बिक्रेता संघ के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा का कहना है कि बारिश के कारण सप्ताह भर में आलू की आवक 100-110 ट्रक से घटकर 70-75 ट्रक रह गई है। आजादपुर मंडी के सब्जी कारोबारी बलवीर सिंह भल्ला ने इस बारे में बताया कि बुधवार को मंडी सब्जियों की आवक 50 फीसदी कम रही। मंडी में पानी भरने से अंदर और बाहर जाम की स्थिति बन गई।केला मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव तेजंदर माकन ने कहा कि बारिश के कारण केला की आवक 80-90 ट्रक से घटकर 70-80 ट्रक रह गई है। उनका कहना है कि मौसमी की आवक भी घटी है।उधर, बारिश के कारण फलों खासतौर पर सेब के कारोबार को काफी नुकसान हुआ है। माकन का कहना है कि बारिश के कारण सेब की गुणवत्ता खराब हो गई है, साथ ही इसकी आवक घटी है। ऐसे में सेब के दाम बढऩे चाहिए थे, लेकिन सेब खराब होने के कारण इसकी थोक कीमतें 5 रुपये घटकर 20-45 रुपये प्रति किलो रह गई। इसी तरह केलेे के थोक भाव 200 रुपये घटकर 550-850 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है, लेकिन थोक दाम घटने के बावजूद खुदरा में इनकी कीमतों में कमी नहीं आई है।माकन के मुताबिक खराब गुणवत्ता और आवक मे कमी से कारोबारी कम मात्रा में इनकी बिक्री कर पा रहे है। इसलिए उन्हें नुकसान हो रहा है।सब्जियों की कीमतों के बारे में भल्ला का कहना है कि बारिश के कारण सब्जियों की आवक घटने से इनकी कीमतों में तेजी का रुख है, लेकिन इनकी बिक्री पहले के मुकाबले घट रही है। सब्जी कारोबारी पीएम शर्मा का कहना है कि बारिश के कारण दिल्ली में हाट बाजार नहीं लग पा रहे है। साथ ही जगह-जगह पानी भरने से ठेले वाले भी कम सब्जी बेच पा रहे हैं। इससे सब्जियों के कारोबार में कमी दर्ज की जा रही है। (BS Hindi)
बढेंग़े साबुन के दाम
मुंबई August 25, 2010
देश की दूसरी बड़ी साबुन निर्माता कंपनी गोदरेज कंज्यूमर अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने जा रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कंपनी के चेयरमैन आदि गोदरेज ने कहा, 'पाम ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, ऐसी स्थिति में कीमतों में बढ़ोतरी का उचित कारण बनता है।'उन्होंने कहा कि 'या तो हम अपने उत्पाद की कीमतें बढ़ाएंगे या उसका वजन कम करेंगे। इस पर काम चल रहा है।' पिछले कुछ महीनों में साबुन बनाने के मुख्य कच्चे माल, पाम ऑयल की कीमतों में 70 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है और यह 400 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 680 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है। एचयूएल ने पहले ही अपने प्रमुख ब्रॉन्ड डव, पीयर्स और लिरिल की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है। (BS Hindi)
देश की दूसरी बड़ी साबुन निर्माता कंपनी गोदरेज कंज्यूमर अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने जा रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कंपनी के चेयरमैन आदि गोदरेज ने कहा, 'पाम ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, ऐसी स्थिति में कीमतों में बढ़ोतरी का उचित कारण बनता है।'उन्होंने कहा कि 'या तो हम अपने उत्पाद की कीमतें बढ़ाएंगे या उसका वजन कम करेंगे। इस पर काम चल रहा है।' पिछले कुछ महीनों में साबुन बनाने के मुख्य कच्चे माल, पाम ऑयल की कीमतों में 70 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है और यह 400 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 680 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है। एचयूएल ने पहले ही अपने प्रमुख ब्रॉन्ड डव, पीयर्स और लिरिल की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है। (BS Hindi)
सोने की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के आसार
मुंबई August 25, 2010
सोने में निवेश का चलन बढऩे की वजह से इस वर्ष भारत में इसकी मांग रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। आर्थिक मंदी शुरू होने से पहले वर्ष 2007-08 के दौरान देश में सोने की मांग 732 टन रही थी, जो अब तक का रिकॉर्ड स्तर है। लेकिन यदि मांग के स्तर पर मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो इस वर्ष सोने की मांग नया रिकॉर्ड बना सकती है।तीसरी तिमाही का रुझान देखते हुए 'वल्र्ड गोल्ड काउंसिल' (डब्ल्यूजीसी) में भारत एवं पश्चिम एशिया के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा की तो कम-से-कम यही राय है।भारत में आगामी शादियों के मौसम और धनतेरस, दीवाली एवं ओणम जैसे त्योहार भविष्य में सोने की मांग के लिए शुभ संकेत हैं।गौरतलब है कि पिछले साल की तीसरी तिमाही में सोने की मांग 182 टन रही थी, उस दौरान निवेशक अपने धन का निवेश अन्य परिसंपत्तियों में करना पसंद कर रहे थे। इस वर्ष यदि सोने की मांग का स्तर कम-से-कम पिछले साल जितना भी रहता है, तो तीसरी तिमाही तक कुल मांग 547 टन के स्तर पर जा पहुंचेगी। इसके बाद चौथी तिमाही के दौरान सोने के उपभोग में जबरदस्त बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है, लिहाजा मांग के स्तर पर पिछला रिकॉर्ड ध्वस्त हो सकता है। लेकिन, मित्रा ने चेताया कि एक खराब तिमाही भी तमाम रुझान बदल सकती है।मौजूदा कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही के दौरान भारत में सोने की मांग पिछले साल की समान अवधि में रही कुल मांग की तुलना में 94 फीसदी बढ़कर 365 टन के स्तर पर जा पहुंची। पिछले कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में सोने की मांग 188.4 टन रही थी। कीमत के आधार पर वर्ष 2010 की पहली छमाही के दौरान सोने की मांग वर्ष 2009 की पहली छमाही में रही मांग की तुलना में 122 फीसदी बढ़कर 60,500 करोड़ रुपये के स्तर पर जा पहुंची।सोने के भाव में जबरदस्त बढ़ोतरी की वजह से पहली छमाही के दौरान निवेश के लिए सोने की मांग 264 फीसदी उछाल के साथ 92.5 टन के स्तर पर चली गई। कुल कीमत के आधार पर निवेश के लिए सोने की मांग 300 प्रतिशत की शानदर उछाल के साथ 3,700 करोड़ से बढ़कर 14,800 करोड़ रुपये के स्तर पर जा पहुंची।सोने की मांग में इस जबरदस्त उछाल की एक ठोस वजह यह बताई जा रही है कि भारत में इस पीली धातु के प्रति लोगों का रुझान पारंपरिक रूप से उपभोग की तुलना में निवेश की ओर बढ़ रहा है क्योंकि वैश्विक स्तर पर आर्थिक परिस्थितियां अस्थिर बनी हुई हैं।डब्ल्यूजीसी ने एक विज्ञप्ति में कहा है, 'सोने को लेकर लोगों का रुझान बदलने के बारे में मौजूदा वर्ष के दौरान अब तक स्पष्टï संकेत मिले हैं। जैसे-जैसे इस वर्ष का कारोबार आगे बढ़ता जा रहा है भारत में सोने के बाजार में भी जबरदस्त तेजी आती जा रही है क्योंकि सोने में निवेश का भरोसा फिलहाल कायम है।'इसके अलावा मई के पहले सप्ताह में अक्षय तृतीया के दौरान जेवरात के लिए सोने की मांग बढ़ी क्योंकि भारत में सोने की खरीदारी के लिए यह त्योहार शुभ माना जाता है।डब्ल्यूजीसी में निवेश के प्रबंध निदेशक मार्कस ग्रब ने कहा कि भारत और चीन में मांग बढऩे की वजह से वर्ष 2010 के दौरान सोने की अच्छी मांग बनी रहेगी। इसके अलावा सार्वजनिक ऋण एवं आर्थिक सुधार के प्रति अनिश्चितता जारी रहने की वजह से सोने में निवेश का चलन और तेज होने की गुंजाइश है, लिहाजा इस धातु की मांग में तेजी आएगी। उल्लेखनीय है कि मौजूदा वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान वैश्विक स्तर पर सोने की मांग 36 फीसदी बढ़कर 1,050 टन के स्तर पर चली गई। (BS Hindi)
सोने में निवेश का चलन बढऩे की वजह से इस वर्ष भारत में इसकी मांग रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। आर्थिक मंदी शुरू होने से पहले वर्ष 2007-08 के दौरान देश में सोने की मांग 732 टन रही थी, जो अब तक का रिकॉर्ड स्तर है। लेकिन यदि मांग के स्तर पर मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो इस वर्ष सोने की मांग नया रिकॉर्ड बना सकती है।तीसरी तिमाही का रुझान देखते हुए 'वल्र्ड गोल्ड काउंसिल' (डब्ल्यूजीसी) में भारत एवं पश्चिम एशिया के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा की तो कम-से-कम यही राय है।भारत में आगामी शादियों के मौसम और धनतेरस, दीवाली एवं ओणम जैसे त्योहार भविष्य में सोने की मांग के लिए शुभ संकेत हैं।गौरतलब है कि पिछले साल की तीसरी तिमाही में सोने की मांग 182 टन रही थी, उस दौरान निवेशक अपने धन का निवेश अन्य परिसंपत्तियों में करना पसंद कर रहे थे। इस वर्ष यदि सोने की मांग का स्तर कम-से-कम पिछले साल जितना भी रहता है, तो तीसरी तिमाही तक कुल मांग 547 टन के स्तर पर जा पहुंचेगी। इसके बाद चौथी तिमाही के दौरान सोने के उपभोग में जबरदस्त बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है, लिहाजा मांग के स्तर पर पिछला रिकॉर्ड ध्वस्त हो सकता है। लेकिन, मित्रा ने चेताया कि एक खराब तिमाही भी तमाम रुझान बदल सकती है।मौजूदा कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही के दौरान भारत में सोने की मांग पिछले साल की समान अवधि में रही कुल मांग की तुलना में 94 फीसदी बढ़कर 365 टन के स्तर पर जा पहुंची। पिछले कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में सोने की मांग 188.4 टन रही थी। कीमत के आधार पर वर्ष 2010 की पहली छमाही के दौरान सोने की मांग वर्ष 2009 की पहली छमाही में रही मांग की तुलना में 122 फीसदी बढ़कर 60,500 करोड़ रुपये के स्तर पर जा पहुंची।सोने के भाव में जबरदस्त बढ़ोतरी की वजह से पहली छमाही के दौरान निवेश के लिए सोने की मांग 264 फीसदी उछाल के साथ 92.5 टन के स्तर पर चली गई। कुल कीमत के आधार पर निवेश के लिए सोने की मांग 300 प्रतिशत की शानदर उछाल के साथ 3,700 करोड़ से बढ़कर 14,800 करोड़ रुपये के स्तर पर जा पहुंची।सोने की मांग में इस जबरदस्त उछाल की एक ठोस वजह यह बताई जा रही है कि भारत में इस पीली धातु के प्रति लोगों का रुझान पारंपरिक रूप से उपभोग की तुलना में निवेश की ओर बढ़ रहा है क्योंकि वैश्विक स्तर पर आर्थिक परिस्थितियां अस्थिर बनी हुई हैं।डब्ल्यूजीसी ने एक विज्ञप्ति में कहा है, 'सोने को लेकर लोगों का रुझान बदलने के बारे में मौजूदा वर्ष के दौरान अब तक स्पष्टï संकेत मिले हैं। जैसे-जैसे इस वर्ष का कारोबार आगे बढ़ता जा रहा है भारत में सोने के बाजार में भी जबरदस्त तेजी आती जा रही है क्योंकि सोने में निवेश का भरोसा फिलहाल कायम है।'इसके अलावा मई के पहले सप्ताह में अक्षय तृतीया के दौरान जेवरात के लिए सोने की मांग बढ़ी क्योंकि भारत में सोने की खरीदारी के लिए यह त्योहार शुभ माना जाता है।डब्ल्यूजीसी में निवेश के प्रबंध निदेशक मार्कस ग्रब ने कहा कि भारत और चीन में मांग बढऩे की वजह से वर्ष 2010 के दौरान सोने की अच्छी मांग बनी रहेगी। इसके अलावा सार्वजनिक ऋण एवं आर्थिक सुधार के प्रति अनिश्चितता जारी रहने की वजह से सोने में निवेश का चलन और तेज होने की गुंजाइश है, लिहाजा इस धातु की मांग में तेजी आएगी। उल्लेखनीय है कि मौजूदा वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान वैश्विक स्तर पर सोने की मांग 36 फीसदी बढ़कर 1,050 टन के स्तर पर चली गई। (BS Hindi)
24 अगस्त 2010
चावल-गेहूं के निर्यात पर रोक नहीं हटेगी
गेहूं और गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगी रहेगी। वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने यह जानकारी दी। गेहूं के निर्यात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
श्री शर्मा ने कहा कि फिलहाल कुछ उत्पादों जिनमें गेहूं और गैर बासमती चावल भी हैं, के निर्यात को खोलने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
बढ़ती हुई मंहगाई के मद्देनजर 2008 में सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी। गेहूं का निर्यात तो 2007 की शुरुआत में ही बंद कर दिया गया था। क्योंकि इसके दाम आसमान छू रहे थे। इस बार बंपर फसल होने के कारण उम्मीद की जा रही थी कि गेहूं के निर्यात तो अनुमति मिलेगी। (business Bhaskar)
श्री शर्मा ने कहा कि फिलहाल कुछ उत्पादों जिनमें गेहूं और गैर बासमती चावल भी हैं, के निर्यात को खोलने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
बढ़ती हुई मंहगाई के मद्देनजर 2008 में सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी। गेहूं का निर्यात तो 2007 की शुरुआत में ही बंद कर दिया गया था। क्योंकि इसके दाम आसमान छू रहे थे। इस बार बंपर फसल होने के कारण उम्मीद की जा रही थी कि गेहूं के निर्यात तो अनुमति मिलेगी। (business Bhaskar)
एफसीआई बढ़ाएगी भंडारण क्षमता
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी खाद्यान्न की भंडारण क्षमता बढ़ाएगा। एफसीआई में उत्तर भारत के महाप्रबंधक (परिचालन) आर सी मीणा ने बताया कि निगम उत्तर प्रदेश में 11.85 लाख टन और राजस्थान में 2.60 लाख टन की भंडारण क्षमता बढ़ाएगा। खाद्यान्न की भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए अगले सप्ताह निविदा मांगी जायेंगी। इसके लिए तय दाम 4.78 रुपये प्रति क्विंटल प्रति महीना की दर में लोकेशन के हिसाब से बढ़ोतरी की जा सकती है। हालांकि भाव में बढ़ोतरी का अधिकार उच्चस्तरीय समिति को ही है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकारों के सहयोग से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल के तहत यह क्षमता बढ़ाई जायेगी। इसके लिए प्राइवेट गोदाम मालिकों से दस साल तक के लिए करार किया जायेगा। उत्तर प्रदेश में इस समय भारतीय खाद्य निगम की अपनी भंडारण क्षमता केवल 14.95 लाख टन की है। अत: 11.85 लाख टन की भंडारण क्षमता बढऩे के बाद राज्य में निगम की कुल भंडारण क्षमता बढ़कर 26.8 लाख टन की हो जायेगी। राजस्थान में भी निगम 2.60 लाख टन की भंडारण क्षमता पीपीपी माडल के तहत बढ़ायेगी। इसके लिए अगले सप्ताह में राज्य सरकार के सहयोग से निविदा मांगी जायेगी। राजस्थान में इस समय निगम के पास 7.06 लाख टन खाद्यान्न की ही भंडारण क्षमता है। उत्तर प्रदेश में इस समय निगम की अपनी 14.95 लाख टन की भंडारण क्षमता के अलावा राज्य सरकार की 0.07 लाख टन, सीडब्ल्यूसी की तीन लाख टन और एसडब्ल्यूसी की 4.93 लाख टन की भंडारण क्षमता है। इसके अलावा करीब 0.23 लाख टन की भंडारण क्षमता खाद्यान्न के रख-रखाव के लिए किराये पर ले रखी है। अत: इस समय राज्य में कुल भंडारण क्षमता 23.18 लाख टन (कवर) है तथा इसके अलावा 5.68 लाख टन कैप (तिरपाल के नीचे) की भंडारण क्षमता है। इसी तरह से राजस्थान में निगम की अपनी भंडारण क्षमता 7.06 लाख टन है। इसके अलावा दो लाख टन सीडब्ल्यूसी और 3.63 लाख टन एसडब्ल्यूसी तथा करीब 2.10 लाख टन प्राइवेट गोदाम मालिकों की है। अत: इस समय राज्य में कुल 14.79 लाख टन कवर भंडारण क्षमता है जबकि इसके अलावा राज्य में 3.39 लाख टन की कैप (तिरपाल के नीचे) की भंडारण क्षमता है। मालूम हो कि निगम पहले ही 127 लाख टन की भंडारण क्षमता बढ़ाने का ऐलान कर चुका है। इसके लिए पंजाब और हरियाणा में निविदा भी मांगी जा रही है। पंजाब में लगभग 71 लाख टन और हरियाणा में 39 लाख टन खाद्यान्न के भंडारण की क्षमता बढ़ाई जायेगी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में 3.6 लाख टन, तलिमनाडु में 3.2 लाख टन और बिहार में तीन लाख टन और झारखंड में 1.75 लाख टन, हिमाचल प्रदेश में 1.42 लाख टन, कर्नाटक में एक लाख टन और गुजरात में 45 हजार टन खाद्यान्न की भंडारण क्षमता बढ़ाई जानी है।उत्तर प्रदेशराज्य में इस समय निगम की अपनी भंडारण क्षमता केवल 14.95 लाख टन की है। 11.85 लाख टन की भंडारण क्षमता बढऩे के बाद राज्य में निगम की कुल भंडारण क्षमता 26.8 लाख टन हो जाएगीराजस्थानप्रदेश में निगम के पास अभी 7.06 लाख टन खाद्यान्न की भंडारण क्षमता है। पीपीपी के जरिए 2.60 लाख टन के क्षमता विस्तार के बाद यहां इसकी क्षमता 9.26 लाख टन हो जाएगी। (business Bhaskar....aar as raana)
कोयले की ई-नीलामी पर हो फिर से विचार
नई दिल्ली August 23, 2010
आपूर्ति में बढ़ती हुई गिरावट की वजह से कोयले की ई-नीलामी के दौरान अपवाद रूप से कीमतों में उछाल महसूस की जा रही है। लिहाजा योजना आयोग ने कोयला क्षेत्र में ई-नीलामी की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है।केंद्र सरकार ने तकरीबन 4 वर्ष पहले ई-नीलामी के जरिए कोयला आवंटन की व्यवस्था शुरू की थी। यह इंतजाम गैर प्रमुख क्षेत्रों को बाजार भाव पर कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित किए जाने के लिए किया गया था। यह पूछे जाने पर कि क्या इस योजना से कोयले की कीमत निर्धारित करने का घोषित उद्देश्य पूरा हुआ, योजना आयोग के एक अधिकारी ने कहा, 'कीमत बाद में निर्धारित होगी। फिलहाल तो कोयले का उत्पादन स्तर बढ़ाने की जरूरत है।'उन्होंने कहा कि जिस संदर्भ में कोयला आवंटन के लिए ई-नीलामी की प्रक्रिया शुरू की गई थी, वह अब पूरी तरह बदल गया है। उन्होंने विस्तार में न जाते हुए कहा, 'हमें इस (योजना) पर पुनर्विचार करना होगा।'योजना आयोग की ओर से परिकल्पित मूल योजना में एकीकृत ऊर्जा नीति (आईईपी) के तहत ई-नीलामी के माध्यम से कोयले की बिक्री धीरे-धीरे बढ़ाते हुए कुल उत्पादन का 10 फीसदी से 20 फीसदी के स्तर तक ले जाना था। लेकिन फिलहाल यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है।ई-नीलामी के लिए कोयले की आपूर्ति करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज के माध्यम से अपने कुल उत्पादन के 12 फीसदी से अधिक का आवंटन कभी नहीं कर पाई। कारण यह रहा कि देश में कोयले की उपलब्धता पूरे वर्ष जरूरत से कम रही।योजना आयोग के अधिकारी ने बताया, 'हम ई-नीलामी के माध्यम से ज्यादा-से-ज्यादा कोयला आवंटन की मंशा रखते थे, ताकि बाजार मूल्य निर्धारित हो सके। लेकिन हाल के कुछ दिनों से कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ा है। आपूर्ति में गिरावट की वजह से अब इस मामले में मुश्किलें पेश आ रही हैं।'उल्लेखनीय है कि भारत में फिलहाल सालाना स्तर पर 45 करोड़ टन कोयले का उत्पादन होता है। उत्पादन का यह स्तर मांग की तुलना में 5 करोड़ टन कम है और यह जरूरत आयात से पूरी की जाती है। मौजूदा पंचवर्षीय योजना के अंत तक देश में कोयला उत्पादन का स्तर 62.9 करोड़ टन तक जा पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। बावजूद इसके मांग 8.3 करोड़ टन ज्यादा रहेगी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014 तक कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 20 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचेगा, जिससे आयात का दबाव बढ़ेगा।दूसरी ओर घरेलू स्तर पर कोयले का थोक उत्पादन करने वाली कंपनी कोल इंडिया का कहना है कि मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर पाटने में रेलवे रैकों एवं बंदरगाह जैसी अपर्याप्त बुनियादी ढांचागत सुविधा से बाधा पहुंच रही है। इस कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान 43.1 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया और इसका 10 प्रतिशत हिस्सा अधिसूचित मूल्य से 57 फीसदी अधिक भाव पर ई-नीलामी के माध्यम से बेचा। चालू वित्त वर्ष में 10 अप्रैल से 10 जून के दौरान कोल इंडिया ने 9.3 टन कोयला अधिसूचित मूल्य से 67 फीसदी अधिक भाव पर बेचा है।विशेषज्ञों के मुताबिक एक्सचेंज में भाव बढऩे से खरीदार पीछे हट रहे हैं। यह स्थिति पहले भी बन चुकी है। कोयले के इलेक्ट्रॉनिक कारोबार में इसकी ऊंची कीमतें महसूस किए जाने की वजह से इस प्रक्रिया में बाधा पहुंची थी। सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2006 में इस योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें कोयला क्षेत्र में सीआईएल के एकाधिकार का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है ताकि भाव ऊंचा रखा जा सके। इससे संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति नहीं होती। (BS Hindi)
आपूर्ति में बढ़ती हुई गिरावट की वजह से कोयले की ई-नीलामी के दौरान अपवाद रूप से कीमतों में उछाल महसूस की जा रही है। लिहाजा योजना आयोग ने कोयला क्षेत्र में ई-नीलामी की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है।केंद्र सरकार ने तकरीबन 4 वर्ष पहले ई-नीलामी के जरिए कोयला आवंटन की व्यवस्था शुरू की थी। यह इंतजाम गैर प्रमुख क्षेत्रों को बाजार भाव पर कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित किए जाने के लिए किया गया था। यह पूछे जाने पर कि क्या इस योजना से कोयले की कीमत निर्धारित करने का घोषित उद्देश्य पूरा हुआ, योजना आयोग के एक अधिकारी ने कहा, 'कीमत बाद में निर्धारित होगी। फिलहाल तो कोयले का उत्पादन स्तर बढ़ाने की जरूरत है।'उन्होंने कहा कि जिस संदर्भ में कोयला आवंटन के लिए ई-नीलामी की प्रक्रिया शुरू की गई थी, वह अब पूरी तरह बदल गया है। उन्होंने विस्तार में न जाते हुए कहा, 'हमें इस (योजना) पर पुनर्विचार करना होगा।'योजना आयोग की ओर से परिकल्पित मूल योजना में एकीकृत ऊर्जा नीति (आईईपी) के तहत ई-नीलामी के माध्यम से कोयले की बिक्री धीरे-धीरे बढ़ाते हुए कुल उत्पादन का 10 फीसदी से 20 फीसदी के स्तर तक ले जाना था। लेकिन फिलहाल यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है।ई-नीलामी के लिए कोयले की आपूर्ति करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज के माध्यम से अपने कुल उत्पादन के 12 फीसदी से अधिक का आवंटन कभी नहीं कर पाई। कारण यह रहा कि देश में कोयले की उपलब्धता पूरे वर्ष जरूरत से कम रही।योजना आयोग के अधिकारी ने बताया, 'हम ई-नीलामी के माध्यम से ज्यादा-से-ज्यादा कोयला आवंटन की मंशा रखते थे, ताकि बाजार मूल्य निर्धारित हो सके। लेकिन हाल के कुछ दिनों से कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ा है। आपूर्ति में गिरावट की वजह से अब इस मामले में मुश्किलें पेश आ रही हैं।'उल्लेखनीय है कि भारत में फिलहाल सालाना स्तर पर 45 करोड़ टन कोयले का उत्पादन होता है। उत्पादन का यह स्तर मांग की तुलना में 5 करोड़ टन कम है और यह जरूरत आयात से पूरी की जाती है। मौजूदा पंचवर्षीय योजना के अंत तक देश में कोयला उत्पादन का स्तर 62.9 करोड़ टन तक जा पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। बावजूद इसके मांग 8.3 करोड़ टन ज्यादा रहेगी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014 तक कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 20 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचेगा, जिससे आयात का दबाव बढ़ेगा।दूसरी ओर घरेलू स्तर पर कोयले का थोक उत्पादन करने वाली कंपनी कोल इंडिया का कहना है कि मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर पाटने में रेलवे रैकों एवं बंदरगाह जैसी अपर्याप्त बुनियादी ढांचागत सुविधा से बाधा पहुंच रही है। इस कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान 43.1 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया और इसका 10 प्रतिशत हिस्सा अधिसूचित मूल्य से 57 फीसदी अधिक भाव पर ई-नीलामी के माध्यम से बेचा। चालू वित्त वर्ष में 10 अप्रैल से 10 जून के दौरान कोल इंडिया ने 9.3 टन कोयला अधिसूचित मूल्य से 67 फीसदी अधिक भाव पर बेचा है।विशेषज्ञों के मुताबिक एक्सचेंज में भाव बढऩे से खरीदार पीछे हट रहे हैं। यह स्थिति पहले भी बन चुकी है। कोयले के इलेक्ट्रॉनिक कारोबार में इसकी ऊंची कीमतें महसूस किए जाने की वजह से इस प्रक्रिया में बाधा पहुंची थी। सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2006 में इस योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें कोयला क्षेत्र में सीआईएल के एकाधिकार का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है ताकि भाव ऊंचा रखा जा सके। इससे संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति नहीं होती। (BS Hindi)
त्योहारी सीजन की मांग बढऩे से थोक बाजार में महंगे होने लगे मेवे
नई दिल्ली August 23, 2010
मांग बढऩे का असर मेवों की कीमतों पर दिखने लगा है। कारोबारियों के मुताबिक त्योहारों का सीजन शुरू होने के कारण मेवों की मांग में इजाफा हुआ है जिससे इनकी कीमतें भी बढऩे लगी हैं।दिल्ली स्थित एशिया के सबसे बड़े मेवा बाजार खारी बावली मंडी में बीते 15 दिनों के दौरान प्रति किलोग्राम काजू के दाम 40 रुपये बढ़कर 420-540 रुपये, बादाम के दाम 30 रुपये बढ़कर 370 रुपये और पिस्ता के दाम 50 रुपये बढ़कर 550-850 रुपये हो चुके हैं। बाजार में देसी किशमिश के दाम 150-180 रुपये और आयातित किशमिश के दाम 350-500 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। खारी बावली व्यापार महासंघ के प्रधान ऋषि मंगला ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि त्योहारों का सीजन होने के कारण मेवों की मांग बढ़ रही है। इस कारण इनकी कीमतों में तेजी का रुख है।उनका कहना है कि काजू की कीमतों में अधिक तेजी दर्ज की जा रही है। इसकी वजह इस बार देश में काजू की पैदावार पिछले साल से कम होना है। इसके अलावा निर्यात अधिक होने से भी काजू महंगा है।काजू और कोकोआ विकास निदेशालय के एक अधिकारी के मुताबिक काजू की फसल में कीड़े लगने के कारण वर्ष 2009-10 के दौरान देश में इसका उत्पादन 10 फीसदी से अधिक घटकर 6.25 लाख टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में देश में 6.95 लाख टन काजू का उत्पादन हुआ था। वहीं दूसरी ओर बीते महीनों में काजू का निर्यात भी बढ़ा है। कैश्यू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक मई में 12 फीसदी और जून में काजू के निर्यात 3 फीसदी का इजाफा हुआ था।मेवों की कीमतों में तेजी की दूसरी वजह दीवाली के लिए कारोबारियों द्वारा इनका स्टॉक करने को भी माना जा रहा है। कारोबारी नवीन कुमार का कहना है कि मेवे की सबसे अधिक खपत दीवाली पर होती है। इसलिए कारोबारियों ने दीवाली की मांग की पूर्ति करने के लिए अभी से स्टॉक करना शुरू कर दिया है। इस वजह से भी मेवों की कीमतों में तेजी का रुख है।आगे मेवों की कीमतों के बारे में कारोबारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में नवरात्र, दशहरा, दीवाली सहित कई त्योहार आने वाले हैं। साथ ही शादियों का सीजन भी आने वाला है। ऐसे में मेवे की मांग मजबूत रहने की संभावना है। इसलिए आगे मेवे की कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है। (BS Hindi)
मांग बढऩे का असर मेवों की कीमतों पर दिखने लगा है। कारोबारियों के मुताबिक त्योहारों का सीजन शुरू होने के कारण मेवों की मांग में इजाफा हुआ है जिससे इनकी कीमतें भी बढऩे लगी हैं।दिल्ली स्थित एशिया के सबसे बड़े मेवा बाजार खारी बावली मंडी में बीते 15 दिनों के दौरान प्रति किलोग्राम काजू के दाम 40 रुपये बढ़कर 420-540 रुपये, बादाम के दाम 30 रुपये बढ़कर 370 रुपये और पिस्ता के दाम 50 रुपये बढ़कर 550-850 रुपये हो चुके हैं। बाजार में देसी किशमिश के दाम 150-180 रुपये और आयातित किशमिश के दाम 350-500 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। खारी बावली व्यापार महासंघ के प्रधान ऋषि मंगला ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि त्योहारों का सीजन होने के कारण मेवों की मांग बढ़ रही है। इस कारण इनकी कीमतों में तेजी का रुख है।उनका कहना है कि काजू की कीमतों में अधिक तेजी दर्ज की जा रही है। इसकी वजह इस बार देश में काजू की पैदावार पिछले साल से कम होना है। इसके अलावा निर्यात अधिक होने से भी काजू महंगा है।काजू और कोकोआ विकास निदेशालय के एक अधिकारी के मुताबिक काजू की फसल में कीड़े लगने के कारण वर्ष 2009-10 के दौरान देश में इसका उत्पादन 10 फीसदी से अधिक घटकर 6.25 लाख टन रहने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में देश में 6.95 लाख टन काजू का उत्पादन हुआ था। वहीं दूसरी ओर बीते महीनों में काजू का निर्यात भी बढ़ा है। कैश्यू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक मई में 12 फीसदी और जून में काजू के निर्यात 3 फीसदी का इजाफा हुआ था।मेवों की कीमतों में तेजी की दूसरी वजह दीवाली के लिए कारोबारियों द्वारा इनका स्टॉक करने को भी माना जा रहा है। कारोबारी नवीन कुमार का कहना है कि मेवे की सबसे अधिक खपत दीवाली पर होती है। इसलिए कारोबारियों ने दीवाली की मांग की पूर्ति करने के लिए अभी से स्टॉक करना शुरू कर दिया है। इस वजह से भी मेवों की कीमतों में तेजी का रुख है।आगे मेवों की कीमतों के बारे में कारोबारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में नवरात्र, दशहरा, दीवाली सहित कई त्योहार आने वाले हैं। साथ ही शादियों का सीजन भी आने वाला है। ऐसे में मेवे की मांग मजबूत रहने की संभावना है। इसलिए आगे मेवे की कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है। (BS Hindi)
ड्रैगन की अंगूठी में देसी नगीने
मुंबई August 23, 2010
भारतीय रत्न एवं आभूषण उद्योग चीन को अपना प्रतिस्पर्धी न मानकर एक बड़े बाजार के रूप में देख रहा है। देसी चीनी रत्न एवं आभूषण कारोबारियों की पहल का चीन के उद्यमियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया है। 19 से 23 अगस्त तक मुंबई के एनएसई मैदान पर आयोजित एशिया के दूसरा सबसे बड़े ज्वैलरी शो 'इंडिया इंटरनैशनल ज्वैलरी शो' में 75 चीनी कंपनियां शामिल हुईं। जबकि इसके पहले तक ऐसे आयोजन में चीनी कारोबारियों की संख्या नगण्य थी। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद् के चेयरमैन वसंत मेहता के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और सरकार की ओर से मिली मदद से निर्यात पिछले साल के 24894 करोड़ डॉलर से बढ़कर 28415 करोड़ डॉलर पहुंच गया। 2009-10 के दौरान तराशे एवं पॉलिश किए हुए हीरों का निर्यात 17542 करोड़ डॉलर का हुआ जबकि इसके पिछले साल हीरों का निर्यात 14804 करोड़ डॉलर का था। चालू वित्त वर्ष में निर्यात में 10 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। मेहता के अनुसार रत्न एवं आभूषण उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए जरूरी है कि नए बाजारों की तलाश की जाए। इसीलिए हम चीन को अपने प्रतिस्पर्धी न देखकर नए बाजार के रूप में देख रहे हैं।लक्ष्मी डायमंड के प्रबंध निदेशक अशोक एच गजेरा कहते हैं, 'दुनिया ने हमारे काम का लोहा माना है। अब बारी है चीनी बाजार में अपनी बादशाहत दिखाने की।' नाइन डायमंड के चेयरमैन संजय शाह का कहना है कि प्रदर्शनी में भारी भीड़ को देखते हुए लग रहा है कि अब हीरा उद्योग पटरी पर आ गया है।उन्होंने बताया कि मांग बढऩे और नया बाजार मिलने से बंद पड़े कारखानों में फिर से कारीगरों को काम मिलने की उम्मीद है। जीजेईपीसी के अनुसार 5 दिनों तक चलने वाले इस प्रदर्शनी में 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कारोबार की उम्मीद है। जीजेईपीसी के उपध्यक्ष राजीव जैन ने बताया कि प्रदर्शनी में 776 कंपनियां भाग ले रही हैं, जिनमें 653 भारतीय कंपनियां और 123 विदेशी कंपनियां हैं। (BS Hindi)
भारतीय रत्न एवं आभूषण उद्योग चीन को अपना प्रतिस्पर्धी न मानकर एक बड़े बाजार के रूप में देख रहा है। देसी चीनी रत्न एवं आभूषण कारोबारियों की पहल का चीन के उद्यमियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया है। 19 से 23 अगस्त तक मुंबई के एनएसई मैदान पर आयोजित एशिया के दूसरा सबसे बड़े ज्वैलरी शो 'इंडिया इंटरनैशनल ज्वैलरी शो' में 75 चीनी कंपनियां शामिल हुईं। जबकि इसके पहले तक ऐसे आयोजन में चीनी कारोबारियों की संख्या नगण्य थी। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद् के चेयरमैन वसंत मेहता के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और सरकार की ओर से मिली मदद से निर्यात पिछले साल के 24894 करोड़ डॉलर से बढ़कर 28415 करोड़ डॉलर पहुंच गया। 2009-10 के दौरान तराशे एवं पॉलिश किए हुए हीरों का निर्यात 17542 करोड़ डॉलर का हुआ जबकि इसके पिछले साल हीरों का निर्यात 14804 करोड़ डॉलर का था। चालू वित्त वर्ष में निर्यात में 10 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। मेहता के अनुसार रत्न एवं आभूषण उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए जरूरी है कि नए बाजारों की तलाश की जाए। इसीलिए हम चीन को अपने प्रतिस्पर्धी न देखकर नए बाजार के रूप में देख रहे हैं।लक्ष्मी डायमंड के प्रबंध निदेशक अशोक एच गजेरा कहते हैं, 'दुनिया ने हमारे काम का लोहा माना है। अब बारी है चीनी बाजार में अपनी बादशाहत दिखाने की।' नाइन डायमंड के चेयरमैन संजय शाह का कहना है कि प्रदर्शनी में भारी भीड़ को देखते हुए लग रहा है कि अब हीरा उद्योग पटरी पर आ गया है।उन्होंने बताया कि मांग बढऩे और नया बाजार मिलने से बंद पड़े कारखानों में फिर से कारीगरों को काम मिलने की उम्मीद है। जीजेईपीसी के अनुसार 5 दिनों तक चलने वाले इस प्रदर्शनी में 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कारोबार की उम्मीद है। जीजेईपीसी के उपध्यक्ष राजीव जैन ने बताया कि प्रदर्शनी में 776 कंपनियां भाग ले रही हैं, जिनमें 653 भारतीय कंपनियां और 123 विदेशी कंपनियां हैं। (BS Hindi)
गोदाम बनाने पर राहत की बारिश
चंडीगढ़ August 23, 2010
अनाज के भंडारण के संकट की समस्या को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एक बार फिर गोदाम बनाने के लिए निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की कोशिश की है। मंत्रालय ने प्राइवेट इंटरप्रेन्योरशिप गारंटी (पीईजी 2008) योजना के मानकों में ढील दी है।भंडारण की जगह के लिए जहां पहले पट्टे की अवधि 7 साल थी, उसे अब बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। नए दिशानिर्देशों के मुताबिक पहले 5000 टन अनाज के भंडारण के लिए गोदाम बनाने हेतु जमीन की जरूरत 3 एकड़ से घटाकर 2 एकड़ कर दी गई है। वहीं अतिरिक्त 5000 टन भंडारण के लिए जमीन की जरूरत 2 एकड़ से घटाकर 1.7 एकड़ कर दी गई है।फाइनैंशियल क्लोजर की पहले अग्रिम जरूरत की शर्त थी, वहीं अब इसके लिए बोली की तिथि से 45 दिन के भीतर पेश करने की छूट दी गई है। जमीन की बढ़ी हुई कीमतें एक खास वजह हैं, जिससे निजी क्षेत्र के कारोबारी 5 साल की पीईजी योजना की ओर आकर्षित नहीं हो रहे थे। अब इसमेंछूट दिए जाने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि निजी क्षेत्र के कारोबारी इसकी ओर आकर्षित होंगे।हरियाणा ने जून 2010 में दिए गए टेंडर को पहले ही हटा लिया है और इसकी जगह पर 7 साल की गारंटी योजना के मुताबिक और बदले हुए मानकों के अनुरूप टेंडर निकाले गए हैं। तकनीकी योग्यता जानने के लिए पंजाब ने टेंडर निकालने का फैसला किया है। इस मामले में योग्य बोलीकर्ता ईएमडी (अर्नेस्ट मनी डिपाजिट) छोडऩा पड़ेगा, अगर वे पुनरीक्षित दिशानिर्देशों के मुताबिक आवेदन करना चाहते हैं। पंजाब और हरियाणा दो ऐसे राज्य हैं जहां भारतीय खाद्य निगम को भंडारण के मामले में संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके पास भंडारण के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। हरियाणा में 3 लाख टन भंडारण क्षमता के गोदाम बनाने के लिए बोली प्राप्त हुई है। यह 5 साल की पीईजी 2008 योजना के तहत है। अधिकारियों ने कहा कि 10 साल की गारंटी योजना के तहत निजी क्षेत्र से बेहतर रिस्पांस मिलने की उम्मीद है।पंजाब के पास भी अभी इतना ही समय योजना बनाने के लिए है, क्योंकि वहां पर बोली 29 जुलाई को खुली है। वहां पर 67 लाख टन की जरूरत है, जबकि सिर्फ 10 लाख टन के लिए प्रस्ताव मिले हैं। साथ ही टेंडर की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य नए आवेदन आमंत्रित करने की भी योजना बना रहा है। निजी क्षेत्र को 4.78 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह के भाव से किराया देने का ऑफर किया गया है, जिसमें गोदाम का किराया, रखरखाव लागत और निरीक्षण चार्ज शामिल है। इसके अलावा 26 लाख टन की भंडारण क्षमता उत्तर प्रदेश में और 3 लाख टन भंडारण क्षमता राजस्थान में तैयार करना है। इसके लिए जल्द ही टेंडर जारी किए जाएंगे। (BS Hindi)
अनाज के भंडारण के संकट की समस्या को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एक बार फिर गोदाम बनाने के लिए निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की कोशिश की है। मंत्रालय ने प्राइवेट इंटरप्रेन्योरशिप गारंटी (पीईजी 2008) योजना के मानकों में ढील दी है।भंडारण की जगह के लिए जहां पहले पट्टे की अवधि 7 साल थी, उसे अब बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। नए दिशानिर्देशों के मुताबिक पहले 5000 टन अनाज के भंडारण के लिए गोदाम बनाने हेतु जमीन की जरूरत 3 एकड़ से घटाकर 2 एकड़ कर दी गई है। वहीं अतिरिक्त 5000 टन भंडारण के लिए जमीन की जरूरत 2 एकड़ से घटाकर 1.7 एकड़ कर दी गई है।फाइनैंशियल क्लोजर की पहले अग्रिम जरूरत की शर्त थी, वहीं अब इसके लिए बोली की तिथि से 45 दिन के भीतर पेश करने की छूट दी गई है। जमीन की बढ़ी हुई कीमतें एक खास वजह हैं, जिससे निजी क्षेत्र के कारोबारी 5 साल की पीईजी योजना की ओर आकर्षित नहीं हो रहे थे। अब इसमेंछूट दिए जाने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि निजी क्षेत्र के कारोबारी इसकी ओर आकर्षित होंगे।हरियाणा ने जून 2010 में दिए गए टेंडर को पहले ही हटा लिया है और इसकी जगह पर 7 साल की गारंटी योजना के मुताबिक और बदले हुए मानकों के अनुरूप टेंडर निकाले गए हैं। तकनीकी योग्यता जानने के लिए पंजाब ने टेंडर निकालने का फैसला किया है। इस मामले में योग्य बोलीकर्ता ईएमडी (अर्नेस्ट मनी डिपाजिट) छोडऩा पड़ेगा, अगर वे पुनरीक्षित दिशानिर्देशों के मुताबिक आवेदन करना चाहते हैं। पंजाब और हरियाणा दो ऐसे राज्य हैं जहां भारतीय खाद्य निगम को भंडारण के मामले में संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके पास भंडारण के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। हरियाणा में 3 लाख टन भंडारण क्षमता के गोदाम बनाने के लिए बोली प्राप्त हुई है। यह 5 साल की पीईजी 2008 योजना के तहत है। अधिकारियों ने कहा कि 10 साल की गारंटी योजना के तहत निजी क्षेत्र से बेहतर रिस्पांस मिलने की उम्मीद है।पंजाब के पास भी अभी इतना ही समय योजना बनाने के लिए है, क्योंकि वहां पर बोली 29 जुलाई को खुली है। वहां पर 67 लाख टन की जरूरत है, जबकि सिर्फ 10 लाख टन के लिए प्रस्ताव मिले हैं। साथ ही टेंडर की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य नए आवेदन आमंत्रित करने की भी योजना बना रहा है। निजी क्षेत्र को 4.78 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह के भाव से किराया देने का ऑफर किया गया है, जिसमें गोदाम का किराया, रखरखाव लागत और निरीक्षण चार्ज शामिल है। इसके अलावा 26 लाख टन की भंडारण क्षमता उत्तर प्रदेश में और 3 लाख टन भंडारण क्षमता राजस्थान में तैयार करना है। इसके लिए जल्द ही टेंडर जारी किए जाएंगे। (BS Hindi)
23 अगस्त 2010
आयात शुल्क 20 से घटाकर 7.5 फीसदी
नेचरल रबर के उपभोक्ता उद्योगों खासकर टायर उद्योग को राहत देने के लिए इसके आयात पर आयात शुल्क घटाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध थमता नजर नजर नहीं आ रही है। पिछले दिनों केरल सरकार के विरोध के बाद किसान संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं। नेचुरल रबर पर आयात शुल्क 20 फीसदी से घटाकर 7.5 किया गया है। सरकार के इस फैसले का बाजार पर असर दिखने लगा है। बाजार में नेचुरल रबर के दाम घटने लगे हैं। एक सप्ताह में रबर के दाम करीब पांच फीसदी घट गए हैं।ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष एस. रामचंद्रन पिल्लई के अनुसार आयात शुल्क कम करने से नेचुरल रबर का आयात बढ़ेगा। इससे घरेलू रबर उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि नेचुरल रबर के कुल उत्पादन का 90 फीसदी उत्पादन केरल में होता है। आयात शुल्क घटाने से घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कीमतें घट जाएगी। वैसे भी नेचुरल रबर पर आयात शुल्क कम किए जाने के वाणिज्य मंत्रालय के फैसले से स्थानीय बाजार में कीमतों में गिरावट बननी शुरू हो गई है। बेंचमार्क आरएसएस-4 की कीमत शनिवार को घटकर 174 रुपये प्रति किलो रह गई जबकि 14 अगस्त को इसका भाव 183 रुपये प्रति किलो था। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेंचमार्क आरएसएस-3 नेचुरल रबर का भाव 156 रुपये (भारतीय मुद्रा में) प्रति किलो चल रहा है। एक तो भारत की तुलना में विदेशी में भाव पहले ही कम है, ऊपर से आयात शुल्क घटा दिया जाता है तो इससे सस्ती रबर का आयात बढ़ जाएगा। घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की बढ़ती कीमतों और उद्योग के दबाव में वाणिज्य मंत्रालय ने आयात शुल्क 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी करने का प्रस्ताव सरकार के पास रखा है। वित्त मंत्रालय और मंत्रिमंडल की सहमति के बाद ही इसे लागू किया जाएगा लेकिन उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए इसका विरोध शुरू हो गया है। पिछले दिनों केरल के वित्त मंत्री टी. एम. थॉमस ने कहा था कि कि केंद्र ने यह फैसला रबर का उपभोग करने वाले उद्योगों के दबाव में लिया है। इससे रबर उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाएगी। आयात शुल्क हाटाए जाने से घरेलू बाजार में रबर के दाम गिरने की संभावना पैदा हो गई है। केरल में देश की 90 फीसदी रबर का उत्पादन होता है। देश में कुल रबर उत्पादन करीब 6-7 लाख टन के आसपास है।बात पते कीबेंचमार्क आरएसएस-4 की कीमत शनिवार को घटकर 174 रुपये प्रति किलो रह गई जबकि 14 अगस्त को इसका भाव 183 रुपये प्रति किलो था। (Business Bhaskar...aar as raana)
केस्टर में तेजी
चीन से केस्टर (अरंडी) तेल की निर्यात मांग बढऩे से केस्टर सीड की कीमतों में तेजी आई है। उत्पादक मंडियों में पिछले दो दिनों में केस्टर सीड के दाम 40 रुपये प्रति 20 किलो बढ़ चुके हैं। हालांकि अक्टूबर में आंध्र प्रदेश में केस्टर सीड की नई फसल आ जाएगी। लेकिन इस समय निर्यात मांग के मुकाबले उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड का बकाया स्टॉक कम है इसीलिए मौजूदा कीमतों में 40-50 रुपये प्रति 20 किलो की ओर तेजी आने की संभावना है। अहमदाबाद स्थित मैसर्स नेमस्ट ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर प्रकाश भाई ने बताया कि चीन की मांग बढऩे से केस्टर सीड की कीमतों में तेजी आई है। पिछले दो दिनों में उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड के दाम 40 रुपये बढ़कर 705 रुपये प्रति 20 किलो हो गए। इस दौरान केस्टर तेल के दाम बढ़कर 780-785 रुपये प्रति 10 किलो हो गए। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश में नई फसल की आवक अक्टूबर में शुरू हो जाएगी लेकिन उत्पादक मंडियों में बकाया स्टॉक कम मात्रा में बचा हुआ है जबकि घरेलू मांग भी बराबर बनी हुई है। इसीलिए केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में और भी 40-50 रुपये प्रति 20 किलो की तेजी आ सकती है। गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक घटकर मात्र 5000 हजार बोरी रह गई है। गुजरात के केस्टर सीड के निर्यातक कुशल राज पारिख ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सात-आठ लाख बोरी का ही स्टॉक बचा हुआ है जबकि करीब इतना ही स्टॉक तेल मिलों के पास है। जिस तरह से घरेलू और निर्यात मांग निकल रही है, उस हिसाब से अगले दो महीने में करीब 18 से 20 लाख बोरी केस्टर सीड की पेराई के लिए आवश्यकता होगी। इसीलिए तेजी को बल मिल रहा है। चीन के आयात सौदे इस समय 1630 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) की दर से हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश की नई फसल की आवक अक्टूबर महीने में शुरू हो जाएगी तथा नवंबर में आवक का दबाव बन जाएगा। इसके बाद दिसंबर-जनवरी में गुजरात की फसल आ जाती है तथा राजस्थान में भी नई फसल की आवक दिसंबर-जनवरी में ही होती है। हालांकि चालू सीजन में किसानों ने केस्टर सीड का ऊंचा दाम देखा है इसीलिए बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू बुवाई सीजन में जुलाई के आखिर तक केस्टर सीड की बुवाई बढ़कर 301,000 हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 218,000 हैक्टेयर से ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों अप्रैल-मई में ही केस्टर तेल का निर्यात 83,596 टन का हो चुका है जबकि इस दौरान केस्टर खली का निर्यात भी 53.6 फीसदी बढ़कर 37,246 टन का हुआ है।बात पते की- अक्टूबर में आंध्र प्रदेश में केस्टर सीड की नई फसल आ जाएगी। लेकिन इस समय निर्यात मांग के मुकाबले उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड का बकाया स्टॉक कम है- आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.net (Business Bhaskar)
किसानों को नई कपास के बेहतर मूल्य
पाकिस्तान और चीन में बाढ़ से कॉटन की फसल को नुकसान हुआ है जिससे घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। संभावना है कि करीब डेढ़ माह बाद नई फसल आएगी, उस समय किसानों को उनकी कपास के बेहतर मूल्य मिलें। हालांकि आवक का दबाव शुरू होने पर मूल्य में कुछ गिरावट भी आ सकती है। पिछले एक महीने में घरेलू बाजार में कॉटन के दाम करीब 13.5 फीसदी और विदेशी बाजार में करीब 10.54 फीसदी बढ़ चुके हैं। उधर सरकार ने सितंबर से कॉटन निर्यात के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू करने और अक्टूबर से निर्यात की अनुमति देने के संकेत दिए हैं।कॉटन एडवायजरी बोर्ड (सीएबी) के अनुसार मौजूदा मार्केटिंग वर्ष 2009-10 में देश में कॉटन का उत्पादन 295 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) का हुआ है। जबकि पिछले साल की समाप्ति के समय करीब 71.50 लाख गांठ का बकाया स्टॉक बचा था। इसके अलावा करीब 7 लाख गांठ का आयात हुआ। ऐसे में कुल उपलब्धता 373.50 लाख गांठ की बैठती है। इसमें से चालू सीजन में करीब 83 लाख गांठ का निर्यात होने का अनुमान है जबकि देश में कॉटन की सालाना खपत करीब 250 लाख गांठ की होती है। इसलिए वर्ष 2010-11 में शुरू होने वाले नए सीजन के समय देश में कॉटन का 40.50 लाख गांठ का स्टॉक बचने की उम्मीद है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार चालू सीजन में कॉटन की बुवाई में करीब 10.5 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। अभी तक देश में 105.67 लाख हैक्टेयर में कॉटन की बुवाई हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि 95.59 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। अभी तक मौसम फसल के अनुकूल रहा है ऐसे में देश में कॉटन की पैदावार में भारी बढ़ोतरी होने की संभावना है। सरकार ने नए सीजन में कॉटन निर्यात पर लगी रोक हटा सकती है। पाकिस्तान और चीन में बाढ़ से जरूर कॉटन का उत्पादन प्रभावित होगा, लेकिन अगर पूरे विश्व में कॉटन के कुल उत्पादन में करीब 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। भारत में भी इसके उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी की संभावना है। साथ ही नई फसल के समय बकाया स्टॉक भी अच्छी मात्रा में बचेगा, हालांकि बकाया स्टॉक पिछले साल से कम होगा। लेकिन सितंबर मध्य के बाद कॉटन की कीमतों में गिरावट शुरू होने की संभावना है। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन का दाम बढ़कर शनिवार को 33,000 से 33,500 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) हो गया। मालूम हो कि 21 जुलाई को इसका भाव 29,200 से 29,500 रुपये प्रति कैंडी था। हालांकि कीमतों में तेजी आने से मांग पहले की तुलना में कम हो गई है। उधर, न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में दिसंबर वायदा अनुबंध की कीमतों में पिछले एक महीने में 10.54 फीसदी की तेजी आकर भाव 83.55 सेंट प्रति पाउंड हो गए।बात पते कीकिसानों को नई कपास के बेहतर मूल्य मिलने की संभावना है क्योंकि नए सीजन की शुरूआत में 40 लाख गांठ पिछला स्टॉक बचने का अनुमान है, जो पिछले साल से कम है। (BS Hindi)
90 फीसदी रकबे में हो चुकी है खरीफ की बुआई
August 22, 2010
मानसूनी बारिश में सुधार से देश में अच्छे खरीफ उत्पादन की उम्मीद की जा रही है। हालांकि पूर्वी इलाकों में बारिश की कमी अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। देश के 90 फीसदी खरीफ रकबे में 19 अगस्त तक बुआई की जा चुकी है और इस समय फसल की स्थिति अच्छी बनी हुई है। अधिकांश जलाशयों में पानी के भंडार में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और अब इनमें सामान्य से मात्र 3 फीसदी पानी की कमी है। देश के पूर्वी हिस्सों में मॉनसून की स्थिति खराब है, बिहार और झारखंड के सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है। वहीं पश्चिम बंगाल के 18 में से 11 जिलों को इस श्रेणी में रखा गया है। बंगाल में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक के परंपरागत धान के रकबे में अभी तक धान की बुआई नहीं की जा सकी है। इसका असर धान उत्पादन पर दिखाई दे सकता है, इस बार धान के उत्पादन में 25 लाख टन की कमी आने का अनुमान है। राज्य में धान की अच्छी पैदा देने वाले जिले, वद्र्धमान, वीरभूम, नादिया और हुगली सूखाग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम-मेघालय में भी बारिश की स्थिति चिंताजनक है। तीनों राज्यों में इस बार सामान्य से क्रमश: 37 फीसदी और 27 फीसदी कम बारिश हुई। इन राज्यों में अभी तक सूखे की औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। इन स्थानों पर छिट-पुट वर्षा होती रही है, इसलिए फसल की बुआई प्रभावित नहीं हुई है। एक सप्ताह पहले तक पूरे मध्यप्रदेश को कम वर्षा वाली श्रेणी में रखा गया था। सूखा प्रभावित राज्यों की सरकारें आपात योजनाओं पर अमल करने की तैयारी कर रही है। पश्चिम बंगाल सरकार कम अवधि और कम पानी में पैदावार देनेवाले बीज किसानों को वितरित करने की योजना बना रही है।जहां अभी तक धान की बुआई नहीं की गई है ऐसे इलाकों में मक्का, मूंग (हरी दाल), मसूर और सर्यमुखी के बीज किसानों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। अन्य सरकारें भी सूखे से निपटने के लिए यही रणनीति अपना रही हैं।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) का अनुमान है कि अगले महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम असम और मेघालय में बारिश हो सकती है। मौसम विभाग का ये अनुमान इस इलाके के किसानों के लिए एकमात्र उम्मीद है इससे किसान मोटा अनाज, दालें और पशुओं के लिए चारा उगा सकेंगे। जिसके चलते उन्हें हुए नुकसान की कुछ हद तकभरपाई हो सकेगी।कृषि भवन से प्राप्त जानकारी के अनुसार 19 अगस्त तक देश में 9.23 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर बुआई की जा चुकी है। यह पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी अधिक है। खरीफ की प्रमुख फसल धान की पेराई के रकबे में भी इस बार बढ़ोतरी हुई है और इसकी बुआई का लगभग 20 लाख हेक्टेयर रकबा अतिरिक्त बढ़ा है। अच्छी बारिश की संभावना को देखते हुए पिछले साल के 7.6 करोड़ टन के मुकाबले इस बार धान के उत्पादन में 40 से 50 लाख टन की बढ़ोतरी होने की संभावना है।इस बार मोटे अनाज और दालों की बुआई भी अधिक हुई है इससे बेहतर उत्पादन मिलने का अनुमान है। पिछले साल के मुकाबले इस बार इनकी बुआई में 20 लाख हेक्टेयर की वृद्घि हुई है। बाजरा और मक्का के बुआई रकबे में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इनके मुकाबले ज्वार का रकबा घटा है। दालों के बुआई रकबा भी 20 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तुअर और सबसे अधिक खपत वाली दालें, जैसे मूंग और उड़द की बुआई में भी इस बार इजाफा हुआ है। कपास की बुआई अब पूरी हो चुकी है। कपास के बुआई रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है और कपास निर्यात और घरेलू मोर्चे पर बढ़ी मांग के कारण इसके अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है। एक और नकदी फसल, गन्ना की बुआई के रकबे में 60 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है। शक्कर की कीमतें सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने की संभावना के चलते किसानों ने बेहतर मुनाफे की उम्मीद में गन्ना लगाया है।केंद्रीय जल आयोग के अनुसार देश के 81 प्रमुख जलाशयों में 19 अगस्त तक 75 अरब घन मीटर पानी का संग्रह हो चुका है। यह पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी अधिक है लेकिन सामान्य स्तर से अभी भी 3 फीसदी कम है। करीब आधे जलाशयों में सामान्य से 80 फीसदी अधिक जल संग्रहित हो चुका है। भाखड़ा बांध जैसे बांधों से अतिरिक्त पानी को छोडऩे के लिए गेट खोले जा चुके हैं। (BS Hindi)
मानसूनी बारिश में सुधार से देश में अच्छे खरीफ उत्पादन की उम्मीद की जा रही है। हालांकि पूर्वी इलाकों में बारिश की कमी अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। देश के 90 फीसदी खरीफ रकबे में 19 अगस्त तक बुआई की जा चुकी है और इस समय फसल की स्थिति अच्छी बनी हुई है। अधिकांश जलाशयों में पानी के भंडार में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और अब इनमें सामान्य से मात्र 3 फीसदी पानी की कमी है। देश के पूर्वी हिस्सों में मॉनसून की स्थिति खराब है, बिहार और झारखंड के सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है। वहीं पश्चिम बंगाल के 18 में से 11 जिलों को इस श्रेणी में रखा गया है। बंगाल में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक के परंपरागत धान के रकबे में अभी तक धान की बुआई नहीं की जा सकी है। इसका असर धान उत्पादन पर दिखाई दे सकता है, इस बार धान के उत्पादन में 25 लाख टन की कमी आने का अनुमान है। राज्य में धान की अच्छी पैदा देने वाले जिले, वद्र्धमान, वीरभूम, नादिया और हुगली सूखाग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और असम-मेघालय में भी बारिश की स्थिति चिंताजनक है। तीनों राज्यों में इस बार सामान्य से क्रमश: 37 फीसदी और 27 फीसदी कम बारिश हुई। इन राज्यों में अभी तक सूखे की औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। इन स्थानों पर छिट-पुट वर्षा होती रही है, इसलिए फसल की बुआई प्रभावित नहीं हुई है। एक सप्ताह पहले तक पूरे मध्यप्रदेश को कम वर्षा वाली श्रेणी में रखा गया था। सूखा प्रभावित राज्यों की सरकारें आपात योजनाओं पर अमल करने की तैयारी कर रही है। पश्चिम बंगाल सरकार कम अवधि और कम पानी में पैदावार देनेवाले बीज किसानों को वितरित करने की योजना बना रही है।जहां अभी तक धान की बुआई नहीं की गई है ऐसे इलाकों में मक्का, मूंग (हरी दाल), मसूर और सर्यमुखी के बीज किसानों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। अन्य सरकारें भी सूखे से निपटने के लिए यही रणनीति अपना रही हैं।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) का अनुमान है कि अगले महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम असम और मेघालय में बारिश हो सकती है। मौसम विभाग का ये अनुमान इस इलाके के किसानों के लिए एकमात्र उम्मीद है इससे किसान मोटा अनाज, दालें और पशुओं के लिए चारा उगा सकेंगे। जिसके चलते उन्हें हुए नुकसान की कुछ हद तकभरपाई हो सकेगी।कृषि भवन से प्राप्त जानकारी के अनुसार 19 अगस्त तक देश में 9.23 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर बुआई की जा चुकी है। यह पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी अधिक है। खरीफ की प्रमुख फसल धान की पेराई के रकबे में भी इस बार बढ़ोतरी हुई है और इसकी बुआई का लगभग 20 लाख हेक्टेयर रकबा अतिरिक्त बढ़ा है। अच्छी बारिश की संभावना को देखते हुए पिछले साल के 7.6 करोड़ टन के मुकाबले इस बार धान के उत्पादन में 40 से 50 लाख टन की बढ़ोतरी होने की संभावना है।इस बार मोटे अनाज और दालों की बुआई भी अधिक हुई है इससे बेहतर उत्पादन मिलने का अनुमान है। पिछले साल के मुकाबले इस बार इनकी बुआई में 20 लाख हेक्टेयर की वृद्घि हुई है। बाजरा और मक्का के बुआई रकबे में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इनके मुकाबले ज्वार का रकबा घटा है। दालों के बुआई रकबा भी 20 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तुअर और सबसे अधिक खपत वाली दालें, जैसे मूंग और उड़द की बुआई में भी इस बार इजाफा हुआ है। कपास की बुआई अब पूरी हो चुकी है। कपास के बुआई रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है और कपास निर्यात और घरेलू मोर्चे पर बढ़ी मांग के कारण इसके अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है। एक और नकदी फसल, गन्ना की बुआई के रकबे में 60 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है। शक्कर की कीमतें सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने की संभावना के चलते किसानों ने बेहतर मुनाफे की उम्मीद में गन्ना लगाया है।केंद्रीय जल आयोग के अनुसार देश के 81 प्रमुख जलाशयों में 19 अगस्त तक 75 अरब घन मीटर पानी का संग्रह हो चुका है। यह पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी अधिक है लेकिन सामान्य स्तर से अभी भी 3 फीसदी कम है। करीब आधे जलाशयों में सामान्य से 80 फीसदी अधिक जल संग्रहित हो चुका है। भाखड़ा बांध जैसे बांधों से अतिरिक्त पानी को छोडऩे के लिए गेट खोले जा चुके हैं। (BS Hindi)
आवक बढऩे से टमाटर नरम
नई दिल्ली August 22, 2010
मंहंगाई से परेशान उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है कि टमाटर की कीमतों में गिरावट आने लगी है। कारोबारियों के अनुसार बारिश होने के कारण टमाटर का उत्पादन बढऩे लगा है। इस वजह से बीते तीन दिनों के दौरान दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में टमाटर की थोक कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। उनके मुताबिक आगे इसकी कीमतों में और गिरावट के आसार है।टमाटर ट्रेडर्स एसोसिएशन, आजादपुर के महासचिव सुभाष चुघ ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते दिनों में उत्पादक इलाकों में बारिश होने के कारण टमाटर की फसल को फायदा हुआ है, जिससे मंडियों में टमाटर की आवक बढऩे लगी है।उनका कहना है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान टमाटर की आवक 25 गाड़ी से बढ़कर 40 गाड़ी हो गई है। इससे टमाटर के थोक भाव 22-28 रुपये से घटकर 15-20 रुपये प्रति किलोग्राम रह गए हैं। मंडी में इन दिनों में बेंगलुरु, शिमला आदि इलाकों से टमाटर की आवक हो रही है। आगे टमाटर की कीमतों के बारे में टमाटर कारोबारी ओमप्रकाश का कहना है कि आने वाले दिनों में टमाटर की आवक और बढऩे की संभावना है। उनका कहना है कि आगे पड़ोसी राज्यों खासतौर पर मध्य प्रदेश और राजस्थान से भी टमाटर की आवक होने लगेगी। ऐसे में टमाटर की कीमतों में और गिरावट आ सकती है।बीते दिनों में कम आवक के बीच बाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान को टमाटर का निर्यात होने के कारण कीमतों में तेजी आई थी। इस बारे में चुघ ने बताया कि पाकिस्तान को टमाटर को निर्यात तो अभी भी हो रहा है, लेकिन मंडी में आवक बढऩे के कारण कीमतों में नरमी आई है। इस बार गर्मी अधिक पडऩे के कारण बीते महीनों में टमाटर की फसल को भारी नुकसान हुआ था। इसके चलते पिछले माह टमाटर के थोक भाव बेतहाशा बढ़कर 50-55 रुपये प्रति किलो तक हो गए थे। (BS Hindi)
मंहंगाई से परेशान उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है कि टमाटर की कीमतों में गिरावट आने लगी है। कारोबारियों के अनुसार बारिश होने के कारण टमाटर का उत्पादन बढऩे लगा है। इस वजह से बीते तीन दिनों के दौरान दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में टमाटर की थोक कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। उनके मुताबिक आगे इसकी कीमतों में और गिरावट के आसार है।टमाटर ट्रेडर्स एसोसिएशन, आजादपुर के महासचिव सुभाष चुघ ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते दिनों में उत्पादक इलाकों में बारिश होने के कारण टमाटर की फसल को फायदा हुआ है, जिससे मंडियों में टमाटर की आवक बढऩे लगी है।उनका कहना है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान टमाटर की आवक 25 गाड़ी से बढ़कर 40 गाड़ी हो गई है। इससे टमाटर के थोक भाव 22-28 रुपये से घटकर 15-20 रुपये प्रति किलोग्राम रह गए हैं। मंडी में इन दिनों में बेंगलुरु, शिमला आदि इलाकों से टमाटर की आवक हो रही है। आगे टमाटर की कीमतों के बारे में टमाटर कारोबारी ओमप्रकाश का कहना है कि आने वाले दिनों में टमाटर की आवक और बढऩे की संभावना है। उनका कहना है कि आगे पड़ोसी राज्यों खासतौर पर मध्य प्रदेश और राजस्थान से भी टमाटर की आवक होने लगेगी। ऐसे में टमाटर की कीमतों में और गिरावट आ सकती है।बीते दिनों में कम आवक के बीच बाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान को टमाटर का निर्यात होने के कारण कीमतों में तेजी आई थी। इस बारे में चुघ ने बताया कि पाकिस्तान को टमाटर को निर्यात तो अभी भी हो रहा है, लेकिन मंडी में आवक बढऩे के कारण कीमतों में नरमी आई है। इस बार गर्मी अधिक पडऩे के कारण बीते महीनों में टमाटर की फसल को भारी नुकसान हुआ था। इसके चलते पिछले माह टमाटर के थोक भाव बेतहाशा बढ़कर 50-55 रुपये प्रति किलो तक हो गए थे। (BS Hindi)
नकदी के लिए सोने में बिकवाली, 1240 डॉलर पर प्रतिरोध
मुंबई August 22, 2010
जैसा कि पहले से अपेक्षा की जा रही थी, दिसंबर में डिलिवरी वाला सोना पिछले सप्ताह 1,230 डॉलर के स्तर को पार कर एक बार तो कारोबार के दौरान प्रति औंस 1,29.50 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया लेकिन फिर शुक्रवार को न्यूयार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स प्रभाग में 1,29.80 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर बंद हुआ। शुक्रवार को सोने की कीमतों में प्रति ओंस 6.60 डॉलर की कमी आई। पिछले तीन सप्ताहों के दौरान एक दिन में आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक माहौल के कमजोर होने के बढ़ते अंदेशों के बीच अपने पास अधिक से अधिक नकदी रखने के लिए कारोबारियों ने इक्विटी और जिंस के साथ ही कीमती रत्नों की जमकर बिकवाली की।20 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह के लिए दिसंबर डिलिवरी वाले गोल्ड फ्यूचर के कारोबारी आंकड़े 1,230 डॉलर के ऊपर मुनाफावसूली का संकेत दे रहे हैं। हालांकि 1,220-1,230 डॉलर के दायरे में खरीदारी ने गिरावट के खतरे को थोड़ा कम कर दिया। कारोबारियों ने गुरुवार तक सितंबर डिलिवरी के 1,230 डॉलर -स्ट्राइक कॉल ऑप्शन खरीदे और जब फ्यूचर पिछले सात सप्ताहों के उच्चतम स्तर 1,239.50 डॉलर पर पहुंचा तो मुनाफावसूली की। गुरुवार तक 1,240-स्ट्राइक पुट में शॉर्ट सेलिंग स्पष्टï तौर पर देखने को मिली और जब सोना शुक्रवार को कारोबार के दौरान 1,233.60 डॉलर के सबसे निचले स्तर पर आया तो शॉर्ट कवरिंग देखी गई।टाइम-प्राइस ऑपच्र्युनिटी (टीपीओ) 1,242.75 के ऊपर दिसंबर फ्यचूर के लिए मजबूत प्रतिरोध होने का संकेत दे रहे हैं। कारोबार की मात्रा आधारित समर्थन के 1,233.60 डॉलर के स्तर पर रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। (BS Hindi)
जैसा कि पहले से अपेक्षा की जा रही थी, दिसंबर में डिलिवरी वाला सोना पिछले सप्ताह 1,230 डॉलर के स्तर को पार कर एक बार तो कारोबार के दौरान प्रति औंस 1,29.50 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया लेकिन फिर शुक्रवार को न्यूयार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स प्रभाग में 1,29.80 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर बंद हुआ। शुक्रवार को सोने की कीमतों में प्रति ओंस 6.60 डॉलर की कमी आई। पिछले तीन सप्ताहों के दौरान एक दिन में आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक माहौल के कमजोर होने के बढ़ते अंदेशों के बीच अपने पास अधिक से अधिक नकदी रखने के लिए कारोबारियों ने इक्विटी और जिंस के साथ ही कीमती रत्नों की जमकर बिकवाली की।20 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह के लिए दिसंबर डिलिवरी वाले गोल्ड फ्यूचर के कारोबारी आंकड़े 1,230 डॉलर के ऊपर मुनाफावसूली का संकेत दे रहे हैं। हालांकि 1,220-1,230 डॉलर के दायरे में खरीदारी ने गिरावट के खतरे को थोड़ा कम कर दिया। कारोबारियों ने गुरुवार तक सितंबर डिलिवरी के 1,230 डॉलर -स्ट्राइक कॉल ऑप्शन खरीदे और जब फ्यूचर पिछले सात सप्ताहों के उच्चतम स्तर 1,239.50 डॉलर पर पहुंचा तो मुनाफावसूली की। गुरुवार तक 1,240-स्ट्राइक पुट में शॉर्ट सेलिंग स्पष्टï तौर पर देखने को मिली और जब सोना शुक्रवार को कारोबार के दौरान 1,233.60 डॉलर के सबसे निचले स्तर पर आया तो शॉर्ट कवरिंग देखी गई।टाइम-प्राइस ऑपच्र्युनिटी (टीपीओ) 1,242.75 के ऊपर दिसंबर फ्यचूर के लिए मजबूत प्रतिरोध होने का संकेत दे रहे हैं। कारोबार की मात्रा आधारित समर्थन के 1,233.60 डॉलर के स्तर पर रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। (BS Hindi)
21 अगस्त 2010
धान के बुवाई रकबे में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी
47.68 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है अब तक गन्ने की बुवाई105.67 लाख हेक्टेयर के स्तर पर कपास की बुवाई 10 लाख हेक्टेयर ज्यादाचालू खरीफ में धान की रोपाई में 20.69 लाख और दलहन की बुवाई में 17.72 लाख हैक्टेयर तथा मोटे अनाजों की बुवाई में 20.04 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 923.02 लाख हैक्टेयर में खरीफ फसलों की बुवाई हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 839.75 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। धान की रोपाई पिछले साल की समान अवधि के 276.84 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 297.53 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। दलहन की बुवाई भी बढ़कर चालू खरीफ में 105.84 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 88.12 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। दलहनों में अरहर, उड़द और मूंग का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ा है। चालू खरीफ में मोटे अनाजों की बुवाई भी पिछले साल के 177.30 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 197.34 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। कपास की बुवाई भी पिछले साल की समान अवधि के 95.59 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 105.67 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। गन्ने की बुवाई भी चालू बुवाई सीजन में बढ़कर 47.68 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि में 41.79 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी। जूट की बुवाई भी चालू सीजन में बढ़कर 7.56 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 6.92 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है।-खराब मौसम से एशियाई चावल मजबूतबैंकाक पिछले हफ्तों में एशियाई चावल के दाम में मजबूती दिखाई दे रही है। इस वृद्धि का कारण मांग में बढ़ोतरी बताया जा रहा है। उत्पादक क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम के कारण फसलों को नुकसान होने की खबरें आ रही हैं। विश्व के चौथे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश बांग्लादेश ने इस साल चावल के दोगुने आयात की योजना बनाई है। बांग्लादेश ने यह कदम काला सागर क्षेत्र में सूखे के कारण गेहूं आयात में कमी आने के बाद उठाया है। 2008 के मध्य में चावल के दामों में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई थी। इस बढ़ोतरी का कारण भारत द्वारा गैर बासमती के निर्यात पर रोक लगाना था। (रॉयटर्स)भारत के इस फैसले के बाद वैश्विक बाजार में चावल की मांग और सप्लाई में भारी अंतर आ गया था। प्रीमियम किस्म में आने वाला बासमतीं चावल केवल उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में ही उगाया जाता है। भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में प्रति वर्ष लगभग 40 लाख टन बासमती चावल की पैदावार होती है। भारत की तुलना मे पाकिस्तान का बासमती उत्पादन लगभग आधा है। बासमती का निर्यात प्रमुख रूप से यूरोप और मध्य-पूर्व के देशों को किया जाता है। वर्ष 2008 से पहले भी बासमती अन्य किस्मों के मुकाबले ज्यादा दाम पर बिकता था। वर्ष 2008 के पहले जहां स्टैंडर्ड किस्म के सफेद चावल का भाव 320 डॉलर प्रति टन था, वहीं बासमती चावल का भाव उससे कहीं ज्यादा 9000 डॉलर प्रति टन था। (Business Bhaskar)
पैदावार घटने से मेंथा तेल के दाम बढ़े
पैदावार में कमी का असर मेंथा तेल की कीमतों पर देखा जा रहा है। पिछले पंद्रह दिनों में हाजिर बाजार में मेंथा तेल के दाम करीब 9 फीसदी और वायदा बाजार में 9.2 फीसदी बढ़ चुके हैं। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का दाम बढ़कर 860 रुपये प्रति किलो हो गया जबकि वायदा बाजार में इसका भाव 790 रुपये प्रति किलो हो गया। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक घट रही है जबकि निर्यातकों की मांग बढ़ गई है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। उत्तर प्रदेश मेंथा उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में मेंथा तेल का उत्पादन घटकर 27-28 हजार टन ही होने का अनुमान है जोपिछले के 32-33 हजार टन से कम है। नई फसल के उत्पादन में कमी की आशंका के कारण ही अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के आयातकों की मांग बढ़ गई है। साथ ही घरेलू फार्मा कंपनियों की मांग भी पहले की तुलना में बढ़ गई है। वैसे भी कीमतों में तेजी को देखते हुए स्टॉकिस्टों और किसानों की बिकवाली भी पहले की तुलना में कम हो गई है। इसीलिए तेजी को बल मिल रहा है। एसेंशियल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष योगेश दुबे ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड का दाम 18 से 18.50 डॉलर से बढ़कर 20 से 20.50 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) हो गए हैं। लेकिन जिस तरह से घरेलू बाजार में दाम बढ़े रहे हैं उसे देखते हुए विदेश में इसकी मौजूदा कीमतों में और भी तेजी आने की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले तीन महीनों (अप्रैल से जून) के दौरान मेंथा उत्पादों के निर्यात में 16 फीसदी की गिरावट आई है।ग्लोरिस केमिकल के डायरेक्टर अनुराग रस्तोगी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक 700-800 ड्रम से घटकर 450-500 ड्रम (प्रति ड्रम 180 किलो) की रह गई है। जबकि उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का दाम पिछले पंद्रह दिनों में करीब 70 रुपये बढ़ चुका हैं। शुक्रवार को चंदौसी में भाव बढ़कर 860 रुपये प्रति किलो और क्रिस्टल बोल्ड का भाव 950 रुपये प्रति किलो हो गया। निवेशकों की खरीद से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में पिछले पंद्रह दिनों में 9.2 फीसदी की तेजी आई है। पांच अगस्त को सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेल का भाव 723 रुपये प्रति किलो था, जो शुक्रवार को बढ़कर 790 रुपये प्रति किलो हो गया। हालांकि मुनाफावसूली आने से वायदा में सीमित गिरावट आई लेकिन बाद में भाव सुधर गए। (Business Bhaskar.... aar as raana)
किसानों को स्मार्ट कार्ड से मिलेगी उर्वरक सब्सिडी!
नई दिल्ली August 20, 2010
सरकार देश भर के लाखों किसानों को स्मार्ट कार्ट देने की योजना बना रही है। इसके माध्यम से पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) नीति के तहत दी जाने वाली छूट किसानों को सीधे हस्तांतरित की जा सकेगी।किसानों को सीधे सब्सिडी दिए जानेकी इस योजना के तहत रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले उर्वरक विभाग ने एक पायलट परियोजना बनाई है। इसके तहत उन किसानों की पहचान की जाएगी, जो ऐसे उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं। यह परियोजना देश के 6 से 7 राज्यों में चलाई जाएगी। इस समय सरकार उर्वरकों की बिक्री पर नजर उत्पादकों के माध्यम से रखती है, जो खुदरा बिक्रेताओं को उर्वरक उपलब्ध कराते हैं। बहरहाल उर्वरक विभाग अब अंतिम उपभोक्ता की पहचान करने की कोशिश करेगा, जिससे सरकार किसानों के आंकड़े तैयार कर सके और उन्हें सीधे सब्सिडी दी जा सके। उर्वरक विभाग के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'इस पायलट परियोजना से हम किसानों की पहचान कर सकेंगे। उन्हें सूचीबद्ध करेंगे, जिससे उन्हें सीधे सब्सिडी दी जा सके। इस परियोजना की सफलता के आधार पर हम उन्हें स्मार्ट कार्ड जारी करेंगे, जिसमें उन किसानों का ब्योरा उपलब्ध होगा। इसे उन किसानों को भी जारी किया जाएगा, जिनके पास खुद की जमीन नहीं है। इस तरह से कोई भी छूटने नहीं पाएगा।'यह स्मार्ट कार्ड 100 रुपये में मिलेगा, जिसमें किसान का नाम, गांव और जिले के नाम के साथ अन्य सूचनाएं दर्ज होंगी। इसे कियॉस्क और गांवों में स्थापित केंद्रों के माध्यम से वितरित किया जाएगा, जो सेवा प्रदाता स्थापित करेंगे। उर्वरक विभाग की यह भी योजना है कि सरकार के विशेष पहचान पत्र से भी इसे जोड़ा जाएगा, जब ये पहचान पत्र उपलब्ध हो जाएंगे। एक अधिकारी ने कहा, 'हम एक ऐसी रणनीति तैयार कर रहे हैं, जिसमें असल उपभोक्ता को कितनी बिक्री की गई है, उसकी जानकारी होगी। हम चाहते हैं कि हर लेन-देन ऑनलाइन हो, जिससे इसमें कहीं से किसी गड़बड़ी की गुंजाइश न हो।'उर्वरक विभाग पहले ही राज्य सरकारों और कृषि विभाग से इस मसले पर संपर्क कर चुका है। इस काम के लिए राज्य का भी एक अधिकारी नियुक्त होगा, जो किसानों की सूची बनाने और सब्सिडी के भुगतान की निगरानी करेगा। पोषण आधारित सब्सिडी की नीति 1 अप्रैल 2010 को लागू हुई, जिससे सरकार पर पडऩे वाले उर्वरक सब्सिडी के बोझ को कम किया जा सके। 2009-10 में उर्वरक सब्सिडी के रूप में सरकार को 8010 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा तो कुल राजस्व का 3.22 प्रतिशत था। (BS Hindi)
सरकार देश भर के लाखों किसानों को स्मार्ट कार्ट देने की योजना बना रही है। इसके माध्यम से पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) नीति के तहत दी जाने वाली छूट किसानों को सीधे हस्तांतरित की जा सकेगी।किसानों को सीधे सब्सिडी दिए जानेकी इस योजना के तहत रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले उर्वरक विभाग ने एक पायलट परियोजना बनाई है। इसके तहत उन किसानों की पहचान की जाएगी, जो ऐसे उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं। यह परियोजना देश के 6 से 7 राज्यों में चलाई जाएगी। इस समय सरकार उर्वरकों की बिक्री पर नजर उत्पादकों के माध्यम से रखती है, जो खुदरा बिक्रेताओं को उर्वरक उपलब्ध कराते हैं। बहरहाल उर्वरक विभाग अब अंतिम उपभोक्ता की पहचान करने की कोशिश करेगा, जिससे सरकार किसानों के आंकड़े तैयार कर सके और उन्हें सीधे सब्सिडी दी जा सके। उर्वरक विभाग के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'इस पायलट परियोजना से हम किसानों की पहचान कर सकेंगे। उन्हें सूचीबद्ध करेंगे, जिससे उन्हें सीधे सब्सिडी दी जा सके। इस परियोजना की सफलता के आधार पर हम उन्हें स्मार्ट कार्ड जारी करेंगे, जिसमें उन किसानों का ब्योरा उपलब्ध होगा। इसे उन किसानों को भी जारी किया जाएगा, जिनके पास खुद की जमीन नहीं है। इस तरह से कोई भी छूटने नहीं पाएगा।'यह स्मार्ट कार्ड 100 रुपये में मिलेगा, जिसमें किसान का नाम, गांव और जिले के नाम के साथ अन्य सूचनाएं दर्ज होंगी। इसे कियॉस्क और गांवों में स्थापित केंद्रों के माध्यम से वितरित किया जाएगा, जो सेवा प्रदाता स्थापित करेंगे। उर्वरक विभाग की यह भी योजना है कि सरकार के विशेष पहचान पत्र से भी इसे जोड़ा जाएगा, जब ये पहचान पत्र उपलब्ध हो जाएंगे। एक अधिकारी ने कहा, 'हम एक ऐसी रणनीति तैयार कर रहे हैं, जिसमें असल उपभोक्ता को कितनी बिक्री की गई है, उसकी जानकारी होगी। हम चाहते हैं कि हर लेन-देन ऑनलाइन हो, जिससे इसमें कहीं से किसी गड़बड़ी की गुंजाइश न हो।'उर्वरक विभाग पहले ही राज्य सरकारों और कृषि विभाग से इस मसले पर संपर्क कर चुका है। इस काम के लिए राज्य का भी एक अधिकारी नियुक्त होगा, जो किसानों की सूची बनाने और सब्सिडी के भुगतान की निगरानी करेगा। पोषण आधारित सब्सिडी की नीति 1 अप्रैल 2010 को लागू हुई, जिससे सरकार पर पडऩे वाले उर्वरक सब्सिडी के बोझ को कम किया जा सके। 2009-10 में उर्वरक सब्सिडी के रूप में सरकार को 8010 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा तो कुल राजस्व का 3.22 प्रतिशत था। (BS Hindi)
प्राकृतिक रबर के भाव में नरमी का रुख
कोच्चि August 20, 2010
प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क कम किए जाने की उम्मीदों से रबर की कीमतें भारत के मुख्य बाजारों में 3.3 फीसदी गिरकर दो महीनों के निचले स्तर पर आ गई हैं। फिलहाल भारत में प्राकृतिक रबर के आयात पर 20 फीसदी का आयात शुल्क लगता है। रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक रबर की प्रमुख किस्म आरएसएस-4 की हाजिर कीमतें शुक्रवार को केरल के कोट्ïटायम में 600 रुपये गिरकर 17,400 रुपये प्रति 100 किलो पर आ गईं। इस महीने की शुरुआत में इसकी कीमतें 18,600 रुपये की ऊंचाई तक चढ़ी थीं।प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क कम किए जाने के वाणिज्य मंत्रालय के फैसले से स्थानीय बाजारों में कीमतों में अचानक गिरावट देखने को मिली है। बेंचमार्क ग्रेड आरएसएस-4 की कीमत बुधवार को 184 रुपये प्रति किलो से 180 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई।घरेलू बाजारों में रबर की किल्लत और बढ़ती कीमतों को देखते हुए मंत्रालय ने प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क मौजूदा 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी करने का प्रस्ताव सरकार के पास रखा है। रबर पर आधारित उद्योगों खास तौर से टायर निर्माताओं के भारी दबाव में मंत्रालय ने यह प्रस्ताव पेश किया है।शुक्रवार को कीमतों में गिरावट के बाद भी ये अंतरराष्ट्रीय बाजारों से 25 रुपये प्रति किलो ज्यादा हैं। बैंकॉक बाजार में शुक्रवार को कीमतें 155 रुपये किलो रही थीं।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित कमी वित्त मंत्रालय और मंत्रिमंडल की सहमति के बाद ही लागू होगी।बावजूद इसके रबर उत्पादक प्रदेशों का माहौल अशात हो गया है और उत्पादक वित्त मंत्रालय के अंतिम फैसले पर नजर गड़ाए हैं। केरल के सभी सांसद इस फैसले के विरुद्घ प्रदर्शन कर रहे हैं और फैसले को टालने की कोशिशें की जा रही हैं।रबर आधारित उद्योग लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं क्योंकि पिछले 5-6 महीनों में कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2,00,000 टन से ज्यादा का भंडार है, लेकिन स्थानीय बाजार गंभीर संकट से जूझ रहे हैं।जून के बाद से स्थानीय कीमतें वैश्विक कीमतों से ज्यादा रही हैं और आयात किल्लत का तात्कालिक समाधान हो सकता है, लेकिन भारी आयात शुल्क की वजह से यह संभव नहीं हो पा रहा है। रबर बोर्ड के आंकड़ों को नकारते हुए ऑटोमोटिव टायर निर्माता संघ (एटीएमए) ने कहा कि भंडार 1,00,000 टन से ज्यादा का नहीं है।दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी देश में रबर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे जिससे भी आयात का रास्ता साफ करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ा है। रबर आधारित कंपनियों के विभिन्न संगठनों जिनमें एटीएमए भी शामिल है, ने मांग की है कि प्राकृतिक रबर पर शुल्क 7.5 फीसदी किया जाए जबकि रबर के तैयार उत्पादों जैसे आयर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क लगता है।इस बीच केरल के 11 लाख रबर उत्पादक इस खबर से चिंता में हैं क्योंकि आयात शुल्क घटने से कीमतें नीचे आएंगी। देश के कुल रबर उत्पादन का 92 फीसदी केरल से हासिल होता है।लिहाजा वहां के राजनेताओं का केंद्र सरकार पर शुल्क न घटाने का दबाव भी बन रहा है, लेकिन इस बार निश्चित रूप से शुल्क में गिरावट देखने को मिल सकती है। एर्नाकुलम के किसान जॉर्ज जॉन का कहना है कि वाणिज्य मंत्रालय का यह फैसला सही नहीं है क्योंकि किसानों को पिछले 3-4 महीने से ही अच्छी कीमत मिल रही है। 2009 में औसत कीमत महज 97 रुपये किलो थी। (BS Hindi)
प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क कम किए जाने की उम्मीदों से रबर की कीमतें भारत के मुख्य बाजारों में 3.3 फीसदी गिरकर दो महीनों के निचले स्तर पर आ गई हैं। फिलहाल भारत में प्राकृतिक रबर के आयात पर 20 फीसदी का आयात शुल्क लगता है। रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक रबर की प्रमुख किस्म आरएसएस-4 की हाजिर कीमतें शुक्रवार को केरल के कोट्ïटायम में 600 रुपये गिरकर 17,400 रुपये प्रति 100 किलो पर आ गईं। इस महीने की शुरुआत में इसकी कीमतें 18,600 रुपये की ऊंचाई तक चढ़ी थीं।प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क कम किए जाने के वाणिज्य मंत्रालय के फैसले से स्थानीय बाजारों में कीमतों में अचानक गिरावट देखने को मिली है। बेंचमार्क ग्रेड आरएसएस-4 की कीमत बुधवार को 184 रुपये प्रति किलो से 180 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई।घरेलू बाजारों में रबर की किल्लत और बढ़ती कीमतों को देखते हुए मंत्रालय ने प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क मौजूदा 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी करने का प्रस्ताव सरकार के पास रखा है। रबर पर आधारित उद्योगों खास तौर से टायर निर्माताओं के भारी दबाव में मंत्रालय ने यह प्रस्ताव पेश किया है।शुक्रवार को कीमतों में गिरावट के बाद भी ये अंतरराष्ट्रीय बाजारों से 25 रुपये प्रति किलो ज्यादा हैं। बैंकॉक बाजार में शुक्रवार को कीमतें 155 रुपये किलो रही थीं।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित कमी वित्त मंत्रालय और मंत्रिमंडल की सहमति के बाद ही लागू होगी।बावजूद इसके रबर उत्पादक प्रदेशों का माहौल अशात हो गया है और उत्पादक वित्त मंत्रालय के अंतिम फैसले पर नजर गड़ाए हैं। केरल के सभी सांसद इस फैसले के विरुद्घ प्रदर्शन कर रहे हैं और फैसले को टालने की कोशिशें की जा रही हैं।रबर आधारित उद्योग लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं क्योंकि पिछले 5-6 महीनों में कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2,00,000 टन से ज्यादा का भंडार है, लेकिन स्थानीय बाजार गंभीर संकट से जूझ रहे हैं।जून के बाद से स्थानीय कीमतें वैश्विक कीमतों से ज्यादा रही हैं और आयात किल्लत का तात्कालिक समाधान हो सकता है, लेकिन भारी आयात शुल्क की वजह से यह संभव नहीं हो पा रहा है। रबर बोर्ड के आंकड़ों को नकारते हुए ऑटोमोटिव टायर निर्माता संघ (एटीएमए) ने कहा कि भंडार 1,00,000 टन से ज्यादा का नहीं है।दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी देश में रबर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे जिससे भी आयात का रास्ता साफ करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ा है। रबर आधारित कंपनियों के विभिन्न संगठनों जिनमें एटीएमए भी शामिल है, ने मांग की है कि प्राकृतिक रबर पर शुल्क 7.5 फीसदी किया जाए जबकि रबर के तैयार उत्पादों जैसे आयर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क लगता है।इस बीच केरल के 11 लाख रबर उत्पादक इस खबर से चिंता में हैं क्योंकि आयात शुल्क घटने से कीमतें नीचे आएंगी। देश के कुल रबर उत्पादन का 92 फीसदी केरल से हासिल होता है।लिहाजा वहां के राजनेताओं का केंद्र सरकार पर शुल्क न घटाने का दबाव भी बन रहा है, लेकिन इस बार निश्चित रूप से शुल्क में गिरावट देखने को मिल सकती है। एर्नाकुलम के किसान जॉर्ज जॉन का कहना है कि वाणिज्य मंत्रालय का यह फैसला सही नहीं है क्योंकि किसानों को पिछले 3-4 महीने से ही अच्छी कीमत मिल रही है। 2009 में औसत कीमत महज 97 रुपये किलो थी। (BS Hindi)
आएंगे अधिक उत्पादकता वाले मक्के के बीज
मुंबई August 20, 2010
हाइब्रिड बीज और तकनीक प्रदाता प्रमुख कंपनी मॉनसेंटो इंडिया (एमआईएल) आने वाले साल में अधिक उत्पादकता वाले मक्के के बीज की दो किस्में पेश करने की तैयारी में है। प्रीमियम किस्म के डेकाल्ब 9108 और डेकाल्ब 9106 किसानों को बसंत ऋतु के बाद और खरीफ की बुआई के सत्र में क्रमश: उत्तर प्रदेश और पंजाब में उपलब्ध हो जाएंगे।इस समय डेकाल्ब की 14 किस्में है। पैदावार के हिसाब से यह बेहतर हाइब्रिड किस्में हैं, जो विभिन्न कृषि परिवेशों के लिए बनाई गई हैं। यह विभिन्न प्रकार की मिट्टियों, पानी की उपलब्धता और नमी आदि के हिसाब से तैयार की गई हैं। डेकाल्ब 9106 किस्म उत्तर प्रदेश की मिट्टी में बसंत ऋतु के तापमान में उच्च उत्पादकता देने के हिसाब से बनाई गई है, वहीं डेकाल्ब 9106 किस्म पंजाब के उच्च तापमान को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।मॉनसेंटो इंडिया के प्रबंध निदेशक अमिताभ जयपुरिया ने कहा कि किसान इन बीजों का प्रयोग कर उत्पादकता में बढ़ोतरी कर सकेंगे। एमआईएल की कोशिश है कि भारत के कृषि क्षेत्र को उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादन वाले बीज मुहैया कराए जाएं। साथ ही कंपनी की कोशिश किसानों को शिक्षित करना भी है, जिससे वे ज्यादा उत्पादन का फायदा उठा सकें।ब्रीडिंग रिसर्च का प्रमुख ध्यान उत्पादकता बढ़ाने, सूखे और गर्मी के प्रति अवरोधी बीज, बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बीज और अत्याधुनिक मॉलिक्युलर तकनीक का प्रयोग कर बीजों को प्रभावी बनाना है। कंपनी मक्के की नर्सरी पर देश के विभिन्न इलाकों में शोध का काम कर रही है। साथ ही सीधे संपर्क के माध्यम से कंपनी कृषि कार्य में जागरूकता और शिक्षण कार्यक्रम भी चला रही है।वर्तमान में भारत में मक्के के परंपरागत बीजों से उत्पादन प्रति एकड़ 500 किलो है। हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन बढ़कर 1 टन प्रति एकड़ हो गया है, जबकि वैश्विक औसत 2 टन प्रति एकड़ का है।बिहार के किसान मक्के की खेती में हाइब्रिड बीज का प्रयोग कर रहे हैं और वे 4 टन प्रति एकड़ मक्के का उत्पादन कर रहे हैं, जितनी उत्पादकता अमेरिका में है।पिछले 4-5 साल में मक्के का उत्पादन 120-130 लाख टन से बढ़कर 180-190 लाख टन हो गया है। ऐसा उच्च उत्पादकता वाले हाइब्रिड बीजों के प्रयोग की वजह से हुआ है। (BS Hindi)
हाइब्रिड बीज और तकनीक प्रदाता प्रमुख कंपनी मॉनसेंटो इंडिया (एमआईएल) आने वाले साल में अधिक उत्पादकता वाले मक्के के बीज की दो किस्में पेश करने की तैयारी में है। प्रीमियम किस्म के डेकाल्ब 9108 और डेकाल्ब 9106 किसानों को बसंत ऋतु के बाद और खरीफ की बुआई के सत्र में क्रमश: उत्तर प्रदेश और पंजाब में उपलब्ध हो जाएंगे।इस समय डेकाल्ब की 14 किस्में है। पैदावार के हिसाब से यह बेहतर हाइब्रिड किस्में हैं, जो विभिन्न कृषि परिवेशों के लिए बनाई गई हैं। यह विभिन्न प्रकार की मिट्टियों, पानी की उपलब्धता और नमी आदि के हिसाब से तैयार की गई हैं। डेकाल्ब 9106 किस्म उत्तर प्रदेश की मिट्टी में बसंत ऋतु के तापमान में उच्च उत्पादकता देने के हिसाब से बनाई गई है, वहीं डेकाल्ब 9106 किस्म पंजाब के उच्च तापमान को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।मॉनसेंटो इंडिया के प्रबंध निदेशक अमिताभ जयपुरिया ने कहा कि किसान इन बीजों का प्रयोग कर उत्पादकता में बढ़ोतरी कर सकेंगे। एमआईएल की कोशिश है कि भारत के कृषि क्षेत्र को उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादन वाले बीज मुहैया कराए जाएं। साथ ही कंपनी की कोशिश किसानों को शिक्षित करना भी है, जिससे वे ज्यादा उत्पादन का फायदा उठा सकें।ब्रीडिंग रिसर्च का प्रमुख ध्यान उत्पादकता बढ़ाने, सूखे और गर्मी के प्रति अवरोधी बीज, बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बीज और अत्याधुनिक मॉलिक्युलर तकनीक का प्रयोग कर बीजों को प्रभावी बनाना है। कंपनी मक्के की नर्सरी पर देश के विभिन्न इलाकों में शोध का काम कर रही है। साथ ही सीधे संपर्क के माध्यम से कंपनी कृषि कार्य में जागरूकता और शिक्षण कार्यक्रम भी चला रही है।वर्तमान में भारत में मक्के के परंपरागत बीजों से उत्पादन प्रति एकड़ 500 किलो है। हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन बढ़कर 1 टन प्रति एकड़ हो गया है, जबकि वैश्विक औसत 2 टन प्रति एकड़ का है।बिहार के किसान मक्के की खेती में हाइब्रिड बीज का प्रयोग कर रहे हैं और वे 4 टन प्रति एकड़ मक्के का उत्पादन कर रहे हैं, जितनी उत्पादकता अमेरिका में है।पिछले 4-5 साल में मक्के का उत्पादन 120-130 लाख टन से बढ़कर 180-190 लाख टन हो गया है। ऐसा उच्च उत्पादकता वाले हाइब्रिड बीजों के प्रयोग की वजह से हुआ है। (BS Hindi)
कर्नाटक में गन्ने के रकबे में होगी बढ़ोतरी
बेंगलुरु August 20, 2010
देश के तीसरे चीनी उत्पादक राज्य कर्नाटक में चीनी वर्ष 2010-11 में गन्ने की बंपर पैदावार की उम्मीद है। चालू खरीफ सत्र में गन्ने की बुआई का रकबा 38 प्रतिशत बढ़कर 3,94,000 हेक्टेयर पर पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले साल 2,85,000 हेक्टेयर था। राज्य ने 2010-11 सत्र के लिए 3,66000 हेक्टेयर रकबे में गन्ने की बुआई का लक्ष्य रखा था।पिछले साल अधिक उत्पादकता और फसल बेहतर रहने के चलते इस साल बुआई के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। गन्ना उत्पादक इलाकों में इस साल अच्छी बारिश हुई है। मिल मालिकों ने गन्ने का बेहतर भुगतान किया है, जिसकी वजह से किसान ज्यादा रकबे में बुआई के लिए उत्साहित हुए।उत्तरी कर्नाटक के गन्ना उत्पादन के प्रमुख इलाकों में जोरदार बारिश की वजह से गन्ने का भार बढऩे से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ी थी। साथ ही राज्य की मिलों ने 10.79 प्रतिशत रिकवरी की है, जबकि इसके पिछले साल में रिकवरी 10.43 प्रतिशत थी।राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक गन्ने की बुआई के रकबे में 9 अगस्त 2010 तक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 125 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।इसके परिणामस्वरूप 2010-11 में चीनी उत्पादन 16-20 प्रतिसत बढ़कर 29 से 30 लाख टन होने की उम्मीद है। साउथ इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक आने वाले चीनी सत्र में कर्नाटक में चीनी उत्पादन 25 लाख टन के आंकड़ों पर पहुंच जाएगा। (BS Hindi)
देश के तीसरे चीनी उत्पादक राज्य कर्नाटक में चीनी वर्ष 2010-11 में गन्ने की बंपर पैदावार की उम्मीद है। चालू खरीफ सत्र में गन्ने की बुआई का रकबा 38 प्रतिशत बढ़कर 3,94,000 हेक्टेयर पर पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले साल 2,85,000 हेक्टेयर था। राज्य ने 2010-11 सत्र के लिए 3,66000 हेक्टेयर रकबे में गन्ने की बुआई का लक्ष्य रखा था।पिछले साल अधिक उत्पादकता और फसल बेहतर रहने के चलते इस साल बुआई के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। गन्ना उत्पादक इलाकों में इस साल अच्छी बारिश हुई है। मिल मालिकों ने गन्ने का बेहतर भुगतान किया है, जिसकी वजह से किसान ज्यादा रकबे में बुआई के लिए उत्साहित हुए।उत्तरी कर्नाटक के गन्ना उत्पादन के प्रमुख इलाकों में जोरदार बारिश की वजह से गन्ने का भार बढऩे से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ी थी। साथ ही राज्य की मिलों ने 10.79 प्रतिशत रिकवरी की है, जबकि इसके पिछले साल में रिकवरी 10.43 प्रतिशत थी।राज्य के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक गन्ने की बुआई के रकबे में 9 अगस्त 2010 तक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 125 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।इसके परिणामस्वरूप 2010-11 में चीनी उत्पादन 16-20 प्रतिसत बढ़कर 29 से 30 लाख टन होने की उम्मीद है। साउथ इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक आने वाले चीनी सत्र में कर्नाटक में चीनी उत्पादन 25 लाख टन के आंकड़ों पर पहुंच जाएगा। (BS Hindi)
कपास के निकलेंगे बल
मुंबई 08 20, 2010
पाकिस्तान में बाढ़ से कपास की फसल खराब होने के कारण पिछले कुछ महीनों से इसके भाव में जो तेजी आई थी, वह कुछ ही वक्त में खत्म हो सकती है। दरअसल दुनिया भर में पिछले साल के मुकाबले इस बार कपास की फसल अच्छी रहने की उम्मीद जताई जा रही है।वैश्विक स्तर पर कपास की बुआई 15 फीसदी और भारत में 10 फीसदी अधिक हुई है। रकबा बढऩे की खबर के साथ ही कपास में तेजी के दिन भी खत्म हो सकते हैं। पिछले 2 महीने में कपास का भाव 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुका है।फिलहाल देसी बाजार में इसका भाव 32,200 रुपये प्रति कैंडी है, जो जून के दूसरे हफ्ते में 28,986 रुपये और 16 जुलाई को 29,280 रुपये प्रति कैंडी था। तेजी की सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से फसल खराब होना माना जा रहा है। इससे वैश्विक स्तर पर उत्पादन कम होने की आशंका खड़ी हो गई है, जिसका फायदा सटोरिये उठा रहे हैं।पाकिस्तान में तकरीबन 1 करोड़ कैंडी कपास का उत्पादन होता है, जो पूरी दुनिया के कपास उत्पादन का तकरीबन 8 फीसदी है। ताजा आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर कपास का रकबा पिछले साल की अपेक्षा 15 फीसदी ज्यादा है।नतीजतन इस साल दुनिया भर में कपास का उत्पादन भी करीब 15 फीसदी बढ़कर लगभग1,150 लाख गांठ (एक गांठ बराबर 175 किलोग्राम) होने की उम्मीद जताई जा रही है। पिछले साल 1,000 लाख कपास गांठ का उत्पादन हुआ था। भारतीय कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार इस बार कपास की बुआई पिछले साल से 10 फीसदी अधिक है। 14 अगस्त तक देश में 105 लाख हेक्टयर पर कपास की बुआई हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 95 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही कपास की बुआई हो पाई थी।कपास का उत्पादन ज्यादा होने की स्थिति में इसकी कीमतें प्रभावित होने की बात की जा रही है। जिंस कारोबार के जानकार अमर सिंह के अनुसार देश में कपास की कुल खपत तकरीबन 260 लाख गांठ की है जबकि इस साल उत्पादन 340 लाख गांठ से भी ज्यादा का हो सकता है। उत्पादन ज्यादा होने से कीमतें कम होगी।हालांकि कीमतों में ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कॉटन एक्सचेंज के पूर्व चेयरमैन किशोरीलाल झुनझुनवालाकहते हैं कि आज भी अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में घरेलू बाजार में कपास की कीमतें कम हैं और दोबारा निर्यात शुरू किए जाने के बाद घरेलू बाजार भी वैश्विक बाजार की तर्ज पर ही चलेगा। मतलब कीमतें नीचे नहीं जाएंगी। अक्टूबर 2009 से मई 2010 के बीच कपास की कीमतें वैश्विक स्तर पर 35.5 फीसदी तक बढ़ गई थीं। (BS Hindi)
पाकिस्तान में बाढ़ से कपास की फसल खराब होने के कारण पिछले कुछ महीनों से इसके भाव में जो तेजी आई थी, वह कुछ ही वक्त में खत्म हो सकती है। दरअसल दुनिया भर में पिछले साल के मुकाबले इस बार कपास की फसल अच्छी रहने की उम्मीद जताई जा रही है।वैश्विक स्तर पर कपास की बुआई 15 फीसदी और भारत में 10 फीसदी अधिक हुई है। रकबा बढऩे की खबर के साथ ही कपास में तेजी के दिन भी खत्म हो सकते हैं। पिछले 2 महीने में कपास का भाव 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुका है।फिलहाल देसी बाजार में इसका भाव 32,200 रुपये प्रति कैंडी है, जो जून के दूसरे हफ्ते में 28,986 रुपये और 16 जुलाई को 29,280 रुपये प्रति कैंडी था। तेजी की सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से फसल खराब होना माना जा रहा है। इससे वैश्विक स्तर पर उत्पादन कम होने की आशंका खड़ी हो गई है, जिसका फायदा सटोरिये उठा रहे हैं।पाकिस्तान में तकरीबन 1 करोड़ कैंडी कपास का उत्पादन होता है, जो पूरी दुनिया के कपास उत्पादन का तकरीबन 8 फीसदी है। ताजा आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर कपास का रकबा पिछले साल की अपेक्षा 15 फीसदी ज्यादा है।नतीजतन इस साल दुनिया भर में कपास का उत्पादन भी करीब 15 फीसदी बढ़कर लगभग1,150 लाख गांठ (एक गांठ बराबर 175 किलोग्राम) होने की उम्मीद जताई जा रही है। पिछले साल 1,000 लाख कपास गांठ का उत्पादन हुआ था। भारतीय कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार इस बार कपास की बुआई पिछले साल से 10 फीसदी अधिक है। 14 अगस्त तक देश में 105 लाख हेक्टयर पर कपास की बुआई हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 95 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही कपास की बुआई हो पाई थी।कपास का उत्पादन ज्यादा होने की स्थिति में इसकी कीमतें प्रभावित होने की बात की जा रही है। जिंस कारोबार के जानकार अमर सिंह के अनुसार देश में कपास की कुल खपत तकरीबन 260 लाख गांठ की है जबकि इस साल उत्पादन 340 लाख गांठ से भी ज्यादा का हो सकता है। उत्पादन ज्यादा होने से कीमतें कम होगी।हालांकि कीमतों में ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कॉटन एक्सचेंज के पूर्व चेयरमैन किशोरीलाल झुनझुनवालाकहते हैं कि आज भी अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में घरेलू बाजार में कपास की कीमतें कम हैं और दोबारा निर्यात शुरू किए जाने के बाद घरेलू बाजार भी वैश्विक बाजार की तर्ज पर ही चलेगा। मतलब कीमतें नीचे नहीं जाएंगी। अक्टूबर 2009 से मई 2010 के बीच कपास की कीमतें वैश्विक स्तर पर 35.5 फीसदी तक बढ़ गई थीं। (BS Hindi)
20 अगस्त 2010
इलायची का नया सत्र शुरू, गिरे भाव
कोच्चि August 18, 2010
इलायची की कटाई का नया सत्र शुरू हो गया है। मगर, पिछले दो कारोबारी दिनों से नीलामी सौदों में इलायची के भाव अचानक गिरने से थोड़ी निराशा का माहौल है। 10 अगस्त को इलायची का औसत भाव 1,560 रुपये किलो था। भाव 15 फीसदी तक गिरकर बुधवार को 1,325 रुपये रह गया। मंगलवार को इलायची के भाव 1,260 रुपये किलो तक गिरे थे।ऐसे में नए सत्र की शुरुआत को लेकर इडुक्की जिले के किसानों का उत्साह बाजार में गिरावट से खत्म हो गया है। पिछले 2-3 महीनों में इलायची के औसत भाव 16,000 रुपये किलो तक ऊंचाई तक पहुंचे थे जिससे किसान उत्साहित थे। भाव के 2,000 रुपये किलो से भी ऊपर जाने के कयास लगाए जा रहे थे। जुलाई में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली इलायची के भाव 1,770 रुपये किलो तक चढ़े थे, लेकिन कीमतों में हालिया गिरावट से किसानों के बीच उदासी का माहौल है। कहा जा रहा था कि केरल के इडुक्की में विभिन्न नीलामी केंद्रों पर इलायची की अच्छी आपूर्ति हो रही है क्योंकि इस साल उत्पादन भी बढऩे की संभावना है। फिलहाल दैनिक आपूर्ति औसत 45,000-48,000 किलो है, जबकि पिछले महीने दैनिक आपूर्ति औसत 10,000 किलो था। इस साल उत्पादन बढऩे की खबरें आ रही हैं। इलायची उत्पादक संघ (सीजीए) के अध्यक्ष के एम माइकल के मुताबिक उत्पादन में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी। उन्होंने 10,000 टन इलायची उत्पादन का अनुमान लगाया है। इस साल इलायची के रकबे में 7,000 हेक्टेयर का इजाफा हुआ है और कुल रकबा 40,000 हेक्टेयर हो गया है। उत्पादक क्षेत्रों में अभी तक मॉनसून और सामान्य तापमान अच्छी पैदावार के अनुकूल रहे हैं। इसकी वजह से कीमतों में गिरावट का रुख है क्योंकि ओनम के बाद केरल में उत्पादन काफी तेज हो जाता है। किसानों का कहना है कि इस साल कुछ इलाकों में इलायची का कम वजन किसानों के लिए चिंता की वजह है। पहले 3 किलो हरी इलायची से 1 किलो सूखी इलायची प्राप्त होती थी, लेकिन अब यह अनुपात 1:6.5 हो गया है। इससे ताजा इलायची की खपत बढ़ गई है। आम तौर पर एक इलायची में 20-30 बीज होते हैं, लेकिन अब कुछ इलाकों की फसल में बीज घटकर 15-18 तक रह गए हैं जिससे इलायची का वजन कम हो रहा है और किसानों को नुकसान हो रहा है। किसानों को इस समस्या की बहुत ज्यादा समझ नहीं है और वे मसाला बोर्ड से इसकी वैज्ञानिक जांच कराने को कह रहे हैं।माइकल कहना है इस समस्या को देखते हुए अंतिम पैदावार पिछले सत्र के समान ही रहने की संभावना है, हालांकि शुरुआत में आपूर्ति तेज हैं। उन्होंने कहा कि इलायची की फसल तापमान को लेकर संवेदनशील होती है। अब तक मौसम मेहरबान रहा है, लेकिन मॉनसून में कोई भी बदलाव फसल पर असर डालेगा।कुल पैदावार में महज 5-7 फीसदी बढ़त हो सकती है। दो कारोबारी सत्रों में भाव में कमी के चलते सत्र की शुरुआत से किसान निराश हैं। ऐसे में सत्र बढऩे के साथ किसान फसल तेजी से बेचेंगे क्योंकि आगे कीमतें और नीचे जाएंगी। (BS Hindi)
इलायची की कटाई का नया सत्र शुरू हो गया है। मगर, पिछले दो कारोबारी दिनों से नीलामी सौदों में इलायची के भाव अचानक गिरने से थोड़ी निराशा का माहौल है। 10 अगस्त को इलायची का औसत भाव 1,560 रुपये किलो था। भाव 15 फीसदी तक गिरकर बुधवार को 1,325 रुपये रह गया। मंगलवार को इलायची के भाव 1,260 रुपये किलो तक गिरे थे।ऐसे में नए सत्र की शुरुआत को लेकर इडुक्की जिले के किसानों का उत्साह बाजार में गिरावट से खत्म हो गया है। पिछले 2-3 महीनों में इलायची के औसत भाव 16,000 रुपये किलो तक ऊंचाई तक पहुंचे थे जिससे किसान उत्साहित थे। भाव के 2,000 रुपये किलो से भी ऊपर जाने के कयास लगाए जा रहे थे। जुलाई में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली इलायची के भाव 1,770 रुपये किलो तक चढ़े थे, लेकिन कीमतों में हालिया गिरावट से किसानों के बीच उदासी का माहौल है। कहा जा रहा था कि केरल के इडुक्की में विभिन्न नीलामी केंद्रों पर इलायची की अच्छी आपूर्ति हो रही है क्योंकि इस साल उत्पादन भी बढऩे की संभावना है। फिलहाल दैनिक आपूर्ति औसत 45,000-48,000 किलो है, जबकि पिछले महीने दैनिक आपूर्ति औसत 10,000 किलो था। इस साल उत्पादन बढऩे की खबरें आ रही हैं। इलायची उत्पादक संघ (सीजीए) के अध्यक्ष के एम माइकल के मुताबिक उत्पादन में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी। उन्होंने 10,000 टन इलायची उत्पादन का अनुमान लगाया है। इस साल इलायची के रकबे में 7,000 हेक्टेयर का इजाफा हुआ है और कुल रकबा 40,000 हेक्टेयर हो गया है। उत्पादक क्षेत्रों में अभी तक मॉनसून और सामान्य तापमान अच्छी पैदावार के अनुकूल रहे हैं। इसकी वजह से कीमतों में गिरावट का रुख है क्योंकि ओनम के बाद केरल में उत्पादन काफी तेज हो जाता है। किसानों का कहना है कि इस साल कुछ इलाकों में इलायची का कम वजन किसानों के लिए चिंता की वजह है। पहले 3 किलो हरी इलायची से 1 किलो सूखी इलायची प्राप्त होती थी, लेकिन अब यह अनुपात 1:6.5 हो गया है। इससे ताजा इलायची की खपत बढ़ गई है। आम तौर पर एक इलायची में 20-30 बीज होते हैं, लेकिन अब कुछ इलाकों की फसल में बीज घटकर 15-18 तक रह गए हैं जिससे इलायची का वजन कम हो रहा है और किसानों को नुकसान हो रहा है। किसानों को इस समस्या की बहुत ज्यादा समझ नहीं है और वे मसाला बोर्ड से इसकी वैज्ञानिक जांच कराने को कह रहे हैं।माइकल कहना है इस समस्या को देखते हुए अंतिम पैदावार पिछले सत्र के समान ही रहने की संभावना है, हालांकि शुरुआत में आपूर्ति तेज हैं। उन्होंने कहा कि इलायची की फसल तापमान को लेकर संवेदनशील होती है। अब तक मौसम मेहरबान रहा है, लेकिन मॉनसून में कोई भी बदलाव फसल पर असर डालेगा।कुल पैदावार में महज 5-7 फीसदी बढ़त हो सकती है। दो कारोबारी सत्रों में भाव में कमी के चलते सत्र की शुरुआत से किसान निराश हैं। ऐसे में सत्र बढऩे के साथ किसान फसल तेजी से बेचेंगे क्योंकि आगे कीमतें और नीचे जाएंगी। (BS Hindi)
निर्यातकों ने शुरू की कपास की अग्रिम बुकिंग
अहमदाबाद August 18, 2010
केंद्र सरकार ने 1 अक्टूबर से कपास निर्यात की अनुमति दे दी है। साथ ही कच्चे कपास पर लगने वाले 2500 रुपये प्रति टन निर्यात शुल्क को भी हटा लिया है। इससे कपास की कीमतों में तेजी आने की संभावना है। सामान्यतया जब खरीफ के कपास की फसल की आवक शुरू होती है तो कीमतों में गिरावट शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार ऐसा होने की उम्मीद कम ही है। वजह है कि निर्यातकों ने वायदा बाजार में कपास की बुकिंग शुरू कर दी है, जिसकी डिलिवरी 2 महीने बाद होगी। उन्हें डर है कि बाद में कीमतों में और तेजी आ सकती है। हालांकि इस समय कीमतें सर्वोच्च स्तर पर चल रही हैं।सरकार का फैसला इस हिसाब से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि कपास की वैश्विक खपत में उत्पादन के मुकाबले तेजी आने के अनुमान हैं। साथ ही पाकिस्तान में बाढ़ आने से वहां फसलों को नुकसान पहुंचा है। साथ ही चीन में भी कपास की मांग बढ़ रही है, जो भारत से कपास का सबसे बड़ा आयातक है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा, 'सरकार के फैसले से कपास की कीमतों में तेजी के आसार हैं। कम अवधि के हिसाब से देखें तो कीमतों में तेजी रहेगी।'अहमदाबाद की एक प्रमुख टेक्सटाइल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हम उम्मीद कर रहे थे कि दिसंबर-जनवरी तक कीमतें वर्तमान रिकॉर्ड स्तर से नीचे आएंगी, जब कपास की आवक गति पकड़ेगी। बहरहाल, कपास निर्यात को अनुमति दिए जाने के बाद से अब ऐसी उम्मीद नहीं लग रही है।'इस समय गुजरात की बेंचमार्क कपास किस्म संकर-6 की कीमतें अब तक के सर्वोच्च स्तर 32,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 365 किलो) पर हैं। इसके बावजूद वायदा बाजार में निर्यातकों ने उच्च कीमतों पर कपास की बुकिंग शुरू कर दी है। बाजार से मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक निर्यातकों ने दिसंबर डिलिवरी वाली कपास की बुकिंग 32,000 रुपये प्रति कैंडी के भाव की है। मंगलवार को दिसंबर डिलिवरी की कपास की कीमतें 31,700 से 31,800 रुपये प्रति कैंडी थीं।सेंट्रल गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसिएशन के किशोर शाह ने कहा, 'कपास के निर्यात से प्रतिबंध हटाए जाने से कपास की कीमतों में गिरावट पर लगाम लगेगी। सरकार के इस फैसले से कपास निर्यातकों को फायदा होने की उम्मीद है, खासकर इसलिए कि पाकिस्तान में 2010-11 में कपास उत्पादन में 20 लाख गांठ की गिरावट की उम्मीद है।हाल ही में अमेरिकी कृषि विभाग ने कहा था कि चीन की आयात जरूरतें भी बढ़ी हैं। चीन के टेक्सटाइल उद्योग की ओर से मांग बढऩे के चलते वहां की सरकार कपास का पर्याप्त भंडार तैयार करना चाहती है। भारत सरकार का अध्यादेश ऐसे समय में आया है जब कपास की वैश्विक कीमतें तेज हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर, 95..6 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गई थीं। वैश्विक स्तर पर 2010-11 में उत्पादन और खपत में 40 लाख गांठ का अंतर रहने का अनुमान है। (BS Hindi)
केंद्र सरकार ने 1 अक्टूबर से कपास निर्यात की अनुमति दे दी है। साथ ही कच्चे कपास पर लगने वाले 2500 रुपये प्रति टन निर्यात शुल्क को भी हटा लिया है। इससे कपास की कीमतों में तेजी आने की संभावना है। सामान्यतया जब खरीफ के कपास की फसल की आवक शुरू होती है तो कीमतों में गिरावट शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार ऐसा होने की उम्मीद कम ही है। वजह है कि निर्यातकों ने वायदा बाजार में कपास की बुकिंग शुरू कर दी है, जिसकी डिलिवरी 2 महीने बाद होगी। उन्हें डर है कि बाद में कीमतों में और तेजी आ सकती है। हालांकि इस समय कीमतें सर्वोच्च स्तर पर चल रही हैं।सरकार का फैसला इस हिसाब से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि कपास की वैश्विक खपत में उत्पादन के मुकाबले तेजी आने के अनुमान हैं। साथ ही पाकिस्तान में बाढ़ आने से वहां फसलों को नुकसान पहुंचा है। साथ ही चीन में भी कपास की मांग बढ़ रही है, जो भारत से कपास का सबसे बड़ा आयातक है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा, 'सरकार के फैसले से कपास की कीमतों में तेजी के आसार हैं। कम अवधि के हिसाब से देखें तो कीमतों में तेजी रहेगी।'अहमदाबाद की एक प्रमुख टेक्सटाइल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हम उम्मीद कर रहे थे कि दिसंबर-जनवरी तक कीमतें वर्तमान रिकॉर्ड स्तर से नीचे आएंगी, जब कपास की आवक गति पकड़ेगी। बहरहाल, कपास निर्यात को अनुमति दिए जाने के बाद से अब ऐसी उम्मीद नहीं लग रही है।'इस समय गुजरात की बेंचमार्क कपास किस्म संकर-6 की कीमतें अब तक के सर्वोच्च स्तर 32,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 365 किलो) पर हैं। इसके बावजूद वायदा बाजार में निर्यातकों ने उच्च कीमतों पर कपास की बुकिंग शुरू कर दी है। बाजार से मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक निर्यातकों ने दिसंबर डिलिवरी वाली कपास की बुकिंग 32,000 रुपये प्रति कैंडी के भाव की है। मंगलवार को दिसंबर डिलिवरी की कपास की कीमतें 31,700 से 31,800 रुपये प्रति कैंडी थीं।सेंट्रल गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसिएशन के किशोर शाह ने कहा, 'कपास के निर्यात से प्रतिबंध हटाए जाने से कपास की कीमतों में गिरावट पर लगाम लगेगी। सरकार के इस फैसले से कपास निर्यातकों को फायदा होने की उम्मीद है, खासकर इसलिए कि पाकिस्तान में 2010-11 में कपास उत्पादन में 20 लाख गांठ की गिरावट की उम्मीद है।हाल ही में अमेरिकी कृषि विभाग ने कहा था कि चीन की आयात जरूरतें भी बढ़ी हैं। चीन के टेक्सटाइल उद्योग की ओर से मांग बढऩे के चलते वहां की सरकार कपास का पर्याप्त भंडार तैयार करना चाहती है। भारत सरकार का अध्यादेश ऐसे समय में आया है जब कपास की वैश्विक कीमतें तेज हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर, 95..6 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गई थीं। वैश्विक स्तर पर 2010-11 में उत्पादन और खपत में 40 लाख गांठ का अंतर रहने का अनुमान है। (BS Hindi)
सट्टेबाजी और आवक घटने से मेंथा तेल तेज
नई दिल्ली August 18, 2010
उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की आवक घटने लगी है। इस वजह से मेंथा तेल की कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। कारोबारियों के मुताबिक वायदा बाजार में सट्टेबाजी के कारण भी इसकी कीमतों में तेजी को बल मिला है। वहीं इस बार मेंथा तेल का उत्पादन भी कम बताया जा रहा है।प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर की चंदौसी मंडी के मेंथा कारोबारी धमेंद्र कुमार ने बताया कि इन दिनों मंडी में 80-90 ड्रम (180 किलोग्राम) मेंथा तेल की रोजाना आवक हो रही है। एक सप्ताह पहले 200 ड्रम की आवक हो रही थी। उनका कहना है कि आवक में कमी के कारण चंदौसी मंडी में बीते चार- पांच दिनों के दौरान मेंथा तेल के दाम 40 रुपये बढ़कर 855 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। आवक में कमी के बारे में कुमार ने कहा कि उत्पादन घटने और किसानों को आगे निर्यात मांग निकलने की उम्मीद है। इस कारण वे मंडियों में मेंथा तेल कम ला रहे हैं।इसकी कीमतों में तेजी के बारे में रामपुर मंडी के मेंथा कारोबारी विष्णु कपूर ने बताया कि मेंथा तेल की घरेलू और निर्यात मांग कमजोर है, बावजूद इसके कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। उनके अनुसार वायदा बाजार में सटोरिये इसके दाम बढ़ा रहे हैं। रामपुर मंडी में बीते चार दिनों के दौरान मेंथा तेल के दाम 60 रुपये बढ़कर 830-840 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में बुधवार को मेंथा तेल अगस्त अनुबंध का भाव 767.50 रुपये प्रति किलो रहा। 12 अगस्त को यह आंकड़ा 731.40 रुपये प्रति किलो था।आगे मेंथा तेल की कीमतों के बारे में कारोबारियों का कहना है कि इसके दाम वायदा बाजार पर निर्भर करेंगे। उनके मुताबिक बाजार सटोरियों के हवाले है। इसलिए कुछ अनुमान लगाना मुश्किल है। फिर भी निर्यात मांग निकलने पर मेंथा तेल की कीमतों में और तेजी आ सकती है।उधर, इस बार मेंथा तेल का उत्पादन पिछले साल से कम रहने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश मेंथा उद्योग के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि इस साल मेंथा तेल का उत्पादन 20 फीसदी तक घट सकता है। पिछले साल करीब 32,000-33,000 टन मेंथा तेल का उत्पादन हुआ था। इसके इस बार घटकर 26,000-27,000 टन रहने की संभावना है। दाम अधिक होने के कारण मेंथा उत्पादों के निर्यात में कमी आ रही है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान मेंथा उत्पादों का निर्यात 16 फीसदी घटकर 4,000 टन रहा। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भी मेंथा उत्पादों का निर्यात 7.3 फीसदी घटकर 19,000 टन रहा था। (BS Hindi)
उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की आवक घटने लगी है। इस वजह से मेंथा तेल की कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। कारोबारियों के मुताबिक वायदा बाजार में सट्टेबाजी के कारण भी इसकी कीमतों में तेजी को बल मिला है। वहीं इस बार मेंथा तेल का उत्पादन भी कम बताया जा रहा है।प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर की चंदौसी मंडी के मेंथा कारोबारी धमेंद्र कुमार ने बताया कि इन दिनों मंडी में 80-90 ड्रम (180 किलोग्राम) मेंथा तेल की रोजाना आवक हो रही है। एक सप्ताह पहले 200 ड्रम की आवक हो रही थी। उनका कहना है कि आवक में कमी के कारण चंदौसी मंडी में बीते चार- पांच दिनों के दौरान मेंथा तेल के दाम 40 रुपये बढ़कर 855 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। आवक में कमी के बारे में कुमार ने कहा कि उत्पादन घटने और किसानों को आगे निर्यात मांग निकलने की उम्मीद है। इस कारण वे मंडियों में मेंथा तेल कम ला रहे हैं।इसकी कीमतों में तेजी के बारे में रामपुर मंडी के मेंथा कारोबारी विष्णु कपूर ने बताया कि मेंथा तेल की घरेलू और निर्यात मांग कमजोर है, बावजूद इसके कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। उनके अनुसार वायदा बाजार में सटोरिये इसके दाम बढ़ा रहे हैं। रामपुर मंडी में बीते चार दिनों के दौरान मेंथा तेल के दाम 60 रुपये बढ़कर 830-840 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में बुधवार को मेंथा तेल अगस्त अनुबंध का भाव 767.50 रुपये प्रति किलो रहा। 12 अगस्त को यह आंकड़ा 731.40 रुपये प्रति किलो था।आगे मेंथा तेल की कीमतों के बारे में कारोबारियों का कहना है कि इसके दाम वायदा बाजार पर निर्भर करेंगे। उनके मुताबिक बाजार सटोरियों के हवाले है। इसलिए कुछ अनुमान लगाना मुश्किल है। फिर भी निर्यात मांग निकलने पर मेंथा तेल की कीमतों में और तेजी आ सकती है।उधर, इस बार मेंथा तेल का उत्पादन पिछले साल से कम रहने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश मेंथा उद्योग के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि इस साल मेंथा तेल का उत्पादन 20 फीसदी तक घट सकता है। पिछले साल करीब 32,000-33,000 टन मेंथा तेल का उत्पादन हुआ था। इसके इस बार घटकर 26,000-27,000 टन रहने की संभावना है। दाम अधिक होने के कारण मेंथा उत्पादों के निर्यात में कमी आ रही है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान मेंथा उत्पादों का निर्यात 16 फीसदी घटकर 4,000 टन रहा। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भी मेंथा उत्पादों का निर्यात 7.3 फीसदी घटकर 19,000 टन रहा था। (BS Hindi)
अब कोल्ड स्टोर पर ज्यादा सब्सिडी
नई दिल्ली August 18, 2010
देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोर न होने के कारण हर साल 20-25 फीसदी फल एवं सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। ऐसे में कोल्ड स्टोर निर्माण को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके मद्देनजर राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी ) ने कोल्ड स्टोर स्कीम के तहत मिलने वाली सब्सिडी बढ़ा दी है।राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के प्रबंध निदेशक विजय कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोल्ड स्टोर के निर्माण, विस्तार, आधुनिकीकरण के तहत दी जाने वाली 25 फीसदी सब्सिडी को बढ़ाकर 40 फीसदी करने के बोर्ड के प्रस्ताव को सरकार ने पिछले माह मंजूरी दे दी है। पहाड़ी इलाकों के लिए सब्सिडी को 33.33 फीसदी से बढ़ाकर 55 फीसदी कर दिया है। सब्सिडी बढ़ाने के बारे में कुमार का कहना है कि इस साल जनवरी महीने में अच्छी गुणवत्ता वाले कोल्ड स्टोर विकसित करने के लिए नए तकनीक मानक बनाए गए थे, इन मानकों के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत अधिक है।इसलिए सब्सिडी को बढ़ाया गया है। बोर्ड के तीन नए तकनीकी मानकों में पहला लंबी अवधि तक उत्पादों (जिनके लिए प्रीकूलिंग की आवश्यकता नहीं ) को भंडारण करने के लिए मल्टी कमोडिटी कोल्ड स्टोर, दूसरा कम और लंबी अवधि के लिए उत्पादों (जिनके लिए कूलिंग जरूरी है) और तीसरे कंट्रोल एटमॉस्फीयर (सीए) स्टोरेज वाले कोल्ड बनाए जाएंगे। सीए वाले कोल्ड स्टोर बनने से फल एवं सब्जी को 10 माह तक तरोताजा रखा जा सकता है, जबकि मौजूदा कोल्ड स्टोर में यह समय सीमा पांच सें छह माह ही है। पहले मानक के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत 6,000 रुपये प्रति टन, दूसरे के लिए 8,000 रुपये प्रति टन और तीसरे मानक के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत 32,000 रुपये प्रति टन है।देश में बोर्ड की स्कीम के तहत इस समय कोल्ड स्टोर स्थापित करने, आधुनिकीकरण , विस्तारण पर सब्सिडी देता है। इस स्कीम के तहत 5000 टन क्षमता वाले कोल्ड स्टोर को निर्माण किया जाता है। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य कटाई बाद बागवानी फसलों में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कोल्ड स्टोर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस स्कीम का लाभ गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ, उत्पादकों का संगठन, पार्टनरशिप फर्म, कंपनी , कॉरपोरेट, सहकारी संस्थाएं, कृषि उपज विपणन समिति, विपणन बोर्ड और एग्री इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन ले सकते है। (BS Hindi)
देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोर न होने के कारण हर साल 20-25 फीसदी फल एवं सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। ऐसे में कोल्ड स्टोर निर्माण को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके मद्देनजर राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी ) ने कोल्ड स्टोर स्कीम के तहत मिलने वाली सब्सिडी बढ़ा दी है।राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के प्रबंध निदेशक विजय कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोल्ड स्टोर के निर्माण, विस्तार, आधुनिकीकरण के तहत दी जाने वाली 25 फीसदी सब्सिडी को बढ़ाकर 40 फीसदी करने के बोर्ड के प्रस्ताव को सरकार ने पिछले माह मंजूरी दे दी है। पहाड़ी इलाकों के लिए सब्सिडी को 33.33 फीसदी से बढ़ाकर 55 फीसदी कर दिया है। सब्सिडी बढ़ाने के बारे में कुमार का कहना है कि इस साल जनवरी महीने में अच्छी गुणवत्ता वाले कोल्ड स्टोर विकसित करने के लिए नए तकनीक मानक बनाए गए थे, इन मानकों के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत अधिक है।इसलिए सब्सिडी को बढ़ाया गया है। बोर्ड के तीन नए तकनीकी मानकों में पहला लंबी अवधि तक उत्पादों (जिनके लिए प्रीकूलिंग की आवश्यकता नहीं ) को भंडारण करने के लिए मल्टी कमोडिटी कोल्ड स्टोर, दूसरा कम और लंबी अवधि के लिए उत्पादों (जिनके लिए कूलिंग जरूरी है) और तीसरे कंट्रोल एटमॉस्फीयर (सीए) स्टोरेज वाले कोल्ड बनाए जाएंगे। सीए वाले कोल्ड स्टोर बनने से फल एवं सब्जी को 10 माह तक तरोताजा रखा जा सकता है, जबकि मौजूदा कोल्ड स्टोर में यह समय सीमा पांच सें छह माह ही है। पहले मानक के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत 6,000 रुपये प्रति टन, दूसरे के लिए 8,000 रुपये प्रति टन और तीसरे मानक के आधार पर बनने वाले कोल्ड स्टोर की लागत 32,000 रुपये प्रति टन है।देश में बोर्ड की स्कीम के तहत इस समय कोल्ड स्टोर स्थापित करने, आधुनिकीकरण , विस्तारण पर सब्सिडी देता है। इस स्कीम के तहत 5000 टन क्षमता वाले कोल्ड स्टोर को निर्माण किया जाता है। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य कटाई बाद बागवानी फसलों में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कोल्ड स्टोर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस स्कीम का लाभ गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ, उत्पादकों का संगठन, पार्टनरशिप फर्म, कंपनी , कॉरपोरेट, सहकारी संस्थाएं, कृषि उपज विपणन समिति, विपणन बोर्ड और एग्री इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन ले सकते है। (BS Hindi)
आभूषण उद्योग ने अगस्त में पकड़ी रफ्तार
मुंबई August 19, 2010
भारतीय रत्न और आभूषण क्षेत्र के लिए अगस्त का महीना शानदार रहा है। आने वाले त्योहारी मौसम के मद्ïदेनजर घरेलू के साथ-साथ वैश्विक बाजारों में भी मांग बढ़ी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों ने अमेरिकी बाजारों में मांग बढ़ाने में मदद की है। जानकार मानते हैं कि सोने के भाव में स्थिरता और सकारात्मक वैश्विक संकेतों के चलते मौजूदा रुझान पूरे वित्त वर्ष तक बने रहेंगे। गीतांजलि जेम्स के चेयरमैन मेहुल चोकसी ने कहा, 'अमेरिकी मांग में सुधार हो रहा है। वहां आभूषण बिक्री में 40 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है।'चोकसी का कहना है कि वैश्विक खुदरा आभूषण बिक्री में अमेरिकी बाजार का योगदान करीब 40 फीसदी है। ऐसे में अमेरिकी बाजार में बिक्री बढऩा अच्छी खबर है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कई कंपनियों ने बिक्री और शुद्घ मुनाफे में शानदार बढ़त दर्ज की है। पिछले एक साल में भारत ने मजबूती से नए बाजारों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश जारी रखी है जिसकी वजह से भारतीय आभूषण उद्योग ने वैश्विक बाजार में जोरदार वापसी की है। इस समय भारत बेशक अमेरिका को आभूषणों की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश है। अमेरिका अपनी जरूरत के 25 फीसदी आभूषण और हीरे भारत से आयात करता है।रत्न और आभूषण निर्यात प्रोत्साहन परिषद् (जीजेईपीसी) के चेयरमैन वसंत मेहता का कहना है कि वैश्विक बाजार में मूल्य के हिसाब से भारतीय हीरों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। यह 60 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी हो गई है। जीजेईपीसी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में भारत से तराशे और पॉलिश किए गए हीरों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में रुपये के हिसाब से 74 फीसदी बढ़कर 27,149.66 करोड़ रुपये रहा।डॉलर के हिसाब से बढ़त और ज्यादा यानी 85.37 फीसदी है। निर्यात 59,465.9 लाख डॉलर रहा। प्रत्येक 11 में से 9 हीरे को तराशने और पॉलिश करने का काम भारत में हुआ। भारत विदेश से कच्चे हीरे और सोने के बिस्कुट का आयात करता है जिन्हें कई स्थानीय केंद्रों में तराशा और आभूषण का रूप दिया जाता है। जून तिमाही में कच्चे हीरे का आयात रुपये के हिसाब से 54.33 फीसदी बढ़कर 14,265.92 करोड़ रुपये रहा। डॉलर के हिसाब से आयात 63.09 फीसदी बढ़कर 31,020.4 लाख डॉलर रहा। सोने के बिस्कुट का आयात हालांकि गिरा है। रुपये के हिसाब से यह 36 फीसदी गिरकर 5,206.81 करोड़ रुपये और डॉलर के हिसाब से 31.79 फीसदी गिरकर 11,366.3 लाख डॉलर रहा।विश्लेषक इस गिरावट के पीछे घरेलू बाजार में पुराने सोने की भारी आपूर्ति को वजह मान रहे हैं क्योंकि इस साल घरेलू बाजार में कीमतों में उछाल पर ग्राहकों ने मुनाफावसूली की। श्रीनुज ऐंड कंपनी के समूह कार्यकारी निदेशक विशाल दोषी ने कहा, 'अप्रैल से आभूषण बिक्री में सुधार होने लगा था जो अब तक जारी है, लेकिन खास तौर से अमेरिका और एशियाई देशों में मांग उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ी है।' (BS Hindi)
भारतीय रत्न और आभूषण क्षेत्र के लिए अगस्त का महीना शानदार रहा है। आने वाले त्योहारी मौसम के मद्ïदेनजर घरेलू के साथ-साथ वैश्विक बाजारों में भी मांग बढ़ी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों ने अमेरिकी बाजारों में मांग बढ़ाने में मदद की है। जानकार मानते हैं कि सोने के भाव में स्थिरता और सकारात्मक वैश्विक संकेतों के चलते मौजूदा रुझान पूरे वित्त वर्ष तक बने रहेंगे। गीतांजलि जेम्स के चेयरमैन मेहुल चोकसी ने कहा, 'अमेरिकी मांग में सुधार हो रहा है। वहां आभूषण बिक्री में 40 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है।'चोकसी का कहना है कि वैश्विक खुदरा आभूषण बिक्री में अमेरिकी बाजार का योगदान करीब 40 फीसदी है। ऐसे में अमेरिकी बाजार में बिक्री बढऩा अच्छी खबर है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कई कंपनियों ने बिक्री और शुद्घ मुनाफे में शानदार बढ़त दर्ज की है। पिछले एक साल में भारत ने मजबूती से नए बाजारों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश जारी रखी है जिसकी वजह से भारतीय आभूषण उद्योग ने वैश्विक बाजार में जोरदार वापसी की है। इस समय भारत बेशक अमेरिका को आभूषणों की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश है। अमेरिका अपनी जरूरत के 25 फीसदी आभूषण और हीरे भारत से आयात करता है।रत्न और आभूषण निर्यात प्रोत्साहन परिषद् (जीजेईपीसी) के चेयरमैन वसंत मेहता का कहना है कि वैश्विक बाजार में मूल्य के हिसाब से भारतीय हीरों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। यह 60 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी हो गई है। जीजेईपीसी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में भारत से तराशे और पॉलिश किए गए हीरों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में रुपये के हिसाब से 74 फीसदी बढ़कर 27,149.66 करोड़ रुपये रहा।डॉलर के हिसाब से बढ़त और ज्यादा यानी 85.37 फीसदी है। निर्यात 59,465.9 लाख डॉलर रहा। प्रत्येक 11 में से 9 हीरे को तराशने और पॉलिश करने का काम भारत में हुआ। भारत विदेश से कच्चे हीरे और सोने के बिस्कुट का आयात करता है जिन्हें कई स्थानीय केंद्रों में तराशा और आभूषण का रूप दिया जाता है। जून तिमाही में कच्चे हीरे का आयात रुपये के हिसाब से 54.33 फीसदी बढ़कर 14,265.92 करोड़ रुपये रहा। डॉलर के हिसाब से आयात 63.09 फीसदी बढ़कर 31,020.4 लाख डॉलर रहा। सोने के बिस्कुट का आयात हालांकि गिरा है। रुपये के हिसाब से यह 36 फीसदी गिरकर 5,206.81 करोड़ रुपये और डॉलर के हिसाब से 31.79 फीसदी गिरकर 11,366.3 लाख डॉलर रहा।विश्लेषक इस गिरावट के पीछे घरेलू बाजार में पुराने सोने की भारी आपूर्ति को वजह मान रहे हैं क्योंकि इस साल घरेलू बाजार में कीमतों में उछाल पर ग्राहकों ने मुनाफावसूली की। श्रीनुज ऐंड कंपनी के समूह कार्यकारी निदेशक विशाल दोषी ने कहा, 'अप्रैल से आभूषण बिक्री में सुधार होने लगा था जो अब तक जारी है, लेकिन खास तौर से अमेरिका और एशियाई देशों में मांग उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ी है।' (BS Hindi)
कीटों के हमले और तेज बारिश से चाय ठंडी
August 19, 2010
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हुई जोरदार बारिश और कीटों के हमले से चाय उद्योग का मुनाफा अच्छा खासा प्रभावित हुआ है। चाय कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन, बल्क और ब्रांडेड चाय से राजस्व में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 1417.33 करोड़ हो गया। वहीं परिचालन मुनाफा 38.51 प्रतिशत गिरकर 151.94 करोड़ रुपये हो गया। चाय की बिक्री पर मुनाफे में 40.28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। विश्व की सबसे बड़ी बल्क चाय उत्पादक कंपनी मैक्लियोड रसेल इंडिया के प्रबंध निदेशक आदित्य खेतान ने कहा, 'फसलों के नुकसान के चलते वित्तीय प्रदर्शन खराब हुआ है, हालांकि पहली तिमाही पूरे साल के कारोबार के लिए सूचक नहीं है।'उत्तर बंगाल और असम में चाय की फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है। असम में लगातार दो महीने उत्पादन में गिरावट आई और मई तथा जून 2010 में स्थिति खराब रही। मई महीने में इस इलाके में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 30 लाख किलो का नुकसान हुआ। वहीं जून महीने में असम और पश्चिम बंगाल दोनों ही राज्यों में चाय की फसलों को अधिकतम नुकसान हुआ। पहली तिमाही के दौरान उत्तरी बंगाल और असम में चाय की औसत कीमतें 119.12 रुपये प्रति किलो रहीं। दक्षिण भारत में हालांकि पिछले साल की तुलना में फसल अच्छी थी, जिसकी वजह से वहां चाय की कीमतों में गिरावट देखी गई। अप्रैल से जून के बीच दक्षिण भारत में चाय की कीमतें औसतन 66.36 रुपये प्रति किलो रहीं। चाय की ब्रांडेड कंपनी- टाटा ग्लोबल बेवरिज के मुनाफे में इस दौरान कमी देखने को मिली, क्योकि बल्क टी मार्केट में सत्र की शुरुआत मजबूती के साथ हुई। पहली तिमाही में चाय कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहा है, उम्मीद की जा रही है कि आने वाले महीनों में कीमतों में तेजी आएगी। (BS Hindi)
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हुई जोरदार बारिश और कीटों के हमले से चाय उद्योग का मुनाफा अच्छा खासा प्रभावित हुआ है। चाय कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन, बल्क और ब्रांडेड चाय से राजस्व में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 1417.33 करोड़ हो गया। वहीं परिचालन मुनाफा 38.51 प्रतिशत गिरकर 151.94 करोड़ रुपये हो गया। चाय की बिक्री पर मुनाफे में 40.28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। विश्व की सबसे बड़ी बल्क चाय उत्पादक कंपनी मैक्लियोड रसेल इंडिया के प्रबंध निदेशक आदित्य खेतान ने कहा, 'फसलों के नुकसान के चलते वित्तीय प्रदर्शन खराब हुआ है, हालांकि पहली तिमाही पूरे साल के कारोबार के लिए सूचक नहीं है।'उत्तर बंगाल और असम में चाय की फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है। असम में लगातार दो महीने उत्पादन में गिरावट आई और मई तथा जून 2010 में स्थिति खराब रही। मई महीने में इस इलाके में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 30 लाख किलो का नुकसान हुआ। वहीं जून महीने में असम और पश्चिम बंगाल दोनों ही राज्यों में चाय की फसलों को अधिकतम नुकसान हुआ। पहली तिमाही के दौरान उत्तरी बंगाल और असम में चाय की औसत कीमतें 119.12 रुपये प्रति किलो रहीं। दक्षिण भारत में हालांकि पिछले साल की तुलना में फसल अच्छी थी, जिसकी वजह से वहां चाय की कीमतों में गिरावट देखी गई। अप्रैल से जून के बीच दक्षिण भारत में चाय की कीमतें औसतन 66.36 रुपये प्रति किलो रहीं। चाय की ब्रांडेड कंपनी- टाटा ग्लोबल बेवरिज के मुनाफे में इस दौरान कमी देखने को मिली, क्योकि बल्क टी मार्केट में सत्र की शुरुआत मजबूती के साथ हुई। पहली तिमाही में चाय कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहा है, उम्मीद की जा रही है कि आने वाले महीनों में कीमतों में तेजी आएगी। (BS Hindi)
पोल्ट्री उत्पाद हुए सस्ते
नई दिल्ली August 19, 2010
पोल्ट्री उत्पादों की मांग घटने का असर इनकी कीमतों पर देखा जा रहा है। कारोबारियों का कहना है कि सावन का महीना होने से पोल्ट्री उत्पादों की खपत में कमी आई है। इस वजह से इनकी कीमतों में गिरावट आई है। उधर, वर्तमान भाव पर उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।दिल्ली स्थित गाजीपुर मुर्गा मंडी के कारोबारी शुजाउद्दीन चौधरी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सावन के महीने में पोल्ट्री उत्पादों की खपत घट जाती है। दरअसल इस माह हिंदू लोग चिकन, अंडा बहुत कम खाते है।इससे इनकी मांग में कमी आई है, जिससे इनकी कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। दिल्ली में ब्रायलर(मुर्गी) के दाम 15 रुपये घटकर 50-55 रुपये प्रति किलो रह गए है। मुख्य उत्पादक राज्य हरियाणा के ब्रायलर उत्पादक और जींद स्थित च्वाइस रिसर्च ऐंड पोल्ट्री फार्म के मालिक रामहेत देशवाल ने बताया कि मांग घटने से जिंद मंडी में ब्रायलर के दाम 15-20 रुपये घटकर 40-50 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।ब्रायलर के अलावा अंडे की कीमतों में भी गिरावट आई है। दिल्ली स्थित नागपाल ऐग स्टोर के मालिक प्रमोद नागपाल ने कहा कि सावन माह की वजह से मांग घटने से अंडे के दाम 10 रुपये घटकर 216 रुपये प्रति सैकड़ा पर आ गए हैं। (BS Hindi)
पोल्ट्री उत्पादों की मांग घटने का असर इनकी कीमतों पर देखा जा रहा है। कारोबारियों का कहना है कि सावन का महीना होने से पोल्ट्री उत्पादों की खपत में कमी आई है। इस वजह से इनकी कीमतों में गिरावट आई है। उधर, वर्तमान भाव पर उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।दिल्ली स्थित गाजीपुर मुर्गा मंडी के कारोबारी शुजाउद्दीन चौधरी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सावन के महीने में पोल्ट्री उत्पादों की खपत घट जाती है। दरअसल इस माह हिंदू लोग चिकन, अंडा बहुत कम खाते है।इससे इनकी मांग में कमी आई है, जिससे इनकी कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। दिल्ली में ब्रायलर(मुर्गी) के दाम 15 रुपये घटकर 50-55 रुपये प्रति किलो रह गए है। मुख्य उत्पादक राज्य हरियाणा के ब्रायलर उत्पादक और जींद स्थित च्वाइस रिसर्च ऐंड पोल्ट्री फार्म के मालिक रामहेत देशवाल ने बताया कि मांग घटने से जिंद मंडी में ब्रायलर के दाम 15-20 रुपये घटकर 40-50 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।ब्रायलर के अलावा अंडे की कीमतों में भी गिरावट आई है। दिल्ली स्थित नागपाल ऐग स्टोर के मालिक प्रमोद नागपाल ने कहा कि सावन माह की वजह से मांग घटने से अंडे के दाम 10 रुपये घटकर 216 रुपये प्रति सैकड़ा पर आ गए हैं। (BS Hindi)
'जमीन का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है उद्योग जगत'
August 19, 2010
नादिर गोदरेज, चेयरमैन, गोदरेज एग्रोवेटकृषि और खाद्य कंपनी गोदरेज एग्रोवेट (जीएवीएल) के चेयरमैन नादिर गोदरेज ने खाद्यान्न सुरक्षा और जीन संवर्धित बीज से जुड़े विभिन्न मसलों पर दिलीप कुमार झा से बातचीत की। पेश है खास अंश...कृषि के काम आने वाली जमीन दिन प्रतिदिन घट रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा को संकट हो सकता है। क्या देश में बढ़ते औद्योगीकरण को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं?औद्योगीकरण जरूरी है। जो जमीन कृषि के लिए उपयोगी न हो, उसका औद्योगिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उद्योग जगत कृषि की तुलना में जमीन का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि उपलब्ध जमीन पर ही ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जाए। फलों और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे किसानों को ज्यादा फायदा होगा। लेकिन फलों और सब्जियों का रखरखाव संकट बना हुआ है?बुनियादी ढांचा कमजोर होने की वजह से हमारे यहां प्रसंस्करण, परिवहन और गोदामों की सुविधा नहीं है। इसकी वजह है कि भारत में हर समय ताजी सब्जियां और फल उपलब्ध रहते हैं। विदेशों में यह अवधि कम होती है, जिससे वहां प्रसंस्करण जरूरी होता है। हमें ताजे फल और सब्जियां उपलब्ध हों, और इनकी बर्बादी न हो, इसके लिए जरूरी है कि देश भर में कोल्ड चेन बनाई जाए। क्या आप खुद का कोल्ड स्टोरेज और गोदाम बनाने के बारे में सोच रहे हैं?हम इस दिशा में बहुत सक्रिय नहीं हैं। लेकिन हम कोल्ड चेन बनाने के लिए साझेदारों की लगातार तलाश कर रहे हैं। हमें खुद के कुछ उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पड़ती है। भारत की कृषि नीति में कार्पोरेट खेती की अनुमति नहीं है। क्या आप मानते हैं कि यह भारतीय कृषि के विकास में बाधा है?हां। लेकिन इसके बावजूद हम किसानों से बेहतर तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। हमारे पास पाम ऑयल की खेती करने वाले बेहतर किसान हैं। हमें मलेशिया के औसत के करीब पैदावार मिल रही है, भले ही यहां स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार जिंसों के जीएम बीज की खेती को अनुमति देगी, जिसका इस्तेमाल इंसानों के खाने के लिए होगा?हां। यह उचित वक्त है कि सरकार कड़ा फैसला करे और पैदावार बढ़ाने के लिए जीएम बीज को अनुमति दे। लेकिन सुरक्षा को लेकर पूरी सावधानी बरती जानी चाहिए। क्या जीएवीएल बीजों की हाइब्रिड किस्म और जीएम बीज पेश करने की कोई योजना बना रही है?हम जीएम बीज लॉन्च करने की कोई योजना नहीं बना रहे हैं। हमें बेहतर परंपरगात बीजों में तमाम संभावनाएं नजर आ रही हैं। (BS Hindi)
नादिर गोदरेज, चेयरमैन, गोदरेज एग्रोवेटकृषि और खाद्य कंपनी गोदरेज एग्रोवेट (जीएवीएल) के चेयरमैन नादिर गोदरेज ने खाद्यान्न सुरक्षा और जीन संवर्धित बीज से जुड़े विभिन्न मसलों पर दिलीप कुमार झा से बातचीत की। पेश है खास अंश...कृषि के काम आने वाली जमीन दिन प्रतिदिन घट रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा को संकट हो सकता है। क्या देश में बढ़ते औद्योगीकरण को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं?औद्योगीकरण जरूरी है। जो जमीन कृषि के लिए उपयोगी न हो, उसका औद्योगिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उद्योग जगत कृषि की तुलना में जमीन का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि उपलब्ध जमीन पर ही ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जाए। फलों और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे किसानों को ज्यादा फायदा होगा। लेकिन फलों और सब्जियों का रखरखाव संकट बना हुआ है?बुनियादी ढांचा कमजोर होने की वजह से हमारे यहां प्रसंस्करण, परिवहन और गोदामों की सुविधा नहीं है। इसकी वजह है कि भारत में हर समय ताजी सब्जियां और फल उपलब्ध रहते हैं। विदेशों में यह अवधि कम होती है, जिससे वहां प्रसंस्करण जरूरी होता है। हमें ताजे फल और सब्जियां उपलब्ध हों, और इनकी बर्बादी न हो, इसके लिए जरूरी है कि देश भर में कोल्ड चेन बनाई जाए। क्या आप खुद का कोल्ड स्टोरेज और गोदाम बनाने के बारे में सोच रहे हैं?हम इस दिशा में बहुत सक्रिय नहीं हैं। लेकिन हम कोल्ड चेन बनाने के लिए साझेदारों की लगातार तलाश कर रहे हैं। हमें खुद के कुछ उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पड़ती है। भारत की कृषि नीति में कार्पोरेट खेती की अनुमति नहीं है। क्या आप मानते हैं कि यह भारतीय कृषि के विकास में बाधा है?हां। लेकिन इसके बावजूद हम किसानों से बेहतर तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। हमारे पास पाम ऑयल की खेती करने वाले बेहतर किसान हैं। हमें मलेशिया के औसत के करीब पैदावार मिल रही है, भले ही यहां स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार जिंसों के जीएम बीज की खेती को अनुमति देगी, जिसका इस्तेमाल इंसानों के खाने के लिए होगा?हां। यह उचित वक्त है कि सरकार कड़ा फैसला करे और पैदावार बढ़ाने के लिए जीएम बीज को अनुमति दे। लेकिन सुरक्षा को लेकर पूरी सावधानी बरती जानी चाहिए। क्या जीएवीएल बीजों की हाइब्रिड किस्म और जीएम बीज पेश करने की कोई योजना बना रही है?हम जीएम बीज लॉन्च करने की कोई योजना नहीं बना रहे हैं। हमें बेहतर परंपरगात बीजों में तमाम संभावनाएं नजर आ रही हैं। (BS Hindi)
काजू की घरेलू मांग तेज, निर्यात स्थिर
बेंगलुरु August 19, 2010
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े काजू निर्यातक देश भारत का काजू निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में स्थिर रहा है। देश ने 25,962 टन काजू का निर्यात किया है जो पिछले साल समान तिमाही के मुकालबे महज 1.6 फीसदी ज्यादा है। इसकी मुख्य वजह घरेलू उपभोग मांग में तेजी और इस साल कम आपूर्ति है।अप्रैल-जुलाई में काजू का निर्यात मात्रा के हिसाब से करीब सपाट रहा है, जबकि मूल्य के हिसाब से 2.1 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज हुई है। इस तिमाही में 713 करोड़ रुपये के काजू का निर्यात किया गया है जबकि पिछले साल निर्यात 698 करोड़ रुपये का रहा था। निर्यातकों को घरेलू मांग पूरा करने के लिए निर्यात घटाना पड़ रहा है।उद्योग सूत्रों के मुताबिक घरेलू काजू उपभोग सालाना करीब 1,90,000 टन है। वहीं, 1,10,000 टन काजू का निर्यात किया जाता है। कोच्चि स्थित भारतीय काजू निर्यात संवद्र्घन परिषद्ï (सीईपीसीआई) के मुताबिक इस तिमाही निर्यात से कमाई में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जहां भाव 276 रुपये प्रति किलो है। यह घरेलू बाजार के मुकाबले 26 फीसदी कम है जहां भाव 375 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं।मुंबई के निर्यातक पंकज संपत का कहना है, 'दो वजहों से निर्यातकों को घरेलू बाजार में माल बेचना फायदेमंद लग रहा है। पहली वजह यहां उन्हें अच्छा दाम मिल रहा है और दूसरी वजह कच्चे काजू की कमी के चलते निर्यातकों को प्रसंस्करण का काम सीमित करना पड़ रहा है।'उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से भारत में काजू का ज्यादातर इस्तेमाल मिठाइयां बनाने में किया जाता है, लेकिन पिछले 5 सालों में इसका इस्तेमाल कंफेशनरी उद्योग, आइसक्रीम और स्नैैक नट में मुख्य कच्चेमाल के रूप में बढ़ा है। मौजूदा समय में भारत में 50,000 टन कच्चे काजू गिरी का उत्पादन होता है, वहीं, 70,000 टन का आयात किया जाता है जिसके प्रसंस्करण के बाद काजू बीजों का निर्यात किया जाता है।प्रसंस्करण के बाद कुल 30,000 टन काजू बीज बचते हैं जिसमें से 1,10,000 टन का निर्यात किया जाता है। सीईपीसीआई के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में निर्यात में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।मंगलोर के निर्यातक जी गिरिधर प्रभु ने कहा, 'खरीदारों को मंदी का डर और भारतीय निर्यातकों के लिए समता के अभाव की वजह से पिछले पूरे साल निर्यात को प्रोत्साहन नहीं मिल सका। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वियतनाम के आक्रामक रुख की वजह से भी भारतीय निर्यात कमजोर रहा।'संपत का कहना है कि देश से निर्यात बढ़ाने के लिए यहां कच्चे काजू के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। फिलहाल देश में काजू की बुआई के लिए कोई वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका नहीं है। ज्यादातर राज्यों में यह जंगली फसल की तरह बोया जाता है।बढ़ती घरेलू और निर्यात मांग को देखते हुए अगले 5-7 सालों में देश को कम से कम 10 लाख टन सालाना काजू उत्पादन की जरूरत है। पहली तिमाही के दौरान काजू प्रसंस्करण करने वालों ने 2,31,804 टन काजू का आयात किया था। पिछले साल के मुकाबले यह 5 फीसदी कम है। मूल्य के हिसाब से यह 15.5 फीसदी ज्यादा है। इस तिमाही 208 करोड़ रुपये के काजू का आयात किया गया। चालू साल में घरेलू फसल 450,000 टन रही है जो 10 फीसदी कम है। संपत का कहना है कि इसका मतलब है कि प्रसंस्करण उद्योग को इस साल ज्यादा कच्चे काजू का आयात करना होगा। (BS Hindi)
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े काजू निर्यातक देश भारत का काजू निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में स्थिर रहा है। देश ने 25,962 टन काजू का निर्यात किया है जो पिछले साल समान तिमाही के मुकालबे महज 1.6 फीसदी ज्यादा है। इसकी मुख्य वजह घरेलू उपभोग मांग में तेजी और इस साल कम आपूर्ति है।अप्रैल-जुलाई में काजू का निर्यात मात्रा के हिसाब से करीब सपाट रहा है, जबकि मूल्य के हिसाब से 2.1 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज हुई है। इस तिमाही में 713 करोड़ रुपये के काजू का निर्यात किया गया है जबकि पिछले साल निर्यात 698 करोड़ रुपये का रहा था। निर्यातकों को घरेलू मांग पूरा करने के लिए निर्यात घटाना पड़ रहा है।उद्योग सूत्रों के मुताबिक घरेलू काजू उपभोग सालाना करीब 1,90,000 टन है। वहीं, 1,10,000 टन काजू का निर्यात किया जाता है। कोच्चि स्थित भारतीय काजू निर्यात संवद्र्घन परिषद्ï (सीईपीसीआई) के मुताबिक इस तिमाही निर्यात से कमाई में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जहां भाव 276 रुपये प्रति किलो है। यह घरेलू बाजार के मुकाबले 26 फीसदी कम है जहां भाव 375 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं।मुंबई के निर्यातक पंकज संपत का कहना है, 'दो वजहों से निर्यातकों को घरेलू बाजार में माल बेचना फायदेमंद लग रहा है। पहली वजह यहां उन्हें अच्छा दाम मिल रहा है और दूसरी वजह कच्चे काजू की कमी के चलते निर्यातकों को प्रसंस्करण का काम सीमित करना पड़ रहा है।'उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से भारत में काजू का ज्यादातर इस्तेमाल मिठाइयां बनाने में किया जाता है, लेकिन पिछले 5 सालों में इसका इस्तेमाल कंफेशनरी उद्योग, आइसक्रीम और स्नैैक नट में मुख्य कच्चेमाल के रूप में बढ़ा है। मौजूदा समय में भारत में 50,000 टन कच्चे काजू गिरी का उत्पादन होता है, वहीं, 70,000 टन का आयात किया जाता है जिसके प्रसंस्करण के बाद काजू बीजों का निर्यात किया जाता है।प्रसंस्करण के बाद कुल 30,000 टन काजू बीज बचते हैं जिसमें से 1,10,000 टन का निर्यात किया जाता है। सीईपीसीआई के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में निर्यात में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।मंगलोर के निर्यातक जी गिरिधर प्रभु ने कहा, 'खरीदारों को मंदी का डर और भारतीय निर्यातकों के लिए समता के अभाव की वजह से पिछले पूरे साल निर्यात को प्रोत्साहन नहीं मिल सका। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वियतनाम के आक्रामक रुख की वजह से भी भारतीय निर्यात कमजोर रहा।'संपत का कहना है कि देश से निर्यात बढ़ाने के लिए यहां कच्चे काजू के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। फिलहाल देश में काजू की बुआई के लिए कोई वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका नहीं है। ज्यादातर राज्यों में यह जंगली फसल की तरह बोया जाता है।बढ़ती घरेलू और निर्यात मांग को देखते हुए अगले 5-7 सालों में देश को कम से कम 10 लाख टन सालाना काजू उत्पादन की जरूरत है। पहली तिमाही के दौरान काजू प्रसंस्करण करने वालों ने 2,31,804 टन काजू का आयात किया था। पिछले साल के मुकाबले यह 5 फीसदी कम है। मूल्य के हिसाब से यह 15.5 फीसदी ज्यादा है। इस तिमाही 208 करोड़ रुपये के काजू का आयात किया गया। चालू साल में घरेलू फसल 450,000 टन रही है जो 10 फीसदी कम है। संपत का कहना है कि इसका मतलब है कि प्रसंस्करण उद्योग को इस साल ज्यादा कच्चे काजू का आयात करना होगा। (BS Hindi)
17 अगस्त 2010
अप्रैल-जुलाई में बासमती निर्यात सौदे 25फीसदी कम
बासमती चावल की बंपर फसल आने की संभावना का असर निर्यात पर दिखाई देने लगा है। आयातक देशों ने चावल की खरीद धीमी कर दी है। इस वजह से चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले चार महीनों (अप्रैल से जुलाई) के दौरान बासमती चावल के निर्यात रजिस्ट्रेशन में 24.6 फीसदी की कमी आई है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस दौरान 9.21 लाख टन बासमती चावल निर्यात के सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12.22 लाख टन के निर्यात सौदों का पंजीकरण हुआ था। उन्होंने बताया कि भारत से बासमती चावल का सबसे ज्यादा आयात सऊदी अरब, कुवैत और ईरान को होता है। इन देशों के आयातकों के पास पिछले साल का बकाया स्टॉक बचा हुआ है इसीलिए भी आयात के नए सौदे पिछले साल की तुलना में कम हो रहे हैं। अगले डेढ़ महीने में भारत में घरेलू बाजार में बासमती चावल की नई फसल आ जाएगी। चालू सीजन में देश में बासमती का बंपर उत्पादन होने की संभावना है। इसलिए भी इन देशों के आयातकों ने आयात सौदे कम कर दिए हैं। एपीडा के अनुसार वित्त वर्ष 2009-10 में भारत से कुल 31 लाख टन चावल निर्यात के सौदों का पंजीकरण हुआ था जबकि इस दौरान निर्यात 21 लाख टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष में अभी तक हुए कुल पंजीकृत सौदों में से 70 फीसदी निर्यात हो पाया है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल महीने में 2.58 लाख टन, मई में 2.14 लाख टन, जून में 2.38 लाख टन और जुलाई में 2.10 लाख टन निर्यात सौदों का पंजीकरण हुआ है जबकि अप्रैल-मई में केवल 50-50 हजार टन बासमती का ही शिपमेंट हो पाया। हालांकि जून और जुलाई में शिपमेंट बढ़कर दो-दो लाख टन हो गया। बासमती चावल निर्यातक कंपनी केआरबीएल लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक अनुप कुमार गुप्ता ने बताया कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूसा-1121 बासमती का भाव 1000 से 1100 डॉलर और मूल बासमती का 1500-1700 डॉलर प्रति टन चल रहा है। हालांकि अभी निर्यात मांग कमजोर है लेकिन अक्टूबर-नवंबर के बाद निर्यात मांग में तेजी आने की संभावना है।बात पते कीअगले डेढ़ महीने में घरेलू बाजार में बासमती की नई फसल आ जाएगी। चालू सीजन में बंपर उत्पादन होने की संभावना है। इसलिए इन देशों के आयातकों ने आयात सौदे कम कर दिए हैं। (Business Bhaskar...aar as raana)
जौ के दाम में तेजी
नई दिल्ली August 16, 2010
मांग बढऩे का असर जौ की कीमतों पर देखा जा रहा है। पिछले एक माह के दौरान जौ के भाव में 50-60 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि माल्ट उद्योग और पशुचारे में जौ की मांग बढ़ी है। एक माह के दौरान राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 1030-1035 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा की रेवाड़ी मंडी में इसके दाम 60 रुपये बढ़कर 1040 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं। जौ कारोबारी सुताराम ने बताया कि इन दिनों माल्ट उद्योग की ओर जौ की मांग अच्छी चल रही है। साथ ही पशुचारे में भी जौ की मांग बढ़ रही है। इस कारण जौ कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस बारे में जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने कहा कि इन मंडियों में जौ की आवक कम हो रही है।इस वजह से भी इसके दाम बढ़े हैं। उनका कहना है कि एक माह के दौरान जयपुर मंडी में जौ की आवक 1000-1200 बोरी से घटकर 500-600 बोरी रह गई है। रेवाड़ी मंडी के जौ कारोबारी राजीव बंसल ने बताया कि मंडी में जौ की आवक 400-500 बोरी से घटकर 100-200 बोरी रह गई है। इस कारण जौ की कीमतें बढ़ी है। कारोबारियों के मुताबिक बारिश होने के कारण किसान जौ मंडी नही ला पा रहे है, जिससे इसकी आवक में कमी आई है। इसके अलावा उत्पादन घटने के कारण स्टॉक भी कम है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 13 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।जौ की निर्यात मांग के बारे में गुजरात की बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) संजय बिश्नोई का कहना है कि फिलहाल तो जौ की निर्यात मांग कमजोर है, लेकिन मुख्य उत्पादक देश यूक्रेन में जौ की नई फसल की आवक बंद हो गई है, ऐसे में आगे जौ की निर्यात मांग निकल सकती है।विश्नोई ने कहा कि देश में अभी जौ की नई फसल आने में 3 से 4 माह बचे है। ऐसे में जौ की कीमतों में मंदी के आसार कम है। साथ ही आगे निर्यात बढऩे की संभावना भी है, ऐसे में आगे भी जौ की कीमतों में तेजी बरकरार रहने की संभावना है। (BS Hindi)
मांग बढऩे का असर जौ की कीमतों पर देखा जा रहा है। पिछले एक माह के दौरान जौ के भाव में 50-60 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि माल्ट उद्योग और पशुचारे में जौ की मांग बढ़ी है। एक माह के दौरान राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 50 रुपये बढ़कर 1030-1035 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा की रेवाड़ी मंडी में इसके दाम 60 रुपये बढ़कर 1040 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं। जौ कारोबारी सुताराम ने बताया कि इन दिनों माल्ट उद्योग की ओर जौ की मांग अच्छी चल रही है। साथ ही पशुचारे में भी जौ की मांग बढ़ रही है। इस कारण जौ कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस बारे में जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने कहा कि इन मंडियों में जौ की आवक कम हो रही है।इस वजह से भी इसके दाम बढ़े हैं। उनका कहना है कि एक माह के दौरान जयपुर मंडी में जौ की आवक 1000-1200 बोरी से घटकर 500-600 बोरी रह गई है। रेवाड़ी मंडी के जौ कारोबारी राजीव बंसल ने बताया कि मंडी में जौ की आवक 400-500 बोरी से घटकर 100-200 बोरी रह गई है। इस कारण जौ की कीमतें बढ़ी है। कारोबारियों के मुताबिक बारिश होने के कारण किसान जौ मंडी नही ला पा रहे है, जिससे इसकी आवक में कमी आई है। इसके अलावा उत्पादन घटने के कारण स्टॉक भी कम है। भारतीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में 13 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ है, वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था।जौ की निर्यात मांग के बारे में गुजरात की बिश्नोई ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) संजय बिश्नोई का कहना है कि फिलहाल तो जौ की निर्यात मांग कमजोर है, लेकिन मुख्य उत्पादक देश यूक्रेन में जौ की नई फसल की आवक बंद हो गई है, ऐसे में आगे जौ की निर्यात मांग निकल सकती है।विश्नोई ने कहा कि देश में अभी जौ की नई फसल आने में 3 से 4 माह बचे है। ऐसे में जौ की कीमतों में मंदी के आसार कम है। साथ ही आगे निर्यात बढऩे की संभावना भी है, ऐसे में आगे भी जौ की कीमतों में तेजी बरकरार रहने की संभावना है। (BS Hindi)
चीनी मिलों को मुनाफे की आस
मुंबई August 16, 2010
एथेनॉल उत्पादक और चीनी मिलों ने कैबिनेट के पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाए जाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की जरूरत के मुताबिक इस वर्ष पहली सितंबर से अगले वर्ष 31 अगस्त तक 104.45 करोड़ लीटर एथेनॉल उपलब्ध कराने की तैयारी कर ली गई है।एथेनॉल उत्पादकों के अखिल भारतीय संगठन के अध्यक्ष विजयसिंह मोहिते पाटिल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'देश में कुल 150 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन होता है, जिसमें से महाराष्ट्र 92 करोड़ लीटर, उत्तर प्रदेश 18 करोड़ लीटर, छत्तीसगढ़ 15 करोड़ लीटर, आंध्र प्रदेश 8 करोड़ लीटर, कर्नाटक 4 करोड़ लीटर, और तमिलनाडु 2.5 करोड़ लीटर का उत्पादन करता है। हम नहीं समझते कि इस वर्ष सितंबर से लेकर अगले वर्ष अगस्त तक तेल विपणन कंपनियों की एथेनॉल जरूरत पूरी करने में कोई कठिनाई होगी। हमें इस बात का पूरा भरोसा है कि सरकार के इस फैसले से न केवल पेट्रोल कीमतों में 1.25 रुपये से 1.50 रुपये प्रति लीटर तक की गिरावट आएगी, बल्कि तेल आयात में खर्च होने वाले विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।'पाटिल ने बताया कि एथेनॉल उत्पादकों ने वर्ष 2003-2004 के दौरान तेल विपणन कंपनियों को 37.50 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की थी। हालांकि बाद के वर्षों में कई राज्यों में सूखे की स्थिति और गुड़ एवं अल्कोहल के भाव बढऩे से इसकी आपूर्ति में गिरावट आई थी।पाटिल ने केंद्र सरकार के उस फैसले का भी स्वागत किया है, जिसके तहत तेल विपणन कंपनियां कारखाने से डिपो तक ढुलाई का खर्च उसी दर पर वहन करेंगी, जिस दर पर वे अपने उत्पाद की ढुलाई का खर्च वहन करती हैं। एथेनॉल की वास्तविक ढुलाई चीनी मिलें करेंगी। तेल विपणन कंपनियां आयात और निर्यात शुल्क का खर्च भी उठाएंगी।महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों के महासंघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि चीनी के भाव में लगातार गिरावट आ रही है (200 रुपये प्रति क्विंटल, जो उत्पादन लागत से भी कम है), ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला समय पर उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा, 'इस फैसले से चीनी मिलों की माली हालत सुधरेगी और वे किसानों को गन्ने का बेहतर भाव चुका सकेंगी।' (BS Hindi)
एथेनॉल उत्पादक और चीनी मिलों ने कैबिनेट के पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाए जाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की जरूरत के मुताबिक इस वर्ष पहली सितंबर से अगले वर्ष 31 अगस्त तक 104.45 करोड़ लीटर एथेनॉल उपलब्ध कराने की तैयारी कर ली गई है।एथेनॉल उत्पादकों के अखिल भारतीय संगठन के अध्यक्ष विजयसिंह मोहिते पाटिल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'देश में कुल 150 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन होता है, जिसमें से महाराष्ट्र 92 करोड़ लीटर, उत्तर प्रदेश 18 करोड़ लीटर, छत्तीसगढ़ 15 करोड़ लीटर, आंध्र प्रदेश 8 करोड़ लीटर, कर्नाटक 4 करोड़ लीटर, और तमिलनाडु 2.5 करोड़ लीटर का उत्पादन करता है। हम नहीं समझते कि इस वर्ष सितंबर से लेकर अगले वर्ष अगस्त तक तेल विपणन कंपनियों की एथेनॉल जरूरत पूरी करने में कोई कठिनाई होगी। हमें इस बात का पूरा भरोसा है कि सरकार के इस फैसले से न केवल पेट्रोल कीमतों में 1.25 रुपये से 1.50 रुपये प्रति लीटर तक की गिरावट आएगी, बल्कि तेल आयात में खर्च होने वाले विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।'पाटिल ने बताया कि एथेनॉल उत्पादकों ने वर्ष 2003-2004 के दौरान तेल विपणन कंपनियों को 37.50 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की थी। हालांकि बाद के वर्षों में कई राज्यों में सूखे की स्थिति और गुड़ एवं अल्कोहल के भाव बढऩे से इसकी आपूर्ति में गिरावट आई थी।पाटिल ने केंद्र सरकार के उस फैसले का भी स्वागत किया है, जिसके तहत तेल विपणन कंपनियां कारखाने से डिपो तक ढुलाई का खर्च उसी दर पर वहन करेंगी, जिस दर पर वे अपने उत्पाद की ढुलाई का खर्च वहन करती हैं। एथेनॉल की वास्तविक ढुलाई चीनी मिलें करेंगी। तेल विपणन कंपनियां आयात और निर्यात शुल्क का खर्च भी उठाएंगी।महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों के महासंघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि चीनी के भाव में लगातार गिरावट आ रही है (200 रुपये प्रति क्विंटल, जो उत्पादन लागत से भी कम है), ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला समय पर उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा, 'इस फैसले से चीनी मिलों की माली हालत सुधरेगी और वे किसानों को गन्ने का बेहतर भाव चुका सकेंगी।' (BS Hindi)
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