नई दिल्ली July 30, 2010
यूरोप में आर्थिक हालात बिगडऩे के बाद धातुओं की मांग और दाम दोनों ही घट चुके हैं, लेकिन अब पश्चिमी देशों में धातुओं की मांग लगातार बढ़ रही है। इससे चालू वर्ष में पिछले साल के मुकाबले धातुओं की खपत और कीमत दोनों अधिक रहने का अनुमान है। यह बात शुक्रवार को लंदन आधारित नैटिक्सिस कमोडिटी मार्केट्स लिमिटेड की रिपोर्ट से निकलकर आई है।रिपोर्ट में कहा गया कि विकासशील देशों में विकास दर काफी मजबूत है। रूस, भारत , चीन और इंडोनेनिया में ऑटो सेक्टर काफी विकास कर रहा है। इस कारण धातुओं की मांग बढऩे पर इनकी कीमतों में तेजी के आसार है।रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष तांबे की वैश्विक खपत 8 फीसदी बढ़कर 189 लाख टन, एल्युमीनियम 12 फीसदी बढ़कर 393 लाख टन, सीसे की खपत 8।3 फीसदी बढ़कर 93.37 लाख टन, जस्ता की खपत 8.अंतरराष्ट्रीय बाजार में धातुओं के दाम भी तेज रहने की संभावना है। इस साल लंदन मेटल एक्सचेंज में तांबे के दाम करीब 40 फीसदी बढ़कर 7,230 डॉलर, एल्युमीनियम के दाम 28.8 फीसदी बढ़कर 2,148 डॉलर, निकल के दाम 42.8 फीसदी बढ़कर 20,995 डॉलर , सीसा के दाम 18.3 फीसदी बढ़कर 2,041 डॉलर ,जस्ता के दाम 27.4 फीसदी 2,114 डॉलर और टिन के दाम 34.3 फीसदी बढ़कर 18,250 डॉलर प्रति टन रहने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निकल के स्टॉक में लगातार गिरावट आ रही है। इस वजह से भी इसकी कीमतों में तेजी को बल मिल सकता है। रिपोर्ट के अनुसार लंबे समय के लिए वित्तीय समझौतों को एल्युमीनियम की मांग पर सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। धातुओं के कारोबार के बारे में ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता का कहना है कि चालू वर्ष के शुरूआती तीन माह के दौरान इनकी वैश्विक मांग बढऩे के कारण कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन अप्रैल में यूरोप आर्थिक संकट की वजह से इनके दाम नीचे गए थे। अब वैश्विक इक्विटी बाजार तेज होने के कारण धातुओं की कीमतों में सुधार हो रहा है। (बीएस हिंदी)
31 जुलाई 2010
पंजाब में इस वर्ष बेहतर रह सकती है कपास की फसल
चंडीगढ़ July 30, 2010
कुछ इलाकों में बाढ़ और फसलों को हुए नुकसान के बावजूद पंजाब को मौजूदा खरीफ के मौसम में बेहतर पैदावार की उम्मीद है। धान (बासमती) की रोपाई जोरों पर है और यह अगस्त के मध्य तक चलेगी। गैर-बासमती धान को 30 जून तक बोया जाता है, क्योंकि इसके बाद रोपाई करने पर फसलें कमजोर पड़ जाती हैं। धान को अनुमानत: 28।02 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोया जाना है। पंजाब के कृषि विभाग के मुताबिक वर्ष 2009-10 में कुल धान उत्पादन 1.12 करोड़ टन रहा, जबकि इसके इस साल 1.08 करोड़ टन रहने के उम्मीद है।पंजाब के कृषि मंत्री सच्चा सिंह लंघा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि मॉनसून के कारण हो रही भारी बरसात से इस साल 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र के किसानों पर मुसीबत आई है। लेकिन राज्य सरकार ने किसानों लिए धान नर्सरियां उपलब्ध करवाई हैं। जिन स्थानों पर पानी घटा है, वहां फिर से रोपाई का काम शुरू हो गया है। धान के अंतिम उत्पादन का झुकाव बासमती की ओर हो सकता है, क्योंकि यह देर से बोई जाने वाली किस्म है। गैर-बासमती फसलों को हुए नुकसान की भरपाई बासमती से हो जाएगी। बाढ़ प्रभावित इलाकों में तोरिया और मक्का भी विकल्प के तौर पर उगाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि गिरदावरी अभी पूरी नहीं हुई है इसलिए किसी तथ्यात्मक रिपोर्ट के बारे में बात करना फिलहाल जल्दबाजी होगी। इस मौसम में राज्य में औसत बरसात 660 मिमी रही है और अब तक यह सामान्य है। सिंचाई व्यवस्था ढह जाने सेयह बाढ़ आई। सिर्फ बरसात ही बाढ़ का कारण नहीं है। कपास को अनुमानत: 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है। यह पिछले साल से 40,000 हेक्टेयर ज्यादा होगा। इसका उत्पादन 25 लाख बेल (एक बेल में 170 किलोग्राम होते हैं) तक पहुंच सकता है। पिछले साल के उत्पादन से यह 20 फीसदी ज्यादा हो सकती है। पिछले साल के मुकाबले मक्के में 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य ने पिछले साल 4.52 लाख टन मक्के का उत्पादन किया था। राज्य के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए 10,000 रुपये प्रति एकड़ का हर्जाना चाहा है। आपदा राहत कोष के नियमों के मुताबिक अगर किसी फसल का नुकसान 50 फीसदी से ज्यादा है तो उसे प्रति एकड़ 1,600 रुपये का हर्जाना दिया जाता है। (बीएस हिंदी)
कुछ इलाकों में बाढ़ और फसलों को हुए नुकसान के बावजूद पंजाब को मौजूदा खरीफ के मौसम में बेहतर पैदावार की उम्मीद है। धान (बासमती) की रोपाई जोरों पर है और यह अगस्त के मध्य तक चलेगी। गैर-बासमती धान को 30 जून तक बोया जाता है, क्योंकि इसके बाद रोपाई करने पर फसलें कमजोर पड़ जाती हैं। धान को अनुमानत: 28।02 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोया जाना है। पंजाब के कृषि विभाग के मुताबिक वर्ष 2009-10 में कुल धान उत्पादन 1.12 करोड़ टन रहा, जबकि इसके इस साल 1.08 करोड़ टन रहने के उम्मीद है।पंजाब के कृषि मंत्री सच्चा सिंह लंघा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि मॉनसून के कारण हो रही भारी बरसात से इस साल 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र के किसानों पर मुसीबत आई है। लेकिन राज्य सरकार ने किसानों लिए धान नर्सरियां उपलब्ध करवाई हैं। जिन स्थानों पर पानी घटा है, वहां फिर से रोपाई का काम शुरू हो गया है। धान के अंतिम उत्पादन का झुकाव बासमती की ओर हो सकता है, क्योंकि यह देर से बोई जाने वाली किस्म है। गैर-बासमती फसलों को हुए नुकसान की भरपाई बासमती से हो जाएगी। बाढ़ प्रभावित इलाकों में तोरिया और मक्का भी विकल्प के तौर पर उगाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि गिरदावरी अभी पूरी नहीं हुई है इसलिए किसी तथ्यात्मक रिपोर्ट के बारे में बात करना फिलहाल जल्दबाजी होगी। इस मौसम में राज्य में औसत बरसात 660 मिमी रही है और अब तक यह सामान्य है। सिंचाई व्यवस्था ढह जाने सेयह बाढ़ आई। सिर्फ बरसात ही बाढ़ का कारण नहीं है। कपास को अनुमानत: 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है। यह पिछले साल से 40,000 हेक्टेयर ज्यादा होगा। इसका उत्पादन 25 लाख बेल (एक बेल में 170 किलोग्राम होते हैं) तक पहुंच सकता है। पिछले साल के उत्पादन से यह 20 फीसदी ज्यादा हो सकती है। पिछले साल के मुकाबले मक्के में 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य ने पिछले साल 4.52 लाख टन मक्के का उत्पादन किया था। राज्य के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए 10,000 रुपये प्रति एकड़ का हर्जाना चाहा है। आपदा राहत कोष के नियमों के मुताबिक अगर किसी फसल का नुकसान 50 फीसदी से ज्यादा है तो उसे प्रति एकड़ 1,600 रुपये का हर्जाना दिया जाता है। (बीएस हिंदी)
धान, दलहन के बुवाई एरिया में भारी बढ़त
चालू खरीफ में धान की रोपाई में 20।39 लाख हैक्टेयर और दलहन की बुवाई में 11.91 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार धान की रोपाई पिछले साल की समान अवधि के 191.93 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 212.32 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। दलहन की बुवाई 87.36 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 75.45 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। दलहनों की बुवाई में बढ़ोतरी सरकार के साथ ही उपभोक्ताओं को भी राहत देगी। खरीफ दलहनों में अरहर, उड़द और मूंग का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ा है। अरहर की बुवाई 33.60 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 27.25 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। इसी तरह से उड़द की बुवाई भी पिछले साल के 15.65 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 16.62 लाख हैक्टेयर में और मूंग की बुवाई 19.71 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 22.23 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई तो घटी है लेकिन मक्का और बाजरा की बढ़ी है। बढ़ सकता है चावल उत्पादन : कृषि सचिव नई दिल्ली चालू सीजन में अच्छी मानसूनी बारिश होने के कारण देश में चावल का उत्पादन 10 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना है। पिछले साल चावल का उत्पादन घटकर 8.91 करोड़ टन रह गया था। मानसूनी बारिश की कमी के कारण चावल उत्पादन में कमी आई थी। कृषि सचिव पी. के. बसु ने संवाददाताओं को बताया कि अगस्त और सितंबर में अच्छी बारिश की संभावना है। खरीफ सीजन के अलावा रबी में कुछ इलाकों में चावल की खेती होती है। ऐसे में इस साल चावल उत्पादन 10 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। मौजूदा सीजन में धान का बुवाई एरिया 12 लाख हैक्टेयर बढ़कर 169.71 लाख हैक्टेयर हो गया है। (बिज़नस भास्कर)
हरियाणा में धान, कपास का रकबा घटा
चंडीगढ़ July 30, 2010
हरियाणा में इस वर्ष अब भी बढ़ की स्थिति बनी हुई है, लेकिन हो सकता है कि यहां के किसान पिछले वर्ष की तरह इस बार देश के खाद्यान्न भंडार में योगदान न दे पाएं।राज्य की एजेंसियों की ओर से समग्र उपाय किए जाने के बावजूद मौजूदा खरीफ सीजन के दौरान धान के रकबे में निर्धारित लक्ष्य से 50,000 एकड़ की कमी आ सकती है।हरियाणा में गैर बासमती धान की उत्पादकता 55-60 क्विंटल है। इस हिसाब से इसके फसल में इस बार तकरीबन 2,75,000 टन की गिरावट आने का अनुमान है। इसके अलावा बाढ़ के पानी के जमाव क्षेत्र में आए गैर बासमती धन की फसल की जगह बासमति धान की फसल लगाई गई है। इस वजह से भी प्रदेश में गैर बासमती धान के उत्पादन में गिरावट आएगी।कृषि विभाग के परंपरागत अनुमान के मुताबिक हरियाणा में धान का 2,94,000 हेक्टेयर रकबा, कपास का 9,000 हेक्टेयर रकबा और 35,600 हेक्टेयर खेत में लगी चारे की फसलों को क्षति पहुंची है। बाढ़ की वजह से फसलों को होने वाले नुकसान का सही आकलन राजस्व विभाग की ओर से वास्तविक गिरदवारी किए जाने के बाद ही होगा, जिसमें खेत-दर-खेत सर्वेक्षण शामिल है।हरियाणा के कृषि निदेशक ए के यादव के मुताबिक मौजूदा खरीफ सीजन के दौरान प्रदेश में धान के 11।5 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य रखा गया था, जिसके 11 लाख हेक्टेयर तक सीमित रहने की आशंका जताई जा रही है। पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करने पर धान के रकबे में लगभग 1,05,000 हेक्टेयर की गिरावट आ सकती है और इस वजह से पिछले साल की तुलना में करीब 5 लाख टन उत्पादन गिरने का अंदेशा है। हरियाणा के कृषि मंत्री परमवीर सिंह ने कहा, 'फिलहाल फसलों के नुकसान का अंदाजा लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि हम धान के पौधों का बेहतर स्तर बनाए रखने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और किसानों को धान के खेतों में सीधे-सीधे बीज बोने के लिए उत्साहित करने के वास्ते उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं।' उन्होंने बताया कि खेतों में सीधे-सीधे बीज बोने से कम पानी की जरूरत होगी और फसल पकने में समय भी कम लगेगा।हरियाणा की दूसरी सबसे प्रमुख खरीफ फसल कपास है और आशंका जताई जा रही है कि इसका उत्पादन भी उम्मीद से कम होगा। कपास का रकबा इस वर्ष 4.5 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष इस फसल का रकबा 5.1 लाख हेक्टेयर था। तकरीबन 9,000 हेक्टेयर खेत की फसल इस बार बाढ़ के चपेट में आ गई है। मोटे अनुमान के मुताबिक इस वजह से कपास के उत्पादन में 1,90,000 गांठों की कमी आएगी।उल्लेखनीय है कि हरियाणा में इस वर्ष 9.8 लाख हेक्टेयर खेत में धान की बुआई हुई है, जबकि लक्ष्य 11.5 लाख हेक्टेयर रखा गया था। यह प्रक्रिया 10 अगस्त तक चलेगी हालांकि कपास की बुआई मई या जून तक पूरी होगी। (बीएस हिंदी)
हरियाणा में इस वर्ष अब भी बढ़ की स्थिति बनी हुई है, लेकिन हो सकता है कि यहां के किसान पिछले वर्ष की तरह इस बार देश के खाद्यान्न भंडार में योगदान न दे पाएं।राज्य की एजेंसियों की ओर से समग्र उपाय किए जाने के बावजूद मौजूदा खरीफ सीजन के दौरान धान के रकबे में निर्धारित लक्ष्य से 50,000 एकड़ की कमी आ सकती है।हरियाणा में गैर बासमती धान की उत्पादकता 55-60 क्विंटल है। इस हिसाब से इसके फसल में इस बार तकरीबन 2,75,000 टन की गिरावट आने का अनुमान है। इसके अलावा बाढ़ के पानी के जमाव क्षेत्र में आए गैर बासमती धन की फसल की जगह बासमति धान की फसल लगाई गई है। इस वजह से भी प्रदेश में गैर बासमती धान के उत्पादन में गिरावट आएगी।कृषि विभाग के परंपरागत अनुमान के मुताबिक हरियाणा में धान का 2,94,000 हेक्टेयर रकबा, कपास का 9,000 हेक्टेयर रकबा और 35,600 हेक्टेयर खेत में लगी चारे की फसलों को क्षति पहुंची है। बाढ़ की वजह से फसलों को होने वाले नुकसान का सही आकलन राजस्व विभाग की ओर से वास्तविक गिरदवारी किए जाने के बाद ही होगा, जिसमें खेत-दर-खेत सर्वेक्षण शामिल है।हरियाणा के कृषि निदेशक ए के यादव के मुताबिक मौजूदा खरीफ सीजन के दौरान प्रदेश में धान के 11।5 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य रखा गया था, जिसके 11 लाख हेक्टेयर तक सीमित रहने की आशंका जताई जा रही है। पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करने पर धान के रकबे में लगभग 1,05,000 हेक्टेयर की गिरावट आ सकती है और इस वजह से पिछले साल की तुलना में करीब 5 लाख टन उत्पादन गिरने का अंदेशा है। हरियाणा के कृषि मंत्री परमवीर सिंह ने कहा, 'फिलहाल फसलों के नुकसान का अंदाजा लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि हम धान के पौधों का बेहतर स्तर बनाए रखने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और किसानों को धान के खेतों में सीधे-सीधे बीज बोने के लिए उत्साहित करने के वास्ते उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं।' उन्होंने बताया कि खेतों में सीधे-सीधे बीज बोने से कम पानी की जरूरत होगी और फसल पकने में समय भी कम लगेगा।हरियाणा की दूसरी सबसे प्रमुख खरीफ फसल कपास है और आशंका जताई जा रही है कि इसका उत्पादन भी उम्मीद से कम होगा। कपास का रकबा इस वर्ष 4.5 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष इस फसल का रकबा 5.1 लाख हेक्टेयर था। तकरीबन 9,000 हेक्टेयर खेत की फसल इस बार बाढ़ के चपेट में आ गई है। मोटे अनुमान के मुताबिक इस वजह से कपास के उत्पादन में 1,90,000 गांठों की कमी आएगी।उल्लेखनीय है कि हरियाणा में इस वर्ष 9.8 लाख हेक्टेयर खेत में धान की बुआई हुई है, जबकि लक्ष्य 11.5 लाख हेक्टेयर रखा गया था। यह प्रक्रिया 10 अगस्त तक चलेगी हालांकि कपास की बुआई मई या जून तक पूरी होगी। (बीएस हिंदी)
30 जुलाई 2010
उपलब्धता बढऩे से सस्ती हो सकती हैं दालें
आयात बढऩे के साथ ही घरेलू फसल आने से दालों की ऊंची कीमतों से उपभोक्ताओं को राहत मिलने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक कंपनियों ने अभी तक 2.35 लाख टन दलहन के आयात सौदे किए हैं। आयातित दालों के दाम पिछले चार महीने में करीब 100 से 350 डॉलर प्रति टन तक घट चुके हैं। घरेलू बाजार में मूंग की आवक शुरू हो चुकी है आगामी दिनों में उड़द की फसल आ जाएगी। इसलिए दालों की फुटकर कीमतें आगामी दिनों में घट जाएगी। सूत्रों के अनुसार चालू वित्त में सार्वजनिक कंपनियों एसटीसी, एमएमटीसी, पीईसी और नेफेड ने 2.35 लाख टन दलहन के आयात सौदे किए हैं तथा इसमें से केवल 61 हजार दालें ही अभी भारतीय बंदरगाह पर पहुंची है। आगामी दिनों में बाकि बची हुई 1.74 लाख टन दालें पहुंच जाएंगी। वैसे भी पिछले तीन महीने में चूंकि आयातित दालों की कीमतों में करीब 100 से 350 डॉलर प्रति टन की गिरावट आ चुकी है इसीलिए सार्वजनिक कंपनियों के साथ ही प्राइवेट कंपनियों के आयात सौदों में तेजी की उम्मीद है। अभी तक हुए कुल आयात सौदों में पीईसी की भागीदारी 70 फीसदी है। पीईसी ने 1.63 लाख टन के आयात सौदे किए हैं तथा इसमें 49,051 हजार टन दालें ही भारत पहुंची है। एमएमटीसी ने 29 हजार टन, नेफेड ने 27 हजार टन और एसटीसी ने 16 हजार टन के आयात सौदे किए हैं। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के डायरेक्टर एस. बी. बंदेवार ने बताया कि मूंग पेड़ीसेवा के दाम अप्रैल में बढ़कर 1,600 डॉलर प्रति टन हो गए थे जो इस समय घटकर 1,250 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। लेमन अरहर के दाम भी इस दौरान 1,100 डॉलर से घटकर 805 डॉलर, उड़द के दाम 1,150-1,250 डॉलर से घटकर 1050-1150 डॉलर प्रति टन रह गए। लाल मसूर के दाम भी इस दौरान 100 डॉलर घटकर 760 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। गुलबर्गा के दलहन व्यापारी चंद्रशेखर एस. नाडर ने बताया कि आयातित दालों की कीमतों में आई गिरावट का असर घरेलू बाजार में दलहन की थोक कीमतों में पड़ा है। पिछले तीन महीनों में मूंग की कीमतें उत्पादक मंडियों में 6000-6,200 रुपये से घटकर 4,800-5,400 रुपये, अरहर की कीमतों में 4,800-4,900 रुपये से घटकर 3,700-3,900 रुपये, मसूर की कीमतें 3,925-4000 रुपये से घटकर 3,300-3,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। हालांकि उड़द के 5,000-5,300 रुपये प्रति क्विंटल ही चल रहे हैं लेकिन आगामी दिनों में इसमें भी गिरावट आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार दलहन की बुवाई बढ़कर चालू खरीफ में 57.23 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के 50.55 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है।बात पते कीपीएसयू ने 2.35 लाख टन दलहन के आयात सौदे किए हैं। इसमें से 61 हजार दालें ही बंदरगाह पर पहुंची है। बाकी 1.74 लाख टन दालें जल्द पहुंच जाएंगी। प्राइवेट आयात भी तेज हो सकता है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
त्यौहारी मांग निकलने से गुड़ में तेजी
त्यौहारी मांग निकलने से गुड़ के भाव में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले पंद्रह दिनों में हाजिर में गुड़ की कीमतों में करीब पांच और वायदा बाजार में 7।5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। प्रमुख खपत राज्यों राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की अच्छी मांग बनी हुई है। हालांकि मुजफ्फरनगर में गुड़ का स्टॉक पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 2.50 लाख कट्टे (प्रति कट्टा 40 किलो) ज्यादा है लेकिन खपत राज्यों में स्टॉक कम है। इसीलिए आगामी दिनों में इसकी मौजूदा कीमतों में और भी पांच-सात फीसदी की तेजी आने की संभावना है। फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि खपत राज्यों में स्टॉक कम है। अगस्त महीने में त्यौहारी सीजन शुरू हो जाएगा इसीलिए इस समय राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की अच्छी मांग बनी हुई है। जिससे तेजी को बल मिल रहा है। प्रमुख उत्पादक मंडी मुजफ्फरनगर में गुड़ का स्टॉक 10.25 लाख कट्टों का बचा हुआ है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 2.25 लाख कट्टे ज्यादा है। पिछले साल की समान अवधि में 7.75 लाख कट्टों का स्टॉक था। गुड़ के थोक कारोबारी हरिशंकर मूंदड़ा ने बताया कि पिछले पंद्रह दिनों में गुड़ की कीमतों में करीब 50-60 रुपये प्रति 40 किलो की तेजी आकर गुड़ चाकू के भाव 1,040-1,070 रुपये प्रति 40 किलो हो गए। इस दौरान रसकट गुड़ के भाव बढ़कर 1,010-1,030 रुपये प्रति 40 किलो हो गए। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत का गुड़ आने से गुजरात की मांग पहले की तुलना में कम हुई है लेकिन राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की मांग बढ़ गई है। अच्छी मांग को देखते हुए आगामी दिनों में इसकी मौजूदा कीमतों में और भी 100-150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। दिल्ली के गुड़ व्यापारी देशराज ने बताया कि थोक बाजार में इस दौरान गुड़ की कीमतों में करीब 125-150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। गुरुवार को गुड़ चाकू के भाव बढ़कर 2900-2950 रुपये और पेड़ी के भाव 3050 से 3100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उन्होंने बताया कि पिछले साल चीनी के मुकाबले गुड़ का दाम ज्यादा था, लेकिन इस समय गुड़ और चीनी के भाव लगभग एक समान ही चल रहे हैं। हाजिर बाजार में आई तेजी का असर वायदा बाजार में भी गुड़ की कीमतों पर देखा जा रहा है। पिछले पंद्रह दिनों में एनसीडीईएक्स पर गुड़ की कीमतों में करीब 7.5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एनसीडीईएक्स पर सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में 14 जुलाई को गुड़ का भाव 944 रुपये प्रति 40 किलो था जो गुरुवार को बढ़कर 1,015 रुपये प्रति 40 किलो हो गया। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
तैयार हो जाइए...चीनी के दाम बढ़ेंगे
त्यौहारों का मौसम आते ही चीनी के भाव बढ़ने जा रहे हैं। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि इसकी मांग बढ़ रही है और जमाखोरी भी। बताया जा रहा है कि त्यौहारों के मौसम को देखकर जमाखोर सक्रिय हो गए हैं। और उन्होंने दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हजारो टन चीनी दबा कर रख ली है। उधर चीनी मिलों ने अपनी कीमतें 3% बढ़ाने की घोषणा कर दी है।
दिलचस्प बात ये है कि बेहतर मॉनसून के कारण गन्ने की फसल अच्छी होने की संभावना है और भारत सरकार भी खुले बाजार में बेचने के लिए 19।2 लाख टन चीनी जारी करने जा रही है। लेकिन दूसरी ओर सरकार चीनी के आयात पर लेवी लगाने जा रही है। जिसे उसने पिछले साल हटा दिया था। इससे आगे स्थिति बिगाड-देगी क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में चीनी के दाम बढ़ने लगे हैं। इस समय सारी दुनिया में चीनी की मांग में दो प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है रमजान नजदीक होने के कारण दुनियाभर के इस्लामी मुल्कों में चीनी की मांग दोगुनी हो गई है। जिससे चीनी के अंतरराष्ट्रीय दाम बढ़ने की पूरी संभावना है। इस समय दिल्ली के थोक बाजार में चीनी 27,00 रुपए प्रति क्विंटल बिक रही है। और आगे ये 3,000 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ सकती है जिसका असर खुदरा बाजार की कीमतों पर भी पड़ेगा। खुदरा बाजार में चीनी 5 रुपए प्रति किलो तक महंगी हो सकती है। (बिज़नस भास्कर)
दिलचस्प बात ये है कि बेहतर मॉनसून के कारण गन्ने की फसल अच्छी होने की संभावना है और भारत सरकार भी खुले बाजार में बेचने के लिए 19।2 लाख टन चीनी जारी करने जा रही है। लेकिन दूसरी ओर सरकार चीनी के आयात पर लेवी लगाने जा रही है। जिसे उसने पिछले साल हटा दिया था। इससे आगे स्थिति बिगाड-देगी क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में चीनी के दाम बढ़ने लगे हैं। इस समय सारी दुनिया में चीनी की मांग में दो प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है रमजान नजदीक होने के कारण दुनियाभर के इस्लामी मुल्कों में चीनी की मांग दोगुनी हो गई है। जिससे चीनी के अंतरराष्ट्रीय दाम बढ़ने की पूरी संभावना है। इस समय दिल्ली के थोक बाजार में चीनी 27,00 रुपए प्रति क्विंटल बिक रही है। और आगे ये 3,000 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ सकती है जिसका असर खुदरा बाजार की कीमतों पर भी पड़ेगा। खुदरा बाजार में चीनी 5 रुपए प्रति किलो तक महंगी हो सकती है। (बिज़नस भास्कर)
टायरों के दाम और बढऩे के आसार
कोच्चि July 29, 2010
टायरों के दाम में और तेजी की उम्मीद बन रही है। दरअसल रबर की कीमतें प्रतिदिन नई ऊंचाइयां छू रही हैं। अपोलो टायर्स के चेयरमैन ओंकार एस कंवर ने कहा कि रबर की कीमतें सिर्फ 12 महीने में करीब 150 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। ऐसे में टायर उद्योग को कीमतों में तेजी से तालमेल बिठाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है। चालू साल में टायर की कीमतें तीन बार बढ़ी हैं। इसके चलते टायर 10-12 प्रतिशत महंगे हुए हैं। कंवर ने कहा कि रिप्लेसमेंट सेग्मेंट में अपोलो टायर्स ने कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। अब उपभोक्ताओं पर बोझ डालने से बचना बहुत कठिन साबित हो रहा है। कंपनी ने अभी तक कोई निश्चित फैसला नहीं किया है कि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ कब तक सहा जाए। टायर विनिर्माण क्षेत्र अब गंभीरता से इस मसले पर विचार कर रहा है कि ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (ओईएम) सेग्मेंट में कीमतें बढ़ाई जाएं। इसकी वजह है कि मुनाफा अब नकारात्मक क्षेत्र में जा रहा है। साथ ही ऑटोमोबाइल निर्माता भी अब मजबूरियां समझ रहे हैं और पहले के सौदों के पूरा होने के बाद से कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में जान रहे हैं।कंवर ने कहा, 'वर्तमान स्थिति में हम और नुकसान नहीं उठा सकते। हम इस मसले पर विभिन्न ऑटोमोबाइल कंपनियों से बातचीत कर रहे हैं। उन्हें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्राकृतिक रबर की कीमतों में बढ़ोतरी का टायर उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है।'अपोलो टायर्स ने 2009-10 में ओईएम सेग्मेंट से कुल राजस्व का 15 प्रतिशत हासिल किया था। प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेजी की वजह से कंपनी की वित्त वर्ष 11 के तिमाही परिणामों पर बुरा असर पड़ा है। कंवर ने कहा कि संपनी आने वाले दिनों में भारत और विदेश में विस्तार के लिए योजनाएं बना रही है। कंपनी चालू वित्त वर्ष में भारत में 700 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इसमें से चेन्नई की ग्रीनफील्ड परियोजना में 300 करोड़ रुपये और केरल के पेराम्ब्रा में 200 करोड़ रुपये और बड़ौदा संयंत्र पर 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। अपोलो अन्य आसियान देशों में भी संचालन शुरू करने पर विचार कर रही है। कंपनी ने विदेश में निवेश के लिए भी योजनाएं बनाई है। दक्षिण अफ्रीका में अपनी सहायक कंपनी अपोलो टायर्स साउथ अफ्रीका (पहले डनलप टायर्स) के माध्यम से 300 लाख अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना है। कंपनी की वहां 4 विनिर्माण इकाइयां हैं। विस्तार योजना के तहत कंपनी नीदरलैंड की अपोलो व्रेडेंस्टियन के माध्यम से चालू वित्त वर्ष में 60 लाख यूरो का निवेश करेगी।भारत की टायर कंपनी ने मई 2009 में नीदरलैंड की व्रेडेंस्टियन बैंडेन बीवी का अधिग्रहण किया था। कंपनी का वित्त वर्ष 2009-10 में पूंजी पर कुल खर्च 7।9 अरब डॉलर रहा और कुल उत्पादन 1190 टन रोजाना रहा। (बीएस हिंदी)
टायरों के दाम में और तेजी की उम्मीद बन रही है। दरअसल रबर की कीमतें प्रतिदिन नई ऊंचाइयां छू रही हैं। अपोलो टायर्स के चेयरमैन ओंकार एस कंवर ने कहा कि रबर की कीमतें सिर्फ 12 महीने में करीब 150 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। ऐसे में टायर उद्योग को कीमतों में तेजी से तालमेल बिठाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है। चालू साल में टायर की कीमतें तीन बार बढ़ी हैं। इसके चलते टायर 10-12 प्रतिशत महंगे हुए हैं। कंवर ने कहा कि रिप्लेसमेंट सेग्मेंट में अपोलो टायर्स ने कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। अब उपभोक्ताओं पर बोझ डालने से बचना बहुत कठिन साबित हो रहा है। कंपनी ने अभी तक कोई निश्चित फैसला नहीं किया है कि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ कब तक सहा जाए। टायर विनिर्माण क्षेत्र अब गंभीरता से इस मसले पर विचार कर रहा है कि ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (ओईएम) सेग्मेंट में कीमतें बढ़ाई जाएं। इसकी वजह है कि मुनाफा अब नकारात्मक क्षेत्र में जा रहा है। साथ ही ऑटोमोबाइल निर्माता भी अब मजबूरियां समझ रहे हैं और पहले के सौदों के पूरा होने के बाद से कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में जान रहे हैं।कंवर ने कहा, 'वर्तमान स्थिति में हम और नुकसान नहीं उठा सकते। हम इस मसले पर विभिन्न ऑटोमोबाइल कंपनियों से बातचीत कर रहे हैं। उन्हें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्राकृतिक रबर की कीमतों में बढ़ोतरी का टायर उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है।'अपोलो टायर्स ने 2009-10 में ओईएम सेग्मेंट से कुल राजस्व का 15 प्रतिशत हासिल किया था। प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेजी की वजह से कंपनी की वित्त वर्ष 11 के तिमाही परिणामों पर बुरा असर पड़ा है। कंवर ने कहा कि संपनी आने वाले दिनों में भारत और विदेश में विस्तार के लिए योजनाएं बना रही है। कंपनी चालू वित्त वर्ष में भारत में 700 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इसमें से चेन्नई की ग्रीनफील्ड परियोजना में 300 करोड़ रुपये और केरल के पेराम्ब्रा में 200 करोड़ रुपये और बड़ौदा संयंत्र पर 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। अपोलो अन्य आसियान देशों में भी संचालन शुरू करने पर विचार कर रही है। कंपनी ने विदेश में निवेश के लिए भी योजनाएं बनाई है। दक्षिण अफ्रीका में अपनी सहायक कंपनी अपोलो टायर्स साउथ अफ्रीका (पहले डनलप टायर्स) के माध्यम से 300 लाख अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना है। कंपनी की वहां 4 विनिर्माण इकाइयां हैं। विस्तार योजना के तहत कंपनी नीदरलैंड की अपोलो व्रेडेंस्टियन के माध्यम से चालू वित्त वर्ष में 60 लाख यूरो का निवेश करेगी।भारत की टायर कंपनी ने मई 2009 में नीदरलैंड की व्रेडेंस्टियन बैंडेन बीवी का अधिग्रहण किया था। कंपनी का वित्त वर्ष 2009-10 में पूंजी पर कुल खर्च 7।9 अरब डॉलर रहा और कुल उत्पादन 1190 टन रोजाना रहा। (बीएस हिंदी)
त्योहारी मांग से बढ़ा सोने का आयात
मुंबई July 29, 2010
भारत में सोने के निर्यात में साल के पहले 7 महीनों के दौरान 7।79 प्रतिशत की तेजी आई है। इस साल जुलाई महीने तक सोने के आयात में सुधार की प्रमुख वजह खुदरा उपभोक्ताओं की विभिन्न अवसरों पर खरीद और त्योहारी मौसम है। कीमतों में लगातार तेजी के चलते व्यक्तिगत निवेशकों और फंड प्रबंधकों ने सोने में रुचि दिखाई। आर्थिक अनिश्चितता के चलते सुरक्षित निवेश की तलाश में निवेशकों ने सोने में भरोसा दिखाया है। चालू कैलेंडर वर्ष के पहले 7 महीनों के दौरान सोने की कुल आपूर्ति 171.6 टन रही। वहीं पिछले साल की समान अवधि में सोने की आपूर्ति 159.2 टन थी। सोने को हमेशा निवेश के लिहाज से सुरक्षित माना जाता है और इसकी कीमतें डॉलर के विपरीत दिशा में चलती हैं। उद्योग जगत के अनुमान के मुताबिक जुलाई महीने में सोने का आयात 16 टन रहा, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 44 प्रतिशत कम था। जुलाई 2009 में सोने का रिकॉर्ड 28.4 टन आयात हुआ था, जब वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सुधार हो रहा था और निवेशक कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद में सोने में निवेश कर रहे थे। उस समय मुंबई में सोने की कीमतें 15000 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं।जून महीने में सोने का आयात गिरकर 6 माह के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया और कुल 13.8 टन सोने का आयात हुआ। इस दौरान मांग को लेकर उत्साह नहीं रहा, क्योंकि कोई भी त्योहार या वैवाहिक कार्यक्रम इन दिनों नहीं चल रहा था। बांबे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने कहा, 'कीमतों के उच्च स्तर पर स्थिर हो जाने के बाद पिछले महीने में आयात में सुधार आया। हमारा अनुमान है कि जुलाई महीने में सोने का कुल आयात 15-16 टन से ज्यादा नहीं होगा।'लीमन ब्रदर्स के सितंबर 2008 में धराशायी होने के बाद से उठे आर्थिक तूफान के बाद से सोने की वैश्विक मांग गिर गई थी और निवेशक किसी भी संपत्ति में निवेश करने की तुलना में नकद धनराशि रखना ज्यादा पसंद करते थे। इसी क्रम में भारत में भी सोने के आयात में कमी आई। 2009 की पहली तिमाही में सोने का आयात घटकर एक अंक में रह गया। इस तरह से 2009 में सोने के आयात में 19 प्रतिशत की गिरावट आई और 2008 में हुए 420 टन आयात की तुलना में 2009 में आयात घटकर 339.8 टन रह गया। बहरहाल वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने भविष्यवाणी की है कि 2010 की दूसरी छमाही में भारत में सोने की जोरदार मांग रहेगी। (बीएस हिंदी)
भारत में सोने के निर्यात में साल के पहले 7 महीनों के दौरान 7।79 प्रतिशत की तेजी आई है। इस साल जुलाई महीने तक सोने के आयात में सुधार की प्रमुख वजह खुदरा उपभोक्ताओं की विभिन्न अवसरों पर खरीद और त्योहारी मौसम है। कीमतों में लगातार तेजी के चलते व्यक्तिगत निवेशकों और फंड प्रबंधकों ने सोने में रुचि दिखाई। आर्थिक अनिश्चितता के चलते सुरक्षित निवेश की तलाश में निवेशकों ने सोने में भरोसा दिखाया है। चालू कैलेंडर वर्ष के पहले 7 महीनों के दौरान सोने की कुल आपूर्ति 171.6 टन रही। वहीं पिछले साल की समान अवधि में सोने की आपूर्ति 159.2 टन थी। सोने को हमेशा निवेश के लिहाज से सुरक्षित माना जाता है और इसकी कीमतें डॉलर के विपरीत दिशा में चलती हैं। उद्योग जगत के अनुमान के मुताबिक जुलाई महीने में सोने का आयात 16 टन रहा, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 44 प्रतिशत कम था। जुलाई 2009 में सोने का रिकॉर्ड 28.4 टन आयात हुआ था, जब वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सुधार हो रहा था और निवेशक कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद में सोने में निवेश कर रहे थे। उस समय मुंबई में सोने की कीमतें 15000 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं।जून महीने में सोने का आयात गिरकर 6 माह के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया और कुल 13.8 टन सोने का आयात हुआ। इस दौरान मांग को लेकर उत्साह नहीं रहा, क्योंकि कोई भी त्योहार या वैवाहिक कार्यक्रम इन दिनों नहीं चल रहा था। बांबे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने कहा, 'कीमतों के उच्च स्तर पर स्थिर हो जाने के बाद पिछले महीने में आयात में सुधार आया। हमारा अनुमान है कि जुलाई महीने में सोने का कुल आयात 15-16 टन से ज्यादा नहीं होगा।'लीमन ब्रदर्स के सितंबर 2008 में धराशायी होने के बाद से उठे आर्थिक तूफान के बाद से सोने की वैश्विक मांग गिर गई थी और निवेशक किसी भी संपत्ति में निवेश करने की तुलना में नकद धनराशि रखना ज्यादा पसंद करते थे। इसी क्रम में भारत में भी सोने के आयात में कमी आई। 2009 की पहली तिमाही में सोने का आयात घटकर एक अंक में रह गया। इस तरह से 2009 में सोने के आयात में 19 प्रतिशत की गिरावट आई और 2008 में हुए 420 टन आयात की तुलना में 2009 में आयात घटकर 339.8 टन रह गया। बहरहाल वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने भविष्यवाणी की है कि 2010 की दूसरी छमाही में भारत में सोने की जोरदार मांग रहेगी। (बीएस हिंदी)
घरेलू विस्तार के साथ एनएमडीसी की नजर विदेशी कच्चे माल पर
July 29, 2010
देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क उत्पादक कंपनी एनएमडीसी इस समय विस्तार की राह पर है। इसमें विस्तार योजनाएं और विलय तथा अधिग्रहण शामिल है। तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था में निर्माण क्षेत्र, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में स्टील की मांग बढऩे के साथ लौह अयस्क की जरूरतें बढ़ रही हैं। इस सिलसिले में एनएमडीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राणा सोम ने ईशिता आयान दत्त से विस्तार से बातचीत की। पेश हैं खास अंश...राणा सोम, चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, एनएमडीसीएनएमडीसी इस समय वैश्विक कारोबार पर ध्यान देती नजर आ रही है। आपका ध्यान किन प्रमुख क्षेत्रों पर है?हमने विदेशी संपत्ति का अधिग्रहण करने की कोशिश तेज कर दी है। न सिर्फ कंपनी के हित में, बल्कि कच्चे माल की देश की दीर्घावधि जरूरतों को देखते हुए भी हम काम कर रहे हैं। हम दो क्षेत्रों में काम कर रहे हैं- पहला कोकिंग कोल, जो स्टील उद्योग के लिए बहुत जरूरी कच्चा माल है, दूसरा लौह अयस्क। क्या एनएमडीसी के पास पर्याप्त लौह अयस्क नहीं है?हमारे पास सिर्फ बेलाडिला खदान में ही 1।5 अरब टन का लौह अयस्क का भंडार है। पिछले 4 महीने के अध्ययन में अपनी क्षमता में हमने 61.1 करोड़ टन का भंडार और जोड़ा है। यह दुनिया का सबसे बेहतरीन गुणवत्ता वाला लौह अयस्क है। लेकिन स्टील की क्षमता बढ़कर 20 करोड़ टन हो गई है, जिससे सिर्फ हमारी जरूरतें 30 करोड़ टन की हैं। वर्तमान में हमारे पास खनन योग्य भंडार 680 करोड़ टन का है, जो 25-30 साल में खत्म हो जाएगा। यह मायने नहीं रखता कि हम कितना खनन करते हैं, यह निश्चित खनन सीमा है। योजनाओं में क्या प्रगति है?इस साल के अंत में हम छत्तीसगढ़ संयंत्र पर काम शुरू कर देंगे। कर्नाटक के लिए हम नई तकनीक ला रहे हैं और इसके लिए हम निप्पन स्टील से बात कर रहे हैं। अधिग्रहण के लिए आपने क्या तरीका अपनाया है?हमने एनएमडीसी ग्लोबल बनाया है। अतुल भट्ट इसके कार्यकारी निदेशक हैं। मैने उनसे कहा है कि वे हमेशा यात्रा के लिए तैयार रहें। वे किसी भी समय वैश्विक संपत्ति के लिए यात्रा पर निकल सकते हैं।क्या आपने भौगोलिक पहचान कर ली है?हां, इसमें से एक अफ्रीका है। यहां पर उच्च गुणवत्ता का हेमेटाइट लौह अयस्क मौजूद है। दूसरा ऑस्ट्रेलिया है। बहरहाल ऑस्ट्रेलिया के बड़े हिस्से में गुणवत्तायुक्त लौह अयस्क नहीं है। तमाम कंपनियां मैग्नेटाइट लौह अयस्क भंडार के अधिग्रहण में लगी हैं, ऐसे में एनएमडीसी हेमेटाइट पर क्यों ध्यान केंद्रित कर रही है?उच्च गुणवत्ता वाले हेमेटाइट की मांग हर तरफ है। वैश्विक अनुमानों से संकेत मिलता है कि मैग्नेटाइट की पैलेट्स की कीमतें गिरेंगी, जबकि हेमेटाइट की कीमतें बढ़ेंगी। हम ऐसी संपत्ति का अधिग्रहण करेंगे, जहां मुनाफा ज्यादा हो। आपने 2013-14 तक 510 लाख टन लौह अयस्क उत्पादन का अनुमान लगाया है। क्या इसमें अधिग्रहण शामिल है?नहीं। यह सिर्फ हमारे वर्तमान खदानों से उत्पादन का अनुमान है। इस समय लौह अयस्क के तिमाही सौदे हो रहे हैं। यह कैसा चल रहा है?लंबी अवधि के सौदों और हाजिर दामों में बहुत ज्यादा अंतर हो सकता है। लौह अयस्क का वैश्विक बाजार चीन पर निर्भर है। इससे बचा नहीं जा सकता।कुछ वैश्विक अनुमानों के मुताबिक यह व्यवस्था ठीक नहीं चल रही है?घरेलू बाजार के लिए यह कठिन है। हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। (बीएस हिंदी)
देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क उत्पादक कंपनी एनएमडीसी इस समय विस्तार की राह पर है। इसमें विस्तार योजनाएं और विलय तथा अधिग्रहण शामिल है। तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था में निर्माण क्षेत्र, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में स्टील की मांग बढऩे के साथ लौह अयस्क की जरूरतें बढ़ रही हैं। इस सिलसिले में एनएमडीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राणा सोम ने ईशिता आयान दत्त से विस्तार से बातचीत की। पेश हैं खास अंश...राणा सोम, चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, एनएमडीसीएनएमडीसी इस समय वैश्विक कारोबार पर ध्यान देती नजर आ रही है। आपका ध्यान किन प्रमुख क्षेत्रों पर है?हमने विदेशी संपत्ति का अधिग्रहण करने की कोशिश तेज कर दी है। न सिर्फ कंपनी के हित में, बल्कि कच्चे माल की देश की दीर्घावधि जरूरतों को देखते हुए भी हम काम कर रहे हैं। हम दो क्षेत्रों में काम कर रहे हैं- पहला कोकिंग कोल, जो स्टील उद्योग के लिए बहुत जरूरी कच्चा माल है, दूसरा लौह अयस्क। क्या एनएमडीसी के पास पर्याप्त लौह अयस्क नहीं है?हमारे पास सिर्फ बेलाडिला खदान में ही 1।5 अरब टन का लौह अयस्क का भंडार है। पिछले 4 महीने के अध्ययन में अपनी क्षमता में हमने 61.1 करोड़ टन का भंडार और जोड़ा है। यह दुनिया का सबसे बेहतरीन गुणवत्ता वाला लौह अयस्क है। लेकिन स्टील की क्षमता बढ़कर 20 करोड़ टन हो गई है, जिससे सिर्फ हमारी जरूरतें 30 करोड़ टन की हैं। वर्तमान में हमारे पास खनन योग्य भंडार 680 करोड़ टन का है, जो 25-30 साल में खत्म हो जाएगा। यह मायने नहीं रखता कि हम कितना खनन करते हैं, यह निश्चित खनन सीमा है। योजनाओं में क्या प्रगति है?इस साल के अंत में हम छत्तीसगढ़ संयंत्र पर काम शुरू कर देंगे। कर्नाटक के लिए हम नई तकनीक ला रहे हैं और इसके लिए हम निप्पन स्टील से बात कर रहे हैं। अधिग्रहण के लिए आपने क्या तरीका अपनाया है?हमने एनएमडीसी ग्लोबल बनाया है। अतुल भट्ट इसके कार्यकारी निदेशक हैं। मैने उनसे कहा है कि वे हमेशा यात्रा के लिए तैयार रहें। वे किसी भी समय वैश्विक संपत्ति के लिए यात्रा पर निकल सकते हैं।क्या आपने भौगोलिक पहचान कर ली है?हां, इसमें से एक अफ्रीका है। यहां पर उच्च गुणवत्ता का हेमेटाइट लौह अयस्क मौजूद है। दूसरा ऑस्ट्रेलिया है। बहरहाल ऑस्ट्रेलिया के बड़े हिस्से में गुणवत्तायुक्त लौह अयस्क नहीं है। तमाम कंपनियां मैग्नेटाइट लौह अयस्क भंडार के अधिग्रहण में लगी हैं, ऐसे में एनएमडीसी हेमेटाइट पर क्यों ध्यान केंद्रित कर रही है?उच्च गुणवत्ता वाले हेमेटाइट की मांग हर तरफ है। वैश्विक अनुमानों से संकेत मिलता है कि मैग्नेटाइट की पैलेट्स की कीमतें गिरेंगी, जबकि हेमेटाइट की कीमतें बढ़ेंगी। हम ऐसी संपत्ति का अधिग्रहण करेंगे, जहां मुनाफा ज्यादा हो। आपने 2013-14 तक 510 लाख टन लौह अयस्क उत्पादन का अनुमान लगाया है। क्या इसमें अधिग्रहण शामिल है?नहीं। यह सिर्फ हमारे वर्तमान खदानों से उत्पादन का अनुमान है। इस समय लौह अयस्क के तिमाही सौदे हो रहे हैं। यह कैसा चल रहा है?लंबी अवधि के सौदों और हाजिर दामों में बहुत ज्यादा अंतर हो सकता है। लौह अयस्क का वैश्विक बाजार चीन पर निर्भर है। इससे बचा नहीं जा सकता।कुछ वैश्विक अनुमानों के मुताबिक यह व्यवस्था ठीक नहीं चल रही है?घरेलू बाजार के लिए यह कठिन है। हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। (बीएस हिंदी)
बैंकों को 4800 करोड़ की मदद को मंजूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बैंकों द्वारा किसानों को फसल ऋण पर ब्याज में दी जाने वाली रियायत की भरपाई के लिए 4868 करोड़ रुपये जारी करने के प्रस्ताव को शुक्रवार को मंजूरी दे दी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सरकार ने यह राशि सरकारी बैंकों के अलावा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंको को उपलब्ध कराने के लिए मंजूर की।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक किसानों को सात प्रतिशत की रियायती दर पर तीन लाख रुपये तक का अल्पकालिक ऋण उपलब्ध कराना जारी रखें। ऋण का समय पर भुगतान करने वाले किसानों को पांच प्रतिशत की दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
सरकार ने 2006-07 में किसानों को तीन लाख रुपये तक के अल्पकालिक ऋण पर ब्याज में सब्सिडी देने की योजना शुरू की थी। बाद में इसकी अवधि बढा़कर 2010-11 कर दी गई। सरकार ने 2009-10 में समय पर ऋण का भुगतान करने वाले किसानों को ब्याज दर में एक प्रतिशत की और रियायत देने की घोषणा की थी।
पिछले वर्ष ऐसे किसानों को ब्याज पर एक प्रतिशत की और रियायत दी गई। इस तरह समय पर भुगतान करने वाले किसानों को अल्पकालिक ऋण पांच प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। (दैनिक हिंदुस्तान)
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सरकार ने यह राशि सरकारी बैंकों के अलावा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंको को उपलब्ध कराने के लिए मंजूर की।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक किसानों को सात प्रतिशत की रियायती दर पर तीन लाख रुपये तक का अल्पकालिक ऋण उपलब्ध कराना जारी रखें। ऋण का समय पर भुगतान करने वाले किसानों को पांच प्रतिशत की दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
सरकार ने 2006-07 में किसानों को तीन लाख रुपये तक के अल्पकालिक ऋण पर ब्याज में सब्सिडी देने की योजना शुरू की थी। बाद में इसकी अवधि बढा़कर 2010-11 कर दी गई। सरकार ने 2009-10 में समय पर ऋण का भुगतान करने वाले किसानों को ब्याज दर में एक प्रतिशत की और रियायत देने की घोषणा की थी।
पिछले वर्ष ऐसे किसानों को ब्याज पर एक प्रतिशत की और रियायत दी गई। इस तरह समय पर भुगतान करने वाले किसानों को अल्पकालिक ऋण पांच प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। (दैनिक हिंदुस्तान)
29 जुलाई 2010
धान की बंपर पैदावार की आस, तिलहन व दलहन पर बुरा असर
रायपुर July 28, 2010
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के धर्मपुरा गांव के किसान सोमेश यादव मॉनसून की शुरुआत में बहुत सदमें में थे। बारिश की कमी की वजह से नहीं, बल्कि इन इलाके में तेज बारिश ने संकट पैदा कर दिया था। उनके पास 2 एकड़ जमीन है, जिसपर उन्होंने सोयाबीन की फसल बोई थी।बुआई के बाद तेज बारिश हुई और खेत में पानी भर गया। यादव ने कहा, 'एक बार तो मैने सोचा कि जल जमाव के चलते बीज नष्ट हो जाएंगे और फसल बर्बाद हो जाएगी।' लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जुलाई के बीच में 1 हफ्ते तक बारिश नहीं हुई। इससे यादव की फसल बर्बाद होने से बच गई।लेकिन सभी किसान यादव की तरह किस्मत वाले नहीं हैं। तमाम इलाकों में जलजमाव के चलते दलहन और तिलहन की फसल खराब हो गई है। एक गैर सरकारी संगठन एग्रीकॉन के निदेशक और कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर ने कहा, 'राज्य में देर से आए मॉनसून से अच्छी बारिश हुई है। इसकी वजह से खेतों में नमी बहुत ज्यादा है। इसकी वजह से दलहन और तिलहन की बुआई प्रभावित हुई है।'ठाकुर के मुताबिक चालू खरीफ सत्र में दलहन और तिलहन की फसल प्रभावित हो सकती है। लेकिन अधिक पानी होना धान की फसल के लिए बेहतर है। राज्य सरकार का अनुमान है कि 2010-11 सत्र में कुल 35 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई होगी और कुल पैदावार 56 लाख टन रहेगी।राज्य के कृषि विभाग के उप निदेशक आरके चंद्रवंशी ने कहा, 'अब तक राज्य में 500 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि औसत बारिश 1334 मिलीमीटर होनी चाहिए। धान की रोपाई का काम 27 लाख हेक्टेयर रकबे में पूरा हो चुका है।'उन्होंने कहा कि सोयाबीन की बुआई 1।35 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हो चुकी है। अन्य तिलहन और दलहन की बुआई प्रभावित हुई है। हालांकि अधिकारियों को उम्मीद है कि दलहन और तिलहन की फसल ज्यादा प्रभावित नहीं होगी। उन्हें उम्मीद है कि धान की पैदावार बेहतर होगी, जिससे अन्य फसलों में होने वाले नुकसान की भरपाई हो जाएगी। चंद्रवंशी ने कहा कि अगर बारिश जोरदार रहती है तो धान की बंपर पैदावार होगी। (बीएस हिंदी)
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के धर्मपुरा गांव के किसान सोमेश यादव मॉनसून की शुरुआत में बहुत सदमें में थे। बारिश की कमी की वजह से नहीं, बल्कि इन इलाके में तेज बारिश ने संकट पैदा कर दिया था। उनके पास 2 एकड़ जमीन है, जिसपर उन्होंने सोयाबीन की फसल बोई थी।बुआई के बाद तेज बारिश हुई और खेत में पानी भर गया। यादव ने कहा, 'एक बार तो मैने सोचा कि जल जमाव के चलते बीज नष्ट हो जाएंगे और फसल बर्बाद हो जाएगी।' लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जुलाई के बीच में 1 हफ्ते तक बारिश नहीं हुई। इससे यादव की फसल बर्बाद होने से बच गई।लेकिन सभी किसान यादव की तरह किस्मत वाले नहीं हैं। तमाम इलाकों में जलजमाव के चलते दलहन और तिलहन की फसल खराब हो गई है। एक गैर सरकारी संगठन एग्रीकॉन के निदेशक और कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर ने कहा, 'राज्य में देर से आए मॉनसून से अच्छी बारिश हुई है। इसकी वजह से खेतों में नमी बहुत ज्यादा है। इसकी वजह से दलहन और तिलहन की बुआई प्रभावित हुई है।'ठाकुर के मुताबिक चालू खरीफ सत्र में दलहन और तिलहन की फसल प्रभावित हो सकती है। लेकिन अधिक पानी होना धान की फसल के लिए बेहतर है। राज्य सरकार का अनुमान है कि 2010-11 सत्र में कुल 35 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई होगी और कुल पैदावार 56 लाख टन रहेगी।राज्य के कृषि विभाग के उप निदेशक आरके चंद्रवंशी ने कहा, 'अब तक राज्य में 500 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि औसत बारिश 1334 मिलीमीटर होनी चाहिए। धान की रोपाई का काम 27 लाख हेक्टेयर रकबे में पूरा हो चुका है।'उन्होंने कहा कि सोयाबीन की बुआई 1।35 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हो चुकी है। अन्य तिलहन और दलहन की बुआई प्रभावित हुई है। हालांकि अधिकारियों को उम्मीद है कि दलहन और तिलहन की फसल ज्यादा प्रभावित नहीं होगी। उन्हें उम्मीद है कि धान की पैदावार बेहतर होगी, जिससे अन्य फसलों में होने वाले नुकसान की भरपाई हो जाएगी। चंद्रवंशी ने कहा कि अगर बारिश जोरदार रहती है तो धान की बंपर पैदावार होगी। (बीएस हिंदी)
जूट की पैकेजिंग से मिलेगी छूट!
मुंबई July 28, 2010
कपड़ा मंत्रालय ने जूट पैकेजिंग मैटेरियल ऐक्ट 1987 में छूट देने की सिफारिश की है। मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष विचाराधीन है और इस पर जल्दी ही कोई फैसला लिया जाएगा। प्लास्टिक पैकेजिंग के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए जूट पैकेजिंग मेटिरियल्स एक्ट 1987 को हटाने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय की सिफारिश के बाद मामले में आए ताजा मोड़ से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस कानून को पूरी तरह नहीं हटाया जा सकता क्योंकि इससे एक खास जिंस पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि इसमें राहत तो दी ही जाएगी ताकि जूट के साथ अन्य पदार्थों को भी पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सके। रसायन और उर्वरक मंत्रालय का मानना है कि एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में विनिर्माताओं, उत्पादकों और लॉजिस्टिक्स उत्पादकों को इतनी आजादी होनी चाहिए कि वे अपनी सहूलियत के हिसाब से पैकेजिंग उत्पाद को इस्तेमाल कर सकें। फिलवक्त यह अनिवार्य है कि चीनी और अनाज के लिए जूट पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जाए।मगर फिर भी इस प्रस्तावित छूट के बाद ऐसा हो सकता है कि कुछ अनाजों में तय मात्रा के लिए पैकेजिंग में अन्य पदार्थों का इस्तेमाल भी किया जाए। एक अधिकारी ने कहा, 'इसमें छूट तो दी जाएगी, क्योंकि इस साल जूट उत्पादन भी अच्छा है, अनाज उत्पादन के भी बेहतर रहने के अनुमान है। ऐसे में जूट उद्योग के लिए कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।'वहीं दूसरी ओर चूंकि इस मांग का विकल्प प्लास्टिक पैकेजिंग होगा इसलिए प्लास्टिक उद्योग के लिए यह एक बड़ा प्रोत्साहन होगा। दरअसल इस कानून को हटाने की सिफारिश रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने एक अध्ययन के आधार पर की है। यह तकनीकी अध्ययन इंडियन सेंटर फॉर प्लास्टिक इन द इनवायरनमेंट (आईसीपीई) के द्वारा किया गया। आईसीपीई द्वारा जूट, कागज और पॉलीमर्स के जीवन चक्र विश्लेषण पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि इन कच्चे माल के उत्पादन में सबसे ज्यादा ऊर्जा, पानी और रसायन की खपत कागज के लिए होती है। उसके बाद जूट और उसके बाद पॉलीमर का स्थान आता है। इन पदार्थों से थैले बनाने की प्रक्रिया में भी बिजली की खपत, पानी और रसायनों का संतुलन कुछ ऐसा ही रहता है। (बीएस हिंदी)
कपड़ा मंत्रालय ने जूट पैकेजिंग मैटेरियल ऐक्ट 1987 में छूट देने की सिफारिश की है। मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष विचाराधीन है और इस पर जल्दी ही कोई फैसला लिया जाएगा। प्लास्टिक पैकेजिंग के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए जूट पैकेजिंग मेटिरियल्स एक्ट 1987 को हटाने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय की सिफारिश के बाद मामले में आए ताजा मोड़ से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस कानून को पूरी तरह नहीं हटाया जा सकता क्योंकि इससे एक खास जिंस पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि इसमें राहत तो दी ही जाएगी ताकि जूट के साथ अन्य पदार्थों को भी पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सके। रसायन और उर्वरक मंत्रालय का मानना है कि एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में विनिर्माताओं, उत्पादकों और लॉजिस्टिक्स उत्पादकों को इतनी आजादी होनी चाहिए कि वे अपनी सहूलियत के हिसाब से पैकेजिंग उत्पाद को इस्तेमाल कर सकें। फिलवक्त यह अनिवार्य है कि चीनी और अनाज के लिए जूट पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जाए।मगर फिर भी इस प्रस्तावित छूट के बाद ऐसा हो सकता है कि कुछ अनाजों में तय मात्रा के लिए पैकेजिंग में अन्य पदार्थों का इस्तेमाल भी किया जाए। एक अधिकारी ने कहा, 'इसमें छूट तो दी जाएगी, क्योंकि इस साल जूट उत्पादन भी अच्छा है, अनाज उत्पादन के भी बेहतर रहने के अनुमान है। ऐसे में जूट उद्योग के लिए कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।'वहीं दूसरी ओर चूंकि इस मांग का विकल्प प्लास्टिक पैकेजिंग होगा इसलिए प्लास्टिक उद्योग के लिए यह एक बड़ा प्रोत्साहन होगा। दरअसल इस कानून को हटाने की सिफारिश रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने एक अध्ययन के आधार पर की है। यह तकनीकी अध्ययन इंडियन सेंटर फॉर प्लास्टिक इन द इनवायरनमेंट (आईसीपीई) के द्वारा किया गया। आईसीपीई द्वारा जूट, कागज और पॉलीमर्स के जीवन चक्र विश्लेषण पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि इन कच्चे माल के उत्पादन में सबसे ज्यादा ऊर्जा, पानी और रसायन की खपत कागज के लिए होती है। उसके बाद जूट और उसके बाद पॉलीमर का स्थान आता है। इन पदार्थों से थैले बनाने की प्रक्रिया में भी बिजली की खपत, पानी और रसायनों का संतुलन कुछ ऐसा ही रहता है। (बीएस हिंदी)
वैश्विक मांग से धातुओं में तेजी
नई दिल्ली July 28, 2010
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भले ही कह रहे हों कि आगामी सीजन में बंपर खाद्यान्न उत्पादन की उम्मीद में खाद्य महंगाई दर घट जाएगी, लेकिन धातुओं की कीमतों में आ रही तेजी से कोर सेक्टर की महंगाई दर ऊंची रह सकती है, जो कि सरकार के लिए महंगाई के मोर्चे पर नई मुसीबत बन सकती है।धातु विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका में रियल एस्टेट और ऑटो क्षेत्र में आई मजबूती के साथ ही वैश्विक इक्विटी बाजार तेज होने का असर धातुओं की कीमतों पर पड़ रहा है। अमेरिका के अलावा चीन, भारत सहित अन्य देशों में मांग बढऩे के कारण धातुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।साथ ही यूरो , डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है, जिससे भी धातुओं की कीमतों में तेजी को बल मिला है। उनके मुताबिक सितंबर से धातुओं की मांग और बढ़ेगी, जिससे इनके दाम काफी बढऩे की संभावना है। वहीं दूसरी ओर मांग बढऩे से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में धातुओं की इंवेंट्री में भी कमी आई है।मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में इस दौरान तांबा अगस्त वायदा 308।45 रुपये बढ़कर 334.55 रुपये प्रति किलोग्राम, एल्युमीनियम अगस्त वायदा 93 रुपये से बढ़कर 97.15 रुपये प्रति किलो , सीसा 84.85 रुपये से बढ़कर 92.80 रुपये प्रति किलो, निकल अगस्त वायदा 901.50 रुपये से बढ़कर 966.00 रुपये प्रति किलो और जस्ता अगस्त वायदा 86.25 रुपये से बढ़कर 91.25 रुपये प्रति किलो हो गया।ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठï धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि वैश्विक इक्विटी बाजार में तेजी का असर धातुओं की कीमतों पर पड़ा है। उनका कहना है कि पिछले सप्ताह अमेरिका में रियल एस्टेट के सकारात्मक आंकड़े आए है। धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा का इस बारे में कहना है कि इस माह डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होकर दो माह के उच्चतम स्तर तक चला गया है। इसके अलावा यूरोप के देशों में आए आर्थिक संक ट में भी सुधार हुआ है। (बीएस हिंदी)
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भले ही कह रहे हों कि आगामी सीजन में बंपर खाद्यान्न उत्पादन की उम्मीद में खाद्य महंगाई दर घट जाएगी, लेकिन धातुओं की कीमतों में आ रही तेजी से कोर सेक्टर की महंगाई दर ऊंची रह सकती है, जो कि सरकार के लिए महंगाई के मोर्चे पर नई मुसीबत बन सकती है।धातु विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका में रियल एस्टेट और ऑटो क्षेत्र में आई मजबूती के साथ ही वैश्विक इक्विटी बाजार तेज होने का असर धातुओं की कीमतों पर पड़ रहा है। अमेरिका के अलावा चीन, भारत सहित अन्य देशों में मांग बढऩे के कारण धातुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।साथ ही यूरो , डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है, जिससे भी धातुओं की कीमतों में तेजी को बल मिला है। उनके मुताबिक सितंबर से धातुओं की मांग और बढ़ेगी, जिससे इनके दाम काफी बढऩे की संभावना है। वहीं दूसरी ओर मांग बढऩे से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में धातुओं की इंवेंट्री में भी कमी आई है।मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में इस दौरान तांबा अगस्त वायदा 308।45 रुपये बढ़कर 334.55 रुपये प्रति किलोग्राम, एल्युमीनियम अगस्त वायदा 93 रुपये से बढ़कर 97.15 रुपये प्रति किलो , सीसा 84.85 रुपये से बढ़कर 92.80 रुपये प्रति किलो, निकल अगस्त वायदा 901.50 रुपये से बढ़कर 966.00 रुपये प्रति किलो और जस्ता अगस्त वायदा 86.25 रुपये से बढ़कर 91.25 रुपये प्रति किलो हो गया।ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठï धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि वैश्विक इक्विटी बाजार में तेजी का असर धातुओं की कीमतों पर पड़ा है। उनका कहना है कि पिछले सप्ताह अमेरिका में रियल एस्टेट के सकारात्मक आंकड़े आए है। धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा का इस बारे में कहना है कि इस माह डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होकर दो माह के उच्चतम स्तर तक चला गया है। इसके अलावा यूरोप के देशों में आए आर्थिक संक ट में भी सुधार हुआ है। (बीएस हिंदी)
हरियाणा में बाढ़ से बर्बाद हुआ सरकारी गेहूं
चंडीगढ़ July 28, 2010
बाढ़ के बाद हरियाणा में आई मूसलाधार बरसात ने न सिर्फ बागवानी और कृषि उपज के लिए तबाही का काम किया है, बल्कि इसने हरियाणा में संग्रहित गेहू को भी प्रभावित किया है। राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक इस महीने आई बाढ़ ने कुछ जिलों को बर्बाद कर दिया और इसमें करीब 9000 टन संग्रहित गेहूं भी खराब हो गया है। खराब हुए करीब 9000 टन गेहूं में से 8000 टन गेहूं तो सिरसा के बानी गांव में ही खराब हुआ, वहीं 1000 टन गेहूं कुरुक्षेत्र के इस्लामालियाबाद इलाके में खराब हुआ है।अधिकारियों के मुताबिक सिरसा में खराब हुए 8000 टन गेहूं में से 5000 टन ढका हुआ था, वहीं 3000 टन खुला पड़ा था। इसी तरह कुरुक्षेत्र जिले में भी 1000 टन गेहूं खुले में ही पड़ा था। यह खराब हुआ गेहूं हरियाणा के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग और हरियाणा गोदाम निगम के अधीन पड़ा था। केंद्रीय पूल में गेहूं के मामले में हरियाणा पंजाब के बाद दूसरा सबसे ज्यादा योगदान करने वाला राज्य है। हरियाणा में गेहूं मुख्यत: राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इन एजेंसियों में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, हेफेड, हरियाणा गोदाम निगम और एफसीआई की ओर से कनफेड शामिल हैं। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक हरियाणा के पास फिलवक्त कुल 85 लाख टन संग्रहित गेहूं है। इस 85 लाख टन संग्रहित गेहूं में से सिर्फ 40 लाख टन ही गोदामों में ढक कर रखा हुआ है। बाकी सारा गेहूं खुले में रखा गया है।इस 85 लाख टन गेहूं में से 70 लाख टन राज्य सरकार की प्राप्ति एजेंसियों की निगरानी में है, वहीं बाकी हिस्सा एफसीआई के पास है। हरियाणा क्षेत्र के एफसीआई के महाप्रबंधक अरुण गुप्ता ने स्वीकार किया कि प्राप्त किया हुआ सारा गेहूं गोदामों में रखा जाना चाहिए। (बीएस हिंदी)
बाढ़ के बाद हरियाणा में आई मूसलाधार बरसात ने न सिर्फ बागवानी और कृषि उपज के लिए तबाही का काम किया है, बल्कि इसने हरियाणा में संग्रहित गेहू को भी प्रभावित किया है। राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक इस महीने आई बाढ़ ने कुछ जिलों को बर्बाद कर दिया और इसमें करीब 9000 टन संग्रहित गेहूं भी खराब हो गया है। खराब हुए करीब 9000 टन गेहूं में से 8000 टन गेहूं तो सिरसा के बानी गांव में ही खराब हुआ, वहीं 1000 टन गेहूं कुरुक्षेत्र के इस्लामालियाबाद इलाके में खराब हुआ है।अधिकारियों के मुताबिक सिरसा में खराब हुए 8000 टन गेहूं में से 5000 टन ढका हुआ था, वहीं 3000 टन खुला पड़ा था। इसी तरह कुरुक्षेत्र जिले में भी 1000 टन गेहूं खुले में ही पड़ा था। यह खराब हुआ गेहूं हरियाणा के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग और हरियाणा गोदाम निगम के अधीन पड़ा था। केंद्रीय पूल में गेहूं के मामले में हरियाणा पंजाब के बाद दूसरा सबसे ज्यादा योगदान करने वाला राज्य है। हरियाणा में गेहूं मुख्यत: राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इन एजेंसियों में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, हेफेड, हरियाणा गोदाम निगम और एफसीआई की ओर से कनफेड शामिल हैं। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक हरियाणा के पास फिलवक्त कुल 85 लाख टन संग्रहित गेहूं है। इस 85 लाख टन संग्रहित गेहूं में से सिर्फ 40 लाख टन ही गोदामों में ढक कर रखा हुआ है। बाकी सारा गेहूं खुले में रखा गया है।इस 85 लाख टन गेहूं में से 70 लाख टन राज्य सरकार की प्राप्ति एजेंसियों की निगरानी में है, वहीं बाकी हिस्सा एफसीआई के पास है। हरियाणा क्षेत्र के एफसीआई के महाप्रबंधक अरुण गुप्ता ने स्वीकार किया कि प्राप्त किया हुआ सारा गेहूं गोदामों में रखा जाना चाहिए। (बीएस हिंदी)
आयात बढऩे पर ही थमेगी नेचुरल रबर की तेजी
टायर उद्योग की मांग बढऩे से पिछले एक महीने में घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में 7.6 फीसदी की तेजी आई है। बुधवार को केरल के कोट्टायम में आरएसएस-5 और आरएसएस-4 के दाम बढ़कर क्रमश: 178 और 183 रुपये प्रति किलो हो गए। वायदा बाजार में इस दौरान नेचुरल रबर की कीमतें 6.8 फीसदी बढ़ी हैं। हालांकि इस दौरान सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर की कीमतों में 12.3 फीसदी की गिरावट आई है। इसलिए आगामी दिनों में आयात बढऩे की संभावना है जिससे मौजूदा तेजी रुकने की संभावना है। रबर मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया कि टायर उद्योग की मांग बढऩे नेचुरल रबर की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। कोट्टायम में भी आरएसएस-5 और आरएसएस-4 के दाम 28 जून को 168 और 170 रुपये प्रति किलो थे, जो बुधवार को बढ़कर क्रमश: 178 और 183 रुपये प्रति किलो हो गए। हालांकि अभी तक विदेश में भी नेचुरल रबर के दाम तेज थे, जिससे आयात कम हो रहा था। लेकिन पिछले एक महीने में विदेशी बाजार में कीमतों करीब 12.3 फीसदी घटी है। सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर के दाम 28 जून को 169-170 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) थे जो बुधवार को घटकर 148-149 रुपये प्रति किलो रह गए। भारत के मुकाबले विदेशी बाजार में इसके दाम करीब 34 रुपये प्रति किलो कम हैं इसीलिए आगामी दिनों में आयात बढऩे की संभावना है। जिससे घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की मौजूदा तेजी को ब्रेक लग सकता है। भारतीय रबर बोर्ड के अनुसार जून महीने में नेचुरल रबर का आयात 9,255 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जून महीने में 20,250 टन का आयात हुआ था। जून महीने में नेचुरल रबर के घरेलू उत्पादन में भी पांच फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान घरेलू उत्पादन बढ़कर 57,000 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 54,255 टन का ही उत्पादन हुआ था। इस दौरान खपत में भी इजाफा हुआ है। चालू वर्ष के जून महीने में नेचुरल रबर की खपत 75,000 टन की हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 74,220 टन की खपत ही हुई थी। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) में अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में नेचुरल रबर की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 6.8 फीसदी की तेजी आ चुकी है। निवेशकों की खरीद बढऩे से अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में नेचुरल रबर के दाम बढ़कर बुधवार को 187 रुपये प्रति किलो हो गए। 28 जून को अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में इसका भाव 175 रुपये प्रति किलो था। हरिसंस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि खपत के मुकाबले उत्पादन कम होने से नेचुरल रबर की कीमतों में तेजी आई है। चालू वित्त वर्ष 2010-11 में देश में नेचुरल रबर की खपत बढ़कर 9.78 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि इस दौरान उत्पादन का अनुमान 8.93 लाख टन होने का है।बात पते की वायदा बाजार में नेचुरल अगस्त वायदा 6.8 फीसदी बढ़कर एक माह में 187 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। लेकिन आयात बढऩे हाजिर में नरमी आने पर वायदा में भी असर दिख सकता है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
चीनी पर नियंत्रण हटाने से हिचकने लगी सरकार
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महंगाई के मुद्दे पर संसद से सड़क तक चौतरफा घिरी केंद्र सरकार चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने से हिचकिचाने लगी है। कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने अपने पूर्व के बयान से पलटी मारते हुए कहा 'चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने के लिए यह उचित समय नहीं है।' किसानों व उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुए फिलहाल यह संभव नहीं है। अब इस मुद्दे पर अगले साल ही विचार किया जा सकेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक समारोह में बुधवार को हिस्सा लेने के बाद पवार पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा 'हम तत्काल कोई ऐसा फैसला नहीं करेंगे जो उपभोक्ताओं पर फौरी असर डाले। हमें उपभोक्ताओं, किसानों और उद्योग के हितों को देखना होगा।' जबकि पवार ने इसी महीने के पहले सप्ताह में चीनी उद्योग से सरकारी पाबंदियां हटा लेने के लिए सबसे उपयुक्त समय बताया था। उन्होंने चीनी उद्योग को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया था। चीनी उद्योग के प्रमुख संगठनों भारतीय चीनी मिल संघ [इस्मा] और नेशनल फेडरेशन आफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज [एनएफसीएसएफ] ने अपने मतभेदों को भूलकर साझा प्रयास शुरू कर दिया है। दोनों संगठनों ने हर महीने चीनी कोटा जारी करने की प्रणाली को खत्म करने की मांग की है।
इन संगठनों ने सरकार को सलाह दी है कि वह राशन प्रणाली से बंटने वाली रियायती दर की चीनी की खरीद खुले बाजार से करे। साथ ही चीनी को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अलग कर दिया जाए।
चीनी उद्योग के आग्रह पर पवार इसी सप्ताह उनके साथ विचार-विमर्श करेंगे। खाद्य मंत्रालय और चीनी उद्योग का मानना है कि अगले साल देश में चीनी का उत्पादन अधिक रहेगा, जिससे कीमतें बहुत नीचे जा सकती हैं। वहीं सरकार के ही एक बड़े धड़े का मानना है कि चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने से महंगाई फिर भड़क उठेगी। चीनी का मूल्य 60 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच जाएगा। इस साल की शुरुआत में चीनी के खुदरा दाम 50 रुपये प्रति किलो तक जा भी चुके हैं। (दैनिक जागरण)
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक समारोह में बुधवार को हिस्सा लेने के बाद पवार पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा 'हम तत्काल कोई ऐसा फैसला नहीं करेंगे जो उपभोक्ताओं पर फौरी असर डाले। हमें उपभोक्ताओं, किसानों और उद्योग के हितों को देखना होगा।' जबकि पवार ने इसी महीने के पहले सप्ताह में चीनी उद्योग से सरकारी पाबंदियां हटा लेने के लिए सबसे उपयुक्त समय बताया था। उन्होंने चीनी उद्योग को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया था। चीनी उद्योग के प्रमुख संगठनों भारतीय चीनी मिल संघ [इस्मा] और नेशनल फेडरेशन आफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज [एनएफसीएसएफ] ने अपने मतभेदों को भूलकर साझा प्रयास शुरू कर दिया है। दोनों संगठनों ने हर महीने चीनी कोटा जारी करने की प्रणाली को खत्म करने की मांग की है।
इन संगठनों ने सरकार को सलाह दी है कि वह राशन प्रणाली से बंटने वाली रियायती दर की चीनी की खरीद खुले बाजार से करे। साथ ही चीनी को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अलग कर दिया जाए।
चीनी उद्योग के आग्रह पर पवार इसी सप्ताह उनके साथ विचार-विमर्श करेंगे। खाद्य मंत्रालय और चीनी उद्योग का मानना है कि अगले साल देश में चीनी का उत्पादन अधिक रहेगा, जिससे कीमतें बहुत नीचे जा सकती हैं। वहीं सरकार के ही एक बड़े धड़े का मानना है कि चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने से महंगाई फिर भड़क उठेगी। चीनी का मूल्य 60 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच जाएगा। इस साल की शुरुआत में चीनी के खुदरा दाम 50 रुपये प्रति किलो तक जा भी चुके हैं। (दैनिक जागरण)
घरेलू मांग बढऩे से काजू की कीमतें हुईं तेज
बात पते की दिल्ली थोक बाजार में काजू की कीमतों में 30-40 रुपये प्रति किलो की तेजी आ चुकी है। अगस्त में त्यौहारी सीजन शुरू हो जायेगा। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी 40-50 रुपये प्रति किलो की तेजी आने की संभावना है। निर्यातकों के साथ ही घरेलू मांग बढऩे से काजू की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। जून महीने में भारत से काजू का निर्यात तीन फीसदी बढ़ा है। इसीलिए दिल्ली थोक बाजार में काजू की कीमतों में 30-40 रुपये प्रति किलो की तेजी आ चुकी है। चालू सीजन में काजू के उत्पादन में करीब 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है। साथ ही अगस्त में त्यौहारी सीजन शुरू हो जायेगा। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी 40-50 रुपये प्रति किलो की तेजी आने की संभावना है। काजू के थोक व्यापारी आर के मंगला ने बताया कि त्यौहारी मांग बढऩे से काजू की कीमतों में तेजी बनी हुई है। दिल्ली थोक बाजार में मंगलवार को काजू-300 नवंबर क्वालिटी का भाव बढ़कर 360-370 रुपये और 240 नवंबर क्वालिटी के काजू का भाव बढ़कर 460 से 470 रुपये प्रति किलो हो गया। त्यौहारी सीजन को देखते हुए स्टॉकिस्टों की खरीद अच्छी बनी हुई है जबकि पैदावार में कमी की आशंका के चलते उत्पादक राज्यों से बिकवाली कम आ रही है। काजू कारोबारी आर के जैन ने बताया कि काजू की सबसे ज्यादा खपत दिपावली पर होती है। इसीलिए आागामी तीन महीने काजू में घरेलू बाजार अच्छी बनी रहेगी। इसीलिए इसकी मौजूदा कीमतों में 40-50 रुपये प्रति किलो की और भी तेजी की संभावना है। केश्यू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (सीईपीसी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जून महीने में काजू निर्यात में तीन फीसदी की तेजी आकर कुल निर्यात 9,314 टन का हुआ है। पिछले साल जून महीने में 9,035 टन काजू का ही निर्यात हुआ था। मई महीने में भी निर्यात में 12 फीसदी की तेजी आई थी। सीईपीसी के सचिव शशि वर्मा ने बताया कि यूरोप में आर्थिक स्थिति सुधरने से निर्यात को बढ़ावा मिला है। उन्होंने बताया कि भारत से सबसे ज्यादा काजू का निर्यात अमेरिका और ब्रिटेन को होता है तथा आगामी दिनों में आस्ट्रेलिया से भी अच्छे आयात सौदे मिलने की संभावना है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान कुल निर्यात में 1.6 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान कुल निर्यात 25,862 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 26,295 टन का निर्यात हुआ था। जून-2010 में काजू निर्यात के लिए औसत भाव 288.89 रुपये प्रति किलो रहा जोकि जून-2009 के 262.33 रुपये प्रति किलो से ज्यादा है। देश में वर्ष 2008-09 में काजू का 6.92 लाख टन का उत्पादन हुआ था। लेकिन चालू सीजन में इसके उत्पादन में करीब 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है। (बिज़नस भास्कर....आर अस raana)
कार्टेल बनने से वायदा में आलू के दाम धराशायी
बात पते की कार्टेल में वायदा कारोबारियों की भारी बिकवाली से हाजिर मंडियों में और ज्यादा गिरावट को बल मिलने लगा है। वायदा कारोबारी शॉर्ट सेलिंग करके मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं आलू उत्पादकों को भारी नुकसान हो रहा है।उत्पादक राज्यों में आलू का भारी स्टॉक होने के कारण मंडियों में भाव पर दबाव बना हुआ है। लेकिन वायदा बाजार में मूल्य गिरावट ज्यादा तीखी है। वायदा कारोबारियों ने कार्टेल बनाकर बिकवाली का दबाव इतना ज्यादा बढ़ा दिया है कि अब हाजिर मंडियों में और ज्यादा गिरावट को बल मिलने लगा है। एक ओर वायदा कारोबारी शॉर्ट सेलिंग करके मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं आलू उत्पादकों को भारी नुकसान हो रहा है। वायदा बाजार में पिछले बीस दिनों में आलू के दाम 23।8 फीसदी घट चुके हैं। जबकि इस दौरान हाजिर बाजार में भाव मात्र पांच फीसदी घटे हैं। आजादपुर मंडी में मांग के मुकाबले आवक ज्यादा हो रही है। जिससे गिरावट को बल मिल रहा है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में आलू अगस्त वायदा में पिछले बीस दिनों के दौरान करीब 23.8 फीसदी की भारी गिरावट आ चुकी है। छह जुलाई को अगस्त महीने के वायदा अनुबंध के आलू का भाव 473 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मंगलवार को घटकर 360 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि वायदा में कार्टेल बनाकर आलू की कीमतें घटाई जा रही हैं इसीलिए हाजिर के मुकाबले वायदा में भारी गिरावट आई है। पोटेटो ऑनियन मर्चेंट एसोसिएशन (पोमा) आजादपुर के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा ने बताया कि मंडी में आलू की दैनिक आवक 120-125 ट्रक की हो रही है। लेकिन उत्पादक राज्यों में स्टॉक ज्यादा होने के कारण कुल आवक में से 25 से 30 फीसदी आलू के बिकवाली सौदे नहीं हो पा रहे हैं। मंडी में पिछले करीब बीस दिनों आलू की थोक कीमतों में करीब पांच फीसदी की गिरावट आई है। मंगलवार को मंडी में सादे आलू का भाव घटकर 170-220 रुपये और कम शुगर वाले आलू का भाव घटकर 240-310 रुपये प्रति 50 किलो रह गया। आगरा कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदर्शन सिंघल ने बताया कि चालू सीजन में कोल्ड स्टोर में 3.60 करोड़ कट्टे (प्रति कट्टा 50 किलो) का हुआ था, जो पिछले साल की समान अवधि के 3.20 करोड़ कट्टों से ज्यादा था। पिछले तीन महीने में कोल्ड स्टोर से केवल 30 फीसदी आलू का ही उठान हो पाया है। अभी भी स्टोरों में करीब 70 फीसदी आलू रखा हुआ है। कीमतों में गिरावट आने से स्टॉकिस्टों की घबराहटपूर्ण बिकवाली बनी हुई है जिससे गिरावट को बल मिल रहा है। बनवारी लाल एंड संस के प्रोपराइटर उमेश अग्रवाल ने बताया कि अगस्त महीने में कर्नाटक में नई फसल आ जाएगी, उसके बाद हल्द्वानी की फसल आएगी। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एंव विकास फाउंडेशन व्यापारिक सूत्रों का मानना है कि चालू सीजन में आलू का उत्पादन 335 से 350 लाख टन का हुआ है जो पिछले साल की तुलना में करीब 80 से 90 लाख टन ज्यादा है। rana@businessbhaskar.net (बीएस हिंदी)
चावल के निर्यात पर प्रतिबंध जारी
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध फिलहाल बना रहेगा।मंत्रियों के अधिकारसंपन्न समूह की बैठक में गैर बासमती चावल की अच्छी किस्मों के निर्यात की अनुमति देने के फैसले संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रतिबंध जारी है।एक अन्य सवाल के जवाब में शर्मा ने उम्मीद जताई कि प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता के अधीन सेज को कर छूट नहीं दिए जाने के बारे में कोई संतोषजनक समाधान निकाल लिया जाएगा।शर्मा ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे को वित्तमंत्री के समक्ष उठाया है (भासा(
28 जुलाई 2010
मक्का, तूर, कपास: बंपर उत्पादन की आस
बेंगलुरु July 27, 2010
कर्नाटक में 1 जून 2010 और 26 जुलाई 2010 के बीच बारिश सामान्य से 8 प्रतिशत कम हुई है। इसके बावजूद जुलाई के दूसरे पखवाड़े में बुआई की रफ्तार ने गति पकड़ ली। जुलाई के दूसरे पखवाड़े में बारिश होने की वजह से पहले हुई कम बारिश की क्षतिपूर्ति हो गई। 26 जुलाई तक राज्य में सामान्य बारिश 410 मिलीमीटर हुई है, जबकि इस साल इस दौरान 376 मिलीमीटर बारिश हुई। बुआई के आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल मक्के, तूर और कपास का बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है। राज्य में 42।7 लाख हेक्टेयर रकबे में बुआई का काम पूरा हो चुका है, जबकि खरीफ के लिए 74.6 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था। इस तरह से 57 प्रतिशत लक्ष्य पूरा हो चुका है। राज्य के कृषि विभाग को उम्मीद है कि बुआई का रकबा जुलाई के अंत तक 50 लाख हेक्टेयर पर पहुंच जाएगा। यह जुलाई तक की सामान्य बुआई का 95 प्रतिशत होगा। पिछले साल समान अवधि के दौरान बुआई 46.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में पूरी की जा सकी थी। राज्य केकृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि मॉनसून के प्रसार को देखते हुए अगर 71.3 लाख हेक्टेयर रकबे में बुआई का काम पूरा हो जाता है तो हमें खुशी होगी। कर्नाटक के उत्तर और दक्षिण के भीतरी इलाकों में उम्मीद की जा रही है कि जुलाई के आखिरी सप्ताह में बुआई गति पकड़ चुकी है। वर्ष 2010-11 के लिए राज्य ने खाद्यान्न का लक्ष्य 123.7 लाख टन का रखा है। यह 2009-10 के वास्तविक उत्पादन 106.5 लाख टन की तुलना में 16 प्रतिशत ज्यादा है। खरीफ सत्र में 87.2 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। चालू खरीफ सत्र में ज्वार का रकबा असंतोषजनक है। बुआई का लक्ष्य 2.53 लाख हेक्टेयर रखा गया था, जबकि 1.71 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। 22 जुलाई तक 68 प्रतिशत बुआई का लक्ष्य हासिल हुआ है। ज्वार की बुआई 15 जुलाई तक खत्म हो जाती है, इसलिए ज्यादातर किसानों ने चने और कपास का रुख कर लिया है। रागी की बुआई अभी शुरू हुई है। धान की रोपाई संतोषजनक है। साथ ही राज्य में मक्के की बंपर फसल की उम्मीद की जा रही है। मक्के की बुआई का लक्ष्य 10.8 लाख हेक्टेयर का रखा गया था, जबकि 7.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई का काम पूरा किया जा चुका है। अधिकारियों के मुताबिक तूर की बुआई का रकबा 19 जुलाई 2010 तक के आंकड़ों केमुताबिक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 24 प्रतिशत बढ़कर 5.12 लाख हेक्टेयर हो गया है। बुआई का 76 प्रतिशत लक्ष्य हासिल हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि चालू फसल सत्र में राज्य में दलहन की बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में ज्यादा रहेगा। (बीएस हिंदी)
कर्नाटक में 1 जून 2010 और 26 जुलाई 2010 के बीच बारिश सामान्य से 8 प्रतिशत कम हुई है। इसके बावजूद जुलाई के दूसरे पखवाड़े में बुआई की रफ्तार ने गति पकड़ ली। जुलाई के दूसरे पखवाड़े में बारिश होने की वजह से पहले हुई कम बारिश की क्षतिपूर्ति हो गई। 26 जुलाई तक राज्य में सामान्य बारिश 410 मिलीमीटर हुई है, जबकि इस साल इस दौरान 376 मिलीमीटर बारिश हुई। बुआई के आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल मक्के, तूर और कपास का बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है। राज्य में 42।7 लाख हेक्टेयर रकबे में बुआई का काम पूरा हो चुका है, जबकि खरीफ के लिए 74.6 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया था। इस तरह से 57 प्रतिशत लक्ष्य पूरा हो चुका है। राज्य के कृषि विभाग को उम्मीद है कि बुआई का रकबा जुलाई के अंत तक 50 लाख हेक्टेयर पर पहुंच जाएगा। यह जुलाई तक की सामान्य बुआई का 95 प्रतिशत होगा। पिछले साल समान अवधि के दौरान बुआई 46.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में पूरी की जा सकी थी। राज्य केकृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि मॉनसून के प्रसार को देखते हुए अगर 71.3 लाख हेक्टेयर रकबे में बुआई का काम पूरा हो जाता है तो हमें खुशी होगी। कर्नाटक के उत्तर और दक्षिण के भीतरी इलाकों में उम्मीद की जा रही है कि जुलाई के आखिरी सप्ताह में बुआई गति पकड़ चुकी है। वर्ष 2010-11 के लिए राज्य ने खाद्यान्न का लक्ष्य 123.7 लाख टन का रखा है। यह 2009-10 के वास्तविक उत्पादन 106.5 लाख टन की तुलना में 16 प्रतिशत ज्यादा है। खरीफ सत्र में 87.2 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। चालू खरीफ सत्र में ज्वार का रकबा असंतोषजनक है। बुआई का लक्ष्य 2.53 लाख हेक्टेयर रखा गया था, जबकि 1.71 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। 22 जुलाई तक 68 प्रतिशत बुआई का लक्ष्य हासिल हुआ है। ज्वार की बुआई 15 जुलाई तक खत्म हो जाती है, इसलिए ज्यादातर किसानों ने चने और कपास का रुख कर लिया है। रागी की बुआई अभी शुरू हुई है। धान की रोपाई संतोषजनक है। साथ ही राज्य में मक्के की बंपर फसल की उम्मीद की जा रही है। मक्के की बुआई का लक्ष्य 10.8 लाख हेक्टेयर का रखा गया था, जबकि 7.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई का काम पूरा किया जा चुका है। अधिकारियों के मुताबिक तूर की बुआई का रकबा 19 जुलाई 2010 तक के आंकड़ों केमुताबिक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 24 प्रतिशत बढ़कर 5.12 लाख हेक्टेयर हो गया है। बुआई का 76 प्रतिशत लक्ष्य हासिल हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि चालू फसल सत्र में राज्य में दलहन की बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में ज्यादा रहेगा। (बीएस हिंदी)
मॉनसून से आंध्र प्रदेश का चेहरा खिला
हैदराबाद July 27, 2010
इस जुलाई में आंध्र प्रदेश में इस दशक की सबसे ज्यादा वर्षा हो रही है। इस वर्षा को देखते हुए सामान्य बुआई क्षेत्र 21 जुलाई तक 22।5 फीसदी बढ़कर 47 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 38.2 लाख हेक्टेयर था। जैसे-जैसे खरीफ का मौसम आगे बढ़ेगा अनुमान लगाया जा रहा है कि कुल बुआई क्षेत्र बढ़कर 82.2 लाख हेक्टेयर हो जाएगा। कृषि मंत्री एन रघुवीर रेड्डी के मुताबिक 78 लाख हेक्टेयर के सामान्य बुआई क्षेत्र से यह 4 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र 2.75 करोड़ हेक्टेयर है। इसमें आमतौर पर 40 फीसदी क्षेत्र शुद्ध बोया क्षेत्र (मछलीपालन समेत) होता है।उन्होंने कहा कि करनूल, प्रकाशम और अनंतपुर जिलों समेत अन्य फसलों में कपास की अकेले हिस्सेदारी में ही इस साल 6 लाख एकड़ की बढ़ोतरी होगी। इसके बाद मूंगफली की बारी आती है। पिछले साल 3.57 लाख एकड़ में मूंगफली बोई गई थी, जबकि इस साल 9.92 एकड़ में मूंगफली की बुआई की गई। इस 21 जुलाई तक धान की बुआई में जरा सी बढ़ोतरी रही। इसे 380,985 हेक्टेयर में बोया गया, जबकि पिछले साल यह बुआई 346,579 हेक्टेयर क्षेत्र में की गई। मक्का और सोयाबीन में इस बार कुछ गिरावट रही। चीनी पिछले साल जहां बेहतर नहीं थी, इस मौसम में उसकी बुआई बढ़ेगी। खेती के क्षेत्र में बढ़ोतरी के लिए अच्छे मानसून और अच्छे एमएसपी को कारण बताते हुए रेड्डी ने बताया, 'हमें आशा है कि इस पूरे साल में राज्य का खाद्य उत्पादन 2.09 करोड़ टन के आंकड़े को पार कर जाएगा। इसमें खरीफ के दौरान 1.09 करोड़ टन और रबी के दौरान 1.03 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान शामिल है।करीब एक दशक से इस राज्य ने जुलाई के दौरान भारी बरसात नहीं देखी थी। खरीफ की फसल के लिए इसे बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मगर इस साल बरसात प्रचुर मात्रा में हुई। जुलाई तक आंध्र प्रदेश में 229.4 एमएम के सामान्य स्तर से 23.75 फीसदी ज्यादा 283.9 एमएम बरसात हुई। 2009 में जब राज्य ने पहले सूखे और फिर बाढ़ का सामना किया तो 39 फीसदी गिरावट के साथ बरसात 140.6 एमएम रही। 2008 की समान अवधि में बरसात 34 फीसदी कम हुई। इस दौरान यह मात्रा 151.4 एमएम रही। गोदावरी बेसिन के जलग्रह क्षेत्र में भारी बरसात के कारण प्रमुख जलाशयों में 473.74 हजार मिलियन क्यूबिक (टीएमसी) फुट पानी भर गया है। पिछले साल यह भराव 450.51 टीएमसी फुट पानी था।इस मौसम के दौरान राज्य सरकार भी श्री वरि (चावल आधिक्य की व्यवस्था) पर जागरुकता फैला रही है। चित्तूर, कडप्पा और नेल्लोर जैसे जिलों में धान की रोपाई अक्टूबर मध्य तक जाती है। यहां रोपाई तेज गति से चल रही है। (बीएस हिंदी)
इस जुलाई में आंध्र प्रदेश में इस दशक की सबसे ज्यादा वर्षा हो रही है। इस वर्षा को देखते हुए सामान्य बुआई क्षेत्र 21 जुलाई तक 22।5 फीसदी बढ़कर 47 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 38.2 लाख हेक्टेयर था। जैसे-जैसे खरीफ का मौसम आगे बढ़ेगा अनुमान लगाया जा रहा है कि कुल बुआई क्षेत्र बढ़कर 82.2 लाख हेक्टेयर हो जाएगा। कृषि मंत्री एन रघुवीर रेड्डी के मुताबिक 78 लाख हेक्टेयर के सामान्य बुआई क्षेत्र से यह 4 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र 2.75 करोड़ हेक्टेयर है। इसमें आमतौर पर 40 फीसदी क्षेत्र शुद्ध बोया क्षेत्र (मछलीपालन समेत) होता है।उन्होंने कहा कि करनूल, प्रकाशम और अनंतपुर जिलों समेत अन्य फसलों में कपास की अकेले हिस्सेदारी में ही इस साल 6 लाख एकड़ की बढ़ोतरी होगी। इसके बाद मूंगफली की बारी आती है। पिछले साल 3.57 लाख एकड़ में मूंगफली बोई गई थी, जबकि इस साल 9.92 एकड़ में मूंगफली की बुआई की गई। इस 21 जुलाई तक धान की बुआई में जरा सी बढ़ोतरी रही। इसे 380,985 हेक्टेयर में बोया गया, जबकि पिछले साल यह बुआई 346,579 हेक्टेयर क्षेत्र में की गई। मक्का और सोयाबीन में इस बार कुछ गिरावट रही। चीनी पिछले साल जहां बेहतर नहीं थी, इस मौसम में उसकी बुआई बढ़ेगी। खेती के क्षेत्र में बढ़ोतरी के लिए अच्छे मानसून और अच्छे एमएसपी को कारण बताते हुए रेड्डी ने बताया, 'हमें आशा है कि इस पूरे साल में राज्य का खाद्य उत्पादन 2.09 करोड़ टन के आंकड़े को पार कर जाएगा। इसमें खरीफ के दौरान 1.09 करोड़ टन और रबी के दौरान 1.03 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान शामिल है।करीब एक दशक से इस राज्य ने जुलाई के दौरान भारी बरसात नहीं देखी थी। खरीफ की फसल के लिए इसे बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मगर इस साल बरसात प्रचुर मात्रा में हुई। जुलाई तक आंध्र प्रदेश में 229.4 एमएम के सामान्य स्तर से 23.75 फीसदी ज्यादा 283.9 एमएम बरसात हुई। 2009 में जब राज्य ने पहले सूखे और फिर बाढ़ का सामना किया तो 39 फीसदी गिरावट के साथ बरसात 140.6 एमएम रही। 2008 की समान अवधि में बरसात 34 फीसदी कम हुई। इस दौरान यह मात्रा 151.4 एमएम रही। गोदावरी बेसिन के जलग्रह क्षेत्र में भारी बरसात के कारण प्रमुख जलाशयों में 473.74 हजार मिलियन क्यूबिक (टीएमसी) फुट पानी भर गया है। पिछले साल यह भराव 450.51 टीएमसी फुट पानी था।इस मौसम के दौरान राज्य सरकार भी श्री वरि (चावल आधिक्य की व्यवस्था) पर जागरुकता फैला रही है। चित्तूर, कडप्पा और नेल्लोर जैसे जिलों में धान की रोपाई अक्टूबर मध्य तक जाती है। यहां रोपाई तेज गति से चल रही है। (बीएस हिंदी)
लौह अयस्क : अब देसी बाजार से आस
बेंगलुरु July 27, 2010
चीन में मांग कमजोर होने से लौह अयस्क की मांग में गिरावट आई है। इसके बाद से लौह अयस्क निर्यातक तेजी से घरेलू बाजार का रुख कर रहे हैं। चीन, भारतीय अयस्क के प्रमुख खरीदारों में एक है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में अवैध खनन के विवाद और लोहे पर निर्यात कर पर स्पष्टता के अभाव ने इस चलन में इजाफा ही किया है।खननकर्ता भी निर्यात पर निर्भर होने के बजाय घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति समझौता करके 'सेफ हैवन' विकल्प को चुनना चाहते हैं। भारतीय खनिज उद्योग संघ (एफआईएमआई) के महासचिव आरके शर्मा ने बताया, 'एक खननकर्ता के सामने हमेशा दो विकल्प होते हैं। पहला यह कि अंतरराष्ट्रीय बाजार को लौह अयस्क का निर्यात करे, जिसमें अस्थिरता का जोखिम होता है।दूसरा विकल्प यह कि घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति सौदा किया जाए।' हालांकि उन्होंने कहा कि जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में लौह अयस्क की मांग में कमी होती है, कुछ खननकर्ता घरेलू बाजार पर ही विचार करते हैं। शर्मा ने कहा, 'इस चलन में नया कुछ भी नहीं है। मगर खननकर्ताओं के पास निर्यात का सहारा लेने के अलावा कोई चारा नहीं होता है। इसकी वजह यह है कि घरेलू विनिर्माता देश में उत्पादित समूचे लौह अयस्क का उपभोग करने में सक्षम नहीं है।' धीमी वैश्विक रिकवरी और हाल ही में लौह अयस्क सौदों में वार्षिक से तिमाही के बदलाव से उपजी चिंताओं के चलते अप्रैल के बाद से लौह अयस्क की कीमतें गिर गई हैं। एशियाई बाजारों में 185 डॉलर प्रति टन के ऊंचे भाव पर पहुंचने वाले स्पॉट लौह अयस्क की कीमतें भी मंद चीनी मांग के कारण गिरकर 140 डॉलर प्रति टन पर आ गई। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून अवधि के दौरान देश से लौह अयस्क का निर्यात 15 फीसदी गिरकर 2।08 करोड़ टन पर आ गया, जबकि एक साल पहले यह निर्यात 2.45 करोड़ टन था। खननकर्ताओं का मानना है कि देश के कुछ हिस्सों में बढ़ते पेलेट संयंत्रों के चलते खननकर्ता इस जिंस को इन संयंत्रों में ला रहे हैं। खनन कंपनी एमजीएम ग्रुप के प्रवर्तक आरएल मोहंती ने बताया, 'देश के पूर्वी हिस्से में बहुत से खननकर्ता पेलेट संयंत्र और स्पंज लौह इकाइयां स्थापित कर रहे हैं। इस वजह से खननकर्ता इस जिंस को इन इकाइयों की ओर मोड़ रहे हैं।' (बीएस हिंदी)
चीन में मांग कमजोर होने से लौह अयस्क की मांग में गिरावट आई है। इसके बाद से लौह अयस्क निर्यातक तेजी से घरेलू बाजार का रुख कर रहे हैं। चीन, भारतीय अयस्क के प्रमुख खरीदारों में एक है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में अवैध खनन के विवाद और लोहे पर निर्यात कर पर स्पष्टता के अभाव ने इस चलन में इजाफा ही किया है।खननकर्ता भी निर्यात पर निर्भर होने के बजाय घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति समझौता करके 'सेफ हैवन' विकल्प को चुनना चाहते हैं। भारतीय खनिज उद्योग संघ (एफआईएमआई) के महासचिव आरके शर्मा ने बताया, 'एक खननकर्ता के सामने हमेशा दो विकल्प होते हैं। पहला यह कि अंतरराष्ट्रीय बाजार को लौह अयस्क का निर्यात करे, जिसमें अस्थिरता का जोखिम होता है।दूसरा विकल्प यह कि घरेलू विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति सौदा किया जाए।' हालांकि उन्होंने कहा कि जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में लौह अयस्क की मांग में कमी होती है, कुछ खननकर्ता घरेलू बाजार पर ही विचार करते हैं। शर्मा ने कहा, 'इस चलन में नया कुछ भी नहीं है। मगर खननकर्ताओं के पास निर्यात का सहारा लेने के अलावा कोई चारा नहीं होता है। इसकी वजह यह है कि घरेलू विनिर्माता देश में उत्पादित समूचे लौह अयस्क का उपभोग करने में सक्षम नहीं है।' धीमी वैश्विक रिकवरी और हाल ही में लौह अयस्क सौदों में वार्षिक से तिमाही के बदलाव से उपजी चिंताओं के चलते अप्रैल के बाद से लौह अयस्क की कीमतें गिर गई हैं। एशियाई बाजारों में 185 डॉलर प्रति टन के ऊंचे भाव पर पहुंचने वाले स्पॉट लौह अयस्क की कीमतें भी मंद चीनी मांग के कारण गिरकर 140 डॉलर प्रति टन पर आ गई। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून अवधि के दौरान देश से लौह अयस्क का निर्यात 15 फीसदी गिरकर 2।08 करोड़ टन पर आ गया, जबकि एक साल पहले यह निर्यात 2.45 करोड़ टन था। खननकर्ताओं का मानना है कि देश के कुछ हिस्सों में बढ़ते पेलेट संयंत्रों के चलते खननकर्ता इस जिंस को इन संयंत्रों में ला रहे हैं। खनन कंपनी एमजीएम ग्रुप के प्रवर्तक आरएल मोहंती ने बताया, 'देश के पूर्वी हिस्से में बहुत से खननकर्ता पेलेट संयंत्र और स्पंज लौह इकाइयां स्थापित कर रहे हैं। इस वजह से खननकर्ता इस जिंस को इन इकाइयों की ओर मोड़ रहे हैं।' (बीएस हिंदी)
Govt yet to decide on SC suggestion on grains for APL families
New Delhi, July 28 (PTI) The government today said thatit has not yet made up its mind on the Supreme Court'ssuggestion to discontinue providing subsidised foodgrains tofamilies above poverty line (APL)। "The main issue, which I have read from newspapers, iswhat is the government's view on subsidised foodgrains toAPL. Of course, we have not taken any view yet," Food MinisterSharad Pawar told scribes on the sidelines of a function here. The apex court had, on July 27, suggested that thegovernment consider discontinuing supply of subsidised grainsto APL families and, instead, restrict the facility to thosebelow poverty line in view of growing corruption and pilferagein the existing Public Distribution System. "The Supreme Court has sought our reaction. We haven'ttaken any view," Pawar said. Stating that the President of India had spoken about theFood Security Bill during her address at the joint Parliamentsession, Pawar said she had only made a mention aboutproviding subsidised food at Rs 3 per kg of rice and wheat forbelow poverty line families. "On that line, ultimately we have to take a final view,"he added. Pawar said that his ministry was expecting suggestionsfrom the National Advisory Council on the issue, and would behappy to discuss the matter with representatives of stategovernments and the ministries concerned. "Then, the (Food) ministry will take some definite viewand come before the Parliament," he said, declining to giveany time-frame in this regard. "From our side, we have discussed the issue with FoodSecretaries from different states. We have also got some viewsfrom different ministries. But, we are just waiting for someother suggestions," Pawar added. (पीटीआई)
Sugar decontrol decision after assessing cane output: Pawa
New Delhi, July 28 (PTI) Food Minister Sharad Pawar todaysaid that any decision on decontrolling the sugar sector willbe taken only after assessing the likely production for thenext year and keeping the interest of the consumers in mind. "I will collect the information about total production bythe end of August. It (decontrolling the sugar sector) dependsupon what is the area availability in the country. Then itwill depend upon what is the production," Pawar told mediamenon the sidelines of an ICAR function here. At present, the government controls the sugar sectorright from fixing the support price of cane to fixing thequantity of the sweetener to be sold in the open market everymonth. "We don't want to take any decision which will ultimatelyaffect the consumers. We have to protect the interest of theconsumers, farmers and industry all together," Pawar added. Indian Sugar Mills Association (ISMA) and the NationalFederation of Co-operative Sugar Factories (NFCSF), two bodiesrepresenting the sector, have been urging the government to doaway with the monthly release mechanism, procure PDS sugarfrom the market and remove sugar from the purview of EssentialCommodities Act among others. "We are open to discussions. I have requested NFCSF andISMA representatives that, if they want to communicate theirviews, certainly, we are ready to sit with them. I thinktomorrow or day after, we are sitting, subject to discussionin Parliament," Pawar said. Pawar, however, had earlier this month said that the timewas ripe for the government to give a serious thought todecontrolling the sugar industry in the wake of betterprospects of sugar production in 2010-11 crop year. Both the government and the industry feel that thecountry would produce more sugar next year than the estimatedannual demand of 23 million tonnes. India, the world's secondlargest producer of sugar and the biggest consumer, produced18.8 million tonnes in 2009-10 crop year ending September. However, the Food Ministry's plan to decontrol the sectordrew flak from some quarters, who believe that the move wouldescalate the price of the sweetener to over Rs 60 a kg. Maharashtra Congress spokesperson Kanhaiyalal Gidwani hadsaid yesterday that decontrolling sugar would only benefitcommodity trading gamblers and hoarders as the Centre wouldhave no powers to check the price and अवैलाबिलिटी (पीटीआई)
Govt to sell 30LT grains to APL families to clear extra stocks
New Delhi, July 28 (PTI) The Centre has decided to sellan additional 30 lakh tonnes of rice and wheat to AbovePoverty Line (APL) families through ration shops in the nextsix months, to clear stock from overflowing granaries. At present, the government godowns are bursting withfoodgrains amounting to 57.8 million tonnes against the bufferrequirement of 31.9 million tonnes. "The EGOM has already taken the decision. We have writtento the state governments requesting them to lift as much assix months' requirement of foodgrains to APL category," Foodand Agriculture Minister Sharad Pawar told reporters on thesidelines of an ICAR function here. The minister was replying to a query on whether thegovernment had decided to supply 30 lakh tonnes of foodgrainsto 11.5 crore APL families through PDS. Foodgrains will be supplied at APL rates, Pawar said. At present, APL families are getting 10-35 kg of wheatand rice per month at Rs 6.10 and Rs 8.30 per kg respectively. The development comes after the Empowered Group ofMinisters (EGOM) on food, headed by Finance Minister PranabMukherjee, recently met to discuss the foodgrains stocksituation in government godowns and ways to build extrastorage space among other issues. The Food Corporation of India is planning to add 130 lakhtonnes of storage capacity with the help of private parties. When asked if the government had taken any decision toaugment the storage space, Pawar said, "The EGOM has decidedto extend the guarantee period to private parties for hiringgodowns from seven years to 10 years." It has also decided toprovide godowns the infrastructure status. However, no decision was taken on imposing duty on wheatimport, allowing export of some varieties of non-basmati riceand on price of sugar sold through ration shops, he said. PTI
27 जुलाई 2010
कच्चे माल में तेजी से मुर्गी दाना महंगा
नई दिल्ली July 26, 2010
मुर्गी दाना (पोल्ट्री फीड) बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे माल जैसे मक्के और सोयाबीन के मूल्यों में तेजी का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। बीते 6 दिनों के दौरान कच्चा माल महंगा होने से मुर्गी दाने के दाम 5 फीसदी बढ़ चुके हैं। कारोबारियों के मुताबिक आगे फीड की मांग और बढऩे की संभावना है। ऐसे में कीमतों में और तेजी आ सकती है।पंजाब के राजपुरा स्थित मुर्गी दाना निर्माता कंपनी राजा फेट ऐंड फीड्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मोहित राजा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस माह मक्के और सोयाबीन की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस वजह मुर्गी दाना बनाने में आने वाली लागत में भी इजाफा हुआ है, जिससे फीड के दाम बीते चार दिनों में 20 रुपये से बढ़कर 21 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की मुर्गी दाना निर्माता कंपनी सूर्या फीड्स के प्रमोद अग्रवाल का फीड की कीमतों के बारे में कहना है कि साल भर में कचा माल महंगा होने से इसकी कीमतों में काफी तेजी आ चुकी है। उत्तर प्रदेश में इसके दाम 18-19 रुपये प्रति किलो चल रहे है। कारोबारियों के मुताबिक मौसम में गर्माहट कम होने के साथ ही फीड की मांग सुधरने लगी है। हरियाणा के दीपक पोल्ट्री फार्म के मालिक संदीप चौधरी का कहना है कि बारिश शुरू होने के साथ ही पोल्ट्री उत्पादों की मांग बढऩे लगती है। इससे मुर्गी दाना की मांग में भी इजाफा होता है। फीड की मांग के बारे में मोहित का कहना है कि आने वाले दिनों में फीड की मांग और बढऩे की संभावना है।। ऐसे में मक्के और सोयाबीन की कीमतों में तेजी जारी रहने पर मुर्गी दाने के दाम और बढ़ सकते हैं। मक्का की कीमतों के बारे में दिल्ली के मक्का कारोबारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि देश में स्टॉक कम होने के कारण इस माह मक्का के दाम 60-70 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ चुके है।अगली फसल आने में काफी समय है। इसलिए आगे भी इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है। इंदौर के सोयाबीन कारोबारी हेमंत जैन का कहना है कि बीते 1 सप्ताह में सोयाबीन में 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। (बीएस हिंदी)
मुर्गी दाना (पोल्ट्री फीड) बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे माल जैसे मक्के और सोयाबीन के मूल्यों में तेजी का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। बीते 6 दिनों के दौरान कच्चा माल महंगा होने से मुर्गी दाने के दाम 5 फीसदी बढ़ चुके हैं। कारोबारियों के मुताबिक आगे फीड की मांग और बढऩे की संभावना है। ऐसे में कीमतों में और तेजी आ सकती है।पंजाब के राजपुरा स्थित मुर्गी दाना निर्माता कंपनी राजा फेट ऐंड फीड्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मोहित राजा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस माह मक्के और सोयाबीन की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस वजह मुर्गी दाना बनाने में आने वाली लागत में भी इजाफा हुआ है, जिससे फीड के दाम बीते चार दिनों में 20 रुपये से बढ़कर 21 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की मुर्गी दाना निर्माता कंपनी सूर्या फीड्स के प्रमोद अग्रवाल का फीड की कीमतों के बारे में कहना है कि साल भर में कचा माल महंगा होने से इसकी कीमतों में काफी तेजी आ चुकी है। उत्तर प्रदेश में इसके दाम 18-19 रुपये प्रति किलो चल रहे है। कारोबारियों के मुताबिक मौसम में गर्माहट कम होने के साथ ही फीड की मांग सुधरने लगी है। हरियाणा के दीपक पोल्ट्री फार्म के मालिक संदीप चौधरी का कहना है कि बारिश शुरू होने के साथ ही पोल्ट्री उत्पादों की मांग बढऩे लगती है। इससे मुर्गी दाना की मांग में भी इजाफा होता है। फीड की मांग के बारे में मोहित का कहना है कि आने वाले दिनों में फीड की मांग और बढऩे की संभावना है।। ऐसे में मक्के और सोयाबीन की कीमतों में तेजी जारी रहने पर मुर्गी दाने के दाम और बढ़ सकते हैं। मक्का की कीमतों के बारे में दिल्ली के मक्का कारोबारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि देश में स्टॉक कम होने के कारण इस माह मक्का के दाम 60-70 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ चुके है।अगली फसल आने में काफी समय है। इसलिए आगे भी इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है। इंदौर के सोयाबीन कारोबारी हेमंत जैन का कहना है कि बीते 1 सप्ताह में सोयाबीन में 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। (बीएस हिंदी)
गुजरात में तेज हुई खरीफ की बुआई
अहमदाबाद July 26, 2010
हालांकि गुजरात में इस वर्ष बारिश की स्थिति बेहतर नहीं रही है, लेकिन हाल के दिनों में पूरे राज्य में अच्छी-खासी बारिश होने की वजह से खरीफ फसलों की बुआई तेज हुई है। प्रदेश में तकरीबन 67 फीसदी बुआई हो चुकी है और ऐसा लग रहा है कि मौजूदा सीजन में कपास और अरंडी जैसी फसलों का रकबा बढ़ेगा।गुजरात सरकार के कृषि निदेशक की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले सप्ताह तक 58।5 लाख हेक्टेयर खेतों में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है। हालांकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 60 लाख हेक्टेयर खेतों में बुआई हो चुकी थी। सरकारी अधिकारियों ने बताया, 'सीजन की शुरुआत में कम बारिश के चलते फिलहाल तुलनात्मक रूप से रकबा कम है। लेकिन हालिया बारिश की वजह से बुआई की गतिविधियां तेजी हुई हैं।'गौरतलब है कि इस वर्ष 21 जुलाई तक गुजरात में सामान्य से कम बारिश हुई थी, लेकिन फिलहाल 303.9 मिलीमीटर बारिश हुई है जबकि 24 जुलाई तक सामान्यत: 304.2 मिलीमीटर बारिश होती है। हालिया बारिश से मौजूदा खरीफ सीजन के प्रति लोगों का नजरिया सकारात्मक हुआ है और किसानों समेत कारोबारियों एवं सरकार को भी कपास और अरंडी का रकबा बढऩे की उम्मीद है।बावजूद इसके उन्होंने इस वर्ष खरीफ फसलों के उत्पादन के बारे में कोई अंदाजा नहीं लगाया। फिलहाल कपास का रकबा बढ़कर 21.6 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इस फसल का रकबा 21 लाख हेक्टेयर रहा था। अहमदाबाद के अग्रणी कपास करोबारी अरुण दलाल ने कहा, 'घरेलू और निर्यात बाजारों में मजबूत मांग की वजह से पिछले वर्ष कपास के भाव काफी बढ़ गए थे। हमें उम्मीद है कि इस बार कपास का रकबा बढ़कर 29 लाख हेक्टेयर हो जाएगा, जबकि वर्ष 2009 में इस फसल का रकबा 25 लाख हेक्टेयर रहा था।'यही स्थिति अरंडी के साथ भी है। इस महीने इसके भाव 750 रुपये प्रति 20 किलोग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल रेंडी का रकबा 66,000 हेक्टेयर है। वर्ष 2009 की समान अवधि में इस फसल का रकबा 49,700 हेक्टेयर रहा था। (बीएस हिंदी)
हालांकि गुजरात में इस वर्ष बारिश की स्थिति बेहतर नहीं रही है, लेकिन हाल के दिनों में पूरे राज्य में अच्छी-खासी बारिश होने की वजह से खरीफ फसलों की बुआई तेज हुई है। प्रदेश में तकरीबन 67 फीसदी बुआई हो चुकी है और ऐसा लग रहा है कि मौजूदा सीजन में कपास और अरंडी जैसी फसलों का रकबा बढ़ेगा।गुजरात सरकार के कृषि निदेशक की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले सप्ताह तक 58।5 लाख हेक्टेयर खेतों में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है। हालांकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 60 लाख हेक्टेयर खेतों में बुआई हो चुकी थी। सरकारी अधिकारियों ने बताया, 'सीजन की शुरुआत में कम बारिश के चलते फिलहाल तुलनात्मक रूप से रकबा कम है। लेकिन हालिया बारिश की वजह से बुआई की गतिविधियां तेजी हुई हैं।'गौरतलब है कि इस वर्ष 21 जुलाई तक गुजरात में सामान्य से कम बारिश हुई थी, लेकिन फिलहाल 303.9 मिलीमीटर बारिश हुई है जबकि 24 जुलाई तक सामान्यत: 304.2 मिलीमीटर बारिश होती है। हालिया बारिश से मौजूदा खरीफ सीजन के प्रति लोगों का नजरिया सकारात्मक हुआ है और किसानों समेत कारोबारियों एवं सरकार को भी कपास और अरंडी का रकबा बढऩे की उम्मीद है।बावजूद इसके उन्होंने इस वर्ष खरीफ फसलों के उत्पादन के बारे में कोई अंदाजा नहीं लगाया। फिलहाल कपास का रकबा बढ़कर 21.6 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इस फसल का रकबा 21 लाख हेक्टेयर रहा था। अहमदाबाद के अग्रणी कपास करोबारी अरुण दलाल ने कहा, 'घरेलू और निर्यात बाजारों में मजबूत मांग की वजह से पिछले वर्ष कपास के भाव काफी बढ़ गए थे। हमें उम्मीद है कि इस बार कपास का रकबा बढ़कर 29 लाख हेक्टेयर हो जाएगा, जबकि वर्ष 2009 में इस फसल का रकबा 25 लाख हेक्टेयर रहा था।'यही स्थिति अरंडी के साथ भी है। इस महीने इसके भाव 750 रुपये प्रति 20 किलोग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल रेंडी का रकबा 66,000 हेक्टेयर है। वर्ष 2009 की समान अवधि में इस फसल का रकबा 49,700 हेक्टेयर रहा था। (बीएस हिंदी)
महाराष्ट्र में खरीफ की फसल बेहतर रहने की उम्मीद
मुंबई July 26, 2010
महाराष्ट्र में चौतरफा बारिश होने से खरीफ की करीब 90 प्रतिशत फसलों की बुआई हो चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि 2010-11 सत्र में धान, कपास, तूर, मक्के के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। राज्य के किसानों ने कपास, तूर और मक्के की फसलों में दिलचस्पी दिखाई है, वहीं ज्वार, बाजरा और सोयाबीन का रकबा घटा है। राज्य सरकार के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक धान का उत्पादन 28 लाख टन, कपास का 84 लाख टन, मक्के का 21 लाख टन और चने का उत्पादन 11।8 लाख टन रहने का अनुमान है। महाराष्ट्र के कृषि मंत्री बाला साहेब थोराट ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जून में हुई चौतरफा बारिश महाराष्ट्र में खरीफ की खेती के लिए बेहतर रही।खरीफ सत्र में धान की रोपाई बेहतर हुई है। जून के बुआई के महीने में मराठवाड़ा और विदर्भ के कुछ इलाकों में बारिश कम हुई है। बहरहाल, जुलाई के पहले हफ्ते में हुई बारिश से बुआई की गतिविधियां उन इलाकों में तेज हुई हैं।' उन्होंने कहा कि राज्य में बुआई का सामान्य रकबा 132.3 लाख हेक्टेयर है, जबकि 118.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई हो चुकी है। मंत्री के मुताबिक कपास की बुआई का रकबा बढ़कर 38 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि 2009-10 में यह 35 लाख हेक्टेयर था। वहीं किसानों ने 5.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मक्के की बुआई की है, जबकि पिछले साल यह रकबा 4.2 लाख हेक्टेयर था। तूर के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है और पिछले साल के 12 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस साल 12.4 लाख हेक्टेयर में तूर क ी बुआई हुई है। थोराट ने कहा कि मक्के का प्रयोग चारे के लिए होता है। साथ ही इसकी उत्पादकता पिछले साल के 2011 किलो प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2212 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। जहां तक कपास के रकबे में बढ़ोतरी का सवाल है, बीटी कपास की मांग बढ़ रही है, क्योंकि इसकी उत्पादकता 285 लिंट किलो से बढ़कर 375 लिंट किलो पहुंच गई है। बहरहाल सोयाबीन के रकबे में कमी आई है और यह पिछले साल के 30 लाख हेक्टेयर से घटकर 23 लाख हेक्टेयर रह गया है। मंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादक इलाकों में बारिश की अनिश्चितता के चलते किसानों ने इसकी खेती से मुंह मोड़ लिया है। ज्वार का भी रकबा पिछले साल के 10 लाख हेक्टेयर से घटकर इस साल 8.8 लाख हेक्टेयर रह गया है। राज्य के कृषि आयुक्त प्रभाकर देशमुख ने कहा कि उत्पादन और उत्पादकता बढऩे की एक वजह यह भी है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन को प्रभावी तरीके से लागू किया गया है। तिलहन, मक्के और पाम आयात के लिए योजनाएं बनी हैं और दलहन विकास योजना, तकनीकी मिशन के जरिए किसानों को लाभ पहुंचा है। (बीएस हिंदी)
महाराष्ट्र में चौतरफा बारिश होने से खरीफ की करीब 90 प्रतिशत फसलों की बुआई हो चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि 2010-11 सत्र में धान, कपास, तूर, मक्के के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। राज्य के किसानों ने कपास, तूर और मक्के की फसलों में दिलचस्पी दिखाई है, वहीं ज्वार, बाजरा और सोयाबीन का रकबा घटा है। राज्य सरकार के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक धान का उत्पादन 28 लाख टन, कपास का 84 लाख टन, मक्के का 21 लाख टन और चने का उत्पादन 11।8 लाख टन रहने का अनुमान है। महाराष्ट्र के कृषि मंत्री बाला साहेब थोराट ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जून में हुई चौतरफा बारिश महाराष्ट्र में खरीफ की खेती के लिए बेहतर रही।खरीफ सत्र में धान की रोपाई बेहतर हुई है। जून के बुआई के महीने में मराठवाड़ा और विदर्भ के कुछ इलाकों में बारिश कम हुई है। बहरहाल, जुलाई के पहले हफ्ते में हुई बारिश से बुआई की गतिविधियां उन इलाकों में तेज हुई हैं।' उन्होंने कहा कि राज्य में बुआई का सामान्य रकबा 132.3 लाख हेक्टेयर है, जबकि 118.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई हो चुकी है। मंत्री के मुताबिक कपास की बुआई का रकबा बढ़कर 38 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि 2009-10 में यह 35 लाख हेक्टेयर था। वहीं किसानों ने 5.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मक्के की बुआई की है, जबकि पिछले साल यह रकबा 4.2 लाख हेक्टेयर था। तूर के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है और पिछले साल के 12 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस साल 12.4 लाख हेक्टेयर में तूर क ी बुआई हुई है। थोराट ने कहा कि मक्के का प्रयोग चारे के लिए होता है। साथ ही इसकी उत्पादकता पिछले साल के 2011 किलो प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2212 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। जहां तक कपास के रकबे में बढ़ोतरी का सवाल है, बीटी कपास की मांग बढ़ रही है, क्योंकि इसकी उत्पादकता 285 लिंट किलो से बढ़कर 375 लिंट किलो पहुंच गई है। बहरहाल सोयाबीन के रकबे में कमी आई है और यह पिछले साल के 30 लाख हेक्टेयर से घटकर 23 लाख हेक्टेयर रह गया है। मंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादक इलाकों में बारिश की अनिश्चितता के चलते किसानों ने इसकी खेती से मुंह मोड़ लिया है। ज्वार का भी रकबा पिछले साल के 10 लाख हेक्टेयर से घटकर इस साल 8.8 लाख हेक्टेयर रह गया है। राज्य के कृषि आयुक्त प्रभाकर देशमुख ने कहा कि उत्पादन और उत्पादकता बढऩे की एक वजह यह भी है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन को प्रभावी तरीके से लागू किया गया है। तिलहन, मक्के और पाम आयात के लिए योजनाएं बनी हैं और दलहन विकास योजना, तकनीकी मिशन के जरिए किसानों को लाभ पहुंचा है। (बीएस हिंदी)
अरहर व मूंग के थोक भाव घटे, फुटकर में पूर्ववत
मूंग और अरहर की थोक कीमतों में पिछले महीने भर में क्रमश: 700 और 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में मूंग का भाव घटकर 4800 से 5000 रुपये और अरहर का 3,800 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। लेकिन फुटकर में उपभोक्ताओं को अभी मूंग दाल 90-95 रुपये और अरहर दाल 71 से 75 रुपये प्रति किलो की दर से ही खरीदनी पड़ रही है। दालों के थोक व्यापारी निशांत मित्तल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में नया माल आने से मूंग की थोक कीमतों में गिरावट आई है लेकिन फुटकर में कीमतों में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। फुटकर व्यापारी सीमित मात्रा में दालों की खरीद करते हैं इसीलिए फुटकर में कीमतों पर असर कुछ समय बाद में पड़ता है।मूंग दाल का थोक दाम घटकर दिल्ली में 6500 से 7000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया जबकि एक महीना पहले इसका भाव 7200 से 7700 रुपये प्रति क्विंटल था। इसी तरह से अरहर दाल की थोक कीमतों में भी इस दौरान करीब 400 रुपये की गिरावट आकर भाव 5400 से 6800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उन्होंने बताया कि इस दौरान उड़द और चना दाल के दाम करीब 200 से 300 रुपये बढ़कर भाव क्रमश: 6500 रुपये और 2800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। मसूर दाल का भाव 4200-4300 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर ही बना हुआ है। गुलबर्गा के दलहन व्यापारी चंद्रशेखर एस। नाडर ने बताया कि कर्नाटक में नई मूंग की आवक आने से कीमतों में गिरावट आई है। पिछले एक महीने में मंडी में इसकी कीमतों में करीब 700-800 रुपये की गिरावट आकर भाव 4,800 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अगस्त के मध्य तक राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी मूंग की नई फसल आ जाएगी। जिससे मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की संभावना है। मूंग पेड़ी सेवा के दाम भी पिछले एक महीने में 1355 डॉलर प्रति टन से घटकर 1255 डॉलर प्रति टन और अन्नासेवा का भाव 1170 डॉलर प्रति टन रह गया। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के डायरेक्टर सुनील बी. बंदेवार ने बताया कि आयातित लेमन अरहर की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 20 डॉलर प्रति टन की गिरावट आकर भाव 970 डॉलर प्रति टन रह गए। स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढऩे और मिलों की मांग से थोक में अरहर के भाव 4200 रुपये से घटकर 3,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। देसी अरहर का भाव भी घटकर अकोला मंडी में 4000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। उन्होंने बताया कि खरीफ में दालों का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ा है तथा मौसम अनुकूल बना हुआ है। ऐसे में मूंग और उड़द का उत्पादन बढऩे की संभावना है। वैसे भी उत्पादक मंडियों में अरहर का स्टॉक अच्छा है। इसलिए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
इंडोनेशियाई कालीमिर्च ने घटाई भारत की मांग
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय काली मिर्च का भाव ऊंचा होने के कारण निर्यात मांग घट गई है। विदेशी बाजार में भारतीय काली मिर्च का भाव 4,550 डॉलर प्रति टन है जबकि वियतनाम की काली मिर्च का भाव 4,400 डॉलर प्रति टन है। इंडोनेशिया में भी नई फसल की आवक शुरू हो गई तथा इंडोनेशिया से 4,300-4,350 डॉलर प्रति टन की दर पर निर्यात सौदे हुए हैं। अक्टूबर में ब्राजील की फसल आ जाएगी। इसीलिए घरेलू बाजार में काली मिर्च की कीमतों में पिछले तीन-चार दिनों में करीब 500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। आगामी दिनों में मौजूदा कीमतों में और भी 1000-1,500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। बंगलुरू के काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि भारतीय काली मिर्च का भाव अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा होने से निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। भारतीय काली मिर्च का भाव 4,550 डॉलर प्रति टन है जबकि वियतनाम का 4,400 डॉलर और इंडानेशिया का 4,300-4,350 डॉलर प्रति टन है। इंडोनेशिया में नई फसल की आवक शुरू हो गई है जबकि अक्टूबर में ब्राजील की फसल आ जाएगी। इंडोनेशिया में काली मिर्च का उत्पादन 30 से 35 हजार टन और ब्राजील में 20 से 25 हजार टन होने की संभावना है। इन देशों की बिकवाली बढऩे से आगामी दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी काली मिर्च के दाम घट सकते हैं। कोच्चि स्थित केदारनाथ संस के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने बताया कि ऊंचे भाव पर मुनाफावसूली से काली मिर्च के दाम घटे हैं। पिछले करीब चार दिनों में काली मिर्च की कीमतों में 500 रुपये की गिरावट आ चुकी है। सोमवार को कोच्चि में एमजी-1 क्वालिटी का भाव घटकर 20,500 रुपये और अनगार्बल्ड का 19,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। 22 जुलाई को कोच्चि में एमजी-1 कालीमिर्च का भाव 21,000 रुपये और अनगार्बल्ड का भाव 20,400 रुपये प्रति क्विंटल था। उधर, एनसीडीईएक्स पर अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में पिछले पांच दिनों में करीब 4।3 फीसदी की गिरावट आकर सोमवार को भाव 20,536 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। काली मिर्च के निर्यातक महेंद्र पारिख ने बताया कि इंडोनेशिया और ब्राजील की फसल को देखते हुए वियतनाम की बिकवाली भी बढ़ सकती है। वियतनाम के पास अभी करीब 30-35 हजार टन का स्टॉक बचा हुआ है। उन्होंने बताया कि विश्व में काली मिर्च का कुल उत्पादन करीब 2.78 लाख टन होने का अनुमान है जबकि खपत 3.20 लाख टन होने का अनुमान है। इसीलिए घरेलू बाजार में मौजूदा कीमतों में 1,000-1,500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट की संभावना कम है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) के दौरान काली मिर्च के निर्यात में पांच फीसदी की कमी आई है। इस दौरान कुल निर्यात 4,650 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4,900 टन का निर्यात हुआ था। उद्योग सूत्रों के अनुसार घरेलू बाजार में काली मिर्च का 15 से 17 हजार टन का स्टॉक ही बचा हुआ है जबकि नई फसल दिसंबर में आएगी तथा आवक का दबाव जनवरी में बनेगा। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
Fruits, vegetables export grew 41 pc in 2009-10: Sharma
New Delhi, July 27 (PTI) Total export value of fruitsand vegetables grew 41 per cent in 2009-10 to Rs 5,17,330 overRs 3,65,915 of 2008-09, Commerce Minister Anand Sharmainformed the Parliament today। In a written reply to a question in the Lok Sabha, Sharmasaid that quantity-wise fruits and vegetables export grew 53per cent to 26,46,266 million tonnes in 2008-09 over 17,24,574million tonnes in 2007-08. Value-wise also export in 2008-09 rose by 50 per cent toRs 3,65,915 over Rs 2,43,713 in 2007-08. Quantity-wise increase in fruits and vegetables export in2009-10 over 2008-09 could not be gauged as figures for2009-10 are not available. "The export of fruits and vegetables has registered agrowth of over 112 per cent during the last three years(2007-08 to 2009-10) in terms of value," Sharma said. The minister further said that government has beenextending financial assistance to registered exporters throughAPEDA (Agricultural and Processed Food Products ExportDevelopment Authority) for encouraging export of commodities,including fruits and vegetables through its various schemes. He added that financial assistance to exportersregistered with APEDA ultimately benefits the farmers andgrowers of the fruits and vegetables in terms of remunerativeprices for their produce. (पीटीआई)
India's milk production rose to 112 mn tonnes last fiscal
New Delhi, July 27 (PTI) India's milk production grew by3।3 per cent to 112 million tonnes in the last fiscal,Parliament was informed today. "Milk production in the country grew by 3.3 per cent to112 million tonnes in 2009-10 fiscal as compared to 108.4million tonnes in the previous fiscal," Minister of State forFood and Agriculture K V Thomas said while responding to awritten query in the Lok Sabha. DM, Mother Dairy, Amul and others have increased milkprices by over Rs 6 per kg to ensure that farmers arecompensated for rising production costs. He said the reduced availability and increase in price offodder due to drought conditions in 2009 led to the increasein milk prices. The minister said that during the last fiscal, theNational Dairy Development Board had allowed the import of30,000 tonnes of milk powder and 15,000 tonnes of butter withzero import duty to augment the availability of liquid milkand stabilise the price of milk in the domestic market. "All state governments have been requested to exempt orreduce VAT on molasses and other cattle feed ingredients usedin manufacturing cattle feed to reduce the cost," Thomas said. (पीटीआई)
India exported 10.43 lakh tonnes of onion in H1 2010
New Delhi, July 27 (PTI) India exported 10।43 lakh tonnesof onions, worth Rs 1,141 crore, in the first six months ofthe current year, the Parliament was informed today. During the January-June period, India exported 10.4 lakhtonnes of onions and, in value terms, the total shipment stoodat Rs 1,141 crore, Minister of State for Commerce and IndustryJyotiraditya M Scindia said while responding to a writtenquery in the Lok Sabha. The minister said that onion was being exported regularlyduring the last six months because there was no scarcity ofthe commodity in the domestic market during the period, whichled to the softening of its market price. "There was no upward trend in the price of onions in thedomestic market in this period," Scindia said, adding thatcooperative major National Agriculture Cooperation MarketingFederation of India (NAFED) has revised the minimum exportprice of onion by more than four times, in accordance withthe price trend in the domestic market. (पीटीआई)
Oil companies to pay Rs 27 per litre for ethanol
New Delhi, July 27 (PTI) Oil companies will pay aninterim price of Rs 27 per litre for ethanol, which they willbuy from the sugar mills for doping in petrol, and a finalprice will be fixed after an expert committee submits itsreport। "This is an interim price that the EGoM has approved. Thefinal price will be dependent on the recommendations of anexpert committee appointed for the purpose," Oil Secretary SSunderashan said here today, when asked about the outcome ofof an Empowered Group of Ministers (EGoM) meet last evening. The EGoM had fixed the price at Rs 27 for a litre ofethanol in April this year as well. In October 2007, the Cabinet had made mandatory 5 percent ethanol blending across the country, with the exceptionof Jammu & Kashmir, North-East and island territories.However, the Petroleum Ministry had not been able to implementthe decision due to non-availability of the product. In March this year, the government had constituted theEGoM to resolve differences over mixing of ethanol in petrol.The Chemical Ministry was objecting to the use of ethanol forpetrol-blending, stating that the price of molasses they usefor manufacturing liquor has gone up. Both ethanol and alcohol are made from molasses, and thesugar industry had estimated a production of 160 crore litresin 2009-10. Potable liquor sector needs about 100 crore litres whilethe five per cent ethanol-blending programme would require 68crore litres. Besides, molasses are also required forindustrial purposes. The price increase was supposed to tempt producers tosell ethanol to oil firms, but the Chemical and FetiliserMinistry had protested by saying that the petrol-dopingprogramme will impinge upon the demand of potable liquorsector and chemical makers. The potable liquor sector and chemical producers are twoprimary consumers of molasses-based alcohol. It was statedthat the demand for the potable sector was increasing, andthere was no justification to increase the price of ethanol toRs 27 per litre. (पीटीआई)
26 जुलाई 2010
निर्यात मांग मजबूत होने से हल्दी के मूल्य में तेजी
स्टॉक कम बचने और निर्यात मांग जोरों पर होने के कारण हल्दी के मूल्य में तेजी का रुख बना हुआ है। कारोबारियों के अनुसार स्टॉक पिछले साल के मुकाबले कम है जबकि नई फसल आने में अभी सात माह का समय बाकी है। इसी वजह से पिछले दो सप्ताह में हल्दी के दाम करीब चार फीसदी बढ़ गए हैं।हल्दी की सबसे बड़ी उत्पादक मंडी इरोड में हल्दी 16,000 रुपये और निजामाबाद मंडी में 15,500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। निजामाबाद मंडी के थोक कारोबारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि निर्यात मांग बढऩे से उत्पादक मंडियों में हल्दी की कीमतों में तेजी आई है। इस समय मंडी में हल्दी की दैनिक आवक केवल 500 से 700 बोरी (प्रति बोरी 70 किलो) है जबकि इरोड में दैनिक आवक करीब 6000 बोरी हो रही है। इरोड मंडी में भाव 16,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। मंडियों में हल्दी का कुल स्टॉक पिछले साल की तुलना में करीब 20 से 25 फीसदी कम है जबकि नई फसल आने में करीब सात महीने का समय शेष है। ऐसे में थोक में हल्दी के दाम मजबूत ही बने रहने की संभावना है। उन्होंने बताया कि इस समय हल्दी का बकाया स्टॉक केवल 15 लाख बोरी ही बचा है जबकि नई फसल फरवरी महीने में आएगी। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों अप्रैल-मई में हल्दी के निर्यात में आठ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान हल्दी का निर्यात बढ़कर 10,350 टन का हुआ है, जो पिछले साल की समान अवधि के 9,625 टन रहा था।टरमरिक मर्चेंट्स एसोसिएशन के सदस्य एस। सी. गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में देश में हल्दी की पैदावार 48 लाख बोरी होने का अनुमान है जोपिछले साल के मुकाबले पांच लाख बोरी ज्यादा है। पिछले साल देश में हल्दी का कुल उत्पादन 43 लाख बोरी का हुआ था। चालू सीजन में नई फसल के समय उत्पादक मंडियों में हल्दी का बकाया स्टॉक करीब तीन लाख बोरी बचा था। ऐसे में हल्दी की कुल उपलब्धता 51 लाख बोरी बैठने का अनुमान है। जबकि घरेलू और निर्यात मांग को मिलाकर सालाना खपत 47 से 49 लाख बोरी की होती है। उन्होंने बताया कि हल्दी की बुवाई का कार्य लगभग समाप्त हो चुका है तथा चालू सीजन में हल्दी की बुवाई में 15-20 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।फुटकर में हल्दी पाउडर दोगुने भाव परनई दिल्ली। थोक के मुकाबले फुटकर उपभोक्ताओं को हल्दी के दोगुने दाम चुकाने पड़ रहे हैं। बड़े रिटेल स्टोरो में पैकेट बंद पिसी हल्दी पाउडर 300 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रही है जबकि उत्पादक मंडियों में हल्दी गांठ का दाम 155 से 160 रुपये प्रति किलो चल रहा है। रिटेल स्टोर बिग बाजार में हल्दी के आधा किलो के पैकेट पर 195 रुपये एमआरपी है लेकिन ऑफर देकर इसे ग्राहकों को 150 रुपये की दर पर बिक रही है। उधर किराना स्टोरोंं पर 100 ग्राम हल्दी का पैकेट 20 रुपये की दर से बिक रहा है। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
सोने के भाव में चमक रहने के आसार
सोने की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला साल 2011 में 11वें साल भी जारी रहने की पूरी उम्मीद है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर अभी भी अनिश्चितता का माहौल है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि सोने में निवेशकों की दिलचस्पी बनी रहेगी। सुरक्षित निवेश की चाह में लोग और सोना खरीदेंगे, जिससे इसकी कीमत बढ़ेगी। 55 विश्लेषकों और कारोबारियों के बीच हुए रॉयटर्स के हालिया सवेर् के मुताबिक, 2011 में सोने का दाम पहले के अनुमान से सात फीसदी ज्यादा 1,228 डॉलर प्रति औंस हो सकता है। इससे पहले जनवरी में किए गए सर्वे में अनुमान लगाया गया था कि सोने की कीमत साल 2011 में बढ़कर 1,150 डॉलर पर पहुंच सकती है। इसी तरह से साल 2010 के लिए भी सोने की कीमतों का अनुमान चार फीसदी बढ़ाकर 1,197 डॉलर प्रति औंस कर दिया गया है। इससे पहले जनवरी में इस साल सोने की कीमतें 1,150.50 डॉलर पर पहुंचने का अनुमान लगाया गया था। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बुधवार को सोने की कीमतों में तेजी आई। साथ ही इसका असर घरेलू बाजार पर भी दिखा जहां पांच दिन की गिरावट के बाद सोना मजबूत हुआ। पुर्तगाल के बॉन्ड नीलामी करने से पैदा हुई चिंताओं के चलते यूरोप में सोने की कीमतों में उछाल आया। हालांकि सोने की कीमत में यह उछाल सीमित ही रहा। हाजिर बाजार में सोने की कीमत 1,195.70 डॉलर प्रति औंस रही जबकि एक दिन पहले यह 1,191.40 डॉलर प्रति औंस थी। अमेरिका में सोने का अगस्त वायदा भाव 3.70 डॉलर मजबूत होकर 1,195.40 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। दिल्ली में सोना पिछले 5 दिन से जारी कमजोरी के रुझान को आखिरकार तोड़ने में कामयाब रहा। यहां सोने की कीमत 125 रुपए उछलकर 18,600 रुपए प्रति 10 ग्राम रही। औद्योगिक मांग के चलते चांदी भी 80 रुपए के उछाल के साथ 28,980 रुपए प्रति किलो पर पहुंच गई। कारोबारियों के मुताबिक, विदेशी बाजारों से मिले अच्छे संकेतों के चलते स्टॉकिस्टों और रीटेलरों ने जमकर खरीदारी की और इससे सोने की कीमतों में तेजी पैदा हुई। दुनिया के सबसे बड़े गोल्ड ईटीएफ एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट में हालांकि सोने की होल्डिंग में मंगलवार को दिसंबर के बाद एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट आई है। इस होल्डिंग में 6.1 टन की गिरावट मंगलवार को दर्ज की गई थी। सिटीग्रुप के एनालिस्ट डेविड थुर्टेल के मुताबिक, 'अप्रैल, मई और जून में सोने की खूब खरीदारी हुई है। हालांकि यूरोप संकट की वजह से सोने में ज्यादा तेजी दर्ज की गई है, लेकिन जैसे ही इस स्थिति में सुधार होगा सोने की कीमतों में गिरावट आएगी। हालांकि अभी भी ऐसे लोग हैं जो 1,200 डॉलर से ज्यादा कीमत पर सोने को खरीदने में घबराहट का अनुभव कर रहे हैं।' सोने की कीमतें जून के अंत में 1,264.90 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। यूरोप कर्ज संकट के चलते शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव आया है। इसके चलते सुरक्षित निवेश में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। सीपीएम ग्रुप के एनालिस्ट रोहित सावंत के मुताबिक, 'एक और मंदी का दौर आने की बड़ी चिंता ने सोने में निवेश की मांग को बनाए रखा है। निवेशक शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव को लेकर काफी सशंकित हैं।' ग्रीस, स्पेन और पुर्तगाल समेत कई सरकारों ने अपने यहां घाटे की भरपाई करने के लिए खर्च में कटौती की रणनीति अपनाई है। संकट के भंवर से जूझते इन देशों के खर्च में कटौती के कदम से कुछ हद तक शेयर बाजारों में भरोसा पैदा हुआ है। हालांकि बाजार को लेकर अभी भी चिंताएं कायम हैं। सोने में इस साल की शुरुआत से ही अच्छी तेजी बनी हुई है। इस साल की शुरुआत से अब तक सोने की कीमतों में करीब नौ फीसदी की तेजी आ चुकी है। लंबे वक्त के लिहाज से आर्थिक रिकवरी के रफ्तार पकड़ने और बाजारों में स्थिरता पैदा होने का असर सोने की कीमतों पर दिखाई दे सकता है। शेयर बाजारों में लोगों की निवेश दिलचस्पी बढ़ी तो सोना कमजोर पड़ सकता है। (ई टी हिंदी)
मोबाइल क्रांति से खेती को भी खासा फायदा
नई दिल्ली : छोटे किसानों को मोबाइल के जरिए खेती से जुड़ी जानकारियां मिलने पर स्थिति में सुधार आने लगी है। लेकिन इसमें और काफी कुछ सुधार लाने और दायरे को व्यापक बनाने के लिए महत्वपूर्ण पहल की जरूरत है। जिन राज्यों में मोबाइल से खेती के बारे जानकारी मिल रही है वहां अब भी बहुत सुधार की जरूरत है। मोबाइल सेवा उपलब्ध कराने वाले राज्यों में (अभी तक देशभर में जरूरी सेवाएं नहीं हैं) कराए गए एक स्टडी में पता चला है कि महाराष्ट्र के छोटे किसानों ने (जिनकी आमदनी 12-17,000 रुपए प्रति माह है) सूचना पाने के लिए सबसे ज्यादा फोन का इस्तेमाल किया। इससे उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में फायदा पहुंचा। फोन के सहारे किसानों को पैदावार में सुधार, कीमतों की जानकारी और बाजार में मांग के हिसाब से सप्लाई को बेहतर बनाने की जानकारी मिली। इसके अलावा उन्होंने फोन का इस्तेमाल व्यक्तिगत उद्देश्यों और मैसेजिंग के लिए भी किया। गौर करने वाली बात है उत्तर प्रदेश और राजस्थान के छोटे किसानों के बीच मोबाइल टेलीफोनी का फायदा केवल पैदावार में सुधार तक सीमित रह गया। इन राज्यों में कस्टमर सपोर्ट सर्विस कमजोर रहने से सूचनाओं का बेहतर आदान-प्रदान नहीं हो सका। भारतीय कृषि पर मोबाइल फोन से होने वाले सामाजिक-आर्थिक असर पर कराए गए अध्ययन के मुताबिक, 'इंफ्रास्ट्रक्चर में गुणात्मक सुधार और किसानों के बीच विश्वास बहाली सबसे जरूरी कदम है।' भारत में 12।73 करोड़ लोग खेती करते है। इसमें छोटे और गरीब किसानों की बड़ी आबादी है। खेती से जुड़ी जरूरी सूचनाएं उपलब्ध नहीं रहने के कारण पैदावार बढ़ाने की तरकीब और उत्पादों की सही कीमत इन लोगों को नहीं मिल पाती है। 2005 के एनएसएसओ सर्वे के मुताबिक, कृषि तकनीक और उनसे जुड़े सामानों की जानकारी केवल 40 फीसदी किसानों के पास ही है। लेखक सुरभि मित्तल का कहना है कि मोबाइल का इस्तेमाल अब भी सामाजिक उद्देश्यों के लिए ही होता है। अगर जरूरी बातों पर अमल किया गया तो मोबाइल फोन से खेती में उत्पादकता और आमदनी काफी बढ़ जाएगी। स्टडी में कहा गया है कि सही मायने में खेती में क्रांति लाने के लिए किसानों को सही समय और सही जगह पर सूचनाएं मुहैया करानी होगी। स्टडी के मुताबिक, 'बमुश्किल से किसानों को नियमित तौर पर विश्वसनीय और आधुनिक जानकारी मिल पाती है। आगे उन्हें उत्पादों की मांग से जुड़ी जानकारी देने की कोशिश भी नहीं की जाती है।' मोबाइल से मिलने वाली सूचनाओं से किसानों को फायदा पहुंचने के बाद इस सेवा का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी है। इसके बावजूद 5 एकड़ से कम जमीन रखने वाले छोटे किसानों को कई चीजों को बारे में सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं। उन्हें कम और ज्यादा समयावधि वाले फसल के बारे में पता नहीं होता है। उन्हें फसलों की बुआई, खेती के नए तरीकों, खाद का इस्तेमाल और बाजार कीमत के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। हालांकि, आपसी जानकारी बढ़ाने के लिए मोबाइल एक बढ़िया माध्यम बना हुआ है। छोटे किसानों को मुख्य रूप से मौसम की स्थिति, पौधों की सुरक्षा (रोग और कीट नियंत्रण) बीज और बाजार कीमत की जानकारी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के बीच कराए गए अध्ययन में पाया गया कि दोनों राज्यों के करीब 90 फीसदी किसान बीज के बारे में जानकारी मांगते हैं, जबकि 70 फीसदी किसानों को बाजार की कीमतों के बारे में जानने की दिलचस्पी रहती है। मुख्य रूप से बाजार में चल रही कीमत से उत्पाद को कब और कहां बिक्री करने की उलझन खत्म हो जाती है। इससे फसलों के पैटर्न के बारे में भी निर्णय लेना आसान हो जात है। मोबाइल सेवाओं के इस्तेमाल से बाजार की कीमत की सही जानकारी पाने के बाद किसानों को कारोबारियों के साथ अपने उत्पादों को लेकर ज्यादा मोलभाव आसान हो जाता है। खेतों में सिंचाई सुविधाओं का अभाव और बारिश पर निर्भर रहने वाली खेती के कारण किसानों के लिए मौसम की सही जानकारी ज्यादा जरूरी होती है। कुछ खास जगहों पर स्थानीय मौसम की जानकारी पाने से फसलों को फायदा पहुंचता है। अगर फसलों की कटाई के बाद और बिक्री से पहले बारिश होती है तो उससे उत्पादों को नुकसान पहुंचता है। एक अनुमान के मुताबिक, कुछ किसानों की कुल आमदनी में फसल कटाई के बाद का नुकसान 10 से 35 फीसदी होता है। (ई टी हिंदी)
आईसीईएक्स करेगा मौजूदा स्पॉट एक्सचेंजों से गठजोड़
मुंबई July 23, 2010
एमएमटीसी-इंडिया बुल्स प्रवर्तित जिंस डेरिवेटिव्स प्लेटफार्म, इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड कृषि और गैर कृषि जिंसों की ऑनलाइन बिक्री के लिए वर्तमान स्पॉट ट्रेडिंग एक्सचेंजों से गठजोड़ की योजना बना रहा है। आईसीईएक्स के सीईओ संजय चंदेल ने कहा, 'मेरे विचार से नई व्यवस्था बनाने की तुलना में मौजूदा एक्सचेंजों से गठजोड़ करना एक बेहतर विचार होगा। नई व्यवस्था बनाने से उसी स्थान पर पहले से मौजूद एक्सचेंजों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ेगा।' हालांकि उन्होंने समझौते के लिए बातचीत चल रहे किसी भी एक्सचेंज के नाम का खुलासा करने से इनकार किया है।निकट भविष्य में खुद का कारोबारी प्लेटफार्म विकसित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर चंदेल ने कहा कि स्पॉट ऑनलाइन ट्रेडिंग अभी बहुत शुरुआती अवस्था में है और इससे राजस्व अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा। इसलिए इसके लिए अलग प्लेटफार्म तैयार करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा- बहरहाल हमने इस दिशा में काम करना शुरू भी नहीं किया है। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स दोनो ही स्पॉट ट्रेडिंग प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। एमसीएक्स का गठजोड़ नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) से है, जिसकी प्रवर्तक मूल कंपनी फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज है। वही एनसीडीईएक्स ने एक अलग से हाजिर प्लेटफार्म- 'एनसीडीईएक्स स्पॉट' बनाया है। अहमदाबाद की एनएमसीई के साथ नैशनल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) जुड़ी हुई है, जो कपास और अरंडी बीज का हाजिर कारोबार अगस्त में शुरू करने पर विचार कर रही है। देश के सबसे बड़े हाजिर कारोबार प्लेटफार्म नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के एमडी व सीईओ अंजनि सिन्हा ने इस विचार का स्वागत करते हुए कहा, 'यह दोनो पक्ष के लिए लाभदायक होगा। दोनो ही संयुक्त कोशिश से जिंसों के ऑनलाइन प्लेटफार्म कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।'हर जिंस एक्सचेंज अपने खुद के सदस्य बनाएंगे और वे सदस्यता शुल्क लेंगे। राजस्व का संग्रह वायदा एक्सचेंज करेंगे, वह कारोबार शुल्क के आधार पर लिया जाएगा। यह वायदा सौदों पर निर्भर करेगा। हाजिर एक्सचेंज एक ही बुनियादी ढांचे पर काम कर सकेंगे, जो सभी वायदा एक्सचेंजों से जुड़े होंगे। (बीएस हिंदी)
एमएमटीसी-इंडिया बुल्स प्रवर्तित जिंस डेरिवेटिव्स प्लेटफार्म, इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड कृषि और गैर कृषि जिंसों की ऑनलाइन बिक्री के लिए वर्तमान स्पॉट ट्रेडिंग एक्सचेंजों से गठजोड़ की योजना बना रहा है। आईसीईएक्स के सीईओ संजय चंदेल ने कहा, 'मेरे विचार से नई व्यवस्था बनाने की तुलना में मौजूदा एक्सचेंजों से गठजोड़ करना एक बेहतर विचार होगा। नई व्यवस्था बनाने से उसी स्थान पर पहले से मौजूद एक्सचेंजों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ेगा।' हालांकि उन्होंने समझौते के लिए बातचीत चल रहे किसी भी एक्सचेंज के नाम का खुलासा करने से इनकार किया है।निकट भविष्य में खुद का कारोबारी प्लेटफार्म विकसित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर चंदेल ने कहा कि स्पॉट ऑनलाइन ट्रेडिंग अभी बहुत शुरुआती अवस्था में है और इससे राजस्व अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा। इसलिए इसके लिए अलग प्लेटफार्म तैयार करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा- बहरहाल हमने इस दिशा में काम करना शुरू भी नहीं किया है। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स दोनो ही स्पॉट ट्रेडिंग प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। एमसीएक्स का गठजोड़ नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) से है, जिसकी प्रवर्तक मूल कंपनी फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज है। वही एनसीडीईएक्स ने एक अलग से हाजिर प्लेटफार्म- 'एनसीडीईएक्स स्पॉट' बनाया है। अहमदाबाद की एनएमसीई के साथ नैशनल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) जुड़ी हुई है, जो कपास और अरंडी बीज का हाजिर कारोबार अगस्त में शुरू करने पर विचार कर रही है। देश के सबसे बड़े हाजिर कारोबार प्लेटफार्म नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के एमडी व सीईओ अंजनि सिन्हा ने इस विचार का स्वागत करते हुए कहा, 'यह दोनो पक्ष के लिए लाभदायक होगा। दोनो ही संयुक्त कोशिश से जिंसों के ऑनलाइन प्लेटफार्म कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।'हर जिंस एक्सचेंज अपने खुद के सदस्य बनाएंगे और वे सदस्यता शुल्क लेंगे। राजस्व का संग्रह वायदा एक्सचेंज करेंगे, वह कारोबार शुल्क के आधार पर लिया जाएगा। यह वायदा सौदों पर निर्भर करेगा। हाजिर एक्सचेंज एक ही बुनियादी ढांचे पर काम कर सकेंगे, जो सभी वायदा एक्सचेंजों से जुड़े होंगे। (बीएस हिंदी)
चावल निर्यात पर कवायद तेज
नई दिल्ली July 23, 2010
केंद्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगे 2 साल पुराने प्रतिबंध पर आंशिक छूट देने पर विचार कर सकती है। साथ ही प्रीमियम गैर-बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 900 डॉलर प्रति टन तय किया जा सकता है। आने वाले दिनों में प्रस्तावित मंत्रिसमूह (जीओएम) की बैठक में बासमती के साथ गैर बासमती चावल के निर्यात पर चर्चा होगी। सरकार गैर बासमती चावल के कुछ किस्मों जैसे सुगंधा और सरबती चावल के निर्यात पर ढील देने पर विचार कर रही है। इसकी पैदावार उत्तर भारत में होती है। साथ ही पूनी, सोना मसूरी, मट्टा के निर्यात की छूट देने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसकी पैदावार दक्षिण भारत में होती है। इन किस्मों की मांग पश्चिम एशिया के देशों, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बहुत ज्यादा है। मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'गैर बासमती चावल की प्रीमियम किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाने का मामला बन रहा है। इसकी मांग विदेश में बहुत ज्यादा है। घरेलू बाजार में इसकी बहुत ज्यादा मांग नहीं है, ऐसे में आम आदमी पर इसका प्रभाव पडऩे का सवाल ही नहीं उठता। इसका राशन सिस्टम पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखते हुए गैर बासमती चावल की इन किस्मों का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय किया जाएगा।' कृषि मंत्रालय से जुड़े अधिकारी ने यह भी कहा ्िक निर्यात की अनुमति 1 अक्टूबर से मिल सकती है। इस मसले पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालयों ने बातचीत की है। इस सिलसिले में अंतिम फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह द्वारा लिया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी करेंगे। उम्मीद है कि यह बैठक अगले महीने होगी। एग्रीकल्चरल ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के मोटे अनाज विभाग के प्रमुख एके गुप्ता ने कहा, 'न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन के आसपास तय किया जाना चाहिए। बासमती चावल के निर्यात से सिर्फ प्रीमियम या महंगे किस्म के चावल का निर्यात होगा, न कि सस्ते चावल का। खासकर पूनी और सोना मंसूरी की निर्यात मांग उन इलाकों में तेजी से बढ़ रही है, जहां भारतीय रहते हैं।'गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध अप्रैल 2008 में लगाया गया था। इसका उद्देश्य उस समय बढ़ी महंगाई दर पर काबू पाना था। इस सप्ताह की शुरुआत में वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा था कि सरकार चावल की कुछ निश्चित किस्मों के निर्यात को अनुमति देने के बारे में विचार कर रही है।प्रीमियम किस्म के गैर बासमती चावल का देश में सालाना उत्पादन 40 से 50 लाख टन है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा- अगर इसमें से 10 लाख टन चावल का निर्यात किया जाता है तो मैं मानता हूं कि घरेलू बाजार में आपूर्ति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि दो साल लंबे प्रतिबंध के बाद प्रतिस्पर्धी देशों- पाकिस्तान, वियतनाम और थाईलैंड को फायदा मिला है, जिन्होंने न सिर्फ निर्यात बढ़ा दिया है, बल्कि वे भारत के परंपरागत बाजार पर कब्जा जमाने के लिए कम कीमत पर माल बेच रहे हैं। (बीएस हिंदी)
केंद्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगे 2 साल पुराने प्रतिबंध पर आंशिक छूट देने पर विचार कर सकती है। साथ ही प्रीमियम गैर-बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 900 डॉलर प्रति टन तय किया जा सकता है। आने वाले दिनों में प्रस्तावित मंत्रिसमूह (जीओएम) की बैठक में बासमती के साथ गैर बासमती चावल के निर्यात पर चर्चा होगी। सरकार गैर बासमती चावल के कुछ किस्मों जैसे सुगंधा और सरबती चावल के निर्यात पर ढील देने पर विचार कर रही है। इसकी पैदावार उत्तर भारत में होती है। साथ ही पूनी, सोना मसूरी, मट्टा के निर्यात की छूट देने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसकी पैदावार दक्षिण भारत में होती है। इन किस्मों की मांग पश्चिम एशिया के देशों, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बहुत ज्यादा है। मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'गैर बासमती चावल की प्रीमियम किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाने का मामला बन रहा है। इसकी मांग विदेश में बहुत ज्यादा है। घरेलू बाजार में इसकी बहुत ज्यादा मांग नहीं है, ऐसे में आम आदमी पर इसका प्रभाव पडऩे का सवाल ही नहीं उठता। इसका राशन सिस्टम पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखते हुए गैर बासमती चावल की इन किस्मों का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय किया जाएगा।' कृषि मंत्रालय से जुड़े अधिकारी ने यह भी कहा ्िक निर्यात की अनुमति 1 अक्टूबर से मिल सकती है। इस मसले पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालयों ने बातचीत की है। इस सिलसिले में अंतिम फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह द्वारा लिया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी करेंगे। उम्मीद है कि यह बैठक अगले महीने होगी। एग्रीकल्चरल ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के मोटे अनाज विभाग के प्रमुख एके गुप्ता ने कहा, 'न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन के आसपास तय किया जाना चाहिए। बासमती चावल के निर्यात से सिर्फ प्रीमियम या महंगे किस्म के चावल का निर्यात होगा, न कि सस्ते चावल का। खासकर पूनी और सोना मंसूरी की निर्यात मांग उन इलाकों में तेजी से बढ़ रही है, जहां भारतीय रहते हैं।'गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध अप्रैल 2008 में लगाया गया था। इसका उद्देश्य उस समय बढ़ी महंगाई दर पर काबू पाना था। इस सप्ताह की शुरुआत में वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा था कि सरकार चावल की कुछ निश्चित किस्मों के निर्यात को अनुमति देने के बारे में विचार कर रही है।प्रीमियम किस्म के गैर बासमती चावल का देश में सालाना उत्पादन 40 से 50 लाख टन है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा- अगर इसमें से 10 लाख टन चावल का निर्यात किया जाता है तो मैं मानता हूं कि घरेलू बाजार में आपूर्ति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि दो साल लंबे प्रतिबंध के बाद प्रतिस्पर्धी देशों- पाकिस्तान, वियतनाम और थाईलैंड को फायदा मिला है, जिन्होंने न सिर्फ निर्यात बढ़ा दिया है, बल्कि वे भारत के परंपरागत बाजार पर कब्जा जमाने के लिए कम कीमत पर माल बेच रहे हैं। (बीएस हिंदी)
अच्छी बारिश ने लौटाई मुस्कान, बुआई का रकबा बढ़ा
July 25, 2010
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के सामान्य प्रदर्शन से जलाशयों में जल संग्रह को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं, यद्यपि कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो खरीफ फसल की बुआई में कोई दिक्कत नहीं हुई।गौर करने वाली बात है कि पश्चिम से पूरब तक गुजरात, पूर्वी राजस्थान, मध्यप्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और गंगातटीय पश्चिम बंगाल तक फैले मध्य भारत में बारिश की कमी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र के कई हिस्सों से अच्छी बुआई की रिपोर्टें मिल रही हैं। लेकिन खराब वर्षा से मध्य प्रदेश-राजस्थान में सोयाबीन और गुजरात में मूंगफली की फसल काफी हद तक प्रभावित हुई है। इस वजह से मुंबई के बाजार में सोयाबीन और मूंगफली तेल के दामों में उछाल आ गया है।उधर, खुशबूदार बासमती वाले क्षेत्रों में बुआई क्षेत्र में जोरदार इजाफा देखने को मिला है, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के वे क्षेत्र जो बाढ़ से प्रभावित रहे थे। वहां बाढ़ के पानी की निकासी के बाद किसानों ने बासमती की बुआई कर दी है। इससे गुणवत्ता वाले चावलों के निर्यात के लिए अच्छा है।समग्र रूप से देखा जाए तो गत वर्ष की तुलना में 22 जुलाई तक धान, मोटा अनाज, तिलहन, दहलन, गन्ना, कपास, जूट सहित लगभग सभी फसलों के बुआई क्षेत्र में इजाफा देखने को मिला है।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) को पूरा भरोसा है कि सितंबर के अंत तक बारिश की कमी की भरपाई हो जाएगी। 21 जुलाई तक मॉनसून में 14 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। 23 जुलाई को आईएमडी द्वारा जारी बयान के मुताबिक, भूमध्यरेखीय हवाओं के प्रवाह के तेज होने से और पश्चिम तट से हवाओं के चलने से मॉनसून मजबूत हुआ है। आईएमडी ने बताया कि अगले सप्ताह मध्य, उत्तर और पश्चिम भारत में मॉनसून और मजबूत होने की संभावना है। अगर यह अनुमान सही साबित होता है तो मध्य भारत में फसलों के बुआई क्षेत्र में और इजाफा देखने को मिलेगा। खरीफ की फसल को लेकर अब चिंता नहीं है। अब जल संग्रहण को लेकर चिंताएं ज्यादा हैं जो लगातार बढ़ती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) के मुताबिक, 22 जुलाई तक देश के 81 बड़े जलाशयों में 28।65 अरब घन मीटर पानी मौजूद था। जो सामान्य (पिछले 10 वर्षों का औसत) से 35 फीसदी कम और गत वर्ष की तुलना में 32 फीसदी कम था। इससे सिंचाई और बिजली उत्पादन को लेकर समस्या पैदा हो सकती है, क्योंकि 81 जलाशयों में से 36 पर बिजली संयंत्र लगे हुए हैं। केरल और तमिलनाडु को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में स्थित बांधों में जल संग्रह क्षमता से 40 फीसदी कम है। विशेषकर पूर्वी राज्यों में तो हालात और भी खराब हैं। पश्चिम बंगाल के बांधों में पानी सामान्य से 78 फीसदी कम, उड़ीसा में 67 फीसदी और झारखंड में 42 फीसदी कम है। कुछ ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी है जहां 22 जुलाई को जलस्तर 62 फीसदी और हिमाचल प्रदेश में 33 फीसदी कम था। उधर, मॉनसून अवधि के साथ ही बारिश में कमी बढ़ती जा रही है। जो 6 जून को 6 फीसदी से बढ़कर मध्य जून तक 16 फीसदी तक पहुंच गई थी। यद्यपि 21 जुलाई तक 14 फीसदी के साथ इसमें कुछ कमी देखने को मिली। हालांकि, मॉनसून को लेकर चिंता अभी तक खत्म नहीं हुई हैं क्योंकि मॉनसून का आधा समय लगभग खत्म हो चुका है। (बीएस हिंदी)
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के सामान्य प्रदर्शन से जलाशयों में जल संग्रह को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं, यद्यपि कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो खरीफ फसल की बुआई में कोई दिक्कत नहीं हुई।गौर करने वाली बात है कि पश्चिम से पूरब तक गुजरात, पूर्वी राजस्थान, मध्यप्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और गंगातटीय पश्चिम बंगाल तक फैले मध्य भारत में बारिश की कमी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र के कई हिस्सों से अच्छी बुआई की रिपोर्टें मिल रही हैं। लेकिन खराब वर्षा से मध्य प्रदेश-राजस्थान में सोयाबीन और गुजरात में मूंगफली की फसल काफी हद तक प्रभावित हुई है। इस वजह से मुंबई के बाजार में सोयाबीन और मूंगफली तेल के दामों में उछाल आ गया है।उधर, खुशबूदार बासमती वाले क्षेत्रों में बुआई क्षेत्र में जोरदार इजाफा देखने को मिला है, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के वे क्षेत्र जो बाढ़ से प्रभावित रहे थे। वहां बाढ़ के पानी की निकासी के बाद किसानों ने बासमती की बुआई कर दी है। इससे गुणवत्ता वाले चावलों के निर्यात के लिए अच्छा है।समग्र रूप से देखा जाए तो गत वर्ष की तुलना में 22 जुलाई तक धान, मोटा अनाज, तिलहन, दहलन, गन्ना, कपास, जूट सहित लगभग सभी फसलों के बुआई क्षेत्र में इजाफा देखने को मिला है।भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) को पूरा भरोसा है कि सितंबर के अंत तक बारिश की कमी की भरपाई हो जाएगी। 21 जुलाई तक मॉनसून में 14 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। 23 जुलाई को आईएमडी द्वारा जारी बयान के मुताबिक, भूमध्यरेखीय हवाओं के प्रवाह के तेज होने से और पश्चिम तट से हवाओं के चलने से मॉनसून मजबूत हुआ है। आईएमडी ने बताया कि अगले सप्ताह मध्य, उत्तर और पश्चिम भारत में मॉनसून और मजबूत होने की संभावना है। अगर यह अनुमान सही साबित होता है तो मध्य भारत में फसलों के बुआई क्षेत्र में और इजाफा देखने को मिलेगा। खरीफ की फसल को लेकर अब चिंता नहीं है। अब जल संग्रहण को लेकर चिंताएं ज्यादा हैं जो लगातार बढ़ती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) के मुताबिक, 22 जुलाई तक देश के 81 बड़े जलाशयों में 28।65 अरब घन मीटर पानी मौजूद था। जो सामान्य (पिछले 10 वर्षों का औसत) से 35 फीसदी कम और गत वर्ष की तुलना में 32 फीसदी कम था। इससे सिंचाई और बिजली उत्पादन को लेकर समस्या पैदा हो सकती है, क्योंकि 81 जलाशयों में से 36 पर बिजली संयंत्र लगे हुए हैं। केरल और तमिलनाडु को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में स्थित बांधों में जल संग्रह क्षमता से 40 फीसदी कम है। विशेषकर पूर्वी राज्यों में तो हालात और भी खराब हैं। पश्चिम बंगाल के बांधों में पानी सामान्य से 78 फीसदी कम, उड़ीसा में 67 फीसदी और झारखंड में 42 फीसदी कम है। कुछ ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी है जहां 22 जुलाई को जलस्तर 62 फीसदी और हिमाचल प्रदेश में 33 फीसदी कम था। उधर, मॉनसून अवधि के साथ ही बारिश में कमी बढ़ती जा रही है। जो 6 जून को 6 फीसदी से बढ़कर मध्य जून तक 16 फीसदी तक पहुंच गई थी। यद्यपि 21 जुलाई तक 14 फीसदी के साथ इसमें कुछ कमी देखने को मिली। हालांकि, मॉनसून को लेकर चिंता अभी तक खत्म नहीं हुई हैं क्योंकि मॉनसून का आधा समय लगभग खत्म हो चुका है। (बीएस हिंदी)
सोने को 1175 डॉलर पर समर्थन
मुंबई July 25, 2010
शुक्रवार को सोने का वायदा कारोबार घटकर बंद हुआ। यह कमी इस धारणा के बाद आई कि वित्तीय मजबूती के परीक्षण में असफल रहेयूरोप के 7 बैंक मंदी का दूसरा झटका नहीं झेल पाएंगे। इस जांच में जर्मनी और यूनान के बैंक कमजोर दिखे और उनके पुर्नगठन की जरूरत महसूस हुई। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में अगस्त डिलिवरी वाले सोने का कारोबार 7।80 डॉलर गिरकर 1187 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। इस स्तर पर बंद होने के पहले सोने की कीमतें 1203.90 डॉलर के उच्चतम और 1183.40 डॉलर के न्यूनतम स्तर पर गईं। ब्लूमबर्ग के शुक्रवार के टाइम-प्राइस अपॉच्र्यूनिटी (टीपीओ) आंकड़ों के मुताबिक सोने की कीमतें निकट भविष्य में 1207.50 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच सकती हैं क्योंकि कारोबार के लिहाज से इसे 1177.50 डॉलर के करीब समर्थन मिलने की उम्मीद है। अगस्त वायदा कारोबार के लिए तकनीकी प्रतिरोध 1210.30 डॉलर पर मिलने की उम्मीद है, वहीं 1175.10 डॉलर पर समर्थन मिल सकता है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में सोने के अगस्त वायदा को अगले सप्ताह 18090 रुपये पर समर्थन मिल सकता है, वहीं 18,450 पर कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ सकता है। पिछले कुछ सप्ताह के दौरान देखा गया है कि सटोरिया दिलचस्पी में गिरावट देखी गई है और सोने की हाजिर खरीदारी घटी है। इस कारण कीमतें दो महीने के निचले स्तर पर पहुंचते हुए 1175 डॉलर प्रति औंस तक चली गई हैं, जो अब तक के सर्वोच्च स्तर से करीब 6 प्रतिशत कम है। जहां निवेशक गिरावट के दौरान मोल तोल में जुटे रहे, पर इससे बाजार में आक्रामक खरीद नहीं आई। इस बीच, दुनिया के सबसे बड़े सोने के समर्थन वाले एक्सचेंज ट्रेडेड फंड एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट की होल्डिंग में दूसरे सप्ताह भी कमी की खबर है। जून के अंत में उसका भंडार 1320.436 टन के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था। यूएस कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन के आंकड़ों के मुताबिक हेज फंड प्रबंधकों और अन्य बड़े सटोरियों ने न्यूयॉर्क गोल्ड फ्यूचर्स में 20 जुलाई को समाप्त सप्ताह में अपनी नेट लांग पोजिशन घटाई है। एक सप्ताह पहले की तुलना में सटोरिया नेट लॉन्ग पोजिशंस 13 प्रतिशत या 26,614 सौदे घटी है। खननकर्ता, उत्पादक, जौहरी और अन्य औद्योगिक उपभोक्ताओं ने 215664 सौदे नेट शार्ट किए जो इसके पहले के सप्ताह की तुलना में 32,684 सौदे या 13 प्रतिशत कम है। हर शुक्रवार को सीएफटीसी हेज फंडों और संस्थागत निवेशकों के साथ वाणिज्यिक कंपनियों की लांग और शॉर्ट सटोरिया पोजीशन की संख्या प्रकाशित करता है। ये पोजीशन वे होती हैं जो ये फंड या कंपनियां कीमतों के उतार चढ़ाव से बचने के लिए खरीदी या बेची जाती हैं। (बीएस हिंदी)
शुक्रवार को सोने का वायदा कारोबार घटकर बंद हुआ। यह कमी इस धारणा के बाद आई कि वित्तीय मजबूती के परीक्षण में असफल रहेयूरोप के 7 बैंक मंदी का दूसरा झटका नहीं झेल पाएंगे। इस जांच में जर्मनी और यूनान के बैंक कमजोर दिखे और उनके पुर्नगठन की जरूरत महसूस हुई। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में अगस्त डिलिवरी वाले सोने का कारोबार 7।80 डॉलर गिरकर 1187 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। इस स्तर पर बंद होने के पहले सोने की कीमतें 1203.90 डॉलर के उच्चतम और 1183.40 डॉलर के न्यूनतम स्तर पर गईं। ब्लूमबर्ग के शुक्रवार के टाइम-प्राइस अपॉच्र्यूनिटी (टीपीओ) आंकड़ों के मुताबिक सोने की कीमतें निकट भविष्य में 1207.50 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच सकती हैं क्योंकि कारोबार के लिहाज से इसे 1177.50 डॉलर के करीब समर्थन मिलने की उम्मीद है। अगस्त वायदा कारोबार के लिए तकनीकी प्रतिरोध 1210.30 डॉलर पर मिलने की उम्मीद है, वहीं 1175.10 डॉलर पर समर्थन मिल सकता है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में सोने के अगस्त वायदा को अगले सप्ताह 18090 रुपये पर समर्थन मिल सकता है, वहीं 18,450 पर कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ सकता है। पिछले कुछ सप्ताह के दौरान देखा गया है कि सटोरिया दिलचस्पी में गिरावट देखी गई है और सोने की हाजिर खरीदारी घटी है। इस कारण कीमतें दो महीने के निचले स्तर पर पहुंचते हुए 1175 डॉलर प्रति औंस तक चली गई हैं, जो अब तक के सर्वोच्च स्तर से करीब 6 प्रतिशत कम है। जहां निवेशक गिरावट के दौरान मोल तोल में जुटे रहे, पर इससे बाजार में आक्रामक खरीद नहीं आई। इस बीच, दुनिया के सबसे बड़े सोने के समर्थन वाले एक्सचेंज ट्रेडेड फंड एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट की होल्डिंग में दूसरे सप्ताह भी कमी की खबर है। जून के अंत में उसका भंडार 1320.436 टन के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था। यूएस कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन के आंकड़ों के मुताबिक हेज फंड प्रबंधकों और अन्य बड़े सटोरियों ने न्यूयॉर्क गोल्ड फ्यूचर्स में 20 जुलाई को समाप्त सप्ताह में अपनी नेट लांग पोजिशन घटाई है। एक सप्ताह पहले की तुलना में सटोरिया नेट लॉन्ग पोजिशंस 13 प्रतिशत या 26,614 सौदे घटी है। खननकर्ता, उत्पादक, जौहरी और अन्य औद्योगिक उपभोक्ताओं ने 215664 सौदे नेट शार्ट किए जो इसके पहले के सप्ताह की तुलना में 32,684 सौदे या 13 प्रतिशत कम है। हर शुक्रवार को सीएफटीसी हेज फंडों और संस्थागत निवेशकों के साथ वाणिज्यिक कंपनियों की लांग और शॉर्ट सटोरिया पोजीशन की संख्या प्रकाशित करता है। ये पोजीशन वे होती हैं जो ये फंड या कंपनियां कीमतों के उतार चढ़ाव से बचने के लिए खरीदी या बेची जाती हैं। (बीएस हिंदी)
24 जुलाई 2010
खाद्य तेल भी जेब पर भारी
दालों व सब्जियों के बाद अब खाद्य तेलों की कीमतें बढऩी शुरू हो गई हैं। पिछले एक महीने में घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के दाम थोक बाजार में 2।50 रुपये से 10 रुपये प्रति किलो तक बढ़ चुके हैं। आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में भी इस दौरान 3.4 से 5.4 फीसदी की तेजी आई है। चालू तेल वर्ष के पहले आठ महीनों में खाद्य तेलों का आयात चार फीसदी घटा है, जबकि घरेलू तिलहनों का उत्पादन करीब 28 लाख टन कम होने का अनुमान है। ऐसे में आगामी दिनों में उपभोक्ताओं को खाद्य तेलों के भी ज्यादा दाम चुकाने पड़ सकते हैं।दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि पिछले एक महीने में आयातित खाद्य तेलों के दाम बढ़े हैं। वैसे भी अगस्त महीने में त्योहारी सीजन शुरू हो जाएगा, इसलिए घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की मांग पहले की तुलना में बढ़ गई है। बारिश के मौसम में अमूमन खाद्य तेलों की खपत बढ़ जाती है, इसलिए पिछले एक महीने में घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के थोक दाम करीब 2.5 से 10 रुपये प्रति किलो तक बढ़ चुके हैं।सरसों तेल का भाव जयपुर में पिछले एक महीने में 470 रुपये से बढ़कर 530 रुपये, सोयाबीन रिफाइंड तेल का भाव इंदौर में 445 रुपये से बढ़कर 485 रुपये, क्रूड पॉम तेल का भाव कांडला बंदरगाह पर 365 रुपये से बढ़कर 390 रुपये, आरबीडी पामोलीन का भाव इस दौरान 388 रुपये से बढ़कर 425 रुपये और राजकोट में मूंगफली तेल का भाव 725 रुपये से बढ़कर 825 रुपये प्रति दस किलो हो गए। एसवी एसोसिएट्स के डायरेक्टर सतीश अग्रवाल ने बताया कि आयातित खाद्य तेलों के दाम भी पिछले एक महीने में 3.4 फीसदी से 5.4 फीसदी बढ़े हैं। क्रूड पाम तेल का भाव मुंबई में 17 जून को 790 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) था जो शुक्रवार को बढ़कर 817 डॉलर प्रति टन हो गया। इस दौरान आरबीडी पामोलीन का भाव 792 डॉलर से बढ़कर 835 डॉलर प्रति टन हो गया। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले आठ महीनों (नवंबर-09 से जून-10) के दौरान कुल 55.81 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो चुका है, जो गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब चार फीसदी कम है। पिछले छह महीने में आयात में लगातार कमी आई है। हालांकि घरेलू बाजार में तिलहनों का बकाया स्टॉक अच्छा है, लेकिन नीचे भावों पर स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आने से भी तेजी को बल मिला है।महंगाई की मारघरेलू तिलहन का भारी स्टॉक होने के बावजूद तेजीस्टॉकिस्ट कम भाव पर बेचने को तैयार नहीं पिछले आठ माह में खाद्य तेलों का आयात 4' घटाविदेशी बाजारों में भी तेजी का रुख (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
सस्ती सब्जियों ने दी महंगाई से मामूली राहत
नई दिल्ली July 23, 2010
महंगाई से परेशान उपभोक्ताओं को सब्जियों की कीमतों में आ रही है गिरावट से राहत मिलने लगी है। सप्ताह भर में सब्जियों के थोक और खुदरा दोनों मूल्यों में काफी गिरावट आ चुकी है। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में सब्जियों के दाम आगे और घट सकते हैं। दिल्ली स्थित सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मंडियों में सब्जियों की आवक पहले के मुकाबले सुधरी है। इस वजह से इनकी कीमतों में कमी आने लगी है। आवक सुधरने के बारे में भल्ला का कहना है कि बीते दिनों में बारिश से दिल्ली से सटे सब्जी उत्पादक इलाकों में सब्जी की फसल को फायदा होने से आवक धीमे-धीमे बढऩे लगी है। इससे मंडी में लौकी के थोक भाव 7 रुपये घटकर 10-15 रुपये , तोरई के दाम 6 रुपये घटकर 12-16 रुपये, गोभी के दाम 5 रुपये घटकर 22-25 रुपये और शिमला मिर्च के दाम सात रुपये घटकर 20-22 रुपये प्रति किलो रह गए है। भिंडी कारोबारी विनीत अरोड़ा ने कहा कि भिंडी 5 रुपये घटकर 12-13 रुपये प्रति किलो बिक रही है। मयूर फेस-3 में सब्जी का खुदरा में कारोबार करने वाले अवधेश कुमार ने बताया कि थोक में सब्जियों के दाम घटने से खुदरा में भी इसकी कीमतों में कमी आई है। आजादपुर टमाटर ट्रेडर एसोसिएशन के महासचिव सुभाष चुघ का कहना है कि मंडी में टमाटर की आवक 8-10 ट्रक से बढ़कर 18-20 ट्रक हो गई है, जिससे टमाटर के दाम आधे रह गए हैं। मंडी में टमाटर 20-25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। भल्ला का कहना है कि आने वाले दिनों में नासिक बेंगलुरु से टमाटर की आवक बढऩे पर दाम और घटेंगे। मटर कारोबारी अमित का कहना है कि मटर के दाम 10 रुपये घटकर 40-45 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।कारोबारियों के मुताबिक आगे सब्जियों की कीमतों में और गिरावट की उम्मीद है। गाजीपुर सब्जी मंडी के सब्जी कारोबारी राशिद कुरैशी का कहना है कि बीते दिनों मे हुई बारिश का असर सब्जियों की फसल पर पड़ा है। (बीएस हिंदी)
महंगाई से परेशान उपभोक्ताओं को सब्जियों की कीमतों में आ रही है गिरावट से राहत मिलने लगी है। सप्ताह भर में सब्जियों के थोक और खुदरा दोनों मूल्यों में काफी गिरावट आ चुकी है। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में सब्जियों के दाम आगे और घट सकते हैं। दिल्ली स्थित सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मंडियों में सब्जियों की आवक पहले के मुकाबले सुधरी है। इस वजह से इनकी कीमतों में कमी आने लगी है। आवक सुधरने के बारे में भल्ला का कहना है कि बीते दिनों में बारिश से दिल्ली से सटे सब्जी उत्पादक इलाकों में सब्जी की फसल को फायदा होने से आवक धीमे-धीमे बढऩे लगी है। इससे मंडी में लौकी के थोक भाव 7 रुपये घटकर 10-15 रुपये , तोरई के दाम 6 रुपये घटकर 12-16 रुपये, गोभी के दाम 5 रुपये घटकर 22-25 रुपये और शिमला मिर्च के दाम सात रुपये घटकर 20-22 रुपये प्रति किलो रह गए है। भिंडी कारोबारी विनीत अरोड़ा ने कहा कि भिंडी 5 रुपये घटकर 12-13 रुपये प्रति किलो बिक रही है। मयूर फेस-3 में सब्जी का खुदरा में कारोबार करने वाले अवधेश कुमार ने बताया कि थोक में सब्जियों के दाम घटने से खुदरा में भी इसकी कीमतों में कमी आई है। आजादपुर टमाटर ट्रेडर एसोसिएशन के महासचिव सुभाष चुघ का कहना है कि मंडी में टमाटर की आवक 8-10 ट्रक से बढ़कर 18-20 ट्रक हो गई है, जिससे टमाटर के दाम आधे रह गए हैं। मंडी में टमाटर 20-25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। भल्ला का कहना है कि आने वाले दिनों में नासिक बेंगलुरु से टमाटर की आवक बढऩे पर दाम और घटेंगे। मटर कारोबारी अमित का कहना है कि मटर के दाम 10 रुपये घटकर 40-45 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।कारोबारियों के मुताबिक आगे सब्जियों की कीमतों में और गिरावट की उम्मीद है। गाजीपुर सब्जी मंडी के सब्जी कारोबारी राशिद कुरैशी का कहना है कि बीते दिनों मे हुई बारिश का असर सब्जियों की फसल पर पड़ा है। (बीएस हिंदी)
इल्ली बनी सोयाबीन की दुश्मन
इंदौर July 23, 2010
कम वर्षा के बाद सोया उत्पादकों को इल्ली की मार से दो-चार होना पड़ रहा है। इसके चलते सोया की अधिकतर घनी फसलों में उत्पादन लगभग 30 फीसदी तक कम होने की आशंका बनी हुई है। वर्तमान बुआई सत्र में इल्ली लगने का प्रमुख कारण सामान्य से कम वर्षा और अधिक गर्मी को बताया जा रहा है। ऐसे में पहले से ही कम वर्षा के चलते सोया के कम उत्पादन की आशंका बनी हुई थी, इल्ली के प्रकोप से फसलों को और नुकसान होगा। इल्ली लगने वाली फसलों में अधिकतर 1 माह के आस-पास बोवनी वाली फसलें हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सोया बुआई के 20 से 25 दिनों में ही फसलों में फूल आने शुरू हो जाते हैं, जबकि इस बार ऐसा न होने से सोया फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। वर्तमान सत्र में कम वर्षा के चलते जमीन में नमी की कमी है। साथ ही बुआई में हुई देरी से भी सोया उत्पादन प्रभावित हो रहा है। राज्य में जहां सोया की अधिक घनी फसल है, वहां पर इल्ली का प्रकोप ज्यादा है। सोया की फसल घनी होने का प्रमुख कारण किसानों द्वारा बुआई के समय खेतों में अधिक बीज डालना है।इल्ली से सोया की वर्तमान फसल को होने वाले नुकसान के बारे में कृषि विभाग के संचालक डी एन शर्मा ने बात करने से मना कर दिया। इस संबंध में सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में कई जगह सोया की फसलों में इल्ली लगने की शिकायत आ रही है। अगर जल्द ही इल्ली प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा नहीं होती है तो सोया की फसलों को काफी नुकसान होने की आशंका है। वर्तमान में राज्य में केवल बौछारें ही आ रही हैं। इन बौछारों से सोया की फसलों में लगी इल्ली को हटाया नहीं जा सकता है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान जैसे राज्यों में काफी मात्रा में सोयाबीन की बुआई की जाती है। देश भर का लगभग 65 फीसदी सोया उत्पादन मध्य प्रदेश में ही किया जाता है। सोया उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई जून के दूसरे-तीसरे हफ्ते से शुरू होकर जुलाई के आखिरी दिनों तक की जाती है। राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, अभी तक राज्य में लगभग 35।70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोया की बुआई की जा चुकी है। रीवा, मुरैना, गुना, ग्वालियर और सागर क्षेत्र बुआई को लेकर सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।वर्तमान वर्ष में लगभग 85 लाख टन सोया के उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है, जोकि पिछले वर्ष के लगभग 95 लाख टन उत्पादन से काफी कम है। साथ ही पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष सोया के दामों में भी कमी आयी है। पिछले वर्ष इसी समय सोयाबीन के दाम लगभग 2500-2550 प्रति क्विंटल रुपये के आस-पास बने हुए थे जबकि वर्तमान में सोया के दाम घटकर केवल लगभग 1850-1900 रुपये तक ही रह गए हैं। अमेरिकन रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में वर्ष 2010-11 में सोयाबीन उत्पादन 24.99 करोड़ टन ही रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष 25.92 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन दर्ज किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में इस बार सोयाबीन उत्पादन 9.01 करोड़ टन, ब्राजील में 6.50 करोड़ टन, अर्जेंटीना में 5.10 करोड़ टन, चीन में 1.46 करोड़ टन और भारत में 0.88 करोड़ टन ही रहने का अनुमान है। वर्तमान में देश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को चारों तरफ से बेरुखी की मार सहनी पड़ रही है। पिछले वर्षों की तुलना में वर्तमान सत्र में सोयाबीन के दामों में लगभग 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी को भी कम उत्पादन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। कम वर्षा के चलते वर्ष 2010-11 में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई में लगभग 20 से 25 फीसदी तक की कमी की आशंका जतायी जा रही थी। अमेरिकन कृषि विभाग ने भी जून माह में जारी अपनी रिपोर्ट में सोयाबीन का वैश्विक उत्पादन कम रहने की आशंका जतायी है। इन सबको लेकर किसान और व्यापारी सभी काफी विचलित हो रहे हैं। हालाकि सोयाबीन की बुआई में किसानों की नीरसता को देखते हुए इस वर्ष सोया के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्घि जरूर की गई है। पिछले वर्ष सोया का एमएसपी 1390 रुपये ही था। इसे बढ़ाकर वर्तमान सत्र के लिए 1450 रुपये कर दिया गया है। देवास के सोया उत्पादक किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि इस वर्ष सोया की फसल इल्ली का शिकार हो गयी है। ऐसे में सोया के उत्पादन को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति है। चारों तरफ से सोया उत्पादन को लेकर नकारात्मक संकेत ही मिल रहे हैं। (बीएस हिंदी)
कम वर्षा के बाद सोया उत्पादकों को इल्ली की मार से दो-चार होना पड़ रहा है। इसके चलते सोया की अधिकतर घनी फसलों में उत्पादन लगभग 30 फीसदी तक कम होने की आशंका बनी हुई है। वर्तमान बुआई सत्र में इल्ली लगने का प्रमुख कारण सामान्य से कम वर्षा और अधिक गर्मी को बताया जा रहा है। ऐसे में पहले से ही कम वर्षा के चलते सोया के कम उत्पादन की आशंका बनी हुई थी, इल्ली के प्रकोप से फसलों को और नुकसान होगा। इल्ली लगने वाली फसलों में अधिकतर 1 माह के आस-पास बोवनी वाली फसलें हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सोया बुआई के 20 से 25 दिनों में ही फसलों में फूल आने शुरू हो जाते हैं, जबकि इस बार ऐसा न होने से सोया फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। वर्तमान सत्र में कम वर्षा के चलते जमीन में नमी की कमी है। साथ ही बुआई में हुई देरी से भी सोया उत्पादन प्रभावित हो रहा है। राज्य में जहां सोया की अधिक घनी फसल है, वहां पर इल्ली का प्रकोप ज्यादा है। सोया की फसल घनी होने का प्रमुख कारण किसानों द्वारा बुआई के समय खेतों में अधिक बीज डालना है।इल्ली से सोया की वर्तमान फसल को होने वाले नुकसान के बारे में कृषि विभाग के संचालक डी एन शर्मा ने बात करने से मना कर दिया। इस संबंध में सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में कई जगह सोया की फसलों में इल्ली लगने की शिकायत आ रही है। अगर जल्द ही इल्ली प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा नहीं होती है तो सोया की फसलों को काफी नुकसान होने की आशंका है। वर्तमान में राज्य में केवल बौछारें ही आ रही हैं। इन बौछारों से सोया की फसलों में लगी इल्ली को हटाया नहीं जा सकता है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान जैसे राज्यों में काफी मात्रा में सोयाबीन की बुआई की जाती है। देश भर का लगभग 65 फीसदी सोया उत्पादन मध्य प्रदेश में ही किया जाता है। सोया उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई जून के दूसरे-तीसरे हफ्ते से शुरू होकर जुलाई के आखिरी दिनों तक की जाती है। राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, अभी तक राज्य में लगभग 35।70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोया की बुआई की जा चुकी है। रीवा, मुरैना, गुना, ग्वालियर और सागर क्षेत्र बुआई को लेकर सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।वर्तमान वर्ष में लगभग 85 लाख टन सोया के उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है, जोकि पिछले वर्ष के लगभग 95 लाख टन उत्पादन से काफी कम है। साथ ही पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष सोया के दामों में भी कमी आयी है। पिछले वर्ष इसी समय सोयाबीन के दाम लगभग 2500-2550 प्रति क्विंटल रुपये के आस-पास बने हुए थे जबकि वर्तमान में सोया के दाम घटकर केवल लगभग 1850-1900 रुपये तक ही रह गए हैं। अमेरिकन रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में वर्ष 2010-11 में सोयाबीन उत्पादन 24.99 करोड़ टन ही रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष 25.92 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन दर्ज किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में इस बार सोयाबीन उत्पादन 9.01 करोड़ टन, ब्राजील में 6.50 करोड़ टन, अर्जेंटीना में 5.10 करोड़ टन, चीन में 1.46 करोड़ टन और भारत में 0.88 करोड़ टन ही रहने का अनुमान है। वर्तमान में देश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को चारों तरफ से बेरुखी की मार सहनी पड़ रही है। पिछले वर्षों की तुलना में वर्तमान सत्र में सोयाबीन के दामों में लगभग 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी को भी कम उत्पादन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। कम वर्षा के चलते वर्ष 2010-11 में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की बुआई में लगभग 20 से 25 फीसदी तक की कमी की आशंका जतायी जा रही थी। अमेरिकन कृषि विभाग ने भी जून माह में जारी अपनी रिपोर्ट में सोयाबीन का वैश्विक उत्पादन कम रहने की आशंका जतायी है। इन सबको लेकर किसान और व्यापारी सभी काफी विचलित हो रहे हैं। हालाकि सोयाबीन की बुआई में किसानों की नीरसता को देखते हुए इस वर्ष सोया के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्घि जरूर की गई है। पिछले वर्ष सोया का एमएसपी 1390 रुपये ही था। इसे बढ़ाकर वर्तमान सत्र के लिए 1450 रुपये कर दिया गया है। देवास के सोया उत्पादक किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि इस वर्ष सोया की फसल इल्ली का शिकार हो गयी है। ऐसे में सोया के उत्पादन को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति है। चारों तरफ से सोया उत्पादन को लेकर नकारात्मक संकेत ही मिल रहे हैं। (बीएस हिंदी)
आईसीईएक्स करेगा मौजूदा स्पॉट एक्सचेंजों से गठजोड़
मुंबई July 23, 2010
एमएमटीसी-इंडिया बुल्स प्रवर्तित जिंस डेरिवेटिव्स प्लेटफार्म, इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड कृषि और गैर कृषि जिंसों की ऑनलाइन बिक्री के लिए वर्तमान स्पॉट ट्रेडिंग एक्सचेंजों से गठजोड़ की योजना बना रहा है। आईसीईएक्स के सीईओ संजय चंदेल ने कहा, 'मेरे विचार से नई व्यवस्था बनाने की तुलना में मौजूदा एक्सचेंजों से गठजोड़ करना एक बेहतर विचार होगा। नई व्यवस्था बनाने से उसी स्थान पर पहले से मौजूद एक्सचेंजों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ेगा।' हालांकि उन्होंने समझौते के लिए बातचीत चल रहे किसी भी एक्सचेंज के नाम का खुलासा करने से इनकार किया है।निकट भविष्य में खुद का कारोबारी प्लेटफार्म विकसित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर चंदेल ने कहा कि स्पॉट ऑनलाइन ट्रेडिंग अभी बहुत शुरुआती अवस्था में है और इससे राजस्व अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा। इसलिए इसके लिए अलग प्लेटफार्म तैयार करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा- बहरहाल हमने इस दिशा में काम करना शुरू भी नहीं किया है। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स दोनो ही स्पॉट ट्रेडिंग प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। एमसीएक्स का गठजोड़ नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) से है, जिसकी प्रवर्तक मूल कंपनी फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज है। वही एनसीडीईएक्स ने एक अलग से हाजिर प्लेटफार्म- 'एनसीडीईएक्स स्पॉट' बनाया है। अहमदाबाद की एनएमसीई के साथ नैशनल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) जुड़ी हुई है, जो कपास और अरंडी बीज का हाजिर कारोबार अगस्त में शुरू करने पर विचार कर रही है। देश के सबसे बड़े हाजिर कारोबार प्लेटफार्म नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के एमडी व सीईओ अंजनि सिन्हा ने इस विचार का स्वागत करते हुए कहा, 'यह दोनो पक्ष के लिए लाभदायक होगा। दोनो ही संयुक्त कोशिश से जिंसों के ऑनलाइन प्लेटफार्म कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।'हर जिंस एक्सचेंज अपने खुद के सदस्य बनाएंगे और वे सदस्यता शुल्क लेंगे। राजस्व का संग्रह वायदा एक्सचेंज करेंगे, वह कारोबार शुल्क के आधार पर लिया जाएगा। यह वायदा सौदों पर निर्भर करेगा। हाजिर एक्सचेंज एक ही बुनियादी ढांचे पर काम कर सकेंगे, जो सभी वायदा एक्सचेंजों से जुड़े होंगे। (बीएस हिंदी)
एमएमटीसी-इंडिया बुल्स प्रवर्तित जिंस डेरिवेटिव्स प्लेटफार्म, इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड कृषि और गैर कृषि जिंसों की ऑनलाइन बिक्री के लिए वर्तमान स्पॉट ट्रेडिंग एक्सचेंजों से गठजोड़ की योजना बना रहा है। आईसीईएक्स के सीईओ संजय चंदेल ने कहा, 'मेरे विचार से नई व्यवस्था बनाने की तुलना में मौजूदा एक्सचेंजों से गठजोड़ करना एक बेहतर विचार होगा। नई व्यवस्था बनाने से उसी स्थान पर पहले से मौजूद एक्सचेंजों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ेगा।' हालांकि उन्होंने समझौते के लिए बातचीत चल रहे किसी भी एक्सचेंज के नाम का खुलासा करने से इनकार किया है।निकट भविष्य में खुद का कारोबारी प्लेटफार्म विकसित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर चंदेल ने कहा कि स्पॉट ऑनलाइन ट्रेडिंग अभी बहुत शुरुआती अवस्था में है और इससे राजस्व अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करना होगा। इसलिए इसके लिए अलग प्लेटफार्म तैयार करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा- बहरहाल हमने इस दिशा में काम करना शुरू भी नहीं किया है। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स दोनो ही स्पॉट ट्रेडिंग प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं। एमसीएक्स का गठजोड़ नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) से है, जिसकी प्रवर्तक मूल कंपनी फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज है। वही एनसीडीईएक्स ने एक अलग से हाजिर प्लेटफार्म- 'एनसीडीईएक्स स्पॉट' बनाया है। अहमदाबाद की एनएमसीई के साथ नैशनल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) जुड़ी हुई है, जो कपास और अरंडी बीज का हाजिर कारोबार अगस्त में शुरू करने पर विचार कर रही है। देश के सबसे बड़े हाजिर कारोबार प्लेटफार्म नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के एमडी व सीईओ अंजनि सिन्हा ने इस विचार का स्वागत करते हुए कहा, 'यह दोनो पक्ष के लिए लाभदायक होगा। दोनो ही संयुक्त कोशिश से जिंसों के ऑनलाइन प्लेटफार्म कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।'हर जिंस एक्सचेंज अपने खुद के सदस्य बनाएंगे और वे सदस्यता शुल्क लेंगे। राजस्व का संग्रह वायदा एक्सचेंज करेंगे, वह कारोबार शुल्क के आधार पर लिया जाएगा। यह वायदा सौदों पर निर्भर करेगा। हाजिर एक्सचेंज एक ही बुनियादी ढांचे पर काम कर सकेंगे, जो सभी वायदा एक्सचेंजों से जुड़े होंगे। (बीएस हिंदी)
चावल निर्यात पर कवायद तेज
नई दिल्ली July 23, 2010
केंद्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगे 2 साल पुराने प्रतिबंध पर आंशिक छूट देने पर विचार कर सकती है। साथ ही प्रीमियम गैर-बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 900 डॉलर प्रति टन तय किया जा सकता है। आने वाले दिनों में प्रस्तावित मंत्रिसमूह (जीओएम) की बैठक में बासमती के साथ गैर बासमती चावल के निर्यात पर चर्चा होगी। सरकार गैर बासमती चावल के कुछ किस्मों जैसे सुगंधा और सरबती चावल के निर्यात पर ढील देने पर विचार कर रही है। इसकी पैदावार उत्तर भारत में होती है। साथ ही पूनी, सोना मसूरी, मट्टा के निर्यात की छूट देने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसकी पैदावार दक्षिण भारत में होती है। इन किस्मों की मांग पश्चिम एशिया के देशों, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बहुत ज्यादा है। मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'गैर बासमती चावल की प्रीमियम किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाने का मामला बन रहा है। इसकी मांग विदेश में बहुत ज्यादा है। घरेलू बाजार में इसकी बहुत ज्यादा मांग नहीं है, ऐसे में आम आदमी पर इसका प्रभाव पडऩे का सवाल ही नहीं उठता। इसका राशन सिस्टम पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखते हुए गैर बासमती चावल की इन किस्मों का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय किया जाएगा।' कृषि मंत्रालय से जुड़े अधिकारी ने यह भी कहा ्िक निर्यात की अनुमति 1 अक्टूबर से मिल सकती है। इस मसले पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालयों ने बातचीत की है। इस सिलसिले में अंतिम फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह द्वारा लिया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी करेंगे। उम्मीद है कि यह बैठक अगले महीने होगी। एग्रीकल्चरल ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के मोटे अनाज विभाग के प्रमुख एके गुप्ता ने कहा, 'न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन के आसपास तय किया जाना चाहिए। बासमती चावल के निर्यात से सिर्फ प्रीमियम या महंगे किस्म के चावल का निर्यात होगा, न कि सस्ते चावल का। खासकर पूनी और सोना मंसूरी की निर्यात मांग उन इलाकों में तेजी से बढ़ रही है, जहां भारतीय रहते हैं।'गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध अप्रैल 2008 में लगाया गया था। इसका उद्देश्य उस समय बढ़ी महंगाई दर पर काबू पाना था। इस सप्ताह की शुरुआत में वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा था कि सरकार चावल की कुछ निश्चित किस्मों के निर्यात को अनुमति देने के बारे में विचार कर रही है।प्रीमियम किस्म के गैर बासमती चावल का देश में सालाना उत्पादन 40 से 50 लाख टन है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा- अगर इसमें से 10 लाख टन चावल का निर्यात किया जाता है तो मैं मानता हूं कि घरेलू बाजार में आपूर्ति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि दो साल लंबे प्रतिबंध के बाद प्रतिस्पर्धी देशों- पाकिस्तान, वियतनाम और थाईलैंड को फायदा मिला है, जिन्होंने न सिर्फ निर्यात बढ़ा दिया है, बल्कि वे भारत के परंपरागत बाजार पर कब्जा जमाने के लिए कम कीमत पर माल बेच रहे हैं। (बीस हिंदी)
केंद्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगे 2 साल पुराने प्रतिबंध पर आंशिक छूट देने पर विचार कर सकती है। साथ ही प्रीमियम गैर-बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 900 डॉलर प्रति टन तय किया जा सकता है। आने वाले दिनों में प्रस्तावित मंत्रिसमूह (जीओएम) की बैठक में बासमती के साथ गैर बासमती चावल के निर्यात पर चर्चा होगी। सरकार गैर बासमती चावल के कुछ किस्मों जैसे सुगंधा और सरबती चावल के निर्यात पर ढील देने पर विचार कर रही है। इसकी पैदावार उत्तर भारत में होती है। साथ ही पूनी, सोना मसूरी, मट्टा के निर्यात की छूट देने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसकी पैदावार दक्षिण भारत में होती है। इन किस्मों की मांग पश्चिम एशिया के देशों, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बहुत ज्यादा है। मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'गैर बासमती चावल की प्रीमियम किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाने का मामला बन रहा है। इसकी मांग विदेश में बहुत ज्यादा है। घरेलू बाजार में इसकी बहुत ज्यादा मांग नहीं है, ऐसे में आम आदमी पर इसका प्रभाव पडऩे का सवाल ही नहीं उठता। इसका राशन सिस्टम पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखते हुए गैर बासमती चावल की इन किस्मों का न्यूनतम निर्यात मूल्य तय किया जाएगा।' कृषि मंत्रालय से जुड़े अधिकारी ने यह भी कहा ्िक निर्यात की अनुमति 1 अक्टूबर से मिल सकती है। इस मसले पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालयों ने बातचीत की है। इस सिलसिले में अंतिम फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह द्वारा लिया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी करेंगे। उम्मीद है कि यह बैठक अगले महीने होगी। एग्रीकल्चरल ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के मोटे अनाज विभाग के प्रमुख एके गुप्ता ने कहा, 'न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन के आसपास तय किया जाना चाहिए। बासमती चावल के निर्यात से सिर्फ प्रीमियम या महंगे किस्म के चावल का निर्यात होगा, न कि सस्ते चावल का। खासकर पूनी और सोना मंसूरी की निर्यात मांग उन इलाकों में तेजी से बढ़ रही है, जहां भारतीय रहते हैं।'गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध अप्रैल 2008 में लगाया गया था। इसका उद्देश्य उस समय बढ़ी महंगाई दर पर काबू पाना था। इस सप्ताह की शुरुआत में वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा था कि सरकार चावल की कुछ निश्चित किस्मों के निर्यात को अनुमति देने के बारे में विचार कर रही है।प्रीमियम किस्म के गैर बासमती चावल का देश में सालाना उत्पादन 40 से 50 लाख टन है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा- अगर इसमें से 10 लाख टन चावल का निर्यात किया जाता है तो मैं मानता हूं कि घरेलू बाजार में आपूर्ति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि दो साल लंबे प्रतिबंध के बाद प्रतिस्पर्धी देशों- पाकिस्तान, वियतनाम और थाईलैंड को फायदा मिला है, जिन्होंने न सिर्फ निर्यात बढ़ा दिया है, बल्कि वे भारत के परंपरागत बाजार पर कब्जा जमाने के लिए कम कीमत पर माल बेच रहे हैं। (बीस हिंदी)
23 जुलाई 2010
स्टार्च की मांग बढऩे से मक्का में आई तेजी
बिस्कुट, टैक्सटाइल, पेपर, कीटनाशक, कलर और फार्मा उद्योग की मांग बढऩे से पिछले एक महीने में स्टार्च की कीमतों में करीब 500 रुपये प्रति टन की तेजी आ चुकी है। इस दौरान स्टार्च के दाम 21,500 रुपये से बढ़कर 22,000 रुपये प्रति टन हो गए। स्टार्च बनाने के लिए मक्का की भी मांग में तेजी आई। इससे मक्का की कीमतों में करीब 80-90 रुपये की तेजी आकर भाव 1050-1060 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पोल्ट्री फीड निर्माताओं की ओर से मक्का की मांग बढ़ रही है। जबकि खरीफ सीजन में नई फसल सितंबर-अक्टूबर में आएगी। ऐसे में आगामी दिनों में स्टार्च और मक्का की मौजूदा कीमतों में और तेजी आने की संभावना है। ऋद्धि सिद्धि ग्लूको ब्यालस लिमिटेड के सहायक प्रबंधक पवन कुमार ने बताया कि तमाम उद्योगों से स्टार्च की मांग बढ़ रही है इसीलिए इसकी कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। जून के मध्य में स्टार्च का भाव 21,500 रुपये प्रति टन था, जबकि इस समय बढ़कर 22,000 रुपये प्रति टन हो गया है। मक्का की नई फसल आने में अभी करीब दो महीने का समय शेष है। इस समय मक्का की आपूर्ति एक मात्र बिहार राज्य से हो रही है। बिहार में मौसम खराब होने से आवक प्रभावित हो रही है, साथ ही पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा और गुजरात से भी मक्का की अच्छी मांग है। दिल्ली के मक्का व्यापारी राजेश अग्रवाल ने बताया कि उत्पादन में कमी के अनुमान से स्टार्च मिलों और पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग बढ़ी है। दिल्ली में मक्का की दैनिक आवक इस समय पांच-सात ट्रक की है। जबकि यहां इसके भाव पिछले पंद्रह दिनों में 970-980 रुपये से बढ़कर 1050-1060 प्रति क्विंटल हो गए। बिहार की नौगछियां मंडी के मक्क्का के थोक कारोबारी पवन अग्रवाल ने बताया कि मौसम खराब होने से राज्य की मंडियों में दैनिक आवक घटकर 10-15 हजार बोरी की रह गई है। जबकि इस समय उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की अच्छी मांग बनी हुई है। इसीलिए राज्य की मंडियों में कीमतों में करीब 50-60 रुपये की तेजी आकर भाव 900-910 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उधर कोलकाता में मक्का के भाव बढ़कर 1020 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। कृषि मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में मक्का का उत्पादन 197 लाख टन से घटकर 166 लाख टन ही रहने का अनुमान है। इसमें खरीफ में उत्पादन 141 लाख टन से घटकर 120 लाख टन और रबी में 56 लाख टन से घटकर 46 लाख टन ही होने का अनुमान है।बात पते कीमक्का की नई फसल आने में अभी दो महीने लगेंगे। इस समय मक्का की आपूर्ति एक मात्र बिहार से हो रही है। ऐसे में आगामी दिनों में स्टार्च और मक्का की मौजूदा कीमतों में और तेजी आने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर......आर अस राणा)
आलू फिर निकालेगा किसानों का दम
कानपुर July 22, 2010
करीब दो साल पहले आलू किसानों और कारोबारियों को रुला देने वाला डर फिर सताने लगा है। वर्ष 2008 में राज्य में हुई आलू की बंपर फसल के कुप्रबंधन के चलते किसानों और व्यापारियों को जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा था। इस साल फिर वक्त खुद को दोहराता नजर आ रहा है। राज्य में बंपर आलू उत्पादन के कारण 'आलू पट्टी' के नाम से मशहूर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, उरई, फर्रुखाबाद और फिरोजाबाद जिलों में शुरुआती अनुमान के तौर पर करीब 10 करोड़ टन से भी ज्यादा आलू की पैदावार होने की उम्मीद जताई जा रही है।सरकार चुपभारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के क्षेत्रीय महासचिव राजीव सिंह का कहना है कि पिछले साल सूखे और कई अन्य वजहों से कम हुए उत्पादन के बाद इस साल आलू का रकबा बढ़ाने वाले किसानों को कुछ राहत देने के बजाय सरकार इस मसले पर खामोशी अख्तियार किए हुए है। आलू की कीमतों में प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये की गिरावट आनी शुरू हो चुकी है और बंपर उत्पादन की स्थिति में यह गिरावट और भी बढ़ सकती है। उत्तर प्रदेश आलू थोक विक्रेता संघ (यूपीपीडब्ल्यूए) के अध्यक्ष हरिशंकर गुप्ता के मुताबिक पिछले साल भी कीमतों में गिरावट का रुख शुरू हो गया था लेकिन बिहार, बंगाल, उड़ीसा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आलू की मांग ने ज्यादा नुकसान नहीं होने दिया और कीमतों को स्थिरता दी। लेकिन इस साल के हालात जरा जुदा नजर आते हैं।नहीं जाएगा बाहरवह कहते हैं, 'इस साल इन राज्यों में आलू की अच्छी पैदावार हुई जिसके मद्देनजर हमारे यहां से इन राज्यों को आलू बेचने की संभावनाएं धूमिल पड़ती नजर आ रही हैं।' इस वजह से कई किसान लागत से भी कम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हो रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में कृषि वैज्ञानिक डॉ। आर पी कटियार कहते हैं कि एक बीघा आलू उत्पादन में करीब 15,000 रुपये की लागत आ रही है जबकि मौजूदा भाव के हिसाब से बाजार में इतनी जमीन में होने वाली फसल का 60 फीसदी तक ही दाम मिल पा रहा है। इस वजह से किसानों को कोल्ड स्टोरेज का रुख करना पड़ रहा है।कर्ज की बेलये किसान पहले से ही 'किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)' के तहत कर्ज ले चुके हैं ऐसे में इन्हें और कर्ज लेना पड़ रहा है। वर्ष 2008 में भी आलू की बंपर फसल ने किसानों को मुश्किल में खड़ा कर दिया था। उस साल मार्च में आलू की कीमतें 400 रुपये प्रति क्विंटल थीं जो मई में गिरकर 250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं। इस बीच फर्रुखाबाद और इटावा जैसे जिलों से किसानों की खुदकुशी के मामले भी सामने आए थे। (बीएस हिंदी)
करीब दो साल पहले आलू किसानों और कारोबारियों को रुला देने वाला डर फिर सताने लगा है। वर्ष 2008 में राज्य में हुई आलू की बंपर फसल के कुप्रबंधन के चलते किसानों और व्यापारियों को जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा था। इस साल फिर वक्त खुद को दोहराता नजर आ रहा है। राज्य में बंपर आलू उत्पादन के कारण 'आलू पट्टी' के नाम से मशहूर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, उरई, फर्रुखाबाद और फिरोजाबाद जिलों में शुरुआती अनुमान के तौर पर करीब 10 करोड़ टन से भी ज्यादा आलू की पैदावार होने की उम्मीद जताई जा रही है।सरकार चुपभारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के क्षेत्रीय महासचिव राजीव सिंह का कहना है कि पिछले साल सूखे और कई अन्य वजहों से कम हुए उत्पादन के बाद इस साल आलू का रकबा बढ़ाने वाले किसानों को कुछ राहत देने के बजाय सरकार इस मसले पर खामोशी अख्तियार किए हुए है। आलू की कीमतों में प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये की गिरावट आनी शुरू हो चुकी है और बंपर उत्पादन की स्थिति में यह गिरावट और भी बढ़ सकती है। उत्तर प्रदेश आलू थोक विक्रेता संघ (यूपीपीडब्ल्यूए) के अध्यक्ष हरिशंकर गुप्ता के मुताबिक पिछले साल भी कीमतों में गिरावट का रुख शुरू हो गया था लेकिन बिहार, बंगाल, उड़ीसा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आलू की मांग ने ज्यादा नुकसान नहीं होने दिया और कीमतों को स्थिरता दी। लेकिन इस साल के हालात जरा जुदा नजर आते हैं।नहीं जाएगा बाहरवह कहते हैं, 'इस साल इन राज्यों में आलू की अच्छी पैदावार हुई जिसके मद्देनजर हमारे यहां से इन राज्यों को आलू बेचने की संभावनाएं धूमिल पड़ती नजर आ रही हैं।' इस वजह से कई किसान लागत से भी कम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हो रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में कृषि वैज्ञानिक डॉ। आर पी कटियार कहते हैं कि एक बीघा आलू उत्पादन में करीब 15,000 रुपये की लागत आ रही है जबकि मौजूदा भाव के हिसाब से बाजार में इतनी जमीन में होने वाली फसल का 60 फीसदी तक ही दाम मिल पा रहा है। इस वजह से किसानों को कोल्ड स्टोरेज का रुख करना पड़ रहा है।कर्ज की बेलये किसान पहले से ही 'किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)' के तहत कर्ज ले चुके हैं ऐसे में इन्हें और कर्ज लेना पड़ रहा है। वर्ष 2008 में भी आलू की बंपर फसल ने किसानों को मुश्किल में खड़ा कर दिया था। उस साल मार्च में आलू की कीमतें 400 रुपये प्रति क्विंटल थीं जो मई में गिरकर 250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं। इस बीच फर्रुखाबाद और इटावा जैसे जिलों से किसानों की खुदकुशी के मामले भी सामने आए थे। (बीएस हिंदी)
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