घरेलू बाजार में चावल कम ना पड़ जाए, इसके लिए सरकार तैयारी में जुट गई है। सरकार अगले एक साल में सब्सिडी के साथ चावल इम्पोर्ट और मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस को बढ़ाने की योजना बना रही है।
खुले बाजार में चावल की किल्लत की आहट अभी से सरकार को सुनाई देने लगी है। जरूरत पड़ने पर महंगा चावल इम्पोर्ट ना करना पड़ जाए इसलिए सरकार अभी से तैयारी में जुट गई है।
बढ़ेगी चावल की सप्लाई
फूड मिनिस्ट्री चाहती है कि अगले एक साल में 20 लाख टन चावल इम्पोर्ट किया जाए। साथ ही इम्पोर्ट पर कुछ सब्सिडी भी दी जाए ताकि इम्पोर्टेड चावल घरेलू बाजार में सस्ता रहे।
इतना ही नहीं बासमती एक्सपोर्ट पर भी अंकुश लगाने की भी तैयारी है। प्रस्ताव के मुताबिक इसका मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस यानी MEP दो सौ डॉलर प्रति टन बढ़ाकर 1100 डॉलर प्रति टन कर दिया जाए।
इस बारे में फूड मिनिस्ट्री ने एक प्रस्ताव एम्पावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स यानी EGoM के पास भेज दिया है। गुरुवार को होने वाली EGoM की बैठक में इसपर अंतिम फैसला लिया जा सकता है।
हालांकि सूत्रों के मुताबिक वाणिज्य मंत्रालय एक्सपोर्ट पर अंकुश लगाने का विरोध कर रहा है। तो वित्त मंत्रालय इम्पोर्ट पर सब्सिडी का विरोध कर सकता है। उधर, एक्सपोर्टर का मानना है कि MEP बढ़ाने के बासमती एक्सपोर्ट का कारोबार मुश्किल में पड़ जाएगा।
चावल उत्पादन में 150 लाख टन कमी
दरअसल अब साफ हो गया है कि पिछले साल के मुकाबले चावल का उत्पादन 150 लाख टन कम हो सकता है। हालांकि सरकारी स्टॉक में अभी 153 लाख टन चावल पड़ा है। लेकिन खुले बाजार में सरकारी स्टॉक के चावल की मांग खुले बाजार में ना के बराबर रहती है। ऐसे में खुले बाजार में चावल सप्लाई बढ़ाने के लिए इम्पोर्ट करना और एक्सपोर्ट घटाना सरकार की मजबूरी हो सकती है। (आवाज कारोबार)
30 नवंबर 2009
गन्ना किसानों की पंचायत करेंगे अजित
नयी दिल्ली। रालोद के प्रमुख अजित सिंह ने आज कहा कि वह सोमवार को शामली में गन्ना किसानों की पंचायत करेंगे जिसमें उत्तरप्रदेश में चीनी मिलों द्वारा दिए जा रही कीमतों में असमानता पर चर्चा होगी।उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि संसदीय कार्रवाई नहीं चलने से बने दबाव के कारण केंद्र सरकार गन्ना अध्यादेश को वापस लेने को मजबूर हुई लेकिन किसानों को चीनी मिल मालिकों से अपने उत्पाद की पर्याप्त कीमत अब भी नहीं मिल रही है।उन्होंने कहा कि हम हालात पर चर्चा के लिए कल शामली में किसानों के साथ पंचायत करेंगे। उन्होंने कहा कि मुरादाबाद में एक मिल ने किसानों को 205 रुपये से अधिक का भुगतान करना शुरू किया है क्योंकि इस साल गन्ने की आपूर्ति कम रही है। वहीं बाकी राज्य में किसानों को 200 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम मिल रहे हैं।केंद्र द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश के अनुसार केवल केंद्र ही गन्ने का मूल्य (उचित व लाभदायी मूल्य, एफआरपी) तय करेगा। एफआरपी तथा राज्य परामर्शित मूल्य :एसएपी: के अंतर का भुगतान राज्य को करना होगा। सभी विपक्षी दलों के विरोध के चलते केंद्र ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया। (समय)
गन्ने की कीमतों को लेकर किसानों की महापंचायत आज
मुजफ्फरनगर। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चल रहा गन्ना आंदोलन और तेज हो गया है। राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने कस्बा शामली में चीनी मिल के बाहर धरना आरम्भ कर 30 नवंबर को किसान महापंचात की धोषणा की है जिसे अजित सिंह संबोधित कर अगली रणनीति की घोषणा करेंगे।उल्लेखनीय है कि रालोद के 26 नवंबर का चक्का जाम वापस लिए जाने पर किसानों ने रोष प्रकट किया था तथा इस कदम को गलत बताकर कई स्थानों पर रेल और स़डक मार्ग अवरूद्ध किया था।इस बीच भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत ने कहा है कि किसान प़डौसी राज्य से कम मूल्य पर उत्तरप्रदेश में चीनी मिलों को गन्ना देने पर कतई राजी नहीं हैं। यदि यहां चीनी मिलों ने मूल्य नहीं बढ़ाया तो किसान उत्तराखंड की चीनी मिलों को अपना गन्ना देना शुरू कर देंगे। (खास ख़बर)
सोने की तेजी का यूं उठाएं फायदा
सोना तेजी के कई रेकॉर्ड बना रहा है। फिलहाल इसकी कीमत 17 से 18 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच झूल रही है। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में इसमें तेजी के साथ प्राइस करेक्शन का दौर भी चलता रहेगा। सोने में इस तेजी से बाजार हैरान है और आम उपभोक्ता परेशान। वैसे, तेजी के इस दौर में आम आदमी चाहे तो कई तरीके से फायदा उठा सकता है। कैसे, बता रहे हैं जोसफ बर्नाड : 1. गोल्ड लोन भारत में सोने की खरीदारी आमतौर पर सभी करते हैं। सोने की अंगूठी से लेकर दूसरे आभूषण खरीदने का रिवाज है। ऐसे में तेजी के इस माहौल में आम आदमी के पास गोल्ड लोन का विकल्प है। बैंक और वित्तीय संस्थाएं गोल्ड के एवज में लोन देते हैं। लोन की रकम गोल्ड की मार्केट वैल्यू पर आधारित होती है। फिलहाल गोल्ड तेजी पर है। ऐसे में इसकी एवज में शिक्षा, बिजनेस, घर की मरम्मत या शादी-ब्याह के लिए लोन लिया जा सकता है। लोन चुका देने पर आपका सोना वापस हो जाएगा। कैसे लें गोल्ड लोन एचडीएफसी और आईसीआईसीआई जैसे दूसरे कई बड़े बैंक गोल्ड लोन देते हैं। इसके अलावा, कई नॉन-बैंकिंग कंपनियां भी गोल्ड लोन देती हैं। हर बैंक और वित्तीय संस्था का अपना नियम है, लेकिन जितना गोल्ड आपके पास है, उसकी कुल कीमत का 80 पर्सेंट लोन आपको आमतौर पर मिल जाता है। गोल्ड लोन लेने की प्रक्रिया आसान है। आपको बस यह साबित करना होगा कि जो सोना आप बैंक को दे रहे हैं, वह आपका है। आप रसीद दिखाकर ऐसा कर सकते हैं। लोन पर ब्याज दर गोल्ड लोन पर बैंक अपने हिसाब से ब्याज लेते हैं। ज्यादातर बैंक 12.5 फीसदी की दर से ब्याज लेते हैं। गोल्ड लोन के लिए बैंक और वित्तीय कंपनियां कई स्कीम निकाल रही हैं। गोल्ड लोन 30, 60, 90 या उससे ज्यादा दिनों के लिए लिया जा सकता है। अवधि जितनी कम होगी, ब्याज दर भी उतनी ही कम होगी। गोल्ड लोन का फायदा इस वक्त जरूरत के हिसाब से गोल्ड लोन इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि आपको गोल्ड की बढ़ी कीमत की वजह से ज्यादा लोन मिल सकेगा। बोनांजा कमॉडिटी के असिस्टेंट वाइस प्रेजिडेंट तरुण सत्संगी का कहना है कि गोल्ड लोन सबसे सेफ लोन है। इसे शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म जरूरत के हिसाब से लिया जा सकता है। यह आपको दो तरह के फायदे दे सकता है। एक तो सोने की ज्यादा कीमत होने से लोन ज्यादा मिलेगा। दूसरे शॉर्ट टर्म लोन लेने पर ब्याज दर कम देनी पड़ेगी। 2. रीसाइक्लिंग शादी-ब्याह के इस सीजन में सोना खरीदना लाजमी है। बाजार विशेषज्ञों की राय है कि सोने की रीसाइक्लिंग करें। यानी पुराना सोना बेचकर नया सोना खरीदें। बाजार विशेषज्ञ के. के. मदान के मुताबिक, जिनके पास ज्यादा सोना है, उन्हें इस वक्त सोने की रीसाइक्लिंग करनी चाहिए। ऐसे लोगों ने जो पुराना सोना खरीदा होगा, वह निश्चित रूप से 13, 14 या 15 हजार रुपये प्रति दस ग्राम या उससे भी कम रेट पर खरीदा होगा। आज सोना 17 हजार रुपये पार जा चुका है। जब वे पुराने सोने को बेचेंगे, तो उन्हें आज का रेट मिलेगा। जिनके पास सोने का सिक्का, सोने की छड़ी या सोने के बिस्कुट हैं, उन्हें रीसाइक्लिंग में सोने का करीब 100 फीसदी दाम मिल सकता है। आभूषण में 5 से 10 फीसदी कट सकता है। रीसाइक्लिंग में सबसे फायदेमंद तरीका यह होता है कि जिनसे आपने सोना खरीदा है, उन्हीं को बेचें। ऐसे में दुकानदार अपने सोने की शुद्धता को लेकर गलत बातें नहीं कर सकता और न ही आपको गुमराह कर सकता है। अगर आपने किसी और दुकान से खरीदा गया सोना किसी दूसरे दुकानदार को बेचा, तो वह सोने की शुद्धता के तकनीकी खेल में आपको उलझा सकता है। आभूषण के अलावा रीसाइक्लिंग में दूसरे सोने के उत्पाद का सौ पर्सेंट ही दुकान से लें। अगर आपका सोना 10 से 20 ग्राम है तो मार्केट वैल्यू के हिसाब से जितनी कीमत बैठती है, उतनी कीमत ही दुकान से लें। इस बारे में कोई समझौता न करें। 3. जीईटीएफ के बॉन्ड्स गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडिंग फंड (जीईटीएफ) की स्कीमों और बॉन्ड्स में इनवेस्टमेंट इस वक्त काफी लाभ दे सकता है। म्यूचुअल फंड जिस तरह शेयर मार्केट लिंक्ड इनवेस्टमेंट स्कीम निकालता है, उसी तरह फंड का जीईटीएस विभाग सोने से इनवेस्टमेंट करने की स्कीम बाजार में निकालता है। इसमें इनवेस्टर को यूनिट खरीदने का विकल्प दिया जाता है। यूनिट एक से दस हजार रुपये या उससे ज्यादा का हो सकता है। आप जितने चाहे यूनिट खरीद सकते हैं। जीईटीएफ आपके पैसे को सोने में इनवेस्ट करेगा और इस तरह जो भी आमदनी होगी, उसमें आपकी भी भागीदारी होगी। 4. गोल्ड बॉन्ड्स गोल्ड बॉन्ड्स भी शेयरों की तरह होते हैं। ये दो तरह के होते हैं - एक ओपन और दूसरा फिक्स्ड। ओपन में आप जब चाहे गोल्ड बॉन्ड्स खरीद सकते हैं और जब चाहे बेच सकते हैं, जबकि फिक्स्ड में अवधि तय होती है। जिस तय अवधि के लिए आप बॉन्ड्स लेंगे, उस अवधि तक आप बॉन्ड्स नहीं बेच जाएंगे। फिक्स्ड बॉन्ड्स की अवधि न्यूनतम तीन साल होती है। विनायक इंक के सीएमडी विजय सिंह का कहना है कि कंपनियों के शेयर देश के कुछ ही लोगों के पास हैं, मगर सोना देश के ज्यादातर लोगों के पास है। ऐसे में आम आदमी बाजार को देखते हुए अपने पास रखे सोने का आकलन करे और बाजार में इसका इस्तेमाल करते हुए फायदा कमाए। इसके लिए उसे बाजार की थोड़ी स्टडी करनी होगी और इनवेस्टमेंट की रणनीति बनानी होगी। खास बात यह है कि सोने में इनवेस्टमेंट दूसरे सेक्टरों में इनवेस्टमेंट की तुलना में कम रिस्की है। (ई टी हिन्दी)
फीकी पड़ने लगी है हॉलमार्क कारोबार की चमक
अहमदाबाद : सोने के गहनों को हॉलमार्क प्रमाणित करने का कारोबार मंदा पड़ रहा है। सरकार द्वारा सोने के गहनों को हॉलमार्क प्रमाणित कराने की घोषणा के बावजूद इस कारोबार की चमक फीकी पड़ गई है। सरकारी घोषणा के मुताबिक सोने की शुद्धता की जांच, खासतौर पर मेट्रो शहरों में सोने के गहनों को हॉलमार्क प्रमाणित कराना अनिवार्य है। हालांकि, इसके बावजूद इसमें कोई प्रगति नजर नहीं आ रही है। दूसरी तरफ देश में हॉलमार्क प्रमाणित करने वाले केंद्र कुकुरमुत्ते की तरह तेजी से फैल रहे हैं। देश में ऐसे केंद्रों की संख्या ज्यादा होने से इस कारोबार में मुनाफा काफी कम रह गया है। वहीं, सोने के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे सोने के गहनों की बिक्री में भी गिरावट आई है।
यही वजह है कि हॉलमार्क प्रमाण देने वाले करीब 150 केंद्रों का ब्रेक ईवन तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है। साल 2000 में देश भर में सिर्फ 5 हॉलमार्क केंद्र थे। उन दिनों हॉलमार्क कारोबार की शुरुआत हुई थी, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 150 हो गई है। अकेले गुजरात में करीब 12, मुंबई और दिल्ली में 20-20 हॉलमार्क केंद्र हैं। देश के कुल 3 लाख ज्वैलर्स में सिर्फ 7,000 ने हॉलमार्क लाइसेंस हासिल किया है। स्थानीय अनुमानों के मुताबिक बमुश्किल 20-30 फीसदी गहने हॉलमार्क प्रमाणित होते हैं। अहमदाबाद के एक रिफाइनर का कहना है, 'हालांकि, हॉलमार्क कारोबार से बेहतर नतीजे मिलेंगे लेकिन स्थानीय बाजारों में ग्राहकों को धोखा देने वाले ज्वैलर्स पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।' उल्लेखनीय है कि सरकारी कंपनी मिनरल एंड माइनिंग ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (एमएमटीसी) देश की सबसे बड़ी सोना आयातक है। देश भर में एमएमटीसी के कई हॉलमार्क केंद्र हैं, लेकिन वहां कारोबार बिल्कुल नहीं है। अहमदाबाद में हॉलमार्क कारोबार करने वाले हासुभाई आचार्या ने कहा, 'सही ज्वैलर्स ही इस सुविधा का लाभ लेते हैं। कुछ दूसरे ज्वैलर्स अनियंत्रित तरीके से सोने के गहनों का कारोबार कर रहे हैं।' आमतौर पर हॉलमार्क की प्रक्रिया 6-8 घंटे लंबी होती है लेकिन कुछ केंद्र सिर्फ 1-2 घंटे में प्रक्रिया पूरी कर देते हैं। ईटी के साथ बातचीत में मुंबई के वर्षा बुलियन के बी। एच. मेहता ने कहा, 'कुछ हॉलमार्क सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए होते हैं।' गुजरात गोल्ड सेंटर के सुरेश कंसारा का कहना है, 'फायर एसेट प्रक्रिया एक मानक की तरह है जिससे हॉलमार्क के लिए सोने के स्तर का पता चलता है। सोने के विश्लेषण में कम से कम 4-5 घंटे का वक्त लगता है। इस प्रक्रिया का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।' गुजरात गोल्ड सेंटर, सोने की जांच करने वाला देश का पहला केंद्र है। सोना महंगा होने के कारण इसकी बिक्री में काफी कमी आई है, जिससे हॉलमार्क का कारोबार घटा है। (ई टी हिन्दी)
यही वजह है कि हॉलमार्क प्रमाण देने वाले करीब 150 केंद्रों का ब्रेक ईवन तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है। साल 2000 में देश भर में सिर्फ 5 हॉलमार्क केंद्र थे। उन दिनों हॉलमार्क कारोबार की शुरुआत हुई थी, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 150 हो गई है। अकेले गुजरात में करीब 12, मुंबई और दिल्ली में 20-20 हॉलमार्क केंद्र हैं। देश के कुल 3 लाख ज्वैलर्स में सिर्फ 7,000 ने हॉलमार्क लाइसेंस हासिल किया है। स्थानीय अनुमानों के मुताबिक बमुश्किल 20-30 फीसदी गहने हॉलमार्क प्रमाणित होते हैं। अहमदाबाद के एक रिफाइनर का कहना है, 'हालांकि, हॉलमार्क कारोबार से बेहतर नतीजे मिलेंगे लेकिन स्थानीय बाजारों में ग्राहकों को धोखा देने वाले ज्वैलर्स पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।' उल्लेखनीय है कि सरकारी कंपनी मिनरल एंड माइनिंग ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (एमएमटीसी) देश की सबसे बड़ी सोना आयातक है। देश भर में एमएमटीसी के कई हॉलमार्क केंद्र हैं, लेकिन वहां कारोबार बिल्कुल नहीं है। अहमदाबाद में हॉलमार्क कारोबार करने वाले हासुभाई आचार्या ने कहा, 'सही ज्वैलर्स ही इस सुविधा का लाभ लेते हैं। कुछ दूसरे ज्वैलर्स अनियंत्रित तरीके से सोने के गहनों का कारोबार कर रहे हैं।' आमतौर पर हॉलमार्क की प्रक्रिया 6-8 घंटे लंबी होती है लेकिन कुछ केंद्र सिर्फ 1-2 घंटे में प्रक्रिया पूरी कर देते हैं। ईटी के साथ बातचीत में मुंबई के वर्षा बुलियन के बी। एच. मेहता ने कहा, 'कुछ हॉलमार्क सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए होते हैं।' गुजरात गोल्ड सेंटर के सुरेश कंसारा का कहना है, 'फायर एसेट प्रक्रिया एक मानक की तरह है जिससे हॉलमार्क के लिए सोने के स्तर का पता चलता है। सोने के विश्लेषण में कम से कम 4-5 घंटे का वक्त लगता है। इस प्रक्रिया का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।' गुजरात गोल्ड सेंटर, सोने की जांच करने वाला देश का पहला केंद्र है। सोना महंगा होने के कारण इसकी बिक्री में काफी कमी आई है, जिससे हॉलमार्क का कारोबार घटा है। (ई टी हिन्दी)
काली मिर्च में निवेशकों को फायदा संभव
ऊंचे भाव पर काली मिर्च वायदा में भले ही मुनाफावसूली से गिरावट आई हो, लेकिन इसमें निवेशकों के लिए अब भी आकर्षण बना हुआ है। पिछले एक सप्ताह में वायदा बाजार में काली मिर्च के दाम 2।8 फीसदी गिरे हैं। इससे हाजिर बाजार में भी दो फीसदी की मंदी आई है। भारत के साथ दुनिया भर में काली मिर्च का स्टॉक सीमित ही बचा है। इसके अलावा घरेलू बाजार में नई फसल आने में करीब दो महीने का समय है। वियतनाम और इंडोनेशिया में चार महीने बाद नई फसल आएगी। ब्याह-शादियों का सीजन होने से घरेलू मांग अच्छी बनी हुई है। साथ ही अन्य प्रमुख उत्पादक देशों के पास स्टॉक कम होने से भारत से निर्यात मांग भी बढ़ रही हैं। ऐसे में दिसंबर महीने तक काली मिर्च की कीमतों में तेजी के आसार हैं। वायदा में नरमीनिवेशकों की मुनाफावसूली से नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में पिछले एक सप्ताह में करीब 2.8 फीसदी का मंदा आया है। चार नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में भाव 15,570 रुपये प्रति क्विंटल थे, जबकि शुक्रवार को भाव घटकर 15,120 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 7,866 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं।घरेलू बाजार में स्टॉकपिपर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अजय अग्रवाल ने बताया कि घरेलू बाजार में इस समय काली मिर्च का मात्र आठ-नौ हजार टन का ही स्टॉक बचा हुआ है। जबकि ब्याह-शादियों का सीजन होने से घरेलू मांग अच्छी बनी हुई है। नई फसल की आवक बनने में अभी करीब दो महीने का समय शेष है। इसलिए दिसंबर महीने तक काली मिर्च में तेजी की ही संभावना है। भाव ऊंचे होने और वायदा में गिरावट के कारण कोच्चि मंडी में पिछले एक सप्ताह में काली मिर्च की कीमतों में 300 रुपये की नरमी आकर (एमजी वन क्वालिटी) के भाव 14,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। मौजूदा कीमतों में 100-200 रुपये की गिरावट के बाद स्टॉकिस्टों की खरीद निकलने की संभावना है।दुनिया के बाजारों का हाल काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि दुनिया में काली मिर्च का कुल स्टॉक सीमित मात्रा में ही बचा हुआ है। जबकि नई फसल आने में अभी चार महीने का समय शेष है। वियतनाम और इंडोनेशिया में नई फसल फरवरी-मार्च महीने में आयेगी। अक्टूबर महीने के आखिर में इंडोनेशिया और वियतनाम में भारी बारिश से फसल को नुकसान होने की आशंका है। अकेले वियतनाम में ही करीब पांच हजार टन नुकसान की संभावना है। इसलिए अगले दो महीने जब तक घरेलू मंडियों में नई फसल की आवक बनेगी। तब तक काली मिर्च में तेजी के ही आसार हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय काली मिर्च के भाव 3450-3500 डॉलर और वियतनाम की काली मिर्च के भाव 3450 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) पर चल रहे हैं। ब्राजील और इंडोनेशिया की काली मिर्च के भाव 3300-3350 डॉलर प्रति टन (एफओबी) चल रहे हैं।पैदावार में बढ़त की उम्मीदकाली मिर्च व्यापारी महेंद्र पारिख ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर महीने में मौसम प्रतिकूल होने से नये सीजन में काली मिर्च की पैदावार दस फीसदी बढ़ने की संभावना है। वर्ष 2008-09 में देश में काली मिर्च का 45,000 टन का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2009-10 में उत्पादन बढ़कर 50,000 टन का होने का अनुमान है।अक्टूबर में निर्यात बढ़ाभारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अक्टूबर महीने में देश से कालीमिर्च का निर्यात बढ़कर 1500 टन का हुआ है। जबकि पिछले साल अक्टूबर महीने में 1475 टन का ही निर्यात हुआ था। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में निर्यात 22 फीसदी कम रहा है। अप्रैल से सितंबर तक देश से 9,750 टन कालीमिर्च का निर्यात हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12,475 टन का निर्यात हुआ था। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
अब वायदा में गेहूं के दाम गिरने के आसार
दक्षिण भारत की मिलों द्वारा गेहूं का आयात शुरू कर दिया गया है। इससे गेहूं की तेजी को ब्रेक लग गया है। लेकिन पिछले पंद्रह दिनों में वायदा बाजार में गेहूं की कीमतों में 2।7 फीसदी की तेजी आई है। लेकिन हाजिर बाजार में इस दौरान गेहूं के दाम करीब 25 रुपये प्रति क्विंटल घट गए। सरकारी गोदामों में गेहूं का बंपर स्टॉक बचा है जबकि बुवाई क्षेत्रफल भी बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश की मंडियों से दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों की मांग कमजोर पड़ गई है जिससे दिल्ली में गेहूं की आवक पहले की तुलना में बढ़ी है। ऐसे में आगामी दिनों में गेहूं की कीमतों में नरमी की संभावना है।वायदा में तेजी : निवेशकों की खरीद से नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में दिसंबर महीने के गेहूं के वायदा अनुबंध में पिछले पंद्रह दिनों में करीब 2.7 फीसदी की तेजी आई है। दस नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में भाव 1370 रुपये प्रति क्विंटल थे जबकि 26 नवंबर को भाव बढ़कर 1407 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 6,520 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि अप्रैल में गेहूं की नई फसल की आवक बनेगी जबकि इस समय सरकार के पास बंपर स्टॉक मौजूद है। अनुकूल मौसम से चालू सीजन में भी गेहूं का बंपर उत्पादन होने की संभावना है। इसलिए आगामी दिनों में वायदा गेहूं की कीमतों में भी नरमी के आसार हैं।गेहूं के आयात सौदे : प्रवीन कॉमशिर्यल कंपनी के प्रोपराइटर नवीन गुप्ता ने बताया कि दक्षिण भारत की मिलों ने अभी तक ऑस्ट्रेलिया से 10,000 टन गेहूं के आयात सौदे 300 से 325 डॉलर प्रति टन (भारतीय बंदरगाह पहुंच) के भाव परकिए हैं। इसमें से करीब 500 टन गेहूं भारत में आ चुका है। यह गेहूं दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों को 1550-1575 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर पड़ रहा है। आस्ट्रेलिया का यह गेहूं प्रीमियम क्वालिटी का है इसलिए दक्षिण भारत की मिलें उत्तर भारत से खरीद के मुकाबले विदेशी गेहूं के आयात को प्राथमिकता दे रही है। गेहूं का बंपर स्टॉक : कृषि मंत्रालय के मुताबिक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास गेहूं का करीब 300 लाख टन का बंपर स्टॉक मौजूद है। जबकि चालू रबी सीजन में 19 नवंबर तक गेहूं की बुवाई 93.9 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 85.7 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। गेहूं के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी और अनुकूल मौसम से गेहूं का उत्पादन बढ़ने की संभावना है। वर्ष 2008-09 में देश में गेहूं का बंपर उत्पादन 805 लाख टन का हुआ था।एमएसपी में मामूली बढ़ोतरी : रबी में गेहूं की सरकारी खरीद के लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 20 रुपये प्रति क्विंटल की मामूली बढ़ोतरी कर भाव 1100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। जबकि पिछले साल गेहूं का एमएसपी 1080 रुपये प्रति क्विंटल था। गत वर्ष गेहूं का बंपर उत्पादन हुआ था तथा मिलों और स्टॉकिस्टों द्वारा खरीद कम करने के कारण भारतीय खाद्य निगम ने रिकार्ड 252 लाख टन की खरीद की थी।फ्लोर मिलों की मांग कमजोर : गेहूं व्यापारी कमलेश जैन ने बताया कि दिल्ली में गेहूं की आवक सुधरने और फ्लोर मिलों की मांग घटने से पिछले आठ-दस दिनों में हाजिर बाजार में करीब 25 रुपये की गिरावट आकर भाव 1390-1400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उत्तर प्रदेश से दिल्ली में गेहूं की आवक बढ़कर करीब 10 हजार बोरियों की हो गई है। दक्षिण भारत की मिलों की मांग कम होने से दिल्ली में आवक पहले की तुलना में बढ़ी है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
कॉपर समेत बेसमेटल्स के भाव में गिरावट
दुबई संकट के उजागर होने के बाद लंदन में कॉपर के मूल्य में पिछले एक माह की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। लंदन मेटल एक्सचेंज में तीन माह डिलीवरी सोना 90 डॉलर (करीब 1।3 फीसदी) गिरकर 6,731 डॉलर प्रति टन रह गया। कॉपर के अलावा दूसरे बेसमेटल्स में भी गिरावट दर्ज की गई।अर्जेटीना में 2001 के बाद दुबई संकट में सबसे बड़ा डिफाल्ट होने ही आशंका के चलते शेयरों का एमएससीआई वल्र्ड इंडेक्स में 9 नवंबर के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। छह मुद्राओं वाले यूएस डॉलर इंडेक्स में शुक्रवार को सुधार दर्ज किया गया। यह इंडेक्स 15 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया था। लंदन में सिटी ग्रुप के विश्लेषक डेविड थुर्टेल ने कहा कि निवेशक जोखिम भरे पोर्टफोलियो से बच रहे हैं। इसमें मेटल्स भी शामिल हैं। एलएमई के अलावा नायमैक्स के कॉमेक्स डिवीजन में कॉपर तीन फीसदी से ज्यादा गिर गया। कॉपर मार्च डिलीवरी कांट्रेक्ट 3.9 फीसदी गिरकर 3.0725 डॉलर प्रति पाउंड रह गया। कॉपर में गिरावट का रुख दूसरी वजहों से भी बन रहा है। एलएमई का कॉपर स्टॉक पिछले 20 सप्ताह से लगातार बढ़ रहा है। शुक्रवार को स्टॉक 0.7 फीसदी बढ़कर 435,075 टन तक पहुंच गया। यह स्टॉक पिछले 23 अप्रैल के बाद का सबसे ज्यादा है। एलएमई में तीन माह डिलीवरी निकेल भी 2.3 फीसदी गिरकर 16,199 डॉलर प्रति टन रह गया। शुक्रवार को इस कांट्रेक्ट ने 15,751 डॉलर प्रति टन का निचला स्तर छू लिया। 22 जुलाई के बाद की यह सबसे बड़ी इंट्राडे गिरावट रही। निकेल का स्टॉक 1.5 फीसदी बढ़कर 135,480 टन हो गया। निकेल का स्टॉक फरवरी 1995 के बाद का सबसे ज्यादा है। टिन में 1.5 फीसदी की गिरावट के बाद भाव 14,750 डॉलर प्रति टन रह गया। इसी तरह लेड फ्यूचर 3.4 फीसदी गिरकर 2,260 डॉलर प्रति टन और अल्यूमीनियम 1.1 फीसदी गिरकर 1,988 डॉलर प्रति टन रह गया। जिंक 2.6 फीसदी की नरमी के साथ 2,198.50 डॉलर प्रति टन रह गया। अनायास पैदा हुए दुबई संकट ने बेसमेटल्स के निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी है। इससे पहले दूसरी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में गिरावट आने के साथ निवेशक मेटल खासकर कॉपर में पोजीशन ले रहे थे। इससे भाव में लगातार तेजी आ रही थी। हालांकि औद्योगिक मांग हल्की रहने से स्टॉक भी बढ़ रहा था। (बिज़नस भास्कर)
स्टॉकिस्टों की खरीद से गुड़ महंगा
स्टॉकिस्टों की खरीद बढ़ने से गुड़ की कीमतों में तेजी शुरू हो गई है। दिल्ली बाजार में पिछले दो दिनों में इसकी कीमतों में 75 रुपये की तेजी आकर गुड़ चाकू के भाव 2600-2800 रुपये और पेड़ी के भाव 2600-2700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। हालांकि प्रमुख उत्पादक मंडी मुजफ्फरनगर में 2।5 लाख कट्टे (प्रति कट्टा 40 किलो) का स्टॉक हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 75 हजार कट्टे ज्यादा है।मैसर्स देशराज राजेंद्र कुमार के प्रोपराइटर देशराज ने बताया कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब की मांग तो अच्छी बनी ही हुई है, साथ ही स्टॉकिस्टों की खरीद भी पहले की तुलना में बढ़ गई है। जिससे कीमतों में तेजी शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में अभी कुछेक मिलों में ही गन्ने की पेराई आरंभ हुई है लेकिन दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक उत्तर प्रदेश की सभी मिलों में पेराई आरंभ होने की संभावना है। चूंकि गन्ने की बुवाई कम क्षेत्र में हुई है। ऐसे में सभी मिलों में पेराई आरंभ होने के बाद कोल्हू संचालकों और मिलों के बीच गन्ना मूल्य को लेकर प्रतिस्पर्धा शुरू होने की उम्मीद है। जिससे गुड़ की मौजूदा कीमतों में और भी तेजी के आसार हैं। इस समय कोल्हू संचालक किसानों से 190- 195 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीद कर रहे हैं। फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि स्टॉकिस्टों की खरीद बढ़ने से मुजफ्फरनगर मंडी में गुड़ का स्टॉक 2.5 लाख कट्टों तक हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में मात्र 1.75 लाख कट्टों का ही हुआ था। मंडी में इस समय दैनिक आवक करीब 20 हजार कट्टों की हो रही है। पिछले दो दिनों में गुड़ चाकू के भाव बढ़कर 950-1020 रुपये और लड्डू के भाव बढ़कर 1000 रुपये प्रति 40 किलो हो गए। इसमें करीब 30-35 रुपये प्रति 40 किलो की तेजी आई है। पिछले साल की समान अवधि में गुड़ चाकू के भाव 775-800 रुपये और लड्डू के भाव 750 रुपये प्रति 40 किलो थे। पिछले साल मंडी में गुड़ का कुल स्टॉक 14 लाख कट्टों का ही हुआ था लेकिन स्टॉकिस्टों की खरीद को देखते हुए चालू सीजन में स्टॉक 16 लाख कट्टों का होने की संभावना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी आठ-दस मिलों में ही गन्ने की पेराई शुरू हुई है लेकिन उम्मीद है कि अगले सप्ताह तक सभी चीनी मिलें गन्ना लेना शुरू कर देंगी। जिससे कोल्हू संचालकों को गन्ने का अधिक दाम चुकाना पड़ सकता है। ऐसे में गुड़ की कीमतों में और भी 100-150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी की संभावना है।शामली मंडी में गुड़ की दैनिक आवक बढ़कर चार से पांच हजार कट्टों की हो गई है जबकि गुड़ पेड़ी के भाव 950-1050 रुपये प्रति 40 किलो चल रहे हैं। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
मेंथा तेल के दाम और बढ़ने की संभावना
अमेरिका और यूरोप के आयातकों की मांग बढ़ने से चालू महीने में मेंथा तेल की कीमतों में 12।2 फीसदी की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल के दाम बढ़कर 642 रुपये और क्रिस्टल बोल्ड के दाम 740 रुपये प्रति किलो हो गए। क्रिसमस से पहले इन देशों के आयातकों की खरीद बढ़ गई है, जिससे मौजूदा कीमतों में और भी तेजी के आसार हैं। वायदा बाजार में मैंथा तेल की कीमतें चालू महीने में करीब 15.8 फीसदी बढ़ चुकी हैं।अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के आयातक इस समय 16 डॉलर प्रति किलो कॉस्ट एंड फ्रेट (सीएंडएफ) की दर से मेंथा क्रिस्टल बोल्ड की खरीद कर रहे हैं। पिछले दस-बारह दिनों में इसमें करीब दो डॉलर प्रति किलो की तेजी आई है। उत्पादक मंडियों में आवक घटने और निर्यातकों की मांग को देखते हुए मौजूदा भाव में और भी 30-40 रुपये प्रति किलो की तेजी आने के आसार हैं। क्रिसमस की छुट्टियों से पहले अमेरिका और यूरोप के आयातकों की खरीद बढ़ गई है।भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार अक्टूबर महीने में मेंथा उत्पादों का 2,000 टन का निर्यात हुआ है। हालांकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले इस साल का निर्यात सात फीसदी कम है। लेकिन सितंबर के मुकाबले इसमें बढ़ोतरी हुई है। नवंबर-दिसंबर में भी निर्यात बढ़ने की संभावना है। मसाला बोर्ड ने वित्त वर्ष 2000-10 में निर्यात का लक्ष्य 22,000 टन का रखा है। जबकि वित्त वर्ष 2008-09 में भारत से 20,500 टन मेंथा उत्पादों का निर्यात हुआ था। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत से मेंथा उत्पादों का कुल निर्यात 10,000 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12,700 टन का निर्यात हुआ था। चालू सीजन में मेंथा तेल का उत्पादन पिछले साल के 27 हजार टन से बढ़कर 30-32 हजार टन होने की संभावना है। लेकिन चूंकि ज्यादातर माल स्टॉकिस्टों की मजबूत पकड़ में है इसलिए बिकवाली पहले की तुलना में कम आ रही है। पिछले एक सप्ताह में इसकी कीमतों में 70 रुपये की तेजी आकर भाव 642 रुपये प्रति किलो हो गए। इस दौरान क्रिस्टल बोल्ड के दाम बढ़कर 740 रुपये प्रति किलो हो गए। प्रमुख उत्पादक मंडियों संभल, चंदौसी और बाराबंकी में अक्टूबर के आखिर में मेंथा तेल की दैनिक आवक 400-450 ड्रमों (एक ड्रम 180 किलो) की हो रही थी जोकि घटकर इस समय मात्र 200-250 ड्रमों की रह गई है। हाजिर में आई तेजी का असर वायदा बाजार पर भी पड़ रहा है। चालू महीने में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 15.8 फीसदी की तेजी आकर शनिवार को भाव 620 रुपये प्रति किलो हो गए। जबकि दो नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में भाव 535 रुपये प्रति किलो थे। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
सोना फिर बिखेर सकता है चमक
भले ही दुबई संकट की लहर में सोने के दाम विदेशी और घरेलू बाजार में गिर गए हों लेकिन थोड़ी और गिरावट के बाद तेजी आने के पूरे आसार हैं। विश्व बाजार में सोना बीते सप्ताह के अंत में अपने उच्च स्तर से 16 डॉलर गिरकर बंद हुआ। इस दौरान घरेलू बाजार में सोने के दाम 320 रुपये प्रति दस ग्राम घटे हैं।जानकारों के अनुसार अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की कमजोरी से सोना अभी भी निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। ऐसे में वायदा बाजार पर सोने की मौजूदा कीमतों में और 200-300 रुपये प्रति दस ग्राम की गिरावट के बाद निवेशकों की खरीद निकल सकती है। वैसे भी वायदा बाजार में चालू महीने में सोने ने निवेशकों को 12।4 फीसदी का रिटर्न दिया है।एंजिल ब्रोकिंग की बुनियन विशेषज्ञ रेखा मिश्रा ने बताया कि दुबई कर्ज संकट की खबरों का असर बुलियन बाजार पर पड़ा है जिसकी वजह से दाम घटे। लेकिन अभी भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर कमजोर ही बना हुआ है जबकि बड़े हेज फंडों के अलावा बैंक भी सोने की खरीद कर रहे हैं। 26 नवंबर को दिल्ली सराफा बाजार में सोने ने 18,170 रुपये प्रति दस ग्राम का रिकार्ड स्तर छुआ था। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने के दाम 1192 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गए थे। पिछले दो दिनों में घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में 320 रुपये की गिरावट आकर भाव 17,850 रुपये प्रति दस ग्राम रह गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में शुक्रवार को भारी गिरावट के बाद सोने के भाव 1176 डॉलर प्रति औंस पर रहे। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में नवंबर महीने में निवेशकों को सोने ने 12.4 फीसदी का रिटर्न दिया है। दो नवंबर को एमसीएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में भाव 15,985 रुपये प्रति दस ग्राम थे जोकि 27 नवंबर को बढ़कर 17,975 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। निवेशकों की मुनाफावसूली से मौजूदा कीमतों में 200-300 रुपये की गिरावट के बाद फिर तेजी के ही आसार हैं।दिल्ली बुलियन एंड ज्वैलर्स वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी. के. गोयल ने बताया कि घरेलू बाजार में सोने की तेजी-मंदी अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करती है। हालांकि ऊंचे दाम होने से घरेलू बाजार में गहनों की बिक्री जरूर 25 फीसदी कम हुई है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी तेजी की संभावना है। ऐसे में घरेलू बाजार में भी भाव तेज बने रहने के आसार हैं।अंतरराष्ट्रीय बाजार में चालू महीने में सोने के दाम 11.4 फीसदी बढ़े हैं। 27 नवंबर को भाव 1176 डॉलर प्रति औंस रहे जबकि दो नवंबर को भाव 1055 डॉलर प्रति औंस थे। घरेलू बाजार में इस दौरान सोने की कीमतों में 8.3 फीसदी की तेजी आ चुकी है। हालांकि सोना महंगा होने से आयात जरूर कम हो रहा है। बांबे बुलियन एसोसिएशन के मुताबिक अक्टूबर महीने में सोने का आयात 11.5 टन घटकर 26 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल अक्टूबर में 37.5 टन सोने का आयात हुआ था। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
28 नवंबर 2009
दुबई से आए ऋण संकट के तूफान से जिंस बाजार में हाहाकार
मुंबई November 27, 2009
जिंसों की वैश्विक कीमतों में शुक्रवार को तेज गिरावट दर्ज की गई। दुबई में आए ऋण संकट के बाद वैश्विक स्तर पर निवेशकों और हेज फंडों ने लॉन्ग पोजिशन बेच दी।
ज्यादातर जिंसों की कीमतों में आज 3-5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि दोपहर बाद डॉलर में मजबूती आने से कीमतों में कुछ सुधार आया। जिंसों के एस ऐंड पी जीएससीआई सूचकांक में 4.2 प्रतिशत की तेज गिरावट दर्ज की गई है, जो 29 जुलाई के बाद की सबसे तेज गिरावट है।
हालांकि बाद में लंदन में कारोबार में सुधार आने के बाद से स्थिति में सुधार आया और सूचकांक 3.15 प्रतिशत गिरा। सोने और कच्चे तेल को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है, लेकिन इसमें भी गिरावट दर्ज की घई। कुछ कारोबारियों के मुताबिक इसमें भी उम्मीद धूमिल दिखी।
सरकार की निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड के उपर 59 बिलियन डॉलर की देनदारी है। इसके भुगतान में देरी होने से यह संदेह हुआ कि आने वाले दिनों में भी डिफाल्ट आएगा। इससे वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में सुधार पर पानी फिरने की उम्मीद बढ़ गई और इस भय का प्रभाव दुनिया के बाजारों पर पड़ा। एक समय तो ऐसा भी आया कि कच्चे तेल की कीमतें 73 डॉलर के नीचे आ गईं।
साथ ही सोने का कारोबार भी 1140 डॉलर प्रति औंस के नीचे हुआ। हालांकि दिन ढलते-ढलते कच्चे तेल में सुधार हुआ और वह 75 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। साथ ही सोना भी चढ़कर 1160 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। मुंबई में सोना 275 रुपये गिरकर 17,615 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ।
जानकारों का कहना है कि आज की गिरावट के पीछे प्रमुख वजह यह भी रही कि अमेरिकी मुद्रा डॉलर सूचकांक 1 प्रतिशत ऊपर गया। बाद में इसमें कुछ सुधार हुआ और इसका कारोबार 0.63 प्रतिशत चढ़कर 75.30 पर पहुंच गया। अमेरिका में ब्याज दरें शून्य के करीब हैं। इस लिहाज से डॉलर उधार लेकर अन्य संपत्ति खरीदना फायदेमंद है, क्योंकि पिछले साल की गिरावट के बाद जिंस और इक्विटी सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं।
जोखिम सलाहकार फर्म कमट्रेंड्ज के निदेशक टी ज्ञानशंकर ने कहा, 'दुबई में ऋण संकट की वजह से निवेशकों को मुनाफावसूली का मौका मिला' कुछ जिंसों में मुनाफावसूली बहुत ज्यादा रही। खासकर उन संस्थागत निवेशकों ने मुनाफा कमाया, जो लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने के संकट के पहले मुनाफावसूली करने में सफल नहीं हुए थे।
ज्ञानशंकर का मानना है कि अन्य संपत्तियों में मुनाफावसूली और डॉलर की खरीद कुछ और समय तक जारी रह सकती है। कुछ धातुओं ने 2009 में 100 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न दिया है। रेलीगेयर कमोडिटीज के अध्यक्ष जयंत मांगलिक ने कहा, 'दुबई में हुए घटनाक्रम के बाद पैसे को सुरक्षित निवेश में लगाने को बल मिला और ऐसे में दो ही विकल्प थे- एक सोना खरीदने का और दूसरा डॉलर खरीदने का।'
आज धन का प्रवाह डॉलर की ओर हुआ, लेकिन मांगलिक का मानना है कि अगले दो कारोबारी दिनों के दौरा यह स्पष्ट हो पाएगा कि यह संकट दुबई तक ही सिमटा रहेगा, या इसका और ज्यादा प्रसार होगा। अगर यह संकट और बढ़ता है तो निवेशक एक बार फिर स्थिति का आकलन करेंगे और यह फैसला करेंगे कि सुरक्षित ठिकाना क्या है। उनका मानना है कि ऐसी स्थिति में सोना एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में उभर सकता है।
तांबे और एल्युमीनियम की कीमतों में करीब 3 प्रतिशत की गिरावट आई और यह दो सप्ताह के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए। लंदन मेटल एक्सचेंज में 3 माह वाले तांबे का सौदा 6683 डॉलर पर हुआ, जबकि गुरुवार को यह 6904 डॉलर पर बंद हुआ था। एल्युमीनियम 2009 डॉलर से गिरकर 1979 डॉलर पर पहुंच गया। सुबह के कारोबार में तो यह 1950 डॉलर पर पहुंच गया था।
निकल की कीमतों में भी 5 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह 16,775 डॉलर से गिरकर 15,751 डॉलर पर पहुंच गया। सीसे और जस्ते में भी गिरावट आई और ये शुक्रवार को क्रमश: 8 और 5 प्रतिशत गिरे। लंदन मेटल एक्सचेंज में सीसा गुरुवार के 2344 डॉलर प्रति टन की तुलना में शुक्रवार को 2145 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। जस्ते के दाम 2130 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए।
सोयाबीन, मक्के और गेहूं की कीमतों में भी गिरावट आई है। जनवरी डिलिवरी वाला सोयाबीन 3.2 प्रतिशत गिरककर 10.21 डॉलर प्रति बुशेल पर पहुंच गया। मक्के की मार्च डिलिवरी में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 3.95 डॉलर प्रति बुशेल से गिरकर 3 डॉलर प्रति बुशेल पर पहुंच गया। इसके सौदों में इस सप्ताह 2.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी, जो 4 सप्ताह में पहली गिरावट थी।
शिकागो में मार्च डिलिवरी की गेहूं की कीमतें 3.4 प्रतिशत गिरीं। इस सप्ताह के दौरान अनाज की कीमतों में 4.9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो चार सप्ताह में पहली बार गिरा है। भारत के बाजार में भी वैश्विक संकेतों से ज्यादातर जिंसों में गिरावट दर्ज की गई है। एमसीएक्स में तांबे की वायदा कीमतों में 0.30 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई।
फरवरी माह का तांबे का अनुबंध 0.30 प्रतिशत की गिरावट के साथ 320.50 रुपये प्रति किलो पर आ गया। सीसे की वायदा कीमतों में 1.41 प्रतिशत तक की कमी आई। निकल का जनवरी माह का अनुबंध 2.74 प्रतिशत की गिरावट के साथ 766 रुपये प्रति किलो पर आ गया।
जस्ते का जनवरी माह का अनुबंध 1।47 फीसदी की गिरावट के साथ 103.85 रुपये प्रति किलो रह गया। इस धातु के नवंबर माह के अनुबंध में 1.25 फीसदी की गिरावट आई और यह 102.95 रुपये प्रति किलो पर आ गया। जस्ते के दिसंबर माह के अनुबंध में 1.19 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 103.60 रुपये प्रति किलो पर आ गया। (बीएस हिन्दी)
जिंसों की वैश्विक कीमतों में शुक्रवार को तेज गिरावट दर्ज की गई। दुबई में आए ऋण संकट के बाद वैश्विक स्तर पर निवेशकों और हेज फंडों ने लॉन्ग पोजिशन बेच दी।
ज्यादातर जिंसों की कीमतों में आज 3-5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि दोपहर बाद डॉलर में मजबूती आने से कीमतों में कुछ सुधार आया। जिंसों के एस ऐंड पी जीएससीआई सूचकांक में 4.2 प्रतिशत की तेज गिरावट दर्ज की गई है, जो 29 जुलाई के बाद की सबसे तेज गिरावट है।
हालांकि बाद में लंदन में कारोबार में सुधार आने के बाद से स्थिति में सुधार आया और सूचकांक 3.15 प्रतिशत गिरा। सोने और कच्चे तेल को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है, लेकिन इसमें भी गिरावट दर्ज की घई। कुछ कारोबारियों के मुताबिक इसमें भी उम्मीद धूमिल दिखी।
सरकार की निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड के उपर 59 बिलियन डॉलर की देनदारी है। इसके भुगतान में देरी होने से यह संदेह हुआ कि आने वाले दिनों में भी डिफाल्ट आएगा। इससे वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में सुधार पर पानी फिरने की उम्मीद बढ़ गई और इस भय का प्रभाव दुनिया के बाजारों पर पड़ा। एक समय तो ऐसा भी आया कि कच्चे तेल की कीमतें 73 डॉलर के नीचे आ गईं।
साथ ही सोने का कारोबार भी 1140 डॉलर प्रति औंस के नीचे हुआ। हालांकि दिन ढलते-ढलते कच्चे तेल में सुधार हुआ और वह 75 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। साथ ही सोना भी चढ़कर 1160 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। मुंबई में सोना 275 रुपये गिरकर 17,615 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ।
जानकारों का कहना है कि आज की गिरावट के पीछे प्रमुख वजह यह भी रही कि अमेरिकी मुद्रा डॉलर सूचकांक 1 प्रतिशत ऊपर गया। बाद में इसमें कुछ सुधार हुआ और इसका कारोबार 0.63 प्रतिशत चढ़कर 75.30 पर पहुंच गया। अमेरिका में ब्याज दरें शून्य के करीब हैं। इस लिहाज से डॉलर उधार लेकर अन्य संपत्ति खरीदना फायदेमंद है, क्योंकि पिछले साल की गिरावट के बाद जिंस और इक्विटी सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं।
जोखिम सलाहकार फर्म कमट्रेंड्ज के निदेशक टी ज्ञानशंकर ने कहा, 'दुबई में ऋण संकट की वजह से निवेशकों को मुनाफावसूली का मौका मिला' कुछ जिंसों में मुनाफावसूली बहुत ज्यादा रही। खासकर उन संस्थागत निवेशकों ने मुनाफा कमाया, जो लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने के संकट के पहले मुनाफावसूली करने में सफल नहीं हुए थे।
ज्ञानशंकर का मानना है कि अन्य संपत्तियों में मुनाफावसूली और डॉलर की खरीद कुछ और समय तक जारी रह सकती है। कुछ धातुओं ने 2009 में 100 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न दिया है। रेलीगेयर कमोडिटीज के अध्यक्ष जयंत मांगलिक ने कहा, 'दुबई में हुए घटनाक्रम के बाद पैसे को सुरक्षित निवेश में लगाने को बल मिला और ऐसे में दो ही विकल्प थे- एक सोना खरीदने का और दूसरा डॉलर खरीदने का।'
आज धन का प्रवाह डॉलर की ओर हुआ, लेकिन मांगलिक का मानना है कि अगले दो कारोबारी दिनों के दौरा यह स्पष्ट हो पाएगा कि यह संकट दुबई तक ही सिमटा रहेगा, या इसका और ज्यादा प्रसार होगा। अगर यह संकट और बढ़ता है तो निवेशक एक बार फिर स्थिति का आकलन करेंगे और यह फैसला करेंगे कि सुरक्षित ठिकाना क्या है। उनका मानना है कि ऐसी स्थिति में सोना एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में उभर सकता है।
तांबे और एल्युमीनियम की कीमतों में करीब 3 प्रतिशत की गिरावट आई और यह दो सप्ताह के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए। लंदन मेटल एक्सचेंज में 3 माह वाले तांबे का सौदा 6683 डॉलर पर हुआ, जबकि गुरुवार को यह 6904 डॉलर पर बंद हुआ था। एल्युमीनियम 2009 डॉलर से गिरकर 1979 डॉलर पर पहुंच गया। सुबह के कारोबार में तो यह 1950 डॉलर पर पहुंच गया था।
निकल की कीमतों में भी 5 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह 16,775 डॉलर से गिरकर 15,751 डॉलर पर पहुंच गया। सीसे और जस्ते में भी गिरावट आई और ये शुक्रवार को क्रमश: 8 और 5 प्रतिशत गिरे। लंदन मेटल एक्सचेंज में सीसा गुरुवार के 2344 डॉलर प्रति टन की तुलना में शुक्रवार को 2145 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। जस्ते के दाम 2130 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए।
सोयाबीन, मक्के और गेहूं की कीमतों में भी गिरावट आई है। जनवरी डिलिवरी वाला सोयाबीन 3.2 प्रतिशत गिरककर 10.21 डॉलर प्रति बुशेल पर पहुंच गया। मक्के की मार्च डिलिवरी में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 3.95 डॉलर प्रति बुशेल से गिरकर 3 डॉलर प्रति बुशेल पर पहुंच गया। इसके सौदों में इस सप्ताह 2.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी, जो 4 सप्ताह में पहली गिरावट थी।
शिकागो में मार्च डिलिवरी की गेहूं की कीमतें 3.4 प्रतिशत गिरीं। इस सप्ताह के दौरान अनाज की कीमतों में 4.9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो चार सप्ताह में पहली बार गिरा है। भारत के बाजार में भी वैश्विक संकेतों से ज्यादातर जिंसों में गिरावट दर्ज की गई है। एमसीएक्स में तांबे की वायदा कीमतों में 0.30 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई।
फरवरी माह का तांबे का अनुबंध 0.30 प्रतिशत की गिरावट के साथ 320.50 रुपये प्रति किलो पर आ गया। सीसे की वायदा कीमतों में 1.41 प्रतिशत तक की कमी आई। निकल का जनवरी माह का अनुबंध 2.74 प्रतिशत की गिरावट के साथ 766 रुपये प्रति किलो पर आ गया।
जस्ते का जनवरी माह का अनुबंध 1।47 फीसदी की गिरावट के साथ 103.85 रुपये प्रति किलो रह गया। इस धातु के नवंबर माह के अनुबंध में 1.25 फीसदी की गिरावट आई और यह 102.95 रुपये प्रति किलो पर आ गया। जस्ते के दिसंबर माह के अनुबंध में 1.19 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 103.60 रुपये प्रति किलो पर आ गया। (बीएस हिन्दी)
कपास निर्यात पर लगे प्रतिबंध : शर्मा
वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कपास के निर्यात को प्रतिबंधित करने की वकालत की है।
हालांकि उन्होंने कहा कि निर्यात के लिए कपास सरप्लस न रहने की हालत में ही प्रतिबंध लगाया जाएगा। शर्मा ने बताया कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) घरेलू बाजार में कपास की उपलब्धता की समीक्षा कर रहा है।
शर्मा का यह बयान केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन के उस वक्तव्य के दो दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने देश में पर्याप्त भंडार का हवाला देते हुए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की संभावना को खारिज कर दिया था।
शर्मा ने कहा, 'डीजीएफटी को देश में कपास की उपलब्धता और निर्यात अधिशेष की समीक्षा करने को कहा गया है। यदि निर्यात अधिशेष नहीं पाया गया तो निर्यात की इजाजत नहीं दी जाएगी। सबसे पहले हम इसकी देश में उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे। हां, कपड़े के मूल्यवर्द्धित उत्पादों का निर्यात किसानों और उद्योग दोनों के लिए बेहतर रहेगा।'
उल्लेखनीय है कि कच्चे माल (कपास) की कीमत बढ़ने के चलते कपड़ा उद्योग इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने सरकार से निर्यात पर कुछ प्रतिबंध आयद करने की मांग की थी।
फियो का कहना था कि कपड़ा और गारमेंट निर्यातकों के लिए कपास की आपूर्ति सुनिश्चित कररने के लिए हर महीने 4 लाख बेल के निर्यात की सीमा तय की जाए। फियो के अध्यक्ष ए. शक्तिवेल ने कहा कि कपास की कीमतें बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके उत्पाद महंगे हो गए हैं। गौरतलब है कि मारन ने दो दिन पहले कहा था, 'देश में कपास का पर्याप्त भंडार है। इसलिए इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है।'
मंत्रालय कपड़ा उद्योग के उस मांग को जिसमें कि विशेष कृषि और ग्राम उद्योग योजना (वीकेजीयूवाई) के तहत कपास के निर्यात पर दी जा राहत खत्म की जाए, को मान लिया था। अनुमान है कि यदि इसी रफ्तार से निर्यात होता रहे तो 1 अक्टूबर से शुरू हुए मौजूदा कपास वर्ष में 80 लाख कपास का निर्यात हो जाएगा।
हालांकि देश में कपास का करीब 71।5 बेल कैरीओवर स्टॉक है। कपड़ा उद्योग के मुताबिक, कपास वर्ष 2007-08 का दोहराव हो सकता है। (बीएस हिन्दी)
हालांकि उन्होंने कहा कि निर्यात के लिए कपास सरप्लस न रहने की हालत में ही प्रतिबंध लगाया जाएगा। शर्मा ने बताया कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) घरेलू बाजार में कपास की उपलब्धता की समीक्षा कर रहा है।
शर्मा का यह बयान केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन के उस वक्तव्य के दो दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने देश में पर्याप्त भंडार का हवाला देते हुए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की संभावना को खारिज कर दिया था।
शर्मा ने कहा, 'डीजीएफटी को देश में कपास की उपलब्धता और निर्यात अधिशेष की समीक्षा करने को कहा गया है। यदि निर्यात अधिशेष नहीं पाया गया तो निर्यात की इजाजत नहीं दी जाएगी। सबसे पहले हम इसकी देश में उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे। हां, कपड़े के मूल्यवर्द्धित उत्पादों का निर्यात किसानों और उद्योग दोनों के लिए बेहतर रहेगा।'
उल्लेखनीय है कि कच्चे माल (कपास) की कीमत बढ़ने के चलते कपड़ा उद्योग इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने सरकार से निर्यात पर कुछ प्रतिबंध आयद करने की मांग की थी।
फियो का कहना था कि कपड़ा और गारमेंट निर्यातकों के लिए कपास की आपूर्ति सुनिश्चित कररने के लिए हर महीने 4 लाख बेल के निर्यात की सीमा तय की जाए। फियो के अध्यक्ष ए. शक्तिवेल ने कहा कि कपास की कीमतें बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके उत्पाद महंगे हो गए हैं। गौरतलब है कि मारन ने दो दिन पहले कहा था, 'देश में कपास का पर्याप्त भंडार है। इसलिए इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है।'
मंत्रालय कपड़ा उद्योग के उस मांग को जिसमें कि विशेष कृषि और ग्राम उद्योग योजना (वीकेजीयूवाई) के तहत कपास के निर्यात पर दी जा राहत खत्म की जाए, को मान लिया था। अनुमान है कि यदि इसी रफ्तार से निर्यात होता रहे तो 1 अक्टूबर से शुरू हुए मौजूदा कपास वर्ष में 80 लाख कपास का निर्यात हो जाएगा।
हालांकि देश में कपास का करीब 71।5 बेल कैरीओवर स्टॉक है। कपड़ा उद्योग के मुताबिक, कपास वर्ष 2007-08 का दोहराव हो सकता है। (बीएस हिन्दी)
काफी महंगा पड़ रहा है नाश्ते की टेबल पर बैठना
नई दिल्ली : एक तरफ हमारा देश मोटापे की महामारी की गिरफ्त में फंसता जा रहा है और दूसरी ओर ब्रेकफास्ट की टेबल पर भारतीय बटुए की चर्बी गल रही है। दूध और मक्खन एक साल पहले की तुलना में 10-12 फीसदी महंगे हो चुके हैं, ब्रेड के दाम 13 फीसदी उछले हैं और एक अंडा चार रुपए में बिक रहा है। अंडा-टोस्ट का नियमित नाश्ता छोड़कर कम फैट और लो शुगर म्यूसली की बात करें, तो खुद आपका टोस्ट बन जाएगा। साल भर में व्हीट फ्लैक के दाम 30 फीसदी बढ़ चुके हैं। कुल मिलाकर नाश्ता हमारी जेब का बैंड बजाने में लगा है। देश भर के परिवारों ने गुरुवार को एक बार फिर बुरी खबर का सामना किया। सरकारी आंकड़ों ने खुलासा किया कि रसोई के अहम उत्पादों के दामों में आया उबाल अब भी जारी है।
14 नवंबर को खत्म सप्ताह के लिए फूड आर्टिकल इंडेक्स सालाना आधार पर 15।6 फीसदी बढ़ा, जो इससे पिछले हफ्ते 14.6 फीसदी पर था। इस उछाल की अगुवाई उड़द और चिकन कर रहे हैं, जो इस दौरान 15 फीसदी महंगे हुए हैं। इसके अलावा अंडे 8 फीसदी, मूंग 6 फीसदी, अरहर 5 फीसदी, फल एवं सब्जियां 3 फीसदी महंगे हुए हैं, जबकि दूध और गेहूं की कीमत 1 फीसदी बढ़ी है। जो लोग अपने नाश्ते के साथ एक ग्लास दूध चाहते हैं, उन्हें गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रमुख आर एस सोढ़ी सतर्क कर रहे हैं। उनका कहना है कि गर्मियों के मौसम में दूध के दाम 5 फीसदी और बढ़ सकते हैं, क्योंकि पशु चारे के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और साथ ही शीरा पर मौजूदा एक्साइज ड्यूटी और वैट काफी ज्यादा है, जो चारे का महत्वपूर्ण अंश है। अंडे महंगे होने की वजह भी मुर्गियों का खाना है। उन्हें प्रोटीन और स्टार्च दिया जाता है, जो मुख्य रूप से कॉर्न और सोयामील से मिलता है, जिनके दाम सूखे जैसे हालात की वजह से 30 फीसदी बढ़ चुके हैं। साल 1972 के बाद से अब तक के सबसे कमजोर मॉनसून और उसके बाद देश के कई हिस्सों में बाढ़ आने से कृषि उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। नेशनल एग कॉर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) के एम बी देसाई ने कहा कि एक अंडे की लागत किसान को अब 2-2.5 रुपए पड़ती है, जिसे वह 2.90 रुपए में बेचता है। होलसेलर ने उसके दाम 3 रुपए रखे हैं, जबकि किराना से ग्राहक तक पहुंचते-पहुंचते वह 4 रुपए का हो जाता है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं क्योंकि सर्दियों की दस्तक के साथ मांग में भी इजाफा जारी है। भारत फिलहाल हर रोज 15-17 करोड़ अंडों का उत्पादन कर रहा है, जबकि मांग 19 करोड़ अंडे प्रतिदिन है। देसाई ने कहा, 'बीते दो साल के दौरान पोल्ट्री सेक्टर में कोई क्षमता विस्तार नहीं हुआ है, क्योंकि किसानों को आकर्षक कीमतें नहीं मिल रहीं।' (ई टी हिन्दी)
14 नवंबर को खत्म सप्ताह के लिए फूड आर्टिकल इंडेक्स सालाना आधार पर 15।6 फीसदी बढ़ा, जो इससे पिछले हफ्ते 14.6 फीसदी पर था। इस उछाल की अगुवाई उड़द और चिकन कर रहे हैं, जो इस दौरान 15 फीसदी महंगे हुए हैं। इसके अलावा अंडे 8 फीसदी, मूंग 6 फीसदी, अरहर 5 फीसदी, फल एवं सब्जियां 3 फीसदी महंगे हुए हैं, जबकि दूध और गेहूं की कीमत 1 फीसदी बढ़ी है। जो लोग अपने नाश्ते के साथ एक ग्लास दूध चाहते हैं, उन्हें गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रमुख आर एस सोढ़ी सतर्क कर रहे हैं। उनका कहना है कि गर्मियों के मौसम में दूध के दाम 5 फीसदी और बढ़ सकते हैं, क्योंकि पशु चारे के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और साथ ही शीरा पर मौजूदा एक्साइज ड्यूटी और वैट काफी ज्यादा है, जो चारे का महत्वपूर्ण अंश है। अंडे महंगे होने की वजह भी मुर्गियों का खाना है। उन्हें प्रोटीन और स्टार्च दिया जाता है, जो मुख्य रूप से कॉर्न और सोयामील से मिलता है, जिनके दाम सूखे जैसे हालात की वजह से 30 फीसदी बढ़ चुके हैं। साल 1972 के बाद से अब तक के सबसे कमजोर मॉनसून और उसके बाद देश के कई हिस्सों में बाढ़ आने से कृषि उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। नेशनल एग कॉर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) के एम बी देसाई ने कहा कि एक अंडे की लागत किसान को अब 2-2.5 रुपए पड़ती है, जिसे वह 2.90 रुपए में बेचता है। होलसेलर ने उसके दाम 3 रुपए रखे हैं, जबकि किराना से ग्राहक तक पहुंचते-पहुंचते वह 4 रुपए का हो जाता है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं क्योंकि सर्दियों की दस्तक के साथ मांग में भी इजाफा जारी है। भारत फिलहाल हर रोज 15-17 करोड़ अंडों का उत्पादन कर रहा है, जबकि मांग 19 करोड़ अंडे प्रतिदिन है। देसाई ने कहा, 'बीते दो साल के दौरान पोल्ट्री सेक्टर में कोई क्षमता विस्तार नहीं हुआ है, क्योंकि किसानों को आकर्षक कीमतें नहीं मिल रहीं।' (ई टी हिन्दी)
आने वाला है चाय की कीमतों में उबाल
कोलकाता : चाय के शौकीन लोगों को एंड सीजन की किस्मों के लिए भी ज्यादा जेब ढील करनी होगी, क्योंकि कीमतें आसमान की ओर जा रही हैं। चाय सीजन 2009 तीन सप्ताह में खत्म होने वाला है और टाटा टी, हिंदुस्तान यूनिलीवर, वाघ बकरी गुप, गिरनार और हसमुखराय एंड कंपनी ऑफ सोसाइटी टी जैसी कंपनियां पिछले साल की तुलना इस बार 20-25 रुपए किलोग्राम ज्यादा कीमत पर भारी मात्रा में चाय खरीद रही हैं। कंपनियों की ओर से अभी खरीदी जा रही है यह चाय अगले चार महीने के दौरान दुकानों के शेल्फ तक पहुंच जाएगी। कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन (सीटीटीए) के सचिव जे कल्याणसुंदरम ने कहा, 'चाय की कुछ किस्में ऐसी होती हैं, जिन्हें चार महीने से ज्यादा वक्त तक नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह अपना जायका और खुशबू, दोनों खो बैठती हैं। दूसरी किस्में भी हैं, जिन्हें छह महीने तक स्टोर किया जा सकता है और उसके बाद ब्लेंडिंग के लिए इस्तेमाल भी किया जा सकता है। हालांकि, इस साल हमने गौर किया है कि बड़ी और क्षेत्रीय, दोनों कंपनियां कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद इस बार ज्यादा खरीदारी कर रही हैं।' रीटेल के मोर्चे पर ग्राहकों को चाय की किस्मों के आधार पर 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम ज्यादा दाम देने पड़ेंगे। पैकेटबंद चाय सेगमेंट में दाम बढ़े ही हैं, साथ ही खुली बिकने वाली चाय भी महंगी हो गई है। आम तौर पर खुली चाय असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बिकती है, जहां चाय उत्पादन होता है। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन के चेयरमैन हरेंद्र शाह ने कहा, 'अगले साल फरवरी-मार्च में सीजन के अंत की चाय जब शेल्फ स्पेस में पहुंच जाएगी, तो एक बार फिर कीमतों की समीक्षा की जाएगी। सभी कमोडिटी के दामों में इजाफा हुआ है। हमें यह देखना होगा कि क्या ग्राहक दूसरी बार कीमत बढ़ाने का बोझ सह पाता है या नहीं। टाटा टी और हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी पैकेटबंद चाय कंपनियां आम तौर पर कीमतों में बढ़ोतरी के चलन की अगुवाई करती हैं। ये कंपनियां हमारी सदस्य भी हैं।' बहरहाल ब्रांड विशेषज्ञ हरीश बिजूर का कहना है कि आज का ग्राहक चाय के दाम बढ़ने का बोझ सहन करने की हालत में नहीं है। हरीश बिजूर कंसल्ट्स इंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बिजूर ने कहा, 'हम वैल्यू को लेकर संजीदा रहने वाले लोग ही बने रहेंगे। एक कप चाय के दाम महंगाई दर का मोटा-मोटा अंदाजा दे देते हैं, जिस तरह किसी दक्षिण भारतीय रेस्तरां में इडली की प्लेट की कीमत हमें बता देती है कि दुनिया कितनी महंगी हो चली है।' (ई टी हिन्दी)
दुबई की चिंताओं से सोने में रही भारी गिरावट
नई दिल्ली : दो दिनों की जबरदस्त तेजी के बाद राजधानी सर्राफा बाजार में शुक्रवार को सोने में 300 रुपये से भी ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई। दुबई कर्ज संकट की चिंताओं के मद्देनजर सोने में जमकर बिकवाली देखने को मिली और कारोबार के दौरान यह नीचे में 17,600 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया। आखिर में सोना 320 रुपये की गिरावट के साथ 17,850 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। चांदी हाजिर में भी गिरावट का ट्रेंड रहा और यह 950 रुपये की गिरावट के साथ 28,000 प्रति किलो पर बंद हुई। बाजार के जानकारों के मुताबिक, लंदन में चांदी जनवरी के बाद के अपने निचले स्तर पर पहुंच गई और इसका असर घरेलू बाजार पर भी देखने को मिला।
ऑल इंडिया सर्राफा बाजार (बुलियन) के प्रेसिडेंट शील चंद जैन के मुताबिक, बाजार में खरीदारी बिल्कुल भी नहीं रही और भाव पूरी तरह ग्लोबल ट्रेंड्स से संचालित हुए। उन्होंने कहा कि दुबई कर्ज संकट की खबर वित्तीय बाजारों पर खासा असर डाल रही है। लंदन बुलियन मार्केट में सोने में 50।28 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट रही और यह 1,138.10 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच गया। सोने में जनवरी 12 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है। गौरतलब है कि गुरुवार यानी कल दिल्ली में सोना 18,170 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ था। (ई टी हिन्दी)
ऑल इंडिया सर्राफा बाजार (बुलियन) के प्रेसिडेंट शील चंद जैन के मुताबिक, बाजार में खरीदारी बिल्कुल भी नहीं रही और भाव पूरी तरह ग्लोबल ट्रेंड्स से संचालित हुए। उन्होंने कहा कि दुबई कर्ज संकट की खबर वित्तीय बाजारों पर खासा असर डाल रही है। लंदन बुलियन मार्केट में सोने में 50।28 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट रही और यह 1,138.10 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच गया। सोने में जनवरी 12 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है। गौरतलब है कि गुरुवार यानी कल दिल्ली में सोना 18,170 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ था। (ई टी हिन्दी)
और चढ़ी चीनी, गन्ना कीमत पर विधेयक की तैयारी
नई दिल्ली : घरेलू बाजार में बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति के बीच बुधवार को दिल्ली में चीनी की कीमतों में 20 रुपए प्रति क्विंटल का उछाल दर्ज किया गया। कमोडिटी जानकारों का कहना है कि चीनी मिलों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली चीनी में आई गिरावट के कारण घरेलू बाजार में मांग बढ़ी है और इसी से चीनी की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। बुधवार को चीनी रेडी मीडियम और सेकेंड ग्रेड के दाम 20 रुपए की तेजी के साथ क्रमश: 3,520-3,620 रुपए प्रति क्विंटल और 3,510-3,610 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गए। इस बीच, कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि सरकार को उम्मीद है कि कीमतों को लेकर गन्ना अध्यादेश की जगह अगले हफ्ते संसद में एक विधेयक पेश किया जा सकता है।
यह विधेयक उस पुराने अध्यादेश की जगह लेगा, जिसको लेकर संसद के मौजूदा सत्र की शुरुआत में विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया था। कृषि मंत्री ने चीनी मिलों को बेचे जाने वाले गन्ने के मूल्य की नई व्यवस्था के बारे में बुधवार को तमाम पाटिर्यों के नेताओं की बैठक बुलाई थी। पवार ने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नहीं हो सकती है, लेकिन नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझाने के लिए चर्चा तो होती ही है। अध्यादेश में गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) व्यवस्था की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की व्यवस्था थी। पवार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर दक्षिणी राज्यों के सांसदों की एक बैठक बुलाएंगे क्योंकि इन सांसदों ने धारा 5 ए को बहाल करने की मांग पर आपत्ति की है। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने गन्ने के लिए 190-195 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत देने के बाद अपने यहां पेराई शुरू कर दी है। यू पी शुगर मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सी बी पटोदिया ने बताया, 'शुगर सोसाइटी से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद हमने सामान्य किस्म के लिए 190 रुपए प्रति क्विंटल और जल्द फसल के लिए 195 रुपए प्रति क्विंटल दने का फैसला किया है। बुधवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 47 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू कर दी, जबकि एक साल पहले 39 मिलों ने पेराई की थी।' (ई टी हिन्दी)
यह विधेयक उस पुराने अध्यादेश की जगह लेगा, जिसको लेकर संसद के मौजूदा सत्र की शुरुआत में विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया था। कृषि मंत्री ने चीनी मिलों को बेचे जाने वाले गन्ने के मूल्य की नई व्यवस्था के बारे में बुधवार को तमाम पाटिर्यों के नेताओं की बैठक बुलाई थी। पवार ने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नहीं हो सकती है, लेकिन नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझाने के लिए चर्चा तो होती ही है। अध्यादेश में गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) व्यवस्था की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की व्यवस्था थी। पवार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर दक्षिणी राज्यों के सांसदों की एक बैठक बुलाएंगे क्योंकि इन सांसदों ने धारा 5 ए को बहाल करने की मांग पर आपत्ति की है। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने गन्ने के लिए 190-195 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत देने के बाद अपने यहां पेराई शुरू कर दी है। यू पी शुगर मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सी बी पटोदिया ने बताया, 'शुगर सोसाइटी से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद हमने सामान्य किस्म के लिए 190 रुपए प्रति क्विंटल और जल्द फसल के लिए 195 रुपए प्रति क्विंटल दने का फैसला किया है। बुधवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 47 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू कर दी, जबकि एक साल पहले 39 मिलों ने पेराई की थी।' (ई टी हिन्दी)
सऊदी अरब ने मुश्किल की भारतीय बासमती की राह
नई दिल्ली : आर्थिक संकट से प्रभावित सऊदी अरब ने बासमती के लिए भारत के न्यूनतम निर्यात मूल्य का कम स्तर देखते हुए इसके आयात पर सब्सिडी को वापस लेने का फैसला किया है। इसके अलावा कुछ सप्ताह पहले ईरान ने भी बासमती चावल के आयात पर करों में वृद्धि की है। इन दोनों वजहों से भारत के बासमती निर्यात पर काफी असर पड़ने की आशंका है। इधर घरेलू बाजार में कुछ समय तक नरम रहने के बाद बढ़ती घरेलू मांग और बड़े किसानों द्वारा फसल की जमाखोरी के कारण पंजाब और हरियाणा में बासमती धान की कीमत में 20 से 25 फीसदी की तेजी आई है। सऊदी अरब के फैसले से उन निर्यातकों के लिए भी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं जो बासमती चावल के निर्यात के बदले उससे दोगुनी मात्रा का गैर बासमती चावल आयात करते थे। परंपरागत रूप से भारतीय बासमती के सबसे बड़े खरीदार सऊदी पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट का असर दिखने लगा है। इसके फलस्वरूप क्रूड का बेहतरीन उत्पादन करने वाले इस देश ने 29 नवंबर से प्रति टन 267 डॉलर की आयात सब्सिडी वापस लेने का फैसला किया है। इसकी वजह से खुले बाजार में चावल की कीमतें चढ़ सकती हैं क्योंकि निर्यातकों के लिए बासमती निर्यात के बदले गैर-बासमती चावल का आयात मुश्किल हो जाएगा। सऊदी सरकार के इस फैसले को उस संदर्भ में भी देखा जा रहा है जिसमें भारत सरकार ने बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में वृद्धि नहीं करने का फैसला किया है। इस समय बासमती का प्रभावी एमईपी 788 डॉलर प्रति टन है। सऊदी के उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से जारी एक निर्देश के अनुसार, आयातकों के लिए यह जरूरी कर दिया गया है कि बासमती चावल का उपभोक्ता मूल्य आने वाले कम से कम छह महीने तक पिछले साल के 1,350 डॉलर प्रति टन से बढ़ाया नहीं जाना चाहिए। लिहाजा भारतीय निर्यातकों को 1,100 डॉलर प्रति टन पर सऊदी अरब को बासमती बेचना पड़ सकता है ताकि आयातकों के कमीशन पर चोट न पड़े। निर्यातकों का कहना है कि उच्च गुणवत्ता वाले बासमती के लिए उनकी कीमत 1800 डॉलर प्रति टन से काफी कम है। इस बीच व्यापारियों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में पूसा 1121 किस्म की कीमत फसल आवक के आरंभ के समय से बढ़कर 23-24 रुपए प्रति किलो हो गयी है जो पहले 15 से 18 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर पर थी। उन्होंने बताया कि पारंपरिक पूसा 1 किस्म की कीमत 25 से 27 रुपए प्रति किलोग्राम के मुकाबले बढ़कर 28 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम हो गयी है। एक अन्य बासमती किस्म एचबीसी 19 की कीमत भी 1।50 रुपए प्रति किलोग्राम की तेजी के साथ 18.50 रुपए प्रति किलोग्राम हो गयी है। एक चावल निर्यातक ने कहा, 'बासमती चावल की किस्मों में तेजी कारण घरेलू मांग का बढ़ना और उससे भी अधिक चावल कीमतों में अधिक तेजी के समय बेहतर लाभ हासिल करने के मकसद से किसानों द्वारा इसकी जमाखोरी करना है।' इस वर्ष फसल आवक के समय बासमती किस्मों की कीमत विशेष रूप से पूसा 1121 किस्म की कीमत में पिछले वर्ष के मुकाबले 40 फीसदी तक की गिरावट आई थी, जिसकी वजह इसकी अत्यधिक आपूर्ति थी। पंजाब और हरियाणा में खरीफ सत्र 2009-10 में बासमती किस्म के धान की खेती का क्षेत्रफल 20 से 55 फीसदी के दायरे में बढ़ा है, जिसमें पूसा 1121 किस्म की बहुलांश हिस्सेदारी है। (ई टी हिन्दी)
सऊदी अरब समाप्त करेगा बासमती आयात पर सब्सिडी
भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक सऊदी अरब चावल आयात पर सब्सिडी खत्म करेगा। वहां 266.67 डॉलर प्रति टन की मौजूदा सब्सिडी 29 नवंबर से समाप्त कर दी जाएगी। हालांकि भारतीय निर्यातकों का कहना है कि सऊदी अरब के इस कदम से निर्यात पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। सऊदी अरब की मीडिया रिपोर्टो में 24 नवंबर को वाणिज्य और उद्योग उप मंत्री अब्दुल रहमान अल रज्जाक के हवाले से कहा गया था कि निर्यातक सरकारी मदद का दुरुपयोग कर रहे हैं इसलिए सब्सिडी को हटाने का फैसला किया गया है। दिसंबर 2007 में सऊदी अरब ने उस समय सब्सिडी देना शुरू किया छा जब चावल के भाव रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे। लेकिन अब जब दुनियाभर में चावल के भाव काफी गिर गए है,ं फिर भी सब्सिडी जारी है। भारतीय निर्यातकों का कहना है कि सऊदी अरब के उपभोक्ता पारंपरिक रूप से भारतीय बासमती चावल की विभिन्न किस्में पसंद करते हैं और वे बड़े खरीदार हैं। अपने पसंदीदा चावल के लिए वे ज्यादा कीमत भी देने को तैयार होंगे। फिलहाल सऊदी अरब के लिए भारत से बासमती चावल के सौदे 1,000-1,200 डॉलर प्रति टन के भाव पर हो रहे हैं। दूसरी ओर भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र पंजाब और हरियाणा में लंबी गिरावट के बाद बासमती धान के भाव 20 से 25 फीसदी तक बढ़ गए हैं। घरेलू खपत बढ़ने और बड़े किसानों द्वारा स्टॉक किए जाने का भावों पर असर आया। दोनों राज्यों में खरीफ सीजन के दौरान ज्यादा रकबे में बोए गए बासमती पूसा-1121 धान के भाव 1500-1800 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2300-2400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। बासमती पूसा-1 धान के भाव बढ़कर 2800 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। वहीं कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि उत्तरी भारत के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में सूखे के बावजूद चावल खरीद गत वर्ष के मुकाबले ज्यादा रहेगी। उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में धान खरीद गत वर्ष के मुकाबले ज्यादा रही है। (बिज़नस भास्कर)
कॉपर समेत बेसमेटल्स के भाव में गिरावट
दुबई संकट के उजागर होने के बाद लंदन में कॉपर के मूल्य में पिछले एक माह की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। लंदन मेटल एक्सचेंज में तीन माह डिलीवरी सोना 90 डॉलर (करीब 1.3 फीसदी) गिरकर 6,731 डॉलर प्रति टन रह गया। कॉपर के अलावा दूसरे बेसमेटल्स में भी गिरावट दर्ज की गई।अर्जेटीना में 2001 के बाद दुबई संकट में सबसे बड़ा डिफाल्ट होने ही आशंका के चलते शेयरों का एमएससीआई वल्र्ड इंडेक्स में 9 नवंबर के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। छह मुद्राओं वाले यूएस डॉलर इंडेक्स में शुक्रवार को सुधार दर्ज किया गया। यह इंडेक्स 15 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया था। लंदन में सिटी ग्रुप के विश्लेषक डेविड थुर्टेल ने कहा कि निवेशक जोखिम भरे पोर्टफोलियो से बच रहे हैं। इसमें मेटल्स भी शामिल हैं। एलएमई के अलावा नायमैक्स के कॉमेक्स डिवीजन में कॉपर तीन फीसदी से ज्यादा गिर गया। कॉपर मार्च डिलीवरी कांट्रेक्ट 3.9 फीसदी गिरकर 3.0725 डॉलर प्रति पाउंड रह गया। कॉपर में गिरावट का रुख दूसरी वजहों से भी बन रहा है। एलएमई का कॉपर स्टॉक पिछले 20 सप्ताह से लगातार बढ़ रहा है। शुक्रवार को स्टॉक 0.7 फीसदी बढ़कर 435,075 टन तक पहुंच गया। यह स्टॉक पिछले 23 अप्रैल के बाद का सबसे ज्यादा है। एलएमई में तीन माह डिलीवरी निकेल भी 2.3 फीसदी गिरकर 16,199 डॉलर प्रति टन रह गया। शुक्रवार को इस कांट्रेक्ट ने 15,751 डॉलर प्रति टन का निचला स्तर छू लिया। 22 जुलाई के बाद की यह सबसे बड़ी इंट्राडे गिरावट रही। निकेल का स्टॉक 1.5 फीसदी बढ़कर 135,480 टन हो गया। निकेल का स्टॉक फरवरी 1995 के बाद का सबसे ज्यादा है। टिन में 1.5 फीसदी की गिरावट के बाद भाव 14,750 डॉलर प्रति टन रह गया। इसी तरह लेड फ्यूचर 3.4 फीसदी गिरकर 2,260 डॉलर प्रति टन और अल्यूमीनियम 1.1 फीसदी गिरकर 1,988 डॉलर प्रति टन रह गया। जिंक 2.6 फीसदी की नरमी के साथ 2,198.50 डॉलर प्रति टन रह गया। अनायास पैदा हुए दुबई संकट ने बेसमेटल्स के निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी है। इससे पहले दूसरी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में गिरावट आने के साथ निवेशक मेटल खासकर कॉपर में पोजीशन ले रहे थे। इससे भाव में लगातार तेजी आ रही थी। हालांकि औद्योगिक मांग हल्की रहने से स्टॉक भी बढ़ रहा था। (बिज़नस भास्कर)
कॉपर समेत बेसमेटल्स के भाव में गिरावट
दुबई संकट के उजागर होने के बाद लंदन में कॉपर के मूल्य में पिछले एक माह की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। लंदन मेटल एक्सचेंज में तीन माह डिलीवरी सोना 90 डॉलर (करीब 1.3 फीसदी) गिरकर 6,731 डॉलर प्रति टन रह गया। कॉपर के अलावा दूसरे बेसमेटल्स में भी गिरावट दर्ज की गई।अर्जेटीना में 2001 के बाद दुबई संकट में सबसे बड़ा डिफाल्ट होने ही आशंका के चलते शेयरों का एमएससीआई वल्र्ड इंडेक्स में 9 नवंबर के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। छह मुद्राओं वाले यूएस डॉलर इंडेक्स में शुक्रवार को सुधार दर्ज किया गया। यह इंडेक्स 15 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया था। लंदन में सिटी ग्रुप के विश्लेषक डेविड थुर्टेल ने कहा कि निवेशक जोखिम भरे पोर्टफोलियो से बच रहे हैं। इसमें मेटल्स भी शामिल हैं। एलएमई के अलावा नायमैक्स के कॉमेक्स डिवीजन में कॉपर तीन फीसदी से ज्यादा गिर गया। कॉपर मार्च डिलीवरी कांट्रेक्ट 3.9 फीसदी गिरकर 3.0725 डॉलर प्रति पाउंड रह गया। कॉपर में गिरावट का रुख दूसरी वजहों से भी बन रहा है। एलएमई का कॉपर स्टॉक पिछले 20 सप्ताह से लगातार बढ़ रहा है। शुक्रवार को स्टॉक 0.7 फीसदी बढ़कर 435,075 टन तक पहुंच गया। यह स्टॉक पिछले 23 अप्रैल के बाद का सबसे ज्यादा है। एलएमई में तीन माह डिलीवरी निकेल भी 2.3 फीसदी गिरकर 16,199 डॉलर प्रति टन रह गया। शुक्रवार को इस कांट्रेक्ट ने 15,751 डॉलर प्रति टन का निचला स्तर छू लिया। 22 जुलाई के बाद की यह सबसे बड़ी इंट्राडे गिरावट रही। निकेल का स्टॉक 1.5 फीसदी बढ़कर 135,480 टन हो गया। निकेल का स्टॉक फरवरी 1995 के बाद का सबसे ज्यादा है। टिन में 1.5 फीसदी की गिरावट के बाद भाव 14,750 डॉलर प्रति टन रह गया। इसी तरह लेड फ्यूचर 3.4 फीसदी गिरकर 2,260 डॉलर प्रति टन और अल्यूमीनियम 1.1 फीसदी गिरकर 1,988 डॉलर प्रति टन रह गया। जिंक 2.6 फीसदी की नरमी के साथ 2,198.50 डॉलर प्रति टन रह गया। अनायास पैदा हुए दुबई संकट ने बेसमेटल्स के निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी है। इससे पहले दूसरी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में गिरावट आने के साथ निवेशक मेटल खासकर कॉपर में पोजीशन ले रहे थे। इससे भाव में लगातार तेजी आ रही थी। हालांकि औद्योगिक मांग हल्की रहने से स्टॉक भी बढ़ रहा था। (बिज़नस भास्कर)
दलहनों का बुवाई रकबा बढ़ा जबकि ज्वार का एरिया घटा
रबी सीजन की बुवाई की स्थिति इस समय मिलीजुली ही दिखाई दे रही है। दलहनों का कुल बुवाई रकबा बढ़ गया है जबकि मोटे अनाजों में ज्वार का रकबा काफी गिर गया। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि इस साल गेहूं का रकबा बढ़ गया है।कृषि मंत्रालय द्वारा 26 नवंबर तक के बुवाई के आंकड़ों के अनुसार गेहूं के बुवाई रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है लेकिन मोटे अनाजों का रकबा कम रहा। तिलहन का रकबा भी कुछ कम है, जबकि दलहन का रकबा बढ़ा है। मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक कुल 50।40 लाख हैक्टेयर में मोटे अनाज की बुवाई हो चुकी, जबकि बीते वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 54.52 लाख हैक्टेयर पर था। हालांकि गेहूं का रकबा 137.02 लाख हैक्टेयर हो चुका है जो पिछले वर्ष समान अवधि की बुवाई की तुलना में करीब सात लाख हैक्टेयर अधिक है। बीते वर्ष 26 नवंबर तक गेहूं का रकबा 130.34 लाख हैक्टेयर था। रबी सीजन के धान का रकबा भी पिछले वर्ष के 1.14 लाख हैक्टेयर की तुलना में मौजूदा वर्ष में अब तक 2.24 लाख हैक्टेयर हो गया है। इसके अलावा जौ का रकबा भी 4.44 लाख हैक्टेयर हो चुका है जबकि पिछले वर्ष यह इस अवधि तक 3.89 लाख हैक्टेयर था। रबी की मक्का में भी रकबा करीब 0.40 लाख हैक्टेयर बढ़ गया है। आंकड़ों के मुताबिक मक्का का बुवाई क्षेत्र 4.30 लाख हैक्टेयर हो चुका है। लेकिन, सबसे बड़ी गिरावट रबी की एक प्रमुख फसल ज्वार के रकबे में देखी जा रही है। ज्वार के अंतर्गत बुवाई क्षेत्र अब तक 41.40 लाख हैक्टेयर ही हो पाया है जबकि बीते वर्ष समान अवधि में ज्वार का रकबा 46.34 लाख हैक्टेयर था। तिलहनों में सरसों का रकबा करीब दो लाख हैक्टेयर बढ़ने के बावजूद कुल तिलहन में लगभग 1.5 लाख हैक्टेयर की गिरावट है। इसमें सूरजमुखी का रकबा करीब 2.5 लाख हैक्टेयर तक कम रहा है। रबी के मौजूदा सीजन में कई फसलों के रकबे में गिरावट आई है, लेकिन दलहन के कुल बुवाई क्षेत्रफल में करीब 3.5 लाख हैक्टेयर का इजाफा हुआ है। दलहन की बुवाई का कुल क्षेत्रफल 94.17 लाख हैक्टेयर है। जबकि बीते वर्ष समान अवधि में यह 91.93 लाख हैक्टेयर पर था। सबसे अधिक इजाफा अरहर में देखा गया है, इसका रकबा पिछले वर्ष के 11.45 लाख हैक्टेयर से बढ़कर इस वर्ष 13.68 लाख हैक्टेयर हो गया है। दलहन में 0.01 लाख हैक्टेयर की बेहद मामूली गिरावट मूंग में देखी जा रही है। लेकिन धीरे-धीरे इसमें भी सुधार आने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर)
दुबई संकट से सोने, बेसमेटल्स में जबर्दस्त गिरावट
सोने के भाव विदेशी और घरेलू बाजार में लुढ़केदुबई संकट सामने आने के बाद सोने के मूल्य का रुख अनायास पटल गया। कल तक सोना नई ऊंचाई छू रहा था लेकिन शुक्रवार को भाव में जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई। लंदन के हाजिर बाजार में सोने के भाव करीब पांच फीसदी गिरकर एक सप्ताह पहले के निचले स्तर 1,140 डॉलर प्रति औंस पर रह गए। घरेलू बाजार में भी भाव इसी तर्ज पर गिरते नजर आए। दिल्ली में सोने के भाव में करीब 200 रुपये की गिरावट रही। कारोबार के दौरान सोना 17,600 रुपये प्रति दस ग्राम पर रह गया। आखिर में यह 170 रुपये की गिरावट के साथ 18,000 रुपये पर बंद हुआ। चांदी हाजिर में भी गिरावट रही और 28,800 रुपये प्रति किलो पर बंद हुई। दिल्ली में गुरुवार को सोना 18,170 रुपये प्रति दस ग्राम और चांदी 28,950 रुपये प्रति किलोग्राम पर रही थी। आल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन के मुताबिक भाव पूरी तरह वैश्विक उतार-चढ़ाव के साथ ही बदल रहे हैं। इसी वजह से शुक्रवार को गिरावट आई।भोपाल में सोने में 500 रुपये प्रति दस ग्राम की गिरावट देखने को मिली। ज्वैलर्स का कहना था कि शादियों के सीजन के चलते सोने में तेजी के बाद अच्छी पूछ-परख देखने को मिल रही थी। लेकिन शुक्रवार को अचानक बड़ी गिरावट आने के बाद ग्राहक और भाव टूटने के इंतजार में पूछ-परख तक ही सीमित रहे। भोपाल के बड़े सर्राफा कारोबारी नयनतारा ज्वैलर्स के श्याम अग्रवाल कहते हैं कि सोने के भाव शुक्रवार के 18,200 रुपये से गिरकर 17,700 रुपये प्रति दस ग्राम रह गए। शुक्रवार को भोपाल में सोना 23 कैरट 17700, 22 कैरट 17300 रुपये प्रति दस ग्राम रहा। जयपुर में सोने में आई गिरावट को आभूषण विक्रेता एक अवसर के रूप में देख रहे हैं। विक्रेताओं का कहना है कि हालांकि यह गिरावट अस्थाई है, लेकिन हर गिरावट के बाद सोने की खरीद बढ़ती है। यह देखते हुए आगामी दिनों में आभूषण प्रतिष्ठानों पर ग्राहकों की तादाद बढ़ सकती है। आभूषण विक्रेता मनोहर मेघराज का कहना है कि आज सुबह सोने में भारी गिरावट देखने को मिली थी। जयपुर में सोना स्टैंडर्ड 17,800 और जेवर 17,900 रुपये प्रति दस ग्राम रहा। यहां शुक्रवार को करीब ढाई सौ रुपये की गिरावट आई। चंडीगढ़ और लुधियाना में भी भाव में ऐसी ही गिरावट रही। शुक्रवार को सोने और चांदी के भाव में आए भारी उतार चढ़ाव के चलते ज्वैलर्स और ग्राहक असमंजस में रहे। ज्वैलर्स का कहना है दिन भर इन धातुओं के भाव में चले भारी उतार-चढ़ाव के चलते उनके कई सौदे पक्के नहीं हो पाए। चंडीगढ़ के जयपुरिया ज्वैलर्स के दीपक गुप्ता का कहना है कि कल 18200 रुपये पर बंद हुए सोने का शुक्रवार को भाव 17300 पर खुला। करीब 900 रुपये प्रति दस ग्राम गिर सोने ने ज्वैलर्स का तगड़ा झटका दिया है। लुधियाना के नीटा ज्वैलर्स के मालिक हरबंस नीटा के मुताबिक पिछले काफी दिनों से सोना व चांदी के भाव लगातार बढ़ते आ रहे थे। चांदी शुक्रवार की सुबह अचानक 27,300 तक गिर गई थी जो शाम तक फिर 28000 से ऊपर के भाव पर बंद हुई। (बिज़नस भास्कर)
26 नवंबर 2009
बासमती का पेटेंट बचाने के लिए कानूनी मुहिम में जुटा एपेडा
कृषि एवं प्रसंस्करित खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपेडा) ने बासमती चावल के बौद्धिक संपदा अधिकारों (पेटेंट) के संरक्षण के लिए कोशिश तेज कर दी है। एपेडा ने इस मुहिम में मदद के लिए कानूनी फर्मे से बोलियां आमंत्रित की हैं। एपेडा के एक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि बासमती चावल के पेटेंट के भारत और विदेशों में संरक्षण के लिए कानूनी फर्मे से मदद मांगी गई है और इसके लिए आवेदन मांगे गए हैं। बोलीदाताओं को 10 दिसंबर तक तकनीकी और वित्तीय बोली अलग-अलग जमा करनी होगी। बोलियां पूरी होने के बाद दो सप्ताह के भीतर टेंडर पर फैसला कर लिया जाएगा। टेंडर नोटिस के मुताबिक जिन कानूनी फर्मे की स्थापना को पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है और बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) में पिछले तीन वर्षे में पांच करोड़ रुपये से ज्यादा का टर्नओवर रहा है वे बोली में भाग ले सकती हैं। साथ ही फर्म को भौगोलिक संकेतों से संबंधी मामले सुलझाने में पांच वर्ष से ज्यादा का अनुभव होना चाहिए। जिस कंपनी का चयन किया जाएगा वह एपेडा को बासमती के पेटेंट की सुरक्षा और पूरे बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों के मामले में सलाह देगी। साथ ही बासमती का देश और विदेशों में पेटेंट कराने में भी मदद देगी। मालूम हो कि एपेडा के पास बासमती चावल सहित विशेष कृषि उत्पादों के पेटेंट संरक्षण के लिए कदम उठाने की वैधानिक शक्ति है। एपेडा ने कहा है कि कानूनी सलाहकार की पहली जिम्मेदारी त्नबासमतीत्न नाम को देश और विदेशों में मिल रही चुनौती से निपटना है। कानूनी फर्म देश और विदेशों की कानूनी अदालतों में एपेडा का प्रतिनिधित्व करेगी, जिनमें ज्योग्रॉफिकल इंडीकेशंस रजिस्ट्री, ट्रेड मार्क रजिस्ट्री और बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड शामिल हैं। कई विदेशी कारोबारी बासमती के ब्रांड नाम की नकल करने की कोशिश कर चुके हैं, इसलिए एपेडा पेटेंट संरक्षण के लिए सचेत हो गई है। (बिज़नस भासकर)
एफएमसी के हाथ से निकल सकता है वेयरहाउसिंग का मामला
मुंबई : कमोडिटी बाजार की नियामक संस्था फारवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) को वायदा बाजार में वेयरहाउसिंग के मामले पर निर्णय करने का अधिकार छोड़ना पड़ सकता है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जहां बताया कि वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूडीआरए) में चेयरमैन नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है, वहीं एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि हाल ही में सेवानिवृत्त हुए प्रशासनिक अधिकारी प्रसन्ना कुमार का नाम इस पद के लिए प्रस्तावित है। अधिकारी ने बताया कि संभावित उम्मीदवार के नाम को कृषि मंत्री शरद पवार से मंजूरी मिल जाने के बाद इसे संस्तुति के लिए पीएमओ भेजा जाएगा। शरद पवार ने पिछले हफ्ते ईटी को बताया था कि किसी भी उम्मीदवार की संस्तुति के लिए उनके पास अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं आया है।
कोई अलग नियामक न होने के कारण एफएमसी वर्ष 2004 से ही एनसीडीईएक्स, एमसीएक्स और एनएमसीई में वेयरहाउसिंग प्रणाली को देख रही है। वायदा कारोबार में कोई विक्रेता एक्सचेंज से मंजूरी प्राप्त वेयरहाउस में गुड्स की डिलीवरी करता है। इसके बदले वेयरहाउस विक्रेता को रसीद जारी करता है। इसके लिए जरूरी है कि वेयरहाउस एफएमसी के साथ भी सूचीबद्ध हो। सौदे की परिपक्वता पर विक्रेता, खरीदार को एक्सचेंज के जरिए रसीद का स्थानांतरण करता है। एफएमसी का कहना है कि उसके अधिकार क्षेत्र में महज सौदे का कार्यान्वयन ही नहीं, बल्कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के निपटान भी शामिल हैं, लिहाजा इसे वेयरहाउस रसीदों की डिलीवरी से जुड़ी कोई भी गड़बड़ी होने पर कदम उठाना पड़ता है। इसलिए डब्ल्यूडीआरए के तहत एफएमसी की भूमिका वेयरहाउसिंग डेवलपमंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी के रूप में स्पष्ट होनी चाहिए। इससे डब्ल्यूडीआरए एक्ट 2007 के प्रावधानों को और तेजी से लागू किया जा सकेगा। इसी साल इस संबंध में एक विमर्श पत्र खाद्य और उपभोक्ता मामलों के विभागों के सचिवों को जारी किया गया था। बहरहाल वेयरहाउस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा कि अगर एफएमसी वेयरहाउसिंग प्रक्रिया का विनियमन करते रहने को इच्छुक है तो उसे 2007 में डब्ल्यूडीआरए के लागू होने से पहले ही अपने पक्ष में पुख्ता दलील देनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, 'अब एफएमसी के लिए थोड़ी देर हो गई लगती है।' डब्ल्यूडीआरए एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना वेयरहाउसिंग (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2007 के तहत की गई थी ताकि वेयरहाउस रसीदों को कारोबार योग्य बनाया जा सके। (ई टी हिन्दी)
कोई अलग नियामक न होने के कारण एफएमसी वर्ष 2004 से ही एनसीडीईएक्स, एमसीएक्स और एनएमसीई में वेयरहाउसिंग प्रणाली को देख रही है। वायदा कारोबार में कोई विक्रेता एक्सचेंज से मंजूरी प्राप्त वेयरहाउस में गुड्स की डिलीवरी करता है। इसके बदले वेयरहाउस विक्रेता को रसीद जारी करता है। इसके लिए जरूरी है कि वेयरहाउस एफएमसी के साथ भी सूचीबद्ध हो। सौदे की परिपक्वता पर विक्रेता, खरीदार को एक्सचेंज के जरिए रसीद का स्थानांतरण करता है। एफएमसी का कहना है कि उसके अधिकार क्षेत्र में महज सौदे का कार्यान्वयन ही नहीं, बल्कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के निपटान भी शामिल हैं, लिहाजा इसे वेयरहाउस रसीदों की डिलीवरी से जुड़ी कोई भी गड़बड़ी होने पर कदम उठाना पड़ता है। इसलिए डब्ल्यूडीआरए के तहत एफएमसी की भूमिका वेयरहाउसिंग डेवलपमंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी के रूप में स्पष्ट होनी चाहिए। इससे डब्ल्यूडीआरए एक्ट 2007 के प्रावधानों को और तेजी से लागू किया जा सकेगा। इसी साल इस संबंध में एक विमर्श पत्र खाद्य और उपभोक्ता मामलों के विभागों के सचिवों को जारी किया गया था। बहरहाल वेयरहाउस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा कि अगर एफएमसी वेयरहाउसिंग प्रक्रिया का विनियमन करते रहने को इच्छुक है तो उसे 2007 में डब्ल्यूडीआरए के लागू होने से पहले ही अपने पक्ष में पुख्ता दलील देनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, 'अब एफएमसी के लिए थोड़ी देर हो गई लगती है।' डब्ल्यूडीआरए एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना वेयरहाउसिंग (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2007 के तहत की गई थी ताकि वेयरहाउस रसीदों को कारोबार योग्य बनाया जा सके। (ई टी हिन्दी)
और चढ़ी चीनी, गन्ना कीमत पर विधेयक की तैयारी
नई दिल्ली : घरेलू बाजार में बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति के बीच बुधवार को दिल्ली में चीनी की कीमतों में 20 रुपए प्रति क्विंटल का उछाल दर्ज किया गया। कमोडिटी जानकारों का कहना है कि चीनी मिलों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली चीनी में आई गिरावट के कारण घरेलू बाजार में मांग बढ़ी है और इसी से चीनी की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। बुधवार को चीनी रेडी मीडियम और सेकेंड ग्रेड के दाम 20 रुपए की तेजी के साथ क्रमश: 3,520-3,620 रुपए प्रति क्विंटल और 3,510-3,610 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गए। इस बीच, कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि सरकार को उम्मीद है कि कीमतों को लेकर गन्ना अध्यादेश की जगह अगले हफ्ते संसद में एक विधेयक पेश किया जा सकता है।
यह विधेयक उस पुराने अध्यादेश की जगह लेगा, जिसको लेकर संसद के मौजूदा सत्र की शुरुआत में विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया था। कृषि मंत्री ने चीनी मिलों को बेचे जाने वाले गन्ने के मूल्य की नई व्यवस्था के बारे में बुधवार को तमाम पाटिर्यों के नेताओं की बैठक बुलाई थी। पवार ने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नहीं हो सकती है, लेकिन नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझाने के लिए चर्चा तो होती ही है। अध्यादेश में गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) व्यवस्था की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की व्यवस्था थी। पवार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर दक्षिणी राज्यों के सांसदों की एक बैठक बुलाएंगे क्योंकि इन सांसदों ने धारा 5 ए को बहाल करने की मांग पर आपत्ति की है। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने गन्ने के लिए 190-195 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत देने के बाद अपने यहां पेराई शुरू कर दी है। यू पी शुगर मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सी बी पटोदिया ने बताया, 'शुगर सोसाइटी से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद हमने सामान्य किस्म के लिए 190 रुपए प्रति क्विंटल और जल्द फसल के लिए 195 रुपए प्रति क्विंटल दने का फैसला किया है। बुधवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 47 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू कर दी, जबकि एक साल पहले 39 मिलों ने पेराई की थी।' (ई टी हिन्दी)
यह विधेयक उस पुराने अध्यादेश की जगह लेगा, जिसको लेकर संसद के मौजूदा सत्र की शुरुआत में विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया था। कृषि मंत्री ने चीनी मिलों को बेचे जाने वाले गन्ने के मूल्य की नई व्यवस्था के बारे में बुधवार को तमाम पाटिर्यों के नेताओं की बैठक बुलाई थी। पवार ने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नहीं हो सकती है, लेकिन नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझाने के लिए चर्चा तो होती ही है। अध्यादेश में गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) व्यवस्था की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की व्यवस्था थी। पवार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर दक्षिणी राज्यों के सांसदों की एक बैठक बुलाएंगे क्योंकि इन सांसदों ने धारा 5 ए को बहाल करने की मांग पर आपत्ति की है। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने गन्ने के लिए 190-195 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत देने के बाद अपने यहां पेराई शुरू कर दी है। यू पी शुगर मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सी बी पटोदिया ने बताया, 'शुगर सोसाइटी से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद हमने सामान्य किस्म के लिए 190 रुपए प्रति क्विंटल और जल्द फसल के लिए 195 रुपए प्रति क्विंटल दने का फैसला किया है। बुधवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 47 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू कर दी, जबकि एक साल पहले 39 मिलों ने पेराई की थी।' (ई टी हिन्दी)
अनाज के दाम से बढ़ा सरकार पर सब्सिडी का बोझ
गेहूं और चावल की लागत में हुआ 111.7 और 104 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा, पीडीएस के तहत बिक्री पुरानी दरों पर
सुरिंदर सूद / नई दिल्ली November 25, 2009
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले गेहूं और चावल की सब्सिडी में तेज बढ़ोतरी हुई है।
ऐसा खाद्यान्न की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी होने से हुआ है। सब्सिडी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2009-10 में गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के लोगों को अनाज पर 56-60 और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को 70-72.4 प्रतिशत छूट मिल रही है।
खाद्य आपूर्ति और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक, वित्त वर्ष 2009-10 में गेहूं पर कुल लागत 111.7 रुपये बढ़कर 1504.39 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। पिछले साल (2008-09) यह 1392.68 रुपये प्रति क्विंटल था। चावल की लागत भी करीब 104 रुपये बढ़कर 1893.71 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
पिछले साल यह 1789.8 रुपये प्रति क्विंटल थी। खाद्यान्न की लागत में बढ़ोतरी की वजह खरीद मूल्य और खाद्यान्न स्टॉक में बढ़ोतरी करना रही है। दूसरी ओर, इस दौरान पीडीएस के जरिए दिए जाने वाले गेहूं और चावल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई।
वर्ष 2009-10 में गेहूं का खरीद मूल्य 80 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 1080 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। धान का दाम भी 100 रुपये क्विंटल बढ़ाकर 950 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। ए-ग्रेड धान के दाम 980 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिए जाने वाली अनाजों की कीमतों में हालांकि कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
एपीएल परिवार के लिए गेहूं के दाम पहले की तरह 610 रुपये क्विंटल, जबकि बीपीएल के लिए 415 रुपये क्विंटल रखे गए हैं। चावल का मूल्य भी एपीएल परिवारों के लिए 830 रुपये प्रति क्विंटल और बीपीएल के लिए 565 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया।
इस बीच 1 अक्टूबर तक केंद्रीय अनाज भंडार में गेहूं और चावल का कुल भंडार करीब 4.38 करोड़ टन से ज्यादा है। न्यूनतम भंडारण के स्तर से यह ढाई गुना ज्यादा है, जो 1.62 करोड़ टन निर्धारित है। गेहूं का स्टॉक इस समय 2.84 करोड़ टन है, जबकि भंडारण मानक 1.1 करोड़ टन है।
चावल का स्टॉक 1.53 लाख टन है, जबकि इसकी बफर सीमा 52 लाख टन है। पिछले साल 1 अक्टूबर को खाद्यान्न भंडार महज 2.99 करोड़ टन था। इसमें 2.2 करोड़ टन गेहूं और 7.8 करोड़ टन चावल था।
खाद्यान्न के दाम (रुपये प्रति क्विंटल)
जिंस 2008-09 2009-10 अंतर
गेहूं 1392.68 1504.39 111.७१
चावल 1789.78 1893.78 103.९९
स्त्रोत : खाद्य मंत्रालय (बीएस हिन्दी)
सुरिंदर सूद / नई दिल्ली November 25, 2009
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले गेहूं और चावल की सब्सिडी में तेज बढ़ोतरी हुई है।
ऐसा खाद्यान्न की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी होने से हुआ है। सब्सिडी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2009-10 में गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के लोगों को अनाज पर 56-60 और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को 70-72.4 प्रतिशत छूट मिल रही है।
खाद्य आपूर्ति और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक, वित्त वर्ष 2009-10 में गेहूं पर कुल लागत 111.7 रुपये बढ़कर 1504.39 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। पिछले साल (2008-09) यह 1392.68 रुपये प्रति क्विंटल था। चावल की लागत भी करीब 104 रुपये बढ़कर 1893.71 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
पिछले साल यह 1789.8 रुपये प्रति क्विंटल थी। खाद्यान्न की लागत में बढ़ोतरी की वजह खरीद मूल्य और खाद्यान्न स्टॉक में बढ़ोतरी करना रही है। दूसरी ओर, इस दौरान पीडीएस के जरिए दिए जाने वाले गेहूं और चावल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई।
वर्ष 2009-10 में गेहूं का खरीद मूल्य 80 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 1080 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। धान का दाम भी 100 रुपये क्विंटल बढ़ाकर 950 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। ए-ग्रेड धान के दाम 980 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिए जाने वाली अनाजों की कीमतों में हालांकि कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
एपीएल परिवार के लिए गेहूं के दाम पहले की तरह 610 रुपये क्विंटल, जबकि बीपीएल के लिए 415 रुपये क्विंटल रखे गए हैं। चावल का मूल्य भी एपीएल परिवारों के लिए 830 रुपये प्रति क्विंटल और बीपीएल के लिए 565 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया।
इस बीच 1 अक्टूबर तक केंद्रीय अनाज भंडार में गेहूं और चावल का कुल भंडार करीब 4.38 करोड़ टन से ज्यादा है। न्यूनतम भंडारण के स्तर से यह ढाई गुना ज्यादा है, जो 1.62 करोड़ टन निर्धारित है। गेहूं का स्टॉक इस समय 2.84 करोड़ टन है, जबकि भंडारण मानक 1.1 करोड़ टन है।
चावल का स्टॉक 1.53 लाख टन है, जबकि इसकी बफर सीमा 52 लाख टन है। पिछले साल 1 अक्टूबर को खाद्यान्न भंडार महज 2.99 करोड़ टन था। इसमें 2.2 करोड़ टन गेहूं और 7.8 करोड़ टन चावल था।
खाद्यान्न के दाम (रुपये प्रति क्विंटल)
जिंस 2008-09 2009-10 अंतर
गेहूं 1392.68 1504.39 111.७१
चावल 1789.78 1893.78 103.९९
स्त्रोत : खाद्य मंत्रालय (बीएस हिन्दी)
गन्ने में लौटी मिठास!
नई दिल्ली November 25, 2009
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें गन्ना किसानों को 25 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने को तैयार हो गई हैं।
यह बोनस सूबे की सरकार द्वारा घोषित 165 से 170 रुपये प्रति क्विंटल के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) के ऊपर दिया जाएगा। किसानों को गन्ने का दाम 190 से 195 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाएगा।
चीनी उत्पादन के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसान चीनी की 3,200 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत को देखते हुए गन्ने की कीमत 280 रुपये प्रति क्विंटल मांग रहे हैं। किसान अपनी मांग को लेकर अड़े रहे जिससे मिलों में गन्ना पेराई भी प्रभावित रही।
उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और बिड़ला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार सी बी पटौदिया का कहना है, 'गन्ना समितियों से बातचीत के बाद हमने सामान्य किस्म के गन्ने के लिए 190 रुपये प्रति क्विंटल और जल्द आने वाली किस्म के लिए 195 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत देने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश में कल 39 मिलों में पेराई शुरू हो गई थी जिनकी संख्या आज 47 तक पहुंच गई।'
गन्ने पर 25 रुपये बोनस
यूपी की चीनी मिलें देंगी 190-195 रुपये प्रति क्विंटलपहले 15 रुपये प्रति क्विंटल दिया जा रहा था बोनस पश्चिमी यूपी की 47 मिलों में शुरू हो चुकी पेराई (बीएस हिन्दी)
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें गन्ना किसानों को 25 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने को तैयार हो गई हैं।
यह बोनस सूबे की सरकार द्वारा घोषित 165 से 170 रुपये प्रति क्विंटल के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) के ऊपर दिया जाएगा। किसानों को गन्ने का दाम 190 से 195 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाएगा।
चीनी उत्पादन के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसान चीनी की 3,200 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत को देखते हुए गन्ने की कीमत 280 रुपये प्रति क्विंटल मांग रहे हैं। किसान अपनी मांग को लेकर अड़े रहे जिससे मिलों में गन्ना पेराई भी प्रभावित रही।
उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और बिड़ला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार सी बी पटौदिया का कहना है, 'गन्ना समितियों से बातचीत के बाद हमने सामान्य किस्म के गन्ने के लिए 190 रुपये प्रति क्विंटल और जल्द आने वाली किस्म के लिए 195 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत देने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश में कल 39 मिलों में पेराई शुरू हो गई थी जिनकी संख्या आज 47 तक पहुंच गई।'
गन्ने पर 25 रुपये बोनस
यूपी की चीनी मिलें देंगी 190-195 रुपये प्रति क्विंटलपहले 15 रुपये प्रति क्विंटल दिया जा रहा था बोनस पश्चिमी यूपी की 47 मिलों में शुरू हो चुकी पेराई (बीएस हिन्दी)
अक्टूबर में लाल मिर्च का निर्यात 72 फीसदी बढ़ा
डॉलर में नरमी के बावजूद अक्टूबर महीने में लाल मिर्च का निर्यात 72 फीसदी बढ़ा है। बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया और इंडोनेशिया की मांग बढ़ने से अक्टूबर महीने में 18,500 टन का लाल मिर्च का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 10,750 टन का ही हुआ था। रुपये के मुकाबले डॉलर घटकर मंगलवार को 46।21 के स्तर पर आ गया। निर्यात में बढ़ोतरी के बावजूद स्टॉक ज्यादा होने और नई फसल का उत्पादन बढ़ने की संभावना से आगामी महीनों में लाल मिर्च की कीमतों में गिरावट की ही संभावना है। मुंबई स्थित मैसर्स अशोक एंड कंपनी के डायरेक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि अक्टूबर में बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया और इंडोनेशिया की अच्छी मांग रही थी जिससे निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। नवंबर और दिसंबर में भी निर्यात अच्छा रहने की संभावना है लेकिन बकाया स्टॉक ज्यादा होने और नई फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना से लाल मिर्च की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। वैसे भी चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में कुल निर्यात 17.5 फीसदी घटा ही है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान लाल मिर्च के निर्यात में 17.5 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 104,750 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में निर्यात 123,150 टन का हुआ था।मैसर्स स्पाइस ट्रेडिंग कंपनी के प्रोप्राइटर विनय बूबना ने बताया कि गुंटूर में इस समय लाल मिर्च का करीब 17-18 लाख बोरी (एक बोरी 45 किलो) का स्टॉक बचा हुआ है। जबकि फरवरी महीने में नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी। बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी और अभी तक के मौसम को देखते हुए नई फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना है। इसलिए लाल मिर्च की मौजूदा कीमतों में आगामी महीनों में गिरावट के ही आसार हैं। पिछले एक सप्ताह में गुंटूर में लाल मिर्च की कीमतों में करीब 300 रुपये की गिरावट आ चुकी है। बुधवार को मंडी में 334 क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव घटकर 5,700-5,800 रुपये, ब्याड़गी क्वालिटी के 6,200-6,600 रुपये, तेजा क्वालिटी के भाव 6,600-7,200 रुपये, सनम क्वालिटी के 5,900 से 6,100 रुपये और फटकी क्वालिटी के 2,500-3,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।इंदौर के लाल मिर्च व्यापारी खजोर मल प्रजापति ने बताया कि चालू महीने के शुरू में लगातार एक सप्ताह बारिश होने से लाल मिर्च की क्वालिटी प्रभावित हुई है। इसलिए इस समय राज्य की मंडियों में दागी मालों की आवक ज्यादा हो रही है। पिछले एक सप्ताह से मौसम साफ बना हुआ है इसलिए दिसंबर के प्रथम सप्ताह में बढ़िया मालों की आवक शुरू हो जायेगी। राज्य की मंडियों में लाल मिर्च की साप्ताहिक आवक एक लाख बोरी से ज्यादा की ही हो रही है। माल दागी होने से भाव 2,500 से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
दाम बढ़ने से बाजार में खरीदारों का टोटा
नई दिल्ली November 25, 2009
सोने के भाव में लगातार हो रही बढ़ोतरी से सर्राफा बाजार से छोटे ग्राहक गायब हो गए हैं। अंगूठी, झुमका एवं टॉप्स की बिक्री पिछले दो महीनों के मुकाबले 40 फीसदी कम हो गई है।
कीमत में रोजाना हो रहे बदलाव से जेवरात कारोबारियों को अपने ऑर्डर भी रद्द करने पड़ रहे हैं। दिल्ली सर्राफा बाजार के मुताबिक बुधवार को सोने की कीमत 17,900 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गई।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक छोटे ग्राहक अंगूठी, टॉप्स एवं झूमका जैसी चीजें खरीदने दुकान पर आते हैं। लेकिन जो अंगूठी दो माह पहले 2-2.5 हजार रुपये में बन जाती थी, उसकी कीमत 4 हजार रुपये तक पहुंच गई है।
कम खर्च करने की हैसियत रखने वाले लोग भी शादी-ब्याह में गिफ्ट देने के लिए सोने की अंगूठी या टाप्स खरीद लेते थे। लेकिन अब यह चलन कम हो रहा है। और 1000-2000 रुपये के बजट वाले ग्राहक तो सोने की दुकान का रास्ता ही भूल गए हैं।
कारोबारी कहते हैं, 'पिछले साल सोने की कीमत नवंबर के दौरान 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास थी। 4 ग्राम वजन वाली अंगूठी की कीमत तब 4800 रुपये होती थी अब 4 ग्राम वजन वाली अंगूठी 7200 रुपये हो गई है। ऐसे में ग्राहकों का गायब होना लाजिमी है।'
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक सोने के दाम में लगातार तेजी से उन्हें ऑर्डर पर काम करने में भी दिक्कतें आ रही हैं। नवंबर माह के आरंभ में सोने की कीमत 16,500 रुपये 10 ग्राम के आसपास थी जो कि अब 18,000 रुपये के स्तर पर है। रोजाना 200-250 रुपये की बढ़ोतरी हो रही है। इस कारण एक सप्ताह पहले लिए गए ऑर्डर की लागत बढ़ जाती है और उन्हें पुराने ऑर्डर रद्द करने पड़ते हैं। (BS हिन्दी)
सोने के भाव में लगातार हो रही बढ़ोतरी से सर्राफा बाजार से छोटे ग्राहक गायब हो गए हैं। अंगूठी, झुमका एवं टॉप्स की बिक्री पिछले दो महीनों के मुकाबले 40 फीसदी कम हो गई है।
कीमत में रोजाना हो रहे बदलाव से जेवरात कारोबारियों को अपने ऑर्डर भी रद्द करने पड़ रहे हैं। दिल्ली सर्राफा बाजार के मुताबिक बुधवार को सोने की कीमत 17,900 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गई।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक छोटे ग्राहक अंगूठी, टॉप्स एवं झूमका जैसी चीजें खरीदने दुकान पर आते हैं। लेकिन जो अंगूठी दो माह पहले 2-2.5 हजार रुपये में बन जाती थी, उसकी कीमत 4 हजार रुपये तक पहुंच गई है।
कम खर्च करने की हैसियत रखने वाले लोग भी शादी-ब्याह में गिफ्ट देने के लिए सोने की अंगूठी या टाप्स खरीद लेते थे। लेकिन अब यह चलन कम हो रहा है। और 1000-2000 रुपये के बजट वाले ग्राहक तो सोने की दुकान का रास्ता ही भूल गए हैं।
कारोबारी कहते हैं, 'पिछले साल सोने की कीमत नवंबर के दौरान 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास थी। 4 ग्राम वजन वाली अंगूठी की कीमत तब 4800 रुपये होती थी अब 4 ग्राम वजन वाली अंगूठी 7200 रुपये हो गई है। ऐसे में ग्राहकों का गायब होना लाजिमी है।'
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक सोने के दाम में लगातार तेजी से उन्हें ऑर्डर पर काम करने में भी दिक्कतें आ रही हैं। नवंबर माह के आरंभ में सोने की कीमत 16,500 रुपये 10 ग्राम के आसपास थी जो कि अब 18,000 रुपये के स्तर पर है। रोजाना 200-250 रुपये की बढ़ोतरी हो रही है। इस कारण एक सप्ताह पहले लिए गए ऑर्डर की लागत बढ़ जाती है और उन्हें पुराने ऑर्डर रद्द करने पड़ते हैं। (BS हिन्दी)
सोने ने छू लिया 18,000 का स्तर
डॉलर में गिरावट के कारण सोने की कीमतों में उछाल जारी है। लंदन और न्यूयार्क के कमोडिटी बाजार में बुधवार को सोने की कीमतें 1,182 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गईं। भारत के कुछ सराफा बाजारों में भी सोने की कीमतों ने 18,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर को छू लिया। एजेंसी के मुताबिक दिल्ली के सराफा बाजार में सोने की कीमतों ने दोपहर में करीब डेढ़ बजे 18,000 रुपये प्रति दस ग्राम का रिकार्ड छुआ। एजेंसी का दावा है कि स्टैंडर्ड सोने की कीमतें 220 रुपये की तेजी के साथ 18,000 रुपये प्रति दस ग्राम तक पहुंच गई थीं। हमारे संवाददाता के मुताबिक इंदौर सराफा में सोना बिस्किट की कीमतें 18,000 रुपये तक पहुंच गई। वहीं सोना कैडबरी 17,900 रुपये तक चला गया था। अहमदाबाद सराफा में सोना 24 कैरट के दाम 17,925 रुपये पर पहुंच गए।
उधर ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन का दावा है कि दिल्ली में सोने के भाव 17,890 रुपये प्रति दस ग्राम के पूर्वस्तर पर ही रहे। दिल्ली बुलियन एंड ज्वैलर्स वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने भी बताया कि सोने का भाव 17,900 रुपये प्रति दस से ऊपर नहीं गया। गोयल ने बताया कि ब्याह-शादियों का सीजन होने के बावजूद भी सोने के गहनों में मांग सामान्य के मुकाबले 25-30 फीसदी कम है। विश्लेषकों की राय में सोना इसी सप्ताह सोना 1200 डॉलर का निशान पार कर सकता है। न्यूयार्क मर्केटाइल में सोने के फ्यूचर सौदे 1180 डॉलर प्रति औंस के करीब बुधवार को चल रहे थे। अगस्त 1982 के बाद फ्यूचर सौदों में सबसे लंबी तेजी दिखाई दे रही है।
इस बीच भारत द्वारा आईएमएफ से और सोना खरीदने की भी खबरें हैं। कई माइनिंग कंपनियां सोने में फिक्सिंग का इस्तेमाल कर रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही 200 टन सोना आईएमएफ से खरीद चुका है। अब और खरीदी करता है तो भारत में सोने का सबसे ज्यादा भंडार हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंचे भाव पर सोने की खरीद करने का मतलब है कि 1,000 डॉलर प्रति औंस के ऊपर के दामों का समर्थन। रूस और श्रीलंका के बैंक भी सोना खरीद चुके हैं। बैंक आफ अमेरिका, मैरिल लिंच, सोसायते जनरल के सोना खरीदने की भविष्यवाणी की जा रही है। मारीशस ने पिछले माह ही आईएमएफ से दो टन सोना खरीदा। आईएमएफ उन सभी बैंकों को सोना खरीदने का मौका दे रहा है, जो डॉलर में गिरावट से निपटने के लिए अपने निवेश का विविधीकरण कर रहे हैं।
सोने के भाव में तेजी के चलते स्वर्ण कारोबारियों ने फिलहाल फैसले स्थगित रखे हैं। बाजार सूत्रों के अनुसार हर दिन मूल्य बढ़ने के चलते मांग करीब 25 प्रतिशत गिर गई है। वैवाहिक सीजन में चुनिंदा महूर्त के बावजूद यह गिरावट चिंताजनक है। महंगाई के चलते बड़े-बड़े खरीददार ग्राहकों ने भी खरीदारी सीमित कर दी है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
उधर ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन का दावा है कि दिल्ली में सोने के भाव 17,890 रुपये प्रति दस ग्राम के पूर्वस्तर पर ही रहे। दिल्ली बुलियन एंड ज्वैलर्स वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने भी बताया कि सोने का भाव 17,900 रुपये प्रति दस से ऊपर नहीं गया। गोयल ने बताया कि ब्याह-शादियों का सीजन होने के बावजूद भी सोने के गहनों में मांग सामान्य के मुकाबले 25-30 फीसदी कम है। विश्लेषकों की राय में सोना इसी सप्ताह सोना 1200 डॉलर का निशान पार कर सकता है। न्यूयार्क मर्केटाइल में सोने के फ्यूचर सौदे 1180 डॉलर प्रति औंस के करीब बुधवार को चल रहे थे। अगस्त 1982 के बाद फ्यूचर सौदों में सबसे लंबी तेजी दिखाई दे रही है।
इस बीच भारत द्वारा आईएमएफ से और सोना खरीदने की भी खबरें हैं। कई माइनिंग कंपनियां सोने में फिक्सिंग का इस्तेमाल कर रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही 200 टन सोना आईएमएफ से खरीद चुका है। अब और खरीदी करता है तो भारत में सोने का सबसे ज्यादा भंडार हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंचे भाव पर सोने की खरीद करने का मतलब है कि 1,000 डॉलर प्रति औंस के ऊपर के दामों का समर्थन। रूस और श्रीलंका के बैंक भी सोना खरीद चुके हैं। बैंक आफ अमेरिका, मैरिल लिंच, सोसायते जनरल के सोना खरीदने की भविष्यवाणी की जा रही है। मारीशस ने पिछले माह ही आईएमएफ से दो टन सोना खरीदा। आईएमएफ उन सभी बैंकों को सोना खरीदने का मौका दे रहा है, जो डॉलर में गिरावट से निपटने के लिए अपने निवेश का विविधीकरण कर रहे हैं।
सोने के भाव में तेजी के चलते स्वर्ण कारोबारियों ने फिलहाल फैसले स्थगित रखे हैं। बाजार सूत्रों के अनुसार हर दिन मूल्य बढ़ने के चलते मांग करीब 25 प्रतिशत गिर गई है। वैवाहिक सीजन में चुनिंदा महूर्त के बावजूद यह गिरावट चिंताजनक है। महंगाई के चलते बड़े-बड़े खरीददार ग्राहकों ने भी खरीदारी सीमित कर दी है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
गन्ने का दाम बढ़ाने पर मिलें राजी, लेकिन गतिरोध कायम
गन्ना मूल्य पर किसानों के विरोध को देखते हुए उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन (2009-10) के लिए 190 और 195 रुपये प्रति क्विंटल का गन्ना मूल्य देने का फैसला लिया है। यह दाम मिलों द्वारा पहले घोषित दाम से 10 रुपये और राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) से 25 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है। लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि यह कीमत कम है। इसके चलते उत्तर प्रदेश में गतिरोध बना हुआ है। हालांकि इस दाम पर गन्ना देने के लिए किसानों के सहमत होने के बावजूद सामान्य पेराई शुरू होने में दो दिन का समय लग सकता है। दूसरी ओर, गन्ना मूल्य पर बुधवार को हुई सर्वदलीय बैठक बेनतीजा रही। इस पर अगले सप्ताह फिर बैठक होगी।
चीनी मिलों के इस फैसले पर राज्य में गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए आंदोलन चला रहे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह ने कहा कि हालांकि यह दाम कम है लेकिन अगर इस पर किसानों और चीनी मिलों के बीच समझौता हो जाता है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि उत्तराखंड की इकबालपुर स्थित चीनी मिल ने किसानों को 215 और 220 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत देने का समझौता किया है। वहां की बाकी दो मिलें भी इस दाम पर सहमत हो गई हैं। इसलिए हम उत्तर प्रदेश में भी इस कीमत पर ही समझौता करेंगे। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक पदाधिकारी ने बताया कि चीनी मिलों द्वारा दाम बढ़ाने के फैसले से गन्ना मूल्य पर पिछले दो महीने से चला आ रहा गतिरोध समाप्त होने की संभावना बन गई है। चीनी मिलों में पेराई शुरू होने से चीनी की बढ़ती कीमतों पर भी अंकुश लगने की संभावना है।
इस बीच, गन्ना मूल्य पर लाये गये अध्यादेश में बदलाव को लेकर बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक बेनतीजा रही। इस बैठक में गन्ना नियंत्रण आदेश से हटाई गई धारा पांच ए को दोबारा शामिल करने के मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी। अब इस मुद्दे पर अगले सप्ताह दोबारा बैठक होगी। हालांकि कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार का कहना था कि फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) में इसे शामिल कर लिया गया है। लेकिन विपक्ष इस पर समहत नहीं हुआ।
केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए नई मूल्य प्रणाली एफआरपी के तहत गन्ने का दाम 129।94 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जिसके खिलाफ उत्तर भारत के किसान सड़क पर उतर आए थे। किसानों के आंदोलन से घबराई केंद्र सरकार अध्यादेश में बदलाव करने को राजी हो गई है। चालू पेराई सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। (बिज़नस भास्कर....आर अस Raana)
चीनी मिलों के इस फैसले पर राज्य में गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए आंदोलन चला रहे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह ने कहा कि हालांकि यह दाम कम है लेकिन अगर इस पर किसानों और चीनी मिलों के बीच समझौता हो जाता है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि उत्तराखंड की इकबालपुर स्थित चीनी मिल ने किसानों को 215 और 220 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत देने का समझौता किया है। वहां की बाकी दो मिलें भी इस दाम पर सहमत हो गई हैं। इसलिए हम उत्तर प्रदेश में भी इस कीमत पर ही समझौता करेंगे। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक पदाधिकारी ने बताया कि चीनी मिलों द्वारा दाम बढ़ाने के फैसले से गन्ना मूल्य पर पिछले दो महीने से चला आ रहा गतिरोध समाप्त होने की संभावना बन गई है। चीनी मिलों में पेराई शुरू होने से चीनी की बढ़ती कीमतों पर भी अंकुश लगने की संभावना है।
इस बीच, गन्ना मूल्य पर लाये गये अध्यादेश में बदलाव को लेकर बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक बेनतीजा रही। इस बैठक में गन्ना नियंत्रण आदेश से हटाई गई धारा पांच ए को दोबारा शामिल करने के मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी। अब इस मुद्दे पर अगले सप्ताह दोबारा बैठक होगी। हालांकि कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार का कहना था कि फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) में इसे शामिल कर लिया गया है। लेकिन विपक्ष इस पर समहत नहीं हुआ।
केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए नई मूल्य प्रणाली एफआरपी के तहत गन्ने का दाम 129।94 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जिसके खिलाफ उत्तर भारत के किसान सड़क पर उतर आए थे। किसानों के आंदोलन से घबराई केंद्र सरकार अध्यादेश में बदलाव करने को राजी हो गई है। चालू पेराई सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। (बिज़नस भास्कर....आर अस Raana)
25 नवंबर 2009
रबर डवलपमेंट फंड के लिए संशोधन विधेयक को मंजूरी
लोकसभा ने मंगलवार को रबर संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी। इसके बाद रबर डवलपमेंट फंड की स्थापना का रास्ता साफ हो गया है जिससे देश में रबर उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकेगा। भारत विश्व के प्रमुख रबर उत्पादक देशों में से एक है। रबर (संशोधन) विधेयक-2009 वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पेश किया। उन्होंने रबर बोर्ड के विस्तार और सेल्फ एसेसमेंट के आधार पर रबर उपकर के संग्रह के लिए एक व्यवस्था बनाने की भी मांग की। रबर एक्ट 1947 में संशोधन के लिए बिल पेश करते हुए सिंधिया ने कहा कि कृषि की तरह रबर में भी हरित क्रांति की जरूरत है। रबर डवलपमेंट फंड स्थापित करने के प्रस्ताव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा दो फंडों के स्थान पर एक ही फंड होगा और यह रबर उत्पादक किसानों को मदद मुहैया कराएगा। वहीं, रबर बोर्ड का विस्तार कर इसमें वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के प्रतिनिधि भी शामिल किए जाएंगे। रबर एक्ट के उल्लंघन के दंडात्मक प्रावधानों को भी कठोर किया गया है और अब जुर्माना राशि को बढ़ाकर 1,000 से बढ़ाकर 5,000 रुपये किया गया है। वहीं, कृषि राज्य मंत्री के.वी. थॉमस ने लोकसभा में बताया कि अक्टूबर से शुरू हुए सीजन 2009-10 में देश में खाद्य तेलों का उत्पादन 7.40 फीसदी घटकर 79.61 लाख टन रह सकता है। गत वर्ष देश में 85.98 लाख टन खाद्य तेलों का उत्पादन हुआ था। देश में खाद्य तेलों की खपत इस वर्ष बढ़कर 177.88 लाख टन रहने का अनुमान है। तिलहन उत्पादन में गिरावट के कारण खाद्य तेलों का उत्पादन घट सकता है। खरीफ सीजन में गत वर्ष के 178.82 लाख टन के मुकाबले इस वर्ष 152.33 लाख टन तिलहन उत्पादन की संभावना है। थॉमस ने यह भी बताया कि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सहित देश के कई भागों में भारी बारिश के कारण करीब 24.36 लाख हैक्टेयर में फसल प्रभावित हुई है। एक लिखित जवाब में उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में 2.4 लाख हैक्टेयर और कर्नाटक में 21.93 लाख हैक्टेयर फसल बारिश से प्रभावित हुई है। (बिज़नस भास्कर)
कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार बढ़ा
देश के 22 कमोडिटी एक्सचेंजों का टर्नओवर चालू वित्त वर्ष में 15 नवंबर तक 36।97 फीसदी बढ़ा है। वायदा बाजार नियामक एफएमसी के मुताबिक इस दौरान इन एक्सचेंजों ने 43,20,000 करोड़ रुपये का कारोबार किया जिसमें सबसे ज्यादा 83 फीसदी योगदान एमसीएक्स का रहा। एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 15 नवंबर तक 43,20,000 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ, जबकि गत वित्त वर्ष में इस दौरान 31,54,000 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। अहमदाबाद स्थित एनएमसीई का टर्नओवर 1,24,000 करोड़ रुपये रहा, जबकि इंदौर स्थित नेशनल बोर्ड ऑफ ट्रेड (एनबॉट) में 51,553 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। नवंबर के पहले 15 दिन में कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार तेजी से बढ़कर गत वर्ष के 1,67,000 करोड़ रुपये के मुकाबले 3,15,000 करोड़ रुपये हो गया। (बिज़नस भास्कर)
गुजरात में कपास की आवक बढ़ी पर उत्तरी राज्यों में गिरी
घरेलू बाजारों में एक अक्टूबर से शुरू हुए चालू फसली वर्ष में 21 नवंबर तक 48।1 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन की आवक रही है। कॉटन कॉरपोरेशनऑफ इंडिया (सीसीआई) के मंगलवार को जारी आंकड़ों में कहा गया है कि इस दौरान आवक में गत वर्ष के मुकाबले 0.4 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी रही है। 21 नवंबर को समाप्त सप्ताह में कॉटन की दैनिक आवक 1,45,000 गांठ रही जबकि पिछले सप्ताह दैनिक आवक 1,30,000 गांठ रही थी। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कॉटन उत्पादक है। देश के सबसे बड़े कॉटन उत्पादक राज्य गुजरात में आवक गत वर्ष के मुकाबले 65 फीसदी बढ़कर 18 लाख गांठ रही है। वहीं, महाराष्ट में आवक 19.5 फीसदी घटकर 6 लाख गांठ रही। हालांकि उत्तरी राज्यों में आवक 10 फीसदी घटकर 13.1 लाख गांठ रही, जबकि दक्षिणी राज्यों में आवक 26.6 फीसदी घटकर 6,90,000 गांठ रही। कॉटन कॉरपोरेशन की किसानों से कॉटन खरीद एक अक्टूबर से 19 नवंबर तक गत वर्ष के मुकाबले 77 फीसदी घटकर 2,20,00 गांठ रही। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि घरेलू बाजार में ऊंची कीमतों के कारण सरकारी खरीद में भारी गिरावट आई है। देश के सबसे बड़े खरीदार कॉटन कॉरपोरेशन ने वर्ष 2008-09 के दौरान 89 लाख गांठ कॉटन की खरीद की थी। सरकार द्वारा नियुक्त कॉटन एडवाइजरी बोर्ड ने इस महीने के शुरू में वर्ष 2009-10 के लिए कॉटन उत्पादन के अनुमान में कटौती कर इसे 295 लाख गांठ कर दिया था। इससे पहले 305 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। फसली वर्ष 2008-09 में भारत में 290 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था। (बिज़नस भास्कर)
एफआरपी में गन्ने की लागत के बाद 50 फीसदी लाभ : पवार
गन्ना मूल्य पर उठे विवाद पर कृषि मंत्री शरद पवार ने आज लोकसभा में कहा कि केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए फेयर एंड रिमयूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) में किसानों को लागत पर 50 फीसदी का फायदा होगा। इसके बाद भी केंद्र ने राज्यों को यह आजादी दी है कि अगर वे चाहें तो मूल्य अंतर का भुगतान करके ज्यादा दाम तय कर सकते हैं।एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि इस साल के लिए तय किए गए 129.84 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने के एफआरपी में किसानों को 50 फीसदी लाभ मिलेगा। उत्तर प्रदेश एफआरपी को काफी कम और एक समान मूल्य का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले माह एक अध्यादेश के जरिये किए गए इस बदलाव के कारण राज्य अपने स्तर पर ऊंचा राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करने से बचेंगे। किसान 280 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य की मांग कर रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें 180 रुपये प्रति क्विंटल दाम देने को तैयार हैं।पवार ने कहा कि एफआरपी न्यूनतम अनिवार्य मूल्य है। मिलों को गन्ना खरीद के लिए कम से कम यह भुगतान तो करना ही होगा। मिलें और किसान आपस में बात करके इससे ऊंचा मूल्य तय कर सकते हैं। यह मूल्य एफआरपी से अधिक होना ही चाहिए।दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव मुन्ना सिंह चौहान ने लखनऊ में कहा कि अगर राज्य सरकार गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ाती है तो पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार राज्य भर में कार्यकता नाकाबंदी करेंगे। 26 नवंबर को पार्टी के कार्यकर्ता सभी राजमार्ग और दूसरे प्रमुख सड़कों पर नाकेबंदी करेंगे। सरकार को एसएपी 280 रुपये प्रति क्ंिवटल तय करना चाहिए। (बिज़नस भास्कर)
विदेश में बेहतर पैदावार से भी नहीं थमी सोयाबीन की तेजी
अमेरिका, ब्राजील और अर्जेटीना में सोयाबीन की बेहतर पैदावार की संभावना है लेकिन भारत में सोयाबीन का उत्पादन गिरने का अनुमान है। ऐसे में सोयाबीन महंगी हो रही है लेकिन सोयामील की निर्यात मांग कमजोर है जबकि सोया रिफाइंड तेल में भी उठान सीमित है। पिछले तीन महीनों में सोयाबीन की कीमतों में 300 रुपये की तेजी आकर प्लांट डिलीवरी भाव 2500- 2525 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। चालू तेल वर्ष में भारत में खाद्य तेलों का 86.68 लाख टन का रिकार्ड आयात हो चुका है जबकि चालू वित्त वर्ष में सोया खली का निर्यात करीब 51 फीसदी घटा है। अमेरिका में सोयाबीन का उत्पादन बढ़कर 880 लाख टन होने की संभावना है तथा इंडोनेशिया में पाम तेल का स्टॉक 14 फीसदी ज्यादा है।सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में सोया खली के निर्यात में 51 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 8.49 लाख टन का ही हुआ है। साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि सोयाबीन में फंडामेंटल मजबूत नहीं है लेकिन स्टॉकिस्टों की सक्रियता से भाव बढ़ रहे हैं। सोयाबीन का उत्पादन गिरने का अनुमान है। देश में खाद्य तेलों का रिकार्ड आयात हो चुका है तथा ब्याह-शादियों का सीजन होने के बावजूद खाद्य तेलों में मांग सीमित है। खाद्य तेलों के कुल आयात का करीब 30 से 35 स्टॉक बाजार में उपलब्ध है। उधर अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सोयाबीन का उत्पादन बढ़कर 880 लाख टन होने की संभावना है। वहां करीब 90 प्रतिशत फसल की कटाई हो चुकी है। ब्राजील में 50 फीसदी और अर्ज्ेटीना में 41 फीसदी बुवाई का कार्य हो चुका है। ब्राजील और अर्जेटीना में मौसम अनुकूल है इसलिए बुवाई सोयाबीन की बुवाई बढ़ने की संभावना है।इंडोनेशिया में पाम तेल का स्टॉक 14 फीसदी ज्यादा है। सोयाबीन व्यापारी हेमंत जैन ने बताया कि मंडियों में सोयाबीन की आवक कम होने से भाव में तेजी आ रही है। इस समय मंडियों में सोयाबीन के भाव 2300- 2350 रुपये और प्लांट डिलीवरी 2500-2525 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। सोया रिफाइंड तेल की कीमतों में भी पिछले तीन महीने में 50 रुपये की तेजी आकर भाव 500 रुपये प्रति 10 किलो हो गये। सोया खली की कीमत बढ़कर 20,800 से 21,000 रुपये प्रति टन हो गई। लेकिन इन भाव में निर्यातकों की मांग पहले की तुलना में घट गई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी अग्रिम अनुमान के मुताबिक सोयाबीन का उत्पादन 89.3 लाख टन होने की संभावना है जोकि पिछले साल के 99 लाख टन के मुकाबले कम है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
सोने की रिकॉर्ड तोड़ तेजी जारी
नई दिल्ली/न्यूयॉर्क। सोने की तेजी में कमजोर डॉलर अब भी सहायक साबित हो रहा है। असल में, निवेशकों के लिए सोना इन दिनों सबसे सुरक्षित विकल्प बना हुई है। न्यूयॉर्क र्म्केटाइल एक्सचेंज (नायमेक्स) में मंगलवार की सुबह (स्थानीय समयानुसार) सोने के वायदा भाव लगातार आठवें दिन बढ़ गए। हालांकि, बाद में थोड़ी गिरावट आई। लंदन के हाजिर बाजार में भी सोना मजबूत रहा। मंगलवार को दिल्ली सराफा बाजार में भी सोना 70 रुपये की तेजी के साथ 17,890 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, इस दौरान मुनाफावसूली से चांदी के भाव 200 रुपये की गिरावट के साथ 28,800 रुपये प्रति किलो रह गए।
नायमेक्स में सोना दिसंबर वायदा 4.8 डॉलर (0.4 फीसदी) की तेजी आने के बाद 1,169 डॉलर प्रति औंस पर था। इससे पहले सोना और ऊंचे भाव पर खुला था तथा बाद में सात डॉलर की गिरावट आई। वहीं, लंदन के हाजिर बाजार में मंगलवार को सोना 1166 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा बाद में 1169 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर लगातार कमजोर हो रहा है, इसलिए निवेशक सोने की खरीद को तरजीह दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने में तेजी का असर घरेलू बाजार पर भी पड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक महीने में सोने में 30 डॉलर प्रति औंस की तेजी आ चुकी है। हालांकि, न्यूयॉर्क में हैरियस प्रीसियस मेटल्स मैनेजमेंट के वाइस प्रेसीडेंट (सेल्स) मिग्यूल पेरेज सेंताला ने सवाल उठाया कि क्या कमजोर डॉलर वास्तव में सोने की तेजी में सहायक साबित हो रहा है। घरेलू बाजार में चालू महीने में सोने की कीमतों में 1000 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आ चुकी है। 4 नवंबर को दिल्ली सराफा बाजार में इसके भाव 16,890 रुपये प्रति दस ग्राम थे। (बिज़नस भास्कर)
नायमेक्स में सोना दिसंबर वायदा 4.8 डॉलर (0.4 फीसदी) की तेजी आने के बाद 1,169 डॉलर प्रति औंस पर था। इससे पहले सोना और ऊंचे भाव पर खुला था तथा बाद में सात डॉलर की गिरावट आई। वहीं, लंदन के हाजिर बाजार में मंगलवार को सोना 1166 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा बाद में 1169 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर लगातार कमजोर हो रहा है, इसलिए निवेशक सोने की खरीद को तरजीह दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने में तेजी का असर घरेलू बाजार पर भी पड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक महीने में सोने में 30 डॉलर प्रति औंस की तेजी आ चुकी है। हालांकि, न्यूयॉर्क में हैरियस प्रीसियस मेटल्स मैनेजमेंट के वाइस प्रेसीडेंट (सेल्स) मिग्यूल पेरेज सेंताला ने सवाल उठाया कि क्या कमजोर डॉलर वास्तव में सोने की तेजी में सहायक साबित हो रहा है। घरेलू बाजार में चालू महीने में सोने की कीमतों में 1000 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आ चुकी है। 4 नवंबर को दिल्ली सराफा बाजार में इसके भाव 16,890 रुपये प्रति दस ग्राम थे। (बिज़नस भास्कर)
डीएपी की कमी से घट सकती है गेहूं की पैदावार
नई दिल्ली : सरकार एक तरफ गेहूं की पैदावार बढ़ाने की योजना बना रही है, वहीं दूसरी तरफ किसानों को उर्वरकों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में आशंका है कि सरकार की यह योजना धरी की धरी रह जाएगी। गेहूं की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों को मौजूदा बुआई सीजन के पहले 20 दिनों में डीएपी फर्टिलाइजर मिलने में दिक्कत आ रही है। उर्वरक मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर-नवंबर के बुआई सीजन में कुल 37 लाख टन डीएपी की जरूरत है। हालांकि, 23 नवंबर तक फॉस्फोरस फर्टिलाइजर की सप्लाई सिर्फ 19.51 लाख टन हुई थी। मृदा विशेषज्ञों का कहना है कि फसल में उर्वरक की जरूरत बुआई के दौरान होती है और बुआई खत्म होने के बाद फटिर्लाइजर की सप्लाई का कोई मतलब नहीं बनता।
एक कृषि वैज्ञानिक का कहना है, 'पंजाब और हरियाणा में गेहूं की बुआई का काम नवंबर के पहले हफ्ते में शुरू होने के बाद लगभग पूरा हो चुका है। किसानों को बुआई के दौरान डीएपी और फसल पर यूरिया के छिड़काव की जरूरत होती है।' डीएपी उपलब्ध न होने के कारण किसान एनपीके (कॉम्प्लेक्स फटिर्लाइजर) का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं के उत्पादन पर इसके असर का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है क्योंकि हर ब्रांड में प्रत्येक पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश) की मात्रा अलग-अलग होती है। वैज्ञानिक ने बताया, 'एनपीके कभी भी डीएपी का विकल्प नहीं हो सकता। डीएपी के बगैर गेहूं की पैदावार घट सकती है, लेकिन इसकी मात्रा के बारे में बताना अभी काफी मुश्किल है।' सरकार ने 2009-10 में गेहूं की पैदावार में 20 लाख टन बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है। पिछले साल देश में 8।05 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने केंद्र सरकार को पहले ही इस बात के संकेत दे दिए हैं कि गेहूं का उत्पादन घट सकता है। (ई टी हिन्दी)
एक कृषि वैज्ञानिक का कहना है, 'पंजाब और हरियाणा में गेहूं की बुआई का काम नवंबर के पहले हफ्ते में शुरू होने के बाद लगभग पूरा हो चुका है। किसानों को बुआई के दौरान डीएपी और फसल पर यूरिया के छिड़काव की जरूरत होती है।' डीएपी उपलब्ध न होने के कारण किसान एनपीके (कॉम्प्लेक्स फटिर्लाइजर) का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं के उत्पादन पर इसके असर का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है क्योंकि हर ब्रांड में प्रत्येक पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश) की मात्रा अलग-अलग होती है। वैज्ञानिक ने बताया, 'एनपीके कभी भी डीएपी का विकल्प नहीं हो सकता। डीएपी के बगैर गेहूं की पैदावार घट सकती है, लेकिन इसकी मात्रा के बारे में बताना अभी काफी मुश्किल है।' सरकार ने 2009-10 में गेहूं की पैदावार में 20 लाख टन बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है। पिछले साल देश में 8।05 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने केंद्र सरकार को पहले ही इस बात के संकेत दे दिए हैं कि गेहूं का उत्पादन घट सकता है। (ई टी हिन्दी)
कुछ कमोडिटी में वायदा कारोबार पर कायम रह सकती है रोक
नई दिल्ली : लाख कोशिशों के बावजूद सरकार खाद्य पदार्थों की महंगाई पर काबू नहीं पा सकी है। ऐसे में प्रमुख कमोडिटी के वायदा कारोबार पर लगी रोक आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। संसद की प्राक्कलन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक चावल, गेहूं, अरहर दाल, उड़द दाल और चीनी के वायदा कारोबार पर से तब तक रोक नहीं हटनी चाहिए जब तक कि देश में इनकी सप्लाई दुरुस्त न हो जाए। प्राक्कलन समिति जल्द ही अपनी यह रिपोर्ट संसद में पेश करने वाली है। जमाखोरी और कृत्रिम तरीके से मूल्यवृद्धि पर रोक लगाने की नीयत से यह समिति सरकार से इस बात की भी सिफारिश करेगी कि वह खाद्य पदार्थों के लिए लाइसेंस की जरूरत खत्म करने की अधिसूचनाएं वापस ले।
इसके अलावा समिति भंडारण की सीमा और खाद्य पदार्थों को एक से दूसरी जगह लेने जाने में आने वाली कानूनी अड़चनें खत्म करने की भी सलाह देगी। खाद्य पदार्थों की कमी से निपटने के लिए अनाज के स्टॉक और बिक्री की सीमा तय करने के लिए सरकार आदेश देती है और राज्य सरकारें अपनी समझ के मुताबिक इन आदेशों को लागू कर सकती है। केंद्र सरकार अगर आवश्यक वस्तु कानून के तहत आवश्यक कमोडिटी में होने वाले वायदा कारोबार पर स्थायी रोक लगाने का फैसला करती है तो ऐसे में केंद्र के इस फैसले से राज्यों के साथ उसके संबंधों में तनाव आ सकता है। फिलहाल चावल, उड़द और अरहर दाल के वायदा कारोबार पर रोक है। इस साल मई में गेहूं के वायदा कारोबार पर से रोक हटा ली गई थी। अभिजीत सेन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, किसी कमोडिटी के वायदा कारोबार और हाजिर बाजार में उसकी कीमतों के उतार-चढ़ाव में किसी तरह का संबंध होना मुमकिन नहीं था। समिति का मानना था कि देश में खद्यान्न की कमी हो देखते हुए वायदा कारोबार पर रोक लगाना समझदारी होगा। कुछ लोग आवश्यक वस्तु कानून को पूरी तरह लागू करने की मांग कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो 2002 और 2003 में जारी दोनों अधिसूचनाएं पूरी तरह खत्म हो जाएंगी। इन अधिसूचनाओं के मुताबिक डीलरों को किसी भी मात्रा में चावल, गेहूं, चीनी, खाद्य तेल, दाल, तिलहन, मैदा, सूजी, आटा वनस्पति आदि खरीदने की आजादी है। डीलर इन खाद्य पदार्थों को जमा कर सकते हैं, कहीं लेकर आ-जा सकते हैं और किसी भी मात्रा तक बेच सकते हैं। हालांकि, आवश्यक वस्तु कानून लागू होने पर यह मुमकिन नहीं होगा। सरकार ने कैबिनेट के फैसलों के जरिए फिलहाल चीनी, दालों, खाद्य तेलों, तिलहन और चावल पर यह आदेश लागू नहीं किया है। वहीं, समिति की राय कुछ अलग है। समिति ने इसकी जगह इन अधिसूचनाओं के असर की विस्तृत समीक्षा करने की सलाह दी है। इस समीक्षा के आधार पर ही सरकार को प्रमुख कमोडिटी के वायदा कारोबार पर स्थायी रोक लगाने का फैसला करना चाहिए। (ई टी हिन्दी)
इसके अलावा समिति भंडारण की सीमा और खाद्य पदार्थों को एक से दूसरी जगह लेने जाने में आने वाली कानूनी अड़चनें खत्म करने की भी सलाह देगी। खाद्य पदार्थों की कमी से निपटने के लिए अनाज के स्टॉक और बिक्री की सीमा तय करने के लिए सरकार आदेश देती है और राज्य सरकारें अपनी समझ के मुताबिक इन आदेशों को लागू कर सकती है। केंद्र सरकार अगर आवश्यक वस्तु कानून के तहत आवश्यक कमोडिटी में होने वाले वायदा कारोबार पर स्थायी रोक लगाने का फैसला करती है तो ऐसे में केंद्र के इस फैसले से राज्यों के साथ उसके संबंधों में तनाव आ सकता है। फिलहाल चावल, उड़द और अरहर दाल के वायदा कारोबार पर रोक है। इस साल मई में गेहूं के वायदा कारोबार पर से रोक हटा ली गई थी। अभिजीत सेन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, किसी कमोडिटी के वायदा कारोबार और हाजिर बाजार में उसकी कीमतों के उतार-चढ़ाव में किसी तरह का संबंध होना मुमकिन नहीं था। समिति का मानना था कि देश में खद्यान्न की कमी हो देखते हुए वायदा कारोबार पर रोक लगाना समझदारी होगा। कुछ लोग आवश्यक वस्तु कानून को पूरी तरह लागू करने की मांग कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो 2002 और 2003 में जारी दोनों अधिसूचनाएं पूरी तरह खत्म हो जाएंगी। इन अधिसूचनाओं के मुताबिक डीलरों को किसी भी मात्रा में चावल, गेहूं, चीनी, खाद्य तेल, दाल, तिलहन, मैदा, सूजी, आटा वनस्पति आदि खरीदने की आजादी है। डीलर इन खाद्य पदार्थों को जमा कर सकते हैं, कहीं लेकर आ-जा सकते हैं और किसी भी मात्रा तक बेच सकते हैं। हालांकि, आवश्यक वस्तु कानून लागू होने पर यह मुमकिन नहीं होगा। सरकार ने कैबिनेट के फैसलों के जरिए फिलहाल चीनी, दालों, खाद्य तेलों, तिलहन और चावल पर यह आदेश लागू नहीं किया है। वहीं, समिति की राय कुछ अलग है। समिति ने इसकी जगह इन अधिसूचनाओं के असर की विस्तृत समीक्षा करने की सलाह दी है। इस समीक्षा के आधार पर ही सरकार को प्रमुख कमोडिटी के वायदा कारोबार पर स्थायी रोक लगाने का फैसला करना चाहिए। (ई टी हिन्दी)
'अपने किसानों से हम कुछ ज्यादा ही उम्मीद करते हैं'
November 24, 2009
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली में प्रोफेसर प्रमोद कुमार अग्रवाल को हाल में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाने की खातिर एक ब्राजीली वैज्ञानिक के साथ संयुक्त रूप से अर्नेस्टो इली ट्राइस्टी साइंस पुरस्कार दिया गया है।
पर्यावरण परिवर्तन के देश की कृषि पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करने वाली राष्ट्रीय परियोजना का नेतृत्व इन्होंने ही किया। यह सम्मान इटली की एकेडमी ऑफ साइंसेज फॉर द डेवलपिंग वर्ल्ड देती है। लता जिश्नू ने अग्रवाल से बात की। पेश है मुख्य अंश:
इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या रहे?
वर्ष 2020 तक ज्यादातर फसलों की उत्पादकता में मामूली गिरावट होगी। हालांकि इस शताब्दी के खत्म होते-होते जबकि तापमान में 1.8 से 4 सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाएगी, तब उत्पादन में 10 से 40 फीसदी की कमी हो जाएगी। यह इसके बावजूद होगा कि कार्बन डाइऑक्साइड फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा भी कई निष्कर्ष रहे हैं।
क्या कोई विशिष्ट उदाहरण दे सकते हैं?
आईएआरआई के अध्ययन से जाहिर हुआ कि तापमान में हर 1 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि होने से गेहूं का हमारा उत्पादन 40-50 लाख टन कम हो सकता है। सोयाबीन, सरसों और मूंगफली का उत्पादन इससे 3 से 7 फीसदी कम हो जाएगा। हालांकि यह इलाके के ऊपर निर्भर करेगा। उत्तर-पश्चिम भारत में ठंड में कम कमी के चलते आलू, सरसों और सब्जियों के उत्पादन में कम कमी होगी।
हमारी खाद्य उपलब्धता पर इन फसलों के अलावा और क्या असर होगा?
हां, दूध उत्पादन पर काफी असर होगा। तापमान बढ़ने से पशुओं की समस्याएं बढ़ेंगी। 2020 तक दूध उत्पादन में करीब 16 लाख टन की कमी हो सकती है। वर्ष 2050 तक 1.5 करोड़ टन से ज्यादा की कमी हो सकती है। तापमान वृद्धि का देसी की तुलना में संकर नस्ल की मवेशियों पर ज्यादा असर होगा। घरेलू पशुओं के प्रजनन पर भी असर पड़ने की आशंका है।
इन प्रभावों को कम करने के लिए कुछ किया जा सकता है?
तात्कालिक तौर पर तो बुआई या रोपाई की तिथि और बीजों में बदलाव किया जा सकता है। लेकिन ऐसा केवल सिद्धांत रूप में आसान दिखता है, पर व्यवहार में ऐसा काफी मुश्किल है। किसान मौजूदा ढांचे का अधिकतम फायदा उठाना चाहते हैं, लिहाजा तिथि में बदलाव काफी मुश्किल है।
इस मसले का निचोड़ क्या है?
पर्यावरण परिवर्तन को दो नजरिए से देखना चाहिए। पहला तापमान और बारिश के औसत में बदलाव और दूसरा मौसम का उतार-चढ़ाव। वैज्ञानिक पहली समस्या से जूझने में पूरी तरह सक्षम हैं। चिंता की वजह दूसरी चीज है। इसने हमारी खाद्य सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इससे निपटने के लिए अलग तरह की रणनीति चाहिए।
आखिर क्या उपाय हैं ?
हमें भूमि और जल का बेहतर इस्तेमाल करना सीखना होगा। इस क्षेत्र में अनुसंधान पर निवेश बढ़ाना होगा। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण चीज किसानों का प्रशिक्षण और उन्हें वित्तीय मदद देना है।
दरअसल हम अपने किसानों से बहुत ज्यादा उम्मीद करते हैं। हमें उनसे कार्बन संरक्षण के साथ पानी और ऊर्जा के कम इस्तेमाल के लिए कहना चाहिए। यदि हम चाहते हैं कि वे ऐसा करें तो उन्हें क्षतिपूर्ति मिलना चाहिए। समाज स्वच्छ पर्यावरण की चाह में ऐसा कोई नहीं कर सकता।
प्रबंधन की हमारी पुरानी पद्धति में क्या कोई समाधान है? खासकर जल प्रबंधन के मामले में।
हां, बिल्कुल। बीज और पशुचारे के मामले में सामुदायिक भंडारण काफी दयनीय है। समस्या है कि हम कहते बहुत हैं पर करते बहुत थोड़ा हैं।
आपकी अन्य मुख्य सिफारिशें क्या हैं?
हमें अगले 15 साल में अपना खाद्य उत्पादन बढ़ाना होगा। फसलों की उत्पादकता बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। हमें अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है। देश में फसल बीमा की हालत दयनीय है। (बीएस हिन्दी)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली में प्रोफेसर प्रमोद कुमार अग्रवाल को हाल में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाने की खातिर एक ब्राजीली वैज्ञानिक के साथ संयुक्त रूप से अर्नेस्टो इली ट्राइस्टी साइंस पुरस्कार दिया गया है।
पर्यावरण परिवर्तन के देश की कृषि पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करने वाली राष्ट्रीय परियोजना का नेतृत्व इन्होंने ही किया। यह सम्मान इटली की एकेडमी ऑफ साइंसेज फॉर द डेवलपिंग वर्ल्ड देती है। लता जिश्नू ने अग्रवाल से बात की। पेश है मुख्य अंश:
इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या रहे?
वर्ष 2020 तक ज्यादातर फसलों की उत्पादकता में मामूली गिरावट होगी। हालांकि इस शताब्दी के खत्म होते-होते जबकि तापमान में 1.8 से 4 सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाएगी, तब उत्पादन में 10 से 40 फीसदी की कमी हो जाएगी। यह इसके बावजूद होगा कि कार्बन डाइऑक्साइड फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा भी कई निष्कर्ष रहे हैं।
क्या कोई विशिष्ट उदाहरण दे सकते हैं?
आईएआरआई के अध्ययन से जाहिर हुआ कि तापमान में हर 1 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि होने से गेहूं का हमारा उत्पादन 40-50 लाख टन कम हो सकता है। सोयाबीन, सरसों और मूंगफली का उत्पादन इससे 3 से 7 फीसदी कम हो जाएगा। हालांकि यह इलाके के ऊपर निर्भर करेगा। उत्तर-पश्चिम भारत में ठंड में कम कमी के चलते आलू, सरसों और सब्जियों के उत्पादन में कम कमी होगी।
हमारी खाद्य उपलब्धता पर इन फसलों के अलावा और क्या असर होगा?
हां, दूध उत्पादन पर काफी असर होगा। तापमान बढ़ने से पशुओं की समस्याएं बढ़ेंगी। 2020 तक दूध उत्पादन में करीब 16 लाख टन की कमी हो सकती है। वर्ष 2050 तक 1.5 करोड़ टन से ज्यादा की कमी हो सकती है। तापमान वृद्धि का देसी की तुलना में संकर नस्ल की मवेशियों पर ज्यादा असर होगा। घरेलू पशुओं के प्रजनन पर भी असर पड़ने की आशंका है।
इन प्रभावों को कम करने के लिए कुछ किया जा सकता है?
तात्कालिक तौर पर तो बुआई या रोपाई की तिथि और बीजों में बदलाव किया जा सकता है। लेकिन ऐसा केवल सिद्धांत रूप में आसान दिखता है, पर व्यवहार में ऐसा काफी मुश्किल है। किसान मौजूदा ढांचे का अधिकतम फायदा उठाना चाहते हैं, लिहाजा तिथि में बदलाव काफी मुश्किल है।
इस मसले का निचोड़ क्या है?
पर्यावरण परिवर्तन को दो नजरिए से देखना चाहिए। पहला तापमान और बारिश के औसत में बदलाव और दूसरा मौसम का उतार-चढ़ाव। वैज्ञानिक पहली समस्या से जूझने में पूरी तरह सक्षम हैं। चिंता की वजह दूसरी चीज है। इसने हमारी खाद्य सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इससे निपटने के लिए अलग तरह की रणनीति चाहिए।
आखिर क्या उपाय हैं ?
हमें भूमि और जल का बेहतर इस्तेमाल करना सीखना होगा। इस क्षेत्र में अनुसंधान पर निवेश बढ़ाना होगा। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण चीज किसानों का प्रशिक्षण और उन्हें वित्तीय मदद देना है।
दरअसल हम अपने किसानों से बहुत ज्यादा उम्मीद करते हैं। हमें उनसे कार्बन संरक्षण के साथ पानी और ऊर्जा के कम इस्तेमाल के लिए कहना चाहिए। यदि हम चाहते हैं कि वे ऐसा करें तो उन्हें क्षतिपूर्ति मिलना चाहिए। समाज स्वच्छ पर्यावरण की चाह में ऐसा कोई नहीं कर सकता।
प्रबंधन की हमारी पुरानी पद्धति में क्या कोई समाधान है? खासकर जल प्रबंधन के मामले में।
हां, बिल्कुल। बीज और पशुचारे के मामले में सामुदायिक भंडारण काफी दयनीय है। समस्या है कि हम कहते बहुत हैं पर करते बहुत थोड़ा हैं।
आपकी अन्य मुख्य सिफारिशें क्या हैं?
हमें अगले 15 साल में अपना खाद्य उत्पादन बढ़ाना होगा। फसलों की उत्पादकता बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। हमें अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है। देश में फसल बीमा की हालत दयनीय है। (बीएस हिन्दी)
आयातित खाद्य पदार्थों की अब होगी ऑनलाइन पड़ताल
नई दिल्ली November 24, 2009
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की स्वायत्त सांविधानिक संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) सभी आयातित खाद्य सामान की पड़ताल के लिए ऑनलाइन प्रणाली लागू करने जा रहा है।
प्राधिकरण की योजना देश की नियामक संस्थाओं के साथ फूड ऐंड ड्रग अथॉरिटी (एफडीए) की तर्ज पर काम करने की है। वह ऐसी संस्थाओं से भारत में आने वाले उत्पादों के बारे में जानकारी एकत्रित करेगा। इससे प्राधिकरण के पास सभी आयातित खाद्य उत्पादों का पूरा विवरण मौजूद रहेगा।
इस पहल से अपमिश्रित खाद्य उत्पादों के आयात पर नकेल लगाने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले चीन से मेलामाइन मिश्रित दूध आने की शिकायत मिली थी। एफएसएसएआई आयातित उत्पादों के खतरनाक असर दिखने की स्थिति में इससे तुरंत निपटने के लिए राज्यों के खाद्य, स्वास्थ्य सलाहकार और बंदरगाह प्राधिकरणों के साथ भी काम करेगा।
गौरतलब है कि भारत में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और कई वैश्विक रिटेल कंपनियां यहां दस्तक दे रही हैं। फिलहाल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की 20 फीसदी खपत आयात के जरिए पूरी की जाती है। निकट भविष्य में इसमें तेज बढ़ोतरी की पूरी संभावना है।
एफएसएसएआई के अध्यक्ष पी आई सुव्रतन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'आयात बाद होने वाली पड़ताल और सुरक्षा जांच के बजाय अब आयात पूर्व पड़ताल करने का विचार हो रहा है। अनुमति यदि मिल गई तो खाद्य उत्पादों का पता ऑनलाइन ही किया जाएगा।
मसलन, क्या आ रहा है, कहां से आ रहा है और इसमें मुख्य अवयव क्या हैं आदि-आदि। ये उत्पाद जहां से मंगाए जा रहे हैं, हम वहां के प्र्रशासन से इसकी सुरक्षा की पड़ताल भी करेंगे।' इतना ही नहीं, इन उत्पादों के इस्तेमाल की अंतिम तिथि (एक्सपायरी डेट) का भी ब्योरा रखा जाएगा।
फिलहाल आयातित खाद्य पदार्थ की प्राथमिक जांच-पड़ताल कस्टम विभाग द्वारा होता है। यह खाद्य अपमिश्रण रोकथाम (पीएफए) अधिनियम का विषय है। अभी किसी नुकसानदेह नतीजे की स्थिति में तत्काल कदम उठाने की कोई ऑनलाइन ट्रैकिंग प्रणाली नहीं है। न ही खराब नतीजे की स्थिति में ऐसे समानों को बाजार से वापस करने का कोई सख्त और उपयुक्त ढांचा है।
हालांकि नई योजना के मुताबिक, प्राधिकरण सुनिश्चित करेगा कि देश में खाद्य उत्पादों का निर्यात करने वाली कंपनियों के पास खराब सामानों की एक सुनिश्चित पुनर्वापसी योजना हो। यह भी सुनिश्चत किया जाएगा कि खराब नतीजे की हालत में समूचा माल वापस लिया जाए न कि चुनिंदा। पुनर्वापसी की समयसीमा भी तय की जाएगी। ऐसा यदि नहीं होता तो मामला कोर्ट में भेजा जाएगा।
सुव्रतन ने कहा, 'प्राधिकरण इस मामले को अन्य हिस्सेदारों से चर्चा करेगा। प्राधिकरण में चूंकि 8 मंत्रालय जैसे कस्टम, व्यापार, जहाजरानी और बंदरगाह आदि शरीक हैं, लिहाजा इसके लागू होने में कम से कम साल भर का समय लगेगा।' खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत इस मसले पर प्राधिकरण के पास एक कानून होगा। (बीएस हिन्दी)
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की स्वायत्त सांविधानिक संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) सभी आयातित खाद्य सामान की पड़ताल के लिए ऑनलाइन प्रणाली लागू करने जा रहा है।
प्राधिकरण की योजना देश की नियामक संस्थाओं के साथ फूड ऐंड ड्रग अथॉरिटी (एफडीए) की तर्ज पर काम करने की है। वह ऐसी संस्थाओं से भारत में आने वाले उत्पादों के बारे में जानकारी एकत्रित करेगा। इससे प्राधिकरण के पास सभी आयातित खाद्य उत्पादों का पूरा विवरण मौजूद रहेगा।
इस पहल से अपमिश्रित खाद्य उत्पादों के आयात पर नकेल लगाने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले चीन से मेलामाइन मिश्रित दूध आने की शिकायत मिली थी। एफएसएसएआई आयातित उत्पादों के खतरनाक असर दिखने की स्थिति में इससे तुरंत निपटने के लिए राज्यों के खाद्य, स्वास्थ्य सलाहकार और बंदरगाह प्राधिकरणों के साथ भी काम करेगा।
गौरतलब है कि भारत में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और कई वैश्विक रिटेल कंपनियां यहां दस्तक दे रही हैं। फिलहाल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की 20 फीसदी खपत आयात के जरिए पूरी की जाती है। निकट भविष्य में इसमें तेज बढ़ोतरी की पूरी संभावना है।
एफएसएसएआई के अध्यक्ष पी आई सुव्रतन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'आयात बाद होने वाली पड़ताल और सुरक्षा जांच के बजाय अब आयात पूर्व पड़ताल करने का विचार हो रहा है। अनुमति यदि मिल गई तो खाद्य उत्पादों का पता ऑनलाइन ही किया जाएगा।
मसलन, क्या आ रहा है, कहां से आ रहा है और इसमें मुख्य अवयव क्या हैं आदि-आदि। ये उत्पाद जहां से मंगाए जा रहे हैं, हम वहां के प्र्रशासन से इसकी सुरक्षा की पड़ताल भी करेंगे।' इतना ही नहीं, इन उत्पादों के इस्तेमाल की अंतिम तिथि (एक्सपायरी डेट) का भी ब्योरा रखा जाएगा।
फिलहाल आयातित खाद्य पदार्थ की प्राथमिक जांच-पड़ताल कस्टम विभाग द्वारा होता है। यह खाद्य अपमिश्रण रोकथाम (पीएफए) अधिनियम का विषय है। अभी किसी नुकसानदेह नतीजे की स्थिति में तत्काल कदम उठाने की कोई ऑनलाइन ट्रैकिंग प्रणाली नहीं है। न ही खराब नतीजे की स्थिति में ऐसे समानों को बाजार से वापस करने का कोई सख्त और उपयुक्त ढांचा है।
हालांकि नई योजना के मुताबिक, प्राधिकरण सुनिश्चित करेगा कि देश में खाद्य उत्पादों का निर्यात करने वाली कंपनियों के पास खराब सामानों की एक सुनिश्चित पुनर्वापसी योजना हो। यह भी सुनिश्चत किया जाएगा कि खराब नतीजे की हालत में समूचा माल वापस लिया जाए न कि चुनिंदा। पुनर्वापसी की समयसीमा भी तय की जाएगी। ऐसा यदि नहीं होता तो मामला कोर्ट में भेजा जाएगा।
सुव्रतन ने कहा, 'प्राधिकरण इस मामले को अन्य हिस्सेदारों से चर्चा करेगा। प्राधिकरण में चूंकि 8 मंत्रालय जैसे कस्टम, व्यापार, जहाजरानी और बंदरगाह आदि शरीक हैं, लिहाजा इसके लागू होने में कम से कम साल भर का समय लगेगा।' खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत इस मसले पर प्राधिकरण के पास एक कानून होगा। (बीएस हिन्दी)
बढ़ी देश में पुराने सोने की उपलब्धता
मुंबई November 24, 2009
देश में पुराने सोने की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है।
चालू कैंलेडर वर्ष की तीसरी तिमाही में ऐसे सोने की उपलब्धता में 12.5 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। सोने का भाव बढ़ने से रिटेल उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली पुराने सोने की बिक्री में काफी तेजी देखने को मिली है।
दिग्गज शोध कंपनी जीएफएमएस लिमिटेड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2009 में समाप्त हुई तिमाही में भारतीय रिफाइनरियों को 18 टन पुराने सोने की आपूर्ति हुई जबकि पिछले साल की इसी समयावधि के दौरान यह आंकड़ा 16 टन ही था।
हालांकि पहली दो तिमाहियों के मुकाबले इसमें काफी गिरावट आई है। पहली और दूसरी तिमाही में यह आंकड़ा क्रमश: 64 टन और 23 टन था। पहली तिमाही में सोने का भाव 15,000 रुपये प्रति 10 ग्राम जाते ही अधिकतर उपभोक्ताओं ने पुराना सोना बेच दिया था।
सोने का भाव गिरने की आशंका के कारण दूसरी तिमाही में भी लोगों ने पुराना सोना बेचना जारी रखा। लगातार तीसरी तिमाही के दौरान भी सोने के बढ़ते भाव ने लोगों को भरोसा दिलाया कि उसका भाव मौजूदा 1165 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 1300 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकता है। इस कारण रिटेल निवेशक पुराना सोना बेचने में थोड़ा झिझक रहे हैं।
पहली तिमाही के दौरान सोने का भाव 14,488 रुपये प्रति 10 ग्राम था। दूसरी तिमाही के दौरान सोने का भाव बढ़कर 14,573 रुपये प्रति ग्राम और तीसरी तिमाही में यह बढ़कर 15,118 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। तीसरी तिमाही के दौरान फैब्रिकेशन के लिए भारत आने वाले सोने की आपूर्ति 47 फीसदी घटकर 151 टन हो गई।
पिछले साल की इसी समयावधि के दौरान यह आंकड़ा 285 टन था। हालांकि यह चालू वर्ष की दूसरी तिमाही के आंकड़े 123 टन से 23 फीसदी अधिक था। लेकिन पहली तिमाही के दौरान फैब्रिकेशन के लिए आने वाले सोना मात्र 37 टन ही रह गया था।
इसी तरह घरेलू खपत के लिए होने वाला सोने का आयात तीसरी तिमाही में 51 फीसदी घटकर 130 टन रह गया। जबकि पिछले साल की इसी समयावधि में यह आंकड़ा 266 टन था। उपभोक्ताओं की ओर से होने वाली सोने की मांग में कमी आने के कारण महंगा सोना आयात करने का कोई फायदा नहीं है। दूसरी तिमाही में सोने की रिसाइक्लिंग में तेजी से गिरावट आई। (बीएस हिन्दी)
देश में पुराने सोने की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है।
चालू कैंलेडर वर्ष की तीसरी तिमाही में ऐसे सोने की उपलब्धता में 12.5 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। सोने का भाव बढ़ने से रिटेल उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली पुराने सोने की बिक्री में काफी तेजी देखने को मिली है।
दिग्गज शोध कंपनी जीएफएमएस लिमिटेड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2009 में समाप्त हुई तिमाही में भारतीय रिफाइनरियों को 18 टन पुराने सोने की आपूर्ति हुई जबकि पिछले साल की इसी समयावधि के दौरान यह आंकड़ा 16 टन ही था।
हालांकि पहली दो तिमाहियों के मुकाबले इसमें काफी गिरावट आई है। पहली और दूसरी तिमाही में यह आंकड़ा क्रमश: 64 टन और 23 टन था। पहली तिमाही में सोने का भाव 15,000 रुपये प्रति 10 ग्राम जाते ही अधिकतर उपभोक्ताओं ने पुराना सोना बेच दिया था।
सोने का भाव गिरने की आशंका के कारण दूसरी तिमाही में भी लोगों ने पुराना सोना बेचना जारी रखा। लगातार तीसरी तिमाही के दौरान भी सोने के बढ़ते भाव ने लोगों को भरोसा दिलाया कि उसका भाव मौजूदा 1165 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 1300 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकता है। इस कारण रिटेल निवेशक पुराना सोना बेचने में थोड़ा झिझक रहे हैं।
पहली तिमाही के दौरान सोने का भाव 14,488 रुपये प्रति 10 ग्राम था। दूसरी तिमाही के दौरान सोने का भाव बढ़कर 14,573 रुपये प्रति ग्राम और तीसरी तिमाही में यह बढ़कर 15,118 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। तीसरी तिमाही के दौरान फैब्रिकेशन के लिए भारत आने वाले सोने की आपूर्ति 47 फीसदी घटकर 151 टन हो गई।
पिछले साल की इसी समयावधि के दौरान यह आंकड़ा 285 टन था। हालांकि यह चालू वर्ष की दूसरी तिमाही के आंकड़े 123 टन से 23 फीसदी अधिक था। लेकिन पहली तिमाही के दौरान फैब्रिकेशन के लिए आने वाले सोना मात्र 37 टन ही रह गया था।
इसी तरह घरेलू खपत के लिए होने वाला सोने का आयात तीसरी तिमाही में 51 फीसदी घटकर 130 टन रह गया। जबकि पिछले साल की इसी समयावधि में यह आंकड़ा 266 टन था। उपभोक्ताओं की ओर से होने वाली सोने की मांग में कमी आने के कारण महंगा सोना आयात करने का कोई फायदा नहीं है। दूसरी तिमाही में सोने की रिसाइक्लिंग में तेजी से गिरावट आई। (बीएस हिन्दी)
बासमती धान के दाम में तेज उछाल
नई दिल्ली November 24, 2009
गन्ने आंदोलन का असर बासमती धान की आवक पर भी पड़ता नजर आ रहा है। हरियाणा व पंजाब की मंडियों में पूसा 1121 धान की आवक में कमी आ गयी है।
लिहाजा इसकी कीमत बढ़ने लगी है। पिछले सप्ताह तक हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में 2000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला बासमती धान अब 2500 रुपये प्रति क्विंटन बिक रहा है। उम्दा किस्म के बासमती धान में भी 600 रुपये का इजाफा हुआ है और यह 3700 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है।
बासमती धान के भाव में हो रहे इस उतार-चढ़ाव से हरियाणा के चावल मिलर्स असमंजस में है। उन्हें यह पता नहीं चल पा रहा है कि वे धान की कब और कितनी खरीदारी करे। उधर अरब देशों में चावल आयातकों को मिलने वाली छूट खत्म होने से बासमती चावल की निर्यात मांग में कमी आ सकती है।
हरियाणा में करनाल के बासमती धान उत्पादकों के मुताबिक सप्ताह भर पहले तक मंडी में उन्हें पूसा-1121 की कीमत 1500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही थी। बासमती चावल की कोई सरकारी खरीद नहीं होती है, लिहाजा चावल मिल एवं बड़े व्यापारी ही उनके धान के खरीदार होते हैं।
किसानों ने बताया कि पिछले साल पूसा 1121 चावल की कीमत 8000 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक हो गई थी। फिलहाल कीमत में भारी गिरावट के बावजूद थोक मंडी में पूसा-112 की कीमत 53-54 रुपये प्रति किलोग्राम चल रही है। धान एवं चावल के भाव में भारी अंतर को देखते हुए किसानों ने बासमती धान की आवक कम कर दी है।
इस साल हरियाणा एवं पंजाब में बासमती धान के उत्पादन में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। किसानों का मानना है कि अगले साल बासमती धान की अच्छी कीमत मिल सकती है। धान के भाव बढ़ने से हरियाणा चावल मिर्ल्स पसोपेश में है। हरियाणा चावल मिर्ल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष गोयल कहते हैं, पिछले तीन-चार दिनों से बासमती चावल के भाव घट-बढ़ रहे हैं।
धान में उतार-चढ़ाव से चावल की कीमत में भी बदलाव है। अधिक कीमत पर खरीद करने पर कीमत होने की आशंका हो रही है। चावल मिर्ल्स का यह भी कहना है कि चावल आयात के मसले पर सरकार की अलग-अलग बयानबाजी से भी धान की कीमतों में स्थिरता नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा था कि सरकार चावल के आयात पर विचार कर रही है।
फिर दो दिन बाद यह बयान आया कि सरकार के पास चावल के पर्याप्त स्टॉक है। चावल निर्यातकों के मुताबिक सऊदी अरब में बासमती चावल के आयातकों को सरकार की तरफ से छूट दी जाती थी जो कि इस साल समाप्त हो रही है। इससे आने वाले समय में उनकी मांग में कमी आ सकती है। (बीएस हिन्दी)
गन्ने आंदोलन का असर बासमती धान की आवक पर भी पड़ता नजर आ रहा है। हरियाणा व पंजाब की मंडियों में पूसा 1121 धान की आवक में कमी आ गयी है।
लिहाजा इसकी कीमत बढ़ने लगी है। पिछले सप्ताह तक हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में 2000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला बासमती धान अब 2500 रुपये प्रति क्विंटन बिक रहा है। उम्दा किस्म के बासमती धान में भी 600 रुपये का इजाफा हुआ है और यह 3700 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है।
बासमती धान के भाव में हो रहे इस उतार-चढ़ाव से हरियाणा के चावल मिलर्स असमंजस में है। उन्हें यह पता नहीं चल पा रहा है कि वे धान की कब और कितनी खरीदारी करे। उधर अरब देशों में चावल आयातकों को मिलने वाली छूट खत्म होने से बासमती चावल की निर्यात मांग में कमी आ सकती है।
हरियाणा में करनाल के बासमती धान उत्पादकों के मुताबिक सप्ताह भर पहले तक मंडी में उन्हें पूसा-1121 की कीमत 1500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही थी। बासमती चावल की कोई सरकारी खरीद नहीं होती है, लिहाजा चावल मिल एवं बड़े व्यापारी ही उनके धान के खरीदार होते हैं।
किसानों ने बताया कि पिछले साल पूसा 1121 चावल की कीमत 8000 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक हो गई थी। फिलहाल कीमत में भारी गिरावट के बावजूद थोक मंडी में पूसा-112 की कीमत 53-54 रुपये प्रति किलोग्राम चल रही है। धान एवं चावल के भाव में भारी अंतर को देखते हुए किसानों ने बासमती धान की आवक कम कर दी है।
इस साल हरियाणा एवं पंजाब में बासमती धान के उत्पादन में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। किसानों का मानना है कि अगले साल बासमती धान की अच्छी कीमत मिल सकती है। धान के भाव बढ़ने से हरियाणा चावल मिर्ल्स पसोपेश में है। हरियाणा चावल मिर्ल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष गोयल कहते हैं, पिछले तीन-चार दिनों से बासमती चावल के भाव घट-बढ़ रहे हैं।
धान में उतार-चढ़ाव से चावल की कीमत में भी बदलाव है। अधिक कीमत पर खरीद करने पर कीमत होने की आशंका हो रही है। चावल मिर्ल्स का यह भी कहना है कि चावल आयात के मसले पर सरकार की अलग-अलग बयानबाजी से भी धान की कीमतों में स्थिरता नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा था कि सरकार चावल के आयात पर विचार कर रही है।
फिर दो दिन बाद यह बयान आया कि सरकार के पास चावल के पर्याप्त स्टॉक है। चावल निर्यातकों के मुताबिक सऊदी अरब में बासमती चावल के आयातकों को सरकार की तरफ से छूट दी जाती थी जो कि इस साल समाप्त हो रही है। इससे आने वाले समय में उनकी मांग में कमी आ सकती है। (बीएस हिन्दी)
अंडे के दाम रिकार्ड स्तर पर
नई दिल्ली November 24, 2009
प्रोटीन से भरपूर दाल और अंडों के दामों में मजबूती का रुख कायम है।
अरहर की दाल थोक मंडी में 76-78 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है तो अंडे की कीमत भी इस साल अपने सर्वाधिक स्तर पर है। गाजीपुर मंडी में अंडे के थोक भाव मंगलवार को 285 रुपये प्रति सैकड़ा बताए गए। एक सप्ताह पहले यह कीमत 328 रुपये प्रति सैकड़ा के स्तर पर थी।
अंडे के थोक कारोबारियों के मुताबिक पिछले साल दिसंबर के दौरान अंडे की अधिकतम कीमत 250 रुपये प्रति सौ तक गयी थी। नवंबर से जनवरी के बीच अंडे की मांग मई-जून के मुकाबले दोगुनी रहती है। इन दिनों दिल्ली में रोजाना 40 लाख से अधिक अंडे की मांग है।
अंडे के थोक विक्रेता अब्दुल सत्तार ने बताया कि अंडे के दाम प्रति सैकड़ा 300 रुपये के ऊपर जाते ही मांग में कमी आ गयी। इन दिनों गाजीपुर मंडी में सिर्फ हरियाणा एवं पंजाब से अंडे की आपूर्ति हो रही है। राजस्थान के अंडे अपेक्षाकृत महंगे बताए जा रहे हैं। इसलिए वहां से कोई आपूर्ति नहीं हो रही है।
कारोबारियों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले मुर्गी दाने के भाव में 20 फीसदी से अधिक की तेजी है। इन दिनों हरियाणा एवं पंजाब से ही हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में अंडे की आपूर्ति की जा रही है। पिछले साल के मुकाबले पहाड़ी इलाकों में अंडे की मांग में 5-7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
दाल की कीमतों में भी मजबूती का रुख कायम है। दाल कारोबारियों के मुताबिक मंडी में नई दाल की आवक अब शुरू हो होने वाली है। उसके बाद ही कीमतों में गिरावट आएगी। निजी दाल आयातकों ने इन दिनों अरहर दाल का आयात बिल्कुल बंद कर दिया है। कारोबारियों का यह भी कहना है कि इन दिनों शादी-ब्याह के मौसम के कारण भी दालों के दाम में गिरावट नहीं हो पा रही है।
मूंग दाल की कीमत 74-76 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर कायम है जबकि अब मूंग दाल की नयी आवक भी शुरू होने वाली है। अरहर दाल में हालांकि पिछले सप्ताह के मुकाबले 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट है, लेकिन अब भी यह थोक बाजार में 76-78 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है। (बीएस हिन्दी)
प्रोटीन से भरपूर दाल और अंडों के दामों में मजबूती का रुख कायम है।
अरहर की दाल थोक मंडी में 76-78 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है तो अंडे की कीमत भी इस साल अपने सर्वाधिक स्तर पर है। गाजीपुर मंडी में अंडे के थोक भाव मंगलवार को 285 रुपये प्रति सैकड़ा बताए गए। एक सप्ताह पहले यह कीमत 328 रुपये प्रति सैकड़ा के स्तर पर थी।
अंडे के थोक कारोबारियों के मुताबिक पिछले साल दिसंबर के दौरान अंडे की अधिकतम कीमत 250 रुपये प्रति सौ तक गयी थी। नवंबर से जनवरी के बीच अंडे की मांग मई-जून के मुकाबले दोगुनी रहती है। इन दिनों दिल्ली में रोजाना 40 लाख से अधिक अंडे की मांग है।
अंडे के थोक विक्रेता अब्दुल सत्तार ने बताया कि अंडे के दाम प्रति सैकड़ा 300 रुपये के ऊपर जाते ही मांग में कमी आ गयी। इन दिनों गाजीपुर मंडी में सिर्फ हरियाणा एवं पंजाब से अंडे की आपूर्ति हो रही है। राजस्थान के अंडे अपेक्षाकृत महंगे बताए जा रहे हैं। इसलिए वहां से कोई आपूर्ति नहीं हो रही है।
कारोबारियों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले मुर्गी दाने के भाव में 20 फीसदी से अधिक की तेजी है। इन दिनों हरियाणा एवं पंजाब से ही हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में अंडे की आपूर्ति की जा रही है। पिछले साल के मुकाबले पहाड़ी इलाकों में अंडे की मांग में 5-7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
दाल की कीमतों में भी मजबूती का रुख कायम है। दाल कारोबारियों के मुताबिक मंडी में नई दाल की आवक अब शुरू हो होने वाली है। उसके बाद ही कीमतों में गिरावट आएगी। निजी दाल आयातकों ने इन दिनों अरहर दाल का आयात बिल्कुल बंद कर दिया है। कारोबारियों का यह भी कहना है कि इन दिनों शादी-ब्याह के मौसम के कारण भी दालों के दाम में गिरावट नहीं हो पा रही है।
मूंग दाल की कीमत 74-76 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर कायम है जबकि अब मूंग दाल की नयी आवक भी शुरू होने वाली है। अरहर दाल में हालांकि पिछले सप्ताह के मुकाबले 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट है, लेकिन अब भी यह थोक बाजार में 76-78 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है। (बीएस हिन्दी)
छोटे चौधरी की पंचायत सुलझाएगी गन्ना मसला!
लखनऊ November 24, 2009
उत्तर प्रदेश का चीनी उद्योग गन्ने की कीमतों पर उठा बवाल खत्म करने के लिए अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की मदद ले सकता है।
इस मसले के तूल पकड़ने की वजह से प्रदेश में पेराई सीजन को रफ्तार पकड़ने में देरी हो रही है। प्रदेश की मायावती सरकार ने गन्ने की सामान्य किस्मों के लिए राज्य सलाह मूल्य (एसएपी) 165 रुपये प्रति क्विंटल रखा है, जबकि रालोद प्रदेश के किसानों को गन्ने की बेहतर कीमत दिलाने के लिए चलाए जा रहे अभियान का नेतृत्व कर रहा है।
इससे पहले गन्ने की बेहतर कीमत दिए जाने को लेकर किसानों ने नई दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया था, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से रालोद ने किया। इसके चलते केंद्र सरकार उस गन्ना अध्यादेश पर पुनर्विचार करने पर बाध्य हुई, जिसमें एसएपी और उचित एवं लाभकारी कीमत (एफआरपी) के बीच अंतर की भरपाई करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाली गई थी न कि चीनी मिलों पर।
अब रालोद ने इस मसले पर उत्तर प्रदेश में बंद का आह्वान किया है। किसानों ने 15 रुपये प्रति क्विंटल बोनस के साथ गन्ने की 180-185 रुपये प्रति क्विंटल कीमत को अस्वीकार कर दिया है। अजित सिंह की पार्टी ने प्रदेश में गन्ना उगाने वाले किसानों को उनकी फसल के लिए 280 रुपये प्रति क्विंटल चुकाए जाने की मांग को पूरा समर्थन दिया है।
बहरहाल भारतीय चीनी मिल संगठन (इस्मा) ने आज एक बैठक कर इस मसले पर आगे की रणनीति बनाने पर चर्चा की। सिंभावली शुगर्स के कार्यकारी निदेशक जी एस सी राव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हम उम्मीद जता रहे हैं कि अगले 2 दिन में यह मसला सुलझा लिया जाएगा।'
उधर किसानों में भी यह मामला सुलझाने के प्रति छटपटाहट बढ़ गई है। अगले महीने से रबी मौसम शुरू होने वाला है। ऐसे में उन पर जमीन खाली करने का दबाव बढ़ गया है। प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि मुरादाबाद, जेपी नगर, बिजनौर और बरेली जिलों की करीब 19 चीनी मिलों में पेराई शुरू हो चुकी है।
राज्य के गन्ना आयुक्त सुधीर एम बोबडे ने कहा, '14 निजी, 4 सहकारी और चीनी निगम की एक मिल समेत कुल 19 मिलों में पेराई चल रही है।' उन्होंने बताया कि मिलों को गन्ने की आपूर्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा, 'सरकार इस मसले का हल निकालने और किसानों को बेहत कीमत दिलाने की यथासंभव कोशिश कर रही है।'
हालांकि रालोद और किसानों की मांग के मुताबिक सरकार की ओर से एसएपी पर पुनर्विचार की संभावना कम नजर आ रही है, क्योंकि ऐसा करने पर चीनी मिलें अदालत का सहारा ले सकती हैं। इससे मामला सुलझने के बजाए और उलझ सकता है।
दूसरी तरफ पिछले वर्ष से अब तक चीनी कीमतें दोगुनी हो जाने की वजह से किसान गन्ने का मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने की मांग पर अड़े हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 157 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 93 निजी क्षेत्र की हैं। इनमें से केवल 132 चालू हालत में हैं, जिनमें वर्ष 2008-09 के दौरान पेराई हुई थी। (बीएस हिन्दी)
उत्तर प्रदेश का चीनी उद्योग गन्ने की कीमतों पर उठा बवाल खत्म करने के लिए अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की मदद ले सकता है।
इस मसले के तूल पकड़ने की वजह से प्रदेश में पेराई सीजन को रफ्तार पकड़ने में देरी हो रही है। प्रदेश की मायावती सरकार ने गन्ने की सामान्य किस्मों के लिए राज्य सलाह मूल्य (एसएपी) 165 रुपये प्रति क्विंटल रखा है, जबकि रालोद प्रदेश के किसानों को गन्ने की बेहतर कीमत दिलाने के लिए चलाए जा रहे अभियान का नेतृत्व कर रहा है।
इससे पहले गन्ने की बेहतर कीमत दिए जाने को लेकर किसानों ने नई दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया था, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से रालोद ने किया। इसके चलते केंद्र सरकार उस गन्ना अध्यादेश पर पुनर्विचार करने पर बाध्य हुई, जिसमें एसएपी और उचित एवं लाभकारी कीमत (एफआरपी) के बीच अंतर की भरपाई करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाली गई थी न कि चीनी मिलों पर।
अब रालोद ने इस मसले पर उत्तर प्रदेश में बंद का आह्वान किया है। किसानों ने 15 रुपये प्रति क्विंटल बोनस के साथ गन्ने की 180-185 रुपये प्रति क्विंटल कीमत को अस्वीकार कर दिया है। अजित सिंह की पार्टी ने प्रदेश में गन्ना उगाने वाले किसानों को उनकी फसल के लिए 280 रुपये प्रति क्विंटल चुकाए जाने की मांग को पूरा समर्थन दिया है।
बहरहाल भारतीय चीनी मिल संगठन (इस्मा) ने आज एक बैठक कर इस मसले पर आगे की रणनीति बनाने पर चर्चा की। सिंभावली शुगर्स के कार्यकारी निदेशक जी एस सी राव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हम उम्मीद जता रहे हैं कि अगले 2 दिन में यह मसला सुलझा लिया जाएगा।'
उधर किसानों में भी यह मामला सुलझाने के प्रति छटपटाहट बढ़ गई है। अगले महीने से रबी मौसम शुरू होने वाला है। ऐसे में उन पर जमीन खाली करने का दबाव बढ़ गया है। प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि मुरादाबाद, जेपी नगर, बिजनौर और बरेली जिलों की करीब 19 चीनी मिलों में पेराई शुरू हो चुकी है।
राज्य के गन्ना आयुक्त सुधीर एम बोबडे ने कहा, '14 निजी, 4 सहकारी और चीनी निगम की एक मिल समेत कुल 19 मिलों में पेराई चल रही है।' उन्होंने बताया कि मिलों को गन्ने की आपूर्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा, 'सरकार इस मसले का हल निकालने और किसानों को बेहत कीमत दिलाने की यथासंभव कोशिश कर रही है।'
हालांकि रालोद और किसानों की मांग के मुताबिक सरकार की ओर से एसएपी पर पुनर्विचार की संभावना कम नजर आ रही है, क्योंकि ऐसा करने पर चीनी मिलें अदालत का सहारा ले सकती हैं। इससे मामला सुलझने के बजाए और उलझ सकता है।
दूसरी तरफ पिछले वर्ष से अब तक चीनी कीमतें दोगुनी हो जाने की वजह से किसान गन्ने का मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने की मांग पर अड़े हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 157 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 93 निजी क्षेत्र की हैं। इनमें से केवल 132 चालू हालत में हैं, जिनमें वर्ष 2008-09 के दौरान पेराई हुई थी। (बीएस हिन्दी)
24 नवंबर 2009
एलएमई में कॉपर 14 माह के उच्च स्तर पर
आर्थिक हालात सुधरने से मांग बढ़ने की उम्मीद में निवेशकों ने कॉपर की खरीद बढ़ा दी है। लगातार मजबूती रहने से कॉपर 14 माह के उच्च स्तर पर पहुंच गया। चीन में रिफाइंड कॉपर का आयात करीब 40 फीसदी गिरने की खबर थी। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तीन माह डिलीवरी कॉपर 7,010 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गया। हालांकि बाद में मूल्य में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई। शुक्रवार को इसके भाव 6,845 डॉलर प्रति टन थे। पिछले साल सितंबर से कॉपर के दाम करीब 125 फीसदी बढ़ चुके हैं। स्टेंडर्ड चार्टर्ड बैंक के विश्लेषक डेन स्मिथ के अनुसार इस समय तेजी के लिए फंडामेंटल कोई खास मजबूत नहीं है। लेकिन निवेशकों की दिलचस्प लगातार बढ़ रही है। यही वजह है कि कॉपर के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। अमेरिकी डॉलर कमजोर रहने के कारण निवेशकों के लिए कॉपर की पोजीशन सस्ती पड़ रही है। इसी कारण निवेशकों की खरीद बढ़ रही है। मॉर्गन स्टेनली के एक नोट के अनुसार हाजिर बाजार में कॉपर की सुलभता बढ़ रही है। एलएमई में कॉपर का स्टॉक मध्य जुलाई से 65 फीसदी बढ़कर 4,24 लाख टन हो गया है। अप्रैल के बाद का एलएमई में कॉपर का यह सबसे ज्यादा स्टॉक है। (बिज़नस भास्कर)
जीरे का बुवाई रकबा घटने के अनुमान से भाव में तेजी
अक्टूबर से शुरू हुए नए सीजन में देशभर में जीर का बुवाई क्षेत्र 25 फीसदी गिरने का अनुमान है। उत्पादक राज्यों में सूखे की स्थिति के कारण जीर की खेती प्रभावित हो रही है। कारोबारियों और विश्लेषकों का अनुमान है कि इस साल जीर का बुवाई रकबा 4.75 लाख टन रहने की संभावना है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जीरा उत्पादक और निर्यातक देश है। जीरा कारोबार के प्रमुख केंद्र ऊंझा के बड़े कारोबारी अरविंद पटेल ने बताया कि अक्टूबर में बारिश तीन-चार सप्ताह की देरी से होने के कारण जीर का बुवाई एरिया गिरने का अनुमान है। गुजरात और राजस्थान में देश का 90 फीसदी जीरा पैदा किया जाता है। आमतौर पर जीर की बुवाई अक्टूबर में शुरू होती है और फसल फरवरी से अप्रैल के बीच कटाई के लिए तैयार हो जाती है। ऊंझा कमोडिटी फ्यूचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीन पटेल ने बताया कि इस समय भी मौसम जीर की खेती के अनुकूल नहीं है। ऐसे में जीरा का उत्पादन 24 लाख बोरी (प्रति बोरी 60 किलो) रहने की संभावना है। पिछले साल 28 लाख बोरी जीर का उत्पादन हुआ था। अगर मौसम में सुधार हो गया तो उत्पादन थोड़ा बढ़ सकता है।उत्पादन गिरने के अनुमान से जीर के हाजिर भाव तेजी से बढ़ रहे हैं। अक्टूबर से अब तक भाव करीब 18 फीसदी बढ़कर 13,495 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। एनसीडीईएक्स में भी जीरा वायदा करीब तीन फीसदी बढ़कर 15,425 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। कर्वी कॉमट्रेड की विश्लेषक कुमारी अमृता का अनुमान है कि फरवरी तक जीर के हाजिर भाव 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक चढ़ सकते हैं। कारोबारियों का अनुमान है कि इस समय देश में करीब आठ लाख बोरी जीर का स्टॉक बचा है जबकि पिछले साल इन दिनों 12 लाख बोरी का स्टॉक बचा था। (बिज़नस भास्कर)
उत्पादन में कमी की आशंका से नेचुरल रबर के दाम बढ़े
भारत समेत पूरी दुनिया में नेचुरल रबर का उत्पादन गिरने की संभावना और टायर उद्योग की मांग बढ़ने से पिछले एक सप्ताह में इसकी कीमत 5।4 फीसदी बढ़ चुकी हैं। कोट्टायम में सोमवार को नेचुरल रबर आरएसएस-4 के भाव बढ़कर 116 रुपये और आरएसएस-5 के भाव 112 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इस दौरान सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर के भाव बढ़कर 121-122 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए।भारतीय रबर बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान घरेलू नेचुरल रबर के उत्पादन में 9.4 फीसदी और पहले छह महीने में विश्व में नेचुरल रबर के उत्पादन में 7.4 फीसदी कमी आने का अनुमान है। चालू वर्ष में घरेलू टायर उद्योग की मांग पांच फीसदी बढ़ने के आसार हैं। उधर विश्व में आर्थिक सुधार से नेचुरल रबर की मांग बढ़ रही है जबकि चीन के आयात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2009-10 में भारत में नेचुरल रबर का उत्पादन 8.40 लाख टन रहने की संभावना है जबकि इस दौरान खपत बढ़कर 9.31 लाख टन होने का अनुमान है। जून-जुलाई और अगस्त महीने में प्रमुख रबर उत्पादक क्षेत्रों में बारिश कम होने से देश के नेचुरल रबर के उत्पादन में कमी आई है। वैसे भी रबर के पौधे काफी पुराने हो चुके हैं इसलिए भी उत्पादन घट रहा है। रबर बोर्ड पैदावार बढ़ाने के लिए पूवरेत्तर में रबर की नया प्लांटेशन कर रहा है।आटोमेटिव टायर मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन (एटमा) के महानिदेशक राजीव बुद्धिराजा ने बताया कि वर्ष 2009-10 में टायर उद्योग की मांग में पांच फीसदी का इजाफा होने की संभावना है। इस दौरान टायर उद्योग में नेचुरल रबर की खपत बढ़कर 4.5 लाख टन होगी। भारत के मुकाबले विदेश में भाव कम होने के कारण अप्रैल से अक्टूबर तक 126,472 टन नेचुरल रबर का आयात किया था जबकि इस दौरान भारत से निर्यात घटकर मात्र 2,639 टन रह गया। लेकिन अब भारत के मुकाबले विदेश में भाव काफी तेज हो गए हैं इसलिए आगामी महीनों में भारत में आयात गिरेगा और निर्यात बढ़ेगा। इसलिए घरेलू बाजार से नेचुरल रबर की मांग में इजाफा होगा। जिससे मौजूदा कीमतों में तेजी का रुख ही कायम रहने की संभावना है।रबर मर्चेट एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया कि भारत में अक्टूबर से जनवरी तक कुल पैदावार का 60 प्रतिशत उत्पादन होता है इसलिए आगामी दिनों में आवक बढ़ेगी। अक्टूबर महीने में नेचुरल रबर की पैदावार में 3.6 फीसदी का इजाफा भी हुआ है। अक्टूबर में 87,000 टन रबर का उत्पादन हुआ। लेकिन घरेलू मांग बढ़ने से भाव तेज ही बने हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी का प्रमुख कारण विश्व में नेचुरल रबर के उत्पादन में कमी के साथ ही चीन की आयात मांग में बढ़ोतरी होना है।rana@businessbhaskar.net (बिज़नस भास्कर)
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