मुंबई May 07, 2009
घरेलू सीमेंट उद्योग के लिए वित्त वर्ष 2010 में बहुत निराशाजनक स्थिति नहीं होगी। पहले ऐसा अनुमान लगाया गया था कि सीमेंट उद्योग की स्थिति बेहतर नहीं होगी।
संभावना है कि सीमेंट की कीमतों में ज्यादा गिरावट नहीं होगी। मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान भवन निर्माण की वस्तुओं में 10-15 फीसदी के मुकाबले 5 फीसदी तक की ही गिरावट होगी। इस उद्योग से जुड़े विश्लेषकों का कहना है कि औद्योगिक खिलाड़ियों द्वारा आपूर्ति पर नियंत्रण रखने की रणनीति अपनाई जाएगी।
वित्त वर्ष 2009 की आखिरी तिमाही में 50 किलोग्राम की बोरी पर कीमतों में 12-15 रुपये तक की बढ़ोतरी देखी गई और मांग में बढ़ोतरी की वजह से ही आधार मूल्य में भी बढ़ोतरी हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कीमतों में मामूली कटौती करने में मदद मिलेगी।
भारतीय सीमेंट उद्योग की रिपोर्ट में वित्तीय सेवा मुहैया कराने वाली वैश्विक कंपनी जे पी मॉगर्न ने कोयले की कम लागत और कीमतों में कम गिरावट के मद्देनजर वित्तीय वर्ष 2009-11 के लिए कमाई का अनुमान बढ़ाया है।
रिपोर्टं में कहा गया है, 'हम फिलहाल कीमतों में पहले के 10 फीसदी के मुकाबले 5 फीसदी तक की कमी का अनुमान लगा रहे हैं।' फिलहाल पूरे देश भर में सीमेंट की औसत कीमत 242 रुपये प्रति बोरी के करीब है।
घरेलू ब्रोकरेज कंपनी के एक विशेषज्ञ ने बिजनेस स्टैंडर्ड को भी समान बताई और कहा कि ज्यादा क्षमता के बावजूद उपयोग का स्तर नीचे गिरेगा। इस साल क्षमता उपयोग 86 फीसदी तक था जो आगे 80 फीसदी से भी नीचे होगा और यह वित्तीय वर्ष 2010 तक 76-78 फीसदी तक जा सकता है।
अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक अमृत लाल कपूर का कहना है, 'इस रिपोर्ट में घरेलू सीमेंट उद्योग की पूरे हालात का बयान किया गया है। कीमतों में कम गिरावट की संभावना है क्योंकि हम सीमेंट की मांग में बढ़ोतरी को लेकर सकारात्मक है।' उनका कहना है कि वित्तीय वर्ष 2009 के 8 फीसदी वृद्धि दर की तरह ही 2010 की वृद्धि भी देखी जा सकती है।
विशेषज्ञ वृद्धि को लगभग 6 फीसदी तक रहने की बात कर रहे हैं। देश का तीसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक इस तरह के सकारात्मक संकेत दे तो यह समझा जा सकता है कि उद्योग में वृद्धि हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी कंपनियां मसलन एसीसी जो सीमेंट का उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है उसने अपनी यूनिट को बंद करने का फैसला लिया जब मांग अनुकूलतम स्तर पर नहीं थी। उसने यह साफ कर दिया है कि भविष्य में कारोबार बंद करने जैसे विकल्प को खुला रखा गया है। यह देखकर किसी को आश्चर्य नहीं होगा कि कंपनियां इस विकल्प के लिए कोशिश कर रही हैं।
एसीसी के वाणिज्यिक सेवाओं के प्रमुख जे दत्ता गुप्ता का कहना है, 'यह कहना बेहद मुश्किल है कि मांग की स्थिति कैसे बदल सकती है। कोई भी अपनी यूनिट को बंद नहीं करना चाहता है और न ही कोई यह चाहता है कि उसके पास मांग के अभाव में माल का भंडार तैयार हो जाए। वह भी उस वक्त पर जब कार्यशील पूंजी बढ़ती है और नकदी प्रवाह कम होता है।'
मौजूदा वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त 3-3.5 करोड़ टन उत्पादन के आसार हैं। पिछले साल अक्टूबर तक मांग और कीमतों के बढ़ने के पहले सीमेंट सेक्टर में ज्यादा क्षमता बढ़ने का डर पैदा हो गया था। जेपी मॉगर्न ने भी वित्तीय वर्ष 2009-11 के लिए अपनी क्षमता को लगभग 9 करोड़ टन से 7.3 करोड़ टन कर दिया है।
कपूर का कहना है, 'नए माल धीरे-धीरे आएंगे और ज्यादातर इस हिस्से के बाद ही आएंगे। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि पूरी क्षमता बाजार में ही मौजूद होगी। मुझे लगता है कि 4 करोड़ टन के मुकाबले बाजार में लगभग 2-2.5 करोड़ टन हो जाएगी।'
महीने दर महीने लदाई के बारे में विशेषज्ञों का कहना है, 'लदान में कमी आ रही है लेकिन कंपनियों ने कीमतों में कोई कमी नहीं की है। यह आपूर्ति के नियंत्रण की शुरुआत करने और कीमतों का प्रबंधन करने के लिए
सालाना आधार पर सीमेंट की लदाई बढ़ गई है लेकिन महीने दर महीने लदान में 5-10 फीसदी तक की वास्तविक कमी आई है। मिसाल के तौर पर अप्रैल में आदित्य बिड़ला समूह (अल्ट्राटेक और ग्रासिम इंडस्ट्री), एसीसी और अंबुजा सीमेंट की लदान में क्रमश: 17 फीसदी, 4 फीसदी और 11 फीसदी तक क ा सुधार आया है। लेकिन कंपनियों के लदान में 5-10 फीसदी तक की कमी देखी गई है।
बेहतर रहेगी सीमेंट उद्योग की स्थिति
2010 की दूसरी छमाही में सीमेंट की कीमतों में मात्र 5 प्रतिशत तक की गिरावट के ही आसार क्षमता उपयोग 7 से 10 फीसदी घट कर 80 प्रतिशत से कम रहेगानई क्षमता जुड़ने का मतलब बाजार में सीमेंट की पर्याप्त आपूर्ति नहींकम लदान के बावजूद कीमतों में कटौती नहीं (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें