नई दिल्ली October 13, 2008
अंतरराष्ट्रीय बाजार में छायी मंदी केचलते घरेलू बाजार में इस्पात की मांग में कमी हुई है जिससे भारतीय उत्पादकों को कीमतों के साथ-साथ इस्पात के उत्पादन में खासी कमी करनी पड़ सकती है।
अगर ऐसा हुआ तो फिर इस्पात उद्योग की विकास दर दो अंकों से एकल अंक तक गिर सकती है। हालांकि इस्पात कंपनियों की लंबी अवधि की परियोजना पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।जेएसडब्ल्यू स्टील के मुख्य वित्तीय अधिकारी शेषगिरी राव ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में आयी संकट के चलते इस्पात उद्योग की विकास दर घटकर 8-9 फीसदी तक आ सकती है जबकि पहले अनुमान था कि यह 12-13 फीसदी की रफ्तार पकड़ेगी। उन्होंने कहा कि अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए इस्पात कंपनियों को अपने उत्पाद की कीमतों में कटौती करनी पड़ सकती है अन्यथा देसी बाजार सस्ते आयातित माल से पट जाएगा। पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस्पात की कीमतों में 350 डॉलर प्रति टन की गिरावट आई है।इस वजह से बड़े पैमाने पर इस्पात का इस्तेमाल करने वाले बड़े ग्राहक सस्ते उत्पाद के आयात के लिए चीन और यूक्रेन जैसे देशों का रुख कर रहे हैं। एस्सार ग्रुप के प्रवक्ता ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार के संकट से इस्पात की मांग में न सिर्फ गिरावट आई है बल्कि अमेरिका में भी कीमतों पर काफी दबाव बना है। उन्होंने कहा कि एक साथ इतने कारणों के इकट्ठा होने के कारण भारतीय बाजार पर इसका असर पड़ना तय है। टाटा ग्रुप की ब्रिटिश कंपनी कोरस पहले ही कह चुकी है कि स्थिति में बदलाव के हिसाब से यानी मांग में आए परिवर्तन के कारण वह उत्पादन के गणित में फेरबदल कर रहे हैं।जेएसडब्ल्यू स्टील के सीएफओ राव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में आए बदलाव का असर निश्चित रूप से पड़ेगा, लेकिन घरेलू कंपनियों की लंबी अवधि की परियोजनाएं इससे अप्रभावित रहेंगी। उन्होंने कहा कि 2010 तक के हमारे प्रोजेक्ट की वित्तीय संरचना सुदृढ़ है। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में हालांकि विदेशी बाजार से रकम जुटाना आसान नहीं होगा। भारत में इस्पात के सबसे बड़े उत्पादक सेल ने भी कहा है कि उनकी परियोजनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि कंपनी के पास पर्याप्त वित्त का इंतजाम है। सेल के निदेशक (वाणिज्य) एस. अहमद ने कहा कि सेल पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, हालांकि हाउसिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर इसका असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि सेल न तो विदेशी बाजार से रकम उगाहती है और न ही बड़ी मात्रा में इस्पात का निर्यात करती है। इस्पात सचिव पी. के. रस्तोगी ने यह तो स्वीकार किया कि थोड़े समय केलिए मांग में कमी आई है, लेकिन कहा कि फिलहाल इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि उत्पादन की विकास दर और कंपनियों की लंबी अवधि की परियोजनाओं पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की तरह भारत में इस्पात की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि इस महीने इस्पात की मांग रफ्तार पकड़ेगी। पिछले हफ्ते इस्पात और उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान ने कहा था कि हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट देखी गई है, लेकिन भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर विकास कर रहा है।खबरों में कहा गया है कि चीन की कई इस्पात कंपनियों ने उत्पादन में 15 फीसदी तक की कटौती करने का फैसला किया है ताकि घटती मांग और कीमत में सामंजस्य स्थापित किया जा सके। हाल ही में दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात कंपनी आर्सेलर मित्तल ने भी अपने सभी प्लांट में इस्पात उत्पादन में कटौती करने का ऐलान किया है। (BS Hindi)
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