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14 अक्तूबर 2008

इस्पात उद्योग के हालात इतनी तेजी से बदलेंगे, यकीन न था

October 14, 2008
विश्व के सबसे बड़े इस्पात निर्माता आर्सेलरमित्तल के प्रमुख लक्ष्मी निवास मित्तल ने जुलाई अंत में कहा था कि इस्पात उद्योग फिलहाल अपनी जमीन पुख्ता करने में जुटा है।
उन्होंने उम्मीद जताई थी कि 2011 तक मजबूत मांग और कमजोर आपूर्ति के चलते इस्पात के भाव और उद्योग के मुनाफे में बढ़ोतरी होगी। लेकिन जुलाई से अब तक स्थितियों में काफी परिवर्तन हो चुका है। हालत यह है कि मांग पूरी करने में सिर खपाने वाला उद्योग अब उत्पादन घटाने की सोच रहा है। उस समय मित्तल की राय से हर कोई सहमत था। सभी कह रहे थे कि इस्पात उद्योग लगातार मजबूत और स्थाई विकास करता जा रहा है। जिस समय मित्तल अपनी राय रख रहे थे उस समय इस्पात की मांग अमेरिका ओर दक्षिणी यूरोप में घटती जा रही थी। दूसरी ओर चीन और भारत जैसे उभरते देशों से इस्पात की मांग में हो रही वृद्धि के मद्देनजर मित्तल का कहना था कि उन्हें नहीं लगता कि दुनिया में इस्पात की कुल मांग में कोई खास कमी होगी। फिलहाल अमेरिकी संकट ने सब को अचंभित कर रखा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था मुश्किल में पड़ने से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ गई है।निर्माण गतिविधियां सुस्त होने से इस्पात की मांग और कीमत दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं। गर्मी में ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सुस्त होने का अनुमान जताया जा रहा था लेकिन तब इस्पात की कीमतें रेकॉर्ड बना रही थी। उस समय कहा जा रहा था कि इस्पात की मांग 8 फीसदी की दर से बढ़ेगी। जुलाई से अब तक स्टील बिलेट की कीमत में खासी कमी हो चुकी है। इस्पात उत्पादकों के लिए यह स्थिति चिंता का सबब बना हुआ है। जुलाई में हॉट रोल्ड कॉयल (एचआरसी) की कीमत 1,000 डॉलर प्रति टन थी जो अब सिमटकर 780 डॉलर प्रति टन तक आ चुकी है। हालांकि मौजूदा मूल्य पर भी निर्माताओं को ठीक ठाक मुनाफा मिल रहा है क्योंकि एचआरसी की औसत लागत अभी 650 डॉलर प्रति टन बैठ रही है।जानकारों का कहना है कि इस्पात की कीमतों में हुई इतनी तेज गिरावट से यह स्पष्ट हो गया है कि पूरी दुनिया में इस्पात की मांग इस समय बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है। अमेरिका हो या कहीं और निर्माण गतिविधियां इस समय लगभग ठप्प पड़ी हुई हैं। वाहन निर्माता कंपनियों पर भी दबाव बन रहा है कि वे अपना उत्पादन घटायें। मौजूदा मुश्किल हालात के तेजी से पांव पसारते रहने के बीच इस्पात निर्माता साल अंत तक मांग से अधिक उत्पादन होने के चलते परेशान हैं। उनके सामने उत्पादन में कटौती तेज करने के सिवाय अब शायद ही कोई चारा बचा है। आर्सेलरमित्तल जैसी बड़ी कंपनी भी कजाकिस्तान और यूक्रेन स्थित कई संयंत्रों में अपना इस्पात उत्पादन घटाने जा रही है।इधर मित्तल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इस्पात उद्योग के सामने मांग से अधिक उत्पादन की स्थिति पैदा हो सकेगी। उनके अनुसार, ऐसा इसलिए कि कई प्रस्तावित और निर्माणाधीन परियोजनाओं को वित्तीय संकट के चलते धन की कमी से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में कई परियोजनाओं के समय पर पूरा न हो पाने की पूरी आशंका है। उन्होंने कहा कि कई ऐसे समूह जो 2002 से इस्पात के मूल्यों में हो रहे तेज वृद्धि के मद्देनजर इस क्षेत्र में उतरना चाहते थे उन्हें अब इस बारे में फिर से विचार करना होगा। हालांकि मित्तल ने क्षमता विस्तार के रास्ते में आने वाली चुनौतियों के बारे में जो बातें कहीं उसके बावजूद अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि इस्पात उद्योग अगले साल भर में 5 फीसदी के दर से विकास करेगा। दक्षिण कोरियाई इस्पात निर्माता कंपनी पॉस्को के सीईओ कू तेक ली ने कहा कि कंपनियों को मंदी के लिए तैयार रहना चाहिए। ली ने कहा कि चिंता की मुख्य वजह मांग से अधिक उत्पादन का नहीं है। मुख्य सवाल यह है कि दुनिया भर की इस्पात निर्माता कंपनियां कैसे इस समस्या से जूझती है। लेकिन बात जब भारत की हो तो पूरी तस्वीर ही बदल जाती है। दुनिया भर में खतरा मांग से अधिक उत्पादन का है लेकिन भारत के हालात कुछ और ही स्थिति बयां कर रही है। यहां जितनी तेजी से उत्पादन में वृद्धि हो रही है उतनी ही तेजी से इसकी खपत भी बढ़ रही है। इस्पात आयात पर शुल्क हटा लेने से देश में इस्पात की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतें के अनुसार ही तय हो रही हैं। ऐसे में अनुमान जताया जा रहा है कि भारत इस साल इस्पात का वास्तविक आयातक बन जाएगा। पूरे विश्व में इस्पात उद्योग के हालात कितने तेजी से बदल रहे हैं उसका सुबूत तो यही है कि विश्व इस्पात संघ (डब्ल्यूएसए) द्वारा उद्योग के बारे में जारी होने वाला अनुमान अप्रैल 2009 तक टाल दिया गया है। डब्ल्यूएसए ने अपने एक बयान में कहा कि उनका उद्योग अभी भारी अनिश्चितताओं से गुजर रहा है। इसे देखते हुए तय किया गया है कि मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति तक उद्योग के बारे में कोई पूर्वानुमान जारी नहीं होगा। (BS Hindi)

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