दीपावाली-1
कुमार नरोत्तम / नई दिल्ली October 20, 2008
अमेरिकी मंदी की 'चिनगारियों' से भारत का पटाखा बाजार हिल गया है। आर्थिक मंदी की मार दिल्ली के पटाखा बाजार पर साफ नजर आती है। न व्यापारियों में जोश है और न ही खरीदारों में कोई उत्साह।
खरीदारों की कम संख्या ने बाजार की रौनक लगभग गायब कर दी है। पुरानी दिल्ली में सदर बाजार से लेकर जामा मस्जिद तक पटाखे के बाजारों में मंदी की चुभन साफ नजर आने लगी है। कुछ दिन पहले हुए बम धमाकों और आतंकी घटनाओं से भी व्यापारियों और लोगों में भय का माहौल है।मंदी का असरसदर बाजार में पटाखे की बिक्री इस साल पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी तक कम हो गई है। ग्यानी हट्टी के नदीम बताते हैं, 'इस साल बहुत कम लोग पटाखे खरीदने आ रहे हैं। पिछले साल तो दीवाली से 15 दिन पहले ही अच्छी बिक्री शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार तो बिक्री आधी से भी कम हो गई है।' श्यामलाल क्रैकर्स के मालिक रामशरण का कहना है कि बाजार में मंदी का काफी असर है। हमलोगों ने भी मंदी को देखते हुए कम ही माल मंगाया है। हमलोग मनाते हैं कि यही बिक जाए, तो सीजन का खर्च निकल जाएगा। कन्फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेडर्स के महासचिव देवराज बवेजा ने कहा, 'बाजार में मंदी का असर पूरी तरह से दिख रहा है। व्यापारियों और ग्राहकों में भी कमी साफ तौर पर देखा जा रही है। एक तरफ पटाखे की लागत बढ़ गई है, दूसरी तरफ खरीदारों की तादाद कम हो गई है। इसके परिणामस्वरूप पटाखे के व्यापारियों की हालत काफी पतली हो गई है।' उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों से आने वाले व्यापारियों की संख्या में भी अच्छी खासी कमी आई है। लोगों में पटाखे खरीदने को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। बाजार सूत्रों ने बताया कि बाजार में पैसा नहीं है। इस वजह से पटाखे में पैसा लगाना बेकार समझा जा रहा है।कितना बड़ा बाजारपटाखे का बाजार ज्यादातर असंगठित है, इसलिए कारोबार का सही आकलन करना मुश्किल है। बवेजा का कहना है कि पटाखा बाजार असंगठित श्रेणी में आता है। दिल्ली में इसका कारोबार 50 से 75 करोड़ रुपये का होता है जबकि पूरे देश में इसका बाजार 900 करोड़ रुपये का है। पटाखा बनाने वाली कंपनियों में से 80 फीसदी तो शिवकाशी और उसके आसपास के इलाकों (चेन्नई से 800 किलोमीटर दूर) में है। क्यों बढ़ी कीमतपटाखों को बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान की कीमत में पिछले छह महीने में पांच गुनी बढ़ोतरी हुई है। पटाखे बनाने में मुख्य तौर पर इस्तेमाल होने वाले सल्फर की कीमत अप्रैल में 9000 रुपये प्रति टन थी, जो अब 52000 रुपये प्रति टन हो गई है।पोटैशियम नाइट्रेट की कीमत भी 30,000 रुपये से बढ़कर 40,000 रुपये प्रति टन हो गई है। इसकी कीमतें अगले दो माह में 50000 रुपये तक पहुंचने की बात की जा रही है। रद्दी कागज की कीमत भी 15 फीसदी बढ़ गई है। (BS Hindi)
20 अक्तूबर 2008
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