06 मार्च 2010
बीज विधेयक पर असमंजस बरकरार
नई दिल्ली कैबिनेट द्वारा बीज विधेयक को स्वीकृति देने के बाद भी उसमें किए गए संशोधन को लेकर असमंजस बरकरार है। बीज विधेयक को इससे पहले तीन बार कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन तीनों बार इसे संसद से पारित नहीं कराया जा सका। दरअसल देश के तमाम नागरिक संगठन, सामाजिक संगठन एवं किसान संगठन बीज विधेयक को किसानों के लिए अहितकारी और बीज कंपनियों के हित में बताते रहे हैं। इसी कारण 28 नवंबर 2006 को प्रोफेसर राम गोपाल यादव की अध्यक्षता में गठित कृषि पर स्टैंडिंग कमेटी ने अपने सुझाव में बीज विधेयक में अनेक संशोधन किए जाने की सिफारिश की। फिलहाल असमंजस इस बात पर है कि कैबिनेट द्वारा गुरुवार को स्वीकृत बीज विधेयक में कौन-कौन से संशोधन किए गए हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद संशोधित बीज विधेयक की जानकारी नहीं मिल पाई है। रासी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी निदेशक डॉ। अरविंद कपूर ने बिजेनस भास्कर को बताया कि देश में तकरीबन 80 फीसदी बीज निजी क्षेत्र उपलब्ध करा रहा है। ऐसे में बीज उद्योग का बीज विधेयक में ध्यान रखा जाना जरूरी है। कपूर के मुताबिक बीज उद्योग की मांग थी कि निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं को भी बीज प्रमाणित करने का अधिकार प्रदान किया जाए। डॉ. कपूर का कहना है कि बीज विधेयक में किसानों पर ब्रांडेड बीजों के लेन-देन पर कोई रोक नहीं है, जो बीज उद्योग के लिए गलत है। डॉ. कपूर का कहना है कि बीज विधेयक में किसान, उत्पादक और बीज की ही उचित व्याख्या नहीं है। नए विधेयक में ये सारी बातंे शामिल हैं या नहीं, यह बीज विधेयक के खुलासे के बाद ही पता चलेगा। वहीं, भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण बीर चौधरी ने बताया कि बीज विधेयक पूरी तरह किसानों के खिलाफ है और इससे बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों एवं अन्य बड़ी बीज कंपनियों को फायदा होगा। उनका कहना है कि बीज विधेयक में बीज की किस्म, पैदावार और आनुवांशकीय शुद्धता को साबित करने की बात कही गई है, जो पूरी तरह देश के गरीब किसानों के खिलाफ है। डॉ. चौधरी का कहना है कि गरीब किसान कहां से इन सबके लिए प्रयोगशाला स्थापित करगा और कहां से टेस्ट के लिए रकम जुटा पाएगा। सबसे गलत बात यह है कि किसानों को भी अपना बीज पंजीकृत कराना होगा, ऐसे में किसान अपने घर में बीज संरक्षित नहीं रख सकेगा। डॉ. चौधरी का कहना है कि बीज विधेयक पूरी तरह किसानों के विरुद्ध है और इसे लागू करने की आवश्यकता नहीं हैं। जीन कैम्पेन की अध्यक्ष डॉ. सुमन सहाय का कहना है कि किसानों के हित में फार्मर्स राइट एक्ट में किसानों को अधिक अधिकार मिलने के खिलाफ बीज कंपनियों ने बीज विधेयक का मुद्दा खड़ा किया है। उनका कहना है कि बीज पर कानून आवश्यक है, लेकिन उसे किसानों के हित में होना जरूरी है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. देवेंद्र शर्मा का कहना है कि जब प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटी एंड फार्मर्स राइट एक्ट (पीपीवीएफआर) मौजूद है, तो बीज अधिनियम लाने की जरूरत ही नहीं है। उन्होंने कहा, त्न90 फीसदी किसान अपने बीज ही उपयोग में लाते हैं। किसान अधिक बीज खरीदें और कंपनियों को फायदा हो, इसलिए सरकार बीज विधेयक पारित करने की कोशिश में है।त्न कृषि पर स्टैंडिंग कमेटी ने तकरीबन 20 संशोधन सुझाए थे। इनमें से कितने माने गए हैं, यह कुछ दिनों में संशोधित बीज विधेयक के सार्वजनिक होने के बाद ही पता चल पाएगा।बीज पर कमेटी की सिफारिशेंकिसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले व बेचे जाने वाले बीजों का पंजीकृत बीज संबंधी न्यूनतम मानकों के अनुरूप होना किसानों के अधिकार में बाधा है। इसलिए कमेटी इस प्रावधान को रद्द करने की सिफारिश करती है। किसानों द्वारा बीज पंजीकृत न कराने के प्रावधान को बिल की शुरुआत में लिखा जाए। ग्राम पंचायत/ब्लॉक विकास कार्यालय/ जिला परिषद के जरिए या फिर खुद जिला प्रशासन किसानों की बीज किस्मों को पंजीकृत कर। किसान की परिभाषा को और व्यापक करते हुए इसमें उन्हंे भी शामिल किया जाए जो पारंपरिक बीजों का संरक्षण कर रहे हैं। बीज विधेयक में किसानों को बीज उगाने और उनके लेन-देन की अनुमति होनी चाहिए। उत्पादक व बीज की परिभाषा को भी और स्पष्ट किया जाना चाहिए। बीज सप्लाई में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए और इसे निजी कंपनियों के व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए। विधेयक में मूल्य नियामक का प्रावधान होना चाहिए, जिससे कि किसानों से बीज उत्पादक/सप्लायर मनमाफिक दाम नहीं वसूल सकें। नकली या गलत ब्रांड या मानकों की तुलना पर खर न उतरने वाले बीजों को बेचने वालों की सजा कम से कम दो लाख रुपये है जिसे बढ़ाकर दस लाख रुपये तक किया जा सकता है। तीन महीने से लेकर साल भर तक की कैद का प्रावधान भी होना चाहिए। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
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