31 मार्च 2010
जारी रह सकती है नेचुरल रबर की तेजी
आर्थिक विकास की तेजी के चलते अगले वित्त वर्ष 2010-11 में टायर उद्योग से नेचुरल रबर की खपत 9 फीसदी बढ़ने का अनुमान है जबकि इस दौरान उत्पादन 8.6 फीसदी कम होने की संभावना है। मांग के मुकाबले उत्पादन कम होने के कारण ही कोट्टायम में नेचुरल रबर के दाम रिकार्ड स्तर 152-154 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। उधर विदेशी बाजार में इसकी कीमतें भारत से भी ज्यादा हैं इसलिए आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं। वैसे भी मार्च से अगस्त तक उत्पादन का सुस्त सीजन रहेगा। ऐसे में भविष्य में मौजूदा कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। रबर के भाव में आई तेजी के कारण ही पिछले तीन महीने में टायरों के दाम करीब चार-पांच फीसदी बढ़े चुके हैं। यही हाल रहा तो टायर और महंगे ही होंगे।पिछले एक साल में नेचुरल रबर की कीमतें दोगुनी हो चुकी है। मार्च 2009 में आरएसएस-4 और आरएसएस-5 के दाम क्रमश: 75 और 74 रुपये प्रति किलो थे। जबकि शनिवार को कीमतें 154-152 रुपये प्रति किलो के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई। पिछले एक महीने में ही इनकी कीमतों में करीब 12.5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। जबकि उधर सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर के दाम बढ़कर 154-155 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए हैं।एनएमसीई एक्सचेंज में अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में 6.8 फीसदी की तेजी आकर 26 मार्च को भाव 157 रुपये प्रति किलो हो गए। रुपये के मुकाबले डॉलर की कमजोरी और विदेशी में दाम भारत के मुकाबले ज्यादा होने से आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं जिसका असर कीमतों पर देखा जा रहा है। देश में नेचुरल रबर की 62 फीसदी खपत टायर उद्योग में होती है। वित्त वर्ष 2010-11 में टायर उद्योग की मांग बढ़कर छह लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 5.5 लाख टन से ज्यादा है। रबर बोर्ड के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में नेचुरल रबर का उत्पादन 901,680 टन होने का अनुमान है जबकि इस दौरान कुल खपत बढ़कर 986,860 टन होने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के पहले ग्यारह महीनों (अप्रैल से फरवरी) के दौरान कुल उत्पादन 4.3 फीसदी कम हुआ है। इस दौरान उत्पादन घटकर 780,750 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल 816,200 टन का उत्पादन हुआ था। मार्च से अगस्त तक सुस्त सीजन होने के कारण नेचुरल रबर का उत्पादन कम रहता है। फरवरी में नेचुरल रबर का उत्पादन 51,500 टन का हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में 48,259 टन का ही उत्पादन हुआ था।उत्पादन के मुकाबले मांग ज्यादा होने से चालू वित्त में अप्रैल से फरवरी तक भारत में आयात बढ़ा है। इस दौरान निर्यात फीका रहा। जिससे घरलू बाजार में फरवरी के आखिर में स्टॉक बढ़कर पिछले साल के 216,780 टन के बजाय 269,750 टन हो गया। लेकिन आगे कीमतों में तेजी की संभावना से उत्पादकों और स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है। अप्रैल से फरवरी के दौरान कुल आयात पिछले साल के 71 हजार टन से बढ़कर 1.57 लाख टन का हुआ है। इस दौरान भारत से निर्यात 44,964 टन से घटकर 15,358 टन का ही हुआ है।rana@businessbhaskar.netबात पते कीभविष्य में कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। रबर में तेजी के कारण ही तीन महीने में टायरों के दाम करीब भ्-म् फीसदी बढ़े चुके हैं। यही हाल रहा तो टायर और महंगे ही होंगे। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
अगले महीनों में जीर के दाम और बढ़ने की संभावना
निर्यातकों की मांग बढ़ने से पिछले पंद्रह दिनों में जीर के दाम करीब पांच फीसदी बढ़ गए हैं। ऊंझा में जीरे के भाव बढ़कर 10,800-11,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस दौरान कीमतों में 100 डॉलर की तेजी आकर भाव 2300-2350 डॉलर प्रति टन हो गए। टर्की और सीरिया में नई फसल की आवक जून-जुलाई में बनेगी। ऐसे में आगामी दो महीने तक कीमतें तेज ही बनी रहने की संभावना है। मुंबई स्थित मैसर्स जैब्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरक्टर भास्कर शाह ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय जीर के दाम बढ़कर 2300-2350 डॉलर, टर्की के जीर का भाव 2500-2550 और सीरिया के जीर का भाव 2400-2450 डॉलर प्रति टन हो गए। टर्की और सीरिया में नई फसल की आवक जून-जुलाई में बनेगी तथा इन देशों के पास बकाया स्टॉक भी कम है। ऐसे में आगामी दो महीने में भारत से निर्यात मांग बराबर बनी रहेगी। इसलिए घरलू बाजार में भी दाम तेज ही बने रहने की संभावना है। मैसर्स हनुमान प्रसाद पीयूष कुमार के प्रोपराइटर वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में जीर का उत्पादन पिछले साल के 28 लाख बोरी (प्रति बोरी 55 किलो) के बराबर ही बैठने की संभावना है। ऊंझा मंडी में चालू महीने में दैनिक आवक औसतन करीब 25 हजार बोरियों की बनी हुई थी लेकिन चालू मार्च के बाकी दो दिन खाताबंदी के लिए मंडी में अवकाश रहेगा। मंडी दो अप्रैल तक बंद रहेगी। अप्रैल-मई में निर्यातकों के साथ स्टॉकिस्टों की मांग अच्छी रहने के आसार हैं। गुजरात की मंडियों में अभी तक करीब सात-आठ लाख बोरी जीर का स्टॉक हो चुका है। जबकि राजस्थान की मंडियों में भी करीब डेढ़ से दो लाख बोरी जीर का स्टॉक हो चुका है। जीरा व्यापारी कुनाल शाह ने बताया कि मंडी में जीर के दाम बढ़कर 2160-2200 रुपये प्रति 20 किलो हो गए हैं। हालांकि वायदा बाजार में पिछले एक सप्ताह में मुनाफावसूली आने से कीमतों में 4।1 फीसदी का मंदा आया है। 23 मार्च को मई वायदा अनुबंध के दाम 12,426 रुपये प्रति क्विंटल हो थे जो सोमवार को घटकर 11,913 रुपये प्रति `िंटल रह गए। अगले महीनों की निर्यात संभावनाओं के विपरीत चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान भारत से जीर के निर्यात में 10.4 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान कुल निर्यात घटकर 40,600 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 45,350 टन जीर का निर्यात हुआ था। टर्की और सीरिया में बकाया स्टॉक कम होने और भारत के मुकाबले इन देशों का भाव उंचा होने के कारण अप्रैल-मई में भारतीय जीर की निर्यात मांग बराबर बनी रहने की संभावना है। (बिसनेस भास्कर....आर अस राणा)
उत्तम शुगर मिल ने गन्ने के दाम बढ़ाए
चीनी मिलें भले ही घटती कीमतों से घाटा होने का दावा कर रही हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित उत्तम शुगर मिल ने हाल ही में गन्ने की कीमतों में 10 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 271 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। चीनी के दाम पिछले तीन महीने में 29 फीसदी घट गए हैं लेकिन मिलों को गन्ने के बाय प्रोडक्ट्स से अच्छी आय हो रही है। सूत्रों के अनुसार उत्तर शुगर मिल्स को गन्ना कम मिल रहा था जबकि मिल को बिजली से अच्छी आमदनी हो रही है इसीलिए मिल ने गन्ने की कीमतों में 10 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 271 रुपये प्रति क्विंटल कर दिए। चीनी के घरलू उत्पादन में बढ़ोतरी के अनुमान और विदेशी बाजार में चीनी के दाम घटने का असर घरलू बाजार में चीनी की कीमतों पर पड़ा है। सात जनवरी को उत्तर प्रदेश में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें बढ़कर 4250-4300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई थीं जबकि मंगलवार को एक्स-फैक्ट्री दाम घटकर 2975-3050 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उधर विदेशी बाजार में रॉ-शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) के दाम एक फरवरी को बढ़कर 30.40 सेंट प्रति पाउंड हो गए थे जो मंगलवार को घटकर 17.91 सेंट प्रति पाउंड रह गए। इसी तरह से व्हाइट चीनी के दाम भी 759 डॉलर प्रति टन से घटकर 520 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। उद्योग सूत्रों के अनुसार विश्व में वर्ष 2009-10 के दौरान चीनी का उत्पादन वर्ष 2008-09 के मुकाबले 4.52 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। प्रमुख उत्पादक देश ब्राजील के साथ भारत में भी चीनी का उत्पादन पूर्व अनुमान से बढ़ेगा। इसीलिए भारत की अंतरराष्ट्रीय बाजार से आयात मांग कम हो गई है जिसका असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों पर देखा जा रहा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार देश में चीनी का उत्पादन पूर्व अनुमान 160 लाख टन से बढ़कर 168.45 लाख टन से ज्यादा होने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में देश में चीनी का उत्पादन घटकर मात्र 147 लाख टन रह गया था। देश में चीनी की सालाना खपत 225-230 लाख टन की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी काफी मात्रा में गन्ना बचा हुआ है। ऐसे में उम्मीद है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछमिलों में पेराई अप्रैल के आखिर तक जारी रह सकती है। (बिज़नस भास्कर ....आर अस राणा)
डॉलर कमजोर पड़ने से सोने के मूल्य में गिरावट
सोने के दाम विदेशी और घरेलू दोनों ही बाजारों में गिरते नजर आए। दिल्ली सराफा बाजार में सोने की कीमत में 85 रुपये प्रति दस ग्राम की नरमी दर्ज की गई। मंगलवार को दिल्ली बाजार में सोने का भाव घटकर 16,525 रुपये प्रति दस ग्राम रह गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1,111 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा निवेशकों की बिकवाली आने से घटकर 1,103 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया।विदेश में सोने के दाम गिरने की मुख्य वजह यूरो के मुकाबले डॉलर का मजबूत होना रहा। यूरो जोन में ग्रीस और अन्य देशों के कर्ज को लेकर चिंता का माहौल रहने यूरो कमजोर पड़ गया। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी ब्याज दर में बढ़ोतरी होने से डॉलर में कीमत रखने वाले बिना ब्याज के एसेट जैसे सोने में निवेश का आकषण कम हो जाएगा।उधर एशियाई कारोबारियों का कहना है कि हाजिर बाजार में भी सोने की मांग हल्की चल रही है। हालांकि भारत में अप्रैल के दौरान शादी-विवाह की मांग निकलने की उम्मीद की जा रही है। दिल्ली सराफा बाजार में मंगलवार को चांदी की कीमतों में 260 रुपये की तेजी आकर भाव 27,200 रुपये किलो हो गए। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव 17।22 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा बढ़कर 17.45 डॉलर प्रति औंस हो गया था लेकिन ऊंचे दाम पर बिकवाली से 17.25 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। (बिज़नस भास्कर)
चार दिनों में चना हुआ 10 फीसदी महंगा
मुंबई March 30, 2010
स्टॉक सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद और किसानों की बाजार से दूरी के चलते पिछले एक सप्ताह के अंदर चना 10 फीसदी से भी ज्यादा महंगा हो चुका है।
चने के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में इस बार उत्पादन कम होने की खबरों ने भी कीमतों को हवा देनी शुरू कर दी है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार देश में पिछले साल की अपेक्षा चने का उत्पादन ज्यादा होने वाला है।
नवंबर महीने के अंत में चने का भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। इसके बाद चने के दाम गिरने शुरू हुए और 25 मार्च तक 2133 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए, लेकिन इसके बाद चने की कीमतों में दोबारा मजबूती का दौर शुरू हो गया और चार दिनों के अंदर चने के भाव करीब 10 फीसदी उछलकर फिलहाल 2350 रुपये प्रति क्ंविटल के आस पास चल रहे हैं।
चने के भाव में तेजी से आ रही मजबूती की वजह कारोबारियों की स्टॉक सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद को माना जा रहा है। ऐंजेल ब्रोकिंग में कमोडिटी हेड अमर सिंह के अनुसार चने के दाम बढ़ने की वजह बाजार में फैली तीन प्रमुख बातें हैं। पहला, राजस्थान जो देश का सबसे बड़ा चना उत्पादक राज्य है वहां इस बार चने की पैदावार कम होने की खबरें आ रही है।
दूसरा, कारोबारियों ने सरकार के ऊपर जो दबाव बनाया है उससे लगता है कि सरकार जल्द ही चने की स्टॉक सीमा बढ़ा या फिर खत्म कर सकती है जिससे कारोबारियों के बीच खरीदारी का उत्साह दिखाई देने लगा है और तीसरी बात यह है कि एक महीने पहले महंगाई को लेकर सरकार जितनी सख्त दिख रही थी उसमें अब नरमी दिखाई दे रही है जिससे स्टॉकिस्ट फिर से सक्रिय होने लगे हैं।
लेकिन सिंह का मानना है कि यह तेजी ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह सकती है, क्योंकि इस बार देश में चने की पैदावार अधिक होने की बात कही जा रही है। अगर एक प्रदेश में फसल थोड़ी कमजोर भी रहती है, तो उसका बाजार में ज्यादा दिन तक असर नहीं रहने वाला है।
हालांकि अभी भी देश की ज्यादातर मंडियों में चने की आवक पिछले साल की अपेक्षा करीब 20-25 फीसदी कम है। कारोबारी आवक कम होने की वजह हाल ही में चने की कीमतों में भारी गिरावट को मान रहे हैं।
एपीएमसी के चना कारोबारियों का कहना है कि दो महीने पहले चना 2800 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बिक रहा था, लेकिन महंगाई के खिलाफ सरकार की सख्ती और इस बार उत्पादन ज्यादा होने की खबर से चने के भाव गिरकर 2100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे।
इस दर पर चने की बिक्री करना किसानों और स्टॉकिस्टों को घाटे का सौदा लग रहा है जिसके कारण वह फिलहाल बाजार से दूर ही रहना चाहते हैं क्योंकि उनको पता है कि अगले दो महीनों में चना 2400 रुपये प्रति क्विंटल के आस-पास बिकना शुरू हो जाएगा।
इसके अलावा सरकार की तरफ से तय की गई स्टॉक सीमा के कारण कारोबारी भी चने की खरीद में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे थे, क्योंकि उनके पास पहले ही चने का स्टॉक जमा हुआ है। लेकिन अब माहौल बदलता दिखाई दे रहा है और यही वजह है कि चने के दाम ऊपर जाना शुरू हो गए हैं।
चार दिनों के अंदर चने की कीमतों में 10 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी की एक प्रमुख वजह किसानों की बाजार से दूरी को भी माना जा रहा है। शेअरखान कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल के अनुसार किसानों का माल पिछले साल की अपेक्षा बाजार में कम आ रहा है, क्योंकि इस बार फसल करीब 15 से 20 दिन देरी से तैयार हुई है जिसके चलते अभी ज्यादातर किसानों का माल खेत-खालिहान में ही पड़ा हुआ है।
दूसरी बात दाम कम होने के कारण किसान इस भाव पर अपनी फसल बेचना नहीं चाह रहे हैं, जिससे वह बाजार में उतना ही माल लेकर आ रहे हैं जितने में उनका काम चल जा रहा है। स्टॉक सीमा खत्म करने की सुगबुगाहट मात्र से ही कारोबारी खरीदारी करने में तेजी दिखाने लगे हैं।
भाव में उतार-चढ़ाव का रुख
नवंबर में 3,000 रुपये क्विंटल तक चढ़ा भाव मार्च की शुरुआत में 2133 रुपये तक गिरा थाभाव दोबारा मजबूत होकर 2350 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचे मंडियों में आवक पिछले साल के मुकाबले 20-25 फीसदी कम (बीएस हिंदी)
स्टॉक सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद और किसानों की बाजार से दूरी के चलते पिछले एक सप्ताह के अंदर चना 10 फीसदी से भी ज्यादा महंगा हो चुका है।
चने के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में इस बार उत्पादन कम होने की खबरों ने भी कीमतों को हवा देनी शुरू कर दी है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार देश में पिछले साल की अपेक्षा चने का उत्पादन ज्यादा होने वाला है।
नवंबर महीने के अंत में चने का भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। इसके बाद चने के दाम गिरने शुरू हुए और 25 मार्च तक 2133 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए, लेकिन इसके बाद चने की कीमतों में दोबारा मजबूती का दौर शुरू हो गया और चार दिनों के अंदर चने के भाव करीब 10 फीसदी उछलकर फिलहाल 2350 रुपये प्रति क्ंविटल के आस पास चल रहे हैं।
चने के भाव में तेजी से आ रही मजबूती की वजह कारोबारियों की स्टॉक सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद को माना जा रहा है। ऐंजेल ब्रोकिंग में कमोडिटी हेड अमर सिंह के अनुसार चने के दाम बढ़ने की वजह बाजार में फैली तीन प्रमुख बातें हैं। पहला, राजस्थान जो देश का सबसे बड़ा चना उत्पादक राज्य है वहां इस बार चने की पैदावार कम होने की खबरें आ रही है।
दूसरा, कारोबारियों ने सरकार के ऊपर जो दबाव बनाया है उससे लगता है कि सरकार जल्द ही चने की स्टॉक सीमा बढ़ा या फिर खत्म कर सकती है जिससे कारोबारियों के बीच खरीदारी का उत्साह दिखाई देने लगा है और तीसरी बात यह है कि एक महीने पहले महंगाई को लेकर सरकार जितनी सख्त दिख रही थी उसमें अब नरमी दिखाई दे रही है जिससे स्टॉकिस्ट फिर से सक्रिय होने लगे हैं।
लेकिन सिंह का मानना है कि यह तेजी ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह सकती है, क्योंकि इस बार देश में चने की पैदावार अधिक होने की बात कही जा रही है। अगर एक प्रदेश में फसल थोड़ी कमजोर भी रहती है, तो उसका बाजार में ज्यादा दिन तक असर नहीं रहने वाला है।
हालांकि अभी भी देश की ज्यादातर मंडियों में चने की आवक पिछले साल की अपेक्षा करीब 20-25 फीसदी कम है। कारोबारी आवक कम होने की वजह हाल ही में चने की कीमतों में भारी गिरावट को मान रहे हैं।
एपीएमसी के चना कारोबारियों का कहना है कि दो महीने पहले चना 2800 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बिक रहा था, लेकिन महंगाई के खिलाफ सरकार की सख्ती और इस बार उत्पादन ज्यादा होने की खबर से चने के भाव गिरकर 2100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे।
इस दर पर चने की बिक्री करना किसानों और स्टॉकिस्टों को घाटे का सौदा लग रहा है जिसके कारण वह फिलहाल बाजार से दूर ही रहना चाहते हैं क्योंकि उनको पता है कि अगले दो महीनों में चना 2400 रुपये प्रति क्विंटल के आस-पास बिकना शुरू हो जाएगा।
इसके अलावा सरकार की तरफ से तय की गई स्टॉक सीमा के कारण कारोबारी भी चने की खरीद में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे थे, क्योंकि उनके पास पहले ही चने का स्टॉक जमा हुआ है। लेकिन अब माहौल बदलता दिखाई दे रहा है और यही वजह है कि चने के दाम ऊपर जाना शुरू हो गए हैं।
चार दिनों के अंदर चने की कीमतों में 10 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी की एक प्रमुख वजह किसानों की बाजार से दूरी को भी माना जा रहा है। शेअरखान कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल के अनुसार किसानों का माल पिछले साल की अपेक्षा बाजार में कम आ रहा है, क्योंकि इस बार फसल करीब 15 से 20 दिन देरी से तैयार हुई है जिसके चलते अभी ज्यादातर किसानों का माल खेत-खालिहान में ही पड़ा हुआ है।
दूसरी बात दाम कम होने के कारण किसान इस भाव पर अपनी फसल बेचना नहीं चाह रहे हैं, जिससे वह बाजार में उतना ही माल लेकर आ रहे हैं जितने में उनका काम चल जा रहा है। स्टॉक सीमा खत्म करने की सुगबुगाहट मात्र से ही कारोबारी खरीदारी करने में तेजी दिखाने लगे हैं।
भाव में उतार-चढ़ाव का रुख
नवंबर में 3,000 रुपये क्विंटल तक चढ़ा भाव मार्च की शुरुआत में 2133 रुपये तक गिरा थाभाव दोबारा मजबूत होकर 2350 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचे मंडियों में आवक पिछले साल के मुकाबले 20-25 फीसदी कम (बीएस हिंदी)
एफएमसी : अप्रैल से गैर कानूनी कारोबार पर 5 लाख तक का दंड
नई दिल्ली March 30, 2010
कमोडिटी बाजार में गैरकानूनी कारोबार पर रोक लगाने के लिए नियामक इकाई वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने एक्सचेंजों से ऐसे काम में लिप्त ब्रोकरों पर 1-5 लाख रुपये तक का दंड लगाने को कहा है।
यह व्यवस्था 1 अप्रैल से लागू होगी। गैरकानूनी कारोबार के लिए दंड की घोषणा के साथ दूसरे अपराधों के लिए दंड का निर्धारण करते हुए एफएमसी ने सभी कमोडिटी एक्सचेंजों के लिए समान दंड व्यवस्था की भी घोषणा की है।
एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'एक्सचेंजों द्वारा मान दंड व्यवस्था अपनाए जाने से कारोबारियों के हितों की बेहतर रक्षा की जा सकेगी। जैसा कि पहले गैर कानूनी कारोबार के लिए कोई संगठित दंड व्यवस्था नहीं थी, हमने अपने सदस्यों से ऐसे कारोबार से जुड़े ब्रोकरों पर कम से कम 1 लाख रुपये और ज्यादा से ज्यादा 5 लाख रुपये का दंड लगाने को कहा है।'
यह दंड व्यवस्था 1 अप्रैल से लागू हो रही है। अलग-अलग कमोडिटी एक्सचेंजों की तरफ से एक ही अपराध के लिए अलग-अलग दंड लगाए जाने के प्रचलन को देखते हुए एफएमसी ने समान संगठित दंड व्यवस्था की घोषणा की है। यह भी देखा गया है कि कुछ अपराधों के लिए एक्सचेंज काफी कम दंड ले रहे हैं।
मसलन मौजूदा समय में किसी ग्राहक को एक से ज्यादा पहचान कोड देने पर ब्रोकरों पर एमसीएक्स 10,000 रुपये का अर्थदंड लगा रहा है। वहीं, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई में इसी अपराध पर कोई अर्थदंड नहीं है। 1 अप्रैल से इस तरह के मामलों में सभी एक्सचेंजों से 10,000 रुपये प्रति ग्राहक दंड लेने को कहा गया है।
इसी तरह एक ग्राहक की पूंजी का इस्तेमाल दूसरे ग्राहक के अकाउंट में कारोबार के लिए करने पर 25,000 रुपये का एक समान दंड निर्धारित किया गया है। मौजूदा समय में इस अपराध पर 10,000-50,000 रुपये के बीच दंड लगाया जाता है। ग्राहक कोड का सही प्रबंधन न होने पर दंड व्यवस्था 10,000 रुपये प्रति ग्राहक रखी गई है।
एफएमसी के अधिकारी का कहना है, 'एक्सचेंजों में कारोबार को व्यवस्थित करने और जरूरी अर्थदंड तय करने के लिए व्यवस्था में बदलाव किए गए हैं। साथ ही नियामक अव्यवस्था दूर करने के लिए भी यह कदम उठाया गया है।'
मौजूदा समय में 4 राष्ट्रीय स्तर और 19 स्थानीय स्तर के कमोडिटी एक्सचेंजों में कारोबार हो रहा है। 15 फरवरी तक 2009-10 में इन एक्सचेंजों का कुल कारोबार 73,50,974 करोड़ रुपये रहा था। पिछले साल की तुलना में यह 50 फीसदी ज्यादा है। (बीएस हिंदी)
कमोडिटी बाजार में गैरकानूनी कारोबार पर रोक लगाने के लिए नियामक इकाई वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने एक्सचेंजों से ऐसे काम में लिप्त ब्रोकरों पर 1-5 लाख रुपये तक का दंड लगाने को कहा है।
यह व्यवस्था 1 अप्रैल से लागू होगी। गैरकानूनी कारोबार के लिए दंड की घोषणा के साथ दूसरे अपराधों के लिए दंड का निर्धारण करते हुए एफएमसी ने सभी कमोडिटी एक्सचेंजों के लिए समान दंड व्यवस्था की भी घोषणा की है।
एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'एक्सचेंजों द्वारा मान दंड व्यवस्था अपनाए जाने से कारोबारियों के हितों की बेहतर रक्षा की जा सकेगी। जैसा कि पहले गैर कानूनी कारोबार के लिए कोई संगठित दंड व्यवस्था नहीं थी, हमने अपने सदस्यों से ऐसे कारोबार से जुड़े ब्रोकरों पर कम से कम 1 लाख रुपये और ज्यादा से ज्यादा 5 लाख रुपये का दंड लगाने को कहा है।'
यह दंड व्यवस्था 1 अप्रैल से लागू हो रही है। अलग-अलग कमोडिटी एक्सचेंजों की तरफ से एक ही अपराध के लिए अलग-अलग दंड लगाए जाने के प्रचलन को देखते हुए एफएमसी ने समान संगठित दंड व्यवस्था की घोषणा की है। यह भी देखा गया है कि कुछ अपराधों के लिए एक्सचेंज काफी कम दंड ले रहे हैं।
मसलन मौजूदा समय में किसी ग्राहक को एक से ज्यादा पहचान कोड देने पर ब्रोकरों पर एमसीएक्स 10,000 रुपये का अर्थदंड लगा रहा है। वहीं, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई में इसी अपराध पर कोई अर्थदंड नहीं है। 1 अप्रैल से इस तरह के मामलों में सभी एक्सचेंजों से 10,000 रुपये प्रति ग्राहक दंड लेने को कहा गया है।
इसी तरह एक ग्राहक की पूंजी का इस्तेमाल दूसरे ग्राहक के अकाउंट में कारोबार के लिए करने पर 25,000 रुपये का एक समान दंड निर्धारित किया गया है। मौजूदा समय में इस अपराध पर 10,000-50,000 रुपये के बीच दंड लगाया जाता है। ग्राहक कोड का सही प्रबंधन न होने पर दंड व्यवस्था 10,000 रुपये प्रति ग्राहक रखी गई है।
एफएमसी के अधिकारी का कहना है, 'एक्सचेंजों में कारोबार को व्यवस्थित करने और जरूरी अर्थदंड तय करने के लिए व्यवस्था में बदलाव किए गए हैं। साथ ही नियामक अव्यवस्था दूर करने के लिए भी यह कदम उठाया गया है।'
मौजूदा समय में 4 राष्ट्रीय स्तर और 19 स्थानीय स्तर के कमोडिटी एक्सचेंजों में कारोबार हो रहा है। 15 फरवरी तक 2009-10 में इन एक्सचेंजों का कुल कारोबार 73,50,974 करोड़ रुपये रहा था। पिछले साल की तुलना में यह 50 फीसदी ज्यादा है। (बीएस हिंदी)
29 मार्च 2010
महंगी होने के बाद भी चमकी प्लेटिनम ज्वैलरी
सोने और चांदी से महंगी होने के बावजूद प्लेटिनम ज्वैलरी के कारोबार में इजाफा हो रहा है। जानकारों के अनुसार वर्ष 2010-11 में प्लेटिनम की खपत बढ़कर 12-13 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष 10 टन की खपत हुई थी। ग्राहकों के प्लेटिनम ज्वैलरी की तरफ बढ़ते आकर्षण को देखते हुए देश के कुछ बड़े ज्वैलर्स भी प्लेटिनम ज्वैलरी के कारोबार में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। मुंबई स्थित ऑरा ज्वैलरी के मुख्य कार्यकारी निदेशक वी। जैन. ने बिजनेस भास्कर को बताया कि प्लेटिनम ज्वैलरी की तरफ युवाओं का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। हमारी कुल बिक्री में प्लेटिनम ज्वैलरी की हिस्सेदारी करीब आठ फीसदी है जो 2010-11 में बढ़कर 11 से 12 फीसदी होने का अनुमान है। हालांकि सोने और चांदी के मुकाबले प्लेटिनम की कीमत ज्यादा होने के कारण एक खास वर्ग के लोग ही प्लेटिनम ज्वैलरी की खरीद कर रहे हैं। गीतांजलि ग्रुप की जीएम मार्केटिंग शारदा उनियाल ने बताया कि हमने प्लेटिनम ज्वैलरी में युवा ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए नए डिजाइन बाजार में उतार हैं। चूंकि सोने के मुकाबले इसके दाम ज्यादा है इसलिए प्लेटिनम ज्वैलरी की खरीद सेलिब्रेटी या उच्च आय वर्ग वाले परिवार ही कर रहे हैं। तनिष्क के मार्केटिंग हेड गौरव भुवन ने बताया कि जिस तरह से एक खास वर्ग के लोगों का प्लेटिनम ज्वैलरी की ओर रुझान बढ़ रहा है उसको देखते हुए वित्त वर्ष 2010-11 में तनिष्क भी प्लेटिनम ज्वैलरी का कारोबार शुरू करगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक सप्ताह में प्लेटिनम की कीमतों में 2.6 फीसदी का मंदा आया है। 17 मार्च को विदेशी बाजार में प्लेटिनम का दाम 1638 डॉलर प्रति औंस था जोकि 26 मार्च को घटकर 1595 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। घरलू बाजार में पिछले तीन महीने में प्लेटिनम की कीमतें 5.1 फीसदी घटी है। चार जनवरी को मुंबई में प्लेटिनम का दाम 2326 रुपये प्रति ग्राम थे जोकि 26 मार्च को घटकर 2207 रुपये प्रति ग्राम रह गए। सोने के मुकाबले प्लेटिनम करीब 30 फीसदी महंगा है। सोने के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1106 डॉलर प्रति औंस चल रहे हैं। एंजेल कमोडिटी के बुलियन विशेषज्ञ अनुज गुप्ता ने बताया कि पिछले एक साल में घरलू बाजार में प्लेटिनम ज्वैलरी के कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। सोने और चांदी की तरह प्लेटिनम के दाम घरलू बाजार में अंतरराष्ट्रीय बाजार की तेजी-मंदी के हिसाब से घटते-बढ़ते हैं। पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्लेटिनम की कीमतों में 49 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जापान और चीन में प्लेटिनम ज्वैलरी का प्रचलन ज्यादा है तथा अब धीर-धीर भारत में भी बढ़ रहा है। भारत में प्लेटिनम का ज्वैलरी के मुकाबले ऑटो मोबाइल क्षेत्र में ज्यादा उपयोग होता है। चूंकि ऑटो सेक्टर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है इसलिए भारत में प्लेटिनम की खपत भी बढ़ रही है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
जारी रह सकती है नेचुरल रबर की तेजी
आर्थिक विकास की तेजी के चलते अगले वित्त वर्ष 2010-11 में टायर उद्योग से नेचुरल रबर की खपत 9 फीसदी बढ़ने का अनुमान है जबकि इस दौरान उत्पादन 8.6 फीसदी कम होने की संभावना है। मांग के मुकाबले उत्पादन कम होने के कारण ही कोट्टायम में नेचुरल रबर के दाम रिकार्ड स्तर 152-154 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। उधर विदेशी बाजार में इसकी कीमतें भारत से भी ज्यादा हैं इसलिए आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं। वैसे भी मार्च से अगस्त तक उत्पादन का सुस्त सीजन रहेगा। ऐसे में भविष्य में मौजूदा कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। रबर के भाव में आई तेजी के कारण ही पिछले तीन महीने में टायरों के दाम करीब चार-पांच फीसदी बढ़े चुके हैं। यही हाल रहा तो टायर और महंगे ही होंगे।पिछले एक साल में नेचुरल रबर की कीमतें दोगुनी हो चुकी है। मार्च 2009 में आरएसएस-4 और आरएसएस-5 के दाम क्रमश: 75 और 74 रुपये प्रति किलो थे। जबकि शनिवार को कीमतें 154-152 रुपये प्रति किलो के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई। पिछले एक महीने में ही इनकी कीमतों में करीब 12.5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। जबकि उधर सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर के दाम बढ़कर 154-155 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए हैं।एनएमसीई एक्सचेंज में अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में 6.8 फीसदी की तेजी आकर 26 मार्च को भाव 157 रुपये प्रति किलो हो गए। रुपये के मुकाबले डॉलर की कमजोरी और विदेशी में दाम भारत के मुकाबले ज्यादा होने से आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं जिसका असर कीमतों पर देखा जा रहा है। देश में नेचुरल रबर की 62 फीसदी खपत टायर उद्योग में होती है। वित्त वर्ष 2010-11 में टायर उद्योग की मांग बढ़कर छह लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 5.5 लाख टन से ज्यादा है। रबर बोर्ड के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में नेचुरल रबर का उत्पादन 901,680 टन होने का अनुमान है जबकि इस दौरान कुल खपत बढ़कर 986,860 टन होने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के पहले ग्यारह महीनों (अप्रैल से फरवरी) के दौरान कुल उत्पादन 4.3 फीसदी कम हुआ है। इस दौरान उत्पादन घटकर 780,750 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल 816,200 टन का उत्पादन हुआ था। मार्च से अगस्त तक सुस्त सीजन होने के कारण नेचुरल रबर का उत्पादन कम रहता है। फरवरी में नेचुरल रबर का उत्पादन 51,500 टन का हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में 48,259 टन का ही उत्पादन हुआ था।उत्पादन के मुकाबले मांग ज्यादा होने से चालू वित्त में अप्रैल से फरवरी तक भारत में आयात बढ़ा है। इस दौरान निर्यात फीका रहा। जिससे घरलू बाजार में फरवरी के आखिर में स्टॉक बढ़कर पिछले साल के 216,780 टन के बजाय 269,750 टन हो गया। लेकिन आगे कीमतों में तेजी की संभावना से उत्पादकों और स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है। अप्रैल से फरवरी के दौरान कुल आयात पिछले साल के 71 हजार टन से बढ़कर 1.57 लाख टन का हुआ है। इस दौरान भारत से निर्यात 44,964 टन से घटकर 15,358 टन का ही हुआ है।rana@businessbhaskar.netबात पते कीभविष्य में कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। रबर में तेजी के कारण ही तीन महीने में टायरों के दाम करीब भ्-म् फीसदी बढ़े चुके हैं। यही हाल रहा तो टायर और महंगे ही होंगे। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
चीनी सस्ती होने से गुड़ के भी दाम 20 फीसदी गिर
चीनी की कीमतों में आई भारी गिरावट के असर से गुड़ भी सस्ता हो रहा है। इसके दाम करीब 20 फीसदी घट चुके हैं। दिल्ली थोक बाजार में बीते सप्ताह गुड़ चाकू के भाव घटकर 2400-2500 रुपये और पेड़ी के दाम 2450-2550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। प्रमुख मंडी मुजफ्फरनगर में गुड़ का स्टॉक 46 फीसदी ज्यादा हो चुका है जबकि अभी दैनिक आवक बराबर बनी हुई है। चीनी की कीमतें जनवरी से अभी तक करीब 28 फीसदी घट चुकी हैं। ऐसे में आगामी दिनों में गुड़ की मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की ही संभावना है। देशराज राजेंद्र कुमार के प्रोपराइटर देशराज ने बताया कि मुजफ्फरनगर मंडी में स्टॉक ज्यादा होने और चीनी की कीमतों में आई भारी गिरावट का असर गुड़ की कीमतों में पर पड़ रहा है। चीनी के दाम बढ़ने से मध्य जनवरी में दिल्ली बाजार में गुड़ चाकू के भाव बढ़कर 2900-3000 रुपये और पेड़ी के 2950-3150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। लेकिन उसके बाद से लगातार चीनी के दाम गिर हैं। जिससे गुड़ की मांग काफी कम हो गई है तथा भावों में गिरावट आने से स्टॉकिस्टों की बिकवाली भी बढ़ गई। शुक्रवार को गुड़ चाकू के भाव घटकर 2400-2500 रुपये और पेड़ी के दाम 2450-2550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब की कमजोर मांग को देखते हुए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। फेडरशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि मुजफ्फरनगर मंडी में गुड़ का स्टॉक बढ़कर 14।60 लाख कट्टों (प्रति कट्टा 40 किलो) हो चुका है, जो पिछले साल के कुल स्टॉक से भी 46 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल मंडी में मात्र 10 लाख कट्टों का ही स्टॉक हो पाया था। अभी मंडी में दैनिक आवक करीब आठ से दस हजार कट्टों की बनी हुई है। इसलिए आगामी दिनों में करीब एक-सवा लाख कट्टे और भी स्टॉक में जाने की संभावना है। हालांकि आगामी दिनों में चीनी मिलों में कब तक पेराई जारी रहेगी, इस पर भी स्टॉक की स्थिति निर्भर करगी। माना जा रहा है कि अप्रैल के मध्य तक मिलों में पेराई जारी रह सकती है। अगर चीनी मिलों में पेराई जल्दी बंद हो गई तो गुड़ का उत्पादन बढ़ जाएगा। इससे स्टॉक तेजी से बढ़ने पर मूल्य में और भी गिरावट आ जाएगी। उधर एनसीडीइएक्स में जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में गुड़ के दाम 12.4 फीसदी घटे हैं। दो मार्च को वायदा में दाम 1110 रुपये प्रति 40 किलो थे जोकि शुक्रवार को घटकर 972 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। गुड़ व्यापारी हरि शंकर मूंदड़ा ने बताया कि मुजफ्फरनगर मंडी में जनवरी में गुड़ चाकू के दाम बढ़कर 1100-1200 रुपये प्रति मन (प्रति मन 40 किलो) हो गए थे जो घटकर 840-930 रुपये प्रति मन रह गए। इसी तरह खुरपापाड़ गुड़ के दाम भी 920-1000 रुपये से घटकर 810-815 रुपये प्रति मन रह गए। शक्कर की कीमतें भी इस दौरान 1200 रुपये से घटकर 1000-1010 रुपये प्रति 40 किलो रह गई।बात पते कीअप्रैल मध्य तक मिलों में पेराई जारी रह सकती है। अगर चीनी मिलों में पेराई जल्दी बंद हो गई तो गुड़ उत्पादन बढ़ जाएगा। इससे स्टॉक तेजी से बढ़ने पर मूल्य में और गिरावट आ जाएगी। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
दालों पर फिर से चढ़ने लगा महंगाई का रंग, 10 फीसदी की तेजी
मुंबई March 27, 2010
खाद्य पदार्थो की महंगाई के चलते नवंबर-दिसंबर में आम लोगों की थाली से दाल गायब हो चुकी थी।
कुछ सरकारी प्रयासों और नई फसल के बेहतरीन आगाज से दालों की कीमतें गिरना शुरू हो गई थी जिससे लग रहा था कि दाल एक बार फिर से आम आदमी के खाने में शामिल हो जाएगी।
दलहन की प्रमुख फसल अरहर और चने का अच्छा उत्पादन होने के बावजूद पिछले 15 दिनों के अंदर लगभग सभी दालों की कीमतें 10 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। जबकि खुदरा बाजार में लगभग सभी दालों की कीमतों में प्रति किलोग्राम 10 से 15 रुपये का इजाफा हो चुका है।
अरहर, चना, मसूर, उड़द, मटर दाल की थोक कीमतों में पिछले 15 दिन में करीबन 10 से 15 फीसदी उछाल दर्ज की जा चुकी है जबकि खुदरा बाजार में प्रति किलोग्राम 10 से 20 रुपये तक की बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जिससे महंगाई की मार से राहत की आस लगाए बैठा आम इंसान दोबारा महंगाई के मकड़ जाल में फंसने लगा है।
पिछले साल दाल की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी अरहर (तुअर) दाल में हुई थी। नवंबर महीने में थोक बाजार में अरहर दाल 6200 रुपये प्रति क्विंटल और खुदरा बाजार में 100 रुपये प्रति किलोग्राम के आस-पास बिक रही थी। लेकिन थोक बाजार में अरहर दाल की कीमतें फरवरी महीने में गिरकर 3500 रुपये क्विंटल और खुदरा बाजार में 52 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गई थी।
बाजार में नई फसल की आवक शुरू होने और इस बार उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा होने की खबर से उम्मीद की जा रही थी कि मार्च-अप्रैल में अरहर दाल की कीमतों में और गिरावट देखने को मिलेगी, लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा। अरहर दाल की कीमतें एक बार फिर से ऊपर की ओर जाना शुरू हो गई हैं।
एक मार्च को थोक बाजार में 3500 रुपये क्विंटल बिकने वाली अरहर दाल इस समय 4500 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है, जबकि खुदरा बाजार में 55 रुपये किलो तक पहुंचने के बाद अरहर दाल इस समय 70 रुपये प्रति किलोग्राम पर भी मिलना मुश्किल हो गई है।
दाल की कीमतें सिर्फ अरहर दाल की नहीं बढ़ी है बल्कि सभी दालों में महंगाई ने दोबारा छौंक लगाना शुरू कर दिया है। रबी सीजन की दूसरी सबसे प्रमुख दलहन फसल चना का उत्पादन इस बार पिछले साल से बेहतर बताया जा रहा है इसके बावजूद चना दाल की कीमतों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।
थोक बाजार में चना नवंबर में 2600 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था इसके बाद फरवरी के अंतिम सप्ताह में चना दाल गिरकर 2100 रुपये प्रति क्विंटल के आस पास बिक रही थी लेकिन मार्च में चना दोबारा मजबूत होना शुरू हो गया और इस समय थोक बाजार में 2200 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा है। दूसरी तरफ खुदरा बाजार में 35 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंचने वाली चना दाल दोबारा 50 रुपये प्रति किलोग्राम के आस पास बेची जा रही है।
मटर दाल की कीमतें भी थोक बाजार में गिरकर फरवरी में 1350 रुपये प्रति तक पहुंच गई थी जो दोबारा बढ़कर 1410 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है, जबकि खुदरा बाजार में 28 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंचने वाली दाल पिछले 15 दिनों में बढ़कर 35 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। मसूर दाल फरवरी महीने में थोक बाजार में 3150 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी जबकि नवंबर महीने में मैसूर दाल प्रति क्विंटल 4400 रुपये के आस पास चल रही थी।
इस समय मैसूर दाल की कीमतें दोबारा बढ़कर 3837 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं। जबकि खुदरा बाजार में 42 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिरने के बाद इस समय 50 रुपये की एक किलो मसूर दाल मिल रही है। कीमतों में दोबारा महंगाई का रंग उड़द दाल पर भी चढ़ता दिखाई दे रहा है। मार्च महीने में ही उड़द दाल की कीमत प्रति किलोग्राम 10 रुपये से भी ज्यादा महंगी हो चुकी है।
दलहन कारोबारियों का कहना है कि रबी सीजन में दलहन की फसल का उत्पादन ज्यादा होने के संकेत मिलने और आयात बढ़ने के कारण दिसंबर महीने से कीमतों में गिरावट आने लगी थी और फरवरी महीने के अंत तक इसमें 40 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी लेकिन दलहन फसलों के उत्पादन अनुमान में कमी की बात से बाजार दोबार करवट लेना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा डीजल के दाम बढ़ने के वजह से किराये में ट्रांसपोर्टरों ने करीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जिसको और बढ़ाने की बात कही जा रही है, जिसका असर दूसरे पदार्थों के साथ दालों की कीमतों पर भी दिखाई दे रहा है।
शेअर खान कमोडिटी हेट मेहुल अग्रवाल कीमतों पर हो रही दोबारा बढ़ोतरी पर कहते हैं कि यह सच है कि पिछले 15 दिनों में विभिन्न दालों की कीमतों में करीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जिसकी मुख्य वजह त्योहारी सीजन होने के कारण बाजार में भारी मांग और किराये में हुई बढ़ोतरी को माना जा रहा है, लेकिन ये कीमतें बहुत ज्यादा ऊपर नहीं जाने वाली है। (बीएस हिंदी)
खाद्य पदार्थो की महंगाई के चलते नवंबर-दिसंबर में आम लोगों की थाली से दाल गायब हो चुकी थी।
कुछ सरकारी प्रयासों और नई फसल के बेहतरीन आगाज से दालों की कीमतें गिरना शुरू हो गई थी जिससे लग रहा था कि दाल एक बार फिर से आम आदमी के खाने में शामिल हो जाएगी।
दलहन की प्रमुख फसल अरहर और चने का अच्छा उत्पादन होने के बावजूद पिछले 15 दिनों के अंदर लगभग सभी दालों की कीमतें 10 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। जबकि खुदरा बाजार में लगभग सभी दालों की कीमतों में प्रति किलोग्राम 10 से 15 रुपये का इजाफा हो चुका है।
अरहर, चना, मसूर, उड़द, मटर दाल की थोक कीमतों में पिछले 15 दिन में करीबन 10 से 15 फीसदी उछाल दर्ज की जा चुकी है जबकि खुदरा बाजार में प्रति किलोग्राम 10 से 20 रुपये तक की बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जिससे महंगाई की मार से राहत की आस लगाए बैठा आम इंसान दोबारा महंगाई के मकड़ जाल में फंसने लगा है।
पिछले साल दाल की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी अरहर (तुअर) दाल में हुई थी। नवंबर महीने में थोक बाजार में अरहर दाल 6200 रुपये प्रति क्विंटल और खुदरा बाजार में 100 रुपये प्रति किलोग्राम के आस-पास बिक रही थी। लेकिन थोक बाजार में अरहर दाल की कीमतें फरवरी महीने में गिरकर 3500 रुपये क्विंटल और खुदरा बाजार में 52 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गई थी।
बाजार में नई फसल की आवक शुरू होने और इस बार उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा होने की खबर से उम्मीद की जा रही थी कि मार्च-अप्रैल में अरहर दाल की कीमतों में और गिरावट देखने को मिलेगी, लेकिन हुआ ठीक उसका उल्टा। अरहर दाल की कीमतें एक बार फिर से ऊपर की ओर जाना शुरू हो गई हैं।
एक मार्च को थोक बाजार में 3500 रुपये क्विंटल बिकने वाली अरहर दाल इस समय 4500 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है, जबकि खुदरा बाजार में 55 रुपये किलो तक पहुंचने के बाद अरहर दाल इस समय 70 रुपये प्रति किलोग्राम पर भी मिलना मुश्किल हो गई है।
दाल की कीमतें सिर्फ अरहर दाल की नहीं बढ़ी है बल्कि सभी दालों में महंगाई ने दोबारा छौंक लगाना शुरू कर दिया है। रबी सीजन की दूसरी सबसे प्रमुख दलहन फसल चना का उत्पादन इस बार पिछले साल से बेहतर बताया जा रहा है इसके बावजूद चना दाल की कीमतों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।
थोक बाजार में चना नवंबर में 2600 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था इसके बाद फरवरी के अंतिम सप्ताह में चना दाल गिरकर 2100 रुपये प्रति क्विंटल के आस पास बिक रही थी लेकिन मार्च में चना दोबारा मजबूत होना शुरू हो गया और इस समय थोक बाजार में 2200 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचा जा रहा है। दूसरी तरफ खुदरा बाजार में 35 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंचने वाली चना दाल दोबारा 50 रुपये प्रति किलोग्राम के आस पास बेची जा रही है।
मटर दाल की कीमतें भी थोक बाजार में गिरकर फरवरी में 1350 रुपये प्रति तक पहुंच गई थी जो दोबारा बढ़कर 1410 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है, जबकि खुदरा बाजार में 28 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंचने वाली दाल पिछले 15 दिनों में बढ़कर 35 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। मसूर दाल फरवरी महीने में थोक बाजार में 3150 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी जबकि नवंबर महीने में मैसूर दाल प्रति क्विंटल 4400 रुपये के आस पास चल रही थी।
इस समय मैसूर दाल की कीमतें दोबारा बढ़कर 3837 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं। जबकि खुदरा बाजार में 42 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिरने के बाद इस समय 50 रुपये की एक किलो मसूर दाल मिल रही है। कीमतों में दोबारा महंगाई का रंग उड़द दाल पर भी चढ़ता दिखाई दे रहा है। मार्च महीने में ही उड़द दाल की कीमत प्रति किलोग्राम 10 रुपये से भी ज्यादा महंगी हो चुकी है।
दलहन कारोबारियों का कहना है कि रबी सीजन में दलहन की फसल का उत्पादन ज्यादा होने के संकेत मिलने और आयात बढ़ने के कारण दिसंबर महीने से कीमतों में गिरावट आने लगी थी और फरवरी महीने के अंत तक इसमें 40 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी लेकिन दलहन फसलों के उत्पादन अनुमान में कमी की बात से बाजार दोबार करवट लेना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा डीजल के दाम बढ़ने के वजह से किराये में ट्रांसपोर्टरों ने करीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जिसको और बढ़ाने की बात कही जा रही है, जिसका असर दूसरे पदार्थों के साथ दालों की कीमतों पर भी दिखाई दे रहा है।
शेअर खान कमोडिटी हेट मेहुल अग्रवाल कीमतों पर हो रही दोबारा बढ़ोतरी पर कहते हैं कि यह सच है कि पिछले 15 दिनों में विभिन्न दालों की कीमतों में करीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जिसकी मुख्य वजह त्योहारी सीजन होने के कारण बाजार में भारी मांग और किराये में हुई बढ़ोतरी को माना जा रहा है, लेकिन ये कीमतें बहुत ज्यादा ऊपर नहीं जाने वाली है। (बीएस हिंदी)
चीनी मिलों की मांग जारी रहने में ही भलाई
कोलकाता March 27, 2010
वर्ष 2006-07 में देश का चीनी उत्पादन 283.3 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर था। वहीं, पिछले दो साल में उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है।
इस दौरान जहां चीनी का थोक भाव 1,315 रुपये प्रति टन तक लुढ़का वहीं इसकी कीमतें 4,050 रुप्रति टन के स्तर को भी छू लिया था। दोनों ही परिस्थितियों में सरकार ने खुद को भंवर जाल में ही पाया है।
एक ओर जहां चीनी की कीमतें कम होने से सरकार को किसानों का कोपभाजन बनना पड़ सकता है, वहीं पिछले साल के मध्य से महंगाई के आसामन छूने के साथ ही आम जनता की नजरों में सरकार की काफी किरकिरी हुई है।
यही वजह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कृषि मंत्री शरद पवार माथापच्ची करने में लगे हैं कि किस तरह से चीनी और महंगाई की मुश्किलों से निजात पाई जाए और अगर हालात पूरी तरह नियंत्रण में न भी आए तो कम से कम इसके प्रभाव को जहां तक हो कम किया जा सके।
आवश्यकता से अधिक आपूर्ति की स्थिति में फैक्टरी के गन्ना भुगतान के मद में बकाया राशि करोड़ों की हो जाएगी जैसा कि वर्ष 2006-07 और 2007-08 में हुआ था। किसान और चीनी उद्योग को राहत देने के लिए सरकार विभिन्न उपायों के साथ आगे आई जिसमें बफर स्टॉक, उत्पाद शुल्क को इंटरेस्ट फीस लोन में तब्दील किए जाने की छूट और चीनी के निर्यात पर पाबंदी आदि शामिल हैं।
मौजूदा संकट के बाबत कच्ची और व्हाइट शुगर के सीमा शुल्क आयात की अनुमति दिए जाने के बाद रूप में जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिली है उसकी संभावना पहले से जाहिर की जा रही थी। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार इन परिस्थितियों से निपटने के लिए कुछ खास नहीं कर रही है।
सरकार को वैसे मॉडलों के विकसित किए जाने की जरूरत नहीं होगी जहां चीनी की बिक्री से प्राप्त होने वाली रकम गन्ना किसानों और फैक्टरियों के बीच बांटे जाने का प्रावधान है। चूंकि, गन्ना एक नकदी फसल है, लिहाजा फैक्टरियों को शुरुआत में ही भुगतान करना पड़ेगा।
भारतीय चीनी मिल महासंघ (इसमा) के अनुसार किसानों को उनकी फसल की पूरी कीमतें मिलने से ही सत्रों के दौरान चीनी की कीमतों में आने वाली तेजी और गिरावट पर नियंत्रण पाया जा सकता है। गन्ना किसानों की इसके उत्पादन में रुचि बनी रहे, इसे सुनिश्चित किए जाने का एक तरीका यह हो सकता है कि अच्छे और बुरे दोनों समय में चीनी मिलों की ओर से मांग बनी रहे।
कुल चीनी उत्पादन में से लेवी शुगर के नाम पर 20 फीसदी चीनी की मात्रा अलग किए जाने की प्रणाली को समाप्त किए जाने से चीनी उद्योग को काफी राहत मिल सकती है। दिचलस्प बात तो यह है कि इस मात्रा के उत्पादन में जितनी लागत आती है, उसका भी भुगतान नहीं किया जाता है।
सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि क्यों न न्यूनतम समर्थन मूल्य को आधार बना कर लेवी शुगर की कीमतें तय की जाए जबकि उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों को प्रति क्विंटल गन्ने के लिए 260 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले पांच सालों से लेवी शुगर की कीमतों में संशोधन नहीं किया है। सरकार शुगर साइकिल के प्रभाव को कम करना चाहती है लेकिन इसके लिए सरकार को गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों को कूपन देने से हिचकना नहीं चाहिए। (बीएस हिंदी)
वर्ष 2006-07 में देश का चीनी उत्पादन 283.3 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर था। वहीं, पिछले दो साल में उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है।
इस दौरान जहां चीनी का थोक भाव 1,315 रुपये प्रति टन तक लुढ़का वहीं इसकी कीमतें 4,050 रुप्रति टन के स्तर को भी छू लिया था। दोनों ही परिस्थितियों में सरकार ने खुद को भंवर जाल में ही पाया है।
एक ओर जहां चीनी की कीमतें कम होने से सरकार को किसानों का कोपभाजन बनना पड़ सकता है, वहीं पिछले साल के मध्य से महंगाई के आसामन छूने के साथ ही आम जनता की नजरों में सरकार की काफी किरकिरी हुई है।
यही वजह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कृषि मंत्री शरद पवार माथापच्ची करने में लगे हैं कि किस तरह से चीनी और महंगाई की मुश्किलों से निजात पाई जाए और अगर हालात पूरी तरह नियंत्रण में न भी आए तो कम से कम इसके प्रभाव को जहां तक हो कम किया जा सके।
आवश्यकता से अधिक आपूर्ति की स्थिति में फैक्टरी के गन्ना भुगतान के मद में बकाया राशि करोड़ों की हो जाएगी जैसा कि वर्ष 2006-07 और 2007-08 में हुआ था। किसान और चीनी उद्योग को राहत देने के लिए सरकार विभिन्न उपायों के साथ आगे आई जिसमें बफर स्टॉक, उत्पाद शुल्क को इंटरेस्ट फीस लोन में तब्दील किए जाने की छूट और चीनी के निर्यात पर पाबंदी आदि शामिल हैं।
मौजूदा संकट के बाबत कच्ची और व्हाइट शुगर के सीमा शुल्क आयात की अनुमति दिए जाने के बाद रूप में जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिली है उसकी संभावना पहले से जाहिर की जा रही थी। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार इन परिस्थितियों से निपटने के लिए कुछ खास नहीं कर रही है।
सरकार को वैसे मॉडलों के विकसित किए जाने की जरूरत नहीं होगी जहां चीनी की बिक्री से प्राप्त होने वाली रकम गन्ना किसानों और फैक्टरियों के बीच बांटे जाने का प्रावधान है। चूंकि, गन्ना एक नकदी फसल है, लिहाजा फैक्टरियों को शुरुआत में ही भुगतान करना पड़ेगा।
भारतीय चीनी मिल महासंघ (इसमा) के अनुसार किसानों को उनकी फसल की पूरी कीमतें मिलने से ही सत्रों के दौरान चीनी की कीमतों में आने वाली तेजी और गिरावट पर नियंत्रण पाया जा सकता है। गन्ना किसानों की इसके उत्पादन में रुचि बनी रहे, इसे सुनिश्चित किए जाने का एक तरीका यह हो सकता है कि अच्छे और बुरे दोनों समय में चीनी मिलों की ओर से मांग बनी रहे।
कुल चीनी उत्पादन में से लेवी शुगर के नाम पर 20 फीसदी चीनी की मात्रा अलग किए जाने की प्रणाली को समाप्त किए जाने से चीनी उद्योग को काफी राहत मिल सकती है। दिचलस्प बात तो यह है कि इस मात्रा के उत्पादन में जितनी लागत आती है, उसका भी भुगतान नहीं किया जाता है।
सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि क्यों न न्यूनतम समर्थन मूल्य को आधार बना कर लेवी शुगर की कीमतें तय की जाए जबकि उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों को प्रति क्विंटल गन्ने के लिए 260 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले पांच सालों से लेवी शुगर की कीमतों में संशोधन नहीं किया है। सरकार शुगर साइकिल के प्रभाव को कम करना चाहती है लेकिन इसके लिए सरकार को गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों को कूपन देने से हिचकना नहीं चाहिए। (बीएस हिंदी)
अनुमान से अधिक समय तक मिलों में पेराई
नई दिल्ली March 27, 2010
चीनी मिलों में अनुमान से अधिक समय तक पेराई का काम जारी है। इस कारण उत्पादन में भी अनुमान के मुकाबले अधिक बढ़ोतरी की संभावना है।
बताया जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की पैदावार अधिक होने के साथ रिकवरी भी पिछले साल की तुलना में अधिक है। अप्रैल के पहले सप्ताह तक चीनी मिलों में पेराई कार्य जारी रहने के समर्थन से चीनी की कीमतों में नरमी का रुख बरकरार है।
चीनी की कीमतों में गिरावट जारी है और उत्तर प्रदेश की मिलों में चीनी की कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई है। चीनी के भाव कम होने से थोक बाजार के कारोबारी भी चीनी उठाने में हिचक रहे हैं।
गत जनवरी माह में इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि इस साल गन्ने के उत्पादन में गिरावट के कारण चीनी मिलों में मध्य मार्च तक पेराई का काम बंद हो जाएगा। लेकिन अब इन कयासों पर विराम लग गया है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दर्जनों मिलों में अब भी पेराई चालू है और अप्रैल के पहले सप्ताह तक यहां चीनी उत्पादन का काम चलने की उम्मीद है।
मिलर्स इस बात को स्वीकारते हैं कि इस साल गन्ने की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 8-10 फीसदी अधिक है। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शुरू से ही इस साल गन्ने की अधिक पैदावार का दावा कर रहे थे। मुरादाबाद की एक चीनी मिल के मुताबिक पैदावार के साथ इस साल गन्ने से मिलने वाली रिकवरी भी अधिक है।
पिछले दो सालों से उन्हें गन्ने से 9 फीसदी तक की रिकवरी मिल रही थी जो कि इस साल बढ़कर 10 फीसदी तक हो गई है। हालांकि इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि तापमान के बढ़ने के साथ ही रिकवरी में कमी आ जाएगी और मिलर्स की लागत बढ़ सकती है।
मिलर्स दबी जुबान से इस बात को भी स्वीकारते हैं कि अप्रैल के पहले सप्ताह तक पेराई चलने से चीनी की कीमतों में और गिरावट हो सकती है। दूसरी तरफ कीमतों में गिरावट के बावजूद बाजार में चीनी की मांग में कोई इजाफा नहीं है। उल्टा बाजार में चीनी का उठाव काफी कम हो गया है।
दिल्ली के एक थोक चीनी व्यापारी कहते हैं, 'हमारी क्षमता 2000 क्विंटल चीनी रखने की है। लेकिन इन दिनों हमारे पास सिर्फ 100 क्विंटल चीनी है। गिरावट के इस दौर में चीनी का स्टॉक रखने का कोई मतलब नहीं है। पर तेजी आते ही दो दिनों में हम अपना स्टॉक भर लेंगे।' कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि गर्मी में तेजी आने पर चीनी की मांग भी तेज हो सकती है। (बीएस हिंदी)
चीनी मिलों में अनुमान से अधिक समय तक पेराई का काम जारी है। इस कारण उत्पादन में भी अनुमान के मुकाबले अधिक बढ़ोतरी की संभावना है।
बताया जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की पैदावार अधिक होने के साथ रिकवरी भी पिछले साल की तुलना में अधिक है। अप्रैल के पहले सप्ताह तक चीनी मिलों में पेराई कार्य जारी रहने के समर्थन से चीनी की कीमतों में नरमी का रुख बरकरार है।
चीनी की कीमतों में गिरावट जारी है और उत्तर प्रदेश की मिलों में चीनी की कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई है। चीनी के भाव कम होने से थोक बाजार के कारोबारी भी चीनी उठाने में हिचक रहे हैं।
गत जनवरी माह में इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि इस साल गन्ने के उत्पादन में गिरावट के कारण चीनी मिलों में मध्य मार्च तक पेराई का काम बंद हो जाएगा। लेकिन अब इन कयासों पर विराम लग गया है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दर्जनों मिलों में अब भी पेराई चालू है और अप्रैल के पहले सप्ताह तक यहां चीनी उत्पादन का काम चलने की उम्मीद है।
मिलर्स इस बात को स्वीकारते हैं कि इस साल गन्ने की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 8-10 फीसदी अधिक है। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शुरू से ही इस साल गन्ने की अधिक पैदावार का दावा कर रहे थे। मुरादाबाद की एक चीनी मिल के मुताबिक पैदावार के साथ इस साल गन्ने से मिलने वाली रिकवरी भी अधिक है।
पिछले दो सालों से उन्हें गन्ने से 9 फीसदी तक की रिकवरी मिल रही थी जो कि इस साल बढ़कर 10 फीसदी तक हो गई है। हालांकि इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि तापमान के बढ़ने के साथ ही रिकवरी में कमी आ जाएगी और मिलर्स की लागत बढ़ सकती है।
मिलर्स दबी जुबान से इस बात को भी स्वीकारते हैं कि अप्रैल के पहले सप्ताह तक पेराई चलने से चीनी की कीमतों में और गिरावट हो सकती है। दूसरी तरफ कीमतों में गिरावट के बावजूद बाजार में चीनी की मांग में कोई इजाफा नहीं है। उल्टा बाजार में चीनी का उठाव काफी कम हो गया है।
दिल्ली के एक थोक चीनी व्यापारी कहते हैं, 'हमारी क्षमता 2000 क्विंटल चीनी रखने की है। लेकिन इन दिनों हमारे पास सिर्फ 100 क्विंटल चीनी है। गिरावट के इस दौर में चीनी का स्टॉक रखने का कोई मतलब नहीं है। पर तेजी आते ही दो दिनों में हम अपना स्टॉक भर लेंगे।' कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि गर्मी में तेजी आने पर चीनी की मांग भी तेज हो सकती है। (बीएस हिंदी)
एथेनॉल के दाम में बदलाव पर ऐतराज
नई दिल्ली March 27, 2010
पेट्रोल में एथेनॉल के अनिवार्य मिश्रण और पेट्रोलियम मंत्रालय की तरफ से कीमतों में बदलाव के प्रस्ताव का रसायन मंत्रालय द्वाररा विरोध किया गया है।
इसके बाद पिछले हफ्ते हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे को कैबिनेट सचिवालय के पास भेज दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक सचिवालय मतभेदों को दूर करने और प्रस्ताव की दोबारा समीक्षा करेगा।
रसायन विभाग ने एथेनॉल की कीमतों में प्रस्तावित बढ़ोतरी और पेट्रोल में अनिवार्य मिश्रण का कड़ा विरोध किया है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि यह कदम रसायन उद्योग के खिलाफ है जो औद्योगिक अल्कोहल का बड़ा उपभोक्ता है।
भारत में एथेनॉल और अल्कोहल दो दोनों का निर्माण शीरा से किया जाता है। तेल कंपनियां 21.50 रुपये लीटर की दर पर एथेनॉल प्राप्त कर रही हैं। हालांकि उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से चीनी उद्योग 27 रुपये लीटर की कीमत मांग रहा है।
नवंबर 2007 में पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण को लागू किया गया था। हालांकि कुछ राज्यों कर संबंधी व्यवधानों, इस्तेमाल पर रोक और अनियमित आपूर्ति की वजह से इस व्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर पर लागू नहीं किया जा सका। नवंबर 2009 में मंत्रिमंडल ने कहा कि पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण को अनिवार्य रूप से जारी रखा जाना चाहिए।
पेय उत्पाद और रसायन उद्योग दो प्रमुख क्षेत्र हैं जहां शीरा आधारित अल्कोहल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। 2008-09 में पेय उत्पाद उद्योग ने 10,000 लाख लीटर अल्कोहल का उपभोग किया था और सिर्फ 3,000 लाख लीटर बाकी के उद्योगों के लिए शेष रहा था। रसायन उद्योग में अल्कोहल की मांग 10,000 लाख लीटर रहने का अनुमान है।
वहीं 5 फीसदी मिश्रण के लिए 6,800 लाख लीटर एथेनॉल की जरूरत है। जुबिलियंट ऑर्गनोसिस और इंडिया ग्लाइकॉल्स जैसी रसायन उद्योग की कंपनियों का कहना है कि पेट्रोल में 5 फीसदी का अनिवार्य मिश्रण सही नहीं है।
पेय उत्पाद उद्योग की मांग हर दिन बढ़ रही है और सभी राज्य सरकारों की कोशिश है कि सबसे पहले इनकी मांग पूरी की जाए क्योंकि इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा राजस्व हासिल होता है। अन्य मांगों के साथ गन्ने की आपूर्ति में अनियमितता का एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम पर असर होगा।
इंडिया ग्लाइकॉल्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राकेश भरतिया का कहना है, 'जब मिल मालिकों ने 21.50 रुपये प्रति लीटर की दर पर आपूर्ति के लिए पहले के सौदों में रजामंदी दी थी, तो अब एथेनॉल की ऊंची कीमतें तय करने का हम विरोध करते हैं।
सबसे बड़े एथेनॉल उत्पादक देश ब्राजील में मिल मालिकों को 13-14 रुपये लीटर की कमाई होती है। लिहाजा भारत में कीमतें वाजिब हैं। एथेनॉल का आयात करने पर औसत खर्चा 20-21 रुपये लीटर आता है। ऐसे में तेल कंपनियां 27 रुपये लीटर का दाम क्यों चुकाएंगी?'
चीनी की पेराई में कमी का मतलब शीरा की आपूर्ति में भी कमी है। 2007-08 से 2008-09 के बीच अल्कोहल की आपूर्ति 22,000 लाख टन से घटकर 13,000 लाख टन रह जाने का अनुमान है। 2009-10 में अल्कोहल का उत्पादन पिछले साल के बराबर ही रहने की उम्मीद है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 3,500 लाख लीटर अल्कोहल का आयात किया गया था। (बीएस हिंदी)
पेट्रोल में एथेनॉल के अनिवार्य मिश्रण और पेट्रोलियम मंत्रालय की तरफ से कीमतों में बदलाव के प्रस्ताव का रसायन मंत्रालय द्वाररा विरोध किया गया है।
इसके बाद पिछले हफ्ते हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे को कैबिनेट सचिवालय के पास भेज दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक सचिवालय मतभेदों को दूर करने और प्रस्ताव की दोबारा समीक्षा करेगा।
रसायन विभाग ने एथेनॉल की कीमतों में प्रस्तावित बढ़ोतरी और पेट्रोल में अनिवार्य मिश्रण का कड़ा विरोध किया है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि यह कदम रसायन उद्योग के खिलाफ है जो औद्योगिक अल्कोहल का बड़ा उपभोक्ता है।
भारत में एथेनॉल और अल्कोहल दो दोनों का निर्माण शीरा से किया जाता है। तेल कंपनियां 21.50 रुपये लीटर की दर पर एथेनॉल प्राप्त कर रही हैं। हालांकि उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से चीनी उद्योग 27 रुपये लीटर की कीमत मांग रहा है।
नवंबर 2007 में पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण को लागू किया गया था। हालांकि कुछ राज्यों कर संबंधी व्यवधानों, इस्तेमाल पर रोक और अनियमित आपूर्ति की वजह से इस व्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर पर लागू नहीं किया जा सका। नवंबर 2009 में मंत्रिमंडल ने कहा कि पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण को अनिवार्य रूप से जारी रखा जाना चाहिए।
पेय उत्पाद और रसायन उद्योग दो प्रमुख क्षेत्र हैं जहां शीरा आधारित अल्कोहल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। 2008-09 में पेय उत्पाद उद्योग ने 10,000 लाख लीटर अल्कोहल का उपभोग किया था और सिर्फ 3,000 लाख लीटर बाकी के उद्योगों के लिए शेष रहा था। रसायन उद्योग में अल्कोहल की मांग 10,000 लाख लीटर रहने का अनुमान है।
वहीं 5 फीसदी मिश्रण के लिए 6,800 लाख लीटर एथेनॉल की जरूरत है। जुबिलियंट ऑर्गनोसिस और इंडिया ग्लाइकॉल्स जैसी रसायन उद्योग की कंपनियों का कहना है कि पेट्रोल में 5 फीसदी का अनिवार्य मिश्रण सही नहीं है।
पेय उत्पाद उद्योग की मांग हर दिन बढ़ रही है और सभी राज्य सरकारों की कोशिश है कि सबसे पहले इनकी मांग पूरी की जाए क्योंकि इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा राजस्व हासिल होता है। अन्य मांगों के साथ गन्ने की आपूर्ति में अनियमितता का एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम पर असर होगा।
इंडिया ग्लाइकॉल्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राकेश भरतिया का कहना है, 'जब मिल मालिकों ने 21.50 रुपये प्रति लीटर की दर पर आपूर्ति के लिए पहले के सौदों में रजामंदी दी थी, तो अब एथेनॉल की ऊंची कीमतें तय करने का हम विरोध करते हैं।
सबसे बड़े एथेनॉल उत्पादक देश ब्राजील में मिल मालिकों को 13-14 रुपये लीटर की कमाई होती है। लिहाजा भारत में कीमतें वाजिब हैं। एथेनॉल का आयात करने पर औसत खर्चा 20-21 रुपये लीटर आता है। ऐसे में तेल कंपनियां 27 रुपये लीटर का दाम क्यों चुकाएंगी?'
चीनी की पेराई में कमी का मतलब शीरा की आपूर्ति में भी कमी है। 2007-08 से 2008-09 के बीच अल्कोहल की आपूर्ति 22,000 लाख टन से घटकर 13,000 लाख टन रह जाने का अनुमान है। 2009-10 में अल्कोहल का उत्पादन पिछले साल के बराबर ही रहने की उम्मीद है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 3,500 लाख लीटर अल्कोहल का आयात किया गया था। (बीएस हिंदी)
अगले साल घटेगा माल
मुंबई March 29, 2010
इस साल मिले गन्ने के अच्छे दामों से उत्साहित होकर अगले साल गन्ने का बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है। लेकिन ऐसे में इसका भाव घटकर 200 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकता है।
सिंभावली शुगर मिल्स के कार्यकारी निदेशक जी एस सी राव ने बताया कि अगले साल गन्ना अधिक हुआ तो भाव 200 रुपये प्रति क्विंटल तक रह सकते हैं। इस बात से बाकी चीनी कंपनियां भी सहमत हैं। इससे लगातार दो साल गन्ने के अच्छे दाम मिलने वाले किसानों को निराशा हो सकती है।
2008-09 में जब गन्ने का कम उत्पादन 16 फीसदी कम हुआ तो चीनी मिलों ने किसानों को लुभाने के लिए गन्ने की कीमतों में इजाफा कर दिया था। (बीएस हिंदी)
इस साल मिले गन्ने के अच्छे दामों से उत्साहित होकर अगले साल गन्ने का बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है। लेकिन ऐसे में इसका भाव घटकर 200 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकता है।
सिंभावली शुगर मिल्स के कार्यकारी निदेशक जी एस सी राव ने बताया कि अगले साल गन्ना अधिक हुआ तो भाव 200 रुपये प्रति क्विंटल तक रह सकते हैं। इस बात से बाकी चीनी कंपनियां भी सहमत हैं। इससे लगातार दो साल गन्ने के अच्छे दाम मिलने वाले किसानों को निराशा हो सकती है।
2008-09 में जब गन्ने का कम उत्पादन 16 फीसदी कम हुआ तो चीनी मिलों ने किसानों को लुभाने के लिए गन्ने की कीमतों में इजाफा कर दिया था। (बीएस हिंदी)
मिलों के हलक में अटका गन्ना
नई दिल्ली March 29, 2010
उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें कुछ अरसा पहले तक चीनी की आसमान छूती कीमत और गन्ने की रिकॉर्ड उपज को देखकर फूले नहीं समा रही थीं, लेकिन अब गन्ने की यही उपज उनके हलक में अटक गई है।
गन्ने की उपलब्धता की वजह से पेराई का सत्र राज्य में इस बार लंबा चल रहा है, जिसकी वजह से तकरीबन 1,000 करोड़ रुपये का भुगतान लटक गया है। उत्तर प्रदेश में गन्ने का भाव ज्यादा है और चीनी का उठान कम है, इसलिए मिलों की हालत खराब है। राज्य में बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी इंजीनियरिंग जैसी शीर्ष चीनी कंपनियों की मिलें हैं।
विभिन्न जिलों के गन्ना आयुक्तों से मिले आंकड़ों के मुताबिक कई स्थानों पर गन्ने के भुगतान का अच्छा खासा बकाया जमा हो गया है। इनमें सबसे ज्यादा 218 करोड़ रुपये का भुगतान मुजफ्फरपुर में अटका है।
इसके अलावा बिजनौर में 199 करोड़ रुपये, बागपत में 139 करोड़ रुपये, मेरठ में 136 करोड़ रुपये और सहारनपुर में 80 करोड़ रुपये का बकाया है। एक सूत्र ने बताया, 'राज्य के पश्चिमी जिलों में बकाया जमा है क्योंकि वहां मिलों में पेराई का समय बढ़ गया है। '
ज्यादातर चीनी कंपनियों का दावा है कि चीनी उत्पादन की लागत बढ़ गई है। गन्ना 260 रुपये प्रति क्विंटल है और 20 फीसदी लेवी चीनी 1,300-1,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकेगी। ऐसे में लागत 3,600 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। लेकिन उठान 3,150 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल पर हो रहा है।
बाजार में चीनी का एक्स मिल भाव इसी साल जनवरी में 4,300 रुपये प्रति क्विंटल का रिकॉर्ड बना गया था। लेकिन उसके बाद अंतरराष्ट्रीय भाव में नरमी और सरकारी कदमों की वजह से इसमें लगातार कमी आ रही है।
कंपनियों को गन्ना अब भी 260 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदना पड़ रहा है, लेकिन चीनी भंडार कम होने की वजह से अब वे ज्यादा रकम उधार नहीं ले पा रही हैं, इसलिए भुगतान लटक रहा है।
हर ज़िले से चीनी मिलों को हैं गिले
ज़िला बकायामुज़फ्फरपुर 218बिजनौर 199बागपत 139मेरठ 136सहारनपुर 80*आंकड़े करोड़ रुपये में स्रोत: ज़िला गन्ना आयुक्त कार्यालय (बीएस हिंदी)
उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें कुछ अरसा पहले तक चीनी की आसमान छूती कीमत और गन्ने की रिकॉर्ड उपज को देखकर फूले नहीं समा रही थीं, लेकिन अब गन्ने की यही उपज उनके हलक में अटक गई है।
गन्ने की उपलब्धता की वजह से पेराई का सत्र राज्य में इस बार लंबा चल रहा है, जिसकी वजह से तकरीबन 1,000 करोड़ रुपये का भुगतान लटक गया है। उत्तर प्रदेश में गन्ने का भाव ज्यादा है और चीनी का उठान कम है, इसलिए मिलों की हालत खराब है। राज्य में बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी इंजीनियरिंग जैसी शीर्ष चीनी कंपनियों की मिलें हैं।
विभिन्न जिलों के गन्ना आयुक्तों से मिले आंकड़ों के मुताबिक कई स्थानों पर गन्ने के भुगतान का अच्छा खासा बकाया जमा हो गया है। इनमें सबसे ज्यादा 218 करोड़ रुपये का भुगतान मुजफ्फरपुर में अटका है।
इसके अलावा बिजनौर में 199 करोड़ रुपये, बागपत में 139 करोड़ रुपये, मेरठ में 136 करोड़ रुपये और सहारनपुर में 80 करोड़ रुपये का बकाया है। एक सूत्र ने बताया, 'राज्य के पश्चिमी जिलों में बकाया जमा है क्योंकि वहां मिलों में पेराई का समय बढ़ गया है। '
ज्यादातर चीनी कंपनियों का दावा है कि चीनी उत्पादन की लागत बढ़ गई है। गन्ना 260 रुपये प्रति क्विंटल है और 20 फीसदी लेवी चीनी 1,300-1,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकेगी। ऐसे में लागत 3,600 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। लेकिन उठान 3,150 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल पर हो रहा है।
बाजार में चीनी का एक्स मिल भाव इसी साल जनवरी में 4,300 रुपये प्रति क्विंटल का रिकॉर्ड बना गया था। लेकिन उसके बाद अंतरराष्ट्रीय भाव में नरमी और सरकारी कदमों की वजह से इसमें लगातार कमी आ रही है।
कंपनियों को गन्ना अब भी 260 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदना पड़ रहा है, लेकिन चीनी भंडार कम होने की वजह से अब वे ज्यादा रकम उधार नहीं ले पा रही हैं, इसलिए भुगतान लटक रहा है।
हर ज़िले से चीनी मिलों को हैं गिले
ज़िला बकायामुज़फ्फरपुर 218बिजनौर 199बागपत 139मेरठ 136सहारनपुर 80*आंकड़े करोड़ रुपये में स्रोत: ज़िला गन्ना आयुक्त कार्यालय (बीएस हिंदी)
आलू ने निकाला किसानों का कचूमर
कोलकाता March 28, 2010
आलू का बंपर उत्पादन पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए नासूर बनता जा रहा है। कीमत 2 रुपये प्रति किलोग्राम से भी कम हो गई है।
लागत नहीं निकलने से दुखी किसान खेतों में आलू को नष्ट कर रहे हैं। जलपाईगुड़ी जिले के एक आलू किसान ने इस सप्ताह खुदकुशी कर ली। वर्धवान एवं हुगली जिले के आलू किसान अपने बचाव के लिए रोजाना सरकार से दुहाई कर रहे हैं। हालत ऐसी हो चुकी है कि आलू की सरकारी खरीद के आश्वासन के बाद भी आलू की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है।
पश्चिम बंगाल के साथ अन्य प्रदेशों में भी इस साल आलू की अच्छी फसल है। उत्तर प्रदेश में भी पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी तो पंजाब में 5-10 फीसदी अधिक उत्पादन की खबर है। बिहार एवं असम में भी आलू की आपूर्ति मांग के मुकाबले अधिक हो रही है।
देश के लगभग सभी राज्यों में आलू के भाव पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 10-40 फीसदी तक कम बताई जा रही है। पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री नरेन डे के मुताबिक इस साल राज्य में 95 लाख टन आलू का उत्पादन बताया जा रहा है जो कि सालाना 80-85 लाख टन के औसत उत्पादन से काफी अधिक है।
राज्य में सिर्फ 375 शीत भंडार है और उनकी क्षमता 40 लाख टन की है। इस कारण बाजार में आलू की भरमार हो गई है और अच्छी खासी मात्रा में आलू खेतों में सड़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दास गुप्ता ने अपने बजट भाषण में कहा, 'अधिक उत्पादन के कारण आलू की कीमतों में गिरावट से आलू उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ा है।
लिहाजा सरकार ने यह तय किया है कि पश्चिम बंगाल आवश्यक वस्तु आपूर्ति निगम के मार्फत किसानों से 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से आलू की खरीदारी की जाएगी और उसे शीत भंडार में रखा जाएगा।' डे के मुताबिक सरकार ने 10 लाख टन आलू किसानों से खरीदने का फैसला किया है। हुगली एवं वर्धवान में विभिन्न कोपरेटिव के माध्यम से यह खरीदारी शुरू हो गई है।
कृषि कोपरेटिव बैंक के अधिकारियों के मुताबिक असली समस्या यह है कि बाजार तक किसानों की सीधी पहुंच नहीं है। पूरा बाजार बिचौलिए के हाथ में है और वे किसानों को कर्ज देने का भी काम करते हैं। यहां तक कि शीत भंडार की सुविधा पर भी बिचौलियों का नियंत्रण है।
इस साल इन बिचौलियों ने किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत अदा की है जबकि आलू उत्पादन की लागत 170-175 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकारी एजेंसी को भी अलग-अलग किसानों से आलू की खरीदारी करने में कठिनाई होती है और वे भी बिचौलियों से यह खरीदारी करने लगते हैं।
बंपर उत्पादन से बेड़ा गर्क
पश्चिम बंगाल के किसान आलू को खेतों में नष्ट कर रहे हैंजलपाईगुड़ी के एक आलू किसान ने आत्महत्या कीसरकारी खरीद के आश्वासन के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी नहींलागत से कम मूल्य पर आलू बेचने को मजबूर (बीएस हिंदी)
आलू का बंपर उत्पादन पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए नासूर बनता जा रहा है। कीमत 2 रुपये प्रति किलोग्राम से भी कम हो गई है।
लागत नहीं निकलने से दुखी किसान खेतों में आलू को नष्ट कर रहे हैं। जलपाईगुड़ी जिले के एक आलू किसान ने इस सप्ताह खुदकुशी कर ली। वर्धवान एवं हुगली जिले के आलू किसान अपने बचाव के लिए रोजाना सरकार से दुहाई कर रहे हैं। हालत ऐसी हो चुकी है कि आलू की सरकारी खरीद के आश्वासन के बाद भी आलू की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है।
पश्चिम बंगाल के साथ अन्य प्रदेशों में भी इस साल आलू की अच्छी फसल है। उत्तर प्रदेश में भी पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी तो पंजाब में 5-10 फीसदी अधिक उत्पादन की खबर है। बिहार एवं असम में भी आलू की आपूर्ति मांग के मुकाबले अधिक हो रही है।
देश के लगभग सभी राज्यों में आलू के भाव पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 10-40 फीसदी तक कम बताई जा रही है। पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री नरेन डे के मुताबिक इस साल राज्य में 95 लाख टन आलू का उत्पादन बताया जा रहा है जो कि सालाना 80-85 लाख टन के औसत उत्पादन से काफी अधिक है।
राज्य में सिर्फ 375 शीत भंडार है और उनकी क्षमता 40 लाख टन की है। इस कारण बाजार में आलू की भरमार हो गई है और अच्छी खासी मात्रा में आलू खेतों में सड़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दास गुप्ता ने अपने बजट भाषण में कहा, 'अधिक उत्पादन के कारण आलू की कीमतों में गिरावट से आलू उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ा है।
लिहाजा सरकार ने यह तय किया है कि पश्चिम बंगाल आवश्यक वस्तु आपूर्ति निगम के मार्फत किसानों से 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से आलू की खरीदारी की जाएगी और उसे शीत भंडार में रखा जाएगा।' डे के मुताबिक सरकार ने 10 लाख टन आलू किसानों से खरीदने का फैसला किया है। हुगली एवं वर्धवान में विभिन्न कोपरेटिव के माध्यम से यह खरीदारी शुरू हो गई है।
कृषि कोपरेटिव बैंक के अधिकारियों के मुताबिक असली समस्या यह है कि बाजार तक किसानों की सीधी पहुंच नहीं है। पूरा बाजार बिचौलिए के हाथ में है और वे किसानों को कर्ज देने का भी काम करते हैं। यहां तक कि शीत भंडार की सुविधा पर भी बिचौलियों का नियंत्रण है।
इस साल इन बिचौलियों ने किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत अदा की है जबकि आलू उत्पादन की लागत 170-175 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकारी एजेंसी को भी अलग-अलग किसानों से आलू की खरीदारी करने में कठिनाई होती है और वे भी बिचौलियों से यह खरीदारी करने लगते हैं।
बंपर उत्पादन से बेड़ा गर्क
पश्चिम बंगाल के किसान आलू को खेतों में नष्ट कर रहे हैंजलपाईगुड़ी के एक आलू किसान ने आत्महत्या कीसरकारी खरीद के आश्वासन के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी नहींलागत से कम मूल्य पर आलू बेचने को मजबूर (बीएस हिंदी)
27 मार्च 2010
फिर बढ़ सकते हैं हल्दी के भाव
मसाला निर्माताओं के साथ-साथ निर्यातकों की मांग अच्छी होने से हल्दी की कीमतों में फिर से तेजी की संभावना है। निवेशकोंे की मुनाफावसूली आने से पिछले चार दिनों में वायदा बाजार में हल्दी की कीमतें 3.2 फीसदी और हाजिर में 7.1 फीसदी घटी हैं। मार्च क्लोजिंग होने के कारण प्रमुख उत्पादक मंडियों में अगले एक सप्ताह तक आवक सीमित मात्रा में ही रहेगी। हालांकि चालू फसल सीजन में देश में हल्दी की पैदावार पिछले साल से 11.6 फीसदी ज्यादा है। लेकिन पैदावार और बकाया स्टॉक को मिलाकर कुल उपलब्धता खपत के लगभग बराबर ही बैठ रही है। इसलिए आगामी दिनों में हल्दी के दामों तेज ही बने रहने के आसार हैं।मुनाफावसूली से वायदा में नरमीनिवेशकों की मुनाफावसूली आने से नेशनल कमोडिटी एंड डेयरव्टिव एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में पिछले चार दिनों में हल्दी के दाम 3.2 फीसदी घटे हैं। 22 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में हल्दी के दाम बढ़कर 11,565 रुपये प्रति `िंटल हो गए थे, जो कि शुक्रवार को घटकर 11,193 रुपये प्रति `िंटल के स्तर पर आ गए। अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में 6,640 लॉट के खड़े सौदे हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान के अनुसार मार्च क्लोजिंग के कारण अगले एक सप्ताह तक मंडियों में आवक न बराबर रहेगी जिससे निवेशकों की खरीद बढ़ने के आसार हैं। वैसे भी इस समय मसाला निर्माताओं और निर्यातकों की मांग बराबर निकल रही है। ऐसे में आगामी दिनों में हल्दी की कीमतों में तेजी के ही आसार हैं।हाजिर में दाम घटेनिजामाबाद मंडी स्थित मेसर्स मनशाराम योगेश कुमार के प्रोपराइटर पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि पिछले चार दिनों में निजामाबाद मंडी में हल्दी की कीमतों में 500 रुपये और इरोड मंडी में 1000 रुपये प्रति `िंटल की गिरावट दर्ज की गई। शुक्रवार को निजामाबाद मंडी में भाव घटकर 12,000 रुपये और इरोड में 13,000 रुपये प्रति `िंटल रह गए। निजामाबाद और इरोड मंडियों में इस समय दैनिक आवक क्रमश: 10 हजार और 20 हजार बोरियों (एक बोरी-70 किलो) की हो रही है जबकि अन्य उत्पादक मंडियों में भी करीब 20 हजार बोरी की आवक बनी हुई है। उन्होंने बताया कि मार्च क्लोजिंग के कारण अगले एक सप्ताह तक मंडियों में कामकाज कम हो जाएगा तथा आवक घट जाएगी। इस दौरान इरोड मंडी तो बंद ही रहेगी। हल्दी में घरलू मसाला निर्माताओं के साथ ही निर्यातकों की मांग बराबर बनी हुई है, जिससे तेजी को बल मिल रहा है।उपलब्धता खपत के बराबरहल्दी मर्चेट्स एसोसिएशन के सचिव आर के विव्श्रनाथन ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में हल्दी की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 11.6 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान है। चालू सीजन में देश में पैदावार बढ़कर 48 लाख बोरी (एक बोरी-70 किलो) होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल पैदावार 43 लाख बोरी की ही हुई थी। हालांकि पैदावार तो पिछले साल से पांच लाख बोरी ज्यादा है। लेकिन नई फसल के समय बकाया स्टॉक मात्र तीन लाख बोरियों का ही बचा हुआ है। ऐसे में चालू सीजन में देश में हल्दी की कुल उपलब्धता 51 लाख बोरी की ही बैठेगी। जबकि घरलू खपत और निर्यात को मिलाकर सालाना खपत करीब 50 लाख बोरी होने की संभावना है। ऐसे में आगामी सीजन में नई फसल की आवक के समय बकाया स्टॉक सीमित मात्रा में ही बचेगा। वैसे भी पिछले साल किसानों ने हल्दी का ऊंचा भाव देखा है जिसकी वजह से भाव घटते ही किसानों की बिकवाली कम हो जाती है।अप्रैल में बढ़ेगी आवकबोनांजा कमोडिटी की कमोडिटी विशेषज्ञ रखा मिश्रा ने बताया कि अप्रैल महीने में उत्पादक मंडियों में हल्दी की दैनिक आवक बढ़कर 80 से 90 हजार बोरियों की जाएगी। लेकिन स्टॉकिस्टों की सक्रियता से भाव तेज ही बने रहने की संभावना है। इसलिए निवेशकों को मुनाफावसूली से घटे भाव पर खरीद करना ही बेहतर विकल्प है।निर्यात घटाभारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रेल से जनवरी तक हल्दी के निर्यात में 5.2 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान देश से 43,250 टन का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 45,626 टन का निर्यात हुआ था। अप्रैल-मई में निर्यातकों की मांग अच्छी रहने की संभावना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
उद्योग ने चीनी पर पाबंदियों में ढील देने की मांग उठाई
चीनी की गिरती कीमतों से परशान चीनी उद्योग ने पाबंदियों में ढील देने के लिए सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उद्योग का कहना है कि पाबंदियों की वजह से चीनी उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। उद्योग का दावा है कि इन पाबंदियों से ग्राहक और किसानों को भी कोई फायदा नहीं हो रहा है। इस मुद्दे पर नेशनल फेडरशन ऑफ कोआपरटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफएल) के अध्यक्ष जयंतीलाल बी। पटेल ने सहकारी मिलों के प्रतिनिधियों के साथ केंद्रीय कृषि, खाद्य व नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री शरद पवार मुलाकात की। फेडरशन ने पवार को पत्र सौंपकर चीनी की बिक्री व डिस्पेच की प्रक्रिया को वापस माहवार करने, बड़े उपभोक्ताओं से स्टॉक लिमिट हटाने और चीनी आयात पर शुल्क लगाने की मांग की है। सरकार ने बीते माह चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी की जांच करने के लिए इसकी ब्रिकी और डिस्पेच प्रक्रिया को माहवार की जगह साप्ताहिक कर दिया था। जिससे चीनी के एक्स फैक्ट्री दाम में गिरावट आई थी। फेडरशन का कहना है कि थोक में गिरावट आने के बावजूद उपभोक्ताओं को ऊंचे मूल्य पर चीनी मिल रही है और फुटकर विक्रेता ज्यादा लाभ कमा रहे हैं। फेडरशन का दावा है कि इस फैसले का ग्राहक और किसानांे को कोई फायदा नहीं मिला है लेकिन मिलों पर दबाव बढ़ने से किसानों के गन्ने का मूल्य घट गया। फुटकर विक्रेताओं और थोक कारोबारियों को जरूर खूब लाभ मिल रहा है। फेडरशन का कहना है कि चीनी के बड़े उपभोक्ताओं जैसे कोल्ड ड्रिंक, कन्फेक्शनरी और बिस्कुट निर्माताओं पर स्टॉक लिमिट लगाने से भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है। स्टॉक लिमिट लगने के बाद बड़े उपभोक्ताओं ने घरलू चीनी की बजाय आयातित चीनी की ओर रुख किया है। जिस पर कोई स्टॉक लिमिट नहीं है। फेडरशन की मांग है कि सरकार को बड़े उपभोक्ताओं की स्टॉक लिमिट को बढ़ाकर तीन माह कर देना चाहिए। फेडरशन के अनुसार चालू वर्ष में चीनी का उत्पादन बढ़ने की वजह से इसकी उपलब्धता पर्याप्त है। चालू सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 170 लाख टन होने का अनुमान है। काफी मात्रा में आयातित रॉ शुगर और व्हाइट शुगर के सौदे हो चुके हैं। अगले सीजन में भी चीनी का उत्पादन बढ़ने से घरलू मांग पूरी होने का अनुमान है। इन हालातों में सरकार को चीनी के आयात पर शुल्क लगा देना चाहिए। (बिज़नस भास्कर)
आईसीई एक्सचेंज में फ्लैट ट्रांजेक्शन फीस मई तक
वायदा व्यापार आयोग (एफएमसी) ने इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज (आईसीईएक्स) को अगले तीन माह तक फ्लैट ट्रांजेक्शन फीस चार्ज करने की अनुमति दे दी है। इस तरह देश के चौथे राष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंज आईसीईएक्स में निवेश करने पर निवेशकों को मई तक फ्लैट फीस अदा करनी होगी।पिछले 21 नवंबर को शुरू हुए आईसीईएक्स को पहले 26 फरवरी तक प्रति एक लाख रुपये कारोबार पर एक रुपया ट्रांजेक्शन फीस लगाने की अनुमति दी गई थी। इसके बाद एफएमसी ने 12 मार्च को अनुमति दी कि वह 26 मई तक यह दर लागू कर सकता है। ट्रांजेक्शन फीस एक्सचेंज के सदस्य ब्रोकरों को रोजाना प्रति लाख कारोबार पर देनी होती है। आईसीईएक्स में दैनिक कारोबार पर एक समान दर पर फीस लग रही है जबकि बाकी तीनों राष्ट्रीय एक्सचेंजों एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई में विभिन्न स्लैबों में 1-4 रुपये प्रति लाख रुपये फीस लगती है। इस समय एग्री कमोडिटी फ्यूचर में अग्रणी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में रोजाना 125 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार करने वाले सदस्यों पर एक रुपये प्रति लाख फीस लगती है जबकि एनएमसीई में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार करने वाले सदस्यों से इस दर पर फीस वसूली जा रही है। सबसे बड़े एक्सचेंज एमसीएक्स में 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार करने पर एक रुपये प्रति लाख की दर लागू होती है। सार्वजनिक कंपनी एमएमटीसी और इंडिया बुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज द्वारा प्रवर्तित आईसीईएक्स में इंडिया बुल्स की हिस्सेदारी 40 फीसदी और एमएमटीसी की हिस्सेदार 26 फीसदी है। इसके अलावा इंडियन पोटाश लि। के पास 10 और कृभको व आईडीएफसी के पास 5-5 फीसदी हिस्सेदारी है। आईसीईएक्स शुरू होने के बाद से अब तक 116,682 करोड़ रुपये का कारोबार कर चुका है।कमोडिटी वायदा कारोबार 50फीसदी बढ़ानई दिल्ली चालू वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान 15 फरवरी तक देश के कमोडिटी फ्यूचर एक्सचेंजों में 73,50,974 करोड़ रुपये का कारोबार हो चुका है। यह कारोबार पिछले साल की समान अवधि के कारोबार से 50 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल इस अवधि में 49,07,310 करोड़ रुपये कारोबार हुआ था। एग्री कमोडिटी में सबसे ज्यादा कारोबार ग्वारसीड, चना, सोयाबीन और सोया तेल में हुआ। इसके अलावा क्रूड ऑयल में काफी अच्छा कारोबार हुआ। एफएमसी के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान एमसीएक्स का कारोबार 41.61 फीसदी बढ़कर 60,75,989 करोड़ रुपये हो गया। पिछले साल उसका कारोबार इस दौरान 42,90,537 करोड़ रुपये रहा था। एनसीडीएक्स का कारोबार इस अवधि में 70 फीसदी बढ़कर 871,478 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। जबकि एनएमसीई का कारोबार चार गुना बढ़कर 206,886 करोड़ रुपये हो गया। (बिज़नस भास्कर)
26 मार्च 2010
और घट सकते हैं चीनी के दाम
पिछले ढाई महीने में चीनी की कीमतों में 28 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। दिल्ली के थोक बाजार में सात जनवरी को चीनी का भाव 4450 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मंगलवार को घटकर 3200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। अभी इसमें करीब 200 रुपये की और गिरावट आने से भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकते हैं। विदेशी बाजार में रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) के दाम पिछले दो महीने में लगभग 42 फीसदी घट चुके है। दिल्ली के एक चीनी कारोबारी के मुताबिक सात जनवरी को दिल्ली थोक बाजार में चीनी के दाम बढ़कर 4450 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। जबकि मंगलवार को दाम घटकर 3200 रुपये रह गए। इन भावों में भी खरीददार नहीं मिल रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में इसके दाम घटकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल से भी नीचे जाने की संभावना है। चीनी की मांग जहां कमजोर चल रही है, वहीं स्टॉकिस्टों की बिकवाली का दबाव है। उपभोक्ता उद्योग जैसे कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट व कन्फेक्शनरी निर्माता कंपनियां 10 दिन की खपत से ज्यादा चीनी का स्टॉक नहीं कर सकती हैं। इस वजह से चीनी की मांग कमजोर है। व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट होने के कारण बिकवाली का दबाव है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें पिछले ढाई महीने में 1200 रुपये प्रति क्विंटल घट चुकी हैं। जनवरी के प्रथम सप्ताह में एक्स-फैक्ट्री भाव 4300 रुपये प्रति क्विंटल थे, जो मंगलवार को घटकर 3100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उधर महाराष्ट्र की मिलों के भाव भी घटकर मंगलवार को 2950-3000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। चीनी निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बड़े उपभोक्ताओं पर स्टॉक समय सीमा घटाने और विदेशी बाजार में दाम घटने से घरलू बाजार में चीनी की कीमतें गिरी हैं। विदेशी बाजार में एक फरवरी को रॉ शुगर के दाम बढ़कर 30.4 सेंट प्रति पांउड के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गए थे, जो घटकर मंगलवार को 17.40 सेंट प्रति पाउंड पर आ गए। इसी तरह से व्हाइट शुगर के दाम भी 780 डॉलर प्रति टन से घटकर 493 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक 56 लाख टन रॉ शुगर और 13 लाख टन व्हाइट शुगर के आयात सौदे हो चुके हैं। इसमें से 46 लाख टन रॉ शुगर और 7.5 लाख टन व्हाइट चीनी भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी है। विदेशी बाजार में कीमतों में गिरावट बनी होने के कारण भारतीय आयातक नए आयात सौदे नहीं कर रहे हैं। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मिलें किसानों से 260-280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीद कर रही लेकिन घरलू बाजार में चीनी की कीमतों में आई भारी गिरावट से मिलों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में देश में 168.45 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है। सात मार्च तक देश में 143.75 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जो पिछले साल की समान अवधि के 129.50 लाख टन से 11 फीसदी ज्यादा है।rana@businessbhaskar.netबात पते कीचीनी की मांग जहां कमजोर चल रही है, वहीं स्टॉकिस्टों की बिकवाली का दबाव है। उपभोक्ता उद्योग 10 दिन की खपत से ज्यादा चीनी का स्टॉक नहीं कर सकती हैं। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
सीडब्ल्यूसी बढ़ाएगी भंडारण क्षमता
केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) वित्त वर्ष 2010-11 में 1।17 लाख टन भंडारण के लिए नए वेयर हाउस का निर्माण करेगी। सीडब्ल्यूसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए वेयर हाउसों का निर्माण कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उड़ीसा में किया जाएगा। अधिकारी के मुताबिक नए वेयर हाउसों के निर्माण में करीब 50 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। निगम को एक टन की भंडारण क्षमता विकसित करने पर लगभग 4,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इस समय निगम की भंडारण क्षमता 106.5 लाख टन की है। देश भर में निगम के 492 वेयर हाउस हैं। चालू वित्त वर्ष में निगम ने 88 हजार टन भंडारण के लिए वेयर हाउसों का निर्माण किया है। नए वेयर हाउसों का निर्माण होने के बाद निगम की कुल भंडारण क्षमता बढ़कर 108.55 लाख टन की हो जाएगी। चालू वित्त वर्ष में भी निगम ने 88 हजार टन भंडारण क्षमता के लिए तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक में वेयर हाउस बनाए हैं जो मार्च के आखिर तक तैयार होने की संभावना है। करीब 400 से भी अधिक वस्तुओं, जिनमें कृषि उत्पाद, औद्योगिक कच्चा माल, तैयार माल और जल्दी खराब होने वाली खाद्य वस्तुएं भी शामिल हैं, भंडारण किया जाता है। पिछले 31 जनवरी तक के आंकड़ों के अनुसार निगम की 84 फीसदी भंडारण क्षमता का उपयोग हो रहा है। इस समय निगम की 16 फीसदी भंडारण क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा है। यानि ये गोदाम खाली हैं। निगम के 30 लाख टन के वेयर हाउस भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास हैं। मालूम हो कि एफसीआई के पास अपनी भंडारण क्षमता लगभग 288 लाख टन की है, जबकि खाद्यान्न का स्टॉक 400 लाख टन से ज्यादा है। गेहूं की सरकारी खरीद अभी शुरू ही हुई है। (बिज़नस भास्कर)
मक्का का निर्यात रह गया सिर्फ एक तिहाई
पिछले अक्टूबर से शुरू मौजूदा सीजन में देश से मक्का का निर्यात घटकर सिर्फ एक तिहाई रह गया। अब तक सिर्फ चार लाख टन मक्का का निर्यात हो पाया जबकि पिछले साल अक्टूबर से 23 मार्च तक 12 लाख टन मक्का का निर्यात हो गया था। एक विशेषज्ञ के अनुसार घरेलू बाजार में मक्का के दाम विदेश से ऊंचे हैं, इसलिए निर्यात बेपड़ता हो गया है। देश में पिछले सीजन में मानसून हल्का रहने के कारण उत्पादन घट गया था। इसी वजह से मक्का के दाम घरेलू बाजार में ऊंचे चल रहे हैं। मक्का की हल्की सप्लाई होने के कारण पोल्ट्री उद्योग की मांग भी बढ़ गई है। ऑल इंडिया स्टार्च मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस। सेठ का कहना है कि भारत से मक्का का निर्यात लगभग ठप ही है क्योंकि घरेलू बाजार में सप्लाई खपत के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकारी अनुमान के अनुसार मौजूदा सीजन में 173 लाख टन मक्का का उत्पादन हुआ जबकि पिछले साल 197.3 लाख टन मक्का का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2008-09 के दौरान भारत से 24 लाख टन मक्का का निर्यात किया गया था।सेठ ने बताया कि निर्यात के लिए आवश्यक गुणत्ता के मक्का की किल्लत ज्यादा है। कर्नाटक में बारिश होने के कारण फसल को नुकसान हुआ था। कारोबारी आंकड़ों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय मक्का के दाम घटकर 230 डॉलर प्रति टन रह जाने के बावजूद निर्यात नहीं हो रहा है। अमेरिकी मक्का विश्व बाजार में 236 डॉलर प्रति टन के स्तर पर बिक रहा है। कर्वी कॉमट्रेड के विश्लेषक वीरश हिरमथ के अनुसार विदेशी खरीदार भारतीय मक्का आयात करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि घरेलू कारोबारी अच्छी क्वालिटी के मक्का की बड़ी मात्रा में खेप भेजने में असमर्थ हैं। भारत से सामान्यतया दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को मक्का निर्यात किया जाता है। इस समय हाजिर बाजार में मक्का के दाम पिछले साल के मुकाबले 16 फीसदी ऊपर 930 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। (बिज़नस भास्कर)
कपास की तेजी के लिए सीसीआई पर दोष मढ़ा
स्पिनिंग मिलों के संगठन सदर्न इंडिया मिल्स एसोसिएशन ने कॉटन की तेजी के लिए कॉटन कारपोरशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) की मूल्य निर्धारण और सप्लाई नीतियों को जिम्मेदार बताया है। एसोसिएशन के चेयरमैन जे। तुलसीधरन ने एक बयान में कहा कि मौजूदा सीजन के शुरू से ही खुले बाजार में कपास के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊपर रहने से सीसीआई की भूमिका नहीं है, फिर भी वह बाजार में लगातार कॉटन का कारोबार कर रहा है। एसोसिएशन के सदस्यों से शिकायतें मिली हैं कि समझौते के अनुरूप तय मात्रा की एक तिहाई भी कॉटन सीसीआई निर्धारित मूल्य पर बेच नहीं रहा है। वह बार-बार 700-800 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) मूल्य बढ़ा रहा है। उन्होंने बताया कि चूंकि सीसीआई का बिक्री मूल्य बाजार के लिए बेंचमार्क प्राइस बन जाता है। ऐसे में पिछले कुछ दिनों में कॉटन के दाम तेजी से बढ़ गए। सीसीआई ने पिछले 22 मार्च को शंकर-6 किस्म के कॉटन का मूल्य 700 रुपये प्रति कैंडी से ज्यादा बढ़ा दिया।टैक्सटाइल सेक्टर की वैल्यू चेन के उद्योग यार्न के दाम बढ़ने की शिकायत कर रहे है जबकि स्पिनिंग मिलों ने कच्चे माल और बिजली खर्च की पूरी मूल्य वृद्धि के अनुरूप तैयार यार्न के दाम नहीं बढ़ाए हैं।तुलसीधरन ने कहा कि सीसीआई को टैक्सटाइल उद्योग को स्पर्धी बनाए रखने के लिए कॉटन के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए। टैक्सटाइल सेक्टर में श्रमिकों की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। मंदी के बाद यह सेक्टर उबरने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि कॉटन आधारित टैक्सटाइल सेक्टर को पिछले दो साल तक मंदी के कारण भारी संकट का सामना करना पड़ा। (बिसनेस भास्कर)
वैट में वृद्धि से ड्राईफ्रूट पांच फीसदी तक महंगे
वैट बढ़ने से ड्राईफ्रूट की कीमतों में तेजी आने लगी है। पिछले तीन दिनों के दौरान ड्राईफ्रूट की कीमतों में तीन से पांच फीसदी का इजाफा हो चुका है। कारोबारियोंे के अनुसार अगले माह के दौरान इनके दाम और बढ़ने की संभावना है। ड्राईफ्रूट बाजार में बादाम गिरी के दाम 385 रुपये से बढ़कर 400 रुपये प्रति किलो, काजू के दाम 10 रुपये बढ़कर 340 रुपये और पिस्ता ईरानी के दाम 30 रुपये बढ़कर 900 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं। बाजार में देसी किशमिश 90 रुपये से लेकर 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है। खारी बाबली सर्व व्यापार महासंघ के सचिव ऋषि मंगला ने बिजनेस भास्कर को बताया कि दिल्ली सरकार द्वारा बजट में ड्राई्रफ्रूट पर लगने वाले पांच फीसदी वैट को बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया है। इस वजह से बाजार में ड्राईफ्रूट की कीमतोंे में पांच फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। कारोबारियोंे के मुताबिक आगे इसके मूल्यों में और तेजी के आसार है। मंगला कहना है कि अगले माह से शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा। ऐसे में ड्राईफ्रूट की मांग बढ़ने की संभावना है। इस वजह से इसकी कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। कारोबारियों के मुताबिक इस साल पिस्ता के दाम काफी अधिक चल रहे है। इसकी वजह पिस्ता उत्पादक देशों में इसकी पैदावार कम होना है। पिछले साल के मुकाबले पिस्ता के दाम 200 रुपये प्रति किलो से अधिक हैं। पिछले साल पिस्ता करीब त्तक्क् रुपये प्रति किलो बिक रहा था। इसके अलावा बादाम के दाम अंतराराष्ट्रीय बाजार में तेजी के कारण घरेलू बाजार पिछले साल के मुकाबले 12 फीसदी अधिक हैं। गौरतलब है आर्थिक हालात सुधरने के कारण पिछले साल दिवाली पर ड्राईफ्रूट की मांग पिछली दिवाली के मुकाबले करीब 15 फीसदी अधिक रही। दरअसल ड्राई फ्रूट सस्ते होने के कारण भी इसकी मांग में वृद्धि को बल मिला था। दिवाली पर ड्राईफ्रूट की मांग सबसे अधिक रहती है। खारी बावली मंडी ड्राई फ्रूट का देश में सबसे बडा बाजार है। इस बाजार में ड्राईफ्रूट का करीब 1000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार किया जाता है। देश में बादाम और पिस्ता अमेरिका, ईरान और अफगानिस्तान से आयात किया जाता है जबकि देश में केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र उड़ीसा और गोवा में काजू का उत्पादन किया जाता है। देश में किशमिश का उत्पादन नासिक में होता है।बात पते कीपिस्ता उत्पादक देशों में उत्पादन घटने के कारण पिस्ता के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। इन दिनों इसके भाव 200 रुपये बढ़कर 9क्क् रुपये प्रति किलो हो गए हैं। (बिज़नस भास्कर)
मप्र में 1.25 लाख टन गेहूं खरीद
नई दिल्ली/भोपाल March 25, 2010
मध्य प्रदेश में 15 मार्च से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद शुरू होने के बाद से अब तक एक लाख 25 हजार टन गेहूं खरीदा जा चुका है।
खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री पारस जैन ने विभाग की सलाहकार समिति की बैठक में कहा कि 35 लाख टन खरीद के लक्ष्य को पाने के लिए सारे जरूरी इंतजाम करने के साथ ही खरीद की पूरी प्रक्रिया पर पैनी नजर भी रखी जा रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार इस काम में बिचौलियों का दखल होने नहीं देगी और इसलिए उन्हें रोड़ा नहीं बनने दिया जाएगा। अगर सरकारी अमला कोई कोताही बरतेगा है तो सख्त कार्रवाई से बच नहीं पाएगा। राज्य मंत्री ने सदस्यों के इस सुझाव पर रजामंदी जताई कि खरीदे जा रहे गेहूं की गुणवत्ता सुनिश्चित होनी चाहिए।
सदस्यों के सुझाव के परिप्रेक्ष्य में ही जैन ने उन्हें यह बताया कि सिर्फ किसानों और वह भी प्रदेश के किसानों से गेहूं खरीदा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो भंडारण के लिए निजी गोदामों को भी किराए पर लिया जा सकेगा पर फिलहाल भंडारण के पर्याप्त इंतजाम है।
जैन ने सदस्यों के इस सुझाव को भी माना कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली और उपार्जन आदि के कार्यो में कोताही करने वाल कर्मचारियों के खिलाफ जांच का जिम्मा विभागीय अफसरों को न सौंपकर अन्य विभागों के अफसरों को दिया जाना चाहिए। जैन ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधार और इलेक्ट्रॉनिक डाटाबेस तैयार कर बांटे जाने वाले राशन कार्डों की जानकारी भी इस मौके पर दी।
मध्य प्रदेश के बानापुर मंडी में रोजाना 700 क्विंटल के आसपास गेहूं की आवक हो रही है और किसानों से इसकी खरीदारी 1200 रुपये प्रति क्विंटल के औसत मूल्य पर की जा रही है। दूसरी तरफ देश के कई राज्यों में गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल से कम कीमत पर इसकी खरीदारी की खबर मिल रही है।
उत्तर प्रदेश की चार मंडियों में गेहूं की बिक्री 1080 रुपये प्रति क्विंटल से कम कीमत प र हो रही है। इनमें मुख्य रूप से जालौन, कदौरा एवं माधोगढ़ शामिल है। पश्चिम बंगाल की कालीगंज एवं समसी मंडी में गेहूं की बिक्री 900-950 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रही है। राजस्थान की नोखा, सीकार एवं सुजानगढ़ मंडी में भी गेहूं की कीमत एमएसपी से कम बतायी जा रही है। (बीएस हिंदी)
मध्य प्रदेश में 15 मार्च से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद शुरू होने के बाद से अब तक एक लाख 25 हजार टन गेहूं खरीदा जा चुका है।
खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री पारस जैन ने विभाग की सलाहकार समिति की बैठक में कहा कि 35 लाख टन खरीद के लक्ष्य को पाने के लिए सारे जरूरी इंतजाम करने के साथ ही खरीद की पूरी प्रक्रिया पर पैनी नजर भी रखी जा रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार इस काम में बिचौलियों का दखल होने नहीं देगी और इसलिए उन्हें रोड़ा नहीं बनने दिया जाएगा। अगर सरकारी अमला कोई कोताही बरतेगा है तो सख्त कार्रवाई से बच नहीं पाएगा। राज्य मंत्री ने सदस्यों के इस सुझाव पर रजामंदी जताई कि खरीदे जा रहे गेहूं की गुणवत्ता सुनिश्चित होनी चाहिए।
सदस्यों के सुझाव के परिप्रेक्ष्य में ही जैन ने उन्हें यह बताया कि सिर्फ किसानों और वह भी प्रदेश के किसानों से गेहूं खरीदा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो भंडारण के लिए निजी गोदामों को भी किराए पर लिया जा सकेगा पर फिलहाल भंडारण के पर्याप्त इंतजाम है।
जैन ने सदस्यों के इस सुझाव को भी माना कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली और उपार्जन आदि के कार्यो में कोताही करने वाल कर्मचारियों के खिलाफ जांच का जिम्मा विभागीय अफसरों को न सौंपकर अन्य विभागों के अफसरों को दिया जाना चाहिए। जैन ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधार और इलेक्ट्रॉनिक डाटाबेस तैयार कर बांटे जाने वाले राशन कार्डों की जानकारी भी इस मौके पर दी।
मध्य प्रदेश के बानापुर मंडी में रोजाना 700 क्विंटल के आसपास गेहूं की आवक हो रही है और किसानों से इसकी खरीदारी 1200 रुपये प्रति क्विंटल के औसत मूल्य पर की जा रही है। दूसरी तरफ देश के कई राज्यों में गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल से कम कीमत पर इसकी खरीदारी की खबर मिल रही है।
उत्तर प्रदेश की चार मंडियों में गेहूं की बिक्री 1080 रुपये प्रति क्विंटल से कम कीमत प र हो रही है। इनमें मुख्य रूप से जालौन, कदौरा एवं माधोगढ़ शामिल है। पश्चिम बंगाल की कालीगंज एवं समसी मंडी में गेहूं की बिक्री 900-950 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रही है। राजस्थान की नोखा, सीकार एवं सुजानगढ़ मंडी में भी गेहूं की कीमत एमएसपी से कम बतायी जा रही है। (बीएस हिंदी)
खाद्य सुरक्षा की कीमत पर जैव ईंधन मंजूर नहीं
मुंबई March 25, 2010
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि भारत जैव ईंधन के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल के पक्ष में है, लेकिन यह खाद्य सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
जैव ईंधन के निर्माण में खाद्य उत्पादों के बजाए कृषि अवशेषों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। रूस में 25 मार्च से ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस, चीन और भारत के कृषि मंत्रियों की तीन दिवसीय बैठक होने जा रही है।
उम्मीद है कि इस बैठक में चारों देशों के बीच कृषि क्षेत्र में सहयोग को लेकर प्रस्तावित मसौदे पर फैसला लिया जाएगा। कृषि उत्पादन बढ़ाने और जैव ईंधन को प्रोत्साहन देने के लिए तकनीकी सहयोग के साथ-साथ तापमान में बदलाव और खाद्य सुरक्षा पर भी सहयोग के लिए बातचीत होगी।
पवार ने कहा, 'भारत जीवाश्म ईंधन के ज्यादा इस्तेमाल को कम करने के लिए जैव ईंधन के पक्ष में है, लेकिन सरकार का इस बारे में बिल्कुल साफ मत है कि यह खाद्य सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। मतलब यह कि खाद्य उत्पादों के बजाए कृषि अवशेषों से जैव ईंधन के निर्माण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।'
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार बुधवार दोपहर रूस के लिए निकले। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'खाद्य सुरक्षा के मसले पर प्रस्तावित सहयोग के लिए चारों देशों के कृषि मंत्रियों के बीच एकमत बनने की उम्मीद है। बदलते मौसम के खास तौर से कृषि पर असर और कृषि उत्पादका और उत्पादन बढ़ाने को लेकर सहयोग पर फैसले लिए जाएंगे।'
पवार ने बताया कि इस बैठक में विश्व व्यापार संगठन के दोहा सम्मेलन के सफल नतीजों पर भी चर्चा की जाएगी। ब्रिक देश अपने मत पर लंबे समय से कायम हैं कि संरक्षणवाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है। उन्होंने कहा, 'हम कृषि क्षेत्र को दिए जा रहे भारी सब्सिडी को कम करने के लिए व्यापार संघ की दोहा बैठक के नतीजों को बढ़ावा देने पर बात करेंगे।'
पवार ने कहा, 'ब्रिक देशों के कृषि मंत्री वैश्विक खाद्य संकट से निकलने के लिए अपने-अपने प्रयासों को लेकर कटिबद्धता को फिर नया करेंगे। रूस और ब्राजील के बड़े भू-भाग और भारत और चीन के तकनीकी कुशलता की मदद से यह संभव है। इस बैठक में खास तौर से खाद्य सुरक्षा पर सहयोग के मसौदे को पास किए जाएगा।'
रूस रवानगी से पहले पवार ने कहा
आज से रूस में ब्राजील, चीन, रूस एवं भारत के कृषि मंत्रियों की तीन दिवसीय बैठक शुरूकृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ जैव ईंधन के प्रोत्साहन पर बातचीतभारत जैव ईंधन के लिए कृषि अवशेषों को बढ़ावा देने के पक्ष में (बीएस हिंदी)
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि भारत जैव ईंधन के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल के पक्ष में है, लेकिन यह खाद्य सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
जैव ईंधन के निर्माण में खाद्य उत्पादों के बजाए कृषि अवशेषों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। रूस में 25 मार्च से ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस, चीन और भारत के कृषि मंत्रियों की तीन दिवसीय बैठक होने जा रही है।
उम्मीद है कि इस बैठक में चारों देशों के बीच कृषि क्षेत्र में सहयोग को लेकर प्रस्तावित मसौदे पर फैसला लिया जाएगा। कृषि उत्पादन बढ़ाने और जैव ईंधन को प्रोत्साहन देने के लिए तकनीकी सहयोग के साथ-साथ तापमान में बदलाव और खाद्य सुरक्षा पर भी सहयोग के लिए बातचीत होगी।
पवार ने कहा, 'भारत जीवाश्म ईंधन के ज्यादा इस्तेमाल को कम करने के लिए जैव ईंधन के पक्ष में है, लेकिन सरकार का इस बारे में बिल्कुल साफ मत है कि यह खाद्य सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। मतलब यह कि खाद्य उत्पादों के बजाए कृषि अवशेषों से जैव ईंधन के निर्माण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।'
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार बुधवार दोपहर रूस के लिए निकले। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'खाद्य सुरक्षा के मसले पर प्रस्तावित सहयोग के लिए चारों देशों के कृषि मंत्रियों के बीच एकमत बनने की उम्मीद है। बदलते मौसम के खास तौर से कृषि पर असर और कृषि उत्पादका और उत्पादन बढ़ाने को लेकर सहयोग पर फैसले लिए जाएंगे।'
पवार ने बताया कि इस बैठक में विश्व व्यापार संगठन के दोहा सम्मेलन के सफल नतीजों पर भी चर्चा की जाएगी। ब्रिक देश अपने मत पर लंबे समय से कायम हैं कि संरक्षणवाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है। उन्होंने कहा, 'हम कृषि क्षेत्र को दिए जा रहे भारी सब्सिडी को कम करने के लिए व्यापार संघ की दोहा बैठक के नतीजों को बढ़ावा देने पर बात करेंगे।'
पवार ने कहा, 'ब्रिक देशों के कृषि मंत्री वैश्विक खाद्य संकट से निकलने के लिए अपने-अपने प्रयासों को लेकर कटिबद्धता को फिर नया करेंगे। रूस और ब्राजील के बड़े भू-भाग और भारत और चीन के तकनीकी कुशलता की मदद से यह संभव है। इस बैठक में खास तौर से खाद्य सुरक्षा पर सहयोग के मसौदे को पास किए जाएगा।'
रूस रवानगी से पहले पवार ने कहा
आज से रूस में ब्राजील, चीन, रूस एवं भारत के कृषि मंत्रियों की तीन दिवसीय बैठक शुरूकृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ जैव ईंधन के प्रोत्साहन पर बातचीतभारत जैव ईंधन के लिए कृषि अवशेषों को बढ़ावा देने के पक्ष में (बीएस हिंदी)
गिरतीं कीमतों से चीनी कंपनियां परेशान
March 25, 2010
चीनी की गिरती कीमतों से परेशान भारतीय चीनी कंपनियों की धड़कनें अंतरराष्ट्रीय बाजार में लुढ़कते दामों से और भी तेज हो गई हैं।
आईसीई के मई वायदा में कच्ची की कीमतें 18.25 सेंट प्रति पाउंड चल रही हैं। 1 फरवरी को भाव पिछले 30 सालों के सर्वोच्च स्तर पर थे। फिलहाल कीमतें इस स्तर से 40 फीसदी नीचे आ गई हैं। उत्तर भारत की मिलें इस साल किसानों को गन्ने के लिए 260-275 रुपये क्विंटल का दाम चुका रही हैं।
मिलों सें निकलने वाली चीनी के दाम में तेजी से कमी आने से उनके मुनाफे पर असर हो रहा है। पश्चिम और दक्षिण के बाजारों में चीनी के भाव 2,800 रुपये क्विंटल और उत्तर भारत के बाजारों में चीनी के भाव 3,100 रुपये क्विंटल चल रहे हैं।
भारतीय चीनी मिल संघ का कहना है कि चालू सत्र में मिलें उचित और लाभकारी मूल्य के मुकाबले 19,000 करोड़ रुपये ज्यादा का भुगतान कर रही हैं। इसके साथ ही कुल उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा लेवी चीनी में बदले जाने का ससरकारी दबाव भी उन्हें झेलना पड़ रहा है।
इस्मा के अध्यक्ष विवेक सरावगी का कहना सही है कि मिलें किसानों की इतनी ऊंची कीमतें इसलिए चुका रही हैं ताकि गुड़ और खांडसारी व्यवसाय की ओर जा रहे गन्ने रुख चीनी उद्योग की ओर मोड़ा जा सके। सरावगी का कहना है कि मिलों के इस प्रयास से चीनी का उत्पादन इस सत्र के अंत तक पहले के अनुमान 160 लाख टन के बजाए 168.45 लाख टन रह सकता है।
पिछले साल उतपादन केवल 140 लाख टन रहा था। हमारा सालाना उपभोग करीब 230 लाख टन है और 3 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। कच्ची और सफेद दोना तरह की चीनी के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देकर सरकार ने स्थिति को संभालने की जरूर कोशिश की है।
देश में अब तक 30 लाख टन सफेद चीनी आ चुकी है और 20 लाख टन अतिरिक्त चीनी के आयात के लिए सौदे हो चुके हैं। तीन लगातार सालों तक चीनी का निर्यातक रहने के बाद 2008-09 से भारत चीनी के बड़े आयातक के तौर पर उभर रहा है। फसल के दौरान ब्राजील में भारी बारिश और पाकिस्तान, मिस्र और मेक्सिको में भारी मांग की वजह से चीनी सट्टेबाजों के लिए आकर्षक क्षेत्र बन गया है।
21 जनवरी को चीनी के मार्च वायदा भाव 759 डॉलर के उच्च स्तर पर थे, लेकिन तब भी कारोबारी लॉन्ग पोजीशन ले रहे थें। मतलब यह कि उन्हें इसके बाद भी कीमतों में और चढ़ने की उम्मीद थी। इस कीमत पर भी हमारे खरीदार सौदे कर रहे थे लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मिलों में चीनी की कीमतें 3,905 रुपये से 4,050 रुपये प्रति टन के बीच पहुंच गई थीं।
ऐसे में सरकार ने चीनी की कीमतों में कमी करने के तमाम प्रयास किए। बड़े उपभोक्ताओं के लिए स्टॉक सीमा तय की गई। साथ हीं मिलों को चीनी की साप्ताहिक बिक्री को कहा गया। पर, कीमतें ऊंची बनी रहीं।पर अब स्थितियां बदल गई हैं। ब्राजील की सलाहकार कंपनी डाटाग्रो ने अनुमान लगाया है कि ब्राजील का चीनी उत्पादन 12.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 373 लाख टन रहेगा।
भारत में भी चीनी उत्पादन के पुराने रुझानों से पता चलता है कि जब भी किसानों को अपनी मेहनत का उचित इनाम मिलता है और गन्ने की कीमतें जल्दी निश्चत हो जाती हैं, किसान अगले सत्र में ज्यादा जमीन में गन्ने की बुआई करते हैं। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि अक्टूबर में शुरू हो रहे नए सत्र में देश का चीनी उत्पादन 250 लाख टन तक जा सकता है।
दुनिया के दो बड़े चीनी उत्पादक देशों में बढ़िया उत्पादन संभावनाओं को देखते हुए, आगे कीमतों में और गिरावट की संभावनाओं से कोई इनकार नहीं कर सकता। ब्राजील और भारत में बंपर पैदावार को देखते हुए क्या कारोबारी अपने पोजीशन का निपटान करेंगे? क्या वे इस बात से कोई संकेत नहीं लेंगे कि यूरोपीय संघ 5,00,000 टन अतिरिक्त चुकंदर की चीनी बेचने जा रहा है और डब्ल्यूटीओ को भी इसमें कुछ गलत नहीं लगता है।
क्या चीनी बाजार चीन द्वारा आयात संभावनाओं से कोई प्रात्साहन लेगा? इंडोनेशिया, मिस्र, पाकिस्तान और मैक्सिको जैसे देशों की आयात जरूरतों पर बाजार क्या रुख लेता है? आने वाले कुछ कारोबारी सत्रों में हमें इन सवालों का जवाब मिल जाना चाहिए।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल महासंघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे का अनुमान है कि कच्ची चीनी के भाव 18 सेंट और सफेद चीनी के भाव 500 डॉलर से भी नीचे जा सकते हैं। अपनी पोजीशन को जल्दी में समाप्त करना कई खरीदारों के लिए खरीद मूल्य निकालना भी मुश्किल कर सकता है।
इस्मा ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भारतीय आयातकों द्वारा चीनी आयात के कई सौदों के रोके जाने का भी डर है। पर उत्पादन में सुधार और पहले से ही चीनी के पर्याप्त आयात की मदद से अगले सत्र की शुरुआत में हमारे पास अच्छा स्टॉक होगा। (बीएस हिंदी)
चीनी की गिरती कीमतों से परेशान भारतीय चीनी कंपनियों की धड़कनें अंतरराष्ट्रीय बाजार में लुढ़कते दामों से और भी तेज हो गई हैं।
आईसीई के मई वायदा में कच्ची की कीमतें 18.25 सेंट प्रति पाउंड चल रही हैं। 1 फरवरी को भाव पिछले 30 सालों के सर्वोच्च स्तर पर थे। फिलहाल कीमतें इस स्तर से 40 फीसदी नीचे आ गई हैं। उत्तर भारत की मिलें इस साल किसानों को गन्ने के लिए 260-275 रुपये क्विंटल का दाम चुका रही हैं।
मिलों सें निकलने वाली चीनी के दाम में तेजी से कमी आने से उनके मुनाफे पर असर हो रहा है। पश्चिम और दक्षिण के बाजारों में चीनी के भाव 2,800 रुपये क्विंटल और उत्तर भारत के बाजारों में चीनी के भाव 3,100 रुपये क्विंटल चल रहे हैं।
भारतीय चीनी मिल संघ का कहना है कि चालू सत्र में मिलें उचित और लाभकारी मूल्य के मुकाबले 19,000 करोड़ रुपये ज्यादा का भुगतान कर रही हैं। इसके साथ ही कुल उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा लेवी चीनी में बदले जाने का ससरकारी दबाव भी उन्हें झेलना पड़ रहा है।
इस्मा के अध्यक्ष विवेक सरावगी का कहना सही है कि मिलें किसानों की इतनी ऊंची कीमतें इसलिए चुका रही हैं ताकि गुड़ और खांडसारी व्यवसाय की ओर जा रहे गन्ने रुख चीनी उद्योग की ओर मोड़ा जा सके। सरावगी का कहना है कि मिलों के इस प्रयास से चीनी का उत्पादन इस सत्र के अंत तक पहले के अनुमान 160 लाख टन के बजाए 168.45 लाख टन रह सकता है।
पिछले साल उतपादन केवल 140 लाख टन रहा था। हमारा सालाना उपभोग करीब 230 लाख टन है और 3 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। कच्ची और सफेद दोना तरह की चीनी के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देकर सरकार ने स्थिति को संभालने की जरूर कोशिश की है।
देश में अब तक 30 लाख टन सफेद चीनी आ चुकी है और 20 लाख टन अतिरिक्त चीनी के आयात के लिए सौदे हो चुके हैं। तीन लगातार सालों तक चीनी का निर्यातक रहने के बाद 2008-09 से भारत चीनी के बड़े आयातक के तौर पर उभर रहा है। फसल के दौरान ब्राजील में भारी बारिश और पाकिस्तान, मिस्र और मेक्सिको में भारी मांग की वजह से चीनी सट्टेबाजों के लिए आकर्षक क्षेत्र बन गया है।
21 जनवरी को चीनी के मार्च वायदा भाव 759 डॉलर के उच्च स्तर पर थे, लेकिन तब भी कारोबारी लॉन्ग पोजीशन ले रहे थें। मतलब यह कि उन्हें इसके बाद भी कीमतों में और चढ़ने की उम्मीद थी। इस कीमत पर भी हमारे खरीदार सौदे कर रहे थे लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मिलों में चीनी की कीमतें 3,905 रुपये से 4,050 रुपये प्रति टन के बीच पहुंच गई थीं।
ऐसे में सरकार ने चीनी की कीमतों में कमी करने के तमाम प्रयास किए। बड़े उपभोक्ताओं के लिए स्टॉक सीमा तय की गई। साथ हीं मिलों को चीनी की साप्ताहिक बिक्री को कहा गया। पर, कीमतें ऊंची बनी रहीं।पर अब स्थितियां बदल गई हैं। ब्राजील की सलाहकार कंपनी डाटाग्रो ने अनुमान लगाया है कि ब्राजील का चीनी उत्पादन 12.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 373 लाख टन रहेगा।
भारत में भी चीनी उत्पादन के पुराने रुझानों से पता चलता है कि जब भी किसानों को अपनी मेहनत का उचित इनाम मिलता है और गन्ने की कीमतें जल्दी निश्चत हो जाती हैं, किसान अगले सत्र में ज्यादा जमीन में गन्ने की बुआई करते हैं। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि अक्टूबर में शुरू हो रहे नए सत्र में देश का चीनी उत्पादन 250 लाख टन तक जा सकता है।
दुनिया के दो बड़े चीनी उत्पादक देशों में बढ़िया उत्पादन संभावनाओं को देखते हुए, आगे कीमतों में और गिरावट की संभावनाओं से कोई इनकार नहीं कर सकता। ब्राजील और भारत में बंपर पैदावार को देखते हुए क्या कारोबारी अपने पोजीशन का निपटान करेंगे? क्या वे इस बात से कोई संकेत नहीं लेंगे कि यूरोपीय संघ 5,00,000 टन अतिरिक्त चुकंदर की चीनी बेचने जा रहा है और डब्ल्यूटीओ को भी इसमें कुछ गलत नहीं लगता है।
क्या चीनी बाजार चीन द्वारा आयात संभावनाओं से कोई प्रात्साहन लेगा? इंडोनेशिया, मिस्र, पाकिस्तान और मैक्सिको जैसे देशों की आयात जरूरतों पर बाजार क्या रुख लेता है? आने वाले कुछ कारोबारी सत्रों में हमें इन सवालों का जवाब मिल जाना चाहिए।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल महासंघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे का अनुमान है कि कच्ची चीनी के भाव 18 सेंट और सफेद चीनी के भाव 500 डॉलर से भी नीचे जा सकते हैं। अपनी पोजीशन को जल्दी में समाप्त करना कई खरीदारों के लिए खरीद मूल्य निकालना भी मुश्किल कर सकता है।
इस्मा ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भारतीय आयातकों द्वारा चीनी आयात के कई सौदों के रोके जाने का भी डर है। पर उत्पादन में सुधार और पहले से ही चीनी के पर्याप्त आयात की मदद से अगले सत्र की शुरुआत में हमारे पास अच्छा स्टॉक होगा। (बीएस हिंदी)
रबर में जबरदस्त उछाल से टायर कंपनियां दबाव में
कोच्चि March 25, 2010
हाल के दिनों में प्राकृतिक रबर की कीमतों में असामान्य उछाल की वजह से घरेलू टायर कंपनियां एक बार फिर खासे दबाव में हैं।
केवल 4 सप्ताह की अवधि में बेंच मार्क ग्रेड आरएसएस-4 का भाव 10 प्रतिशत बढ़कर 155 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। टायर विनिर्माण की प्रमुख सामग्री की कीमत में उछाल से देश की प्रमुख टायर कंपनियां इस वर्ष दूसरी बार टायर की कीमतें बढ़ने के लिए मजबूर हुईं हैं।
तमाम तरह के टायरों की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने का फैसला फिलहाल विचाराधीन है और इस बात की पूरी संभावना है कि अगले 2 महीने के भीतर इस पर अमल किया जाएगा।
बड़ी टायर कंपनियां इस बात की पूरी कोशिश कर रही हैं कि कीमतें नहीं बढ़ाई जाएं, लेकिन रबर की कीमत बढ़ने की वजह से उनकी उत्पादन लागत इतनी बढ़ गई है कि उन्हें मूल्य रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष जनवरी में टायर की कीमतें 2-7 प्रतिशत बढ़ी थीं।
अपोलो टायर्स के मुख्य विनिर्माण एवं विपणन अधिकारी सतीश शर्मा ने कहा, 'टायरों की उत्पादन लागत में तकरीबन 50 फीसदी हिस्सा प्राकृतिक रबर का होता है। अब रबर लगातार महंगा हो रहा है यही वजह है कि टायरों की कीमतें एक बार फिर बढ़ेंगी। हम निश्चित रूप से इस बारे में सोचेंगे। इस वर्ष अप्रैल से टायरों पर उत्पाद शुल्क भी बढ़ने वाला है। इसलिए इसके बाद हम कीमतें बढ़ाने पर विचार करेंगे।'
उन्होंने कहा कि टायरों की कीमतें बढ़ाने का फैसला केवल रबर के भाव बढ़ने से सीधे-सीधे संबंधित नहीं है। प्रतिस्पर्द्धी कंपनियों की मूल्य रणनीति भी इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। जे के टायर्स के निदेशक (विपणन) ए एस मेहता ने कहा, 'कीमतें बढ़ानी पड़ेगी। आप मूल्य वृद्धि किए बगैर उत्पादन प्रबंधन नहीं कर सकते। क्योंकि रबर की कीमत बढ़ने से टायर उद्योग पर काफी दबाव है।
इससे केवल टायर कंपनियां ही प्रभावित नहीं हो रही हैं, बल्कि देश में रबर आधारित तमाम उद्योग इसके लपेटे में आ रहे हैं।' उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी एक सप्ताह के भीतर कीमतें बढ़ाने के मसले पर फैसला करेगी। देश की तमाम टायर विनिर्माता कंपनियां इसी तरह की सोच रखती हैं।
वजह यह है कि इसके प्रमुख घटक रबड़ के भाव बढ़ने से उनके मुनाफे पर बहुत ज्यादा दबाव है। गौरतलब है कि घरेलू टायर उद्योग विदेशी कंपनियों की ओर से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है क्योंकि उन्हें तुलनात्मक रूप से सस्ते प्राकृतिक रबर उपलब्ध हो रहे हैं। देश में फिलहाल रबर की कीमत सिंगापुर में इसकी कीमत से 5 रुपये प्रति किलोग्राम अधिक है। (बीएस हिंदी)
हाल के दिनों में प्राकृतिक रबर की कीमतों में असामान्य उछाल की वजह से घरेलू टायर कंपनियां एक बार फिर खासे दबाव में हैं।
केवल 4 सप्ताह की अवधि में बेंच मार्क ग्रेड आरएसएस-4 का भाव 10 प्रतिशत बढ़कर 155 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंचा। टायर विनिर्माण की प्रमुख सामग्री की कीमत में उछाल से देश की प्रमुख टायर कंपनियां इस वर्ष दूसरी बार टायर की कीमतें बढ़ने के लिए मजबूर हुईं हैं।
तमाम तरह के टायरों की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने का फैसला फिलहाल विचाराधीन है और इस बात की पूरी संभावना है कि अगले 2 महीने के भीतर इस पर अमल किया जाएगा।
बड़ी टायर कंपनियां इस बात की पूरी कोशिश कर रही हैं कि कीमतें नहीं बढ़ाई जाएं, लेकिन रबर की कीमत बढ़ने की वजह से उनकी उत्पादन लागत इतनी बढ़ गई है कि उन्हें मूल्य रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष जनवरी में टायर की कीमतें 2-7 प्रतिशत बढ़ी थीं।
अपोलो टायर्स के मुख्य विनिर्माण एवं विपणन अधिकारी सतीश शर्मा ने कहा, 'टायरों की उत्पादन लागत में तकरीबन 50 फीसदी हिस्सा प्राकृतिक रबर का होता है। अब रबर लगातार महंगा हो रहा है यही वजह है कि टायरों की कीमतें एक बार फिर बढ़ेंगी। हम निश्चित रूप से इस बारे में सोचेंगे। इस वर्ष अप्रैल से टायरों पर उत्पाद शुल्क भी बढ़ने वाला है। इसलिए इसके बाद हम कीमतें बढ़ाने पर विचार करेंगे।'
उन्होंने कहा कि टायरों की कीमतें बढ़ाने का फैसला केवल रबर के भाव बढ़ने से सीधे-सीधे संबंधित नहीं है। प्रतिस्पर्द्धी कंपनियों की मूल्य रणनीति भी इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। जे के टायर्स के निदेशक (विपणन) ए एस मेहता ने कहा, 'कीमतें बढ़ानी पड़ेगी। आप मूल्य वृद्धि किए बगैर उत्पादन प्रबंधन नहीं कर सकते। क्योंकि रबर की कीमत बढ़ने से टायर उद्योग पर काफी दबाव है।
इससे केवल टायर कंपनियां ही प्रभावित नहीं हो रही हैं, बल्कि देश में रबर आधारित तमाम उद्योग इसके लपेटे में आ रहे हैं।' उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी एक सप्ताह के भीतर कीमतें बढ़ाने के मसले पर फैसला करेगी। देश की तमाम टायर विनिर्माता कंपनियां इसी तरह की सोच रखती हैं।
वजह यह है कि इसके प्रमुख घटक रबड़ के भाव बढ़ने से उनके मुनाफे पर बहुत ज्यादा दबाव है। गौरतलब है कि घरेलू टायर उद्योग विदेशी कंपनियों की ओर से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है क्योंकि उन्हें तुलनात्मक रूप से सस्ते प्राकृतिक रबर उपलब्ध हो रहे हैं। देश में फिलहाल रबर की कीमत सिंगापुर में इसकी कीमत से 5 रुपये प्रति किलोग्राम अधिक है। (बीएस हिंदी)
हीरे की बढ़ गई चमक
मुंबई March 25, 2010
मंदी का अंधेरा छंटने के साथ ही हीरे की चमक भी बढ़ने लगी है।
देसी बाजार में मांग अधिक और आपूर्ति कम होने के कारण पिछले दो महीनों में तराशे गए हीरों के दाम में करीब 25 फीसदी बढ़ गए हैं। दिलचस्प है कि इसके बाद भी घरेलू बाजार से मांग कम नहीं हो रही है।
देश में हीरे के सबसे बड़े बाजार पंचरत्न के सचिव नरेश मेहता का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में 30 प्वाइंट से लेकर एक कैरट तक के हीरों के दाम 15 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। बाजार में 200 डॉलर से कम कीमत वाले हीरों की मांग अधिक होने के कारण इनकी कीमतों में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
दाम बढ़ने की दूसरी वजह है विदेश से आने वाले अपरिष्कृत हीरे की कमी भी काफी हद तक जिम्मेदार है। दरअसल जिंबाब्वे से आने वाले कच्चे हीरों के आयात पर रोक है और सीमा शुल्क विभाग की सख्ती के कारण ये देश में नहीं आ पा रहे हैं।
कारोबारियों ने बताया कि पहले इस रोक के बावजूद कुछ माल आ जाता था लेकिन अब ऐसा मुमकिन नहीं है। मानो यह ही काफी नहीं था कि कच्चे हीरों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों ने भी दाम बढ़ा दिए। अपरिष्कृत हीरे की आपूर्ति में अग्रणी कंपनी टीडीएस ने भी इसके दाम बढ़ा दिए हैं।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी प्रमोशन कॉउंसिल के पूर्व चेयरमैन मनहर भंसाली कहते हैं कि कारोबारियों के पास तैयार माल नहीं है तो उत्पाद के दाम बढ़ना तो लाजिमी है। उन्होंने बताया कि पिछले 3 महीनों में हीरों की कीमतों में 20-25 फीसदी इजाफा हुआ है।
हालांकि हकीकत यह है कि मांग कम है लेकिन बाजार उस मांग को भी पूरा नहीं कर पा रहा है। दरअसल 2008 में मंदी की मार से बेरोजगार हुए अधिकतर हीरा कारीगर दूसरे क्षेत्र में चले गए और मजदूरों की कमी से माल ही तैयार नहीं हो पा रहा है।
हीरा बाजार पर पैनी नजर रखने वाले हार्दिक हुंडियां कहते हैं कि 2008-09 में मंदी के कारण छोटे कारोबारियों ने अपना स्टॉक घटा दिया था। निर्यात में कमी आने की आशंका से बड़े कारोबारियों ने भी तैयार माल का भंडार कम ही रखा।
हालांकि हीरा उद्योग के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि हीरों की घरेलू मांग में 50 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है जो आगे भी बरकरार रहने की उम्मीद है। दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में अभी हल्के और कम कीमत वाले हीरों की काफी मांग है जबकि दक्षिण भारत में अच्छे हीरों की मांग बढ़ी है, वही मुंबई और सूरत में सभी तरह के हीरों की मांग में इजाफा हुआ है। (बीएस हिंदी)
मंदी का अंधेरा छंटने के साथ ही हीरे की चमक भी बढ़ने लगी है।
देसी बाजार में मांग अधिक और आपूर्ति कम होने के कारण पिछले दो महीनों में तराशे गए हीरों के दाम में करीब 25 फीसदी बढ़ गए हैं। दिलचस्प है कि इसके बाद भी घरेलू बाजार से मांग कम नहीं हो रही है।
देश में हीरे के सबसे बड़े बाजार पंचरत्न के सचिव नरेश मेहता का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में 30 प्वाइंट से लेकर एक कैरट तक के हीरों के दाम 15 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। बाजार में 200 डॉलर से कम कीमत वाले हीरों की मांग अधिक होने के कारण इनकी कीमतों में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
दाम बढ़ने की दूसरी वजह है विदेश से आने वाले अपरिष्कृत हीरे की कमी भी काफी हद तक जिम्मेदार है। दरअसल जिंबाब्वे से आने वाले कच्चे हीरों के आयात पर रोक है और सीमा शुल्क विभाग की सख्ती के कारण ये देश में नहीं आ पा रहे हैं।
कारोबारियों ने बताया कि पहले इस रोक के बावजूद कुछ माल आ जाता था लेकिन अब ऐसा मुमकिन नहीं है। मानो यह ही काफी नहीं था कि कच्चे हीरों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों ने भी दाम बढ़ा दिए। अपरिष्कृत हीरे की आपूर्ति में अग्रणी कंपनी टीडीएस ने भी इसके दाम बढ़ा दिए हैं।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी प्रमोशन कॉउंसिल के पूर्व चेयरमैन मनहर भंसाली कहते हैं कि कारोबारियों के पास तैयार माल नहीं है तो उत्पाद के दाम बढ़ना तो लाजिमी है। उन्होंने बताया कि पिछले 3 महीनों में हीरों की कीमतों में 20-25 फीसदी इजाफा हुआ है।
हालांकि हकीकत यह है कि मांग कम है लेकिन बाजार उस मांग को भी पूरा नहीं कर पा रहा है। दरअसल 2008 में मंदी की मार से बेरोजगार हुए अधिकतर हीरा कारीगर दूसरे क्षेत्र में चले गए और मजदूरों की कमी से माल ही तैयार नहीं हो पा रहा है।
हीरा बाजार पर पैनी नजर रखने वाले हार्दिक हुंडियां कहते हैं कि 2008-09 में मंदी के कारण छोटे कारोबारियों ने अपना स्टॉक घटा दिया था। निर्यात में कमी आने की आशंका से बड़े कारोबारियों ने भी तैयार माल का भंडार कम ही रखा।
हालांकि हीरा उद्योग के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि हीरों की घरेलू मांग में 50 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है जो आगे भी बरकरार रहने की उम्मीद है। दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में अभी हल्के और कम कीमत वाले हीरों की काफी मांग है जबकि दक्षिण भारत में अच्छे हीरों की मांग बढ़ी है, वही मुंबई और सूरत में सभी तरह के हीरों की मांग में इजाफा हुआ है। (बीएस हिंदी)
बिहार में फसल बर्बादी से मक्के के भाव में मजबूती
नई दिल्ली March 26, 2010
बिहार के मक्के में दाने नहीं आने से मक्के की कीमत में थोड़ी मजबूती दर्ज की गई है।
15 दिन पहले तक जिन राज्यों में मक्के की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चली गई थी वहां अब मक्के की कीमत 900 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बताई जा रही है। दूसरी तरफ बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मक्का किसानों को प्रति हेक्टेयर 10 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है।
हालांकि किसानों का कहना है कि एक तो इतनी राशि पर्याप्त नहीं है और दूसरी बात कि यह राशि कब मिलेगी, इस बात की कोई घोषणा नहीं की गई है। रबी के दौरान बिहार में मक्के की खेती व्यापक रूप से की जाती है। इस साल बिहार में 3.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मक्के की खेती की गई थी। इनमें से 60 हजार हेक्टेयर में उगाए गए मक्के में दाने नहीं आए।
इस प्रकार की शिकायत मुख्य रूप से बिहार के कटिहार इलाके से मिल रही है। बिहार सरकार ने मक्के में दाने नहीं होने की जांच राजेंद्र कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों से कराई है। वैज्ञानिकों ने सरकार को बताया है कि मक्के के बीज में गड़बड़ी होने के कारण दाने नहीं आए। अब सरकार बीज देने वाली कंपनियों से जवाब-तलब कर रही है।
बिहार सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि मक्के की फसल खराब होने की वजह कटिहार के एक किसान ने आत्महत्या की है। बिहार सरकार ने ऐलान किया है कि प्रभावित किसानों को 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की मुआवजा राशि दी जाएगी ताकि अगली फसल के लिए उनकी पूंजी बरकरार रहे। लेकिन किसानों की दलील है कि यह राशि लागत के लिहाज से कम है।
उनका कहना है कि सरकार अगली फसल के लिए राशि दे रही है, लेकिन मक्के से होने वाली कमाई के नुकसान की भरपाई कौन करेगा। बिहार में रबी के दौरान मक्के की पर्याप्त खेती होती है। इस दौरान बिहार की मक्का फसल से देश भर में मक्के की कीमत प्रभावित होती है। बिहार की फसल खराब होने से अन्य राज्यों की मंडियों में भी मक्के की हाजिर कीमत थोड़ी मजबूत हुई है।
उत्तर प्रदेश में मक्के की कीमत 980-990 रुपये प्रति क्विंटल बताई जा रही है। वहीं राजस्थान में मक्के की कीमत तेजी के साथ 950-1040 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है। रबी के दौरान आंध्र प्रदेश में भी मक्के की खेती होती है और यहां मक्के के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य 840 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है। 10 दिन पहले यहां मक्के की कीमत समर्थन मूल्य से नीचे चल रही थी। (बीएस हिंदी)
बिहार के मक्के में दाने नहीं आने से मक्के की कीमत में थोड़ी मजबूती दर्ज की गई है।
15 दिन पहले तक जिन राज्यों में मक्के की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चली गई थी वहां अब मक्के की कीमत 900 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बताई जा रही है। दूसरी तरफ बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मक्का किसानों को प्रति हेक्टेयर 10 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है।
हालांकि किसानों का कहना है कि एक तो इतनी राशि पर्याप्त नहीं है और दूसरी बात कि यह राशि कब मिलेगी, इस बात की कोई घोषणा नहीं की गई है। रबी के दौरान बिहार में मक्के की खेती व्यापक रूप से की जाती है। इस साल बिहार में 3.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मक्के की खेती की गई थी। इनमें से 60 हजार हेक्टेयर में उगाए गए मक्के में दाने नहीं आए।
इस प्रकार की शिकायत मुख्य रूप से बिहार के कटिहार इलाके से मिल रही है। बिहार सरकार ने मक्के में दाने नहीं होने की जांच राजेंद्र कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों से कराई है। वैज्ञानिकों ने सरकार को बताया है कि मक्के के बीज में गड़बड़ी होने के कारण दाने नहीं आए। अब सरकार बीज देने वाली कंपनियों से जवाब-तलब कर रही है।
बिहार सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि मक्के की फसल खराब होने की वजह कटिहार के एक किसान ने आत्महत्या की है। बिहार सरकार ने ऐलान किया है कि प्रभावित किसानों को 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की मुआवजा राशि दी जाएगी ताकि अगली फसल के लिए उनकी पूंजी बरकरार रहे। लेकिन किसानों की दलील है कि यह राशि लागत के लिहाज से कम है।
उनका कहना है कि सरकार अगली फसल के लिए राशि दे रही है, लेकिन मक्के से होने वाली कमाई के नुकसान की भरपाई कौन करेगा। बिहार में रबी के दौरान मक्के की पर्याप्त खेती होती है। इस दौरान बिहार की मक्का फसल से देश भर में मक्के की कीमत प्रभावित होती है। बिहार की फसल खराब होने से अन्य राज्यों की मंडियों में भी मक्के की हाजिर कीमत थोड़ी मजबूत हुई है।
उत्तर प्रदेश में मक्के की कीमत 980-990 रुपये प्रति क्विंटल बताई जा रही है। वहीं राजस्थान में मक्के की कीमत तेजी के साथ 950-1040 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है। रबी के दौरान आंध्र प्रदेश में भी मक्के की खेती होती है और यहां मक्के के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य 840 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है। 10 दिन पहले यहां मक्के की कीमत समर्थन मूल्य से नीचे चल रही थी। (बीएस हिंदी)
राज्यों को और दो महीने मिल सकता है रियायती दरों पर चावल
नई दिल्ली: राज्यों को खुदरा आपूर्ति के लिए केंद्रीय पूल से और दो महीनों के लिए रियायती दर पर चावल मिल सकता है। इस संबंध में एक प्रस्ताव खाद्य मंत्रालय के पास भेजा गया है। सरकार के एक आला अधिकारी ने बताया कि खुला बाजार बिक्री योजना के तहत चावल की बिक्री 31 मार्च तक खुली है। राज्यों को आवंटित कोटा उठाने के लिए उन्हें और दो महीने का समय दिया जा सकता है। नवंबर में केंद्र ने राज्यों को खुले बाजार की बिक्री के लिए 10 लाख टन चावल आवंटित किया था। राज्य सरकारों को अपना कोटा उठाने के लिए 31 मार्च तक का समय रखा गया है। अधिकारी ने कहा कि केंद्र द्वारा कुछ समय पहले कीमतों में कमी किए जाने के बावजूद राज्यों ने अभी तक केवल 4।5 लाख टन चावल का उठाव किया है। चार लाख टन से अधिक चावल का उठाव दक्षिणी राज्यों ने किया है। (ई टी हिंदी)
मुश्किल वक्त में भी सोना चमका
नई दिल्ली / लंदन : सोने की कीमतों में शुक्रवार को घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों में मामूली बदलाव देखने को मिला। घरेलू बाजार में सोने जार में खमें जहां थोड़ी तेजी आई, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में यह मामूली गिरावट के साथ बंद हुआ। शुक्रवार को घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में 30 रुपए का मामूली उछाल आया। दिल्ली सर्राफा बाजार में खरीदारी को समर्थन मिलने से सोने का भाव 30 रुपए उछलकर 16,940 रुपए प्रति 10 ग्राम रहा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में शुक्रवार को सोना यूरो की कमजोरी का शिकार हुआ। डॉलर के मुकाबले यूरो के कमजोर होने से सोने की कीमतों में हल्की गिरावट आई। हालांकि, हालिया कारोबारी सत्रों में सोने ने डॉलर के मजबूत होने के बावजूद जिस तरह से खुद को बड़ी गिरावट से रोक रखा है, उसे देखकर कारोबारी काफी खुश नजर आ रहे हैं। न्यूयॉर्क में शुक्रवार को सोने की हाजिर कीमत 1,120.95 डॉलर प्रति औंस रही जबकि गुरुवार को सोना 1,125.45 डॉलर पर रहा था। इसी तरह से न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन पर सोने के अप्रैल फ्यूचर्स का भाव 5.90 डॉलर गिरकर 1,121.60 डॉलर प्रति औंस पर आ गया। एक एनालिस्ट के मुताबिक, 'एक ओर तो डॉलर की मजबूती का सोने पर दबाव बन रहा है जबकि दूसरी ओर बाजार में लगातार निवेशक आ रहे हैं। गोल्ड ने डॉलर की मजबूती के खिलाफ डटने की जबरदस्त क्षमता दिखाई है।' दिल्ली सर्राफा बाजार में स्टैंडर्ड गोल्ड और गहने दोनों के भाव खरीदारी के चलते 30 रुपए चढ़कर क्रमश: 16,940 रुपए और 16,790 रुपए पर पहुंच गए। कारोबारियों के मुताबिक, खरीदारी बाजार में सोने के लिए अच्छा संकेत बनी और इससे इसकी कीमतों में तेजी आई। शुक्रवार को दिल्ली में चांदी पर बिकवाली का दबाव रहा। इसके चलते इसमें 75 रुपए की गिरावट आई। तैयार चांदी की कीमत इस गिरावट के साथ 27,175 रुपए प्रति किलो रही।(इ टी हिंदी)
कृषि उत्पादन के लिए बेहतर तैयारी
नई दिल्ली : साल 2010-11 में कृषि उत्पादन में भारी बढ़ोतरी सुनिश्चित करने के लिए सरकार कोई भी कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती है। शुरुआती संकेत बता रहे हैं कि साल 2010 में सूखे जैसे हालात नहीं पैदा होंगे। हालांकि सरकार ने सभी तरह के मानसून हालात में खरीफ फसलों का अधिकतम उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत केंद्र ने राज्य सरकारों से बारिश से जुड़ी मुश्किलों से मुकाबला करने के लिए आपातकालीन योजना तैयार करने को कहा है। यहां दो दिनों तक चले खरीफ सम्मेलन में इससे जुड़ी अहम चिंताओं पर विचार किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्वोत्तर राज्यों में जल संरक्षण के हालात काफी खराब हैं और ऐसे में इन राज्यों को ज्यादा सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। इन राज्यों से सिंचाई और बाकी उद्देश्यों के लिए पानी के इस्तेमाल में काफी सावधानी बरतने को कहा गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा कृषि आंकड़ों के मामले पर खास तवज्जो की उम्मीद है। इसका मकसद प्रमुख फसलों के उत्पादन अनुमानों में होने वाली गड़बड़ी को रोकना और जिला और राज्य स्तर पर उत्पादन आंकड़ों को दुरुस्त करना है। सम्मेलन में कृषि मंत्री शरद पवार ने बताया कि पिछले खरीफ सीजन में आए जबरदस्त सूखे की वजह से अनाजों के उत्पादन और बढ़ोतरी के लक्ष्य को पाने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके मुताबिक, हालांकि खरीफ फसलों के नुकसान को कम कर और रबी फसलों की जल्दी बुआई के लिए मदद मुहैया कराकर इस संकट से निपटने की यथासंभव कोशिश की गई। साल 2009-10 में फसलों के उत्पादन संबंधी अनुमानों (खासकर शुगर) के बारे में सही वक्त पर जानकारी मुहैया नहीं कराए जाने के लिए उन्होंने राज्य सरकारों को दोषी ठहराते हुए कहा कि इस वजह से ऊंचे उत्पादन के गलत आंकड़े आए, जिसके परिणामस्वरूप चीनी की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिला। पवार के मुताबिक, आगामी कृषि वर्ष में 4 फीसदी कृषि विकास दर हासिल करने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं और इसके जरिए साल 2009-10 में कृषि उत्पादन में हुई गिरावट की क्षतिपूर्ति करने का प्रयास किया जाएगा। संकेत मिल रहे हैं कि अल नीनो का प्रभाव विकसित हो रहा है और इसके बाद के साल में सामान्यतया सामान्य बारिश होती है। फार्म सचिव पी के बसु ने इस सम्मेलन में किसानों को उचित वक्त पर खाद उपलब्ध कराने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगले खरीफ सीजन के दौरान उत्पादन बढ़ाने में इसकी भूमिका काफी अहम होगी। बसु ने राज्य सरकारों से न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी पॉलिसी को लागू करने के लिए सभी एहतियाती उपाय करने का अनुरोध किया। न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी पॉलिसी 1 अप्रैल 2010 से लागू होने वाली है। सम्मेलन में मौजूद विशेषज्ञों ने नकली कीटनाशकों के प्रयोग और मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं की संख्या में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने पर खासी चिंता जताई। (ई टी हिंदी)
23 मार्च 2010
कृषि क्षेत्र को लेकर योजना आयोग गंभीर
नई दिल्ली : योजना आयोग ने कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सुधारों की वकालत की है। आयोग ने उपज बढ़ाने और खाद्यान्न की कीमतों पर काबू पाने की सरकार की मौजूदा रणनीति की कड़ी आलोचना भी की है। आयोग ने कहा है कि कृषि उत्पादों की कीमत तय करने में बाजार से जुड़े पहलू का ज्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए और इसके लिए समर्थन मूल्य से खरीद मूल्य का ताल्लुक खत्म करना चाहिए। आयोग ने तमाम शुल्क और भंडार सीमा खत्म करने, देश भर में उत्पादों की बेरोकटोक आवाजाही को बढ़ावा देने और निर्यात तथा वायदा कारोबार पर पाबंदी खत्म करने का मशविरा भी दिया है। 11वीं योजना (2007-12) के मध्यवर्ती समीक्षा में आयोग ने कहा है कि 2005-06 और 2007-08 में कृषि क्षेत्र ने 4 फीसदी की दर से बढ़कर जहां बढि़या प्रदर्शन किया, वहीं पिछले दो साल का इसका प्रदर्शन दिखाता है कि सरकार की रणनीति ज्यादा प्रभावशाली नहीं रही है और इस क्षेत्र की वृद्धि दर बनाए रखने के लिए आपूर्ति के पहलू पर ज्यादा प्रयास किए जाने की जरूरत है। इस समीक्षा को अभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में पूर्ण योजना आयोग की ओर से मंगलवार को हरी झंडी दिखाई जानी है। दस्तावेज ने कहा गया है, 'इस बात का पर्याप्त विश्लेषण नहीं किया गया है कि इसका (2005-06 से तीन वर्षों में हासिल वृद्धि) कितना हिस्सा सरकारी रणनीति के तहत कृषि के लिए बढ़े आवंटन के दम पर आया है और कितना अनुकूल मौसम के कारण मिला है। यह भी साफ नहीं है कि इसमें बेहतर मांग और कीमतों के कारण निजी निवेश में बढ़ोतरी का इसमें कितना योगदान रहा है।' खाद्य मुद्रास्फीति दर पर काबू पाने में नाकामी को देखते हुए कृषि क्षेत्र से जुड़ी सरकारी नीतियों की चौतरफा आलोचना हो रही है। खाद्य मुद्रास्फीति दर फिलहाल लगभग 20 फीसदी के स्तर पर है, जो बीते कई वर्षों में नहीं देखा गया था। 2008-09 में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 1.6 फीसदी रह गई थी जबकि बारिश की पतली हालत के कारण रबी की फसलों की बुरी गत को देखते हुए 2009-10 में वृद्धि दर में 0.2 फीसदी गिरावट की आशंका जताई जा रही है। सरकार ने अगले कारोबारी साल के लिए कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4 फीसदी पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। कृषि उत्पादन बढ़ाने से जुड़ी 11वीं योजना की रणनीति के तहत खाद्य सुरक्षा की चिंता पर गौर करते हुए आधुनिक तकनीकों तक किसानों की आसान पहुंच बनाने, सरकारी निवेश की मात्रा और उसका प्रभाव बढ़ाने, सब्सिडी को वाजिब बनाते हुए व्यवस्थागत समर्थन बढ़ाने और अधिक कीमत देने वाली फसलों और पशुपालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है। (बीएस हिंदी)
अनुकूल मौसम से लीची उत्पादन बढ़ने का अनुमान
मौसम अनुकूल रहने की वजह से इस बार लीची के उत्पादन में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसके कारण इस साल गर्मियों में लीची सस्ते मूल्य पर सुलभ होने की संभावना है।लीची उत्पादन में बिहार सबसे बड़ा राज्य है। बिहार स्थित मुजफ्फरपुर के लीची अनुसंधान संस्थान के डायरक्टर के। के. कुमार ने बिजनेस भास्कर को बताया कि पिछले साल अच्छी बारिश होने की वजह से लीची में इस बार फ्लावरिंग (फूल आना) अच्छी रही। साथ ही अभी तक तापमान भी लीची की फसल के लिए अनुकूल रहा है। यही कारण है कि बिहार में इस साल लीची का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी तक अधिक होने की संभावना है। राज्य में करीब दो लाख टन लीची का उत्पादन हो सकता है। देश में लीची के कुल उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सेदारी बिहार की है। बिहार की शाही लीची की विदेशों में भी काफी मांग रहती है।उत्तराखंड के नैनीताल जिले के लीची उत्पादक आर.एस. रंधावा का कहना है कि इस बार मौसम लीची के अनुकूल रहा है। इस वजह से राज्य के लीची उत्पादन में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। उनके मुताबिक लीची क्वालिटी पिछले साल के मुकाबले काफी बेहतर रहने वाली है जो कि उत्पादक और उपभोक्ता दोनो के लिए अच्छी बात है। उत्तराखंड की रोजसेंटेड किस्म की लीची ज्यादा मशहूर है। उत्पादन बढ़ने की वजह से ग्राहकों को राहत मिल सकती है। रंधावा के अनुसार पिछले साल के मुकाबले लीची के दाम 15 फीसदी तक कम रह सकते है। गौरतलब है कि पिछले साल मौसम प्रतिकूल रहने की वजह से देश में इसके उत्पादन में 20 फीसदी की कमी आई थी। पिछले साल देश में करीब 3.36 लाख टन लीची का उत्पादन हुआ था। सबसे अधिक 50 फीसदी कमी बिहार में आई थी। उत्पादन घटने की वजह से लीची की कीमतांे में भारी इजाफा हुआ था। पिछले साल देश में इसके भाव 50-60 रुपये प्रति किलो थे। देश में लीची की पैदावार बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल, पश्चिम बंगाल है। भारत का लीची उत्पादन और उत्पादकता दोनों के मामले में विश्व में दूसरा स्थान है। भारतीय लीची के प्रमुख आयातक देश नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कनाडा, रूस, यमन और लेबनान है। पिछले साल उत्पादन में कमी की वजह से लीची के निर्यात में भारी गिरावट आई थी। (बिज़नस भास्कर)
हफ्ते भर में काली मिर्च के दाम 10 फीसदी बढ़े
देश में काली मिर्च की पैदावार में 11 फीसदी की कमी की आशंका से स्टॉकिस्टों और मसाला निर्माताओं ने इसकी खरीद बढ़ा दी है। इसीलिए पिछले एक सप्ताह में कोच्चि मंडी में इसकी कीमतों में 10।6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। कोच्चि में सोमवार को एमजी-वन कालीमिर्च के दाम बढ़कर 14,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। एनसीडीईएक्स में भी पिछले दस दिनों में इसके दाम करीब 12.8 फीसदी बढ़ चुके हैं। ऊंचे दाम पर निवेशकों की मुनाफावसूली से आंशिक गिरावट आ सकती है लेकिन भविष्य में कीमतें तेजी ही बनी रहेगी। केदरानाथ संस के डायरक्टर अजय अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि काली मिर्च के घरेलू उत्पादन के अनुमान में कमी की आशंका से स्टॉकिस्टों और मसाला निर्माताओं ने खरीद बढ़ा दी है। जनवरी में घरेलू फसल का 50 हजार टन का उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था जबकि देश में 40 हजार टन पैदावार की संभावना है। इसीलिए पिछले एक सप्ताह में कोच्चि मंडी में काली मिर्च के दाम करीब 1,400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़े हैं। 15 मार्च को कोच्चि में काली मिर्च का भाव 13,100 रुपये प्रति क्विंटल था। जबकि सोमवार को दाम बढ़कर 14,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। निर्यातक फर्म मैसर्स बाफना एंटरप्राइजेज के डायरक्टर आर. जैन ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय काली मिर्च की कीमतें बढ़कर 3400-3450 डॉलर प्रति टन हो गई है जबकि वियतनाम और इंडोनेशियाई की काली मिर्च के भाव 3200-3250 डॉलर प्रति टन है। पिछले ख्म् दिन में विदेशी बाजार में काली मिर्च के दाम करीब 200 डॉलर प्रति टन बढ़ चुके हैं लेकिन भाव में बढ़ोतरी होने के बाद भारत से निर्यात मांग पहले की तुलना में काफी कम हो गई है। वियतनाम में चालू सीजन में काली मिर्च की पैदावार पिछले साल के 90 हजार टन से बढ़कर 1.10 लाख टन होन का अनुमान है जबकि इंडोनेशिया की फसल अगस्त-सितंबर में आएगी। इंडोनेशिया के पास बकाया स्टॉक कम है इसीलिए आयातक वियतनाम से ही ज्यादा खरीद कर रहे हैं। हाजिर कीमतों में तेजी आने से वायदा में भी निवेशकों की खरीद बढ़ गई है। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुंबध की कीमतों में पिछले दस दिनों में 12.8 फीसदी की तेजी आकर सोमवार को भाव 14,635 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया की वायदा में कीमतें एकतरफा बढ़ी है इसलिए निवेशकों की मुनाफावसूली से आंशिक गिरावट आ सकती है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार जनवरी महीने में भारत से कालीमिर्च के निर्यात में 28 फीसदी की कमी दर्ज की गई। जनवरी महीने में कालीमिर्च का निर्यात घटकर 1,500 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2,100 टन का निर्यात हुआ था। चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान कुल निर्यात 24.5 फीसदी कम रहा है। इस दौरान कुल निर्यात घटकर 16,250 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 21,550 टन का निर्यात हुआ था। वित्त वर्ष 2009-10 में निर्यात का लक्ष्य 26,000 हजार टन का था। (बिज़नस भास्कर आर अस राणा)
सटोरियों ने बिगाड़ी हल्दी वायदा की चाल
मुंबई March 23, 2010
हल्दी के वायदा कारोबार में जारी भारी उठापटक को एफएमसी का 'कोड़ा' भी रोकने में नाकाम साबित हुआ है।
एफएमसी द्वारा स्पेशल मार्जिन लगाने के बावजूद हल्दी वायदा में अपर सर्किट और लोअर सर्किट का खेल बंद नहीं हो पा रहा है। दो हफ्ते के अंदर हल्दी वायदा में चार बार अपर और चार बार लोअर सर्किट लग चुका है और कीमतों में भी करीब 45 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। सटोरियों की सक्रियता को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
स्पेशल मार्जिन लगाने के बावजूद सोमवार को बाजार खुलते ही हल्दी अप्रैल और मई वायदा में दो फीसदी का अपर सर्किट लग गया। दोबारा कारोबार शुरू होने के थोड़ी देर बार ही दो फीसदी का लोअर सर्किट लग गया।
दरअसल, पिछले साल सबसे ज्यादा रिटर्न देने की वजह से इस बार हल्दी पर सटोरिये सबसे ज्यादा दांव लगा रहे हैं। वायदा कारोबार का असर हाजिर बाजार में भी देखने को मिल रहा है। हल्दी की सबसे बड़ी मंड़ी निजामाबाद (आंध्र प्रदेश) में सोमवार को हल्दी के दाम प्रति क्विंटल 544 रुपये उछलकर 11920 रुपये पर पहुंच गए, जबकि वायदा बाजार में हल्दी का भाव 11730 रुपये के आसपास रहा।
सटोरियों की सक्रियता को देखते हुए वायदा बाजार नियामक ने इसके कारोबार पर मार्जिन बढ़ा दिया। हल्दी वायदा में 13 फीसदी का मार्जिन देना होता है लेकिन कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए एफएमसी ने चार फरवरी को हल्दी वायदा में 10 फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगा दिया।
एफएमसी का यह वार भी कारगर साबित नहीं हुआ तो 18 मार्च को एफएमसी ने दोबारा हल्दी वायदा में 10 फीसदी का और मार्जिन लगाने का फैसला किया। इस तरह इस समय हल्दी वायदा में कुल 33 फीसदी का मार्जिन लग चुका है। इसके बावजूद एक ही दिन में अपर और लोअर सर्किट लगने को कारोबारी चिंता का विषय मान रहे हैं।
हल्दी वायदा भाव इस समय 11730 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है जबकि 13 मार्च को हल्दी अप्रैल 8770 रुपये पर था। शेयरखान कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल के अनुसार, पिछले साल हल्दी की पैदावार कम थी जिससे बाजार में हल्दी कीमतें आसमान पर पहुंच गई थी। पिछले साल नवंबर में हल्दी 12400 रुपये के स्तर तक पहुंच गई थी।
इस साल 12000 के स्तर को छूने के बाद हल्दी के भाव नीचे गिरेंगे। मेहुल कहते हैं कि पिछले साल करीब 40 लाख बैग हल्दी का उत्पादन हुआ था और इस बार 52 लाख बैग का उत्पादन होने की उम्मीद है। हल्दी वायदा कारोबार में एक लॉट 10 टन का होता है और इस समय 33 फीसदी का मार्जिन लगा हुआ है।
भारी मार्जिन मनी को देखते हुए सटोरिये भी रिस्क लेने के पहले सौ बार सोचेंगे, क्योंकि नई फसल बाजार में आने का समय भी हो चुका है। बाजार के जानकारों का कहना है कि पिछले बार जब हल्दी की कीमतें बढ़ी थी तो सबसे ज्यादा सट्टा सांगली के कारोबारियों ने लगाया था जबकि इस बार राजस्थान के सटोरिये सक्रिय हैं। (बीएस हिंदी)
हल्दी के वायदा कारोबार में जारी भारी उठापटक को एफएमसी का 'कोड़ा' भी रोकने में नाकाम साबित हुआ है।
एफएमसी द्वारा स्पेशल मार्जिन लगाने के बावजूद हल्दी वायदा में अपर सर्किट और लोअर सर्किट का खेल बंद नहीं हो पा रहा है। दो हफ्ते के अंदर हल्दी वायदा में चार बार अपर और चार बार लोअर सर्किट लग चुका है और कीमतों में भी करीब 45 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। सटोरियों की सक्रियता को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
स्पेशल मार्जिन लगाने के बावजूद सोमवार को बाजार खुलते ही हल्दी अप्रैल और मई वायदा में दो फीसदी का अपर सर्किट लग गया। दोबारा कारोबार शुरू होने के थोड़ी देर बार ही दो फीसदी का लोअर सर्किट लग गया।
दरअसल, पिछले साल सबसे ज्यादा रिटर्न देने की वजह से इस बार हल्दी पर सटोरिये सबसे ज्यादा दांव लगा रहे हैं। वायदा कारोबार का असर हाजिर बाजार में भी देखने को मिल रहा है। हल्दी की सबसे बड़ी मंड़ी निजामाबाद (आंध्र प्रदेश) में सोमवार को हल्दी के दाम प्रति क्विंटल 544 रुपये उछलकर 11920 रुपये पर पहुंच गए, जबकि वायदा बाजार में हल्दी का भाव 11730 रुपये के आसपास रहा।
सटोरियों की सक्रियता को देखते हुए वायदा बाजार नियामक ने इसके कारोबार पर मार्जिन बढ़ा दिया। हल्दी वायदा में 13 फीसदी का मार्जिन देना होता है लेकिन कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए एफएमसी ने चार फरवरी को हल्दी वायदा में 10 फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगा दिया।
एफएमसी का यह वार भी कारगर साबित नहीं हुआ तो 18 मार्च को एफएमसी ने दोबारा हल्दी वायदा में 10 फीसदी का और मार्जिन लगाने का फैसला किया। इस तरह इस समय हल्दी वायदा में कुल 33 फीसदी का मार्जिन लग चुका है। इसके बावजूद एक ही दिन में अपर और लोअर सर्किट लगने को कारोबारी चिंता का विषय मान रहे हैं।
हल्दी वायदा भाव इस समय 11730 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है जबकि 13 मार्च को हल्दी अप्रैल 8770 रुपये पर था। शेयरखान कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल के अनुसार, पिछले साल हल्दी की पैदावार कम थी जिससे बाजार में हल्दी कीमतें आसमान पर पहुंच गई थी। पिछले साल नवंबर में हल्दी 12400 रुपये के स्तर तक पहुंच गई थी।
इस साल 12000 के स्तर को छूने के बाद हल्दी के भाव नीचे गिरेंगे। मेहुल कहते हैं कि पिछले साल करीब 40 लाख बैग हल्दी का उत्पादन हुआ था और इस बार 52 लाख बैग का उत्पादन होने की उम्मीद है। हल्दी वायदा कारोबार में एक लॉट 10 टन का होता है और इस समय 33 फीसदी का मार्जिन लगा हुआ है।
भारी मार्जिन मनी को देखते हुए सटोरिये भी रिस्क लेने के पहले सौ बार सोचेंगे, क्योंकि नई फसल बाजार में आने का समय भी हो चुका है। बाजार के जानकारों का कहना है कि पिछले बार जब हल्दी की कीमतें बढ़ी थी तो सबसे ज्यादा सट्टा सांगली के कारोबारियों ने लगाया था जबकि इस बार राजस्थान के सटोरिये सक्रिय हैं। (बीएस हिंदी)
बिकवाली दबाव के चलते सोने में गिरावट जारी
नई दिल्ली March 23, 2010
कमजोर वैश्विक रुख के बीच बिकवाली के दबाव के चलते दिल्ली सर्राफा बाजार में सोमवार को सोने के भाव 10 रुपये टूटकर 16650 रुपये प्रति दस ग्राम बोले गए।
सोना स्टैंडर्ड और आभूषण के भाव 10 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 16650 रुपये और 16500 रुपये प्रति दस ग्राम पर बंद हुए। सीमित कारोबार के दौरान गिन्नी के भाव 14000 रुपये प्रति आठ ग्राम पर अपरिवर्तित बंद हुए।
बाजार सूत्रों के अनुसार वैश्विक मंदी के बीच भारी बिकवाली दबाव के चलते सोने में गिरावट आई। एशिया में सोने के भाव 1.50 डॉलर गिरकर 1106.40 डॉलर प्रति आउंस रह गए। मौसमी मांग नहीं होने के कारण फुटकर कारोबारियों ने मौजूदा ऊंची कीमत पर खरीदारी नहीं की।
बिकवाली दबाव के चलते चांदी तैयार के भाव 200 रुपये की गिरावट के साथ 26800 रुपये और चांदी साप्ताहिक डिलिवरी के भाव 115 रुपये की हानि के साथ 26485 रुपये प्रति किलो पर बंद हुए।
चांदी सिक्का के भाव 100 रुपये टूटकर 33200-33300 रुपये प्रति सैकड़े पर बंद हुए। बाजार के जानकारों का कहना है कि मई के आखिरी सप्ताह में जब शादी-ब्याह का सीजन शुरू होगा तब इसमें तेजी देखने को मिल सकती है। (बीएस हिंदी)
कमजोर वैश्विक रुख के बीच बिकवाली के दबाव के चलते दिल्ली सर्राफा बाजार में सोमवार को सोने के भाव 10 रुपये टूटकर 16650 रुपये प्रति दस ग्राम बोले गए।
सोना स्टैंडर्ड और आभूषण के भाव 10 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 16650 रुपये और 16500 रुपये प्रति दस ग्राम पर बंद हुए। सीमित कारोबार के दौरान गिन्नी के भाव 14000 रुपये प्रति आठ ग्राम पर अपरिवर्तित बंद हुए।
बाजार सूत्रों के अनुसार वैश्विक मंदी के बीच भारी बिकवाली दबाव के चलते सोने में गिरावट आई। एशिया में सोने के भाव 1.50 डॉलर गिरकर 1106.40 डॉलर प्रति आउंस रह गए। मौसमी मांग नहीं होने के कारण फुटकर कारोबारियों ने मौजूदा ऊंची कीमत पर खरीदारी नहीं की।
बिकवाली दबाव के चलते चांदी तैयार के भाव 200 रुपये की गिरावट के साथ 26800 रुपये और चांदी साप्ताहिक डिलिवरी के भाव 115 रुपये की हानि के साथ 26485 रुपये प्रति किलो पर बंद हुए।
चांदी सिक्का के भाव 100 रुपये टूटकर 33200-33300 रुपये प्रति सैकड़े पर बंद हुए। बाजार के जानकारों का कहना है कि मई के आखिरी सप्ताह में जब शादी-ब्याह का सीजन शुरू होगा तब इसमें तेजी देखने को मिल सकती है। (बीएस हिंदी)
कृषि क्षेत्र को लेकर योजना आयोग गंभीर
नई दिल्ली : योजना आयोग ने कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सुधारों की वकालत की है। आयोग ने उपज बढ़ाने और खाद्यान्न की कीमतों पर काबू पाने की सरकार की मौजूदा रणनीति की कड़ी आलोचना भी की है। आयोग ने कहा है कि कृषि उत्पादों की कीमत तय करने में बाजार से जुड़े पहलू का ज्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए और इसके लिए समर्थन मूल्य से खरीद मूल्य का ताल्लुक खत्म करना चाहिए। आयोग ने तमाम शुल्क और भंडार सीमा खत्म करने, देश भर में उत्पादों की बेरोकटोक आवाजाही को बढ़ावा देने और निर्यात तथा वायदा कारोबार पर पाबंदी खत्म करने का मशविरा भी दिया है। 11वीं योजना (2007-12) के मध्यवर्ती समीक्षा में आयोग ने कहा है कि 2005-06 और 2007-08 में कृषि क्षेत्र ने 4 फीसदी की दर से बढ़कर जहां बढि़या प्रदर्शन किया, वहीं पिछले दो साल का इसका प्रदर्शन दिखाता है कि सरकार की रणनीति ज्यादा प्रभावशाली नहीं रही है और इस क्षेत्र की वृद्धि दर बनाए रखने के लिए आपूर्ति के पहलू पर ज्यादा प्रयास किए जाने की जरूरत है। इस समीक्षा को अभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में पूर्ण योजना आयोग की ओर से मंगलवार को हरी झंडी दिखाई जानी है। दस्तावेज ने कहा गया है, 'इस बात का पर्याप्त विश्लेषण नहीं किया गया है कि इसका (2005-06 से तीन वर्षों में हासिल वृद्धि) कितना हिस्सा सरकारी रणनीति के तहत कृषि के लिए बढ़े आवंटन के दम पर आया है और कितना अनुकूल मौसम के कारण मिला है। यह भी साफ नहीं है कि इसमें बेहतर मांग और कीमतों के कारण निजी निवेश में बढ़ोतरी का इसमें कितना योगदान रहा है।' खाद्य मुद्रास्फीति दर पर काबू पाने में नाकामी को देखते हुए कृषि क्षेत्र से जुड़ी सरकारी नीतियों की चौतरफा आलोचना हो रही है। खाद्य मुद्रास्फीति दर फिलहाल लगभग 20 फीसदी के स्तर पर है, जो बीते कई वर्षों में नहीं देखा गया था। 2008-09 में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 1.6 फीसदी रह गई थी जबकि बारिश की पतली हालत के कारण रबी की फसलों की बुरी गत को देखते हुए 2009-10 में वृद्धि दर में 0.2 फीसदी गिरावट की आशंका जताई जा रही है। सरकार ने अगले कारोबारी साल के लिए कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4 फीसदी पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। कृषि उत्पादन बढ़ाने से जुड़ी 11वीं योजना की रणनीति के तहत खाद्य सुरक्षा की चिंता पर गौर करते हुए आधुनिक तकनीकों तक किसानों की आसान पहुंच बनाने, सरकारी निवेश की मात्रा और उसका प्रभाव बढ़ाने, सब्सिडी को वाजिब बनाते हुए व्यवस्थागत समर्थन बढ़ाने और अधिक कीमत देने वाली फसलों और पशुपालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है। (बीएस हिंदी)
चीनी उद्योग ने लगाई संरक्षण की गुहार
मुंबई March 23, 2010
चीनी की कीमतों में नाटकीय रूप से आई गिरावट के चलते चीनी का उत्पादन करने वाली कंपनियों का मुनाफा घट रहा है, इसे देखते हुए चीनी उद्योग ने तत्काल सरकारी संरक्षण की गुहार लगाई है।
उद्योग के सर्वोच्च निकाय भारतीय चीनी उत्पादक संघ (इस्मा) ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिखा है। इस चिट्ठी में कुछ सुझाव पेश किए गए हैं। इस्मा ने कहा है कि बड़ी मात्रा में चीनी इस्तेमाल करने वालों को इसका स्टॉक लंबी अवधि तक रखने की अनुमति दी जाए, कच्ची रिफाइंड चीनी पर आयात शुल्क लगाया जाए और चीनी की गिरती कीमतों को थामने के लिए निर्यात की अनुमति दी जाए।
इस्मा के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा - कई ऐसे मुद्दे हैं जो चीनी उत्पादकों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लिहाजा इसे तत्काल सुलझाने की दरकार है। सरकार ने हाल में कोल्ड ड्रिंक निर्माता समेत बड़े कॉरपोरेट उपभोक्ताओं को सिर्फ 10 दिन की जरूरत के बराबर चीनी का स्टॉक रखने की अनुमति दी है जबकि इस आदेश से पहले ये उपभोक्ता एक महीने से ज्यादा की जरूरत के बराबर स्टॉक अपने पास रखते थे।
इस्मा की मांग है कि चीनी मिलों से उनके सालाना उत्पादन का 20 फीसदी लेवी कोटा तत्काल हटाया जाना चाहिए, जो कि उन्हें मौजूदा बाजार कीमत से करीब 60 फीसदी कम कीमत पर देना पड़ता है।
इससे पहले, जन वितरण प्रणाली के लिए 13.45 रुपये प्रति किलो की दर से लेवी कोटा की चीनी दी जाती थी और अगर कारोबारियों व स्टॉकिस्टों द्वारा पूरा माल नहीं उठाया जाता था तो यह मात्रा स्वत: ही फ्री कोटे में तब्दील हो जाती थी और चीनी मिलों के लिए यह काफी अच्छा होता था।
जब से सरकार ने लेवी कोटा के प्रावधान में संशोधन कर इसे साप्ताहिक रोलओवर का कर दिया है, चीनी मिल आर्थिक दबाव से जूझ रहे हैं। यह इकलौता ऐसा उद्योग है जो अपने उत्पादन का महत्वपूर्ण हिस्से की आपूर्ति पीडीएस के लिए करता है, जबकि बाकी अन्य उद्योगों के साथ ऐसी कोई बात नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी उद्योग में साप्ताहिक कोटा रिलीज सिस्टम को पिछले साल की तरह महीनेवार रिलीज में तब्दील किए जाने की बेहद जरूरत है। हाजिर बाजार में उतार-चढ़ाव होने पर चीनी मिल पहले अपने जोखिम को कम करने के लिए वायदा एक्सचेंज में हेजिंग करते थे।
चूंकि वायदा एक्सचेंज से इस उपकरण को हटा लिया गया है तो ऐसे में मिलों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के जरिए कच्चे माल की कीमत तय करना और पहले से तय पूर्ण नियंत्रित दर पर इसे बेचने के बजाय गन्ने की कीमत को चीनी की कीमत के अनुपात में तय किया जाना चाहिए।
जब जनवरी महीने की शुरुआत में चीनी की कीमत (एक्स-मिल) 42 रुपये प्रति किलो की ऊंची दर पर थी तब सरकार ने इसकी कीमत में कमी लाने के लिए विभिन्न कदम उठाए थे। अब यह मकसद हल हो गया है और चीनी की कीमत 32 रुपये प्रति किलो की उचित दर पर पहुंच गई है तो इस उद्योग के लिए संरक्षणवादी कदम उठाए जाने की दरकार है ताकि लंबे समय तय यह उद्योग टिका रहे। इस बीच, गन्ने की कीमत कम नहीं हुई है।
चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मिलें वर्तमान में गन्ने की कीमत 275-300 रुपये प्रति क्विंटल चुका रही हैं जबकि उत्तर प्रदेश में गन्ना 260-280 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। उद्योग का अनुमान है कि इस साल 168 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। पिछले साल 147 लाख टन चीनी उत्पादित हुई थी।
सरावगी ने कहा - स्थायी कारोबारी हित के लिए उद्योग की जरूरतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर किसानों के बकाया राशि का भुगतान न होना और गन्ने की पराई के अव्यवहार्य होने के मामले से इनकार नहीं किया जा सकता।
गिरती कीमतों से उद्योग परेशान
भारतीय चीनी उत्पादक संघ ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिख सुझाए उपाय इस्मा ने लंबी अवधि के लिए स्टॉक रखने, आयात शुल्क लगाने और निर्यात के लिए मांगी अनुमति कीमतें 32 रुपये प्रति किलो तक गिर चुकी हैं (बीस हिंदी)
चीनी की कीमतों में नाटकीय रूप से आई गिरावट के चलते चीनी का उत्पादन करने वाली कंपनियों का मुनाफा घट रहा है, इसे देखते हुए चीनी उद्योग ने तत्काल सरकारी संरक्षण की गुहार लगाई है।
उद्योग के सर्वोच्च निकाय भारतीय चीनी उत्पादक संघ (इस्मा) ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिखा है। इस चिट्ठी में कुछ सुझाव पेश किए गए हैं। इस्मा ने कहा है कि बड़ी मात्रा में चीनी इस्तेमाल करने वालों को इसका स्टॉक लंबी अवधि तक रखने की अनुमति दी जाए, कच्ची रिफाइंड चीनी पर आयात शुल्क लगाया जाए और चीनी की गिरती कीमतों को थामने के लिए निर्यात की अनुमति दी जाए।
इस्मा के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा - कई ऐसे मुद्दे हैं जो चीनी उत्पादकों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लिहाजा इसे तत्काल सुलझाने की दरकार है। सरकार ने हाल में कोल्ड ड्रिंक निर्माता समेत बड़े कॉरपोरेट उपभोक्ताओं को सिर्फ 10 दिन की जरूरत के बराबर चीनी का स्टॉक रखने की अनुमति दी है जबकि इस आदेश से पहले ये उपभोक्ता एक महीने से ज्यादा की जरूरत के बराबर स्टॉक अपने पास रखते थे।
इस्मा की मांग है कि चीनी मिलों से उनके सालाना उत्पादन का 20 फीसदी लेवी कोटा तत्काल हटाया जाना चाहिए, जो कि उन्हें मौजूदा बाजार कीमत से करीब 60 फीसदी कम कीमत पर देना पड़ता है।
इससे पहले, जन वितरण प्रणाली के लिए 13.45 रुपये प्रति किलो की दर से लेवी कोटा की चीनी दी जाती थी और अगर कारोबारियों व स्टॉकिस्टों द्वारा पूरा माल नहीं उठाया जाता था तो यह मात्रा स्वत: ही फ्री कोटे में तब्दील हो जाती थी और चीनी मिलों के लिए यह काफी अच्छा होता था।
जब से सरकार ने लेवी कोटा के प्रावधान में संशोधन कर इसे साप्ताहिक रोलओवर का कर दिया है, चीनी मिल आर्थिक दबाव से जूझ रहे हैं। यह इकलौता ऐसा उद्योग है जो अपने उत्पादन का महत्वपूर्ण हिस्से की आपूर्ति पीडीएस के लिए करता है, जबकि बाकी अन्य उद्योगों के साथ ऐसी कोई बात नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी उद्योग में साप्ताहिक कोटा रिलीज सिस्टम को पिछले साल की तरह महीनेवार रिलीज में तब्दील किए जाने की बेहद जरूरत है। हाजिर बाजार में उतार-चढ़ाव होने पर चीनी मिल पहले अपने जोखिम को कम करने के लिए वायदा एक्सचेंज में हेजिंग करते थे।
चूंकि वायदा एक्सचेंज से इस उपकरण को हटा लिया गया है तो ऐसे में मिलों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के जरिए कच्चे माल की कीमत तय करना और पहले से तय पूर्ण नियंत्रित दर पर इसे बेचने के बजाय गन्ने की कीमत को चीनी की कीमत के अनुपात में तय किया जाना चाहिए।
जब जनवरी महीने की शुरुआत में चीनी की कीमत (एक्स-मिल) 42 रुपये प्रति किलो की ऊंची दर पर थी तब सरकार ने इसकी कीमत में कमी लाने के लिए विभिन्न कदम उठाए थे। अब यह मकसद हल हो गया है और चीनी की कीमत 32 रुपये प्रति किलो की उचित दर पर पहुंच गई है तो इस उद्योग के लिए संरक्षणवादी कदम उठाए जाने की दरकार है ताकि लंबे समय तय यह उद्योग टिका रहे। इस बीच, गन्ने की कीमत कम नहीं हुई है।
चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मिलें वर्तमान में गन्ने की कीमत 275-300 रुपये प्रति क्विंटल चुका रही हैं जबकि उत्तर प्रदेश में गन्ना 260-280 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। उद्योग का अनुमान है कि इस साल 168 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। पिछले साल 147 लाख टन चीनी उत्पादित हुई थी।
सरावगी ने कहा - स्थायी कारोबारी हित के लिए उद्योग की जरूरतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर किसानों के बकाया राशि का भुगतान न होना और गन्ने की पराई के अव्यवहार्य होने के मामले से इनकार नहीं किया जा सकता।
गिरती कीमतों से उद्योग परेशान
भारतीय चीनी उत्पादक संघ ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिख सुझाए उपाय इस्मा ने लंबी अवधि के लिए स्टॉक रखने, आयात शुल्क लगाने और निर्यात के लिए मांगी अनुमति कीमतें 32 रुपये प्रति किलो तक गिर चुकी हैं (बीस हिंदी)
22 मार्च 2010
आवक बढ़ने से लाल मिर्च के दाम और गिरने के आसार
गुंटूर में लाल मिर्च की आवक बढ़कर 80-90 हजार बोरी (प्रति बोरी 40 किलो) की हो गई है। जबकि निर्यातकों और मसाला निर्माता कंपनियों की मांग पहले की तुलना में कम हो गई है। जिससे पिछले एक सप्ताह में हाजिर बाजार में आठ फीसदी और वायदा में 6।7 फीसदी की नरमी आई है। आगामी दिनों में आवक बढ़ने पर मौजूदा कीमतों में और भी मंदे की संभावना है। मैसर्स स्पाइस ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर विनय भूभना ने बताया कि गुंटूर में लाल मिर्च की दैनिक आवक बढ़कर 80-90 हजार बोरी की हो गई है। उत्पादक क्षेत्रों में मौसम साफ बना हुआ है इसलिए आगामी दिनों में आवक बढ़कर एक लाख बोरी से ज्यादा हो जाएगी। जिससे मौजूदा कीमतों में और भी मंदे की ही संभावना है। हाजिर बाजार में पिछले आठ-नौ दिनों में कीमतें करीब 400 रुपये प्रति क्विंटल घट चुकी हैं। गुंटूर में तेजा क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव घटकर 5200-5400 रुपये, 334 क्वालिटी की लालमिर्च के भाव 4100-4500 रुपये, ब्याडगी क्वालिटी के भाव 4100-4700 रुपये, सनम क्वालिटी की लालमिर्च के भाव 4200-4300 रुपये और फटकी क्वालिटी के भाव 2000-2500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मुंबई स्थित मैसर्स अशोक एंड कंपनी के डायरक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि पिछले महीने तक निर्यात मांग अच्छी बनी हुई थी लेकिन आवक बढ़ने और डॉलर कमजोर होने से चालू महीने में निर्यातकों की मांग कमजोर हो गई है। जिससे घरलू बाजार में गिरावट को बल मिला है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान लाल मिर्च का निर्यात पिछले साल की तुलना में कम रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी के दौरान कुल निर्यात 1.56 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 1.57 लाख टन का निर्यात हुआ था। हालांकि जनवरी में भारत से लाल मिर्च के निर्यात में 52 फीसदी की तेजी आकर कुल निर्यात 17,500 टन का हुआ। जबकि पिछले साल जनवरी में मात्र 11,500 टन का ही निर्यात हुआ था। दत्तानी ने बताया कि मार्च और अप्रैल में निर्यात मांग कमजोर रहेगी। मई के बाद फिर निर्यात मांग बढ़ने के आसार हैं। गुंटूर के व्यापारी कमलैश जैन ने बताया कि कीमतों में गिरावट आने से स्टॉक बढ़ना शुरू हो गया है। किसान घटे भाव में बिकवाली कम करके स्टॉक में ज्यादा माल रख रहे हैं। अभी तक कोल्ड स्टोर में करीब 20 लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले आठ लाख बोरी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में अभी लाल मिर्च की आवक बनी हुई है जिससे उत्तर भारत की मांग भी कमजोर है। मई में मध्य प्रदेश में आवक समाप्त होने के बाद आंध्र प्रदेश से मांग बढ़ने की संभावना है। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध के भाव 11 मार्च को 5,229 रुपये प्रति क्विंटल थे जोकि घटकर 4,875 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
नई फसल से पहले मेंथा तेल में तेजी के आसार
मेंथा की नई फसल की आवक मई के आखिरी सप्ताह में शुरू होने की संभावना है। जबकि इस समय अमेरिका और यूरोप की मांग अच्छी बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का स्टॉक कम होने से आवक पहले की तुलना में घट गई है। इसलिए मौजूदा कीमतों में आगामी दिनों में करीब पांच फीसदी की तेजी आने की संभावना है।अमेरिका और यूरोप के आयातक क्रिस्टल बोल्ड के आयात सौदे 15 से 15।50 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) के भाव पर कर रहे हैं। घरलू बाजार में मेंथा उत्पादों का बकाया स्टॉक मात्र 25-30 फीसदी ही बचा हुआ है। जबकि नई फसल की आवक मई के आखिरी सप्ताह में शुरू होगी तथा आवक का दबाव जून में बढ़ेगा। चूंकि ज्यादातर माल बड़े स्टॉकिस्टों के पास है इसीलिए उनकी बिकवाली भी कम आ रही है। जिससे मेंथा उत्पादों में तेजी का बल मिल रहा है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान भारत से मेंथा उत्पादों का निर्यात 19 फीसद कम रहा है लेकिन चालू महीने में निर्यातकों की खरीद बढ़ी है। अप्रैल में भी निर्यातकों की मांग बराबर बनी रहने की संभावना है। गत वर्ष देश में मेंथा तेल का कुल उत्पादन 30 हजार टन रहा था। चालू सीजन में बुवाई पिछले साल के लगभग बराबर ही है तथा अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल ही रहा है। हालांकि अब उत्पादक मंडियों में पिछले सीजन के मेंथा तेल की आवक पहले की तुलना में कम हो गई है जिससे मौजूदा भावों में 25-30 रुपये प्रति किलो की तेजी आ सकती है। वर्तमान में उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक घटकर 100-150 ड्रम (प्रति ड्रम 180 किलो) रह गई है। जबकि जनवरी-फरवरी महीनों में दैनिक आवक 200 से 250 ड्रमों की हो रही थी। मेंथा तेल के भाव उत्पादक मंडियों में 660 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। जबकि क्रिस्टल बोल्ड के दाम 740 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। हालांकि वायदा बाजार में निवेशकों की मुनाफावसूली आने से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में पिछले एक सप्ताह में करीब सात रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है।13 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेला का दाम 608 रुपये प्रति किलो था। जबकि शानिवार को इसका भाव घटकर 601 रुपये प्रति किलो रह गया। हाजिर में दाम बढ़ने से वायदा में भी निवेशकों की खरीद निकलने की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर के दौरान मेंथा उत्पादों का निर्यात घटकर 12,875 टन ही रहा जबकि पिछले साल की समान अवधि में 15,950 टन का निर्यात हुआ था। मालूम हो कि मसाला बोर्ड ने वर्ष 2009-10 में निर्यात का लक्ष्य 22,000 टन का रखा है। देश में मेंथा के कुल उत्पादन में उत्तर प्रदेश का योगदान 70-80 फीसदी है। उत्तर प्रदेश की संभल, चंदौसी, रामपुर और बाराबंकी में मेंथा तेल का सबसे ज्यादा कारोबार होता है।- आर. एस. राणा rana@businessbhaskar.netबात पते कीचूंकि ज्यादातर माल बड़े स्टॉकिस्टों के पास है इसलिए उन्होंने बिकवाली घटा दी है। इससे मेंथा उत्पादों में तेजी का बल मिल रहा है। हालांकि मेंथा उत्पादों का निर्यात 19त्न कम रहा है। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
घरेलू दाम घटने से चना और मटर आयातकों को नुकसान
घरेलू बाजार में चने और मटर की कीमतों में आई गिरावट से आयातकों को नुकसान हो रहा है। घरेलू मंडियों में पिछले तीन महीने में चने की कीमतों में करीब 14 फीसदी और पीली मटर की कीमतों में 11.7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। दिसंबर-जनवरी में आयातकों ने ऊंचे दाम पर चने और मटर का आयात किया था लेकिन घरेलू बाजार में दाम घटने से मजूबरन आयातकों को भाव घटाकर बिकवाली करनी पड़ रही है। चेन्नई के दलहन आयातक एन. तिवारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि दिसंबर-जनवरी में भारतीय आयातकों ने आस्ट्रेलियाई मूल के चने के आयात सौदे 550 डॉलर प्रति टन की दर से किए थे। जबकि कनाडा और अमेरिका से पीली मटर के आयात सौदे इस दौरान 340-350 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) की दर पर हुए थे। घरेलू मंडियों में दिसंबर-जनवरी में चने के दाम 2500 रुपये और मटर के 1700 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे थे। लेकिन उसके बाद से लगातार इनकी कीमतों में गिरावट आई। इस समय दिल्ली बाजार में चने के दाम घटकर 2150 रुपये और उत्तर प्रदेश की मंडियों में मटर के दाम घटकर 1500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इसीलिए आयातकों को मजबूरन भाव घटाकर बिकवाली करनी पड़ रही है। मुंबई के दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि आस्ट्रेलियाई चने के दाम घटकर 500 डॉलर और कनाडा तथा अमेरिका की पीली मटर के दाम घटकर 280-300 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। लेकिन आयातक नए आयात सौदे नहीं कर रहे हैं। वर्तमान में सरकारी कंपनियां ही आयात कर रही हैं। मैसर्स साजन राइस एंड दाल मिल के डायरक्टर एस. ए. जेठवानी ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में चने के उत्पादन में तो बढ़ोतरी होने का अनुमान है ही, इसके अलावा उत्पादक मंडियों में बकाया स्टॉक भी बचा है। वैसे भी कई राज्यों में दलहन पर स्टॉक लिमिट लगी होने के कारण मिलर और स्टॉकिस्टों की खरीद कम रहेगी। इसीलिए चने की गिरावट को बल मिल रहा है। कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश की मंडियों में भी आवक शुरू हो गई है। अप्रैल महीने में राजस्थान और उत्तर प्रदेश में नई आवक शुरू जाएगी, जिससे मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। उत्पादक मंडियों में चने के दाम घटकर 1950-2050 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। उत्तर प्रदेश की मंडियोंे में मटर की आवक शुरू हो गई है तथा उत्पादक मंडियों में भाव घटकर 1500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। अगले महीने आवक और बढ़ जाएगी। इसलिए मटर की मौजूदा कीमतों में भी मंदे की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसर अग्रिम अनुमान के मुताबिक चालू रबी में देश में चने का उत्पादन बढ़कर 74.6 लाख टन होने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में देश में 70.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उधर आस्ट्रेलिया में भी चने का उत्पादन 10 फीसदी बढ़कर 4.22 लाख टन होने का अनुमान है। कारोबारियों के अनुसार मटर का घरेलू उत्पादन भी चालू रबी में 6 से 6.5 लाख टन होने का अनुमान है।बात पते कीआस्ट्रेलियाई चने के दाम घटकर 500 और कनाडा व अमेरिका की पीली मटर के दाम घटकर 280-300 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। लेकिन आयातक नए आयात सौदे नहीं कर रहे हैं। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
उड़ीसा में एल्युमीनियम उत्पादों पर 4 प्रतिशत वैट
भुवनेश्वर March 22, 2010
एल्युमीनियम क्षेत्र में सहायक और छोटी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए उड़ीसा सरकार ने राज्य में एल्युमीनियम उत्पादों पर 4 प्रतिशत का मामूली मूल्यवर्धित कर (वैट) लगाने का फैसला किया है।
जहां कुछ उत्पादों पर 4 प्रतिशत वैट लगता था, वहीं अन्य कुछ वस्तुओं पर 12.5 प्रतिशत तक वैट था। इसके चलते कैबिनेट ने फैसला किया कि यह दरें 4 प्रतिशत के हिसाब से एकसमान हों। यह राज्य में बिकने वाली सभी श्रेणी के उत्पादों के लिए लागू होगा।
वित्त सचिव जेके महापात्रा ने कहा कि मिलिट्री कैंटीनों में आने वाले सामानों पर लगने वाले प्रवेश शुल्क को खत्म कर दिया गया है। इसी तरह से पुराने टायर, पुराने वाहनों, तारपोलीन, प्लास्टिक फुटवीयर, एटीएफ पर भी कर कम रखा गया है।
पड़ोसी राज्यों में लगने वाले करों को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट ने वित्त मंत्रालय के पुराने टायरों की बिक्री पर वैट में कमी करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। यह 12.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
साथ ही पुरानी कारों पर कर 12.5 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है। मारुति उद्योग लिमिटेड ने उड़ीसा सरकार से पुरानी कारों की बिक्री पर वैट में कमी किए जाने की मांग की थी। इसी तरह से तारपोलीन पर कर घटाकर 4 प्रतिशत और 400 रुपये से कम दाम के फुटवीयर पर कर 4 प्रतिशत रखा गया है।
साथ ही एटीएफ पर 4 प्रतिशत वैट दर उन विमानों तक ही सीमित रखा गया है, जिनका वजह अधिकतम 40,000 किलोग्राम होगा। सरकार ने महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों को राहत देते हुए आयातित चीनी पर लगने वाले 4 प्रतिशत वैट को खत्म कर दिया है। यह तीन महीने यानी अप्रैल-जून 2010 तक प्रभावी रहेगा। (बीएस हिंदी)
एल्युमीनियम क्षेत्र में सहायक और छोटी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए उड़ीसा सरकार ने राज्य में एल्युमीनियम उत्पादों पर 4 प्रतिशत का मामूली मूल्यवर्धित कर (वैट) लगाने का फैसला किया है।
जहां कुछ उत्पादों पर 4 प्रतिशत वैट लगता था, वहीं अन्य कुछ वस्तुओं पर 12.5 प्रतिशत तक वैट था। इसके चलते कैबिनेट ने फैसला किया कि यह दरें 4 प्रतिशत के हिसाब से एकसमान हों। यह राज्य में बिकने वाली सभी श्रेणी के उत्पादों के लिए लागू होगा।
वित्त सचिव जेके महापात्रा ने कहा कि मिलिट्री कैंटीनों में आने वाले सामानों पर लगने वाले प्रवेश शुल्क को खत्म कर दिया गया है। इसी तरह से पुराने टायर, पुराने वाहनों, तारपोलीन, प्लास्टिक फुटवीयर, एटीएफ पर भी कर कम रखा गया है।
पड़ोसी राज्यों में लगने वाले करों को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट ने वित्त मंत्रालय के पुराने टायरों की बिक्री पर वैट में कमी करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। यह 12.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
साथ ही पुरानी कारों पर कर 12.5 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है। मारुति उद्योग लिमिटेड ने उड़ीसा सरकार से पुरानी कारों की बिक्री पर वैट में कमी किए जाने की मांग की थी। इसी तरह से तारपोलीन पर कर घटाकर 4 प्रतिशत और 400 रुपये से कम दाम के फुटवीयर पर कर 4 प्रतिशत रखा गया है।
साथ ही एटीएफ पर 4 प्रतिशत वैट दर उन विमानों तक ही सीमित रखा गया है, जिनका वजह अधिकतम 40,000 किलोग्राम होगा। सरकार ने महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों को राहत देते हुए आयातित चीनी पर लगने वाले 4 प्रतिशत वैट को खत्म कर दिया है। यह तीन महीने यानी अप्रैल-जून 2010 तक प्रभावी रहेगा। (बीएस हिंदी)
20 मार्च 2010
मक्का की कीमतें घटने के आसार
रबी मक्का की बिहार और आंध्र प्रदेश में आवक बढ़ने से अप्रैल महीने से इसकी कीमतें घटने के आसार हैं। भारत के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम कम होने के कारण भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। जबकि नई फसल को देखते हुए घरलू बाजार में पोल्ट्री फीड निर्माताओं के साथ स्टॉर्च मिलों की मांग सीमित मात्रा में है। वायदा बाजार में पिछले चार दिनों में इसके दाम 2।4 फीसदी घटे हैं। हालांकि हाजिर में भाव स्थिर बने हुए हैं। पर आने वाले दिनों में उत्पादक राज्यों में आवक बढ़ने पर मौजूदा कीमतें करीब आठ-दस फीसदी तक गिर सकती हैं। वायदा में नरमीनेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में पिछले चार दिनों में मक्का के दाम 2.4 फीसदी घट चुके हैं। 15 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में भाव 899 रुपये प्रति `िंटल थे, जो कि शुक्रवार को घटकर 877 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में 17,490 लॉट के खड़े सौदे हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि बिहार की मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो गई है। अप्रैल के प्रथम सप्ताह में आवक बढ़ जाएगी, जिससे मौजूदा कीमतों में गिरावट दिख सकती है। विदेशों में दाम कमयू एस ग्रेन काउंसिल में भारत के प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि मक्का के प्रमुख उत्पादक देशों अमेरिका, अर्जेंटीना और ब्राजील में उत्पादन ज्यादा होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव 197-198 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं। जबकि रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होकर 45.47 के स्तर पर आ गया है। इसलिए मौजूदा भावों में भारत से मक्का निर्यातकों को निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। इसीलिए घरलू उत्पादन पिछले साल से कम होने के बावजूद भी कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। उधर शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबीओटी) में जुलाई वायदा अनुबंध में पिछले सप्ताह 2.84 फीसदी की गिरावट आकर भाव 143.78 डॉलर प्रति टन रहे। सचदेव के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्का का बड़े पैमाने पर एथनॉल में उपयोग होता है लेकिन इसके उपयोग की मात्रा कच्चे तेल के दाम पर निर्भर करती है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 81.79 डॉलर प्रति बैरल है। अगर कच्चे तेल की कीमतों में पांच से सात डॉलर प्रति बैरल की और बढ़ोतरी आएगी तो फिर मक्का का एथनॉल में उपयोग बढ़ जायेगा, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्का की कीमतों पर पड़ेगा।रबी में पैदावार ज्यादाकृषि मंत्रालय के अनुसार रबी में मक्का का उत्पादन 56.4 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 5.61 लाख टन से ज्यादा है। हालांकि रबी में मक्का की बुवाई पिछले साल के 11.75 लाख हैक्टेयर से घटकर 11.61 लाख हैक्टेयर में ही हुई है, लेकिन उत्पादक राज्यों में मौसम अनुकूल रहा है। स्नससे प्रति हेक्टेयर पैदावार में बढ़ोतरी होने की संभावना है। खरीफ और रबी को मिलाकर कुल उत्पादन पिछले साल के 197.3 लाख टन से घटकर 173 लाख टन ही होने का अनुमान है।बिहार में नई फसल की आवक शुरूबिहार की नौगछिया मंडी के मक्का व्यापारी पवन अग्रवाल ने बताया कि बिहार की उत्पादक मंडियों में नई फसल की छिटपुट आवक शुरू हो गई है। इस समय बिल्टी का भाव 950 रुपये प्रति `िंटल चल रहा है। चूंकि बिहार से ज्यादातर मांग उत्तर भारत की ही रहती है। मौजूदा भावों में बिहार से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के पोल्ट्री और स्टॉर्च निमार्ताओं के पड़ते नहीं लग रहे हैं इसलिए कीमतों में करीब 75-100 रुपये प्रति `िंटल की गिरावट आने की संभावना है।फीड निर्माताओं की मांग कमजोरकोलकाता के प्रमुख व्यापारी बिमल बंगानी ने बताया कि उत्तर भारत के पोल्ट्री फीड निर्माताओं के साथ स्टॉर्च मिलर बिहार की फसल को देखते हुए कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से खरीद कम कर रहे हैं। इसीलिए इन राज्यों में भाव स्थिर बने हुए हैं। आंध्रप्रदेश की मंडियों में मक्का का भाव 860 रुपये, कर्नाटक की मंडियों में 850-860 रुपये और महाराष्ट्र की मंडियों में 840-850 रुपये प्रति `िंटल चल रहे हैं। दिल्ली बाजार में इस समय भाव 1050-1060 रुपये प्रति `िंटल हैं लेकिन मांग कमजोर होने से मौजूदा कीमतों में गिरावट के आसार हैं। मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 840 रुपये प्रति `िंटल है। बिहार की मंडियों में आवक का दबाव बनने पर मक्का के दाम एमएसपी से भी नीचे जाने की आशंका है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
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