भुवनेश्वर February 03, 2010
पिछले साल 14 दिसंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल की मार झेल रहे जूट उद्योग की हालत वस्त्र मंत्रालय के फैसले के बाद और बुरी हो सकती है। अनाजों की पैंकिंग के लिए बी-ट्ïिवल जूट बोरी के अनिवार्य इस्तेमाल की पाबंदी को घटाकर 78 फीसदी किया जा रहा है। इस वजह से जूट उद्योग को 1,061 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। नया निर्णय 2010-11 के रबी विपणन मौसम से लागू होगा।भारतीय जूट मिल संघ (आईजेएमए) के चेयरमैन संजय कजारिया ने कहा, 'सितंबर 2009 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यह निर्णय लिया था कि 2009-10 में अनाजों और चीनी की पैकिंग के लिए सिर्फ जूट की बोरियों का इस्तेमाल किया जाएगा। 100 फीसदी अनिवार्य इस्तेमाल को घटाकर 78 फीसदी करना फैसला मंत्रीमंडल के इस फैसले के विरुद्घ है। इससे उद्योग पर बुरा असर होगा। मिलों के बंद होने, उत्पादन घटने और मजदूरों की नौकरी जाने की समस्या खड़ी हो सकती है।जूट पैकेजिंग मटिरियल्स ऐक्ट 1987 के मुताबिक अनाजों और चीनी की सरकारी खरीद में सिर्फ जूट बोरियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कजारिया के मुताबिक हड़ताल की वजह से जूट उद्योग को उत्पादन में 1,600 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का नुकसान हो चुका है। वहीं मजदूरों को करीब 300 करोड़ रुपये की मजदूरी का नुकासान हुआ है। डायरेक्टरेट जेनरल ऑफ सप्लाइड ऐंड डिस्पोजल (डीजीएस ऐंड डी) के अंतर्गत बीट्ïिवल जूट बोरियों की बिक्री की वजह से 2003 से अब तक उद्योग 874 करोड़ रुपये का घटा उठा चुका है। टैरिफ कमिशन की तरफ से जून 2009 में उद्योग की हालत संबंधी अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बावजूद केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय नई नीति लागू करने जा रहा है। इससे डीजीएस ऐंड डी के तहत बेचे जाने वाले बीट्ïिवल बोरियों पर हर दिन 3962 रुपये प्रति टन के नुकसान की आशंका है। जूट उद्योग की तरफ से बार-बार की जा रही गुजारिशों के बाद भी वस्त्र मंत्रालय कीमत निर्धारण की पुरानी व्यवस्था पर ही टिका है। उद्योग को डर है कि अगर कीमत निर्धारण संबंधी टैरिफ कमीशन की ताजा सिफारिशों को लागू नहीं किया गया, तो जूट उद्योग दयनीय स्थिति में जा सकता है। (बीएस हिन्दी)
04 फ़रवरी 2010
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