30 मई 2009
उत्तर भारत में बीटी कॉटन की बुवाई का रकबा ज्यादा
चालू बुवाई सीजन में उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में बीटी कॉटन की बुवाई ज्यादा क्षेत्रफल में हुई है। प्रति हैक्टेयर पैदावार ज्यादा होने के कारण किसानों ने बीटी कॉटन की बुवाई को प्राथमिकता दी है।राशि सीड के रीजनल बिजनेस मैनेजर निरंजन सिंह ने बताया कि चालू बुवाई सीजन में किसानों ने बीटी कॉटन की बुवाई को प्राथमिकता दी है। अभी तक पंजाब में करीब 90 फीसदी बुवाई का कार्य पूरा हो चुका है जबकि हरियाणा में 80 फीसदी क्षेत्रफल में बुवाई हो चुकी है। राजस्थान में भी 70 से 75 फीसदी बुवाई का कार्य हो चुका है। उन्होंने बताया कि पिछले साल के मुकाबले उत्तर भारत में राशि सीड के कॉटन सीड की बिक्री में भारी बढ़ोतरी हुई है। श्रीराम बायोसीड जेनेटिक इंडिया लिमिटेड के डिप्टी जनरल मैनेजर डॉ शरद कुमार सिंह ने बताया कि चालू बुवाई सीजन में किसानों ने बीटी कपास की बुवाई ज्यादा क्षेत्रफल में की है। चालू बुवाई सीजन में उनकी बिक्री में करीब ढ़ाई से तीन गुना तक इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीटी कॉटन में भी बोल्गार्ड-2 में सूंडियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा होने के कारण किसानों द्वारा बोल्गार्ड-2 की ज्यादा बुवाई की गई है। चालू वर्ष में जैसा कि मौसम विभाग द्वारा भविष्यवाणी की जा रही है मानसून अच्छा रहेगा तो कपास उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी की संभावना है।नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल कॉटन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 40 फीसदी की बढ़ोतरी की थी जिससे किसानों को अपनी फसल के वाजिब दाम मिले थे। अत: किसानों ने चालू बुवाई सीजन में कॉटन की ज्यादा बुवाई की है। उत्तर भारत के प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में इसके बुवाई क्षेत्रफल में करीब दस फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया के सूत्रों के मुताबिक चालू सीजन में 23 मई तक उत्पादक मंडियों में 276 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) की आवक हो चुकी है जोकि पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले कम है। पिछले साल की समान अवधि में कुल आवक 305 लाख गांठ की हुई थी। इसमें उत्तर भारत पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के राज्यों की मंडियों में आवक 46 लाख गांठ के मुकाबले घटकर 39 लाख गांठ की हुई है। मध्य भारत के गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी आवक पिछले साल के 191 लाख गांठ के मुकाबले घटकर 162 लाख गांठ की ही हुई है। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में आवक 54 लाख गांठ से बढ़कर करीब 62 लाख गांठ की हुई है। (Business Bhaskar....R S Rana)
पाम तेल के भाव में तेजी जारी रहने की संभावना
कच्चे पाम तेल के भाव में जुलाई तक तेजी बरकरार रहने की संभावना है। इसके लिए पाम तेल के स्टॉक में आई कमी और भारत और चीन से पाम तेल की बढ़ती मांग मुख्य कारण हैं। वहीं दूसरी तरफ चालू वर्ष के अंत तक इसके भाव बढ़कर 830 डॉलर प्रति टन हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। इंडोनेशिया के पाम तेल उत्पादकों के संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष डेरम बैंगुन ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस साल की पहली तिमाही में इंडोनेशिया और मलेशिया के पाम तेल उत्पादन में 25 फीसदी की कमी आई। उन्होंने कहा कि इसका परिणाम यह हुआ कि मलेशिया में पाम तेल का भंडार 12 से 14 लाख टन के बीच रहा। आमतौर पर इस सीजन में मलेशिया के पास 16 लाख टन पाम तेल का भंडार रहता है।दाम बढ़ने के लिए भारत और चीन की तरफ से पाम तेल की मांग में हुई वृद्धि भी जिम्मेदार है। इस बावत बैंगून ने कहा कि भारत में वनस्पति तेलों के आयात पर कोई शुल्क नहीं है। इस वजह से भारत से पाम तेल की मांग ज्यादा है। वहीं दूसरी तरफ चीन भी भारी मात्रा में पाम तेल खरीद रहा है। सीआईएफ रोटरडम में गुरुवार को कच्चे तेल का भाव 765 डॉलर प्रति टन रहा। जबकि अप्रैल के शुरूआती दिनों में कच्चे पाम तेल का भाव 650 डॉलर प्रति टन पर था। उन्होंने कहा कि स्टॉक कम होने और मांग में तेजी बरकरार रहने की वजह से जुलाई तक पाम तेल का भाव 800 डॉलर प्रति टन के आसपास रहने की उम्मीद है।वहीं दूसरी तरफ साल के अंत तक पाम तेल का भाव 830 डॉलर प्रति टन रहने का अनुमान है। यह अनुमान कमोडिटी कंसल्टेंसी फर्म एलएमसी इंटरनेशनल के अध्यक्ष जेम्स फ्राई ने लगाया है। उन्होंने एक सम्मेलन में कहा कि अगर ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 70 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाता है तो साल के अंत तक पाम तेल का भाव 830 डॉलर प्रति टन तक पहुंच सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ब्रेंट क्रूड ऑयल का भाव 45 डॉलर प्रति बैरल पहुंचने पर साल के अंत तक पाम तेल का भाव 580 डॉलर प्रति टन पर रह सकता है। (Buisness Bhaskar)
गिरावट का असर वायदा कारोबार पर भी
निर्यातकों की मांग घटने से चालू महीने में कैस्टर सीड की कीमतों में चार फीसदी की गिरावट आ गई है। गुजरात की दीसा मंडी में इसके भाव 475-480 रुपये प्रति 20 किलो रह गये हैं। हाजिर बाजार में आई गिरावट का असर वायदा कारोबार पर भी देखा गया। एनसीडीईएक्स पर निवेशकों की बिकवाली से जून महीने के वायदा अनुबंध में पांच फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि चालू सीजन में कैस्टर सीड की पैदावार में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है। फिर भी उत्पादक मंडियों में आवक घटी है। साथ ही स्टॉकिस्टों की बिकवाली भी कम आ रही है। ऐसे में मौजूदा भावों में गिरावट की उम्मीद नहीं है।भाव में गिरावटकैस्टर सीड के व्यापारी भरत भाई ने बताया कि निर्यातकों की कमजोर मांग से चालू महीने में कीमतों में गिरावट देखने को मिली है। महीने के शुरू में दीसा मंडी में इसके भाव 490 रुपये प्रति 20 किलो थे जबकि शुक्रवार को भाव घटकर 475-480 रुपये प्रति 20 किलो रह गये। केस्टर तेल के भाव भी घटकर इस दौरान घटकर 495 रुपये प्रति 10 किलो (कांडला पोर्ट पर) रह गये। राजस्थान की मंडियों में कैस्टर सीड के भाव घटकर इस दौरान 450-455 रुपये प्रति 20 किलो रह गये। अब उत्पादक मंडियों में आवक घट गई है और स्टॉकिस्टों की बिकवाली भी पहले की तुलना में घटी है। गुजरात की मंडियों में आवक घटकर इस समय 42 से 45 हजार बोरी (एक बोरी 75 किलो) रह गई है। जबकि राजस्थान की मंडियों में आवक घटकर दस हजार बोरी की रह गई है। जून मध्य तक उत्पादक मंडियों में आवक रहेगी। इसके बाद आवक न के बराबर रह जायेगी। ऐसे में मौजूदा भावों में और गिरावट की उम्मीद नहीं है।वायदा में भाव घटेएनसीडीईएक्स पर जून महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में पांच फीसदी की गिरावट आकर शुक्रवार को भाव 483 रुपये प्रति 20 किलो रह गये। चार जून को वायदा में इसके भाव 508.70 रुपये प्रति 20 किलो थे। जून महीने में 3860 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। घट सकता है निर्यात गांधी धाम स्थित मैसर्स एस सी केमिकल के डायरेक्टर कुशल राज पारिख ने बताया कि पिछले वर्ष (जनवरी से दिसंबर) तक भारत से केस्टर तेल का तीन लाख टन का रिकार्ड निर्यात हुआ था। लेकिन आर्थिक मंद गति के कारण चालू वर्ष में निर्यात में कमी आने की आशंका है। चालू वर्ष के अप्रैल महीने में इसका निर्यात 23,500 टन का हुआ है जो कि मार्च के मुकाबले कम है। मार्च महीने में देश से 26,000 टन कैस्टर तेल का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि चालू महीने में निर्यात घटकर 20,000 टन ही होने की उम्मीद है। कैस्टर तेल में अमेरिका, यूरोप और चीन की भारत से अच्छी मांग रहती है। चालू वर्ष में चीन की मांग तो बराबर है लेकिन यूरोप की मांग पिछले साल के मुकाबले कम है। अमेरिका की मांग में इस साल सबसे ज्यादा गिरावट देखी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कैस्टर तेल के भाव 970 डॉलर प्रति टन एफओबी चल रहे हैं। कुशल राज पारिख ने बताया कि कैस्टर तेल की कीमतें निर्यात मांग पर निर्भर करती हैं। चालू वर्ष में कैस्टर तेल का उत्पादन साढ़े चार लाख टन होने की संभावना है। पिछले साल चूंकि रिकार्ड निर्यात हुआ था लेकिन आर्थिक मंदी गति का असर चालू साल में इसके निर्यात पर पड़ रहा है। पिछले साल औसतन हर महीने 25,000 टन कैस्टर तेल का निर्यात हुआ था लेकिन चालू वर्ष के पहले चार महीनों में एक लाख टन से कम निर्यात हुआ है। पैदावार का हाल कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2008-09 में देश में कैस्टर सीड की पैदावार 11.24 लाख टन होने की संभावना है जोकि पिछले साल के मुकाबले ज्यादा है। पिछले साल देश में कैस्टर सीड की 10.53 लाख टन की पैदावार हुई थी। उधर सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 11.80 लाख टन पैदावार होने का अनुमान लगाया है। कैस्टर सीड का उत्पादन मुख्यत: गुजरात, राजस्थान और आंध्रप्रदेश में होता है। नई फसल की आवक जनवरी महीने में शुरू होती है तथा जून तक आवक रहती है। (Business Bhaskar...R S Rana)
गेहूं के निर्यात पर लगी रोक अभी नहीं हटाएगी सरकार
कांग्रेस की चुनावी वायदों की वजह से गेहूं निर्यात पर लगी रोक हटने वाली नहीं है। चुनावी वायदे के मुताबिक सरकार अत्यंत गरीब परिवारों को तीन रुपये किलो के भाव पर अनाज उपलब्ध कराना चाहती है। ऐसे में रिकार्ड सरकारी खरीद और सरकार की पूर्व सहमति के बावजूद गेहूं निर्यात नहीं हो सकेगा। सरकारी सूत्रों के मुताबिक वाणिज्य मंत्रालय को गेहूं निर्यात पर से रोक हटाने संबंधी अधिसूचना जारी करने से रोक दिया गया है। जबकि पिछली सरकार में ही निर्यात खोलने की मंजूरी देते हुए 15 मई के बाद अधिसूचना जारी करने का संकेत दिया गया था। यह फैसला मार्च में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह ने लिया था। उसके बाद सचिवों की समित को निर्यात संबंधी नियम तैयार करने का सुझाव दिया गया था। इस महीने की शुरूआत में सचिवों की समिति ने इस एक बैठक में पीईसी, एमएमटीसी और एसटीसी के साथ प्रत्येक राज्य की किसी एक एजेंसी के जरिये गेहूं निर्यात करने का फैसला किया था। इस दौरान 25 मई को दोबारा कृषि मंत्री का पद संभालते ही शरद पवार ने इस बात का संकेत दिया कि निर्यात खोलने से पहले कांग्रेस के वायदे के मुताबिक अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। लिहाजा जब तक अनाजों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो जाती है, तब तक गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित रहेगा। उन्होंने कहा था कि सरकार पहले स्टॉक की स्थिति देखेगी, इसके बाद प्रस्तावित योजना के लिए अनाज उपलब्ध कराने के बाद ही निर्यात पर फैसला किया जाएगा। गौरतलब है कि चुनावी प्रचार के दौरान कांग्रेस ने दोबारा सत्ता में आने के बाद अत्यंत गरीब परिवारों को सस्ते दरों पर गेहूं या चावल उपलब्ध कराने का वायदा किया था। पवार ने कहा कि इस योजना के लिए सरकार को और अनाज की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में निर्यात को खोलना सरकार के लिए काफी संवेदनशील मामला हो गया है। हालांकि इसके बावजूद सरकार गेहूं निर्यात के पक्ष में है। मौजूदा समय में 230 लाख टन से ज्यादा गेहूं की सरकारी खरीद हो चुकी है। पिछले साल करीब 226.89 लाख टन खरीद हुई थी।एशियाई बाजारों में गेहूं महंगा रहने की संभावनासिंगापुर। आने वाले दिनों में एशियाई बाजारों में गेहूं की कीमतों में तेजी रह सकती है। पिछले दिनों में शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में गेहूं वायदा मजबूत रहा। सीबॉट में गेहूं के भाव जनवरी के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। गुरुवार को सीबॉट में जुलाई वायदा करीब 6.45 डॉलर प्रति बुशल के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद 6.30 डॉलर प्रति बुशल पर आ गया। शुक्रवार को ई-सीबॉट एशिया में गेहूं वायदा में गिरावट का रुख रहा। यहां जुलाई वायदा करीब 3.25 सेंट की नरमी के साथ 6.27 डॉलर प्रति बुशल पर रहा। अमेरिका में जाड़़े में पैदा होने वाले गेहूं की फसल में देरी होने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में वैश्विक बाजार में गेहूं की सप्लाई पर असर पड़ सकता है।हालांकि हाल के दिनों में गेहूं में आई तेजी एशिया के कुछ देशों में गेहूं का आयात होने की संभावना से आई है। दरअसल दो दिन पहले जापान के कृषि मंत्रालय ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया से करीब 71 हजार टन गेहूं खरीद की है। यह खरीद नियमित साप्ताहिक टेंडर के जरिये हुई है। इस दौरान आस्ट्रेलिया के गेहूं उत्पादक इलाकों में जारी सूखे की स्थिति से यहां गेहूं उत्पादन औसत से कम रह सकता है। जिससे आने वाले दिनों में गेहूं की कीमतों में तेजी आ सकती है। (डो जोंस)कोआपरेटिव बल्क हैंडलिंग लिमिटेड के ऑपरशनल मैनेजर माईकल मुस्ग्रेव के मुताबिक आस्ट्रेलिया में करीब 80-110 लाख टन गेहूं पैदा होने की संभावना है। यहां पर दिसंबर और नवंबर में गेहूं की कटाई होती है। (Business Bhaskar)
डॉलर की कमजोरी से सोना फिर सातवें आसमान पर
लंदन- यूरोपीय बाजारों में फरवरी के बाद एक बार फिर सोने की कीमतें 970 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गईं। कारोबारियों ने कमजोर पड़ते डॉलर के खिलाफ जोखिम कम करने के लिए (हेजिंग) सोने में अपना निवेश बढ़ाया है, इसलिए सोने की कीमतों में यह तेजी आई है। जानकारों का कहना है कि तेल की कीमतों में जारी तेजी और दुनिया के सबसे बड़े सोने के उपभोक्ता देश भारत में शादियों के सीजन में खरीदारी बढ़ने से भी सोने की कीमतों को मजबूती मिली है। कॉमर्ज बैंक के ट्रेडर माइकल केम्पिनसिकी ने बताया, 'बाजार में फॉरेक्स की अहम भूमिका होती है। मौजूदा समय में कच्चे तेल की कीमतें साल के उच्चतम स्तर पर हैं, इससे सोने की कीमतों में मजबूती का रुख बना हुआ है। साथ ही शुक्रवार को वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की कीमतें पांच महीने के निचले स्तर पर पहुंच गईं।' जानकारों ने बताया कि डॉलर की कीमतें गिरने के कारण निवेशकों ने सोने का दामन थाम लिया है, इसलिए शुक्रवार को यह पिछले 3 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यूबीएस के एनालिस्ट जॉन रीड ने बताया, 'निकट भविष्य में सोने की कीमतें कमजोर डॉलर के बजाय महंगाई दर पर काफी हद तक निर्भर करेंगी। शुक्रवार को अमेरिकी बॉन्ड बाजार में सुधार होने के बाद महंगाई दर में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई है।' उन्होंने कहा कि कमजोर डॉलर और बढ़ती महंगाई दर की संभावना निश्चित रूप से सोने की कीमतों में तेजी लाने का माहौल तैयार करती है। महंगाई दर के इजाफे में कच्चे तेल की कीमतों की अहम भूमिका होती है। शुक्रवार को वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 6 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ सालों के आंकड़ों के मुताबिक महीने दर महीने के लिहाज से तेल की कीमतों में 10 साल में यह सबसे बड़ी तेजी है। चांदी की कीमतों में भी सोने की ही तरह तेजी का रुख रहा और शुक्रवार को यह 15.54 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर आ गईं। पिछले साल 8 अगस्त के बाद चांदी अपने सबसे मजबूत स्तर पर है। जानकारों ने बताया कि इन धातुओं में बढ़ते निवेश के कारण कीमतों में तेजी बनी हुई है। इसके साथ ही सिल्वर बैक्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में भी जनवरी 2009 के बाद तेजी आई है। इसके साथ ही कॉमेक्स फ्यूचर एक्सचेंज में खरीदारी में भी इजाफा हुआ है। कमोडिटी एक्सचेंज से जुड़े एक जानकार ने बताया कि चांदी की खरीदारी में भी तेजी से इजाफा हुआ। निवेशक इसे सोने के विकल्प के रूप में खरीद रहे हैं। पिछले कुछ समय में ऐसा देखने को मिला है कि यह विविधता भरे पोर्टफोलियो के लिहाज से काफी बेहतर है और कमजोर डॉलर और महंगाई दर के खिलाफ हेजिंग के लिए भी यह एक बेहतर जरिया है। (ET Hindi)
अगले सीजन में 15 लाख टन कच्ची चीनी आयात
नई दिल्ली- देश में सबसे ज्यादा चीनी उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र में अगले गन्ना पेराई सीजन में करीब 15 लाख टन कच्ची चीनी के आयात होने की उम्मीद है। भारत के 25 लाख टन कच्ची चीनी के आयात करने से न्यूयार्क में कच्ची चीनी के वायदा की कीमतें इस साल करीब 35 फीसदी ऊपर चढ़ चुकी हैं। साथ ही हाजिर महीने के कॉन्ट्रैक्ट की कीमत भी 12 मई को 16.03 सेंट के उच्चतम स्तर पर चली गई थी। यह कीमत जुलाई 2006 के बाद सबसे ज्यादा रही है। अक्टूबर से शुरू होने वाले अगले सीजन के लिए चीनी की कमी को देखते हुए कृषि मंत्री ने इस हफ्ते कहा था कि सरकार चीनी मिलों को कच्ची चीनी के शुल्क मुक्त आयात करने की तय अवधि में विस्तार कर सकती है। महाराष्ट्र सरकारी चीनी फैक्ट्री फेडरेशन के प्रबंध निदेशक प्रकाश नैकनावरे ने कहा, 'अक्टूबर से गन्ना पेराई शुरू हो जाएगी और तगड़े आयात होने की उम्मीद है। करीब 15 लाख टन कच्ची चीनी का आयात हो सकता है।' उन्होंने कहा कि पश्चिमी महाराष्ट्र में मौजूद मिलें मौजूदा सीजन में सितंबर तक कच्ची चीनी का आयात नहीं कर सकतीं, क्योंकि फरवरी में जब तक सरकार ने कर मुक्त खरीद की मंजूरी दी, मिलों में काम बंद हो चुका था। भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक है। इस साल 17 फरवरी को सरकार ने चीनी मिलों को कच्ची चीनी की शुल्क मुक्त खरीद की मंजूरी दी थी। साथ ही अप्रैल में सरकार ने तीन सरकारी ट्रेडिंग फर्मों को 10 लाख टन रिफाइंड चीनी के आयात की भी मंजूरी दी थी। गन्ने के उत्पादन में कमी आने से चीनी मिलों को लग रहा है कि साल 2008-09 सीजन में चीनी उत्पादन 45 फीसदी घटकर 1.47 करोड़ टन पर आ सकता है। नैकनावरे ने कहा कि गन्ने की ज्यादा क्षेत्रफल पर फसल करने से उत्पादन में इजाफा हो सकता है। (ET Hindi)
उप्र में इस साल और घटेगा गन्ने का रकबा
लखनऊ May 29, 2009
उत्तर प्रदेश में गन्ने का क्षेत्रफल 6 प्रतिशत घटकर वर्ष 2009-10 के पेराई सत्र दौरान 20.2 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है।
वर्ष 2008-09 में गन्ने का क्षेत्रफल 21.4 लाख हेक्टेयर था, जिसमें इसके पहले साल के 25 लाख हेक्टेयर की तुलना में 15 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
पिछले दो साल से ज्यादा समय से प्रदेश में गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है, जिसकी प्रमुख वजह कीमतों का भुगतान न हो पाना और कीमतों को लेकर भ्रम होना है। बहरहाल पिछले साल फसलों के भुगतान की स्थिति बहुत अच्छी रही, क्योंकि गन्ने की कमी थी। इससे किसानों को मुनाफा हुआ।
उत्तर प्रदेश का वार्षिक गन्ना सर्वेक्षण का काम चल रहा है और इसमें गन्ने के क्षेत्रफल में 8 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है। सर्वे का काम जुलाई तक पूरा होगा। गन्ना विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि गन्ने के क्षेत्रफल में आई कमी की एक वजह यह है कि इस साल पेंड़ी कम रही।
उन्होंने कहा कि पिछले साल गन्ने का क्षेत्रफल कम था, इसलिए इस साल पेंड़ी भी उसी अनुपात में कम है। पेंड़ी से गन्ना उत्पादन की प्रक्रिया यह है कि किसान एक फसल काटने के बाद उसकी जड़ों को खेत में छोड़ देता है, जिससे दूसरे साल भी गन्ने की फसल तैयार हो जाती है। इससे किसान दूसरे साल भी एक ही बीज से फसल उगाने में सक्षम होता है।
पिछले साल गन्ने का उत्पादन 30 प्रतिशत गिरकर 11 करोड़ टन रह गया था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के सेक्रेटरी सी बी पटोदिया ने कहा कि भले ही गन्ने के क्षेत्रफल में कमी आई है, लेकिन इस साल गन्ने के उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि अगर मानसून समय पर आता है तो इससे फसलों को कम से कम 8-10 प्रतिशत का फायदा होगा। बहरहाल उत्तर प्रदेश की 13 निजी चीनी मिलों की अभी भी गन्ने का बकाया 95 करोड़ रुपये है। राज्य सरकार, डिफॉल्टर मिलों को रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर रही है।
पटोदिया ने कहा कि जून तक गन्ने के एरियर का भुगतान कर दिया जाएगा, जब बैंक मिलों को भुगतान करना शुरू कर देंगे। उत्तर प्रदेश में 132 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 17 का संचालन राज्य चीनी निगम करता है, जबकि 22 का संचालन को-ऑपरेटिव और 93 का संचालन निजी मिल मालिक करते हैं। (BS Hiindi)
उत्तर प्रदेश में गन्ने का क्षेत्रफल 6 प्रतिशत घटकर वर्ष 2009-10 के पेराई सत्र दौरान 20.2 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है।
वर्ष 2008-09 में गन्ने का क्षेत्रफल 21.4 लाख हेक्टेयर था, जिसमें इसके पहले साल के 25 लाख हेक्टेयर की तुलना में 15 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
पिछले दो साल से ज्यादा समय से प्रदेश में गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है, जिसकी प्रमुख वजह कीमतों का भुगतान न हो पाना और कीमतों को लेकर भ्रम होना है। बहरहाल पिछले साल फसलों के भुगतान की स्थिति बहुत अच्छी रही, क्योंकि गन्ने की कमी थी। इससे किसानों को मुनाफा हुआ।
उत्तर प्रदेश का वार्षिक गन्ना सर्वेक्षण का काम चल रहा है और इसमें गन्ने के क्षेत्रफल में 8 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है। सर्वे का काम जुलाई तक पूरा होगा। गन्ना विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि गन्ने के क्षेत्रफल में आई कमी की एक वजह यह है कि इस साल पेंड़ी कम रही।
उन्होंने कहा कि पिछले साल गन्ने का क्षेत्रफल कम था, इसलिए इस साल पेंड़ी भी उसी अनुपात में कम है। पेंड़ी से गन्ना उत्पादन की प्रक्रिया यह है कि किसान एक फसल काटने के बाद उसकी जड़ों को खेत में छोड़ देता है, जिससे दूसरे साल भी गन्ने की फसल तैयार हो जाती है। इससे किसान दूसरे साल भी एक ही बीज से फसल उगाने में सक्षम होता है।
पिछले साल गन्ने का उत्पादन 30 प्रतिशत गिरकर 11 करोड़ टन रह गया था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के सेक्रेटरी सी बी पटोदिया ने कहा कि भले ही गन्ने के क्षेत्रफल में कमी आई है, लेकिन इस साल गन्ने के उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि अगर मानसून समय पर आता है तो इससे फसलों को कम से कम 8-10 प्रतिशत का फायदा होगा। बहरहाल उत्तर प्रदेश की 13 निजी चीनी मिलों की अभी भी गन्ने का बकाया 95 करोड़ रुपये है। राज्य सरकार, डिफॉल्टर मिलों को रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर रही है।
पटोदिया ने कहा कि जून तक गन्ने के एरियर का भुगतान कर दिया जाएगा, जब बैंक मिलों को भुगतान करना शुरू कर देंगे। उत्तर प्रदेश में 132 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 17 का संचालन राज्य चीनी निगम करता है, जबकि 22 का संचालन को-ऑपरेटिव और 93 का संचालन निजी मिल मालिक करते हैं। (BS Hiindi)
एक्सचेंज सिखा रहा है गेहूं वायदा
नई दिल्ली May 29, 2009
भारत में गेहूं का वायदा कारोबार तकरीबन सवा दो साल बाद शुरू किया गया है और पहले ही दिन से कारोबारियों ने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई है।
एमसीएक्स में पहले ही दिन से गेहूं के सौदों में इजाफा हुआ है। कारोबारियों के लिए एक साथ छह अनुबंध- जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर उपलब्ध कराया है।
देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स ने गेहूं के वायदा कारोबार के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए कोटा, इंदौर, दिल्ली और पंजाब के खन्ना में एक जागरूकता कार्यक्रम चलाया है।
गुरूवार को दिल्ली में आयोजित ऐसे ही एक आयोजन में कारोबारी समुदाय, विभिन्न कंपनियों, जिनमें आईटीसी, शक्तिभोग, ब्रिटैनिया, पारले-जी आदि शामिल थे, और उत्पादकों ने हिस्सा लिया।
उल्लेखनीय है कि देश के हाजिर बाजार में गेहूं की कीमतें साल 2001 में बढ़नी शुरू हुई और साल 2006 की अंतिम तिमाही में यह 1,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई थी।
गेहूं की कीमतों में बेतहाशा हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए भारत सरकार ने 2007 की शुरुआत में गेहूं वायदा पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार का मानना था कि गेहूं की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी की एक वजह इसका वायदा कारोबार भी है। (BS Hindi)
भारत में गेहूं का वायदा कारोबार तकरीबन सवा दो साल बाद शुरू किया गया है और पहले ही दिन से कारोबारियों ने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई है।
एमसीएक्स में पहले ही दिन से गेहूं के सौदों में इजाफा हुआ है। कारोबारियों के लिए एक साथ छह अनुबंध- जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर उपलब्ध कराया है।
देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स ने गेहूं के वायदा कारोबार के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए कोटा, इंदौर, दिल्ली और पंजाब के खन्ना में एक जागरूकता कार्यक्रम चलाया है।
गुरूवार को दिल्ली में आयोजित ऐसे ही एक आयोजन में कारोबारी समुदाय, विभिन्न कंपनियों, जिनमें आईटीसी, शक्तिभोग, ब्रिटैनिया, पारले-जी आदि शामिल थे, और उत्पादकों ने हिस्सा लिया।
उल्लेखनीय है कि देश के हाजिर बाजार में गेहूं की कीमतें साल 2001 में बढ़नी शुरू हुई और साल 2006 की अंतिम तिमाही में यह 1,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई थी।
गेहूं की कीमतों में बेतहाशा हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए भारत सरकार ने 2007 की शुरुआत में गेहूं वायदा पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार का मानना था कि गेहूं की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी की एक वजह इसका वायदा कारोबार भी है। (BS Hindi)
लौह अयस्क के नए चीनी फार्मूले से लाभ
मुंबई May 29, 2009
चीन के लौह अयस्क के कीमतों में समानता का फायदा, भारत के स्टील निर्माण के लिए कच्चे माल मुहैया कराने वाले निर्यातकों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले ज्यादा मिलेगा।
मौजूदा समय में तीन शेयरधारक जिसमें विदेशी खदान के मालिक, चीन के स्टील मिलों और स्थानीय खदान मालिक एक ऐसा सूत्र खोजने में जुटे हैं जिससे लंबे समय तक के लिए चीन के बंदरगाह पर लौह अयस्क की कीमतें घोषित की जा सकें।
इसका मतलब यह है कि अगर यह सूत्र बना लिया जाता है और इस पर अमल किया जाता है तो चीन के बंदरगाह पर कीमतें समान ही रहेंगी और वह कहां से लाई जा रही हैं और उसका मालभाड़ा क्या है इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भारत के निगाह से यह विकास बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारतीय निर्यातकों को कम मालभाड़े की वजह से चीन से अतिरिक्त ऑर्डर मिल सकते हैं। आज चीन को निर्यात करने वाले लौह अयस्क निर्यातकों को कीमतों में एकरूपता के लिए कोशिश करनी पड़ रही है क्योंकि चीन के आयातक अनुबंधित माल को लेने में हिचकते हैं जब हाजिर कीमत, द्विपक्षीय बातचीत से निर्धारित कीमत के मुकाबले कम हो जाती है।
इसके बदले आयातक कीमतों पर फिर से बातचीत करना पसंद करते हैं या फिर हाजिर बाजार से लौह अयस्क को खरीदना पसंद करते हैं। गोवा के निर्यातक और लौह अयस्क खदार्नकत्ता एच एल नाथुरामल ऐंड कंपनी के सीईओ हरीश मेलवानी का कहना है, 'ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में भारत के भौगोलिक स्थिति का फायदा निश्चित तौर पर है क्योंकि इसी वजह से मालभाड़ा कम हो जाता है। ऐसे में भारत के लौह अयस्क की मांग निश्चित तौर पर बढ़ेगी।'
कारोबारियों सूत्रों के मुताबिक बाजार की तीन शक्तियां मौजूदा समय में एक सूत्र बनाने के लिए कोशिश कर रही हैं ताकि स्टील मिलों का परिचालन बेहतर तरीके से हो सके । अगले महीने के अंत तक यह फै सला किया जा सकता है। मौजूदा वक्त में सभी भारतीय बंदरगाहों से मालभाड़ा 11-13 डॉलर के बीच में है जबकि ब्राजील से 26 डॉलर और ऑस्ट्रेलिया से 18-20 डॉलर है।
लेकिन दुनिया के दो बड़े लौह अयस्क खदार्नकत्ता ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में कुछ सकारात्मक भी है क्योंकि ये देश इनके पास 3 लाख टन क्षमता वाले जहाज भी हैं, जो क्षमता भारत के पास नहीं है। भारत के पास 40,000-125,000 टन क्षमता वाले छोटे जहाज हैं।
गोवा खनिज अयस्क निर्यातक संघ के सचिव ग्लेन कालावांपरा का कहना है कि अगर भारत इसका पूरा फायदा लेना चाहता है तो इसे बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा ताकि बड़े जहाज का बेहतर प्रबंधन किया जा सके। हालांकि चीन के छोटे स्टील मिलों को भारत से लौह अयस्क का आयात करना होगा क्योंकि वे स्टील के कच्चे माल की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत नहीं समझते।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनिरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई) के महासचिव आर के शर्मा का कहना है, 'मौजूदा समय में यहीं चीजें हो रही हैं कीमतों में समानता के सूत्र में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है क्योंकि निर्यातकों को माल लदाई की लागत का बोझ भी उठाना है। सभी कीमतें फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी)के आधार पर ही निर्धारित की जाती है जो चीन के बंदरगाह की कीमतें ही होती हैं।'
तीन बड़े खदानों की कंपनी कॉमपैनियां वाले डो रियो डोसे, बीएचपी बिलिटॉन और रियो टिंटो के बेंचमार्क कीमतों का अनुसरण सबके द्वारा किया जाता है। लेकिन एक कारोबारी का कहना है कि चीन के बंदरगाह की कीमतों की घोषणा से फिर से बातचीत के द्वारा निर्धारित कीमतें कम हो जाएंगी। (BS Hindi)
चीन के लौह अयस्क के कीमतों में समानता का फायदा, भारत के स्टील निर्माण के लिए कच्चे माल मुहैया कराने वाले निर्यातकों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले ज्यादा मिलेगा।
मौजूदा समय में तीन शेयरधारक जिसमें विदेशी खदान के मालिक, चीन के स्टील मिलों और स्थानीय खदान मालिक एक ऐसा सूत्र खोजने में जुटे हैं जिससे लंबे समय तक के लिए चीन के बंदरगाह पर लौह अयस्क की कीमतें घोषित की जा सकें।
इसका मतलब यह है कि अगर यह सूत्र बना लिया जाता है और इस पर अमल किया जाता है तो चीन के बंदरगाह पर कीमतें समान ही रहेंगी और वह कहां से लाई जा रही हैं और उसका मालभाड़ा क्या है इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भारत के निगाह से यह विकास बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारतीय निर्यातकों को कम मालभाड़े की वजह से चीन से अतिरिक्त ऑर्डर मिल सकते हैं। आज चीन को निर्यात करने वाले लौह अयस्क निर्यातकों को कीमतों में एकरूपता के लिए कोशिश करनी पड़ रही है क्योंकि चीन के आयातक अनुबंधित माल को लेने में हिचकते हैं जब हाजिर कीमत, द्विपक्षीय बातचीत से निर्धारित कीमत के मुकाबले कम हो जाती है।
इसके बदले आयातक कीमतों पर फिर से बातचीत करना पसंद करते हैं या फिर हाजिर बाजार से लौह अयस्क को खरीदना पसंद करते हैं। गोवा के निर्यातक और लौह अयस्क खदार्नकत्ता एच एल नाथुरामल ऐंड कंपनी के सीईओ हरीश मेलवानी का कहना है, 'ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में भारत के भौगोलिक स्थिति का फायदा निश्चित तौर पर है क्योंकि इसी वजह से मालभाड़ा कम हो जाता है। ऐसे में भारत के लौह अयस्क की मांग निश्चित तौर पर बढ़ेगी।'
कारोबारियों सूत्रों के मुताबिक बाजार की तीन शक्तियां मौजूदा समय में एक सूत्र बनाने के लिए कोशिश कर रही हैं ताकि स्टील मिलों का परिचालन बेहतर तरीके से हो सके । अगले महीने के अंत तक यह फै सला किया जा सकता है। मौजूदा वक्त में सभी भारतीय बंदरगाहों से मालभाड़ा 11-13 डॉलर के बीच में है जबकि ब्राजील से 26 डॉलर और ऑस्ट्रेलिया से 18-20 डॉलर है।
लेकिन दुनिया के दो बड़े लौह अयस्क खदार्नकत्ता ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में कुछ सकारात्मक भी है क्योंकि ये देश इनके पास 3 लाख टन क्षमता वाले जहाज भी हैं, जो क्षमता भारत के पास नहीं है। भारत के पास 40,000-125,000 टन क्षमता वाले छोटे जहाज हैं।
गोवा खनिज अयस्क निर्यातक संघ के सचिव ग्लेन कालावांपरा का कहना है कि अगर भारत इसका पूरा फायदा लेना चाहता है तो इसे बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा ताकि बड़े जहाज का बेहतर प्रबंधन किया जा सके। हालांकि चीन के छोटे स्टील मिलों को भारत से लौह अयस्क का आयात करना होगा क्योंकि वे स्टील के कच्चे माल की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत नहीं समझते।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनिरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई) के महासचिव आर के शर्मा का कहना है, 'मौजूदा समय में यहीं चीजें हो रही हैं कीमतों में समानता के सूत्र में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है क्योंकि निर्यातकों को माल लदाई की लागत का बोझ भी उठाना है। सभी कीमतें फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी)के आधार पर ही निर्धारित की जाती है जो चीन के बंदरगाह की कीमतें ही होती हैं।'
तीन बड़े खदानों की कंपनी कॉमपैनियां वाले डो रियो डोसे, बीएचपी बिलिटॉन और रियो टिंटो के बेंचमार्क कीमतों का अनुसरण सबके द्वारा किया जाता है। लेकिन एक कारोबारी का कहना है कि चीन के बंदरगाह की कीमतों की घोषणा से फिर से बातचीत के द्वारा निर्धारित कीमतें कम हो जाएंगी। (BS Hindi)
29 मई 2009
बिहार में बुवाई घटने से जून में मक्का महंगा होने की संभावना
जून-जुलाई महीने में मक्का की कीमतों में सुधार आ सकता है। आगामी तीन महीने तक मक्का की आपूर्ति बिहार से होनी है जबकि बिहार में बांग्लादेश से अच्छी मांग निकल रही है। प्रतिकूल मौसम से राज्य में मक्का की बुवाई घटने से पैदावार भी 20-25 फीसदी कम होने की संभावना है। वैसे भी मानसून शुरू होने के बाद मक्का में पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग भी बढ़ जाती है।बैंगानी ग्रुप के चेयरमैन बिमल बैंगानी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खरीफ सीजन की मक्का की आवक सितंबर महीने में शुरू होगी। ऐसे में आगामी तीन महीने तक पोल्ट्री फीड निर्माताओं और स्टॉर्च मिलों की खरीद बिहार से होनी है।बिहार में बुवाई प्रभावित होने से मक्का की पैदावार में 20 से 25 फीसदी की कमी आने की आशंका है जबकि मानसून शुरू होने के बाद पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग बढ़ जाती है। उधर बांग्लादेश की मांग में भी पहले की तुलना में इजाफा हुआ है। इस समय बांग्लादेश के लिए 180 डॉलर प्रति टन की दर से सौदे हो रहे हैं। ऐसे में जून-जुलाई महीने में मक्का की मौजूदा कीमतों में 100 से 125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ सकती है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार रबी में मक्का की बुवाई 12.22 लाख हैक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल के 10.62 लाख हैक्टेयर के मुकाबले ज्यादा है। इसमें जहां आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में बुवाई बढ़ी है वहीं बिहार में घटी है। मालूम हो कि रबी सीजन में मक्का का सबसे ज्यादा उत्पादन बिहार में ही होता है। बिहार की नोगछिया मंडी के मक्का व्यापारी पवन अग्रवाल ने बताया कि राज्य के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो-तीन दिनों से लगातार बारिश हो रही है। जिससे मंडियों में आवक घट गई है। बिहार की मंडियों में मक्का के भाव लूज में 710-715 रुपये और ट्रक लोड 735-750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। जोकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम हैं। चालू फसल सीजन के लिए सरकार ने मक्का का एमएसपी 840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। उन्होंने बताया कि इस समय दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के साथ बांग्लादेश की अच्छी मांग बनी हुई है। दिल्ली के मक्का व्यापारी राजेश अग्रवाल ने बताया कि मौसम खराब होने से उत्पादक मंडियों खगड़िया, नौगछिया, मानसी और गुलाबबाग में आवक घटी है। बिहार से दिल्ली पहुंच मक्का के भाव 930 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। आंध्र प्रदेश की उत्पादक मंडियों में मक्का के भाव 830-840 रुपये और कर्नाटक की मंडियों में 825-830 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं लेकिन आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में आवक घट गई है। केंद्र सरकार द्वारा जारी तीसरे आरंभिक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2008-09 में देश में मक्का का उत्पादन पिछले साल के 189 लाख टन के मुकाबले 184 लाख टन होने का अनुमान हैं।दो साल में मक्के की मांग व उपलब्धता बराबर होगीनई दिल्ली। देश में साल 2011-12 तक मक्के की मांग बढ़कर करीब 2.3 करोड़ टन होने की संभावना है। इस दौरान देश में मक्का की उपलब्धता करीब इतनी ही रहेगी। इंडियन मेज डवलपमेंट एसोसिएशन (आईएमडीए) द्वारा जारी अध्ययन रिपोर्ट विजन 2025 के मुताबिक अगले दो सालों में मक्के की मांग बढ़कर करीब 2.27 करोड़ टन रह सकती है। जिसमें से करीब 1.96 करोड़ टन मांग पोल्ट्री और गैर खाद्य क्षेत्र से रहने के आसार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 तक मक्के की पैदावार करीब 4.2 करोड़ टन तक जा सकता है। अगले साल देश में करीब 2.2 करोड़ टन मक्क्का पैदा होने का अनुमान है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
गेहूं वायदा में अग्रणी बनने को एक्सचेंजों में तर्क युद्ध
गेहूं वायदा शुरू होने के बाद देश के दो प्रमुख एक्सचेंजों के बीच अग्रणी होने के लिए परस्पर विरोधी दावों की होड़ लग गई है। एक ओर जहां मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) गेहूं वायदा कारोबार के मामले में अग्रणी होने का दावा कर रहा है, वहीं नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) खड़े सौदों (ओपन इंटरेस्ट) के मामले में अग्रणी होने का दावा कर रहा है। ओपन इंटरस्ट दरअसल खरीद और बिक्री के वे फ्यूचर सौदे हैं जिनका निपटान नहीं हुआ है।एनसीडीईएक्स का कहना है कि एमसीएक्स में भले ही गेहूं का ट्रेडिंग वॉल्यूम अधिक रहा हो लेकिन उनके यहां ओपन इंटरस्ट अधिक है, जो ट्रेडिंग वॉल्यूम से अधिक महत्वपूर्ण है। एक्सचेंजों से मिले आंकड़ों के मुताबिक गेहूं वायदा शुरू होने के पहले ही दिन 21 मई को जहां एमसीएक्स में ब्ब् करोड़ रुपए का वायदा करोबार हुआ वहीं एनसीडीईएक्स में फ्त्त करोड़ का कारोबार हुआ। दूसर दिन भी एमसीएक्स में फ्भ् करोड़ रुपए का वायदा कारोबार हुआ जबकि एनसीडीईएक्स में ख्त्त करोड़ का कारोबार हुआ। लेकिन यदि दोनों एक्सचेंजों के ओपन इंटरस्ट के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो इसके विपरीत परिणाम देखने को मिलते हैं। फ्ख् मई को एनसीडीईएक्स में ओपन इंटरेस्ट 8,99क् टन रहा जबकि एमसीएक्स में स्त्र,फ्8क् मेट्रिक टन रहा। फ्फ् मई को भी एनसीडीईएक्स में ख्ब्,8फ्क् टन का ओपन इंटरेस्ट रहा जबकि एमसीएक्स में 9,फ्8क् मेट्रिक टन का ओपन इंटरेस्ट रहा। इसी प्रकार फ्ब् व फ्भ् मई को भी एनसीडीईएक्स में ओपन इंटरेस्ट एमसीएक्स से अधिक रहा।एनसीडीईएक्स के मुख्य बिजनेस अधिकारी अनुपम कौशिक का दावा है कि ट्रेडिंग ट्रेडिंग से अधिक महत्वपूर्ण ओपन इंटरस्ट है। उधर, एमसीएक्स के मुख्य बिजनेस अधिकारी सुमेश परसरामपुरिया का दावा है कि एमसीएक्स वायदा सौदे को बढ़ाने के लिए काफी दिनों से देश भर में जागरूकता अभियान चला रहा है और विभिन्न एसोसिएशनों से गठजोड़ कर वायदा कारोबार को बढ़ावा दे रहा है जबकि दूसर एक्सचेंजों में इस तरह की पहले नहीं हो रही है। (Business Bhaskar)
रियो-निप्पोन में करार के बाद लौह अयस्क में तेजी संभव
दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनी रियो टिंटो और जापान व दक्षिण कोरिया की स्टील कंपनियों के बीच लौह अयस्क के वार्षिक अनुबंधित मूल्य पर समझौता हो जाने के बाद भारतीय लौह अयस्क के निर्यात मूल्य में सुधार आने की उम्मीद बन गई है। भारतीय लौह अयस्क के निर्यात मूल्य में पिछले तीन-चार माह से गिरावट आ रही है। एंग्लो-आस्ट्रेलियन खनन कंपनी रियो टिंटो वर्ष 2009-10 के लिए लौह अयस्क की कीमतों में कटौती करने को राजी हो गई है। कंपनी ने निप्पोन स्टील कारपोरशन और पॉस्को के साथ 33 से 44 फीसदी तक दाम घटाने की सहमति जताई है। भारतीय खनन कंपनियां चीन व जापान की स्टील कंपनियों और खनन कंपनियों के बीच हो रही सौदेबाजी पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक चीन की कंपनियां लौह अयस्क की कीमतों में 40 फीसदी से भी ज्यादा की कमी करने की मांग कर रही है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा लौह अयस्क आयातक देश है। चीन काफी मात्रा में आयात भारत से भी लौह अयस्क आयात करता है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत से चीन को करीब 10 करोड़ टन लौह अयस्क का निर्यात था। रियो टिंटो की तरह भारतीय खनन कंपनियां भी जापान और चीन की स्टील कंपनियों के साथ लंबी अवधि के लिए लौह अयस्क सप्लाई का करार करती हैं। लेकिन दोनों सौदों में अंतर ये होता है कि रियो टिंटो द्वारा किया गया करार का मूल्य हाजिर भाव से प्रभावित होता है, जबकि भारतीय कंपनियां हाजिर भावों को आधार मानकर लंबी अवधि का करार करती हैं। जिसमें बाद में कोई बदलाव नहीं होता है। गोवा की खनन कंपनी वीएम साल्गोंकर एंड ब्रदर्स के प्रबंध निदेशक एस. वी. साल्गोंकर के मुताबिक मौजूदा समय में भारत के लौह अयस्क के हाजिर व लंबी अवधि अनुबंधित भाव में अंतर बेहद कम है। ऐसे में घरलू बाजार में आने वाले दिनों में लौह अयस्क की कीमतें लंबी अवधि के अनुबंध भाव से भी ऊपर जा सकती हैं। इस समय लौह अयस्क का हाजिर भाव करीब 54-55 डॉलर प्रति टन है जबकि हाल ही में हुए अनुबंधित सौदे करीब 58-69 डॉलर प्रति टन के आसपास भाव पर हुए हैं। पिछले साल के अंत में कई सालों के बाद चीन की मांग में आई कमी से घरलू बाजार में लौह अयस्क के हाजिर भाव कांट्रैक्ट भाव से नीचे आ गए थे। फेडरशन अॅाफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज के के अध्यक्ष राहुल बालदोता के मुताबिक फिलहाल इस हालात में भारतीय लौह अयस्क की कीमतों में इजाफे की ज्यादा संभावना है। (Business Bhaskar)
कोलंबिया में भारतीय मसालों के लिए बाजार की तलाश
इस सीजन में भारत का मसाला निर्यात पिछले साल के स्तर पर ही रहने की संभावना है। वहीं दूसरी तरफ लैटिन अमेरिका के बाजार में भारतीय मसालों की मांग बढ़ाने के मकसद से इंडियन स्पाइस बोर्ड कोलंबिया में होने वाली एक प्रदर्शनी में भाग लेने जा रही है। बीते साल भारत ने 4.25 लाख टन मसालों का निर्यात किया था। इस साल मसाला निर्यात में बढ़ोतरी होने की उम्मीद नहीं है। वैश्विक मंदी की वजह से मसालों की मांग नहीं बढ़ी। स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष वी. जे. कुरियन ने कहा कि हमें यह पता नहीं कि मंदी का कितना असर कारोबार पर पड़ने वाला है। इस साल के कारोबार की बावत उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि पिछले साल के निर्यात स्तर को बनाए रखने में हमें कामयाबी मिलेगी। उधर मसाला बोर्ड निर्यात को बढ़ाने और भारतीय मसाले को नए बाजार मुहैया कराने की कवायद के तहत कोलंबिया में लगने वाली एक प्रदर्शनी में भाग लेने जा रहा है। यह प्रदर्शनी कोलंबिया के बगोटा में 16 से 26 जुलाई के बीच लगने वाली है। यह कोलंबिया का बड़ा आयोजन और इस मौके पर बोर्ड भारतीय क्षमता का प्रदर्शन करने की योजना बना रही है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस मौके पर भारतीय मसालों की विभिन्न किस्मों का प्रदर्शन किया जाएगा। कोलंबिया में भारतीय दूतावास बोर्ड के प्रतिनिधियों का वहां के आयातकों, डीलरों और कारोबारियों के साथ बैठक तय कराने की कोशिश कर रहा है। (Business Bhaskar)
फ्यूचर ट्रेडिंग पर रोक लगी तो गिरे चीनी के दाम
नई दिल्ली : चीनी के वायदा कारोबार पर मंगलवार को पाबंदी के ऐलान के बाद से देशभर में इसकी कीमतें 15-30 रुपए प्रति क्विंटल तक कम हो चुकी हैं। दिल्ली में इसका थोक भाव 30 रुपए गिरकर 2,360-2,440 रुपए प्रति क्विंटल के बीच आ गया है। मुंबई में भी वायदा कारोबार पर रोक का असर दिखा और वहां एस किस्म की चीनी की कीमत 15 रुपए गिरकर 2,205 रुपए प्रति क्विंटल हो गई। देश की आर्थिक राजधानी में एम किस्म की चीनी की कीमत में भी 20 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। इसकी कीमत 2,250 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। अगले हफ्ते तक चीनी के दाम में और गिरावट आ सकती है। दरअसल फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के शुगर फ्यूचर्स पर रोक लगाने के बाद हाजिर और वायदा बाजार में कारोबारियों ने चीनी की बिकवाली शुरू कर दी। इसका असर आने वाले दिनों में इसकी कीमतों पर और दिख सकता है। माना जा रहा है कि वायदा बाजार में चीनी का भाव टूटने का असर हाजिर बाजार में भी दिख रहा है। कारोबार पर पाबंदी के बावजूद मौजूदा वायदा कॉन्ट्रैक्ट को पूरा होने दिया जाएगा। कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स पर अभी चल रहे चीनी के जून कॉन्ट्रैक्ट का भाव 1.8 फीसदी गिरकर 2,266 रुपए, वहीं एमसीएक्स पर एम किस्म चीनी का जुलाई वायदा 1.6 फीसदी गिरकर 2,430 रुपए प्रति क्विंटल रहा। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'थोक बाजार में चीनी के दाम में फौरन कमी आई। चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाने का मकसद इसकी जमाखोरी और इसमें हो रही सट्टेबाजी पर रोक लगाना था। कीमतों में हुई कमी को देखकर लग रहा है कि यह कदम सही था। हमें उम्मीद है कि थोक बाजार में चीनी के सस्ता होने का असर जल्द ही खुदरा बाजार में भी दिखेगा।' हालांकि, जानकारों का कहना है कि लंबे वक्त में वायदा कारोबार पर रोक का चीनी के खुदरा भाव पर बहुत असर नहीं पड़ेगा। 2008-09 सीजन में देश में 1.45 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। चीनी का सीजन अक्टूबर से सितंबर के बीच होता है। पिछले साल की करीब 80 लाख टन चीनी भी बाजार में आएगी। साथ ही इस सीजन में 25 लाख टन चीनी के आयात का अनुमान है। भारत में चीनी की सालाना खपत 2.3 करोड़ टन से कुछ ज्यादा है। ऐसे में इस सीजन में तो चीनी की मांग पूरी हो जाएगी, लेकिन अगले सीजन के लिए चीनी का स्टॉक नहीं बचेगा। अगले सीजन में भारतीय शुगर मिल एसोसिएशन ने 2 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया है। हालांकि, इस पर अभी उलझन बनी हुई है। (ET Hindi)
कृषि क्षेत्र में आएंगे अकाउंटिंग नियम
नई दिल्ली: कृषि के उद्योगीकरण और व्यावसायिक फसलों से आय की अपार संभावनाओं ने अकाउंटिंग नियामक आईसीएआई का ध्यान भी आकर्षित किया है और अब वह इस सेक्टर के लिए अकाउंटिंग नियम लाने की योजना बना रहा है। आईसीएआई के वाइस प्रेसिडेंट अमरजीत चोपड़ा ने बताया, 'अभी तक कृषि सेक्टर के लिए कोई नियम और स्टैंडर्ड नहीं । आप चाय, कॉफी या फिर दूसरी व्यावसायिक फसलों का मूल्यांकन कैसे करेंगे? हम कृषि क्षेत्र के लिए कुछ नियम बनाने के बारे में विचार कर रहे हैं।' दुनिया भर में फार्म सेक्टर के लिए अकाउंटिंग स्टैंडर्ड हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। भारत में कृषि आय को आयकर से छूट मिली हुई है। चोपड़ा ने कहा कि उत्पादक नहीं जानते कि चाय, कॉफी, रबर आदि फसलों के फ्लोरीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और प्लांटेशन का मूल्यांकन कैसे किया जाए, इस कारण इस सेक्टर अधिक वैल्यूएशन नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि भारत एक कृषि आधारित देश है, इस कारण अकाउंटिंग नियमों की जरूरत और अधिक है। (ET Hindi)
माइक्रो न्यूट्रिएंट बने दीपक फर्टिलाइजर्स के लिए मुनाफे का उर्वरक
पुणे: एकीकृत केमिकल और फर्टिलाइजर कंपनी दीपक फर्टिलाइजर एंड फार्मास्युटिकल्स कॉरपोरेशन (डीएफपीसीएल) मार्केटिंग और किसानों से सीधे जमा किए गए बागवानी उत्पादों व सब्जियों के निर्यात के जरिए अपने कारोबार को बढ़ा रही है। यह कंपनी के माइक्रो न्यूट्रिएंट कारोबार की तरफ एक और कदम है, जिसके बाद कंपनी खास मिट्टी और एग्री उत्पादों की जरूरत के हिसाब से एक प्लांट लगा सकती है। मौजूदा वक्त में, डीएफपीसीएल माइक्रो न्यूट्रिएंट का आयात करती है। इस आयात के जरिए कंपनी ने वित्त वर्ष 2008-09 में 148 करोड़ रुपए से ज्यादा जुटाए थे, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में कंपनी ने इस मद से 87.65 करोड़ रुपए जुटाए थे। ये उत्पाद सरकार की सब्सिडी के अधीन नहीं आते हैं, इससे ये उत्पादक कंपनियों के लिए काफी आकर्षक बने हुए हैं। 1,470 करोड़ रुपए से ज्यादा की कंपनी दीपक फर्टिलाइजर ने एग्रीकल्चर सपोर्ट की पहल को कुछ साल पहले शुरू किया था। कंपनी ने उस वक्त मुट्ठी भर किसानों का चयन किया था जिनकी संख्या अब बढ़कर 5,000 को पार कर गई है। कंपनी ने इन्हें मिट्टी और कृषि अर्थव्यवस्था को मदद देने वाले माइक्रो न्यूट्रिएंट के क्षेत्र में विशेषज्ञता मुहैया कराई। पिछले वित्त वर्ष के दौरान, कंपनी ने फल और सब्जियों के 56 कंटेनर निर्यात किए थे, इसके अलावा घरेलू बाजार में भी इनकी बिक्री की गई थी। जून तक, कंपनी को कुल 90 कंटेनर के निर्यात की उम्मीद है। डीएफपीसीएल के संयुक्त उद्यम में नॉर्वे की यारा इंटरनेशनल एएसए पार्टनर है। यह 14 अरब डॉलर की कंपनी है, जो कि स्पेशिएलिटी फटिर्लाइजर और दूसरे उत्पाद बनाती है। डीएफपीसीएल और यारा मिलकर 3 लाख टन की क्षमता का अमोनियम नाइट्रेट और स्पेशिएलिटी फटिर्लाइजर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट उड़ीसा के पारादीप में लगा रही हैं। डीएफपीसीएल के प्रबंध निदेशक और वाइस चेयरमैन एस सी मेहता के मुताबिक, 'हमने किसानों के लिए डिमॉन्सटेशन प्लांट के जरिए शुरुआत की है। इसके बाद हमने इसे फसल और मिट्टी के हिसाब से उर्वरक बनाने वाली इकाइयों में बदल दिया। साथ ही हम अब किसानों को ड्रिप सिंचाई जैसी सेवाएं देने की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके बाद इन उत्पादों को खरीदने की शुरुआत होगी।' इन उत्पादों को यूरोपीय स्टैंडर्ड के हिसाब से सर्टिफाइ किया गया है, क्योंकि पिछले साल निर्यात का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन, यूरोपीय और मध्य-पूर्व के बाजारों को भेजा गया था। शुरुआती निर्यात आईटीसी के जरिए शुरू किया गया था, लेकिन अब अंगूर, अनार और प्याज सीधे डीएफपीसीएल के सारथी ब्रांड के जरिए बाहर जा रहे हैं। मेहता के मुताबिक उन्होंने एक ग्लोबल फर्म के साथ समझौता किया है जो कि खरीदार है और हाइपर मार्केट चेन को सप्लाई करती है। कंपनी का मकसद केवल महाराष्ट्र के बाहर अपना सप्लायर आधार बढ़ाने की नहीं है बल्कि अपने उत्पादों की रेंज में भी इजाफा करने की है। (ET Hindi)
कपास का रकबा बढ़ने के आसार
अहमदाबाद May 28, 2009
वर्ष 2008-09 में कपास की ज्यादा कीमतें मिलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा किसान इस फसल को उगाने का विकल्प चुन सकते हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बुआई पहले ही हो चुकी है। पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के चलन के मद्देनजर कपास उद्योग के खिलाड़ियों को वित्त वर्ष 2009-10 में कपास के रकबे में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के पूर्व अध्यक्ष पी. डी. पटोदिया का कहना है, 'उत्तरी भारत के कुछ राज्यों मसलन पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई शुरू हो चुकी है। इस साल का रुझान बेहतर दिखाई दे रहा है और कपास के रक बे और पैदावार में बढ़ोतरी होनी चाहिए।'
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज के महासचिव डी के नायर का कहना है, 'वर्ष 2009-10 में कपास की खेती के रकबे में बढ़ोतरी होगी और पिछले साल किसानों को भी बेहतर मुनाफा हुआ। इस साल मानसून भी समय पर आ गया है।' जहां कपास की बुआई हो रही है वहां सिंचाई की सुविधाएं मौजूद है।
अहमदाबाद की एक बड़ी कपास कारोबार की कंपनी, अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल का कहना है, 'गुजरात के कुछ क्षेत्रों मसलन भरुच, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों में कपास की बुआई हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में कपास के रबके में लगभग 3 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।'
वर्ष 2008-09 में लगभग 92.6 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की गई। सेंट्रल गुजरात कपास डीलर्स एसोसिएशन (सीजीसीडीए) के किशोर शाह का क हना है, 'कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों को बेहतर मुनाफा मिला है।
पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के मद्देनजर यह संभावना है कि वर्ष 2009-10 में देश के कपास के रकबे में 95 लाख हेक्टेयर तक का उछाल आ सकता है। महाराष्ट्र ओर आंध्र प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां इस साल ज्यादा से ज्यादा किसान कपास की फसल लगाएंगे।'
शाह का कहना है, 'पिछले वित्तीय वर्ष में महाराष्ट्र में सोयाबीन की बुआई में बढ़ोतरी हुई लेकिन किसानों को कपास किसान के मुकाबले बेहतर मुनाफा नहीं मिल सका। महाराष्ट्र के किसान इस साल कपास की खेती की ओर रुख कर सक ते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति आंध्र प्रदेश में तंबाकू किसानों के साथ हुई।'
ऐसा अनुमान था कि कपास का उत्पादन वर्ष 2008-09 में कम से कम 290 लाख गांठ तक हुआ है जो वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठ थी। हालांकि इस उद्योग के खिलाड़ियों का ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में 340 लाख गांठ तक का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल कपास की पैदावार कीटों और खराब मौसम की वजह से प्रभावित हुई थी।
किसानों से उम्मीद
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बेहतर बुआई कीमतें ज्यादा मिलने की वजह से किसानों ने किया कपास का रुखमानसून बेहतर रहने के बन रहे हैं आसार (BS Hindi)
वर्ष 2008-09 में कपास की ज्यादा कीमतें मिलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा किसान इस फसल को उगाने का विकल्प चुन सकते हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बुआई पहले ही हो चुकी है। पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के चलन के मद्देनजर कपास उद्योग के खिलाड़ियों को वित्त वर्ष 2009-10 में कपास के रकबे में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के पूर्व अध्यक्ष पी. डी. पटोदिया का कहना है, 'उत्तरी भारत के कुछ राज्यों मसलन पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई शुरू हो चुकी है। इस साल का रुझान बेहतर दिखाई दे रहा है और कपास के रक बे और पैदावार में बढ़ोतरी होनी चाहिए।'
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज के महासचिव डी के नायर का कहना है, 'वर्ष 2009-10 में कपास की खेती के रकबे में बढ़ोतरी होगी और पिछले साल किसानों को भी बेहतर मुनाफा हुआ। इस साल मानसून भी समय पर आ गया है।' जहां कपास की बुआई हो रही है वहां सिंचाई की सुविधाएं मौजूद है।
अहमदाबाद की एक बड़ी कपास कारोबार की कंपनी, अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल का कहना है, 'गुजरात के कुछ क्षेत्रों मसलन भरुच, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों में कपास की बुआई हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में कपास के रबके में लगभग 3 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।'
वर्ष 2008-09 में लगभग 92.6 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की गई। सेंट्रल गुजरात कपास डीलर्स एसोसिएशन (सीजीसीडीए) के किशोर शाह का क हना है, 'कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों को बेहतर मुनाफा मिला है।
पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के मद्देनजर यह संभावना है कि वर्ष 2009-10 में देश के कपास के रकबे में 95 लाख हेक्टेयर तक का उछाल आ सकता है। महाराष्ट्र ओर आंध्र प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां इस साल ज्यादा से ज्यादा किसान कपास की फसल लगाएंगे।'
शाह का कहना है, 'पिछले वित्तीय वर्ष में महाराष्ट्र में सोयाबीन की बुआई में बढ़ोतरी हुई लेकिन किसानों को कपास किसान के मुकाबले बेहतर मुनाफा नहीं मिल सका। महाराष्ट्र के किसान इस साल कपास की खेती की ओर रुख कर सक ते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति आंध्र प्रदेश में तंबाकू किसानों के साथ हुई।'
ऐसा अनुमान था कि कपास का उत्पादन वर्ष 2008-09 में कम से कम 290 लाख गांठ तक हुआ है जो वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठ थी। हालांकि इस उद्योग के खिलाड़ियों का ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में 340 लाख गांठ तक का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल कपास की पैदावार कीटों और खराब मौसम की वजह से प्रभावित हुई थी।
किसानों से उम्मीद
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बेहतर बुआई कीमतें ज्यादा मिलने की वजह से किसानों ने किया कपास का रुखमानसून बेहतर रहने के बन रहे हैं आसार (BS Hindi)
28 मई 2009
गेहूं व चावल का बफर स्टॉक बढ़ाने की तैयारी
नई दिल्ली। इस साल देश में रिकॉर्ड 565 लाख टन खाद्यान्न की खरीद को ध्यान में रखकर सरकार अगले एक माह के भीतर गेहूं व चावल के बफर स्टॉक नियमों में बदलाव करने जा रही है। इसके तहत खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की खातिर गेहूं व चावल का बफर स्टॉक बढ़ाया जाएगा।एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बुधवार को यहां बताया कि इस काम का जिम्मा एक तकनीकी समूह को सौंपा गया है। सरकार बफर स्टॉक में कितना इजाफा करने जा रही है, फिलहाल इसका खुलासा नहीं हो पाया है। हालांकि, सूत्रों का मानना है कि इस बार में जल्दी ही घोषणा हो सकती है। मौजूदा नियमों के मुताबिक हर तिमाही की शुरुआत में केंद्रीय पूल में इतना अनाज होना चाहिए जिससे कि उस तिमाही के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली और दूसरी योजनाओं में अनाज की पर्याप्त आपूर्ति हो सके। अप्रैल 2005 के बाद से अब तक चावल और गेहूं के बफर नियमों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सरकार ने नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च से इस पर अध्ययन करके सुझाव मांगे थे जिस पर उपयरुक्त तकनीक समूह गौर फरमा रहा है। नियमों के मुताबिक एक जनवरी को केंद्रीय पूल में 118 लाख टन, एक अप्रैल को 122 लाख टन, एक जुलाई को 98 लाख टन और एक अक्टूबर को 52 लाख टन चावल का न्यूनतम बफर स्टॉक होना चाहिए। ऐसे ही गेहूं के मामले में भी स्टॉक तय किया गया है। एक जनवरी को 82 लाख टन, एक अप्रैल को 40 लाख टन, एक जुलाई को 171 लाख टन और एक अक्टूबर को 110 लाख टन गेहूं का न्यूनतम बफर स्टॉक होना चाहिए। इस साल देश में करीब 240 लाख टन गेहूं, 310 लाख टन चावल और 15 लाख टन मोटे अनाजों की सरकारी खरीद होने का अनुमान है। (Buisness Bhaskar)
इंडोनेशिया में पाम उत्पादन दोगुना करने की योजना
इंडोनेशिया की योजना 2020 तक पाम तेल उत्पादन बढ़ाकर 4 करोड़ टन करने की है। उत्पादन बढ़ाने के लिए इंडोनेशिया ने प्रति हैक्टेयर पाम तेल पैदावार 3.5 टन से बढ़ाकर 4.5 करने का लक्ष्य रखा है। यह जानकारी पाम तेल उद्योग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी है। इस बारे में जानकारी देते हुए इंडोनेशियन पाम तेल बोर्ड ने अध्यक्ष फ्रैंकी विदजाजा ने कहा कि तकरीबन 40 फीसदी उत्पादन छोटे किसानों द्वारा किया जाता है और उनकी पैदावार तीन टन प्रति हैक्टेयर से भी कम है। इसमें बढ़ोतरी करने की पूरी गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने के मकसद से किसानों को एक सरकारी योजना के तहत अधिक पैदावार वाली बीज मुहैया कराए जा रहे हें। उन्होंने यह भी कहा कि हम बहुत जल्दी उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। पर इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि पाम तेल के नए पेड़े कितने तेजी से पुराने पाम के पेड़ों का स्थान लेते हैं। इंडोनेशिया में 79 लाख हैक्टेयर पर पाम तेल का उत्पादन होता है। सरकार इस क्षेत्र को और बढ़ाना चाहती है लेकिन पर्यावरण समूहों की तरफ से उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विदजाजा ने कहा कि अगर हम प्रति हैक्टेयर चार टन पाम तेल का उत्पादन करने में सफल हो जाते हैं तो एक करोड़ हैक्टेयर के जरिए हम 2020 के लक्ष्य को पा सकते हैं। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक है। इस सीजन में इंडोनेशिया का पाम तेल उत्पादन तकरीबन दो करोड़ टन रहने का अनुमान है। दूसरी ओर पाम की रिप्लांटेशन में बाधाएं भी खूब आ रही हैं। इंडोनेशिया के पिटलैंड में चल रहे पाम प्लांटेशन का काम कभी भी रुक सकता है। पाम ऑयल वाच ग्रुप द्वारा अनुमति नहीं मिलने से इसे जारी रहने की संभावना कम है। राउंड टेबल फॉर सस्टेनेबल पाम ऑयल (आरएसपीओ) की महासचिव वेंगिता राव के मुताबिक हालांकि इस मसले पर अंतिम फैसला रिपोर्ट आने के बाद ही होगा। गौरतलब है कि आरएसपीओ पाम तेल कांपनियों को आडिट करने वाली खास संस्था है। संस्था द्वारा कंपनियों को पाम तेल उत्पादन से जुड़े इन्वायरनमेंट फ्रेंडली तरीकों के बार में सुझाया जाता है। पिछले साल दिसंबर में इंडोनेशिया ने ऐसे स्थानों पर पाम की खेती पर लगा प्रतिबंध हटा लिया था। (Business Bhaskar)
वायदा पर रोक के बाद चीनी के भाव में जोरदार गिरावट
सरकार द्वारा चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाए जाने के बाद बुधवार को चीनी के हाजिर और वायदा कारोबार में तगड़ी गिरावट दर्ज की गई। दिल्ली व मुंबई समेत देश के कमोबेश सभी बाजारों में चीनी के भाव करीब 15-30 रुपये प्रति क्विंटल गिर गए। और तेजी की उम्मीद में भारी स्टॉक जुटाने वाले कारोबारियों को इससे नुकसान होने का अनुमान है। दिल्ली में चीनी करीब 30 रुपये की गिरावट के साथ 2360-2440 रुपये क्विंटल के भाव पर बिकी। कारोबारियों के मुताबिक कीमतों में अनिश्चितता की वजह से लिवालों का रुझान बाजार में कम रहा। दरअसल सरकार द्वारा इसके वायदा पर रोक से आने वाले दिनों में भाव और गिरने के कयास लगाए जा रहे हैं। मुंबई में भी चीनी की कीमतों में इस सप्ताह गिरावट जारी रही। यहां के वासी बाजार में हाजिर चीनी एस ग्रेड करीब 15 रुपये कम होकर 2205 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकी। वहीं एम ग्रेड चीनी करीब 20 रुपये गिरकर 2250 रुपये प्रति क्विंटल रही। जानकारों का मानना है कि ज्यादातर कारोबारी वायदा सौदे निपटाने में व्यस्त थे, इससे हाजिर में कारोबार कमजोर रहा। गौरतलब है कि एक दिन पहले वायदा बाजार आयोग ने चीनी वायदा पर इस साल 31 दिसंबर तक के लिए प्रतिबंध लगा दी है। इस दौरान बिकवाली के दबाव में एनसीडीईएक्स में चीनी जून वायदा करीब 1.8 फीसदी की गिरावट के साथ 2266 रुपये क्विंटल पर निपटा। दिन भर में यह चार फीसदी के निचले सर्किट को छू गया। चीनी एम ग्रेड कोल्हापुर जून वायदा के भाव 1.09 घटकर 2266 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में चीनी एम ग्रेड जुलाई वायदा 1.62 फीसदी गिरकर 2430 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि अगस्त वायदा 2.66 फीसदी घटकर 2450 रुपये प्रति क्विंटल रहा। चीनी कारोबारी सुशील कुमार के मुताबिक सरकार के इस कदम से हाजिर कारोबारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। दरअसल आने वाले दिनों में भाव तेज रहने की संभावना से कई कारोबारियों ने तगड़ा स्टॉक बना रहा है। जिसे अब उन्हें बेचना मजबूरी हो गया है। इस हप्ते भाव में आई गिरावट की वजह से कई कारोबारियों को खरीद भाव से भी नीचे सौदे करने पड़ रहे हैं। नई सरकार बनने के बाद से चीनी के हाजिर भाव में करीब 150 क्विंटल से ज्यादा की गिरावट हो चुकी है। खाद्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव एन सान्याल के ने पिछले महीने ही इस बात का संकेत दिया था कि चीनी के भाव यदि बढ़ते हैं तो इसके वायदा पर रोक लगाया जा सकता है। (Buisness Bhaskar)
निर्यातकों की मांग घटने से जीरे में 12 फीसदी की गिरावट
निर्यातकों की मांग घटने से पिछले पंद्रह दिनों में जीरे की कीमतों में 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। ऊंझा मंडी में बुधवार को जीरे की कीमतें घटकर 11,500- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गई जबकि पंद्रह दिन पहले इसके भाव 13,000- 13,200 रुपये प्रति क्विंटल थे। टर्की और सीरिया में जीरे की नई फसल की आवक जून महीने में शुरू होगी। जिसे देखते हुए खाड़ी देशों के आयातकों की मांग भारत से घट गई है। रुपये के मुकाबले डॉलर में आई गिरावट से भी निर्यात पर दबाव बना हुआ है। ऐसे में इसके मौजूदा भावों में और भी 200-300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है।जीरा व्यापारी कुनाल शाह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि टर्की और सीरिया में जीरे की नई फसल की आवक जून महीने में शुरू होगी। जिसके कारण खाड़ी देशों के आयातकों की मांग भारत से घट गई है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय जीरे के भाव 2200 डॉलर प्रति टन (एफओबी) चल रहे हैं। चालू सीजन में टर्की और सीरिया में जीरे का उत्पादन 42 से 45 हजार टन होने की उम्मीद है। हालांकि भारत से यूरोप की मांग अभी भी बनी हुई है लेकिन इसमें भी पहले की तुलना में कमी आई है। ऊंझा मंडी के जीरा व्यापारी पंकज भाई पटेल ने बताया कि मंडी में जीरे की दैनिक आवक घटकर चार-पांच हजार बोरी (एक बोरी 40 किलो) की रह गई है। लेकिन मांग कमजोर होने से आवक घटने के बावजूद भावों में गिरावट बनी हुई है।इस समय मंडी में जीरे का करीब पांच-छह लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है जो कि पिछले साल के लगभग बराबर ही है। निर्यातकों के साथ-साथ घरेलू मांग भी कमजोर होने से इसकी गिरावट को बल मिल रहा है। अत: मौजूदा भावों में और भी मंदी आ सकती है। मालूम हो कि पिछले साल देश में जीरे का उत्पादन 26 लाख बोरी का हुआ था। लेकिन चालू वर्ष में इसका उत्पादन घटकर 20-21 लाख बोरी ही होने की संभावना है। नई फसल के समय जीरे का बकाया स्टॉक भी पांच से साढ़े पांच लाख बोरी का ही बचा था जोकि पिछले साल के मुकाबले करीब आधा था। पिछले वर्ष नई फसल के समय जीरे का बकाया स्टॉक साढ़े दस से ग्यारह लाख बोरी का था।भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 के पहले ग्यारह महीनों में देश से जीरे के निर्यात में करीब 33 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। इस दौरान भारत से 31,000 टन जीरे का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका निर्यात 23,715 टन का हुआ था। सूत्रों के अनुसार टर्की और सीरिया में जीरे के उत्पादन में आई गिरावट से इसके निर्यात में बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन चालू फसल सीजन में अभी तक के मौसम को देखते हुए टर्की और सीरिया में उत्पादन अच्छा होने की संभावना है। ऐसे में वित्त वर्ष 2009-10 में जीरे का निर्यात घटने की आशंका है। (Buisness Bhaskar...R S Rana)
कच्चे तेल के दाम ने छुआ साल का ऊपरी स्तर
लंदन- दुनिया भर के शेयर बाजारों में आ रही मजबूती की बदौलत क्रूड ऑयल बुधवार को इस साल के सबसे ऊपरी स्तर पर 63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। इस बीच तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के सबसे बड़े सदस्य सऊदी अरब ने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूती आ रही है। ऐसे में दुनिया क्रूड ऑयल की 75-80 डॉलर प्रति बैरल तक की कीमत का बोझ आसानी से उठा सकती है। गुरुवार को विएना में होने वाली ओपेक की बैठक से पहले सऊदी अरब के तेल मंत्री अली अल-नईमी ने कहा है कि तेल कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'कीमतों में तेजी से भविष्य में और इसमें और मजबूती की उम्मीद बंधी है।' अल-नईमी ने कहा कि जल्द ही कीमतों में सुधार देखा जा सकता है। तेल की मांग में बढ़ोतरी हो रही है, खासतौर पर एशियाई देशों में। उनका कहना है कि ओपेक को उत्पादन पॉलिसी में कोई परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है। ओपेक पहले ही 42 लाख बैरल प्रति दिन कटौती की घोषणा कर चुका है। जुलाई डिलीवरी का अमेरिकी क्रूड ऊपर उछलकर 63.45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। मध्य नवंबर के बाद से यह अब तक की सबसे अधिक कीमत है। इसी तरह लंदन ब्रेंट क्रूड ऑयल भी 76 सेंट चढ़कर 62 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। अमेरिकी उपभोक्ता आंकड़े बेहतर आने के कारण मंगलवार को क्रूड ऑयल की कीमतों में एक फीसदी से अधिक की तेजी देखने को मिली थी। बुधवार को जापानी के निर्यात में मामूली सुधार की खबरों से इस बात को और बल मिला कि दुनिया आर्थिक मंदी से धीरे-धीरे उबर रही है। ऐसे में ओपेक उम्मीद कर रहा है कि तेल की कीमतों में अब और गिरावट नहीं आएगी। (ET Hindi)
घरेलू बाजार में भी खाद्य तेल की कीमतों को लगे पर
मुंबई - अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी के कारण घरेलू कमोडिटी एक्सचेंज पर खाद्य तेल और ऑयलसीड कॉम्प्लेक्स जैसे सोयाबीन, सोया ऑयल, पाम ऑयल और सरसों के भाव में अच्छी तेजी देखने को मिली। सोयाबीन की आपूर्ति में कमी के कारण भी ऑयलसीड कॉम्प्लेक्स को समर्थन मिल रहा है। क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों के कारण इस बात की चिंता होने लगी है कि खाद्य तेल का इस्तेमाल बायोफ्यूल के उत्पादन में किया जा सकता है। इस कारण भी कीमतों में तेजी देखने को मिल रही है। इस साल की शुरुआत से क्रूड ऑयल की कीमतों में 57 फीसदी की तेजी आ चुकी है। अभी क्रूड ऑयल की कीमतें 63 डॉलर प्रति बैरल पर चल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो चीन द्वारा सोयाबीन के भारी आयात की खबरों के कारण कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। चीन के आयात से दुनिया भर में इसकी सप्लाई घट सकती है। मुंबई में भी स्थानीय बाजार में कीमतों में प्रति 10 किलो के हिसाब से 10 रुपए की तेजी देखने को मिली। पामोलिन ऑयल की कीमतें 408 रुपए प्रति 10 किलो तो सोयाबीन ऑयल की कीमतें 457 डॉलर प्रति 10 किलो हो बाजोरिया फैट्स एंड प्रोटीन्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप बाजोरिया का मानना है कि जून से मांग में तेजी आएगी। वह सोयाबीन और सोयामील को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है, 'अमेरिका का स्टॉक 2003-04 के स्तर से नीचे आ चुका है और चीन भी रिकॉर्ड 3.8-4 करोड़ टन सोयाबीन का आयात कर सकता है। इससे कीमतों को अच्छा समर्थन मिलेगा।' दक्षिण अमेरिका में सूखे जैसी स्थिति के कारण फसलों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। इस कारण वहां भी इस साल उम्मीद से कम उत्पादन की आशंका है। एंजेल कमोडिटीज के एनालिस्ट बदरुद्दीन खान भी सोयाबीन को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि आपूर्ति कम होने और वैश्विक बाजार में कीमतों के स्थिर रहने के कारण आने वाले सप्ताह में एनसीडीईएक्स पर सोयाबीन का जून कॉन्ट्रैक्ट 2,750 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच सकता है। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर सोयाबीन का जुलाई कॉन्ट्रैक्ट एक फीसदी ऊपर 11.96 डॉलर प्रति बुशेल (एक बुशेल- 27.5 किलोग्राम) पर कारोबार कर रहा था। सोया ऑयल की कीमतों में भी मजबूती थी। इसके कारण क्रूड पाम ऑयल के दाम में काफी तेजी आई। मलेशिया एक्सचेंज पर इसकी कीमतें तीन फीसदी ऊपर चल रही थीं। 2,636 रुपए प्रति क्विंटल पर सेटल होने से पहले एनसीडीईएक्स पर सोयाबीन के जून कॉन्ट्रैक्ट ने चार फीसदी का ऊपरी सर्किट छुआ। कॉन्ट्रैक्ट की कीमत पिछले कारोबारी सत्र के मुकाबले 3.4 फीसदी ऊपर है। सोया ऑयल का जून कॉन्ट्रैक्ट दो फीसदी ऊपर बंद (ET Hindi)
कपास का रकबा बढ़ने के आसार
अहमदाबाद May 28, 2009
वर्ष 2008-09 में कपास की ज्यादा कीमतें मिलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा किसान इस फसल को उगाने का विकल्प चुन सकते हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बुआई पहले ही हो चुकी है। पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के चलन के मद्देनजर कपास उद्योग के खिलाड़ियों को वित्त वर्ष 2009-10 में कपास के रकबे में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के पूर्व अध्यक्ष पी. डी. पटोदिया का कहना है, 'उत्तरी भारत के कुछ राज्यों मसलन पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई शुरू हो चुकी है। इस साल का रुझान बेहतर दिखाई दे रहा है और कपास के रक बे और पैदावार में बढ़ोतरी होनी चाहिए।'
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज के महासचिव डी के नायर का कहना है, 'वर्ष 2009-10 में कपास की खेती के रकबे में बढ़ोतरी होगी और पिछले साल किसानों को भी बेहतर मुनाफा हुआ। इस साल मानसून भी समय पर आ गया है।' जहां कपास की बुआई हो रही है वहां सिंचाई की सुविधाएं मौजूद है।
अहमदाबाद की एक बड़ी कपास कारोबार की कंपनी, अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल का कहना है, 'गुजरात के कुछ क्षेत्रों मसलन भरुच, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों में कपास की बुआई हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में कपास के रबके में लगभग 3 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।'
वर्ष 2008-09 में लगभग 92.6 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की गई। सेंट्रल गुजरात कपास डीलर्स एसोसिएशन (सीजीसीडीए) के किशोर शाह का क हना है, 'कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों को बेहतर मुनाफा मिला है।
पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के मद्देनजर यह संभावना है कि वर्ष 2009-10 में देश के कपास के रकबे में 95 लाख हेक्टेयर तक का उछाल आ सकता है। महाराष्ट्र ओर आंध्र प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां इस साल ज्यादा से ज्यादा किसान कपास की फसल लगाएंगे।'
शाह का कहना है, 'पिछले वित्तीय वर्ष में महाराष्ट्र में सोयाबीन की बुआई में बढ़ोतरी हुई लेकिन किसानों को कपास किसान के मुकाबले बेहतर मुनाफा नहीं मिल सका। महाराष्ट्र के किसान इस साल कपास की खेती की ओर रुख कर सक ते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति आंध्र प्रदेश में तंबाकू किसानों के साथ हुई।'
ऐसा अनुमान था कि कपास का उत्पादन वर्ष 2008-09 में कम से कम 290 लाख गांठ तक हुआ है जो वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठ थी। हालांकि इस उद्योग के खिलाड़ियों का ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में 340 लाख गांठ तक का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल कपास की पैदावार कीटों और खराब मौसम की वजह से प्रभावित हुई थी।
किसानों से उम्मीद
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बेहतर बुआई कीमतें ज्यादा मिलने की वजह से किसानों ने किया कपास का रुखमानसून बेहतर रहने के बन रहे हैं (BS Hindi)
वर्ष 2008-09 में कपास की ज्यादा कीमतें मिलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा किसान इस फसल को उगाने का विकल्प चुन सकते हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बुआई पहले ही हो चुकी है। पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के चलन के मद्देनजर कपास उद्योग के खिलाड़ियों को वित्त वर्ष 2009-10 में कपास के रकबे में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के पूर्व अध्यक्ष पी. डी. पटोदिया का कहना है, 'उत्तरी भारत के कुछ राज्यों मसलन पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुआई शुरू हो चुकी है। इस साल का रुझान बेहतर दिखाई दे रहा है और कपास के रक बे और पैदावार में बढ़ोतरी होनी चाहिए।'
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज के महासचिव डी के नायर का कहना है, 'वर्ष 2009-10 में कपास की खेती के रकबे में बढ़ोतरी होगी और पिछले साल किसानों को भी बेहतर मुनाफा हुआ। इस साल मानसून भी समय पर आ गया है।' जहां कपास की बुआई हो रही है वहां सिंचाई की सुविधाएं मौजूद है।
अहमदाबाद की एक बड़ी कपास कारोबार की कंपनी, अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल का कहना है, 'गुजरात के कुछ क्षेत्रों मसलन भरुच, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों में कपास की बुआई हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में कपास के रबके में लगभग 3 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।'
वर्ष 2008-09 में लगभग 92.6 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की गई। सेंट्रल गुजरात कपास डीलर्स एसोसिएशन (सीजीसीडीए) के किशोर शाह का क हना है, 'कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों को बेहतर मुनाफा मिला है।
पिछले वित्तीय वर्ष में स्थिर कीमतों के मद्देनजर यह संभावना है कि वर्ष 2009-10 में देश के कपास के रकबे में 95 लाख हेक्टेयर तक का उछाल आ सकता है। महाराष्ट्र ओर आंध्र प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां इस साल ज्यादा से ज्यादा किसान कपास की फसल लगाएंगे।'
शाह का कहना है, 'पिछले वित्तीय वर्ष में महाराष्ट्र में सोयाबीन की बुआई में बढ़ोतरी हुई लेकिन किसानों को कपास किसान के मुकाबले बेहतर मुनाफा नहीं मिल सका। महाराष्ट्र के किसान इस साल कपास की खेती की ओर रुख कर सक ते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति आंध्र प्रदेश में तंबाकू किसानों के साथ हुई।'
ऐसा अनुमान था कि कपास का उत्पादन वर्ष 2008-09 में कम से कम 290 लाख गांठ तक हुआ है जो वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठ थी। हालांकि इस उद्योग के खिलाड़ियों का ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2009-10 में 340 लाख गांठ तक का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल कपास की पैदावार कीटों और खराब मौसम की वजह से प्रभावित हुई थी।
किसानों से उम्मीद
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में कपास की बेहतर बुआई कीमतें ज्यादा मिलने की वजह से किसानों ने किया कपास का रुखमानसून बेहतर रहने के बन रहे हैं (BS Hindi)
कोयले का दाम बढ़ा सकती है सीआईएल
भुवनेश्वर May 28, 2009
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) सभी तरह के कोयले की कीमतों को बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
दरअसल, नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट के तहत 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों के वेतन बढ़ाए जाने से कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) पर 4,000 करोड़ रुपये का सालाना बोझ पड़ रहा है। अतिरिक्त खर्च की भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोतरी सीआईएल की मजबूरी बन गई है।
इस सिलसिले में चल रही बातचीत की पुष्टि करते हुए सीआईएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'सीआईएल द्वारा कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी तय है और यह सभी ग्रेड के कोयले की कीमतों के बारे में होगा।
सीआईएल के निदेशक मंडल ने कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी का अधिकार दे दिया है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी नई सरकार से इस बारे में संपर्क में है, जिससे कोयले की कीमतें बढ़ाने पर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में आकलन किया जा सके।'
बहरहाल अधिकारी ने कोयले की कीमतों में कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, और कब से इसे लागू किया जा सकता है, इसके बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने से पड़ने वाले वित्तीय बोझ का बहुत अधिक असर पड़ा है और कंपनी को मुनाफे में रखने के लिए कीमतों में बढ़ोतरी करना बहुत जरूरी हो गया है।
सीआईएल का शुध्द मुनाफा 2008-09 में घटकर केवल 96 करोड़ रुपये रह गया है। यह तब हुआ, जब नए वेतनमान के लागू होने पर जुलाई 2006 से कंपनी को कर्मचारियों के एरियर के रूप में 7,856 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा। हालांकि सीआईएल को 2008-09 में 5,233.46 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफा हुआ था।
वेतन में बढ़ोतरी की वजह से सीआईएल की 33 परियोजनाएं संकट में पड़ गई हैं, जिन पर 11वीं योजना (2007-12) के दौरान काम किया जाना था। साथ ही 283.7 लाख टन अतिरिक्त कोयले के प्रतिवर्ष उत्पादन का लक्ष्य था। वेतन में बढ़ोतरी के बाद से यह भी भय हो गया कि सीआईएल अपने 2011-12 के अनुमानित उत्पादन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी, जो 5200 लाख टन अनुमानित है।
ज्ञातव्य है कि 2000 के बाद से सीआईएल ने कोयले की कीमतों में तीन बार बढ़ोतरी की है। पिछली बार दिसंबर 2007 में कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। सीआईएल द्वारा बेचे जाने वाले कोयले की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की औसत कीमतों से 30-35 प्रतिशत कम रहीं। (BS Hindi)
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) सभी तरह के कोयले की कीमतों को बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
दरअसल, नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट के तहत 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों के वेतन बढ़ाए जाने से कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) पर 4,000 करोड़ रुपये का सालाना बोझ पड़ रहा है। अतिरिक्त खर्च की भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोतरी सीआईएल की मजबूरी बन गई है।
इस सिलसिले में चल रही बातचीत की पुष्टि करते हुए सीआईएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'सीआईएल द्वारा कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी तय है और यह सभी ग्रेड के कोयले की कीमतों के बारे में होगा।
सीआईएल के निदेशक मंडल ने कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी का अधिकार दे दिया है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी नई सरकार से इस बारे में संपर्क में है, जिससे कोयले की कीमतें बढ़ाने पर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में आकलन किया जा सके।'
बहरहाल अधिकारी ने कोयले की कीमतों में कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, और कब से इसे लागू किया जा सकता है, इसके बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने से पड़ने वाले वित्तीय बोझ का बहुत अधिक असर पड़ा है और कंपनी को मुनाफे में रखने के लिए कीमतों में बढ़ोतरी करना बहुत जरूरी हो गया है।
सीआईएल का शुध्द मुनाफा 2008-09 में घटकर केवल 96 करोड़ रुपये रह गया है। यह तब हुआ, जब नए वेतनमान के लागू होने पर जुलाई 2006 से कंपनी को कर्मचारियों के एरियर के रूप में 7,856 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा। हालांकि सीआईएल को 2008-09 में 5,233.46 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफा हुआ था।
वेतन में बढ़ोतरी की वजह से सीआईएल की 33 परियोजनाएं संकट में पड़ गई हैं, जिन पर 11वीं योजना (2007-12) के दौरान काम किया जाना था। साथ ही 283.7 लाख टन अतिरिक्त कोयले के प्रतिवर्ष उत्पादन का लक्ष्य था। वेतन में बढ़ोतरी के बाद से यह भी भय हो गया कि सीआईएल अपने 2011-12 के अनुमानित उत्पादन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी, जो 5200 लाख टन अनुमानित है।
ज्ञातव्य है कि 2000 के बाद से सीआईएल ने कोयले की कीमतों में तीन बार बढ़ोतरी की है। पिछली बार दिसंबर 2007 में कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। सीआईएल द्वारा बेचे जाने वाले कोयले की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की औसत कीमतों से 30-35 प्रतिशत कम रहीं। (BS Hindi)
27 मई 2009
सोया खली के दाम थोड़े काबू में
निर्यातकों की मांग घटने से घरेलू बाजार में सोया खली की कीमतों में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। घरेलू बाजार में मंगलवार को सोया खली के भाव (पोर्ट डिलीवरी) घटकर 23,000 रुपये प्रति टन रह गए, जबकि पिछले सप्ताह के शुरू में इसके भाव 25,000 रुपये प्रति टन थे। रुपये के मुकाबले डॉलर में आई गिरावट और मानसून सामान्य रहने की संभावना से इसकी गिरावट को बल मिला है। ऊंचे भावों पर मांग न होने से इसकी कीमतों में अभी और गिरावट के आसार नजर आ रहे हैं।सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने त्नबिजनेस भास्करत्न को बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर में आई गिरावट का असर सोया खली के निर्यात पर पड़ रहा है। रुपये के मुकाबले डॉलर फिलहाल 47.92 के स्तर पर चल रहा है। वैसे भी ऊंचे भावों पर मांग काफी कमजोर है जिससे इसकी गिरावट को बल मिल रहा है। उन्होंने कहा, त्नजैसा कि मौसम विभाग भविष्यवाणी कर रहा है कि मानसून सामान्य से अच्छा रहेगा, इससे भी भाव पर दबाव बना हुआ है।त्न निर्यातकों के साथ ही घरेलू मांग भी कमजोर होने से सोया खली के भाव पोर्ट डिलीवरी घटकर 23,000 रुपये प्रति टन रह गए। उत्पादक राज्यों के कई इलाकों में मानसून पूर्व की वर्षा हो रही है। अग्रवाल ने बताया कि चालू महीने में सोया खली का निर्यात एक लाख टन से भी कम रहने का अनुमान है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार चालू वर्ष के अप्रैल महीने में भारत से मात्र 83,894 टन सोया खली का ही निर्यात हुआ है, जबकि पिछले वर्ष अप्रैल महीने में 5,50,180 टन का निर्यात हुआ था। चालू तेल वर्ष (अक्टूबर-08 से अप्रैल-09) के दौरान भी भारत से सोया खली के निर्यात में करीब 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इस दौरान करीब 26,65,075 टन सोया खली का ही निर्यात हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष में 37,74,099 टन का निर्यात हुआ था।साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि ऊंचे भावों पर निर्यात मांग कमजोर होने से सोया खली में गिरावट बनी हुई है। सोया खली में मांग घटने से सोयाबीन की कीमतों में भी गिरावट आई है। मंगलवार को सोयाबीन की कीमतें (प्लांट डिलीवरी) घटकर 2520 रुपये प्रति क्विंटल रह र्गई, जबकि पिछले सप्ताह के शुरू में इसके भाव 2770 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसी तरह सोयाबीन रिफाइंड तेल के भाव भी 480-485 रुपये से घटकर 450-455 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। (Buisness Bhaskar...R S Rana)
चीनी वायदा पर रोक दाम घटना मुश्किल
चीनी की कीमतें काबू में करने के लिए सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। सट्टेबाजी की वजह से पिछले कुछ समय में घरलू बाजार में चीनी की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने एक अधिसूचना जारी कर चीनी के वायदा कारोबार पर इस साल 31 दिसंबर तक के लिए रोक लगाई है। एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल के मुताबिक चीनी वायदा में अब कोई नया पोजीशन नहीं होगा। महज पहले के किए गए सौदों को निपटाने की अनुमति रहेगी। एक्सचेंज नए वायदा शुरू नहीं कर सकेंगे।नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएमसीई) के सीईओ अनिल मिश्रा के मुताबिक एफएमसी का यह कदम चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि सप्लाई और मांग में अंतर की वजह से चीनी की कीमतों में तेजी आई है न कि वायदा कारोबार की वजह से। उन्होंने बताया कि हाल ही सरकार ने गेहूं वायदा पर लगी रोक को हटा कर निवेशकों में एक उम्मीद जगाई थी लेकिन चीनी के वायदा पर रोक लगाने से निवेशक का भरोसा वायदा बाजार से कम हो जाएगा। इंडिया शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक शांति लाल जैन ने भी कहा कि चीनी की कीमतों में तेजी का प्रमुख कारण उत्पादन में कमी होना है। वायदा पर रोक से कीमतें कम होने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में उत्पादन तो कम हुआ ही है साथ ही विश्व में भी उत्पादन करीब 10 फीसदी गिरा है जिससे आयात भी महंगा पड़ रहा है।कार्वी कॉमट्रेड के रिसर्च हेड जी. हरीश के मुताबिक वायदा पर रोक से चीनी की कीमतों में गिरावट नहीं आएगी। दरअसल कंपनियां और करोबारी बढ़ते भाव से निजात पाने के लिए वायदा में हेजिंग कर रहे थे। अब वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। हालांकि बॉम्बे शुगर मर्चेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक जैन के मुताबिक सट्टेबाजी से बढ़ती कीमतों पर नकेल के लिए ही यह कदम उठाया है। कुछ दिन पहले ही एफएमसी को सरकार की ओर से चीनी वायदा पर नजर रखने का सुझाव दिया गया था। इस साल चीनी का उत्पादन घटने से इसके भाव में करीब 60 फीसदी का इजाफा हो चुका है। देश में इस साल करीब 147 लाख टन चीनी उत्पादन की संभावना है। पिछले साल 163 लाख टन उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar)
इंडोनेशिया पाम तेल पर लगाएगा निर्यात टैक्स
क्रूड पाम तेल की बढ़ती कीमतों पर नकेल के लिए इंडोनेशिया सरकार अगले महीने से इसके निर्यात पर तीन फीसदी टैक्स लगाने जा रही है। वैश्विक और घरलू बाजारों में भाव घटने के कारण पिछले सात महीने से यहां से क्रूड पाम तेल का शुल्क मुक्त निर्यात हो रहा था। लेकिन अब घरलू बाजरों में बढ़ते भावों पर नकेल के लिए सरकार इसके निर्यात को हतोत्साहित करने की तैयारी कर रही है। हालांकि आने वाले दिनों में इसका असर घरलू खाद्य तेल बाजार पर पड़ने की संभावना कम ही है। गौरतलब है कि इंडोनेशिया से होने वाले क्रूड पाम तेल का निर्यात शुल्क मुक्त तभी रह सकता है जब इसके भाव 700 डॉलर प्रति टन या उससे नीचे हों। विदेश व्यापार महासचिव दिया मौलिदा के मुताबिक अप्रैल-मई के दौरान रोटरडम बंदरगाह पर क्रूड पाम तेल का औसत भाव करीब 774.93 डॉलर प्रति टन था। यानी अब इस पर तीन फीसदी निर्यात कर लगाया जा सकता है। सरकारी नियमों के मुताबिक 701-750 डॉलर प्रति टन भाव होने पर निर्यात कर 1.5 फीसदी, 751-800 डॉलर प्रति टन पर 3 फीसदी, 801-850 डॉलर प्रति टन पर 4.5 फीसदी, 851-900 डॉलर प्रति टन पर 6 फीसदी, 901-950 डॉलर प्रति टन पर 7.5 फीसदी और 951-1000 डॉलर प्रति टन के भाव पर 10 फीसदी निर्यात कर प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि 700 डॉलर प्रति टन से नीचे यदि भाव रहता है तो निर्यात कर शून्य है। इस दौरान भारत में होने वाले खाद्य तेलों के आयात और घरलू कीमतों में इंडोनेशिया के इस कदम का कोई असर पड़ने की संभावना है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल के मुताबिक इंडोनेशिया सरकार की ओर से दो सप्ताह पहले ही इस आशय का संकेत दिया जा चुका है। ऐसे में इस कदम का जितना असर पड़ना था, वह पड़ चुका है। इस दौरान मलेशिया भी निर्यात के मसले पर अपनी रणनीति मजबूत कर लिया है। कारोबारियों का मानना है कि इंडोनेशिया से निर्यात महंगा होने के बावजूद इस साल पिछले साल की तुलना में ज्यादा क्रूड पाम तेल का आयात होने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
गेहूं की सरकारी खरीद पंद्रह जुलाई तक
उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद पंद्रह जून और बिहार में पंद्रह जुलाई तक जारी रहेगी। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के सूत्रों के मुताबिक बिहार की मंडियों में गेहूं की आवक का दबाव जून-जुलाई महीने में रहता है इसलिए जुलाई मध्य तक खरीद जारी रहेगी। जबकि गेहूं उत्पादन में देश के अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश में दैनिक आवक 60,000 क्विंटल हो रही है। अत: उत्तर प्रदेश में भारतीय खाद्य निगम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पंद्रह जून तक खरीद करेगी। एफसीआई ने चालू खरीद सीजन में अभी तक 234.06 लाख टन गेहूं की रिकार्ड खरीद की है। खरीद का लक्ष्य 244 लाख टन का है। उत्तर प्रदेश और बिहार में सरकारी खरीद में बढ़ोतरी होने की संभावना है। ऐसे में सरकारी खरीद तय लक्ष्य से भी ज्यादा होने की उम्मीद है। पिछले साल की समान अवधि में एफसीआई ने 210 लाख गेहूं खरीदा था। हालांकि उक्त खरीद में 75 फीसदी का योगदान पंजाब और हरियाणा का ही है। पंजाब में अभी तक समर्थन मूल्य पर 107.05 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि हरियाणा में 68.99 लाख टन गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है। इन राज्यों में गेहूं की सरकारी खरीद 31 मई तक जारी रहेगी। हालांकि मंडियों में आवक अब काफी कम हो गई है।उत्तर प्रदेश में अभी तक समर्थन मूल्य पर 28.02 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हो चुकी है तथा मंडियों में गेहूं की आवक 60,000 क्विंटल की हो रही है। यहां खरीद 15 जून तक जारी रहेगी। बिहार की मंडियों से एमएसपी पर 25,000 टन गेहूं ही खरीदा गया है तथा बिहार में सरकारी खरीद 15 जुलाई तक चलेगी। मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद 16.90 लाख टन की हुई है जबकि राजस्थान में 10.85 लाख टन गेहूं खरीदा जा चुका है। कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक चालू सीजन में देश में गेहूं का उत्पादन 785 लाख टन के मुकाबले 776 लाख टन होने का अनुमान है। हालांकि उत्पादन में तो कमी आई है लेकिन सरकारी खरीद में इजाफा हुआ है। दिल्ली बाजार में गेहूं की दैनिक आवक 14-15 हजार बोरी की हो रही है। (Business Bhaskar....R S Rana)
वायदा कारोबार पर रोक का असर, चीनी के जून फ्यूचर्स पर लगा लोअर सर्किट
मुंबई: चीनी के वायदा कारोबार पर लगी रोक की वजह से फ्यूचर मार्केट में चीनी की कीमत आज लुढ़क गई है। चीनी के जून फ्यूचर्स आज सुबह कारोबार शुरू होने के 10 मिनट के अंदर 3 परसेंट के लोअर सर्किट को छू गया। सुबह 10.12 बजे चीनी का जून फ्यूचर्स 3 परसेंट की गिरावट के साथ 2,238 रुपए प्रति क्विंटल पर था। दरअसल कल कमोडिटी मार्केट रेग्युलेटर फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने चीनी के वायदा कारोबार पर पाबंदी लगाने का फैसला किया। चीनी की कीमतों में तेजी को रोकने के मद्देनजर एफएमसी ने यह फैसला किया। फारवर्ड मार्केट्स कमीशन के डायरेक्टर अनुपम मिश्रा ने मुंबई से फोन पर इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि चीनी के वायदा कारोबार पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि इस साल 31 दिसंबर तक न तो कोई शुगर कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च किया जाएगा और न जारी कॉन्ट्रैक्ट में कोई फ्रेश पोजिशन ली जा सकेगी। गौरतलब है कि हाल में सरकार ने गेहूं के वायदा कारोबार पर से पाबंदी हटाने का फैसला किया है। गेहूं के वायदा कारोबार पर पिछले ढ़ाई साल से पाबंदी लगी हुई थी। (ET Hindi)
नई सरकार से चीनी मिलों को है नियमों में बदलाव की ढेरों उम्मीदें
May 26, 2009
केंद्र में नई सरकार के बनने के बाद एक अहम सवाल है कि ज्यादा सुधार की नीति से चीनी मिल उद्योगों का भला होगा?
इस उद्योग की मांग यह है कि सरकार चीनी उत्पादन के 10 फीसदी का वितरण राशन दुकानों के जरिए करने के फैसले को खत्म करे। बिना सुधार के चीनी कारोबार में उतार-चढ़ाव सी स्थिति बनेगी और इससे शेयरधारकों समय-समय पर परेशानी होगी।
कुछ समय पहले देश में रिकॉर्ड स्तर पर 2.83 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ। एक दफे तो इस जिंस की एक्स-फैक्टरी कीमत 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे चली गई और वर्ष 2006-07 में औसत कीमत केवल 1,351 रुपये थी।
कीमत के लिहाज से उसके बाद के वर्षों में स्थिति खराब ही होती गई इसकी वजह यह थी कि चीनी का ज्यादा भंडार तैयार होगया और उत्पादन भी जबरदस्त रहा। नतीजतन सभी चीनी उत्पादकों को बड़े घाटे से जूझना पड़ा। लंबे समय तक गन्ना उत्पादकों को 8,000 करोड़ रुपये तक के बकाये की रकम नहीं मिल पाई।
ज्यादा उत्पादन की वजह से सरकार को इस उद्योग के लिए तरलता का प्रबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकार ने इसके लिए कर्ज की राशि को ब्याज मुक्त कर दिया जो दो सीजन के लिए भुगतान किए जाने वाले उत्पाद कर के बराबर है ताकि गन्ना किसानों की बकाया राशि का भुगतान किया जा सके।
इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन से भी निर्यात पर से सब्सिडी हटाने के लिए शिकायत की गई ताकि अतिरिक्त उत्पादन के बोझ को कम किया जा सके। भारतीय चीनी मिल संगठन के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक अब गन्ने के कम उत्पादन की वजह से एक नए तरह का संकट पैदा हो रहा और चीनी उत्पादन में गिरावट आ रही है।
इस साल सितंबर को खत्म होने वाले मौजूदा सीजन में देश में कम से कम 25 लाख टन महंगी कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा है। पिछले साल के 50 लाख टन निर्यात की वजह से बदलाव नजर आया इस प्रक्रि या में दुनिया के बेहतरीन गुणवत्ता वाली कच्ची चीनी के उत्पादक के तौर पहचान मिली।
चीनी के सीजन के दौरान या उससे पहले के सभी अनुमानों को झटका लगा। वर्ष 2008-09 में देश में कम चीनी का उत्पादन हुआ और यह 1.47 करोड़ टन रहा। गन्ने की फसल में कम से 5 करोड़ टन की कमी देखी गई और यह 29 करोड़ टन रहा। इसके साथ ही चीनी की रिकवरी में भी एक फीसदी तक की गिरावट देखी गई।
इस सीजन में उत्तर प्रदेश की चीनी फैक्टरियों को गन्ना पाने के लिए कड़ी प्रतियोगिता करनी पड़ी। इसकी प्रक्रिया में किसानों को गन्ने की कीमत 260 रुपये प्रति क्विंटल तक मिली। फैक्टरियों को अपने क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों के लिए बेहतर पेशकश करनी पड़ी। गुड़ और खांडसारी इकाइयों को गन्ना किसानों को प्रीमियम कीमत का भुगतान करना पड़ा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फैक्टरियों की गन्ना आपूर्ति फरवरी के अंत तक खत्म हो गई।
जैन का कहना है कि देश को अतिरिक्त उत्पादन के संकट से अब कम आपूर्ति की दिक्कतों को झेलना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि इस उद्योग के तार केंद्र के साथ राज्य स्तर पर भी कई कड़ियों से जुड़े हैं।
इस उद्योग के अधिकारी ओम धानुका का कहना है, 'चीनी की कीमतों पर बिना सोचे समझे जो नियंत्रण लगाया उसकी वजह से उगाही कीमतों में कोई बदलाव नहीं आया और यह 1,322 रुपये प्रति क्विंटल पर बना रहा। वहीं चीनी उत्पादन की औसत लागत जो 150 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने की कीमत से जुड़ी है और यह 2,100 रुपये प्रति क्विंटल है।'
जैन का कहना है, 'देश में कोई ऐसा उद्योग है जिसे जिंस के सार्वजनिक वितरण को मदद देने के लिए हर साल लगभग 2,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ता हो? यह सबको पता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बेचे जाने वाली चीनी की कीमत और खुले बाजार की कीमत में बहुत बड़ा अंतर है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में धांधली को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।'
यूपीए की नई सरकार सुधारों को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाएगी क्योंकि अब ये वाम दलों के समर्थन पर निर्भर नहीं हैं। उम्मीद की जा रहा है कि कृषि मंत्री शरद पवार इस क्षेत्र की समस्याओं को समझेंगे और महाराष्ट्र के बाहर की चीनी मिलों पर भी ध्यान देंगे।
सरकार जल्द ही गन्ने के वैधानिक न्यूनतम कीमत की घोषणा कर सकती है ताकि किसानों ज्यादा से ज्यादा जमीन पर इस नकदी फसल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हों। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यह चाहती है कि वर्ष 2009-10 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएमपी) 125 रुपये प्रति क्विंटल हो जिसे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिती ने 107.76 रुपये प्रति क्विंटल रखा है।
यह मंत्रीमंडल की ख्वाहिश है कि एसएमपी पर न्यायपूर्ण फैसले लिए जाएं। अगर एसएमपी की नई दर निर्धारित की जाती है तो 10 से 15 फीसदी अतिरिक्त जमीन पर गन्ने की खेती बढ़ सकती है। अगर मानसून सामान्य रहा तो गन्ने की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी और ज्यादा चीनी का उत्पादन भी बढ़ेगा। शायद यही वजह है कि वर्ष 2009-10 के दौरान चीनी का उत्पादन 2.1 करोड़ टन हो सकता है। (BS HIndi)
केंद्र में नई सरकार के बनने के बाद एक अहम सवाल है कि ज्यादा सुधार की नीति से चीनी मिल उद्योगों का भला होगा?
इस उद्योग की मांग यह है कि सरकार चीनी उत्पादन के 10 फीसदी का वितरण राशन दुकानों के जरिए करने के फैसले को खत्म करे। बिना सुधार के चीनी कारोबार में उतार-चढ़ाव सी स्थिति बनेगी और इससे शेयरधारकों समय-समय पर परेशानी होगी।
कुछ समय पहले देश में रिकॉर्ड स्तर पर 2.83 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ। एक दफे तो इस जिंस की एक्स-फैक्टरी कीमत 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे चली गई और वर्ष 2006-07 में औसत कीमत केवल 1,351 रुपये थी।
कीमत के लिहाज से उसके बाद के वर्षों में स्थिति खराब ही होती गई इसकी वजह यह थी कि चीनी का ज्यादा भंडार तैयार होगया और उत्पादन भी जबरदस्त रहा। नतीजतन सभी चीनी उत्पादकों को बड़े घाटे से जूझना पड़ा। लंबे समय तक गन्ना उत्पादकों को 8,000 करोड़ रुपये तक के बकाये की रकम नहीं मिल पाई।
ज्यादा उत्पादन की वजह से सरकार को इस उद्योग के लिए तरलता का प्रबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकार ने इसके लिए कर्ज की राशि को ब्याज मुक्त कर दिया जो दो सीजन के लिए भुगतान किए जाने वाले उत्पाद कर के बराबर है ताकि गन्ना किसानों की बकाया राशि का भुगतान किया जा सके।
इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन से भी निर्यात पर से सब्सिडी हटाने के लिए शिकायत की गई ताकि अतिरिक्त उत्पादन के बोझ को कम किया जा सके। भारतीय चीनी मिल संगठन के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक अब गन्ने के कम उत्पादन की वजह से एक नए तरह का संकट पैदा हो रहा और चीनी उत्पादन में गिरावट आ रही है।
इस साल सितंबर को खत्म होने वाले मौजूदा सीजन में देश में कम से कम 25 लाख टन महंगी कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा है। पिछले साल के 50 लाख टन निर्यात की वजह से बदलाव नजर आया इस प्रक्रि या में दुनिया के बेहतरीन गुणवत्ता वाली कच्ची चीनी के उत्पादक के तौर पहचान मिली।
चीनी के सीजन के दौरान या उससे पहले के सभी अनुमानों को झटका लगा। वर्ष 2008-09 में देश में कम चीनी का उत्पादन हुआ और यह 1.47 करोड़ टन रहा। गन्ने की फसल में कम से 5 करोड़ टन की कमी देखी गई और यह 29 करोड़ टन रहा। इसके साथ ही चीनी की रिकवरी में भी एक फीसदी तक की गिरावट देखी गई।
इस सीजन में उत्तर प्रदेश की चीनी फैक्टरियों को गन्ना पाने के लिए कड़ी प्रतियोगिता करनी पड़ी। इसकी प्रक्रिया में किसानों को गन्ने की कीमत 260 रुपये प्रति क्विंटल तक मिली। फैक्टरियों को अपने क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों के लिए बेहतर पेशकश करनी पड़ी। गुड़ और खांडसारी इकाइयों को गन्ना किसानों को प्रीमियम कीमत का भुगतान करना पड़ा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फैक्टरियों की गन्ना आपूर्ति फरवरी के अंत तक खत्म हो गई।
जैन का कहना है कि देश को अतिरिक्त उत्पादन के संकट से अब कम आपूर्ति की दिक्कतों को झेलना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि इस उद्योग के तार केंद्र के साथ राज्य स्तर पर भी कई कड़ियों से जुड़े हैं।
इस उद्योग के अधिकारी ओम धानुका का कहना है, 'चीनी की कीमतों पर बिना सोचे समझे जो नियंत्रण लगाया उसकी वजह से उगाही कीमतों में कोई बदलाव नहीं आया और यह 1,322 रुपये प्रति क्विंटल पर बना रहा। वहीं चीनी उत्पादन की औसत लागत जो 150 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने की कीमत से जुड़ी है और यह 2,100 रुपये प्रति क्विंटल है।'
जैन का कहना है, 'देश में कोई ऐसा उद्योग है जिसे जिंस के सार्वजनिक वितरण को मदद देने के लिए हर साल लगभग 2,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ता हो? यह सबको पता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बेचे जाने वाली चीनी की कीमत और खुले बाजार की कीमत में बहुत बड़ा अंतर है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में धांधली को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।'
यूपीए की नई सरकार सुधारों को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाएगी क्योंकि अब ये वाम दलों के समर्थन पर निर्भर नहीं हैं। उम्मीद की जा रहा है कि कृषि मंत्री शरद पवार इस क्षेत्र की समस्याओं को समझेंगे और महाराष्ट्र के बाहर की चीनी मिलों पर भी ध्यान देंगे।
सरकार जल्द ही गन्ने के वैधानिक न्यूनतम कीमत की घोषणा कर सकती है ताकि किसानों ज्यादा से ज्यादा जमीन पर इस नकदी फसल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हों। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यह चाहती है कि वर्ष 2009-10 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएमपी) 125 रुपये प्रति क्विंटल हो जिसे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिती ने 107.76 रुपये प्रति क्विंटल रखा है।
यह मंत्रीमंडल की ख्वाहिश है कि एसएमपी पर न्यायपूर्ण फैसले लिए जाएं। अगर एसएमपी की नई दर निर्धारित की जाती है तो 10 से 15 फीसदी अतिरिक्त जमीन पर गन्ने की खेती बढ़ सकती है। अगर मानसून सामान्य रहा तो गन्ने की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी और ज्यादा चीनी का उत्पादन भी बढ़ेगा। शायद यही वजह है कि वर्ष 2009-10 के दौरान चीनी का उत्पादन 2.1 करोड़ टन हो सकता है। (BS HIndi)
...जल्द घटेंगी कीमतें
नई दिल्ली May 26, 2009
चीनी के थोक कारोबारियों ने चीनी के वायदा पर रोक के बाद चीनी की कीमतों में मामूली गिरावट एवं स्थिरता आने की उम्मीद जाहिर की है।
चीनी के बढ़ते मूल्यों को देखते हुएकृषि मंत्री ने बुधवार को चीनी मिल मालिकों के साथ एक बैठक भी बुलाई है। उधर चीनी मिल मालिकों का कहना है कि चीनी के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 90 लाख टन से अधिक की गिरावट है इसलिए वायदा पर प्रतिबंध से चीनी के मूल्य में कोई खास गिरावट नहीं आएगी।
मंगलवार को वायदा एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में चीनी के लिए कुल 65 करोड़ रुपये का वायदा कारोबार कर किया गया। चीनी का वायदा नवंबर माह तक के लिए चल रहा था। वायदा बाजार में चीनी की कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चल रही थी।
वायदा कारोबारियों के मुताबिक सरकार के फैसले के बाद अब कोई नया वायदा नहीं किया जा सकता है सिर्फ किए गए वायदों का निपटान हो सकता है। चीनी के थोक कारोबारियों के मुताबिक वायदा कारोबार के कारण चीनी की कीमत स्थिर नहीं चल रही थी और रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव से उनके कारोबार पर भी असर पड़ रहा था।
वे कहते हैं कि चीनी का उत्पादन इस साल 150 लाख टन से भी कम है जबकि पिछले साल यह उत्पादन 264 लाख टन था। लेकिन सरकार की कच्ची चीनी एवं सफेद चीनी के आयात की अनुमति से आपूर्ति में बढ़ोतरी का अनुमान है।
हालांकि चीनी मिल मालिकों के मुताबिक आयातित कच्ची चीनी को रिफाइन करने के बाद ही उसे बाजार में बिक्री के लिए लाया जा सकता है। और सरकार अब तक 100 लाख टन से अधिक का कोटा जारी कर चुकी है। (BS Hindi)
चीनी के थोक कारोबारियों ने चीनी के वायदा पर रोक के बाद चीनी की कीमतों में मामूली गिरावट एवं स्थिरता आने की उम्मीद जाहिर की है।
चीनी के बढ़ते मूल्यों को देखते हुएकृषि मंत्री ने बुधवार को चीनी मिल मालिकों के साथ एक बैठक भी बुलाई है। उधर चीनी मिल मालिकों का कहना है कि चीनी के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 90 लाख टन से अधिक की गिरावट है इसलिए वायदा पर प्रतिबंध से चीनी के मूल्य में कोई खास गिरावट नहीं आएगी।
मंगलवार को वायदा एक्सचेंज एनसीडीईएक्स में चीनी के लिए कुल 65 करोड़ रुपये का वायदा कारोबार कर किया गया। चीनी का वायदा नवंबर माह तक के लिए चल रहा था। वायदा बाजार में चीनी की कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चल रही थी।
वायदा कारोबारियों के मुताबिक सरकार के फैसले के बाद अब कोई नया वायदा नहीं किया जा सकता है सिर्फ किए गए वायदों का निपटान हो सकता है। चीनी के थोक कारोबारियों के मुताबिक वायदा कारोबार के कारण चीनी की कीमत स्थिर नहीं चल रही थी और रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव से उनके कारोबार पर भी असर पड़ रहा था।
वे कहते हैं कि चीनी का उत्पादन इस साल 150 लाख टन से भी कम है जबकि पिछले साल यह उत्पादन 264 लाख टन था। लेकिन सरकार की कच्ची चीनी एवं सफेद चीनी के आयात की अनुमति से आपूर्ति में बढ़ोतरी का अनुमान है।
हालांकि चीनी मिल मालिकों के मुताबिक आयातित कच्ची चीनी को रिफाइन करने के बाद ही उसे बाजार में बिक्री के लिए लाया जा सकता है। और सरकार अब तक 100 लाख टन से अधिक का कोटा जारी कर चुकी है। (BS Hindi)
चीनी पर पड़ा सरकारी डंडा
नई दिल्ली/मुंबई May 26, 2009
चीनी की बढ़ती कीमतों में अंकुश लगाने के मकसद से वायदा बाजार नियमाक (एफएमसी) ने चीनी के वायदा कारोबार में रोक लगा दी है। यह रोक तत्काल प्रभाव से मंगलवार से लागू हो गई है।
चीनी के वायदा कारोबार में रोक 31 दिसंबर तक के लिए लगाई गई है। एफएमसी ने चीनी वायदा कारोबार में रोक लगाने के पीछे तर्क दिया है कि एक साल के अंदर चीनी की कीमते 45 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं और वर्तमान समय में चीनी के कम उत्पादन को देखते हुए इसके दामों में और भी बढ़ोतरी होने की आशंका थी।
एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल के अनुसार चीनी की कीमतें जिस तेजी के साथ बढ़ रही थी उसको देखते हुए चीनी वायदा में रोक लगाना जरुरी हो गया था। अग्रवाल के अनुसार मौजूदा अनुबंधों में भी नई पोजिशन नहीं ली जा सकेंगी लेकिन पहले से जिन कारोबारियों ने चीनी की हेजिंग करके रखी हैं वह अपना माल बेच सकते हैं।
अग्रवाल के अनुसार फिलहाल चीनी वायदा कारोबार में रोक 31 दिसंबर 2009 तक के लिए लगाई गई है। इस बीच चीनी के दामों की समीक्षा की जाएंगी और इसी आधार पर तय होगा कि रोक हटाई जाएं या फिर आगे और बढ़ा दी जाए।
शरद पावर ने एक बार फिर से कृषि मंत्रालय का पदभार संभालते ही इस बात के संकेत दे दिये थे कि चीनी वायदा कारोबार में रोक लगा देनी चाहिए। देश के अंदर चीनी की बढ़ती कीमतों और मांग को पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार शुल्क मुक्त चीनी आयात सीमा भी बढ़ा सकती है। इसकी मौजूदा समयसीमा एक अगस्त है।
गौरतलब हो की इस साल चीनी का उत्पादन कम हुआ है। इसलिए देश में चीनी का आयात किया जा रहा है। 2007-08 के सत्र में चीनी का उत्पादन 2.66 करोड़ टन हुआ था जबकि इस बार यह घट कर 1.5 करोड़ टन रह जाने का अनुमान व्यत किया जा रहा है। चीनी सत्र अक्टूबर से लेकर सितबंर तक होता है।
चीनी के अलावा जिन अन्य जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध है उनमें तुअर उड़द और चावल प्रमुख हैं जिन वस्तुओं पर वर्ष 2007 के आरंभ में प्रतिबंध लगाया गया था। पिछले दो महीनों में चीनी की कीमतों में पर्याप्त वृध्दि हुई है। प्रमुख शहरों में चीनी 22 से 30 रुपये प्रति किलो के बीच चल रही है।
एक अक्टूबर को कीमतें 18 से 23 रुपये के दायरे में थीं। चीनी उद्योग ने कीमतों में तेजी का कारण चीनी उत्पादन में कमी आने की संभावना और अधिक गन्ना मूल्य को बताया। चालू सत्र में भारत का चीनी उत्पादन 1.5 करोड़ टन निर्धारित किया गया है जो पिछले सत्र में 2.64 करोड़ टन के लगभग था।
सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए इस वर्ष फरवरी से विभिन्न उपाय किए हैं। घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए केन्द्र ने चीनी मिलों को शून्य शुल्क पर कच्ची चीनी के आयात को मंजूरी दी है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग फर्मो- एमएमटीसी, पीईसी और एसटीसी को एक अगस्त तक 10 लाख टन साफ चीनी का आयात करने को कहा है।
तेज चाल पर लगाम
31 दिसंबर तक वायदा बाजार नियामक एफएमसी ने चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाईएक साल के अंदर चीनी की कीमतों में 45 फीसदी बढ़ोतरी बनी वजहजिन कारोबारियों ने हेजिंग कर रखी है, वे बेच सकते हैं अपना माल (BS Hindi)
चीनी की बढ़ती कीमतों में अंकुश लगाने के मकसद से वायदा बाजार नियमाक (एफएमसी) ने चीनी के वायदा कारोबार में रोक लगा दी है। यह रोक तत्काल प्रभाव से मंगलवार से लागू हो गई है।
चीनी के वायदा कारोबार में रोक 31 दिसंबर तक के लिए लगाई गई है। एफएमसी ने चीनी वायदा कारोबार में रोक लगाने के पीछे तर्क दिया है कि एक साल के अंदर चीनी की कीमते 45 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं और वर्तमान समय में चीनी के कम उत्पादन को देखते हुए इसके दामों में और भी बढ़ोतरी होने की आशंका थी।
एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल के अनुसार चीनी की कीमतें जिस तेजी के साथ बढ़ रही थी उसको देखते हुए चीनी वायदा में रोक लगाना जरुरी हो गया था। अग्रवाल के अनुसार मौजूदा अनुबंधों में भी नई पोजिशन नहीं ली जा सकेंगी लेकिन पहले से जिन कारोबारियों ने चीनी की हेजिंग करके रखी हैं वह अपना माल बेच सकते हैं।
अग्रवाल के अनुसार फिलहाल चीनी वायदा कारोबार में रोक 31 दिसंबर 2009 तक के लिए लगाई गई है। इस बीच चीनी के दामों की समीक्षा की जाएंगी और इसी आधार पर तय होगा कि रोक हटाई जाएं या फिर आगे और बढ़ा दी जाए।
शरद पावर ने एक बार फिर से कृषि मंत्रालय का पदभार संभालते ही इस बात के संकेत दे दिये थे कि चीनी वायदा कारोबार में रोक लगा देनी चाहिए। देश के अंदर चीनी की बढ़ती कीमतों और मांग को पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार शुल्क मुक्त चीनी आयात सीमा भी बढ़ा सकती है। इसकी मौजूदा समयसीमा एक अगस्त है।
गौरतलब हो की इस साल चीनी का उत्पादन कम हुआ है। इसलिए देश में चीनी का आयात किया जा रहा है। 2007-08 के सत्र में चीनी का उत्पादन 2.66 करोड़ टन हुआ था जबकि इस बार यह घट कर 1.5 करोड़ टन रह जाने का अनुमान व्यत किया जा रहा है। चीनी सत्र अक्टूबर से लेकर सितबंर तक होता है।
चीनी के अलावा जिन अन्य जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध है उनमें तुअर उड़द और चावल प्रमुख हैं जिन वस्तुओं पर वर्ष 2007 के आरंभ में प्रतिबंध लगाया गया था। पिछले दो महीनों में चीनी की कीमतों में पर्याप्त वृध्दि हुई है। प्रमुख शहरों में चीनी 22 से 30 रुपये प्रति किलो के बीच चल रही है।
एक अक्टूबर को कीमतें 18 से 23 रुपये के दायरे में थीं। चीनी उद्योग ने कीमतों में तेजी का कारण चीनी उत्पादन में कमी आने की संभावना और अधिक गन्ना मूल्य को बताया। चालू सत्र में भारत का चीनी उत्पादन 1.5 करोड़ टन निर्धारित किया गया है जो पिछले सत्र में 2.64 करोड़ टन के लगभग था।
सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए इस वर्ष फरवरी से विभिन्न उपाय किए हैं। घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए केन्द्र ने चीनी मिलों को शून्य शुल्क पर कच्ची चीनी के आयात को मंजूरी दी है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग फर्मो- एमएमटीसी, पीईसी और एसटीसी को एक अगस्त तक 10 लाख टन साफ चीनी का आयात करने को कहा है।
तेज चाल पर लगाम
31 दिसंबर तक वायदा बाजार नियामक एफएमसी ने चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाईएक साल के अंदर चीनी की कीमतों में 45 फीसदी बढ़ोतरी बनी वजहजिन कारोबारियों ने हेजिंग कर रखी है, वे बेच सकते हैं अपना माल (BS Hindi)
चीनी का वायदा कारोबार बंद
नई दिल्ली May 27, 2009
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने आज तत्काल प्रभाव से चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया है।
फिलहाल यह प्रतिबंध 31 दिसंबर 2009 तक ही लगाया गया है। नियामक की इस कार्रवाई का मकसद सट्टेबाजी के कारण चीनी की कीमतों में संभावित बढ़ोतरी को रोकने के लिए किया गया है। महंगाई को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का काफी वजन है।
आयोग के निदेशक अनुपम मिश्रा ने बताया, 'हमने तुरंत प्रभाव से चीनी के वायदा कारोबार को स्थगित कर दिया है। कोई नया चीनी अनुबंध शुरू नहीं किया जाएगा और चालू अनुबंध में अब कोई नया कारोबार नहीं होगा।' इससे पहले पिछले हफ्ते ही आयोग ने गेहूं का वायदा कारोबार फिर शुरू किया है। (BS Hindi)
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने आज तत्काल प्रभाव से चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया है।
फिलहाल यह प्रतिबंध 31 दिसंबर 2009 तक ही लगाया गया है। नियामक की इस कार्रवाई का मकसद सट्टेबाजी के कारण चीनी की कीमतों में संभावित बढ़ोतरी को रोकने के लिए किया गया है। महंगाई को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का काफी वजन है।
आयोग के निदेशक अनुपम मिश्रा ने बताया, 'हमने तुरंत प्रभाव से चीनी के वायदा कारोबार को स्थगित कर दिया है। कोई नया चीनी अनुबंध शुरू नहीं किया जाएगा और चालू अनुबंध में अब कोई नया कारोबार नहीं होगा।' इससे पहले पिछले हफ्ते ही आयोग ने गेहूं का वायदा कारोबार फिर शुरू किया है। (BS Hindi)
उत्पादन में कमी से खाद्य तेल आयात पर बढेग़ी निर्भरता
मुंबई May 26, 2009
इस साल वैश्विक खाद्य तेल के बाजार पर भारत की निर्भरता 20 फीसदी तक बढ़ेगी। इसकी वजह यह है कि घरेलू उत्पादन में कमी आ रही है और कीमतों में भी गिरावट आ रही है।
वर्ष 2007-08 के तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) में 1.35 करोड़ टन उपभोग का अनुमान लगाया गया है। देश में 46 फीसदी या 63 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत की पूर्ति आयात के जरिए हुई। घरेलू बाजार का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा और आपूर्ति 54 फीसदी या 63 लाख टन तक ही सिमट गई।
वर्ष 2008-09 भी तिलहन फसलों के लिए बेहतर साल नहीं रहा नतीजतन तेल का अनुमानित उत्पादन 66 लाख टन रहा। दूसरी ओर दुनिया भर में खाद्य तेल की कम कीमतों की वजह से उपभोक्ताओं की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया आई है।
ऐसे में उम्मीद है कि घरेलू खपत इस तेल वर्ष में 1.5 लाख टन से ज्यादा हो सकता है। नतीजतन संभावना है कि आयात में बढ़ोतरी होगी और यह 85 टन तक हो जाएगा। इस तरह 56 फीसदी से ज्यादा आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी।
सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के निदेशक डी एन पाठक का कहना है, 'खरीफ फसल मुख्य रूप से मानसून की बारिश पर ही निर्भर होगी। खरीफ तिलहन सीजन की मुख्य फसल सोयाबीन का उत्पादन भी बंपर तभी होगा जब खेती के इलाकों में समान रूप से बारिश होगी।'
उनका कहना है कि किसान सोया बीजों की बुआई के लिए बारिश का इंतजार कर रहे हैं। मौजूदा धारणाओं का यह संकेत है कि किसानों में अगले सोयाबीन फसल को लेकर उत्साह है। इस बीच गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री के हाल में पेश किए गए परिपत्र का अनुमान है कि भारत में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह 12.78 किलोग्राम हो गया है जो पिछले साल 11.40 किलोग्राम था।
भारतीय आयातकों ने पहले से ही खाद्य तेल (कच्चे और संशोधित)की जरूरत भर मात्रा का भंडार तैयार किया है। इसकी वजह यह आशंका है कि इंडोनेशिया की सरकार और हाल ही में सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार निर्यात और आयात पर शुल्क लगा सकती है। एक विशेषज्ञ का यह कहना है कि अगर यह कर लगा दिया जाए तो शुल्क की तुलना में जिंस की कीमतें ज्यादा बढ़ जाएंगी।
इंडोनेशिया की सरकार ने कच्चे पाम तेल पर 3 फीसदी कर निर्यात शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है जिसका भारत बहुत बड़ी मात्रा में निर्यात करती है। इंडोनेशिया ने पिछले नवंबर में 7.5 फीसदी कर लगाया था उसके बाद आर्थिक मंदी के दौरान ही कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
आशंका है कि भारत भी प्रत्यक्ष करों की वसूली के लिए जल्द ही आयात पर 10-20 फ ीसदी तक शुल्क लगा सकता है। रॉटरडम में पाम तेल की कीमतें इस साल बढ़कर 43 फीसदी तक हो गई जबकि वर्ष 2008 में इसमें 46 फीसदी तक की गिरावट आई।
उम्मीद यह की जा रही है कि मांग में बढ़ोतरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था की रिकवरी के संकेत मिलते हैं। इंडोनेशिया ने जो नई शुल्क लगाई वह 20 अप्रैल और 19 मई के बीच रॉटरडम की औसत कीमत 774.93 डॉलर प्रति टन पर आधारित है।
भारत में पांच महीने की अवधि जो इस साल मार्च में खत्म हुई उसमें वनस्पति तेल के आयात में 59 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई और यह 36 लाख टन हो गया। पिछले साल इसी समान अवधि में आयात 23 लाख टन था। इसी अवधि में परिष्कृत सोयातेल में भी मामूली गिरावट का रुख रहा और यह 463 रुपये प्रति 10 ग्राम के मुकाबले 450 रुपये हो गई।
वहीं परिष्कृत सूरजूखी तेल और मूंगफली तेल की कीमतें कम होकर 640 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 610 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से क्रमश: 475 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 558 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गई। इसके विपरीत आरबीडी पामोलीन की कीमतें 328 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से बढ़कर 410 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गईं। (BS Hindi)
इस साल वैश्विक खाद्य तेल के बाजार पर भारत की निर्भरता 20 फीसदी तक बढ़ेगी। इसकी वजह यह है कि घरेलू उत्पादन में कमी आ रही है और कीमतों में भी गिरावट आ रही है।
वर्ष 2007-08 के तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) में 1.35 करोड़ टन उपभोग का अनुमान लगाया गया है। देश में 46 फीसदी या 63 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत की पूर्ति आयात के जरिए हुई। घरेलू बाजार का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा और आपूर्ति 54 फीसदी या 63 लाख टन तक ही सिमट गई।
वर्ष 2008-09 भी तिलहन फसलों के लिए बेहतर साल नहीं रहा नतीजतन तेल का अनुमानित उत्पादन 66 लाख टन रहा। दूसरी ओर दुनिया भर में खाद्य तेल की कम कीमतों की वजह से उपभोक्ताओं की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया आई है।
ऐसे में उम्मीद है कि घरेलू खपत इस तेल वर्ष में 1.5 लाख टन से ज्यादा हो सकता है। नतीजतन संभावना है कि आयात में बढ़ोतरी होगी और यह 85 टन तक हो जाएगा। इस तरह 56 फीसदी से ज्यादा आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी।
सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के निदेशक डी एन पाठक का कहना है, 'खरीफ फसल मुख्य रूप से मानसून की बारिश पर ही निर्भर होगी। खरीफ तिलहन सीजन की मुख्य फसल सोयाबीन का उत्पादन भी बंपर तभी होगा जब खेती के इलाकों में समान रूप से बारिश होगी।'
उनका कहना है कि किसान सोया बीजों की बुआई के लिए बारिश का इंतजार कर रहे हैं। मौजूदा धारणाओं का यह संकेत है कि किसानों में अगले सोयाबीन फसल को लेकर उत्साह है। इस बीच गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री के हाल में पेश किए गए परिपत्र का अनुमान है कि भारत में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह 12.78 किलोग्राम हो गया है जो पिछले साल 11.40 किलोग्राम था।
भारतीय आयातकों ने पहले से ही खाद्य तेल (कच्चे और संशोधित)की जरूरत भर मात्रा का भंडार तैयार किया है। इसकी वजह यह आशंका है कि इंडोनेशिया की सरकार और हाल ही में सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार निर्यात और आयात पर शुल्क लगा सकती है। एक विशेषज्ञ का यह कहना है कि अगर यह कर लगा दिया जाए तो शुल्क की तुलना में जिंस की कीमतें ज्यादा बढ़ जाएंगी।
इंडोनेशिया की सरकार ने कच्चे पाम तेल पर 3 फीसदी कर निर्यात शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है जिसका भारत बहुत बड़ी मात्रा में निर्यात करती है। इंडोनेशिया ने पिछले नवंबर में 7.5 फीसदी कर लगाया था उसके बाद आर्थिक मंदी के दौरान ही कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
आशंका है कि भारत भी प्रत्यक्ष करों की वसूली के लिए जल्द ही आयात पर 10-20 फ ीसदी तक शुल्क लगा सकता है। रॉटरडम में पाम तेल की कीमतें इस साल बढ़कर 43 फीसदी तक हो गई जबकि वर्ष 2008 में इसमें 46 फीसदी तक की गिरावट आई।
उम्मीद यह की जा रही है कि मांग में बढ़ोतरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था की रिकवरी के संकेत मिलते हैं। इंडोनेशिया ने जो नई शुल्क लगाई वह 20 अप्रैल और 19 मई के बीच रॉटरडम की औसत कीमत 774.93 डॉलर प्रति टन पर आधारित है।
भारत में पांच महीने की अवधि जो इस साल मार्च में खत्म हुई उसमें वनस्पति तेल के आयात में 59 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई और यह 36 लाख टन हो गया। पिछले साल इसी समान अवधि में आयात 23 लाख टन था। इसी अवधि में परिष्कृत सोयातेल में भी मामूली गिरावट का रुख रहा और यह 463 रुपये प्रति 10 ग्राम के मुकाबले 450 रुपये हो गई।
वहीं परिष्कृत सूरजूखी तेल और मूंगफली तेल की कीमतें कम होकर 640 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 610 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से क्रमश: 475 रुपये प्रति 10 किलोग्राम और 558 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गई। इसके विपरीत आरबीडी पामोलीन की कीमतें 328 रुपये प्रति 10 किलोग्राम से बढ़कर 410 रुपये प्रति 10 किलोग्राम हो गईं। (BS Hindi)
नई सरकार आने के बाद चीनी सौ रुपये प्रति क्विंटल सस्ती
सरकारी सख्ती का असर चीनी की कीमतों पर पड़ना शुरू हो गया है। पिछले एक सप्ताह में दिल्ली बाजार में चीनी की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर भाव 2475 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। जबकि उत्तर प्रदेश में एक्स-फैक्ट्री दाम घटकर 2325-2350 रुपये प्रति क्विंटल रहे। यानि केंद्र में नई सरकार आने के बाद चीनी में गिरावट का रुख रहा है। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान भारत के साथ ही अन्य देशों की मांग बढ़ने से चीनी की कीमतों में 15-20 डॉलर प्रति टन की तेजी दर्ज की गई। चीनी की बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए सरकार गंभीर हो गई है। खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार 27 मई को चीनी उद्योग के अधिकारियों से मिलेंगे। कृषि और खाद्य मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद सोमवार को अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने कहा कि चीनी की कीमतें उत्पादक क्षेत्र से दूरी के कारण पश्चिम बंगाल में ज्यादा हो सकती हैं। लेकिन दिल्ली जो प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से सटा क्षेत्र है, वहां भी चीनी की कीमतें ज्यादा होना चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि शुल्क मुक्त रॉ शुगर के आयात की समय सीमा को बढ़ाने पर केबिनेट की बैठक में विचार किया जाएगा। शुल्क मुक्त रॉ शुगर की समय सीमा एक अगस्त तक है। चालू वर्ष में मानसून अच्छा रहने की संभावना है। वैसे भी गन्ना किसानों को इस साल अच्छे दाम मिले हैं इसलिए गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी की उम्मीद है। चालू सीजन में उत्तर प्रदेश की मिलों ने गन्ने की खरीद 160-180 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की। इंडिया शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक शांति लाल जैन ने बताया कि भारत के साथ ही अन्य देशों की मांग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक सप्ताह में चीनी की कीमतों में 15-20 डॉलर प्रति टन की तेजी आकर भाव 443 डॉलर प्रति टन हो गए। इसमें करीब 35 डॉलर का भाड़ा जोड़ने के बाद दाम 478 डॉलर प्रति टन हो जाते हैं। भारत द्वारा करीब 24-25 लाख टन रॉ शुगर के आयात सौदे किए जा चुके हैं। इसमें से 17-18 लाख टन रॉ शुगर भारत पहुंच चुकी है। रॉ शुगर के दाम भी विदेशी बाजार में बढ़कर 15.80 सेंट प्रति पौंड हो गए हैं। चालू फसल सीजन वर्ष 2008-09 (अक्टूबर-सितंबर) में 147 लाख टन उत्पादन और 90 लाख टन बकाया को मिलाकर कुल उपलब्धता 237 लाख टन की बैठेगी। जबकि खपत 215-220 लाख टन होने की संभावना है। पिछले साल चीनी का उत्पादन 264 लाख टन का हुआ था। विश्वभर में चीनी उत्पादन में करीब 10 फीसदी की कमी आई है।चीनी व्यापारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि मिलों द्वारा चीनी का कोटा साप्ताहिक जारी करने से बाजार में आवक तो बढ़ी ही है, साथ ही स्टॉकिस्टों की बिकवाली आने से भी गिरावट को बल मिला है। पिछले एक सप्ताह में चीनी की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गई। सोमवार को दिल्ली बाजार में इसकी कीमतें घटकर 2475 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं। एक्स-फैक्ट्री चीनी के दाम भी घटकर 2325-2350 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। (Business Bhaskar....R S Rana)
निजी फर्मों को आटा, सूजी निर्यात की अनुमति संभव
गेहूं निर्यात के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों को ही अनुमति मिलने की संभावना जताई जा रही है। निजी क्षेत्र की कंपनियों को गेहूं के बजाय गेहूं उत्पादन जैसे आटा, मैदा, सूजी के निर्यात की अनुमति दी जा सकती है। गेहूं निर्यात के लिए राज्य स्तरीय एक एजेंसी को भी अनुमति मिल सकती है।इस महीने की शुरूआत में सचिवों की समिति की बैठक में सरकारी कंपनियों पीईसी, एमएमटीसी और एसटीसी को गेहूं निर्यात की अनुमति देने का फैसला किया। समिति का मानना था कि हर राज्य की अधिसूचित एक राज्यस्तरीय एजेंसी को भी गेहूं निर्यात की मंजूरी दी जाए। वहीं निजी क्षेत्र के निर्यातकों को आटा, मैदा और सूजी जैसे गेहूं उत्पादों के निर्यात को मंजूरी देने का फैसला लिया गया था। सूत्रों का मानना है कि गेहूं उत्पादों के निर्यात की प्रत्यक्ष मंजूरी निजी निर्यातकों को दिए जाने का फैसला किया। गेहूं उत्पादों के निर्यात में सार्वजनिक कंपनियों को अनुमति नहीं होगी।मार्च में अधिकार प्राप्त मंत्री समूह ने 15 मई के बाद 20 लाख टन की सीमा के साथ गेहूं व गेहूं उत्पादों के निर्यात को हरी झंडी दी थी। उसके बाद सचिवों की समिति को इसके बार में नियम और शर्तें तय करने का अधिकार दिया गया था। इस महीने की शुरूआत में वाणिज्य सचिव जी. के. पिल्लै ने चुनाव बाद गेहूं निर्यात की अधिसूचना जारी होने की उम्मीद जताई थी। निर्यात के लिए सरकार की ओर से कोई रियायत दिए जाने की उम्मीद नहीं है। वाणिज्य मंत्रालय को एजेंसियों के बीच मात्रा तय कर निर्यात पर निगरानी रखने को कहा गया। खाद्य मंत्रालय ने कुछ बंदरगाहों पर गेहूं निर्यात पर निगरानी रखने का भी सुझाव दिया था। साल 2007-08 में केंद्र सरकार ने कहा था कि यदि आगमी दो सालों में गेहूं की बंपर पैदावार होती है तो इसके निर्यात को मंजूरी दी जा सकती है। पिछले साल के दौरान देश में करीब 7.85 करोड़ टन गेहूं की पैदावार हुई थी। (Buisness Bhaskar)
26 मई 2009
थाईलैंड में 24 लाख टन चावल की बिक्री पर फैसला इसी हफ्ते
थाईलैंड सरकार इस सप्ताह अपने स्टॉक से 24 लाख टन की चावल बिक्री पर अंतिम फैसला कर सकती है। अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इस चावल की नीलामी पहले छह मई को होने वाली थी। यूएसडीए रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी चावल की बिक्री बिड मूल्य से करीब 30-60 डॉलर ज्यादा भाव पर होने की उम्मीद है। हालांकि सरकार को चावल बिक्री के लिए बिड बाजार भाव से काफी नीचे दरों पर मिली थी। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में चावल की कीमतों में गिरावट की वजह से खरीददारों ने कम भाव पर ही बोली लगाई। ऐसे में सरकार को संभावित नुकसान की वजह से पिछले बीस दिनों से यह मसला विवादास्पद बना हुआ था। हालांकि यूएसडीए की रिपोर्ट में चार बड़े निर्यातकों द्वारा सरकार से भारी मात्रा में चावल की खरीद होने की उम्मीद जताई गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार यदि इस चावल को बाजार में जारी करती है तो थाई चावल का निर्यात मूल्य 500 डॉलर प्रति टन से भी नीचे आ सकते हैं। मौजूदा समय में यहां चावल का निर्यात मूल्य करीब 540 डॉलर प्रति टन है। उधर चालू साल के दौरान थाईलैंड से चावल के निर्यात में करीब 30 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल एक जनवरी से सात मई के दौरान करीब 29 लाख टन चावल का निर्यात हो सका है। दुनिया के कई देशों में चावल का पैदावार सुधरने की वजह से थाई चावल की निर्यात मांग में कमी आई है। वहीं वियतनाम द्वारा वैश्विक बाजार में तुलनात्मक रूप से कम भाव पर चावल बेचने से भी थाई चावल की मांग में कमी आई है। इस बीच भारत सरकार से भी चावल निर्यात को छूट मिलने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में वैश्विक बाजारों में आने समय में चावल की कीमतों में और गिरावट देखी जा सकती है। (Buisness Bhaskar)
150 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती हैं तेल की कीमतें: सऊदी अरब
रोम: सऊदी अरब ने चेतावनी दी है कि आने वाले 3 साल में कच्चे तेल के दाम 150 डॉलर प्रति डॉलर के पार जा सकते हैं। सऊदी अरब ने कहा है कि लॉन्ग टर्म में तेल का प्रॉडक्शन बढ़ाए जाने के लिए इस सेक्टर में ज्यादा निवेश किए जाने की जरूरत है। यहां चल रही 2 दिनी आठवें एनर्जी समिट के बाद दुनिया के विभिन्न देशों के आए ऊर्जा मंत्रियों और अधिकारियों ने गुजारिश की है कि क्रेडिट क्राइसिस के बावजूद एनर्जी प्रोजेक्ट्स में पैसा झोंका जाए। तेल की कीमतें फिलहाल 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है, जो इसके पिछले 6 महीनों का सबसे ऊंचा लेवल है। तेल का उत्पादन करने वाले देशों का कहना है कि तेल की मौजूदा कीमतें 75 बैरल प्रति बैरल होनी चाहिए। दूसरी ओर, तेल का आयात करने वाले देशों को डर है कि यदि अभी तेल की कीमतें चढ़ती हैं तो ग्लोबल आर्थिक हालात और खराब हो सकते हैं। (ET Hindi)
चीनी में लगी आग को ठंडा करने के लिए वायदा कारोबार पर पाबंदी
नई दिल्ली : कमोडिटी मार्केट रेग्युलेटर फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने चीनी के वायदा कारोबार पर पाबंदी लगाने का फैसला किया है। चीनी की कीमतों में तेजी को रोकने के मद्देनजर एफएमसी ने यह फैसला किया है। फारवर्ड मार्केट्स कमीशन के डायरेक्टर अनुपम मिश्रा ने मुंबई से फोन पर इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि चीनी के वायदा कारोबार पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि इस साल 31 दिसंबर तक न तो कोई शुगर कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च किया जाएगा और न जारी कॉन्ट्रैक्ट में कोई फ्रेश पोजिशन ली जा सकेगी। गौरतलब है कि हाल में सरकार ने गेहूं के वायदा कारोबार पर से पाबंदी हटाने का फैसला किया है। इस बीच दिल्ली के होलसेल बाजार में चीनी की कीमतों में आज कोई खास बदलाव नहीं देखा गया। बाजार के जानकारों का कहना है कि बाजार में चीनी सीमित मात्रा में आ रहा है और खरीदारी भी छिटपुट ही हो रही है। इस वजह से चीनी की कीमत पिछले स्तर के आसपान बनी हई है। आज के भाव की बात करें तो प्रति क्विंटल चीनी हाजिर (M-30) 2,480-2,600 रुपए के बीच और S-30 चीनी की कीमत 2,470-2,590 रु के बीच रही। (ET Hindi)
मानसून आने से पहले ही 25 फीसदी क्षेत्रों में बुआई
राजकोट May 25, 2009
गुजरात की लगभग 25 फीसदी खेती की जमीन पर मानसून आने से पहले ही बुआई हो चुकी है। ज्यादातर बुआई सौराष्ट्र क्षेत्र में हुई है।
जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी. के. किकानी का कहना है, 'कपास और मूंगफली दो मुख्य फसलें हैं जिनकी खेती मानसून आने से पहले की बुआई से ही शुरू हो जाती है।'
उनका कहना है, 'मानसून पूर्व की बुआई उन क्षेत्रों में हो रही है जहां पानी की उपलब्धता है। राज्य में लगभग 25 फीसदी तक बुआई हो चुकी है खासतौर पर सौराष्ट्र क्षेत्र में बुआई हुई है। अब किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं।'
डॉ किकानी का कहना है, 'सौराष्ट्र क्षेत्र के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्र में किसानों को खासतौर पर बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है। इस क्षेत्र में कपास और मूंगफली की बुआई भी हो चुकी है। (BS HIndi)
गुजरात की लगभग 25 फीसदी खेती की जमीन पर मानसून आने से पहले ही बुआई हो चुकी है। ज्यादातर बुआई सौराष्ट्र क्षेत्र में हुई है।
जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी. के. किकानी का कहना है, 'कपास और मूंगफली दो मुख्य फसलें हैं जिनकी खेती मानसून आने से पहले की बुआई से ही शुरू हो जाती है।'
उनका कहना है, 'मानसून पूर्व की बुआई उन क्षेत्रों में हो रही है जहां पानी की उपलब्धता है। राज्य में लगभग 25 फीसदी तक बुआई हो चुकी है खासतौर पर सौराष्ट्र क्षेत्र में बुआई हुई है। अब किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं।'
डॉ किकानी का कहना है, 'सौराष्ट्र क्षेत्र के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्र में किसानों को खासतौर पर बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है। इस क्षेत्र में कपास और मूंगफली की बुआई भी हो चुकी है। (BS HIndi)
बेहतर मानसून से कृषि जिंस लुढ़कीं
मुंबई May 25, 2009
मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद से ज्यादातर कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में मंदी का रुख रहा।
कारोबारियों और जिंस विश्लेषकों का कहना है कि दक्षिणी तटीय इलाकों में मानसून समय से पहले आ गया। इसकी वजह से फसल बेहतर होने के आसार हैं।
उदाहरण के रूप में देखें तो जौ, हल्दी, कालीमिर्च, मिर्च, ग्वारसीड, जीरा, मक्का और सोयाबीन की कीमतों में पिछले एक सप्ताह के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। पिछले सप्ताह गेहूं का वायदा कारोबार भी शुरू किया गया, इसमें भी शुरुआती दिनों की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है।
एंजेल कमोडिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर (कमोडिटीज ऐंड करेंसीज) नवीन माथुर ने कहा, 'दक्षिणी तट पर 2 सप्ताह पहले मानसून का आना, जिंसों की कीमतों में गिरावट की पहली वजह है। मेरा मानना है कि मानसून के सामान्य रहने पर फसलों की आपूर्ति बेहतर रहेगी।'
मानसून पर अधिक निर्भरता वाले ग्वारसीड में कमजोर रुख रहा और इसके वायदा कारोबार में 4.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसी तरह से जौ, हल्दी और जीरे में भी 4-10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। बाजार के जानकारों का मानना है कि पिछले दो साल मानसून के लिहाज से या तो औसत रहे या खराब ही रहे, जिससे फसलों की उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ा।
हालांकि बाजार विश्लेषकों ने यह भी कहा कि मानसून ही एकमात्र वजह नहीं है, जिसके चलते कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में गिरावट आई है। एग्रीवाच कमोडिटीज की रिसर्च एनलिस्ट सुधा आचार्य का कहना है, 'सभी जिंसों की धारणाओं के अलग अलग सिध्दांत हैं। इनके साथ सकारात्मक मानसून जुड़ा, जिससे बाजार में सुधार आया। केवल मानसून का प्रभाव मंदी या तेजी लाने में सक्षम नहीं है।'
हाल के महीनों के गेहूं के वायदा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि घरेलू बाजार में सस्ती दरों पर गेहूं की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए हम गेहूं का निर्यात नहीं करेंगे। सोमवार को गेहूं का जून माह का वायदा कारोबार 1106.20 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि पिछले सप्ताह इसके वायदा कारोबार की शुरुआत के समय वायदा भाव 1136 रुपये प्रति क्विंटल था।
मिर्च का स्टॉक आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पर्याप्त है। भौतिक बाजार में आंध्र में मिर्च की कीमतें स्थिर रहीं। इसी तरह से हल्दी, जीरा और कालीमिर्च की कीमतें भी ज्यादा नहीं हैं। माथुर के मुताबिक मानसून के साथ साथ कीमतों में कमी की एक वजह रुपये की मजबूती भी है।
उन्होंने कहा, 'कुछ कृषि जिंसों का आयात किया जाता है, जिसकी वजह से रुपये की मजबूती से खरीद खर्च कम लगा और घरेलू बाजार की कीमतों में कमी आई।' दाल के मामले में कारोबारी घरेलू कीमतों में गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। उनके मुताबिक दाल का आयात मूल्य 200-300 रुपये प्रति क्विंटल कम लगेगा। (BS Hindi)
मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद से ज्यादातर कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में मंदी का रुख रहा।
कारोबारियों और जिंस विश्लेषकों का कहना है कि दक्षिणी तटीय इलाकों में मानसून समय से पहले आ गया। इसकी वजह से फसल बेहतर होने के आसार हैं।
उदाहरण के रूप में देखें तो जौ, हल्दी, कालीमिर्च, मिर्च, ग्वारसीड, जीरा, मक्का और सोयाबीन की कीमतों में पिछले एक सप्ताह के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। पिछले सप्ताह गेहूं का वायदा कारोबार भी शुरू किया गया, इसमें भी शुरुआती दिनों की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है।
एंजेल कमोडिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर (कमोडिटीज ऐंड करेंसीज) नवीन माथुर ने कहा, 'दक्षिणी तट पर 2 सप्ताह पहले मानसून का आना, जिंसों की कीमतों में गिरावट की पहली वजह है। मेरा मानना है कि मानसून के सामान्य रहने पर फसलों की आपूर्ति बेहतर रहेगी।'
मानसून पर अधिक निर्भरता वाले ग्वारसीड में कमजोर रुख रहा और इसके वायदा कारोबार में 4.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसी तरह से जौ, हल्दी और जीरे में भी 4-10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। बाजार के जानकारों का मानना है कि पिछले दो साल मानसून के लिहाज से या तो औसत रहे या खराब ही रहे, जिससे फसलों की उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ा।
हालांकि बाजार विश्लेषकों ने यह भी कहा कि मानसून ही एकमात्र वजह नहीं है, जिसके चलते कृषि जिंसों के वायदा कारोबार में गिरावट आई है। एग्रीवाच कमोडिटीज की रिसर्च एनलिस्ट सुधा आचार्य का कहना है, 'सभी जिंसों की धारणाओं के अलग अलग सिध्दांत हैं। इनके साथ सकारात्मक मानसून जुड़ा, जिससे बाजार में सुधार आया। केवल मानसून का प्रभाव मंदी या तेजी लाने में सक्षम नहीं है।'
हाल के महीनों के गेहूं के वायदा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि घरेलू बाजार में सस्ती दरों पर गेहूं की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए हम गेहूं का निर्यात नहीं करेंगे। सोमवार को गेहूं का जून माह का वायदा कारोबार 1106.20 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि पिछले सप्ताह इसके वायदा कारोबार की शुरुआत के समय वायदा भाव 1136 रुपये प्रति क्विंटल था।
मिर्च का स्टॉक आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पर्याप्त है। भौतिक बाजार में आंध्र में मिर्च की कीमतें स्थिर रहीं। इसी तरह से हल्दी, जीरा और कालीमिर्च की कीमतें भी ज्यादा नहीं हैं। माथुर के मुताबिक मानसून के साथ साथ कीमतों में कमी की एक वजह रुपये की मजबूती भी है।
उन्होंने कहा, 'कुछ कृषि जिंसों का आयात किया जाता है, जिसकी वजह से रुपये की मजबूती से खरीद खर्च कम लगा और घरेलू बाजार की कीमतों में कमी आई।' दाल के मामले में कारोबारी घरेलू कीमतों में गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। उनके मुताबिक दाल का आयात मूल्य 200-300 रुपये प्रति क्विंटल कम लगेगा। (BS Hindi)
गेहूं, चावल के निर्यात पर लगी रहेगी लगाम
नई दिल्ली May 25, 2009
नई सरकार गेहूं और चावल की रिकॉर्ड सरकारी खरीद के बावजूद इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को नहीं हटाएगी। वह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ती दरों पर अनाज दिलाएगी।
कृषि मंत्री शरद पवार ने आज कहा कि निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि कच्चे पाम ऑयल और कच्चे सोयाबीन तेल का शुल्क मुक्त आयात भी जारी रहेगा।
गेहूं और चावल
पवार ने बताया कि आजादी के बाद पहली बार गेहूं व चावल की रिकॉर्डतोड़ सरकारी खरीद हुई है। 25 मई 2009 तक सरकार ने 233 लाख टन गेहूं और 291 लाख टन चावल की खरीदारी की है। उन्होंने कहा कि सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को वादे के मुताबिक प्रतिमाह 25 किलोग्राम चावल या गेहूं उपलब्ध कराएगी। लेकिन उनकी कीमत पर कुछ भी कहने से उन्होंने इनकार कर दिया।
खाद्य तेल
कच्चे पाम ऑयल और कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर शुल्क लगाने से भी पवार ने इनकार कर दिया। गौरतलब है कि वनस्पति तेल उत्पादक एवं कारोबारी दोनों तेलों पर 20 फीसदी आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं।
चीनी
पवार ने चीनी की कीमत में बढ़ोतरी के लिए चीनी उत्पादन के चक्र को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि 3 साल गन्ने की फसल अच्छी रहती है और 2 साल कम हो जाती है। उन्होंने दिल्ली में चीनी के दामों पर चिंता जताई। दिल्ली में पिछले साल मई में 16 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाली चीनी 25 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। (BS Hindi)
नई सरकार गेहूं और चावल की रिकॉर्ड सरकारी खरीद के बावजूद इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को नहीं हटाएगी। वह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ती दरों पर अनाज दिलाएगी।
कृषि मंत्री शरद पवार ने आज कहा कि निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि कच्चे पाम ऑयल और कच्चे सोयाबीन तेल का शुल्क मुक्त आयात भी जारी रहेगा।
गेहूं और चावल
पवार ने बताया कि आजादी के बाद पहली बार गेहूं व चावल की रिकॉर्डतोड़ सरकारी खरीद हुई है। 25 मई 2009 तक सरकार ने 233 लाख टन गेहूं और 291 लाख टन चावल की खरीदारी की है। उन्होंने कहा कि सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को वादे के मुताबिक प्रतिमाह 25 किलोग्राम चावल या गेहूं उपलब्ध कराएगी। लेकिन उनकी कीमत पर कुछ भी कहने से उन्होंने इनकार कर दिया।
खाद्य तेल
कच्चे पाम ऑयल और कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर शुल्क लगाने से भी पवार ने इनकार कर दिया। गौरतलब है कि वनस्पति तेल उत्पादक एवं कारोबारी दोनों तेलों पर 20 फीसदी आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं।
चीनी
पवार ने चीनी की कीमत में बढ़ोतरी के लिए चीनी उत्पादन के चक्र को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि 3 साल गन्ने की फसल अच्छी रहती है और 2 साल कम हो जाती है। उन्होंने दिल्ली में चीनी के दामों पर चिंता जताई। दिल्ली में पिछले साल मई में 16 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाली चीनी 25 रुपये किलो तक पहुंच चुकी है। (BS Hindi)
मंदी और कम उत्पादन से आम के निर्यात में 30 फीसदी गिरावट
नई दिल्ली May 25, 2009
मंदी ने आम निर्यात को भी कम कर दिया। भारतीय आम के निर्यात में इस साल पिछले साल के मुकाबले 30-40 फीसदी की कमी बतायी जा रही है।
इसके अलावा आम उत्पादकों के पास गुड एग्रीकल्चर प्रैक्टिस (गैप) सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण भी आम के निर्यात को धक्का पहुंच रहा है। भारत से अल्फांसो व केसर आम का निर्यात किया जाता है। अल्फांसो के उत्पादन में 30 फीसदी तो केसर के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी तक की गिरावट बतायी जा रही है।
केसर उत्पादकों को घरेलू बाजार में ही 100 फीसदी की बढ़ी हुई दर से आम की कीमत मिल रही है। वहीं अल्फांसों के भाव में 60-80 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। वर्ष 2007-08 के दौरान कुल 12,741 लाख रुपये का निर्यात किया गया था और वर्ष 2008-09 के दौरान इसके मुकाबले लगभग 20 फीसदी की तेजी दर्ज की गयी थी।
महज पांच साल पहले अल्फांसो व केसर आम का निर्यात शुरू किया गया है। तमिलनाडु आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी डा. प्रबरम कहते हैं, 'मंदी व ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम के निर्यात में गिरावट आयी है। भारत से खाड़ी देश व ब्रिटेन में सबसे अधिक अल्फांसो आम का निर्यात किया जाता है। पिछले साल तो इंटरनेट पर आमों की बुकिंग हो रही थी।'
दक्षिण भारत के धर्मापुरी, कृष्णागिरी, वेल्लुर डिनडीकिलेनी टेरी,सेले व त्रिची जैसे इलाके अलफांसो आम के लिए मशहूर है। इन इलाकों में लगभग 12 हजार एकड़ में अलफांसो की खेती की जाती है। अमूमन एक एकड़ में 4 टन आम का उत्पादन होता है।
वेल्लुर आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी जय गोबी कहते हैं, 'पिछले साल तो अलफांसो की निर्यात कीमत 35-40 रुपये प्रति किलोग्राम थी जबकि इस साल तमिलनाडु में इसकी कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। अन्य राज्यों में इसके दाम 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुके हैं।'
अल्फांसो आम की उपज दक्षिण गुजरात में भी भारी मात्रा में की जाती है, लेकिन इस साल इन इलाकों में अलफांसो के उत्पादन में 60 फीसदी से अधिक की कमी आयी है। गुजरात के उत्पादकों के मुताबिक केसर आम के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी की गिरावट है और इसकी कीमत गुजरात में 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। पिछले साल केसर आम की अधिकतम कीमत 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक गयी थी।
दक्षिण भारत के उत्पादकों की यह भी शिकायत है कि उनके आम की गुणवत्ता निर्यात के लायक है, लेकिन गैप सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण उन्हें निर्यात की इजाजत नहीं मिल पाती है। इस सर्टिफिकेट को लेने में 50,000 रुपये का खर्च आता है और इसकी प्रक्रिया लंबी है। वे कहते हैं कि सरकार इस दिशा में उत्पादकों की मदद करे तो अलफांसो का निर्यात दोगुना हो सकता है। (BS Hindi)
मंदी ने आम निर्यात को भी कम कर दिया। भारतीय आम के निर्यात में इस साल पिछले साल के मुकाबले 30-40 फीसदी की कमी बतायी जा रही है।
इसके अलावा आम उत्पादकों के पास गुड एग्रीकल्चर प्रैक्टिस (गैप) सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण भी आम के निर्यात को धक्का पहुंच रहा है। भारत से अल्फांसो व केसर आम का निर्यात किया जाता है। अल्फांसो के उत्पादन में 30 फीसदी तो केसर के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी तक की गिरावट बतायी जा रही है।
केसर उत्पादकों को घरेलू बाजार में ही 100 फीसदी की बढ़ी हुई दर से आम की कीमत मिल रही है। वहीं अल्फांसों के भाव में 60-80 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। वर्ष 2007-08 के दौरान कुल 12,741 लाख रुपये का निर्यात किया गया था और वर्ष 2008-09 के दौरान इसके मुकाबले लगभग 20 फीसदी की तेजी दर्ज की गयी थी।
महज पांच साल पहले अल्फांसो व केसर आम का निर्यात शुरू किया गया है। तमिलनाडु आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी डा. प्रबरम कहते हैं, 'मंदी व ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम के निर्यात में गिरावट आयी है। भारत से खाड़ी देश व ब्रिटेन में सबसे अधिक अल्फांसो आम का निर्यात किया जाता है। पिछले साल तो इंटरनेट पर आमों की बुकिंग हो रही थी।'
दक्षिण भारत के धर्मापुरी, कृष्णागिरी, वेल्लुर डिनडीकिलेनी टेरी,सेले व त्रिची जैसे इलाके अलफांसो आम के लिए मशहूर है। इन इलाकों में लगभग 12 हजार एकड़ में अलफांसो की खेती की जाती है। अमूमन एक एकड़ में 4 टन आम का उत्पादन होता है।
वेल्लुर आम उत्पादक संघ के पदाधिकारी जय गोबी कहते हैं, 'पिछले साल तो अलफांसो की निर्यात कीमत 35-40 रुपये प्रति किलोग्राम थी जबकि इस साल तमिलनाडु में इसकी कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। अन्य राज्यों में इसके दाम 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुके हैं।'
अल्फांसो आम की उपज दक्षिण गुजरात में भी भारी मात्रा में की जाती है, लेकिन इस साल इन इलाकों में अलफांसो के उत्पादन में 60 फीसदी से अधिक की कमी आयी है। गुजरात के उत्पादकों के मुताबिक केसर आम के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी की गिरावट है और इसकी कीमत गुजरात में 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। पिछले साल केसर आम की अधिकतम कीमत 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक गयी थी।
दक्षिण भारत के उत्पादकों की यह भी शिकायत है कि उनके आम की गुणवत्ता निर्यात के लायक है, लेकिन गैप सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण उन्हें निर्यात की इजाजत नहीं मिल पाती है। इस सर्टिफिकेट को लेने में 50,000 रुपये का खर्च आता है और इसकी प्रक्रिया लंबी है। वे कहते हैं कि सरकार इस दिशा में उत्पादकों की मदद करे तो अलफांसो का निर्यात दोगुना हो सकता है। (BS Hindi)
सोयाबीन में और गिरावट संभव
सोयाखली तथा तेल की मांग कमजोर होने से सोयाबीन में तेजी का दौर लगभग थम गया है। इस बीच, दुनिया के सबसे बड़े आयातक चीन की ओर से ऊंचे भावों पर खरीद धीमी पड़ने और मध्य प्रदेश में अगले महीने से बुवाई शुरू होने की संभावना को देखते हुए सोयाबीन के भावों पर और दबाव बढ़ने की आशंका बनी हुई है। दरअसल, सोयाबीन में पिछले दो महीने में तेजी का रुख बनने की वजह सोयाखली का कमजोर स्टॉक और चीन की रिकॉर्ड खरीद थी। इस कारण सोया खली में लगातार मजबूती के चलते घरलू बाजार में सोयाबीन की कीमतें मई में ही 2800 रुपये क्विंटल तक पहुंच गई। वहीं इस साल पहले चार महीनों में चीन द्वारा रिकॉर्ड 1.39 करोड़ टन सोयाबीन की खरीद से शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में इस सप्ताह सोयाबीन के भाव सात महीने के उच्चतम स्तर तक जा पहुंचे। दुनिया के तीसर प्रमुख उत्पादक अर्जेटिना में इस साल सोयाबीन की पैदावार में गिरावट के अनुमानों ने सोयाबीन में तेजी बनाने में कसर नहीं छोड़ी। लेकिन चीन ने ऊंची कीमतों को देखते हुए जैसे ही खरीद धीमी करने के संकेत दिए सोयाबीन की कीमतों पर चौतरफा दबाव बन गया और लंदन और न्यूर्याक में जुलाई डिलीवरी वायदा सौदों में सोयाबीन के भावों में गिरावट दर्ज की गई।अंतरराष्ट्रीय बाजार में नरमी से घरलू बाजार में भी सोयाबीन की कीमतों पर दबाव बढ़ गया। इस वजह से पिछले सप्ताह कोटा मंडी में सोयाबीन प्लांट डिलीवरी के भाव करीब पांच फीसदी घटकर 2550 रुपये क्विंटल रह गए। वहीं उठाव कमजोर होने से सोया रिफाइंड तेल करीब ढाई फीसदी लुढककर 4800 रुपये और सोया खली भी ढाई फीसदी की गिरावट से 22,750 रुपये टन रह गई। अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर दबाव की वजह से एनसीडीईएक्स में भी जून वायदा सोयाबीन के भाव इस सप्ताह करीब पांच फीसदी की गिरावट से 2552 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। सोया खली और सोया तेल वायदा भी नरम रहा। उधर, दक्षिण-पश्चिम मानसून जल्दी आने से के पूर्वानुमान को देखते हुए देश के प्रमुख सोयाबीन उत्पादक मध्य प्रदेश में जून के दूसर पखवाड़े से सोयाबीन की बुवाई शुरू हो जाने की संभावना है।हालांकि पिछले वर्ष खरीफ सीजन में सोयाबीन की पैदावार व्यापारिक अनुमानों के मुताबिक 85 लाख टन ही बैठने से मंडियों में सोयाबीन का स्टॉक ज्यादा नहीं बचा है। इस कारण मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में आवक घटकर लगभग 26 हजार बोरी प्रति दिन रह गई है। लेकिन सोया तेल का उठाव कमजोर होने तथा सोया खली के निर्यात में भारी कमी की आशंका को देखते हुए सोयाबीन की कीमतों में सुधार के आसार कम है। यह भी बताया जा रहा है कि प्लांटों के पास तेल का काफी स्टॉक बचा हुआ है, जबकि चालू वित्त वर्ष के पहले महीने में सोया खली के निर्यात में 70 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। (Business Bhaskar)
स्टॉकिस्टों की बिकवाली से हल्दी टूटी
वियतनाम से आयात बढ़ने और स्टॉकिस्टों की बिकवाली से घरेलू बाजार में हल्दी की कीमतों में करीब छह फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। घरेलू बाजार में आई गिरावट का असर वायदा कारोबार पर भी देखा गया। शनिवार को एनसीडीईएक्स पर जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में चार फीसदी की गिरावट आई। हालांकि उत्पादक मंडियों में हल्दी की दैनिक आवक घट गई है लेकिन रुपये के मुकाबले डॉलर में आई गिरावट से निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में बारिश होने से बुवाई क्षेत्रफल में भी बढ़ोतरी की संभावना है। ऐसे में हल्दी के मौजूदा भावों में और भी गिरावट की संभावना है।पूनम चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि भारतीय आयातकों द्वारा वियतनाम के करीब 20 कंटेनर हल्दी का आयात किया जा चुका है। आयात बढ़ने से घरेलू बाजार में स्टॉकिस्टों की बिकवाली भी पहले की तुलना में बढ़ गई है जिससे इसकी गिरावट को बल मिला है। निजामाबाद मंडी में शनिवार को हल्दी की कीमतें घटकर 5350 रुपये प्रति क्विंटल रह गई जबकि यहां इसकी दैनिक आवक भी घटकर 1500-2000 बोरी (एक बोरी-70 किलो) की रह गई है। निजामाबाद में हल्दी का करीब ढाई लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है। चालू सीजन में हल्दी किसानों को अच्छे दाम मिले हैं इसलिए हल्दी के बुवाई क्षेत्रफल में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी होने की संभावना है। मुंबई हेमन रुपारल ने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने से निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 के (अप्रैल-08 से फरवरी-09 ) तक देश से हल्दी का निर्यात बढ़कर 49,000 टन का हुआ है। जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में इसका 44,360 टन का ही निर्यात हुआ था। चालू सीजन में देश में हल्दी की कुल उपलब्धता (उत्पादन और बकाया स्टॉक) पिछले साल से कम है। इसलिए स्टॉकिस्टों की बिकवाली से हल्दी की मौजूदा कीमतों में 150-200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट की संभावना नहीं है। इरोड़ हल्दी मर्च्ेट एसोसिएशन के सुभाष गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में हल्दी की पैदावार 42 लाख बोरी होने की संभावना है। जबकि पिछले वर्ष इसका उत्पादन 43 लाख बोरी का हुआ था। पिछले वर्ष नई फसल की आवक के समय उत्पादक राज्यों की मंडियों में बकाया स्टॉक लगभग 13-14 लाख बोरी का बचा हुआ था। चालू वर्ष में बकाया स्टॉक मात्र चार से पांच लाख बोरी का ही बचा हुआ है। ऐसे में चालू सीजन में देश में हल्दी की कुल उपलब्धता 46-47 लाख बोरी की ही होगी। घरेलू व निर्यात मांग को मिलाकर हल्दी की सालाना खपत करीब 45-46 लाख बोरी की होती है। इरोड़ मंडी में हल्दी के भाव घटकर 5700 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। यहां इसकी दैनिक आवक करीब आठ हजार बोरी की हो रही है। इरोड़ में हल्दी का आठ लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है। हाजिर बाजार में आई गिरावट के असर से एनसीडीईएक्स पर जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में शनिवार को चार फीसदी की गिरावट आकर भाव 5107 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। (Businss Bhaskar....R S Rana)
थोक में ओटा सरकारी कपास
नई दिल्ली 05 24, 2009
रियायती दर पर कपास बेचने के सरकार के फैसले का फायदा कपड़ा मिलें नहीं थोक खरीदार उठा रहे हैं।
भारतीय कपास निगम (सीसीआई) जैसी सरकारी कंपनियों ने 2,200 करोड़ रुपये की सरकारी सब्सिडी के साथ जो कपास बेचा, उसमें ज्यादातर मिलों के पास न जाकर इन्हीं थोक कारोबारियों के गोदामों में चला गया है।
सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य तकरीबन 40 फीसदी बढ़ा दिया था। इसके बाद ज्यादातर किसानों ने अपनी फसल सीसीआई और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) को बेची थी। लेकिन दोनों एजेंसियां इसे तय कीमत पर नहीं बचे पाईं क्योंकि यह कीमत बाजार मूल्य से काफी ज्यादा था।
इससे मजबूर होकर सरकार को देसी बाजार में छूट के साथ कपास बेचना पड़ा। वह मिलों का फायदा चाहती थी, लेकिन उसने ज्यादा खरीद पर ज्यादा छूट की व्यवस्था रखी। ऐसे में फायदा थोक कारोबारी उठा ले गए, जो कपास को लंबे समय तक गोदामों में रख सकते हैं। मिलें इन्हीं कारोबारियों से बाजार मूल्य पर कपास ले रही हैं, जिसकी वजह से फायदा मिलों को न होकर कारोबारियों को ही मिल रहा है।
सीसीआई के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'कपास का ज्यादातर हिस्सा कारोबारियों को बेचा गया है। एक तिहाई कपास मिलों ने खरीदा है।' रियायत से पहले सीसीआई 89.4 लाख बेल्स में से 13 फीसदी बेच पाई थी। अब केवल 10 लाख बेल्स बची हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान छोटी मिलों को है। उन्हें बमुश्किल10,000 बेल्स की जरूरत होती है, जिन्हें वे थोक कारोबारियों से अधिक दाम में खरीद रही हैं। इसलिए फायदा तो कारोबारियों को ही मिल रहा है।'
थोक कारोबारियों की खिलीं बांछें
मिलों के लिए सरकार ने दी कपास मूल्य में छूटलेकिन मुनाफा कमा रहे हैं थोक कारोबारी (BS Hindi)
रियायती दर पर कपास बेचने के सरकार के फैसले का फायदा कपड़ा मिलें नहीं थोक खरीदार उठा रहे हैं।
भारतीय कपास निगम (सीसीआई) जैसी सरकारी कंपनियों ने 2,200 करोड़ रुपये की सरकारी सब्सिडी के साथ जो कपास बेचा, उसमें ज्यादातर मिलों के पास न जाकर इन्हीं थोक कारोबारियों के गोदामों में चला गया है।
सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य तकरीबन 40 फीसदी बढ़ा दिया था। इसके बाद ज्यादातर किसानों ने अपनी फसल सीसीआई और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) को बेची थी। लेकिन दोनों एजेंसियां इसे तय कीमत पर नहीं बचे पाईं क्योंकि यह कीमत बाजार मूल्य से काफी ज्यादा था।
इससे मजबूर होकर सरकार को देसी बाजार में छूट के साथ कपास बेचना पड़ा। वह मिलों का फायदा चाहती थी, लेकिन उसने ज्यादा खरीद पर ज्यादा छूट की व्यवस्था रखी। ऐसे में फायदा थोक कारोबारी उठा ले गए, जो कपास को लंबे समय तक गोदामों में रख सकते हैं। मिलें इन्हीं कारोबारियों से बाजार मूल्य पर कपास ले रही हैं, जिसकी वजह से फायदा मिलों को न होकर कारोबारियों को ही मिल रहा है।
सीसीआई के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'कपास का ज्यादातर हिस्सा कारोबारियों को बेचा गया है। एक तिहाई कपास मिलों ने खरीदा है।' रियायत से पहले सीसीआई 89.4 लाख बेल्स में से 13 फीसदी बेच पाई थी। अब केवल 10 लाख बेल्स बची हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान छोटी मिलों को है। उन्हें बमुश्किल10,000 बेल्स की जरूरत होती है, जिन्हें वे थोक कारोबारियों से अधिक दाम में खरीद रही हैं। इसलिए फायदा तो कारोबारियों को ही मिल रहा है।'
थोक कारोबारियों की खिलीं बांछें
मिलों के लिए सरकार ने दी कपास मूल्य में छूटलेकिन मुनाफा कमा रहे हैं थोक कारोबारी (BS Hindi)
इस साल कम हो सकता है जीरे का निर्यात
अहमदाबाद May 25, 2009
पिछले साल जीरे का रिकॉर्ड निर्यात होने के बाद इस साल निर्यात में कमी आने के आसार हैं।
बाजार के जानकारों का कहना है कि इस साल 2008-09 में (अक्टूबर से जून के बीच) निर्यात 4 से 5 लाख बोरी (एक बोरी में 50 किलो) के बीच रहने के आसार हैं। राजकोट के प्रमुख जीरा कारोबारी बीके पटेल ने कहा, 'इसके पहले के सत्र के दौरान जीरे का निर्यात बहुत बढ़िया- करीब 7 से 8 लाख बोरी रहा था।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसका भंडारण किया गया। बहरहाल इस साल निर्यात कम होकर 4 से 5 लाख बोरी रहने का अनुमान है। इसमें से 2.5 से 3 लाख बोरी जीरे का निर्यात अब तक किया जा चुका है।'
जीरे की बुवाई के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी के बावजूद इस साल खराब मौसम के चलते उपज बढ़िया नहीं रही। बाजार से जुड़े लोगों के अनुमानों के मुताबिक देश में जीरे का उत्पादन 23 से 25 लाख बोरियों में सिमट जाएगा, इसके अलावा 5 लाख बोरी जीरे का अग्रिम स्टॉक भी शामिल है।
इस तरह से देखें तो पिछले साल 2007-08 के 27 से 28 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल उत्पादन कम है। पिछले साल के दौरान अग्रिम स्टॉक भी 7-10 लाख बोरियों का था। वैश्विक मंदी की वजह से इस साल निर्यात के बारे में पूछताछ भी कम रही। इसके बावजूद इस साल इस जिंस की कीमतें मजबूत बनी रहीं।
वर्तमान में जीरा (सिंगापुर क्वालिटी) की कीमत 2150-2250 रुपये प्रति 20 किलो है। इस सत्र की शुरुआत में तो जीरे की कीमतें 2400 से 2450 रुपये प्रति 20 किलो तक पहुंच गईं थीं। ऊंझा चैंबर ऑफ कामर्स के रमेश मुखी के मुताबिक कीमतें ज्यादा होने और उपज में कमी की वजह से इस साल निर्यात कम रहा।
ऊंझा, देश में जीरे के कारोबार का सबसे बड़ा केंद्र है। बहुत से अंतरराष्ट्रीय कारोबारी अभी प्रतीक्षा करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। साथ ही जून माह में तुर्की और सीरिया से आने वाली नई फसल का भी इंतजार कर रहे हैं।
ऊंझा एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केटिंग कमेटी के निदेशक विष्णु पटेल ने कहा कि वर्तमान में निर्यात का कारोबार धीमा पड़ गया है, क्योंकि कारोबारी सीरिया और तुर्की से आने वाली नई फसल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सही स्थिति तभी सामने आएगी, जब इन दो देशों की फसल तैयार होगी तथा बाजार में आ जाएगी।
क्या है वजह?
खराब मौसम की वजह से जीरे के उत्पादन में आई जबरदस्त कमी वैश्विक मंदी की वजह से इस साल निर्यात के लिए ज्यादा नहीं मिले ऑर्डर (BS Hindi)
पिछले साल जीरे का रिकॉर्ड निर्यात होने के बाद इस साल निर्यात में कमी आने के आसार हैं।
बाजार के जानकारों का कहना है कि इस साल 2008-09 में (अक्टूबर से जून के बीच) निर्यात 4 से 5 लाख बोरी (एक बोरी में 50 किलो) के बीच रहने के आसार हैं। राजकोट के प्रमुख जीरा कारोबारी बीके पटेल ने कहा, 'इसके पहले के सत्र के दौरान जीरे का निर्यात बहुत बढ़िया- करीब 7 से 8 लाख बोरी रहा था।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसका भंडारण किया गया। बहरहाल इस साल निर्यात कम होकर 4 से 5 लाख बोरी रहने का अनुमान है। इसमें से 2.5 से 3 लाख बोरी जीरे का निर्यात अब तक किया जा चुका है।'
जीरे की बुवाई के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी के बावजूद इस साल खराब मौसम के चलते उपज बढ़िया नहीं रही। बाजार से जुड़े लोगों के अनुमानों के मुताबिक देश में जीरे का उत्पादन 23 से 25 लाख बोरियों में सिमट जाएगा, इसके अलावा 5 लाख बोरी जीरे का अग्रिम स्टॉक भी शामिल है।
इस तरह से देखें तो पिछले साल 2007-08 के 27 से 28 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल उत्पादन कम है। पिछले साल के दौरान अग्रिम स्टॉक भी 7-10 लाख बोरियों का था। वैश्विक मंदी की वजह से इस साल निर्यात के बारे में पूछताछ भी कम रही। इसके बावजूद इस साल इस जिंस की कीमतें मजबूत बनी रहीं।
वर्तमान में जीरा (सिंगापुर क्वालिटी) की कीमत 2150-2250 रुपये प्रति 20 किलो है। इस सत्र की शुरुआत में तो जीरे की कीमतें 2400 से 2450 रुपये प्रति 20 किलो तक पहुंच गईं थीं। ऊंझा चैंबर ऑफ कामर्स के रमेश मुखी के मुताबिक कीमतें ज्यादा होने और उपज में कमी की वजह से इस साल निर्यात कम रहा।
ऊंझा, देश में जीरे के कारोबार का सबसे बड़ा केंद्र है। बहुत से अंतरराष्ट्रीय कारोबारी अभी प्रतीक्षा करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। साथ ही जून माह में तुर्की और सीरिया से आने वाली नई फसल का भी इंतजार कर रहे हैं।
ऊंझा एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केटिंग कमेटी के निदेशक विष्णु पटेल ने कहा कि वर्तमान में निर्यात का कारोबार धीमा पड़ गया है, क्योंकि कारोबारी सीरिया और तुर्की से आने वाली नई फसल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सही स्थिति तभी सामने आएगी, जब इन दो देशों की फसल तैयार होगी तथा बाजार में आ जाएगी।
क्या है वजह?
खराब मौसम की वजह से जीरे के उत्पादन में आई जबरदस्त कमी वैश्विक मंदी की वजह से इस साल निर्यात के लिए ज्यादा नहीं मिले ऑर्डर (BS Hindi)
शीरे और एल्कोहल पर घटे कर
नई दिल्ली 05 24, 2009
पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीनेचर्ड एल्कोहल और शीरा पर उत्पाद शुल्क कम करने का प्रस्ताव रखा है, जिससे पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल की मिलावट योजना को कारगर किया जा सके।
चालू वित्त वर्ष में गन्ने के उत्पादन में कमी होने की वजह से इस योजना पर बुरा प्रभाव पडा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, 'डीनेचर्ड एल्कोहल पर उत्पाद शुल्क 7.5 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत और शीरे से वर्तमान 10 प्रतिशत उत्पाद शुल्क कम करके 5 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है।'
उनका कहना है कि यह प्रस्ताव मार्च से ही कैबिनेट की अनुसंशा की प्रतीक्षा में है। डिनेटचर्ड एल्कोहल और शीरे- दोनो का ही इस्तेमाल एथेनॉल तैयार करने में होता है। एथेनॉल को हरित ईंधन के रूप में जाना जाता है और इसकी मिलावट से भारत की पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता आंशिक रूप से कम होगी।
पिछले साल पूरी दुनिया में चीनी की कीमतों में गिरावट आई थी। इसका परिणाम यह हुआ जिन किसानों ने अन्य फसलों का विकल्प अपनाया था, उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ। वर्ष 2008-09 के रबी सत्र के दौरान गन्ने की बुवाई के क्षेत्रफल में 17 प्रतिशत की कमी आई, जिसकी वजह से शीरे के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। अब उम्मीद की जा रही है कि अगले सत्र में गन्ने के उत्पादन में आंशिक रूप से बढ़ोतरी होगी।
अगर 5 प्रतिशत की मिलावट की जाए जो इसके लिए वार्षिक 6,000 लाख लीटर एथेनॉल की जरूरत पड़ेगी। बहरहाल इस साल एथेनॉल की आपूर्ति में 40 प्रतिशत की कमी आई है। इस साल जहां एथेनॉल की उपलब्धता बड़ा मसला रहा, वहीं तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) कर नीति के चलते तमिलनाडु और केरल में मिलावट नहीं कर सकीं।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक, आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ सरकार को यह भी कोशिश करनी चाहिए कि राज्य सरकारें एथेनॉल मिलावट की सुविधा मुहैया कराएं। ओएमसी, चीनी मिलों से 21.50 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से एथेनॉल खरीद रही हैं। यह खरीद टेंडर की प्रक्रिया से हो रही है। कुछ कंपनियां अपने दम पर एथेनॉल उत्पादन की योजना बना रही हैं।
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने पिछले साल बिहार की बीमार पड़ी दो चीनी मिलों को खरीदा, हालांकि उसके बाद की कोई प्रगति सामने नहीं आई। जनवरी महीने में कंपनी ने आंध्र प्रदेश में 4 चीनी मिलों को खरीदने की योजना टाल दी।
अक्टूबर 2007 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने अक्टूबर 2008 से 10 प्रतिशत एथेनॉल की मिलावट को संस्तुति दे दी थी। यह आवश्यक रूप से जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर देश भर में लागू होना था। अब वह समय सीमा बीत चुकी है और अब केवल 5 प्रतिशत की मिलावट ही कार्यरूप ले पाई है। 5 प्रतिशत मिलावट का नियम नवंबर 2007 में लागू किया गया था।
नए प्रस्ताव
पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीनेचर्ड एल्कोहल पर उत्पाद शुल्क 7.5 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत करने और शीरे पर शुल्क 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा।प्रमुख उद्देश्य है कि पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने की योजना को कार्यरूप दिया जा सके। (BS Hindi)
पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीनेचर्ड एल्कोहल और शीरा पर उत्पाद शुल्क कम करने का प्रस्ताव रखा है, जिससे पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल की मिलावट योजना को कारगर किया जा सके।
चालू वित्त वर्ष में गन्ने के उत्पादन में कमी होने की वजह से इस योजना पर बुरा प्रभाव पडा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, 'डीनेचर्ड एल्कोहल पर उत्पाद शुल्क 7.5 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत और शीरे से वर्तमान 10 प्रतिशत उत्पाद शुल्क कम करके 5 प्रतिशत किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है।'
उनका कहना है कि यह प्रस्ताव मार्च से ही कैबिनेट की अनुसंशा की प्रतीक्षा में है। डिनेटचर्ड एल्कोहल और शीरे- दोनो का ही इस्तेमाल एथेनॉल तैयार करने में होता है। एथेनॉल को हरित ईंधन के रूप में जाना जाता है और इसकी मिलावट से भारत की पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता आंशिक रूप से कम होगी।
पिछले साल पूरी दुनिया में चीनी की कीमतों में गिरावट आई थी। इसका परिणाम यह हुआ जिन किसानों ने अन्य फसलों का विकल्प अपनाया था, उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ। वर्ष 2008-09 के रबी सत्र के दौरान गन्ने की बुवाई के क्षेत्रफल में 17 प्रतिशत की कमी आई, जिसकी वजह से शीरे के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। अब उम्मीद की जा रही है कि अगले सत्र में गन्ने के उत्पादन में आंशिक रूप से बढ़ोतरी होगी।
अगर 5 प्रतिशत की मिलावट की जाए जो इसके लिए वार्षिक 6,000 लाख लीटर एथेनॉल की जरूरत पड़ेगी। बहरहाल इस साल एथेनॉल की आपूर्ति में 40 प्रतिशत की कमी आई है। इस साल जहां एथेनॉल की उपलब्धता बड़ा मसला रहा, वहीं तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) कर नीति के चलते तमिलनाडु और केरल में मिलावट नहीं कर सकीं।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक, आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ सरकार को यह भी कोशिश करनी चाहिए कि राज्य सरकारें एथेनॉल मिलावट की सुविधा मुहैया कराएं। ओएमसी, चीनी मिलों से 21.50 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से एथेनॉल खरीद रही हैं। यह खरीद टेंडर की प्रक्रिया से हो रही है। कुछ कंपनियां अपने दम पर एथेनॉल उत्पादन की योजना बना रही हैं।
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने पिछले साल बिहार की बीमार पड़ी दो चीनी मिलों को खरीदा, हालांकि उसके बाद की कोई प्रगति सामने नहीं आई। जनवरी महीने में कंपनी ने आंध्र प्रदेश में 4 चीनी मिलों को खरीदने की योजना टाल दी।
अक्टूबर 2007 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने अक्टूबर 2008 से 10 प्रतिशत एथेनॉल की मिलावट को संस्तुति दे दी थी। यह आवश्यक रूप से जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर देश भर में लागू होना था। अब वह समय सीमा बीत चुकी है और अब केवल 5 प्रतिशत की मिलावट ही कार्यरूप ले पाई है। 5 प्रतिशत मिलावट का नियम नवंबर 2007 में लागू किया गया था।
नए प्रस्ताव
पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीनेचर्ड एल्कोहल पर उत्पाद शुल्क 7.5 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत करने और शीरे पर शुल्क 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा।प्रमुख उद्देश्य है कि पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने की योजना को कार्यरूप दिया जा सके। (BS Hindi)
25 मई 2009
कपास के आयात में हो सकता है 60 फीसदी का इजाफा
मुंबई- देश में कपास की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के कारण मौजूदा कपास साल (अक्टूबर 08-सितंबर 09) में वैश्विक बाजार से सस्ते कपास का आयात बढ़ेगा। उम्मीद है कि इस साल आयात में करीब 30-60 फीसदी का इजाफा होगा। दरअसल, सरकार द्वारा कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें घरेलू बाजार की तुलना में कुछ कम है। ऐसे में ज्यादातर कारोबारी आयातित कपास को ही तवज्जो दे रहे हैं। इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले साल की 6 लाख गांठों की तुलना में इस साल भारत 8-10 लाख गांठें आयात कर सकता है। प्रत्येक गांठ 170 किलो की होती है। भारतीय कपड़ा उद्योगों के परिसंघ (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नायर का मानना है कि मौजूदा साल में आयातित कपास का आंकड़ा 10 लाख गांठों तक पहुंच सकता है। नायर ने कहा, 'इस साल आयात में 4-5 लाख गांठें लंबे रेशे वाले कपास की और करीब 6 लाख गांठें मझोले एवं छोटे रेशे वाले कपास की होंगी।' कॉटन टेक्सटाइल और एलॉयड प्रोडक्ट्स रिसर्च फाउंडेशन के चेयरमैन और कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व प्रेसिडेंट के एफ झुनझुनवाला ने कहा कि इस साल भारत 8 लाख गांठों का आयात करेगा। उन्होंने कहा, 'अब तक देश पांच लाख गांठों का आयात कर चुका है और अतिरिक्त तीन लाख गांठों का आयात 30 सितंबर तक हो जाएगा।' उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 40 फीसदी बढ़ोतरी से वैश्विक बाजार की तुलना में घरेलू बाजार में कपास की कीमत ज्यादा है। पिछले साल की तुलना में इस साल मझोले-लंबे रेशे वाले कपास के दाम 31 फीसदी यानी 2,500 रुपए और लंबे रेशे वाले कपास की कीमत 48 फीसदी यानी 3,000 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ गए हैं। झुनझुनवाला ने कहा, 'वैश्विक बाजार में कपास के दाम स्थानीय बाजार की तुलना में 1.5-2 फीसदी तक कम है, इसलिए आयात में बढ़ोतरी हो रही है।' शंकर 6 के नाम से मशहूर 28-29 मिमी किस्म के कपास की कीमत घरेलू बाजार में 21,500-22,500 रुपए प्रति कैंडी (एक कैंडी यानी 356 किलो) के बीच है। वहीं, वैश्विक बाजार में कपास के दाम घरेलू बाजार की तुलना में प्रति पौंड 55 सेंट कम हैं। आमतौर पर भारत लंबे रेशे वाले कपास की 5-6 लाख गांठें आयात करता है। भारत में इस किस्म के कपास का उत्पादन कम होता है। आशंका है कि वैश्विक संकट की वजह से चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और हांगकांग से मांग में कमी आ सकती है और निर्यात 30 फीसदी तक घट सकती है। इस साल भारत 5 लाख गांठों से अधिक निर्यात नहीं कर सकता, जबकि पिछले साल 8.5 लाख गांठें निर्यात हुई थी। (ET Hindi)
सरकार बढ़ा सकती है चीनी आयात करने की समय सीमा
नई दिल्ली- सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग फर्मों एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी द्वारा शुल्क मुक्त सफेद चीनी आयात की सीमा तीन महीने बढ़ाकर अक्टूबर तक कर सकती है इसके अलावा चीनी आयात की सीमा को भी बढ़ाकर 15 लाख टन किया जा सकता है। घरेलू बाजार में चीनी की उपलब्धता और कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए सरकार कच्ची चीनी के शुल्क मुक्त आयात की समय सीमा को बढ़ाकर दिसंबर तक कर सकती है। पहले यह समय अवधि 1 अगस्त तक थी। सात अप्रैल को कैबिनेट ने इन तीनों सार्वजनिक ट्रेडिंग फर्मों को 10 लाख टन सफेद चीनी आयात करने की अनुमति दी थी और साथ में निजी ट्रेडरों को भी 1 अगस्त तक ओपेन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत शुल्क मुक्त कच्ची चीनी आयात करने की अनुमति दी थी। सूत्रों का कहना है कि प्रस्ताव में ओजीएल के तहत रॉ शुगर के आयात करने की भी अवधि को बढ़ाकर दिसंबर तक करने की बात शामिल है। अधिकारियों का कहना है कि खाद्य मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि पीएसयू फर्मों द्वारा रिफाइंड शुगर आयात करने की सीमा को बढ़ाकर 15 लाख टन किया जाए या नहीं। अधिकारियों का कहना है कि अगर दोनों मंत्रालय सहमत हो गए तो उसके बाद मात्रा बढ़ाने के प्रस्ताव को सीसीईए के पास भेजा जाएगा। माना जा रहा है कि सितंबर में समाप्त हो रहे मौजूदा सीजन में चीनी की उपलब्धता को लेकर खाद्य मंत्रालय ने विस्तृत नोट तैयार कर लिया है। उनका कहना है कि सरकार गैर पीएसयू को भी सफेद चीनी आयात करने की अनुमति देने पर विचार कर रही है। वाणिज्य मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि 1 अगस्त तक 10 लाख टन चीनी आयात करने में सार्वजनिक फर्मों द्वारा असमर्थता जताए जाने के बाद निजी ट्रेडरों को भी आयात करने की अनुमति दी जाए। (ET Hindi)
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