नई दिल्ली November 04, 2008
सरकार ने गेहूं के निर्यात पर लगी पाबंदी को हटाने की संभावना से आज इनकार कर दिया क्योंकि यह साल 2007-08 में हुए रेकॉर्ड उत्पादन के बावजूद लदाई की अनुमति देने के मामले में रूढ़िवादी तरीके अपनाना चाहती है।
खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने आज कहा, 'कुछ देशों की प्रति हमारी प्रतिबध्दता है, इस कारण हमें गेहूं के निर्यात की आम अनुमति देने के मामले में रूढ़िवादी तरीके अपनाने पड़ेंगे।' यह पूछे जाने पर कि भंडारगृहों के अभाव में गेहूं बड़े परिमाण में खुले में रखा गया है, पवार ने कहा कि पाबंदी समाप्त किए जाने से पहले सरकार को घरेलू परिस्थितियों के बारे में भी विचार करना है।सरकार ने गेहूं के निर्यात पर साल 2006 में प्रतिबंध लगाया था जब इसे घरेलू जरूरतों की पूर्ति और कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए 55 लाख टन का आयात करना पड़ा था।सरकार ने शून्य आयात शुल्क पर निर्यात की अनुमति भी दी थी। पवार ने कहा कि परिस्थिति गेहूं के रकबे में बढ़ोतरी करने की है ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके। उन्होंने कहा, 'पिछले साल 784 लाख टन की रेकॉर्ड फसल हुई थी और हमारी इच्छा उसे पार करने की है।' यह पूछे जाने पर कि क्या उत्तर प्रदेश में गन्ने की बुआई में विलंब के कारण गेहूंकी बुआई पर फर्क पड़ेगा, पवार ने कहा, 'मैं वहां के अधिकरियों से बात करुंगा। हम चाहते हैं कि गेहूं के रकबे में बढ़ोतरी हो।' उन्होंने कहा के मौसम, नमी, तापमान और बीजों की उपलब्धता गेहूं की बंपर फसल के लिए उपयुक्त हैं, अगर किसानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराया जाए तो देश में गेहूं के उत्पादन का एक नया कीर्तिमान बन जाएगा। पवार ने कहा कि सरकार गेहूं सहित रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) की घोषणा जल्द ही करने वाली है। उन्होंने कहा, 'अभी भी वक्त है और हम जल्दी ही एमएसपी पर निर्णय लेंगे।' कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने गेहूं का एमएसपी बढ़ाकर 1,080 रुपये किए जाने की सिफारिश की है। (BS Hindi)
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