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05 अप्रैल 2010

गरीबों को ज्यादा अनाज!

देश में कमरतोड़ महंगाई से कराह रहे गरीब परिवारों के जख्मों पर मरहम लगाने में सरकार अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। सरकार के नए इरादों से कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। सरकार अब देश के गरीब परिवारों को तीन रुपये प्रति किलो की दर से 25 किलो के बजाय 35 किलो गेहूं अथवा चावल हर महीने देने पर गंभीरता से विचार कर रही है। खाद्य पदार्थो पर मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक सोमवार को होनी है जिसमें इस प्रस्ताव पर भी विचार किए जाने की प्रबल संभावना है। वैसे, बताया जाता है कि एक गैर सरकारी संगठन राइट टू फूड कैंपेन द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए विशेष पत्र ने ही सरकार को अपने इरादों में बदलाव के लिए विवश किया है। इस पत्र में हर गरीब परिवार को 25 किलो अनाज देने के प्रस्ताव को एक सिर से खारिज किया गया है।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले ईजीओएम की बैठक इससे पहले गत 18 मार्च को हुई थी जिसमें खाद्य सुरक्षा विधेयक को हरी झंडी दिखाई गई थी। इस विधेयक में गरीब परिवारों को हर महीने 25 किलो सस्ता अनाज हासिल करने का अधिकार दिया गया था। हालांकि, ईजीओएम अब यूपीए सरकार के इस महत्वाकांक्षी एजेंडे में संशोधन करने पर विचार कर रहा है। इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं कि यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद इस स्कीम में बदलाव लाने पर जोर दे रही हैं ताकि इसके जरिए गरीबी रखा से नीचे जीवनयापन कर रहे करोड़ों परिवारों (बीपीएल फैमिली) को और ज्यादा लाभान्वित किया जा सके। यही नहीं, इस स्कीम के दायर में अब महिलाओं और बच्चों के साथ-साथ समाज के उन अन्य तबकों को भी लाने पर विचार किया जा रहा है जो सरकारी बीपीएल सूची में स्थान पाने से वंचित रह गए हैं। हालांकि, इन अटकलों के बावजूद राइट टू फूड कैंपेन द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए गए पत्र की अनदेखी नहीं की जा सकती।
इस पत्र में खाद्य सुरक्षा के नाम पर हर गरीब परिवार को 25 किलो अनाज देने के अधिकार को अपर्याप्त बताते हुए कहा गया है कि इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लंघन होता है। पत्र में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने हर परिवार को 35 किलो अनाज पाने का अधिकार पहले ही दे दिया है। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों को कई और अधिकार दिए हैं। अंत्योदय अन्न योजना के तहत अत्यंत गरीब तबकों को सस्ता राशन देना और आईसीडीएस के तहत देश के नौनिहालों को बतौर पूरक पोषक खाद्य-पेय पदार्थ मुहैया कराना प्रमुख हैं। इस पत्र में कहा गया है कि प्रस्तावित विधेयक को केवल सरकारी बीपीएल सूची में शामिल लोगों तक ही सीमित कर दिया गया है, जबकि सच्चाई यही है कि देश में बड़ी तादाद में महिलाओं और बच्चों को अपने भोजन में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं।
सरकार की ताजा कवायद में पत्र के इस बिंदु यानी प्वाइंट का भी असर नजर आता है क्योंकि वह अब इस स्कीम के दायर में महिलाओं और बच्चों के साथ-साथ अन्य गरीबों को भी शामिल करने पर विचार कर रही है। सूत्रों ने बताया कि ईजीओएम की बैठक में शिकायत निपटार की उस व्यवस्था में कुछ बदलाव किए जाने की भी संभावना है जिसका जिक्र इस विधेयक के मसौदे में किया गया है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत कोई भी महिला अथवा पुरुष निर्धारित अनाज न मिलने की स्थिति में अपनी शिकायत बाकायदा दर्ज करा सकता है क्योंकि प्रस्तावित कानून के अंतर्गत खाद्यान्न मिलने की गारंटी दी जा रही है।
ईजीओएम को अपनी बैठक में बीपीएल परिवारों की वास्तविक संख्या को लेकर मतभेदों पर भी विचार करना है। मालूम हो कि योजना आयोग के एक अनुमान के मुताबिक देश में फिलहाल 6.5 करोड़ बीपीएल परिवार हैं। वहीं, दूसरी ओर प्रधानमंत्री द्वारा गठित तेंदुलकर समिति ने देश में बीपीएल परिवारों की संख्या इससे कहीं अधिक बताई है।
एपीएल परिवारों को अभी राहतनई दिल्ली ह्व गरीबी रखा से ऊपर जीवनयापन कर रहे परिवारों (एपीएल फैमिली) के लिए कुछ राहत भरी खबर है। सरकार द्वारा खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव पर फैसला फिलहाल टाल देने से ही यह राहत उन्हें मिली है। खाद्य मंत्रालय ने 11.52 करोड़ एपीएल परिवारों को राशन की दुकानों के जरिए बेचे जाने वाले गेहूं और चावल की कीमतें बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। मंत्रालय ने कहा था कि इन परिवारों को बेचे जाने वाले गेहूं और चावल की कीमत बढ़ाकर क्रमश: 11 रुपये एवं 15.37 रुपये प्रति किलो कर दी जाए। जहां तक मौजूदा कीमतों का सवाल है, एपीएल परिवारों को गेहूं 6.10 रुपये प्रति किलो और चावल 8.30 रुपये प्रति किलो की दर से मिलता है। (प्रेट्र)
मौजूदा स्थिति ईजीओएम ने पिछली बैठक में खाद्य सुरक्षा विधेयक को दी थी मंजूरीइसमें गरीब परिवारों को हर माह 25 किलो अनाज पाने का था अधिकारलेकिन राइट टू फूड कैंपेन ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में जताई आपत्तिस्कीम के दायर में अब महिलाओं और बच्चों को भी लाने पर विचार (बिज़नस भास्कर)

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