चंडीगढ़ April 23, 2010
हरियाणा में बहुतायत मात्रा में गेहूं के उत्पादन के बावजूद वहां के आटा मिल मालिक दूसरे राज्यों से गेहूं खरीद रहे हैं। इसकी वजह यह है कि राज्य सरकार करों के ढांचे को सरल नहीं बना रही है।
हरियाणा में इस समय 40 आटा मिलें चल रही हैं जिनमें से अधिकतर अपनी क्षमता का चौथाई हिस्सा ही उपयोग में ला रही हैं। इसका कारण करों का ढांचा इन मिल मालिकों के कारोबार के अनुकूल नहीं होना है। आटा मिलों की औसत दैनिक क्षमता 100 टन है।
हरियाणा आटा मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सी पी गुप्ता ने बताया कि राज्य में निजी मिल मालिकों को गेहूं की खरीदारी के लिए सभी राज्यों से ज्यादा कर देना पड़ता है। गौरतलब है कि राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल है और इस पर सरकार 12.75 फीसदी कर ले रही है।
इस कर में 2 फीसदी बाजार शुल्क, 2.5 फीसदी वैट, 5 प्रतिशत वैट पर अधिशुल्क, 2.5 फीसदी कच्चा आढ़ती कमीशन, 1 फीसदी पक्का आढ़ती कमीशन और 2 फीसदी ग्रामीण विकास फंड शामिल है।
गुप्ता ने बताया कि इन सब करों के बाद आटा मिल मालिकों को 1300 रुपये में गेहूं खरीदना पड़ता है। इसके विपरीत उत्तरप्रदेश से गेहूं खरीदने के लिए मिल मालिकों को माल भाड़े और कर सहित प्रति क्ंविटल 1140 रुपये ही चुकाने पड़ रहे हैं। इससे प्रति क्ंविटल गेहूं खरीद में 160 रुपये का अंतर आ रहा है।
गुप्ता ने बताया कि हरियाणा सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए गेहूं की भंडारण योजना लागू करने में अन्य उत्तरी राज्यों से पीछे है। इस योजना में मिल मालिकों को गेहूं को आटे में बदलने के लिए आरक्षण दिया जाता है।
पंजाब और चंडीगढ़ में ऐसा किया जा रहा है। अगर हरियाणा में इसे अपनाया जाता है तो राज्य अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सकेगा। गुप्ता ने बताया कि मिल मालिकों ने सही समय पर राज्य के अधिकारियों के सामने यह मुद्दा उठाया है लेकिन अभी तक इस पर किसी तरह का कोई निर्णय नहीं आया है।
उल्लेखनीय है कि गर्मी बढ़ने का भी कोई खास असर गेहूं के उत्पादन पर नहीं पडा है। इससे स्थिति यह हो गई है कि गेहूं के भंडारण का संकट हो गया है। (बीएस हिंदी)
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