मुंबई April 21, 2010
चीनी उद्योग की चिंता बढ़ने लगी है। तेज गिरावट के दौर में चीनी 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के नए न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है।
पिछले 7 दिनों में ही कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। उद्योग जगत और कारोबारियों का कहना है कि अगर इसी तरह की गिरावट जारी रही तो चीनी का उठाव न होने की नई समस्या हो जाएगी।
उठाव के लिए बड़ी मात्रा में चीनी पड़ी हुई है और मिलें प्रति दिन एक नए न्यूनतम स्तर पर चीनी बेच रही हैं। इससे किसानों को गन्ने के दाम का समय से भुगतान करने में दिक्कतें आएंगी। जनवरी 2010 के मध्य में चीनी की एक्स मिल कीमतें अटकलबाजी के चलते 40 रुपये प्रति किलो (उत्पाद शुल्क के बगैर) के उच्च स्तर पर पहुंच गई थीं।
इस समय महाराष्ट्र में चीनी की एक्स मिल कीमतें 25 रुपये प्रति किलो हैं। इसकी कीमतों में पिछले 10 सप्ताह के दौरान 37.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। उद्योग जगत के सूत्रों को डर है कि बाजार 20 रुपये प्रति किलो के न्यूनतम स्तर पर जा सकता है और उसके बाद गन्ना किसानों के हितों पर बुरा असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि सामान्यतया गन्ने की कीमतें एक्स मिल कीमतों की 70 प्रतिशत होती हैं।
उद्योग जगत के सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'चीनी की कीमतों में गिरावट के पीछे कोई सैध्दांतिक कारण नजर नहीं आ रहा है। सरकार ने मुक्त बिक्री का कोटा पिछले साल के समान महीने की तुलना में कम कर दिया है। इसके साथ ही गर्मी के चलते भी मांग में बढ़ोतरी की उम्मीद के कारण चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी होनी चाहिए।
लेकिन इस समय स्थिति यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चीनी की कीमतें जनवरी के 766 डॉलर प्रति टन की तुलना में गिरकर 486 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं। इसकी एक ही वजह है कि ब्राजील और भारत में उत्पादन केसही आंकड़े आ गए हैं। भारत में चीनी का उत्पादन 180 लाख टन ज्यादा होने के अनुमान हैं, वहीं ब्राजील में उत्पादन 330 लाख टन होने के अनुमान हैं।'
फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे ने कहा कि अब सरकार को सफेद चीनी के आयात दिए जाने वाले शुल्क छूट पर फिर से विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'इस समय बाजार धारणा कमजोर है, क्योंकि यह डर बना हुआ है कि सफेद चीनी का आयात 400-450 डॉलर प्रति टन के भाव हो सकता है। इससे घरेलू बाजार बुरी तरह प्रभावित होगा।
अगर ऐसा होता है तो चीनी मिलों की पूरी अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाएगी, क्योंकि जिस भाव से गन्ना खरीदा गया है, या जो भाव देने का वादा किया गया है, उससे राजस्व पर बुरा असर पड़ेगा। ज्यादातर मिलें खतरे के निशान पर पहुंच जाएंगी।'
महाराष्ट्र शुगर ब्रोकर्स ऐंड मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश पांडे ने कहा कि कारोबारियों में चीनी की खरीद को लेकर अफरातफरी की स्थिति है और कोई इस समय चीनी नहीं खरीदना चाह रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार आयातित चीनी पर शुल्क लगाए, क्योंकि आने वाले महीनों में बंपर उत्पादन के चलते देश निर्यात करने की स्थिति में आ जाएगा।
कीमतों में गिरावट का दौर जारी
माह मूल्यजनवरी 3800-4000फरवरी 3500-3800मार्च 3500-3100अप्रैल 3100-2500कीमतें रुपये प्रति क्विंटल में (बीएस हिंदी)
21 अप्रैल 2010
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