मुंबई April 20, 2010
कपास की बढ़ती कीमतों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने इसके निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। यह रोक 19 अप्रैल से ही प्रभावी हो गई है।
सरकार ने अब कपास निर्यात के किसी भी अनुबंध को स्वीकार नहीं करने के आदेश दिए हैं। हालांकि बाजार के जानकार और कारोबारी कुछ और ही कह रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार का यह कदम कपास की कीमत पर काबू पाने में ज्यादा असरकारक साबित नहीं होगा।
उनका कहना है कि कीमतों में हो रहे इजाफे की मुख्य वजह यार्न मिलों की मनमानी और कपास पर चल रहा सट्टा है। कपास के बढ़ते दाम पर काबू करने के लिए सरकार पर निर्यात रोकने का दबाव था।
दरअसल कपास उत्पादक देश अमेरिका, ब्राजील ओर पाकिस्तान में इस समय अतिरिक्त कपास नहीं है जबकि चीन में कपास उत्पादन 10 फीसदी घटा है। इससे भारत कपास खरीदारी का केंद्र बन गया है और विदेशी मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में कपास की कीमत आसमान छू रही है।
कुछ दिनों पहले कपास की कीमतें 29,300 से 29,400 रुपये प्रति कैंडी (256 किलोग्राम) तक पहुंच गई थीं। फिलहाल कपास की कीमत 28,300 रुपये प्रति कैंडी केआसपास चल रही हैं। जबकि पिछले साल अक्टूबर में 22,000 रुपये प्रति कैंडी की दर पर कपास की बिक्री हो रही थी।
भारत मर्चेंट चैंबर के अध्यक्ष राजीव सिंघल कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों में मिलों ने यार्न के दाम 35 फीसदी बढ़ा दिए हैं। दूसरी तरफ कपास का वायदा कारोबारी कीमतों को हवा दे रहा है।
सिंघल के अनुसार सिर्फ निर्यात में रोक लगाने से काम नहीं चलेगा क्योंकि वायदा कारोबार देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। शेयर खान कमोडिटी के मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि निर्यात पर रोक से दाम घटेंगे, लेकिन घरेलू मांग के कारण बहुत ज्यादा गिरावट की गुंजाइश नहीं है।
निर्यात में गांठ
कपास निर्यात पर 19 अप्रैल से प्रभावी हो गई रोक घरेलू बाज़ार में कपास के दाम काबू करने की कवायदवायदा और धागा मिलों पर दाम बढ़ाने के आरोप (बीएस हिंदी)
21 अप्रैल 2010
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