मुंबई April 22, 2010
भारतीय निर्यातकों की ओर से भेजा गया लगभग 40,000 टन अंगूर यूरोप के विभिन्न बंदरगाहों पर फंसा हुआ है।
यूरोपीय देशों ने इसमें स्वीकार्य स्तर से अधिक रासायनिक तत्वों के होने की बात कहते हुए इसके प्रवेश पर रोक लगा दी है। इन अंगूरों की कीमत 300 करोड़ रुपये के आसपास है। 90 फीसदी अंगूर महाराष्ट्र से और शेष अंगूर आंध्रप्रदेश से भेजे गए थे।
अंगूर उत्पादक संघ का कहना है कि यूरोपीय संघ इस तरह की रुकावटें इसलिए लगा रहा है ताकि वहां के किसानों की मदद कर सकें। लिहाजा संघ ने इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कृषि मंत्री शरद पवार और कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) से हस्तक्षेप की मांग की है।
संघ के अध्यक्ष सोपान कंचन ने बिजनेस स्टैंडर्ड का बताया, 'भारत से यूरोपीय देशों को भेजे गए कुल 4,200 डिब्बों में से अब तक 3,000 डिब्बों को अस्वीकार कर दिया गया है। आमतौर पर भारतीय अंगूर यूरोपीय देशों में 15 मार्च से 15 मई के बीच भेजे जाते हैं। अंगूर के अस्वीकृत 3,000 डिब्बे विभिन्न बंदरगाहों पर अटके पड़े हैं।
पंद्रह दिन पहले यूरोपीय देशों के विभिन्न बाजारों में बेचे गए 1,000 डिब्बों के अंगूरों में लिहोसिन के अवशेष (क्लोरोकोलाइन क्लोराइड या सीसीसी) मौजूद हैं। इन अंगूरों को समुद्र में फेंकने के अलावा कोई चारा नहीं है। इस वजह से निर्यातक काफी परेशान हैं।' उन्होंने जानकारी दी कि अंगूर निर्यातकों का एक दल अपनी मुश्किलों के समाधान के लिए फिलहाल दिल्ली में है।
कंचन का कहना है कि एपीडा के दिशा निर्देशों के तहत प्रयोगशालाओं में जांच के बाद अंगूरों को भेजा गया था। मगर, अंगूरों में लिहोसिन के अवशेष होने की बात कुछ बड़े बाजारों के खुलासे के बाद सामने आई है।
उन्होंने कहा, 'हालांकि निर्यातक जानना चाहते हैं कि भारतीय अंगूरों की अस्वीकृति यूरोपीय संघ की ओर से लगाया गया गैर शुल्कीय प्रतिबंध तो नहीं हैं। निर्यातक चाहते हैं कि इस मसले को भारतीय सरकार और एपिडा की ओर से यूरोपीय संघ के सामने उठाया जाए।'
जानकार सूत्रों ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय और निर्यातकों की एक बैठक में इस मुद्दे पर बात की गई है। हालांकि इससे कोई अंतिम हल नहीं निकल सका। सूत्रों ने कहा, 'वाणिज्य मंत्रालय ने यह आश्वासन दिया है कि इस समस्या के जल्दी हल के लिए इस मसले को यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के सामने रखा जाएगा।'
यूरोपीय संघ की वेबसाइट पर साफ किया गया है कि अन्य देशों के निर्यातक इस बात की पूरी पुष्टि कर लें कि वहां से यूरोप भेजे जाने वाले फलों और सब्जियों में मान्य स्तर से ज्यादा रसायन अवशेष नहीं होने चाहिए। हालांकि इसके लिए कोई प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है, पर देश में प्रवेश के मौके पर उत्पाद की जांच की जाती है।
इस दौरान किसी तरह की मिलावट के सबूत मिलने पर माल को अस्वीकार या निर्यातक के खर्चे पर बर्बाद किया जा सकता है। इसके बाद भी मिलावट की शिकायत आने पर निर्देशों के उल्लंघन के रूप में इसे लिया जाता है और इसके खिलाफ कदम उठाए जाते हैं। (बीएस हिंदी)
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