नई दिल्ली April 12, 2010
नई पोषण-आधारित सब्सिडी (एनबीएस) नीति लागू होने के साथ देश में सब्सिडी प्राप्त उर्वरकों की संख्या बढ़ सकती है।
कंपनियों को अब नए उत्पाद खास तौर से देश में कम मात्रा में मौजूद सूक्ष्मपोषकों (माइक्रोन्यूट्रीएन्ट) के विकास की अनुमति दी जा सकती है। फिलहाल एनबीएस के तहत जटिल उर्वरकों के करीब 12 ग्रेड को सब्सिडी हासिल है।
इनमें डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), मोनो अमोनियम फॉस्फेट (एमएपी), ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (टीएसपी), मुरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी), अमोनियम सल्फेट और सिंगल सुपरफॉस्फेट शामिल हैं। इनमें करीब 60 लाख टन आयातित डीएपी और एमओपी भी शामिल हैं। हालांकि इस सूची में विशिष्ट रूप से निर्मित्त उर्वरकों, पानी में घुलनशील उर्वरकों और दूसरे सूक्ष्मपोषकों को शामिल नहीं किया गया है।
उर्वरक विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'फिलहाल हमारे पास डीएपी और एमओपी का विकल्प नहीं है। इसकी वजह से एकाधिकारी स्थिति पैदा हो जाती है जिससे उर्वरकों के काला बाजारी को प्रोत्साहन मिलता है।
भारत कई महत्वपूर्ण सूक्ष्मपोषकों के मामले में भी पीछे है जिन्हें पोषण जरूरतों के लिए बढ़ाया जाना जरूरी है। अभी तक आयातित एनपीके (नाइट्रोजन, पोटैशियम और फॉस्फोरस) पर सब्सिडी नहीं थी, लेकिन जरूरी स्वीकृतियों के बाद इस पर भी सब्सिडी होगी।'
कोई नया उत्पाद उतारने के लिए कंपनियों या आयातकों को उर्वरक विभाग के पास एक आवेदन दाखिल करना होगा। नए उत्पाद की उपयोगिता और इस्तेमाल की संभावनाओं का आकलन करने के लिए विभाग इसे कृषि मंत्रालय और कृषि शोध परिषद् के पास भेजेगा। जरूरी सभी मूल्यांकन के बाद इसे उर्वरकों की सूची में शामिल किया जाएगा जिस पर सब्सिडी दी जाएगी।
विभाग के अधिकारी का कहना है, ' नई नीति में यह व्यवस्था प्रतिस्पद्र्धा बढ़ाने और किसानों को ज्यादा से ज्यादा विकल्प देने के लिए पेश की गई है। इससे देश में सूक्ष्मपोषकों की संख्या बढ़ेगी।' देश के कई इलाकों में मिट्टी में कई महत्वपूर्ण पोषक जैसे मैगनीज, लोहा, कैल्शियम, मैगनीशियम, क्लोरीन और तांबा की भी कमी है।
उर्वरकों की सूची में नए उत्पादों को शामिल करने की नीति भविष्य में मिट्टी की पोषक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। कंपनियों को अब अपनी सेवा का विस्तार करना चाहिए और किसानों को मिट्टी, तापमान और दूसरे जरूरी चीजों के हिसाब से उर्वरकों के सही इस्तेमाल की जानकारी देना चाहिए।
यूरिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और उर्वरकों के मामले में बहुत कम विकल्प मौजूद होने की वजह से देश का उर्वरक उत्पादन स्थिर हो गया है। इसकी वजह से कंपनियों को ऊंची अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर ज्यादा आयात भी करना पड़ रहा है। (बीएस हिंदी)
13 अप्रैल 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें