मुंबई April 23, 2010
इस साल उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं तक, सभी सामान्य मॉनसूनी बारिश की उम्मीद के चलते खुश हैं।
वहीं तिलहन से जुड़े लोग खरीफ की बुआई को लेकर चिंतित हैं। इसकी वजह है कि तिलहन का भंडारण इस साल ज्यादा है। लगातार दो साल मॉनसूनी बारिश कम होने के बाद मौसम विभाग ने इस साल बेहतर बारिश की उम्मीद जाहिर की है। इससे किसानों को उम्मीद जगी है कि इस साल उत्पादन बढ़िया रहेगा।
इस खबर से सरकार ने भी राहत की सांस ली है, क्योंकि खाद्यान्न की कमी की वजह से महंगाई दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सामान्यतया सोयाबीन (100 प्रतिशत), मूंगफली (75 प्रतिशत), तिल (80 प्रतिशत) अरंडी (100 प्रतिशत) और सूरजमुखी (23 प्रतिशत) की बुआई मॉनसूनी बारिश के समय होती है और इसकी फसल सितंबर और अक्टूबर में तैयार हो जाती है।
इसके बाद नवंबर से पेराई सत्र शुरू हो जाता है। लेकिन इस साल तिलहन की बुआई के खराब संकेत मिल रहे हैं, क्योंकि किसानों और कारोबारियों ने पिछले साल के 85 लाख टन सोयाबीन उत्पादन का आधा माल रोक रखा है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा कि खाद्य तेलों के आयात पर शुल्क नहीं लगाया गया है। इसके साथ ही पिछले 4 साल से तिलहन के बेस रेट में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। इसके कारण अगर घरेलू बीज का प्रसंस्करण नहीं हो पाता है तो स्टॉक बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा और किसान तिलहन की खेती से मुंह मोड़ लेंगे।
कुल मिलाकर आंकड़ों को देखें तो 1 अप्रैल 2010 तक कुल 185 लाख टन से ज्यादा तिलहन की पेराई नहीं हुई है, इसमें राइस ब्रान, 45 लाख टन सोयाबीन, 60 लाख टन सरसों, 20 लाख टन मूंगफली, और 60 लाख टन कपास बीज शामिल है।
मेहता का कहना है कि खाद्य तेलों के आयात पर भी दबाव बना रहेगा, जब तक भंडारण बना हुआ है और उसे खत्म नहीं कर दिया जाता। इस समय कुल भंडारण देश में 35 दिन के कुल खपत के बराबर है, जो 25 दिन के खपत के लिए भंडारण की तुलना में बहुत ज्यादा है।
खाद्य तेलों का वर्तमान भंडारण 1 अप्रैल 2010 तक बंदरगाहों पर 7-8 लाख टन और 5-6 लाख टन प्रक्रिया में है। भारत में खाद्य तेलों का कुल उत्पादन 60-65 लाख टन है, जबकि खपत 150 लाख टन से ज्यादा है।
ऐसे में शेष जरूरतें इंडोनेशिया, मलेशिया और अर्जेंटीना से आयात करके पूरी की जाती हैं। अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये के मजबूत होने और कच्चे खाद्य तेल पर आयात शुल्क शून्य होने और रिफाइंड तेल पर मामूली शुल्क (7.5 प्रतिशत) होने की वजह से भारत में पेराई सत्र के दौरान भी बड़े पैमाने पर आयात में सहूलियत मिली।
रुचि सोया इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक दिनेश शाहरा के मुताबिक इस समय घरेलू पेराई मिले अपनी कुल क्षमता का 40-50 प्रतिशत ही पेराई कर रही हैं। पेराई करने वाली मिलों ने घरेलू बाजार में उपलब्ध कुल तिलहन का महत 36 प्रतिशत ही पेराई कर सकी हैं। सामान्यतया नवंबर-मार्च के बीच कुल उपलब्ध तिलहन के 60 प्रतिशत हिस्से की पेराई हो जाती है।
पेराई न होने की वजह से तिलहन का भंडारण बढ़ा
पेराई न होने की वजह से इस साल तिलहन का भंडारण 1 अप्रैल तक 185 लाख टनकच्चे तेल का आयात शुल्क मुक्त और रिफाइंड तेल आयात पर मामूली शुल्क की वजह से पेराई सत्र में भी हुआ जमकर आयातभंडारण ज्यादा होने की वजह से तिलहन की खेती से मुंह मोड़ सकते हैं किसान (बीएस हिंदी)
23 अप्रैल 2010
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