23 अप्रैल 2010
सस्ती चीनी आयात होने से घरेलू मूल्य और गिर
करीब 60 फीसदी चीनी का उपभोग करने वाले औद्योगिक उपभोक्ताओं को आयातित चीनी ज्यादा रास आ रही है। कोल्ड्र ड्रिंक, बिस्कुट, कन्फेक्शनरी और आइसक्रीम निर्माता स्टॉक लिमिट से मुक्त सस्ती आयातित चीनी इस्तेमाल करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। यही वजह है कि ज्यादा खपत वाले गर्मियों के सीजन में भी घरेलू चीनी की कीमतों में गिरावट जारी है। पिछले चार महीने में घरेलू बाजार में चीनी के दाम 36 फीसदी घट चुके हैं। सात जनवरी को उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स-फैक्ट्री दाम 4300 रुपये प्रति `िंटल थे जो गुरुवार को घटकर 2750-2800 रुपये प्रति `िंटल रह गए। उद्योगों द्वारा आयातित चीनी के उपयोग से विदेशी मंदी का भी घरेलू बाजार पर दिखने लगा है। भारत में उत्पादन बढ़ने के अलावा ब्राजील में भी चीनी का ज्यादा उत्पादन होने की संभावना है।सिंभावली शुगर लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक डॉ। जी. एस. सी. राव ने बताया कि केंद्र सरकार ने बड़े उपभोक्ताओं पर चीनी की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है। जबकि आयातित चीनी पर कोई लिमिट नहीं है। भारतीय चीनी के मुकाबले आयातित चीनी सस्ती भी पड़ रही है। इसीलिए बड़े उपभोक्ता जैसे पेप्सीको, कोक और ब्रिटानिया आदि कंपनियां विदेश से व्हाइट चीनी का आयात कर रही हैं। ऐसे में गर्मी का सीजन शुरू होने के बावजूद घरेलू बाजार में मांग कमजोर है। जिससे कीमतों में गिरावट को बल मिल रहा है।इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन बढ़कर 185 लाख टन होने का अनुमान है जो पूर्व अनुमान से करीब 25 लाख टन ज्यादा है। उधर ब्राजील में चीनी का उत्पादन बढ़कर 330 लाख टन होने का अनुमान है। 31 मार्च तक भारत में 167 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जो पिछले साल की समान अवधि के 137.4 लाख टन उत्पादन से काफी ज्यादा है। सबसे बड़े उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में अभी भी मिलों में पेराई चल रही है। जबकि मिलों पर चीनी की बिकवाली का दबाव भी है। लेकिन स्टॉक लिमिट होने के कारण स्टॉकिस्टों की खरीद कमजोर है। सूत्रों के अनुसार पहली अक्टूबर से अभी तक करीब 34 लाख टन चीनी (इसमें 7.75 लाख टन व्हाईट शुगर शामिल) का आयात हो चुका है। करीब 12 लाख टन के और आयात सौदे हो चुके हैं जिनकी खेप आने वाली है। ऐसे में घरेलू उत्पादन और आयात को मिलाकर देश में चीनी की कुल उपलब्धता करीब 231 लाख टन की बैठती है। इसके अलावा करीब 25-30 लाख टन चीनी पिछले सीजन की समाप्ति पर बची थी। जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 225-230 लाख टन की होती है। ऐसे में आगामी नए पेराई सीजन के समय लगभग 30 लाख टन से तो ज्यादा का बकाया स्टॉक बचेगा। दिल्ली के चीनी कारोबारी ने बताया कि घरेलू बाजार में जनवरी से अभी तक चीनी की कीमतों में करीब 36 फीसदी का मंदा आया है। गुरुवार को उत्तर प्रदेश में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें घटकर 2750-2800 रुपये और महाराष्ट्र में एक्स-फैक्ट्री कीमतें घटकर 2450 रुपये प्रति `िंटल रह गई। दिल्ली बाजार में इसके दाम घटकर 2900 रुपये प्रति `िंटल रह गए। विदेशी बाजार में इस दौरान रॉ-शुगर की कीमतों में करीब 46 फीसदी का मंदा आकर गुरुवार को भाव 16.31 सेंट प्रति पाउंड और व्हाईट चीनी के दाम लगभग 40 फीसदी घटकर 463 डॉलर प्रति टन रह गए।बात पते कीउद्योगों द्वारा आयातित चीनी के उपयोग से विदेशी मंदी का भी घरेलू बाजार पर असर दिखने लगा है। ज्यादा खपत वाले गर्मियों के सीजन में भी घरेलू चीनी की कीमतों में गिरावट जारी है। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
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