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06 फ़रवरी 2010

जीएम मिलावट से प्रभावित हो सकता है सोया निर्यात

नई दिल्ली February 06, 2010
गैर जीएम उत्पादों को प्रमाणित करने वाली स्वतंत्र वैश्विक एजेंसी सीईआरटी आईडी ने पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को एक पत्र लिखा है जिसमें इस बात का जिक्र है कि भारत में उत्पादित सोया में भी कुछ जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड ) तत्व पाए गए हैं।
गैर जीएम सोया के बड़े उत्पादक के तौर पर वैश्विक बाजार में स्थापित भारत का सोया निर्यात इससे बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। सीईआरटी आईडी यूरोप के प्रबंध निदेशक रिचर्ड वारेन का कहना है कि भारत गैर जीएम सोया का उत्पादन करने वाला एकमात्र देश है।
जिन बाजारों में गैर जीएम सोया की अच्छी मांग है वहां भारत को विशेष फायदा मिलता है। पर, सीईआरटी के सामने ऐसे तीन मामले आ चुके हैं, जब भारतीय सोया में जीएम तत्वों की मिलावट पाई गई है। सीईआरटी की तरफ से लिखे गए पत्र में यह साफ किया गया है कि भारत में जीएम सोया के उत्पादन को लेकर कोई सबूत नहीं हैं।
सोया में जीएम तत्वों की मिलावट मिलों के स्तर पर हो रही है। मिलों में कपास और सोया दोनों की पेराई का काम साथ-साथ होता है। इससे जीएम के अंश सोया में मिल जाते हैं। 22 जनवरी को लिखे गए इस पत्र में लिखा गया है कि खाद्य उत्पादों में बिना स्वीकृति के जीएम तत्वों का पाया जाना वैश्विक स्तर पर एक बड़ा मुद्दा हो सकता है।
इसकी वजह से भारत का सोया उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। साथ ही गैर जीएम सोया उत्पादक के रूप में बनी भारत की साख भी खराब हो सकती है। भारत ने 2007-08 में 3,52,600 टन सोया फली का निर्यात किया था। भारत वियतनाम, जापान, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों को सोया फली का निर्यात करता है।
वैश्विक बाजार में ब्राजील और अर्जेंटीना भारत के प्रमुख प्रतिस्पर्द्धी देश हैं। देश में 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती की जाती है। इसमें से करीब 40 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्रफल अकेले मध्यप्रदेश में है। इसके बाद महाराष्ट्र में 27 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती की जाती है।
सीईआरटी गैर जीएम मानकों के आधार पर करीब 10 साल से भारतीय सोया को प्रमाणित करता आ रहा है। इसकी मदद से भारतीय व्यापारी यूरापीय बाजारों में पूरे विश्वास के साथ अपना सोया निर्यात करते हैं। इसका इस्तेमाल तमाम बड़े ब्रांड के सोया उत्पादों में किया जाता है।
वारेन कहते हैं, 'हमारी जांच का एक मुख्य हिस्सा फलियों का पीसीआर परीक्षण है। लगातार कई सालों से सिर्फ भारतीय गैर जीएम बीजों से सोया उत्पादन किए जाने के कारण भारतीय सोया की यह जांच गैर जरूरी हो गई है, लेकिन ग्राहकों की संतुष्टि के लिए करते हैं। अब हम इसे हमारी निगरानी प्रक्रिया के अहम चरण के रूप में ले सकते हैं।'
भारतीय सोया में 18 महीने पहले पहली बार जीएम तत्व पाए गए, 10 महीने पहले दूसरी बार अंश मिलने पर जांच तेज की गई। अप्रैल में एक बार फिर जीएम तत्वों के पाए जाने के बाद इसे एक गंभीर मसले के रूप में लिया गया। (बीएस हिन्दी)

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