04 फ़रवरी 2010
कड़े फैसलों से चीनी 5 प्रतिशत सस्ती
सरकार के कड़े फैसलों के बाद घरेलू बाजार में चीनी की जबर्दस्त बिकवाली का दबाव दिखाई दिया। इससे चीनी के दाम बुधवार को चार-पांच फीसदी तक गिर गए। हालांकि विश्व बाजार में विश्लेषकों का अनुमान है कि चीनी की कमी पिछले अनुमान से कहीं ज्यादा रह सकती है।गौरतलब है कि सरकार ने चीनी मिलों के लिए मासिक कोटे को भी साप्ताहिक उप कोटे में बांट दिया है और इसके अनुसार उन्हें चीनी बेचनी होगी और डिलीवरी की हर हाल में देनी होगी। इससे चीनी मिलों और स्टॉकिस्टों पर बिकवाली का दबाव बढ़ गया। कारोबारियों के अनुसार सरकार के इस फैसले से मूल्य में कुछ हद तक गिरावट आई है। सरकार ने चीनी स्टॉक लिमिट ऑर्डर भी अगले सितंबर तक लागू रखने का फैसला किया है। बाजार में अंदेशा है कि हर सप्ताह कोटा बेचने का दबाव रहने से मिलों पर तुरंत चीनी बेचने का दबाव रहेगा। कोटे की चीनी खुले बाजार में न बेचने पर मिलों की बिना बिकी चीनी बहुत सस्ते दामों पर सरकार लेवी के रूप में ले लेगी। इससे मिलों को भारी घाटा होगा।मुंबई के वाशी थोक बाजार में चीनी एस ग्रेड 190 रुपये तक गिरकर 3800-3900 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। इसी तरह चीनी एम ग्रेड घटकर 3860-4000 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। उधर एफओ लिच के विश्लेषक और मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टोफर बर्ग ने कहा कि अगले सितंबर तक चलने वाले मौजूदा सीजन में वैश्विक स्तर पर चीनी की कमी 80 लाख टन रहेगी। पहले 60 लाख टन कमी रहने का अनुमान लगाया गया था। उन्होंने मनीला में चीनी पर एक कांफ्रेंस के बाद संवाददाताओं को बताया कि चीनी की कमी मुख्य रूप से सप्लाई घटने से पैदा हो रही है। चीनी की खपत सामान्य रफ्तार से ही बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि भारत, पाकिस्तान, थाईलैंड और इंडोनेशिया में सप्लाई की कमी से वैश्विक असंतुलन बढ़ रहा है।इन देशों से विश्व बाजार में मजबूत मांग आने की संभावना है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चीनी निर्यातक देश थाईलैंड ने अपने उत्पादन में गिरावट की संभावना जताई है। वहां उत्पादन 72।5 लाख टन रहने का अनुमान है। वहां सूखे के कारण गन्ने की पैदावार प्रभावित हुई है। बर्ग का अनुमान है कि फरवरी और मार्च में न्यूयॉर्क आईसीई रॉ शुगर 30 सेंट प्रति पाउंड के ऊपर ही रहेगी। सबसे बड़े निर्यातक ब्राजील में अप्रैल के दौरान नई सप्लाई आने के बाद मूल्य में कुछ कमी आने की संभावना है। बात पते कीहर सप्ताह कोटा बेचने का दबाव रहने से मिलों पर तुरंत चीनी बेचनी होगी। कोटे की चीनी खुले बाजार में न बेचने पर मिलों की बिना बिकी चीनी बहुत सस्ते दामों पर सरकार लेवी के रूप में ले लेगी। इससे मिलों को भारी घाटा होगा। (बिज़नस भास्कर)
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